गतांग से आगे … एक छोटी लेकिन मीठी सिसकी के साथ वंदना आनंदित हो गई. मैंने करीब पंद्रह मिनट तक वंदना को इसी तरह से रखा. वंदना ने अब मेरा लंड बाहर निकालने को कहा. मैं बहुत ज्यादा उत्तेजित था. पता नहीं कैसे ; सुंन के चूत में से लंड को निकलते ही मैंने शीतल को पकड़कर लिटा दिया और उस पर चढ़ गया. वंदना ये देख बहुत खुश हुई और उसने शीतल के होंठों पर अपने होंठ रख दिए. शीतल ने भी अब मुझे कसकर पकड़ लिया. मैंने धीरे से अपना लंड शीतल के चूत की तरफ बढाया. शीतल ने पाने हाथ की मदद से उसे उंदर का रास्ता दिखा दिया, बस अब क्या था मर लंड सीधे उस गीले और अनुभवी चूत में पहुँच चुका था. वंदना कभी मुझे तो कभी शीतल को चूम रही थी. मैंने शीतल को भी पंद्रह – बीस मिनट तक ऐसी ही रखा. हमारा वो बगीचा बहुत छोटा था. उसके चारों ओर दो फुट जितनी ऊंची दीवार थी. घर कि चाट का सारा पानी नाली से उसी में गिर रहा था. अब हमारे उस छोटे से बगीचे में इस तेज गिरते पानी और मुसलाधार बारिश की वजह से वो बगीचा तेजी से भरने लगा. बहुत जल्द वि लबालब भर गया. एक बहुत बड़ा बात टब जैसा लगने लगा. हम तीनो उसी में अब सेक्स करने लगे. पानी के अन्दर संभोग का यह अंदाज एक बहुत ही उत्तेजना पैदा करने वाला था. मैंने बारी बारी से वंदना और शीतल के साथ आधे आधे घंटे तक संभोग किया. फिर हम तीनों थक कर उस बरसात के पानी में ऐसी ही पड़े रहे जब तक कि हम में उठकर अपने अपने कपडे पहनने की ताकत नहीं लौट आई. हम तीनो पूरी तरह से संतुष्ट हो गए थे. अब हम तीनों के दिन और रात बहुत रंगीन हो चुके थे. वंदना अब शीतल और मेरे साथ पूरे जोश के साथ संभोग करने लगी थी. लेकिन अब यह समस्या थी कि आखिर शीतल कब तक रुक सकेगी. हालाँकि मजा मुझे भी वंदना के साथ साथ शीतल के संग संभोग करने पर भी आ रहा था लेकिन गम्भ्र्ता से सोचें तो यह लम्बे समय तक संभव नहीं था. आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | इसी बीच एक दिन ऐसा मौका आ भी गया. शीतल को खबर मिली कि उसकी मां बहुत बीमार है और उसे देखने के लिए उसे जाना होगा. वंदना तो बहुत ही उदास हो गई. लेकिन शीतल भी मजबूर थी. वो कुछ दिनियो कि छुट्टी लेकर चली गई. पहली रात को तो मैंने कुछ नहीं किया लेकिन अगली रात को वंदना से जब संभोग करना चाह तो वंदना थोड़ी देर के बाद रुक गई. इसी तरह से तीन दिन और गुज़र गए. एक दिन शाम को जब मैं पहुंचा तो श्व्टा मुझे मेरे घर से निकलती हुई मिली. उसने मुझे देखा और एक शरारत भरी मुस्कराहट के साथ अपने घर में चली गई. वंदना ने मुझे कहा कि उसने प्रियंका को शीतल के बारे में सब कुछ बता दिया है. यहाँ तक कि हम तीनों के लगातार हमबिस्तर होने तक को भी बता दिया है. मैं सन्न रह गया. वंदना ने कहा कि प्रियंका भी हमारे साथ आने को तैयार है अब तो मुझे आगे तक दूर दूर अँधेरा नजर आने लगा. मैंने सोचा अब इस चीज का अंत बिलकुल नामुमकिन है क्यूंकि वंदना एक बहुत ही हार्डकोंर लेस्बियन है. बिना किसी औरत के ये मेरे साथ संभोग कभी नहीं कर पाएगी. मैंने मजबूर होकर वंदना की बात मां ली. वंदना ने खुश होकर मेरे होंठ बहुत ही जोर से चूस लिए और मुझसे लिपट गई. मैंने भी उसके होंठ चूस लिए. और उसे लेकर बिस्तर पर गिर गया. अगले दिन रविवार था. नाश्ते के बाद मैं अखबार पढ़ रहा था. मेंसे देखा की वंदना प्रियंका के घर के बाहर खड़ी थी. प्रियंका बाहर आई. उसने दरवाजा बंद किया और वंदना के साथ हमारे घर में घुस गई. मैं समझ गया कि वंदना प्रियंका को लेकर क्यूँ आई है. दोनों आ गई. प्रियंका को आज मैंने पहली बार बहुत करीब से देख रहा था. लेकिन करीब एक माह पहले मैंने मेरी ही फैक्ट्री के एक व्यक्ति से प्रियंका के बारे में एक बात पाता चली को चिंताजनक भी थी और उसके लिए सहानुभूति भी पैदा करने वाली थी. उस व्यक्ति ने बताया कि प्रियंका का पति यानि कि यादव साहब का लड़का नामर्द है. ये बात प्रियंका को शादी के बाद पता चली. प्रियंका तभी से बहुत परेशान रहती है. मैं तुरंत समझ गया. तो वंदना से उसने दोस्ती इसीलिए की है जिससे वो अपने शारीरिक सुख को वंदना से प्राप्त कर सके. मेरे लिए अब ये एक नयी मुसीबत थी. आखिर में मैंने ये मान लिया कि शायद मेरी किस्मत में यही सब लिखा है. इसलिए अब मुझे अच्छा बुरा समझना छोड़कर हर तरह से मजे लूटने चाहिये. प्रियंका और वंदना मेरे सामने थी. मैंने वंदना की तरफ देखा और मुस्कुअराया. वंदना खुश नजर आई. मैं प्रियंका के पास गया और उसके पास बैठ गया. मैंने प्रियंका के बालों में हाथ फिराया और बोला ” मैं जानता हूँ तुम्हारी तकलीफ. प्रियंका; मैं और वंदना तुम्हारी हर तकलीफ दूर कर देंगे. तुम्हे कोई कमी महसूस नहीं होने देंगे. तुम अब हमारे साथ हो तो हम सब मुरे मजे से रहेंगे.” मैंने प्रियंका के गालों को चूम लिया. प्रियंका सिहर गई. वंदना उसके पास आई और उसने भी प्रियंका के स्तनों पर हाथ रखा और उन्हें दबाना शुरू किया. प्रियंका को अब इतने से ही आनंद आने लगा. मैंने प्रियंका द्वारा पहनी गई साडी खोलनी शुरू की. वो अब ब्लाउज और पेटीकोट में रह गई थी. गहरे भूरे रंग का ब्लाउज और उसी रंग का पेटीकोट में उसका गोरा अंग गज़ब ढा रहा था. वो दुबली पतली थी लेकिन बहुत ही सेक्सी लग रही थी. वंदना ने उसका ब्लाउज उतारा और मैंने उसके पेटीकोट के नाड़े को खोल दिया. अब वो ब्रा और पैंटी में रह गई थी. वंदना ने उसे अपनी बाहों में ले लिया और मैंने प्रियंका को उसके पीछे से बाहों में लेकर उसके कमर के नीचे के हिस्से पर अपना दबाव बढ़ा दिया. प्रियंका अब दोनों तरफ से दब गई थी लेकिन उसका चेहरा साफ बता रहा था की उसके अनादर कितनी ठंडक पहुँच चुकी है. हम दोनों उसे लेकर अपने बेडरूम में चले गए. मैंने और वंदना ने भी अपने सारे कपडे उतार दिए. प्रियंका को अब हमने पूरा निर्वस्त्र कर दिया था. वंदना ने प्रियंका के पूरे जिस्म पर चुम्बनों की बरसात कर दी. इससे पहले कि प्रियंका संभल पाती मैंने उसके पूरे जिस्म पर अपने चुम्बन बरसा दिए. प्रियंका तड़पकर बिस्तर पर आ गई. मैंने वंदना को उसके ऊपर सुला दिया. वंदना ने अब अपने गुप्तांग वाले भाग को प्रियंका के गुप्तांग के ठीक ऊपर से स्पर्श करवा दिया. जैसे ही वंदना ने अपने गुप्तांग को प्रियंका के गुप्तांग के ऊपर थोडा दबाकर रगड़ना शुरू किया; दोनों एक साथ तड़पकर अपने मुंह से सिसकीयाँ निकालने लगी. मैंने अपने हाथ वंदना कि पीठ पर रखे और वंदना को प्रियंका के ऊपर दबाते हुए हिलाना जारी रखा. दोनों के लिए यह स्थिति बहुत ही नरम और गरम थी. दोनों को बहुत ही जबरदस्त मजा आने लगा था. वंदना के कारण अब मुझे भी ऐसे खेल मान को भाने लग गए थे. कुछ देर के बाद वंदना और प्रियंका ने एक और नया तरीका अपनाया जो मेरी हालत बहुत ही खराब कर गया. मेरे सारे शरीर में एक साथ हजारों वाट कि बिजलीयाँ दौड़ गई. उन दोनों ने अपनी टांगें फैला दी. दोनों ने अपनी अपनी टाँगे कैंची कि तरह एक दूसरे कि टांगों के बीच में इस तरह डाली कि उन दोनों के चूत एक दूसरे से बिलकुल सट गए. अब दोनों ही ने आगे पीछे होकर एक दूजे के चूत को आपस में रगड़ना शुरू किया. उन दोनों के मुंह से कभी आह निकलती तो कभी एक हलकी सी सिसकी. जब थोडा दबाव बढ़ जाता तो एक हल्की चीख भी निकल जाती. मैंने ये पहली बार देखा था. लेकिन इस दृश्य ने मेरी ऐसी हालत बिगाड़ी कि मैं लिख नहीं सकता. मैं सब कुछ भूलकर उन दोनों को देखने लगा. कुछ देर बाद दोनों अलग हुई. मैंने पहले वंदना को सोफे कि कुर्सी पर अधलेटा किया और फिर प्रियंका को वंदना के ऊपर उसी तरह अधलेटा कर बैठा दिया. दोनों के का आगे का हिस्सा मेरी तरफ था. अब मैं उन दोनों के ऊपर उलटा लेट गया. अब मेरा लंड था और सामने पहले प्रियंका का चूत और फिर उसके नीचे वंदना का चूत. मैंने पहले वंदना के चूत में अपना लंड घुसाया लेकिन दबाव प्रियंका के बदन पर भी पडा. दोनों को यह बहुत अच्छा लगा. कुछ डेरा बाद मैंने गुप्तांग प्रियंका के चूत में घुसा दिया. प्रियंका कि स्थति आज उसी तरह थी जैसी कुछ दिन पहले वंदना की थी. प्रियंका भी आज पहली बार किसी के साथ अपने जीवन का संभोग कर रही थी. मैंने बारी बारी से उन दोनों के साथ कई बार संभोग किया. दोनों को एक साथ दबाकर मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी बहुत ही मखमली अहसास वाले गद्दे पर लेटा हुआ हूँ. दोपहर तक हम तीनों ने अपनी अपनी भूख मिटाई. प्रियंका अब अपने घर चली गई क्यूंकि अब उसके घर में कोई भी लौट सकता था. अगले चार पांच दिन में प्रियंका समय निकालकर कई बार आई. जैसे जैसे समय मिलता तो वो कभी वंदना के साथ तो कभी हम दोनों के साथ संभोग करके अपनी प्यास बुझा जाती. शनिवार के दिन शाम को जब प्रियंका के घर कोई नहीं था तो वो हमारे साथ थी. हम तीनो अपने बेडरूम पूर्णतया नग्नावस्था में बिस्तर में एक दूसरे से लिपटे हुए अपने काम में व्यस्त थे कि अचानक से मुख्य दरवाजे के खुलने कि आवाज आई. हम तीनों चौंके और डर गए. फिर मुझे ध्यान आया कि बाहर के दरवाजे के ताले कि तीसरी चाबी तो शीतल के पास थी. मैं निश्चिंत हो गया कि शीतल ही आई होगी. शीतल ही आई थी. वो जैसे ही बेडरूम में आई उसने हमारे साथ साथ प्रियंका को देखा तो हैरान हो गई. फिर वो वंदना के पास आई. उसने वंदना के होंठों पर अपने होंठ रखे और बोली ” शैतान और भूखी औरत. मेरे बिना तुम इतने दिन भी नहीं रुक सकी. ओई बात नहीं अब मैं आ गई हूँ ना. मैं भी तुम्हारे साथ हो जाती हूँ.” शीतल ने फटाफट अपने सारे कपडे उतार दिए और हमारे साथ पलंग पर आ गई. शीतल बोली ” मैं आप दोनों के बिना एक सप्ताह पागल हो गई थी. पहले मैंने सोचा कि कभी ना कभी तो मुझे आप लोगों के बिना रहना ही होगा. लेकिन दो दिन बाद ही ऐसा लगने लगा कि जैसे मैं अब आप दोनों के बिना कभी रह नहीं पाऊँगी. हालांकि मेरे पास आप जैसा ही एक और केस आया था और पैसे भी ढेर सारे ऑफर हुए थे. आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | लेकिन आप लोगों का साथ मुझे इतना अच्छा लगा कि मैंने वो ऑफर ठुकरा दिया. मैं जानती हूँ वंदना मेरे बिना एक दिन भी नहीं रह पाएगी. प्रियंका का मुझे पता था. लेकिन जब हम यह जगह कभी भी छोड़ेंगे तो प्रियंका तो साथ नहीं आ पाएगी. इसलिए मेरा साथ ही हमेशा रहे तो आप दोनों के लिए बहुत अच्छा होगा मेरे लिए तो इससे अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता. इसलिए अब मैंने यह सोच लिया है कि मैं आपके साथ ही रहूंगी.” वंदना और मैं यह सुनकर बहुत खुश हुए. मुझे बहुत बड़ी तस्सली पहुंची कि अब वंदना हमेशा सामान्य ही रहेगी. इसी ख़ुशी में मैंने शीतल को अपनी तरफ खींचा और उसे चूमते हुए कहा ” अब तुम हम दोनों के लिए एक देवदूत से कम नहीं हो. दुनिया चाहे कुछ भी कह दे लेकिन मैं तुम्हे अब हम दोनों से अलग कभी नहीं होने दूंगा.” इतना सुनते ही शीतल ने अपनी टांगें फैलाई और मुझे अपनी तरफ खींचते हुए कहा ” आज मुझे मेरा इनाम चाहिये.” मैंने तुरंत अपना गुप्तांग उसके गुदगुदे गोल दरवाजे में घुसा दिया. मैंने बारी बारी से वंदना ; शीतल और प्रियंका के साथ दो दो बार संभोग किया. यह खेल काफी देर तक चला. फिर रात होते ही प्रियंका चली गई. लेकिन हम तीनो देर रात तक आपस में संभोग करते रहे. हम तीनों के अलावा प्रियंका के भी आने के बाद जिंदगी थोड़ी और मजेदार तथा शामें-रातें और भी रंगीन हो गई थी. सप्ताह में काम स काम दो मौके ऐसे आ जाते जब हम चारों एक साथ हो जाते. हम चारों का साथ लगभग दो माह तक रहा. यादव साहब रिटायर हो गए और उनका परिवार सूरत चला गया. हम तीनों काफी दिन प्रियंका को याद करके उदास रहे. लेकिन रंगीनीयाँ जारी थी. नाशिक में वंदना के एक बहुत दूर के रिश्ते का भाई रहने आया. उसका घर हमारे घर से लगभग दस मिनट के पैदल रस्ते पर था. हम तीनो उससे पहली बार मिलने गए. वंदना के भाई और भाभी ने शीतल के बारे में पूछा तो मैंने उसे कह दिया कि वंदना को घबराहट की बीमारी के चलते हमने डॉक्टरों के कहने पर एक चौबीसों घंटे की नर्स रखी हुई है.
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