गतांग से आगे …सवेरे सात बजे तक हम जागते रहे और सारा खले चलता रहा. अंत में मैंने श्रेया को आखिरी बार अपने साथ लिया. मैंने श्रेया को पाने ऊपर सुलाया और उसके चूत में अपना लंड घुसकर श्रेया को हिलाकर उसके उस हिस्से को गहरा लाल कर दिया. करीब आठ बजे वो एकदम निढाल हो गई तो वंदना और शीतल उसके घर जा उसे छोड़कर आ गए. हम लोग भरे दिल से बहुत ही मीठी मीठी यादों के साथ अतुल के लिए रवाना हो गए. श्रेया वंदना और शीतल के गले लग बहुत रोई. उसकी जिन्दगी हम तीनो के चलते ही संवरी थी. मैं वंदना और शीतल के साथ पूरे रस्ते यही दुआ करते रहे कि वहां हमारा मान लग जाए क्यूंकि अतुल एक बहुत ही छोटा क़स्बा था और केवल केमिकल की फेक्टारीयाँ थी. हम अतुल रहने आ गए. हमारा नया घर इंडस्टरीअल क्षेत्र से लगभग दो किलोमीटर दूर बनी एक कोलोनी में था. छोटे छोटे बंगले बने थे. बहुत सुन्दर घर थे. हर घर के आगे और पीछे बगीचा बना था. करीब पचास के आसपास घर थे. इन पचास घरों में से करीब तीस ही भरे थे. बाकी खाली थे. हमारे पड़ोस वाले बंगले में एक बंगाली परिवार था. मियाँ बीवी थे. कमलेश और रोशनी चटर्जी. कमलेश बहुत ही शक्की स्वभाव का था. रोशनी बहुत ही चुलबुली और मिलनसार. कमलेश कला और अजीब दिखता था वहीँ रोशनी किसी हिरोइन से काम नहीं लगती थी. हमारे स्समने वाले घर में रहने वाली एक महिला ने वंदना को बताया की कमलेश बहुत पैसे वाला है इसलिए रोशनी की शादी उसके साथ कर दी. रोशनी ने भी पैसा देखा था. लेकिन अब उसके शक्की स्वभाव के कारण बहुत परेशान रहती थी और दोनों में अक्सर झगडा होता रहता था. कमलेश एक बड़ी कम्पनी में डायरेक्टर था. वो चौबीस घंटे में से लगभग सोलह सत्रह घंटे फैक्ट्री में ही रहता था. कभी कभी आधी रात के बाद आता और सवेरे जल्दी चला जाता. बहुत जल्दी वंदना और रोशनी की दोस्ती हो गई. शीतल ने भी रोशनी से दोस्ती गाँठ ली थी. आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | वंदना ने रोशनी को शीतल के बारे में बताते हुए कहा कि वो उसकी बचपन कि दोस्त है और एक मनोवैज्ञानिक है. हर समस्या वो सुलझाती है. बहुत जल्दी वंदना; शीतल और रोशनी की आपस में गहरी दोस्ती हो गई. वंदना के सुझाव पर मैंने एक घर के काम-काज के लिए नौकर रखने की इजाजत दे दी. हम तीनों ज्यादा से ज्यादा वक्त साथ में गुजारना चाहते थे. इसलिए ये फैसला लिया गया. पता चला की उस पूरी कोलोनी में केवल दो कामवालीयां आती है. वंदना ने दोनों से बात की लेकिन बहुत काम लिया होने की वजह से कोई तैयार नहीं हुई. शीतल ने इधर उधर घूमकर एक कोई और कामवाली का पता लगा लिया. उसे रख लिया. उसे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि वो कामवाली है. शीतल ने बताया कि उस औरत की लेडिज ड्रेस की दूकान है. वो यह दूकान शाम के बाद खोलती है. शीतल ने उसे ना जाने कैसे पटाया कि वो घर का काम करने के लिए तैयार हो गई. उस औरत का नाम नेहा था. वो एक मछुआरन थी. उसकी उम्र चालीस के पार थी लेकिन मछुआरन होने के कारण उसका शरीर जबरदस्त गठा हुआ था. शीतल भी इतनी गठीली होने के बावजूद नेहा के सामने कमजोर लगती थी. वो मछुआरन तरीकेवाली साड़ी पहनकर आती थी. लौंग वाली. यानी कि धोती कि तरह टांगों में कासी हुई. पहली बार मैंने जब उसे देखा तो उसके घुटने के नीचे का हिस्सा यानि की उसकी पिंडलीयां ऐसे लगी कि उसे तुरंत अपने दांतों से काट खाऊं. उसका ब्लाउज का गला बहुत नीचे तक कटा हुआ था. उसके दोनों उरोज या स्तन शीतल से भी डेढ़ गुना बड़े थे. उन दोनों के बीच कि रेखा मुझे भीतर तक रोमांचित कर गई. नेहा दोनों वक्त काम करने आती. रविवार के दिन के लिए उसने कहा कि वो शाम को नहीं आएगी क्यूंकि उस दिन दुमान जल्दी खोलनी पड़ती है. शाम को चाय के बाद हम तीनों मूड में आ गए. हम तीनों बिस्तर में थे. हमारे बेडरूम कि एक खिड़की सड़क पर खुलती थी. जब हम तीनों आपस में मस्त थे तो उस खिड़की पर लगा पर्दा कभी कभी हवा में उड़ जाता हमें उसका पता ही नहीं था. नेहा को शायद कुछ समय मिल गया था इसलिए वो काम के लिए करीब छह बजे आ गई. उसने दरवाजा खटखटाया लेकिन हम ऐसे खोये थे कि आवाज सुनाई ही नहीं दी. उसने तीन चार बार दरवाजा खटखटाया. लेकिन हम आपस में ही मस्त थे. नेहा को ध्यान में आते ही वो बेडरूम वाली खिड़की की तरफ आ गई. परदा हवा से हिल गया. उसने हम तीनों को हमबिस्तर देख लिया. वो हमें टकटकी लगाकर काफी देर तक देखती रही और मजा लेती रही. फिर शायद उसकी दूकान खुलने का वक्त हो गया तो वो चली गई. अगले दिन उसने शीतल को सारी बात बता दी. शीतल ने उसे डांट दिया. नेहा ने शीतल से कह दिया कि वो यह बात कोलोनी में सबको बता देगी. वंदना ने बीच बचाव किया. वंदना ने नेहा को अगले दिन अपने कमरे में बुलाया. वंदना ने नेहा को बहुत समझाया. नेहा ने वंदना से कहा ” आप तीनों जो भी कुछ करते हो मुझे उससे कोई लेना देना नहीं है. मुझे को आपत्ति भी नहीं है. मैं इस दुनिया में अकेली ही हूँ. मेरी शादी नहीं हुई है. अपने काम में इतना व्यस्त रहती हूँ कि औरत के शरीर कुआ भूख होती है मुझे कभी याद ही नहीं आया. सारा दिन घर घर जाकर कपडे बेचना. शाम को दूकान पर बैठना. बस यही जीवन लगता था. मुझे कई मर्द गलत निगाहों से देखते भी थे लेकिन मैंने किसी को भी घास नहीं डाली. हाँ, मैंने इतना जरुर किया कि मैंने अपने कपडे पहनने का ढंग ऐसा कर लिया कि मर्द अधिक से अधिक देखें और केवल ललचाते रहें. लेकिन कल जब आप तीनों को आपस में बिस्तर में देखा तो मेरे लिए यह पहला मौका था जब मैंने किसी औरत और मर्द को ऐसी स्थति में देखा था. आप तीनों को एक साथ बिस्तर में देखकर अचानक मुझे अपने शरीर कि भूख याद आ गई. मैं सारी रात जागती रही और बिस्तर पर इधर उधर लेटती रही. तड़पती रही. बस एक काम कर दो आप. आप तीनों मुझे भी अपने साथ मिला लो. मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगी. ये मेरी धमकी नहीं है.मेरी आपसे प्रार्थना है. मुझे भी वो सुख दे दो जो एक औरत को मिलने से उसका जीवन सुखी हो जाता है,.” वंदना नेहा कि बातें सुन भावुक हो गई. शीतल ने भी उसकी बात सुनी थी. दोनों ने आपस में देखा और नेहा को हाँ कह दिया. अगले दिन नेहा ने जब दोपहर का काम ख़त्म किया और जाने लगी तो शीतल ने उसे रोका और बेडरूम में ले गई. शीतल ने उसके सीने से साड़ी का पल्लू हटा दिया. नेहा का भरा हुआ सीना उसके ज्यादा खुले हुए गोलाकार गले से झाँकने लगा. दोनों स्तनों के बीच कि रेखा शीतल को अन्दर तक भेद गई. शीतल ने उसके दोनों स्तनों को अपने होंठों से चूम लिया. नेहा का शरीर हिल गया. उसके शरीर को पहली बार इस तरह से छुआ गया था. नेहा थोडा कसमसाने लगी. शीतल ने उसे पानी बाहों में लेते हुए कहा ” आज तुम मेरे और वंदना के साथ आ जाओ. हम दोनों तुम्हें सब सिखा देंगे. कल तुम हम तीनों के साथ हो लेना.” नेहा तैयार हो गई. शीतल ने वंदना के साथ मिलकर नेहा के साथ कई लेस्बियन क्रियाएं की. नेहा को बहुत शान्ति और आराम पहुंचा. रात को वंदना और शीतल ने मुझे नेहा का पूरा किस्सा बयान कर दिया. मेरे लिए अब ये सब कुछ सामान्य तो था ही साथ ही साथ मेरी आदतों में शुमार होता जा रहा था. मैं अब अगले दिन एक नए शिकार के आने कि बेसब्री से राह देखने लगा. कल शनिवार था. शनिवार के दिन मैं थोडा जल्दी आ जाता और हम तीनों थोडा साथ साथ घूम आते. मैं करीब तीन बजे घर पहुँच गया. वंदना ने मुझे बताया कि नेहा आ चुकी है. इसलिए आज का बाहर जाने का कार्यक्रम रद्द . मैं भी हाँ कर गया. मैंने जब बेडरूम में झाँका तो शीतल नेहा के साथ बैठी थी. मैं भी वहीँ आ गया. नेहा बहुत खुश नजर आ रही थी. उसका सांवला लेकिन अछुता चेहरा बहुत चमक रहा था. हम सभी ने एक दूसरे के कपडे खोल दिए. केवल अंतर्वस्त्र ही रह गए थे. मैंने नेहा का सीना देखा. मैं अंदाज लगाने लगा कि डी साइज़ की ब्रा है या फिर ई साइज़ की. नेहा के स्तन सच में बहुत ही ज्यादा बड़े थे. वे उसकी ब्रा में फिट नहीं हो रहे थे. मैं देखता ही रह गया. मैं उसके पास चला गया. अपने हाथों से जब उसके स्तनों को छुआ तो ऐसा लगा जैसे मैं कई इंच मोटे स्पंज के गद्दे पर अपना हाथ रखा हूँ. मैंने उसे अपनी तरफ लिया और अपने से लिपटा लिया. अब मुझे ऐसा लगा जैसे मैं उसी गद्दे पर उलटा लेट गया हूँ. मैं उसके गालों को चूमने लगा. नेहा ने भी मेरे गालों को चूमा. फिर मैंने एकदम से ही उसके होंठ जोरों से चूस लिए. उसके होंठ आज तक अछूते थे. मैंने करीब तीन मिनट तक उन होंठों से भरपूर रस खींचा. अब मैंने नेहा की पैंटी उतार कर उसे बिस्तर पर लिटा दिया. मैं भी अब अपने इन्दर वेअर उतारकर उसके ऊपर लेट गया. मैंने अपना लंड उसे और उसके स्तनों को चूम चूमकर एकदम कड़ा कर लिया और उसके चूत की तरफ बढ़ा दिया. थोड़े से संघर्ष के बाद मेरा लंड उस गीले और रस से भरे हुए कुंवे में था. नेहा मचल उठी. उसे बहुत ही सुख पहुंचा था. वंदना और शीतल उसके करीब आ गई. वे दोनों रह रहकर उसके होंठ चूमती और उसे और अधिक उत्तेजित करती. जैसे जैसे वो उत्तेजित होती गई मैंने वैसे वैसे और अधिक जोर से अपने लंड से उसके चूत पर हमला जैसा बोल दिया.
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