बिपिन ने शेर को अनसुना करते हुए कहा “इधर शहर में ही है सर. बाहर आए हफ़्ता नही हुआ साले को और फिर से पंख फॅड्फाडा रहा है” “मतलब?” सुनने में आया है के कोई ड्रग डील कर रहा है” “कब?” “एग्ज़ॅक्ट्ली तो पता नही सर जी पर हाल फिलहाल में ही करेगा, ऐसा सुना है” “ह्म्म्म्मम” बिपिन ने साँस छ्चोड़ते हुए कहा “वैसे तू क्या कर रहा है आज रात?” “कुछ ख़ास नही सर. बताओ” “आजा शाम को घर पे” “आज नही आ पाऊँगा सर” सौरभ ने कहा “प्लान है मेरा कुछ” “साला अभी मैने पुछा के क्या कर रहा है तो बोला के ख़ास नही कुछ और अब कह रहा है के प्लान है?” “समझा करो ना सर” सौरभ दाँत दिखाता हुआ बोला “तेरी बातें नही समझनी भाय्या मैने. कल का बनाएँ? काफ़ी दिन हो गये साथ दारू पिए हुए.” “हां कल का बना लो सर” सौरभ ने जवाब दिया टेबल पर रखा फोन बजा तो नबील ने उठाया “कौन है?” “मैं बोल रहा हूँ” दूसरी तरफ से आवाज़ आई “हां बोलो” कहर नबील ने फोन उठाया और कमरे के एक कोने की तरफ आ गया ताकि उसकी बात कमरे में मौजूद उसके लड़के ना सुन सकें “आज रात” फोन पर मौजूद शख़्श ने जवाब दिया “आज रात? और अभी बता रहे हो मेरे को? थोड़ा टाइम तो देते” “तूने कौन सा साले आफ्रिका से आना है जो थोड़ा टाइम देता मैं तुझे” दूसरी तरफ से आवाज़ आई “ठीक है. वो इनस्पेक्टर का चक्कर तो नही पड़ेगा ना? साला उसी के चक्कर में फस गया था पिच्छली बार मैं” आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | नबील ने एक नज़र अपने लड़को पर डाली के कहीं वो उसकी बात सुन तो नही रहे “नही इनस्पेक्टर का कोई चक्कर नही है” “तो किधर आने का है?” नबील ने पुछा “मेरे घर पे” “घर पे? काहे को?” “माल मेरे घर पे ही है. वहीं से उठा लेना तुम लोग” “कोई ख़तरा तो नही ना?” नबील ने पुछा “साला चीनी खारदिने नही जा रहा तू बाज़ार कि ख़तरा नही होगा. इस काम में हमेशा ख़तरा होता है” दूसरी तरफ मौजूद आदमी थोड़ा चिड़ सा गया “ठीक है ठीक है आता हूँ मैं. कितने बजे?” “12” “ठीक है” नबील ने कहा “अकेले ही आना” दूसरी तरफ से आदमी ने कहा “क्यूँ?” “तेरे लड़को पर भरोसा नही मुझे. एक खबरी है कोई उनमें” “जानता हूँ. पता करने की कोशिश कर रहा हूँ के कौन सा है” नबील ने फिर एक नज़र कमरे में बैठे पत्ते खेल रहे अपने लड़को पर डाली “तो फिलहाल अकेले ही आना” दूसरी तरफ से आवाज़ आई और लाइन कॅट गयी. सेल बजा तो वंदना ने गाड़ी साइड में रोकी. “हे स्वीटी” फोन उठा कर उसने कहा “मैं बस तुम्हें ही फोन करने वाली थी” “हां जानता हूँ. मैं भी वही कन्फर्म करने के लिए फोन कर रहा था” फोन पर एक आदमी की आवाज़ आई “क्या कन्फर्म करने के लिए?” वंदना ने हैरत से पुछा “कि आज का प्लान कॅन्सल है ना?” “नही नही प्लान वैसा ही है” वंदना ने कहा “आर यू स्योर?” “हां बाबा. ही वेट बी होम टुनाइट. उसे आज रात कुछ काम है, मेरी बस अभी बात हुई है. आज रात बस मैं और तुम ही अकेले हैं” “फिर भी एक बार चेक कर लो. ऐसा ना हो के पकड़े जाएँ” “कमाल हैं यार. औरत मैं हूँ और घबरा तुम रहे हो” वंदना ने ताना सा मारा “अर्रे ऐसा नही है” दूसरी तरफ से फोन पर हस्ने की आवाज़ आई “तुम कुछ मत सोचो” वंदना फुसफुसाने जैसे अंदाज़ में बोली “तुम बस ये सोचो के जब तुम्हारा लंड मेरे मुँह में होगा तो तुम्हें कैसा लग रहा होगा” “बस बस” फ़ौरन दूसरी तरफ से आवाज़ आई “अभी खड़ा मत करो” “हो भी गया तो क्या है. बाथरूम में जाके हिला लेना” वंदना हस्ते हुए बोली “पागल हूँ जो हिलाऊँगा. बचा के रखूँगा और सारी गर्मी रात को तुम्हारे साथ ही निकालूँगा” “अच्छा? क्या क्या करोगे बताना तो ज़रा” “रात को ही बताऊँगा. फिलहाल फोन रखो और मुझे काम करने दो” “ओके” वंदना ने कहा “रात को मिलते हैं फिर” और उसने फोन काट कर गाड़ी आगे बढ़ा दी. शहर के एक दूसरे कोने में नबील का फोन फिर बजा. “हां बोलो” उसने फोन उठा कर कहा “रात का प्लान पक्का है ना?” दूसरी तरफ से आवाज़ आई “हां. 12 बजे ना?” “ठीक 12 बजे. मेरे घर पे” वंदना सज धज कर तैय्यार हो चुकी थी. उसने घड़ी पर एक नज़र डाली. 11:30 उसने एक बार फिर शीशे में अपने आप पर नज़र डाली. इस वक़्त उसने लाल रंग की एक सारी पहेन रखी थी और वैसे ही मॅचिंग ब्लाउस. “कहाँ हो?” उसने अपना सेल उठा कर नंबर मिलाया “बस निकल ही रहा हूँ” दूसरी तरफ से आवाज़ आई “कॉंडम लेते आना” वंदना ने कहा “क्या ज़रूरत है. मैं अंदर नही निकालूँगा ” आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |” फिर भी. मुझे डर लगता है” वंदना ने कहा “ठीक है मैं लेता आऊंगा. और कुछ लाना है कॉंडम के साथ?” “हां” वो हस्ते हुए बोली “तुम्हारा लंड” “वो तो आ ही रहा है जानेमन. तुम बस तैय्यार रहो” “मैं तो तैय्यार ही बैठी हूँ. लाल सारी आंड ब्लाउस” “और अंदर?” “ना ब्रा है ना पॅंटी” “वाउ … यानी सारी उठाके झुकने के लिए पूरी तरह तैय्यार हो?” “तुम आ जाओ बस” वंदना ने कहा “बस पहुँच ही रहा हूँ” दूसरी तरफ से आवाज़ आई और दोनो ने फोन रख दिया. वंदना अपने आपको एक बार फिर शीशे में निहार ही रही थी के दरवाज़े की घंटी बजी. “इस वक़्त कौन हो सकता है” वंदना ने सोचा. पति तो उसका शहर से बाहर था और फिर वो मुस्कुरा उठी. जिसका वो इंतेज़ार कर रही थी वो आ गया था. फोन पर ऐसे ही मज़ाक कर रहा था कि अभी निकल ही रहा है. नबील ने अपनी घड़ी पर नज़र डाली. 11:55 वो टाइम से 5 मिनिट पहले ही आ गया था. उसने अपनी शर्ट में पिछे लगी हुई अपनी गन चेक की और गाड़ी का एंजिन ऑफ करके बाहर निकला. कहने के मुताबिक ही उसने अपनी गाड़ी घर से कुछ कदम आगे रोकी थी. बिल्कुल घर के सामने नही. चारो तरफ अंधेरा था पर फिर भी उसने एक नज़र आस पास मौजूद हर चीज़ पर फिराई. वो अभी जैल से बाहर आया था और फिर पकड़े जाने का रिस्क नही ले सकता था. आस पास ऐसा कुछ नही था जिस पर शक हो. आया भी वो अकेला ही था. धीमे कदमो से चलता वो घर के दरवाज़े तक पहुँचा. उसके घंटी बजाने से पहले ही दरवाज़ा खुल गया. “आ अंदर आ जा” दरवाज़े के दूसरी तरफ उसको जाना पहचाना चेहरा नज़र आया. “सब ठीक ठाक?” पूछता हुआ वो अंदर आ गया “सब मस्त. तू बता” “मैं अभी बढ़िया ही हूँ” नबील ने जवाब दिया “इतने दिन बाद बाहर आया, बड़ा मस्त लग रहा है सब कुछ” अपने मेज़बान के पिछे पिछे चलता नबील लिविंग रूम तक आया. “ये घर पर डील करना क्या रिस्की नही है आपके लिए? कोई देख लेता मुझे तो? वैसे आपकी बीवी किधर है?” “मैं तो चाहता ही था के तुझे यहाँ देखा जाए.
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