गतांग से आगे … ये हमारे साथ ही रहती है और हमारे परिवार की एक अभिन्न सदस्या है. वंदना के भाई कार्तिक की पत्नी श्रेया देखने में थोड़ी अजीब लगी. दिखने में अच्छी थी. सांवला रंग.मान को सुहावना लगता चेहरा. लेकिन वो कभी कभी अजीब तरह से हंसती औए बोलते बोलते छुप हो जाती. जब हम रवाना हुए तो कार्तिक से मैंने अकेले में श्रेया के बारे में पुच ही लिया. कार्तिक ने कहा कि श्रेया का दिमाग थोडा काम विकसित है. वो सब समझती है. लेकिन कभी कभार उसका व्यवहार ऐसा हो जाता है. उसने शीतल से कहा ” अच्छा हुआ आप मिल गई. अब आप इसका अपने तरीके से इलाज कर दीजिये. मुझ पर बड़ा एहसान होगा आपका.कहिये कब से भेजूं इसे.?” शीतल हक्का बक्का हो गई. ये कैसी उलझन आ गई? अब इसे क्या जवाब दें? अगर सच बतादें तो सारा खेल बिगड़ सकता है. मैंने कार्तिक से कहा ” ये दोपहर में अकेली रहती है. आप ऐसा करो. सवेरे जाते वक्त इन्हें हमारे यहाँ छोड़ते जाओ और शाम को लौटते वक्त अपने साथ ले जाया करो. अकेलेपन से छुटकारा भी मिलेगा और शीतल इनका इलाज भी कर देगी.” कार्तिक बहुत खुश हो गया. रात को शीतल और वंदना मुझ पर भड़क गए. उन्होंने कहा कि अब हम तीनों ज्यादा आजादी से नहीं रह पायेंगे. मैंने उन्हें समझाया कि एक बार उसे आने दो. हो सकता है दो दिन के बाद हम कार्तिक से यह कहा देंगे कि शीतल इसका इलाज नहीं कर सकती. बस. मामला वहीँ ख़त्म हो जाएगा. दोनों मेरे जवाब से खुश हो गई. कार्तिक अगले दिन ही श्रेया को छोड़ गया. मैं उस दिन थोडा जल्दी चला गया था. दोपहर को तीनो कोई फिल्म देख रहे थेतभी फिल्म में एक दृश्य में हीरो हिरोइन को चूमता है और दोनों आपस में लिपटकर पलंग पर इधर उधर लोटना शुरू कर देते हैं. वंदना इसे देख अत्यंत ही उत्तेजित हो गई. उसने शीतल को बाहों में लिया और उसे चूमते हुए पलंग पर ले गई. फिर दोनों उस फिल्म कि तरह इधर उधर लोटने लगी. श्रेया ने यह देखा तो वो घबराकर खड़ी हो गई. वो पलंग के पास आकर उन दोनों को देखकर उन्हें अलग करने कि कोशिश करने लगी. वंदना इतनी उत्तेजित हो गई थी कि उसने श्रेया को ढका दे दिया. श्रेया सोफे से जाकर टकराई और उस पर गिर गई. वो फिर लौट कर ई. वंदना ने उसे एक और धक्का दिया. अब श्रेया रोने लगी. शीतल से रहा नहीं गया. वो श्रेया के पास आई. उसने श्रेया को अपने गले से लगाया. उसके गालों को थपथपाया और एक छोटा सा चुम्बन उसके गालों का ले लिया. श्रेया अपने गालों के गीलेपन को पौंछते हुए मुस्कुराने लगी. शीतल ने उसे सोफे पर बिठा दिया. इसके बाद श्रेया कुछ ना बोली. शाम को उस घटना से मैं परेशां हो गया. अगले दिन कार्तिक उसे फिर छोड़ गया. श्रेया ने आते ही शीतल से अपने गालों को चूमने और सहलाने को कहा. शीतल ने ओस कर दिया. श्रेया खुश हो गई. इसके बाद नयी मुसीबत आ गई. उसने शीतल को कल के फ़िल्मी सीन को दोहराने कि जिद की. वंदना और शीतल ने बात बाहर तक ना जाए इसके डर से दोनो ने उसके साथ थोडा सा वैसा ही कर दिया. अब श्रेया छुप हो गई. धीरे धीरे श्रेया की यह रोज रोज की आदत वंदना और शीतल से सहन नहीं हुई. हमने अगले दिन कार्तिक से यह बहाना किया की हम तीनों कल कहीं जानेवाले हैं. उस दिन मैंने भी छुट्टी ले ली. दोपहर को हम तीनों काफी दिनों के बाद मिली इस आजादी का पूरा मजा ले रहे थे. हमारा संभोग चल रहा था. तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया. शीतल ने तुरंत कपडे पहने और जाकर दरवाजा खोला. श्रेया खड़ी थी., उसने शीतल को भीतर धकेला और अन्दर आकर उससे लिप्त गई और बोली ” मुझसे झूठ क्यूँ बोला. चलो अब मुझे चूमो. मुझे चूमो.” शीतल ने उसे पीछे धकेलना चाह तो श्रेया दौड़ते हुए बेडरूम में आ गई. मैं और वंदना आपस में लिपटे हुए थे और हम पूरी तरह से नग्न थे. वो हमें देख मुस्कुराई. उसने कहा ” आप लोग परेशान ना हो. मैं आपको ज्यादा परेशान नहीं करुँगी. मैं पागल नहीं हूँ. एकदम ठीक हूँ और सामान्य हूँ. मैंने जानबूझकर ये नाटक कर रखा है. इसका कारण कार्तिक खुद है. वो बहुत कमजोर और ठंडा है. महीने भर में बड़ी मुश्किल से एक बार गरम होता है और उस पर भी मुझे अभी तक पूरी तरह से नहीं भेद पाया है. मैं परेशान हूँ. मैं कई बार खुद को नंगा कर बिस्तर पर लोटती हूँ. नंगी होकर खुद की ऊंगलीयाँ अपने चूत में लेजाने की कोशिश करती हूँ. आप ही अब बताइये मैं क्या करूँ? मैं अगर ऐसे ही जीती रही तो सचमुच में पागल हो जाऊंगी. आपको देखकर मैंने सोचा कि आपसे शायद मुझे कोई मदद मिल जाये. ” हम तीनों हैरान हो गए. फिर हम तीनों को श्रेया पर दया आ गई. शीतल ने श्रेया से कहा ” तुम कार्तिक के सामने अपना नाटक जारी रखो. यहाँ लगातार आती रहो. हम तीनों तुम्हारी पूरी मदद करेंगे. तुम्हें प्यासी नहीं रहने देंगे. तुम्हारी प्यास बुझेगी. ” शीतल ने श्रेया के तुरत फुरत में सारे कपडे उतार दिए और हमारे साथ पलंग पर सुला लिया. वंदना और शीतल ने श्रेया के बदन को सहलाया. खूब मसाज किया. उसके स्तनों को खूब मसल मसलकर उसे मदहोश कर दिया. अब उसे एक दम चरम पर लाने के लिए वंदना उसके ऊपर लेट गई. उसने श्रेया के गुप्तांग और चूत पर अपने गुप्तांग और चूत से दबाव पैदा कर उसमे जबरदस्त प्यास पैदा कर दी. शीतल ने मुझे उस पर लेट जाने को कहा. मैं उस पर लेट गया. यह जानते हुए कि कार्तिक अभी तक श्रेया के चूत को पूरी तरह से नहीं भेद सका है. मैंने अपने गुप्तांग को उसके चूत में पूरे जोर से धकेला. आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | लगभग चार पांच मिनट के बाद मुझे सफलता मिल गई. श्रेया कि प्यास आज पहली बार बुझी थी. मैंने श्रेया के चूत को अपने लंड से करीब एक घंटे तक बंद किये रखा. जब श्रेया का सारा जिस्म पसीने से भीग गया और उसके होंठ ठन्डे और गीले हो गए तो मैंने उसके होंठों का एक जोरदार खींच पैदा करनेवाला किस लिया और उसे छोड़ दिया. श्रेया के चेहरे पर एक विजयी मुस्कान आ गई.अब वंदना और शीतल को भी थोड़ी थोड़ी देर के लिए मैंने अपने साथ लिया और संभोग किया. अगले एक सप्ताह में मैंने श्रेया को पांच बार संभोग से शांत और संतुष्ट किया. श्रेया कितनी भूखी थी इस बात का अंदाजा एक दिन के संभोग से लगाया जा सकता है जब श्रेया ने पूरे दो घंटों तक अपने चूत में मेरे लंड को फंसाए रखा और बिलकुल भी ना थकी. वंदना और शीतल उसकी इस शक्ति से हैरान हो गए. मैंने आज तक ऐसा नहीं सुना था. मुझे थकान तो हुई लेकिन बहुत ही ज्यादा मजा आया. कार्तिक को अपने ऑफिस के काम से तीन दिनों के लिए मुंबई जाना था. उसने श्रेया को हमारे यहाँ छोड़ दिया. शाम को कार्तिक श्रेया को छोड़ते हुए स्टेशन चला गया. रात को मैं अपने फैक्ट्री में अधिक काम के कारण थकान महसूस कर रहा था. मुझे नींद आने लगी. मैं ड्राइंग रूम के सोफे पर ही झपकियाँ लेने लग गया. टी वी चल रहा था. श्रेया मेरे करीब आकर उसी सोफे कि कुसरी में फंसकर बैठ गई और मुझे चूमने और बहलाने लगी. मारे थकन के मेरा बदन टूट रहा था इसलिए मैं उत्तेजित नहीं हो पा रहा था. शीतल मेरी हालत देख समझ गई. उसने श्रेया को अपनी बाहों में लिया और लम्बे वाले सोफे पर लेट गई. उसने श्रेया के कपडे उतार दिए. मैं बैठे बैठे ये सब देखने लगा. अब शीतल ने अपने सारे कपडे निकाले. शीतल और श्रेया एक दूसरे से लिपट गई. दोनों का जोर जोर से आवाजों के साथ चूमना शुरू हो गया. श्रेया अब शीतल के ऊपर लेट गई और उसने शीतल कि टांगों को फैलाकर अपने चूत को उसके चूत से भिड़ा दिया. फिर उन दोनों के चूतों का आपस में रगड़ना शुरू हुआ जो करीब आधे घंटे तक जारी रहा. इसे देखते देखते मेरी नींद तो उडी ही मेरे लंड से थोडा रस बाहर आगया. वंदना नहाकर आ गई. वो बाथरूम से बिना कोई कपड़ा अपने जिस्म पर डाले बाहर आई. शीतल और श्रेया को उस हालत में देख वो भी उन दोनों के साथ मिल गई. इन तीनों का यह लेस्बियन सेक्स खेल करीब करीब दो घंटों तक चलता रहा. मैं अब अपनी नींद भूल गया और उन्हें देख देखकर मजे लेता रहा, जब लगातार वे तीनों इस तरह आपस में चूमते ; जिस्मों को मिलाते और अपने चूतो को आपस में रगड़ते रगड़ते थक गई तो तीनों नीचे बिछे गद्दे पर बिना कपडे पहने सीधी लेट गई. इतनी देर तक बैठे रहने के बाद मेरी थकान काम हो गई लेकिन उत्तेजना बढ़ गई. उन तीनों के बदन पसीने से तर हो चुके थे. उनकी साड़ी ताकत लगभग समाप्त हो चुकी थी. मैंने मौके को ताड़ा और नीचे झुककर उन तीनो के नंगे जिस्मों को निहारने लगा. उनके नन्गे बदन पर पसीने की बूंदें मोतीयों जैसी लग रही थी. वंदना को मैंने सबसे पहले लिया और उसके साथ आधा घन्टा संभोग करते बिताया. मारे थकान के मुझे कोई प्रतिरोध नहीं मिला. जैसा मैंने चाह वैसा करता रहा और वंदना वैसे ही करवाती रही. इसी तरह शीतल और श्रेया को भी आधे आधे घंटे तक खूब मेरे लंड के रस से उनके जननागों को तरबतर किया. फिर हम चारों वहीँ आपस में लिपटकर सो गए. अगले दिन मैंने फैक्ट्री में बीमारी का बहाना कर तीन दिन की छुट्टी ले ली. फिर इसके बाद शुरू हुआ हम चारों का खेल जो तीनों दिन सवेरे ; दोपहर; शाम और रात भर रुक रूककर जारी रहा. हमने कोई भी तरीका नहीं छोड़ा. हर तरह से अलग अलग पोजीशनों से संभोग किया. तय कार्यक्रम के अनुसार देर शाम को कार्तिक लौटने वाला था. आखिर में मैंने एक बार पहले की तरह सेक्स करने का तय किया. सोफे की गद्देदार सीट पर सबसे पहले शीतल को बिठाया. फिर उसके ऊपर वंदना को और फिर आखिर में श्रेया को बिहा दिया. शीतल के सेने पर वंदना की पीठ वाला हिसा था. वंदना के सामने वाले हिस्से पर श्रेया की पीथ्वाला हिस्सा था. मुझे तीनों के चूत एक के ऊपर एक ऐसे नजर आ रहे थे जैसे रस से भरे हुए तीन कुंवे मेरे सामने मुझे ललचा रहे हों. मैंने घडी देखी कार्तिक के आने में करीब दो घंटे बाकी थे. मैंने अपने जिस्म की सारी ताकत इकठ्ठा की और उन तीनों पर पिल गया, लगातार मैं उन तीनों के चूत को एक के बाद एक थोड़ी थोड़ी देर के लिए अपने चूत से भेदता रहा. उन तीनो को जबरदस्त मजा आया. करीब डेढ़ घंटे के बाद मैंने उन्हें छोड़ दिया. ये तीन दिन ऐसे निकले मानो लगातार चौबीसों घन्टे हम चारों रस के समन्दर में रहे हों. करीब सात बजे कार्तिक आ गया. श्रेया उसके साथ चली गई. अब धीरे धीरे श्रेया का आना काम होता चला गया. हम तीनों इस बात से खुश थे. मंग्ला ने बताया भी कि अब वो कार्तिक को थोडा अधिक उत्तेजित करने में सफल हो रही है. अब श्रेया सप्ताह में एक बार आती और उस दिन हम चारों एक साथ मजा लूटते. वंदना की इच्छा रहती कि श्रेया ज्यादा आये. इसका कारण उसका लेस्बियन होना था. श्रेया का हम तीनों से करीब चार महीनो का रहा. फिर एक दिन अचानक मेरे फैक्ट्री के मालिक ने वापी के पास एक छोटे कसबे अतुल में उनकी नै लगने वाली फैक्ट्री का काम काज देखने के लिए मुझे वहां जाने के लिए कह दिया. शीतल हमारे साथ आने के लिए तैयार हो गई. श्रेया को पता चलते ही वो बहुत उदास हो गई. एक सात उसने कार्तिक के सामने जोर कि घबराहट का नाटक किया और हमारे घर आ गई. हम उसका आना समझ गये. सारे रात हम चारों ने आखिरी बार एक साथ सेक्स का खेल खेला. श्रेया ने पूरी रात गज़ब कि हिम्मत दिखलाई और उसने मुझे अपने साथ कुल मिलाकर पांच बार संभोग करने पर मजबूर किया. वंदना और शीतल ने भी उसके चूत पर अपने चूत का सफ़ेद गाढ़ा रस इतनी ही बार बहाकर उसकी पूरी प्यास को भरपूर बुझाया.
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