मेरी चूत की प्यास नही बुझती

गतांग से आगे …. और बाबा ने मुझे अपने बारे में और ज़्यादा बताया. देखते ही देखते टाइम कुछ ज़्यादा हो गया और मुझे नींद आने लगी. बाबा ने कहा बिटिया सो जाओ मैं ज़मीन पे सो जाऊँगा तुम आराम से बिस्तर पे सोजाओ. मैने बाबा से कहा आप क्यूँ ज़मीन पे सोगे आप उपर सोजाए मुझे कोई दिक्कत नही है आपसे. रज़ाई एक ही होने के कारण हम दोनो को रज़ाई शेर करनी पढ़ी. फिर हम दोनो सो गये. कुछ घंटो बाद मेरी आँख खुली और मैने अपना हाथ हल्का सा हिलाया. और मैं बुर्री तरह से चौक गई. मेरे हाथ सुलेमान बाबा के लंड पे रखा हुआ था ( उन्होने धोती पहनी हुई थी). सुलेमान बाबा ज़ोर से खर्राटे ले रहे थे, मुझे लगा की शायद ग़लती से मेरा हाथ उधर चला गया होगा और बाबा को पता भी नही चला हो. उसके थोड़ी देर बाद बाबा ने कारबत ली और हाथ मेरे जिस्म पे रख दिया. उनका हाथ मेरे पेट पेट पे था जोकि कुछ ही इंच नीचे था मेरे मूमो के. मैने कोशिश की के किसी तरह बाबा का हाथ हट जायें मगर ऐसा नही हुआ. मैने सोचा अगर मैं बाबा का हाथ पकध के हटाती हूँ और वो उससी वक़्त जाग जायें तो ग़लत फेमियाँ बढ़ जाएँगी. इसीलिए मैने उनके हाथ को नही हटाया. कुछ देर में उनका हाथ पेट से उपर हो गया यानी के मेरे राइट मोमें के उपर. हाथ ऐसा रखा हुआ था की मानो जैसे उसको मसलना चाहते हो. मुझे लगा की कहीं बाबा जागें हुए तो नही है और मेरा फ़ायदा तो उठना नहीं चाहते. मैने अपने आप को समझाया की बाबा बड़े अच्च्चे इंसान है और ऐसा नही करेंगे. काफ़ी देर तक उनका हाथ मेरे मूमें पे ही रहा बिना हिला हुआ. मगर फिर हल्का हल्का हिलने लगा. आहिस्ते आहिस्ते वो उसे मसालने लगे. मैं काफ़ी डर गयी. मैं चाहके भी बाबा का हाथ नही हटा पा रही ही क्यूंकी मेरा जिस्म मुझे इनकार कर रहा था. बाबा ने फिर मेरे मूमें को तेज़ी से मसलना चाहा और इसी कोशिश मेरा सीधे हाथ का ड्रेस का स्ट्रॅप खुल गया. बाबा ने एकद्ूम से अपना हाथ हट एलिया. काफ़ी देर तक व्हो मुझसे दूर रहे और मुझे लगा की व्हो डर गये सोचके कहीं मैं जग्ग गयी तो. मगर उनको क्या पता की मैं जागी हुई हूँ. मैने बाबा को सताने के लिए कारबत लेली ऑरा ब्ब मेरा मूह बाबा के मूफ़ की तरफ हो गया. मेरे सीधे हाथ का मूमा बाबा को ढंग से दिख रहा था. मैं हल्की सी आँखें खोलके बाबा को देख रही था. व्हो अपने होत चबा रहे थे मेरी तरफ देखके. व्हो अपना शरीर मेरे और पास ळिया. एब्ब मैं उनसो कुछ इंच की दूरी पे ही थी. व्हो थोडा नीचे चले गये. एब्ब उनका मूह मेरे मूमें के पास था. उन्होने अपना मूह खोला और अपने सूcखे होंठो से मेरे मूमें को चूमा. मेरे अंदर बिजली सी दौड़ गई. उन्होने अपने अंदर का थूक मेरे टिट्स पे लगाया और उससे चूसने लगा. मुझे ऐसा लग रहा था की मैं बाबा को दूध पीला रही हूँ. बाबा ने करीब 5 मिनिट तक मेरे मूमें को चूमा. फिर उनको लगा की मैं या तो बहुत गहरी नींद में हूँ या तो मैं चाहती हूँ की व्हो मुझे चूमते रहें. उन्होने मुझे पुकारा “श्रुति बेटी”… मैं चाहती थी की मैं कुछ बोल दू मगर मेरे गले से आवाज़ ही निकली. बाबा को लगा की मैं बहुत गहरी नींद में हूँ. बाबा एब्ब काफ़ी जोश में आ गायें थे. उन्होने अपने दांतो से मेरे दूसरे स्टर्प की गीतान खोलदी और उससने नीचे कर दिया. एब्ब मेरा पूरा उप्पर का तन नंगा था एक ऐसी इंसान के सामने जिससे मुझे मिले हुए 1 दिन भी नही और जो उमर्र में मेरे दादाजी के जितना था. बाबा ने अपने दोनो हाथो से मेरे मूमो को मसलना शुरू किया. मुझे ना चाहते हुए भी बड़ा माज़्ज़ा आ रहा था. बाबा मेरे एक निपल को चूस रहे थे. कुछ देर टक्क खेलने के बाद बाबा ने मेरे कान पे कहा की बिटिया तू बहुत गरम माल है मैं जान बूझ के तुझे नींद की डॉवा चाइ के साथ मिलाके पीला दिया थी ताकि मैं तेरी अच्छी तरह खातिर दारी कर साखू. ये सुनके पता नही क्यूँ मुझे अच्छा लगा मुझे ज़रा सा भी गुस्सा नही आया. बाबा ने मेरे उपर से कंबल हाता दिया और मेरी धोती का नाडा खोल दिया जैसे ही मेरा नाडा खुला बाबा हस्ने लगे. मुझे अब्ब थोडा थोडा डर सा लगने लगा. बाबा धीरे से मेरी तरफ बड़े और आहिस्ता आहिस्ता धोती को मेरे बदन से दूर कर दिया. फिर उन्होने मेरी गुलाबी रंग की कच्छि देखी. उन्होने अपने दोनो हाथ से मेरी कमर पकड़ी और मेरे शरीर को घुमा दिया. अब्ब मैं पीठ के पल लेटी हुई थी बिस्तर पे. बाबा ने मेरी कच्ची में एक च्छेद देखा और उस्स च्छेद से अपनी उंगली उन्होने मेरी कच्छि के अंदर डाल दी. उन्होने उस्स च्छेद को और बड़ा करना चाहा मगर कर ना सके. उन्होने अपनी उंगली निकाल दी और अपने दोनो हाथो से मेरी कच्छि को कोने से पकड़ लिया. देखते देखते उन्होने मेरी कच्ची नीची कर दी और उससे सूँगने लगे. वो काफ़ी मज़े लेक उससे सूंग रहे थे. थोड़ी देर उन्होने कच्छि को अपने सर पे पहनलिया. फिर उन्होने मेरे आस को देखके उसपे दो चार तमाचे दिए. मुझे बहुत दर्द हुआ मगर साथ साथ मज़ा भी आ रहा था. वो मेरे बदन पे गिर गये जैसे कोई लाश हों. उन्होने अभी भी कपड़े पहने हुए थे इसीलिए मुझे ज़्यादा खबराहट नही हुई. बाबा फिर मेरी गेंड को चूमने लगे और उससे अपने गंदे दांतो से काटने लगा. मैने पूरी कोशिश करी की मैं चिलाऊ ना. मैने अपना मूह कुशन में गढ़ा रखा था. बाबा ने मुझे फिर सीधा कर दिया. अपनी ज़ुबान उन्होने मेरी चूत में डाल दी और उसको चाटने लगे. मुझे लग रहा था जैसे कोई बच्चा आइस क्रीम चाट्ता है वैसे ही वो मेरी चूत को चाट रहे थे. कुछ देर चाटने के बाद उन्होने अपनी 1 उंगली मेरी चूत में डाल्डी और धीरे धीरे उससे अंदर बाहर करने लगे. कुछ देर बाद उन्होने 1 और उंगली डाल्ली और थोड़ी तेज़ी से अंदर बाहर करने लगे. मुझे लगा की एब्ब व्हो 1 और उंगली डालने वाले हैं. मगर उन्होने 2 और उंगली मेरे चूत में डाल दी. मुझे इतना दर्द हुआ उस्स समय की आप लोग समझ नही पाओगे. सुलेमान बाबा अपनी चारो उंगलिओ को अंदर बाहर करने लगे. उन्होने कुछ देर बाद अपना हाथ हटा दिया और उनमें 2 उंगलिया चाट ली. बाकी 2 उंगलियाँ उन्होने मेरे मूह खोलके मेरेको चटवाई. मैने पहली बारी अपनी चूत का रस पिया. फिर बाबा ने मेरे होंठो को ज़ोर चूमा. व्हो अपनी ज़ुबान को मेरी ज़ुबान से लदवाने लगे. बाबा हुमारे होंठो का बंधन तोड़ते हुए उठ गये. और फिर व्हो अपने कपड़े उतारने लगे. आप यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | इतनी ठंढ में भी मैं बहोट गरम हो रही थी. कपड़े उतार देने के बाद वो फिरसे मेरे उपर लेट गये. उनका लॅंड मेरी चूत के कुछ इंच की दूरी पेट हा. ऐसा लग रहा था की वो कुछ भी करके मुझे छोड़ना चाहता है. फिर सुलेमान बाबा मेरे बदन से उठ कर मेरी च्चती पे बैठ गये. उनकी गेंड मेरे मूमेन को ज़ोर से दबा रही थी. फिर व्हो अपना लंड मेरे मूह पे फेड़ने लगे. मेरे माता से मेरे आँख नाक गाल तक फेरा. फिर उन्होने पूरी ताक़त लगा कर अपना लंड मेरे मूह में डालना चाहा. और मैने उनकी यह मुराद पूरी करदी. उनका लंड अमर और राजू के लंडो से काफ़ी अलग था. मैं एक छ्होटे बच्चे की तरह उससे लॉली पोप समझके चूस ने लगी. थोड़ी देर भाहूत ज़ोर से मुर्गे ने बादन्ग दी “कुकड़ूओ कूऊऊऊओ……….. कुकड़ूऊऊऊऊऊ खोओओओ……………” सुलेमान बाबा ने जल्दी से उठके देखा तो सुबह हो चुकी थी. उनको लगा की कहिीन दवाई का असर ख़तम ना हो जाए और मैं जाग ना जाओ. उन्होने कच्छि अपने सर से उतारी और मेरेको पहनदि. फिर उन्होने मेरी धोती उपर करदी और नाडा बाँध दिया. और फिर मेरे ड्रेस की गठां बांदके मुझे पहना दिया. ऐसा लगा मुझे की मैं बचपन की तरह स्कूल जाने वाली हूँ. बाबा ने अपने कपड़े भी पहने और बिस्तर पे लेट गये. वो इतनी दूरीए पे लेट गये की मानो जैसे उन्होने कभी मुझे च्छुआ भ ना हो. मैं हल्के से मुस्क्राके फिर सो गई. मैं करीब सुबह के 11 बजे तक उठी और मैने आँखें खोलते हुए कमरे के चारो तरफ देखा. सुल्मीन बाबा मुझे कहीं पे भी दिखाई नही दिए. मैने रज़ाई को अपने उपर से हटा दिया और टाय्लेट जाने के लिए खध्ि होगी. मैं जैसी ही खध्ि हुई मेरी धोती नीचे गिर गई. और मुझे याद आया की सुलेमान बाबा कल नाडा ठंढ से बाँधा नही होगा. मैं धोती उठा करके टाय्लेट चली गई. टाय्लेट जाके मैने अपने सारे कपड़े उतार दिए और अपने नंगे बदन को देखने लगी. मुझे ऐसा लगा की मेरे मूमें कुछ ज़्यादा ही बड़े दिख रहे है और उनको छ्छू के मुझे बहुत मज़ा आया. फिर में पिशाब करने के लिए बैठ गई. वो करके मैने हाथ धो लिए और उंगली से ब्रश करने लगी. मुझे ऐसा लगा की मानो कोई खिधकी में से मुझे देख रहा हो. मैने जल्दी से अपने कपड़े पहनलीए और कमरे में जाके बैठ गयी. मैं सोचने लगी की एब्ब मैं यहा से कब और कैसे जाऊ. मुझे अपने मामा मामी, बोर्ड्स और दोस्तो का कोई ख़याल नही था. मैं इस्स असली दुनिया में काफ़ी मज़े ले रही थी. मुझे पहली बार एहसास हो रहा था की मैं एक औरत हूँ. वो औरात जोकि मर्द से कुछ भी कहीं भी और कभी करवा सकती है. यही सोचते सोचते दरवाजे पे ख़त खत हुई. और आवाज़ आई श्रुति बिटिया. मेरे मॅन में आवाज़ आई साला बूढ़ा फिर से आ गया. मैं मुस्कुराते हुए कहा खोलती हूँ सुलेमान बाबा. मैं खध्ि हुई और जाके मैने दरवाज़ा खोल दिया. मैने दरवाज़ा खोला तो देखा की सुलेमान बाबा खड़े हुए थे और उनके साथ एक असली साधू बाबा खधे हुए थे. सुलेमान बाबा ने मुझसे कहा “बिटिया यह बाबा परेश है….. इनके पाओ च्छुओ” मैने झुकके उन्ँके पाओ च्छुए और हम तीनो अंदर आगाय. मैं बिस्तर पे बैठी हुई थी और परेश बाबा मुझे देखे जा रहे थे. मैं वहा से खध्ि हो गयी और सुलेमान बाबा से कहा “बाबा आप परेश जी से बातें कीजिए मैं आप दोनो के लिए चाइ बना देती हूँ” छाई बनाते बनाते मेरे मंन में काहयाल आया की सुलेमान बाबा वीर्नथ को मुझे चोदने के लिए तो नही आए है? मैने ऐसा ख़याल दिमाग़ से निकाल दिया क्यूंकी यह साधू बाबा थे जो इंसान की ख़ासतौर से औरतो की मदद करते है. फिर मैं चाइ बनाना लग गई. काफ़ी ठंढ हो जाने की वजह से मेरे निपल्स उस्स ड्रेस में से दिखने लगे. मुझे पता भी नही चला के बाकी लोगो को क्या दिखने वाला है. मैं चाइ देनेके लिए दोनो बाबओ के पास बढ़ी तो दोनो बाबा मुझे घूरहके देखने लगें. आईस लग रहा था की दोनो मुझे आँखों से ही नंगा कर रहे हो. मैं कमरे के कोने में बैठके चाइ पीने लगी और कुछ कल रात के बारे में सोचने लगी. कल रात के द्रिश्ये मेरी आँखों में आयें जा रहे थे. कुछ देर बाद बाबा ने मुझे आवाज़ दी और मैं उनके पास छलके आ गई. परेश बाबा ने मुझे प्रसाद दिया और कहा बेटा तेरी सारी इच्छाए पूरी होगी और एक दिन तू बहुत बड़ी इंसान बनेगी. मैं प्रसाद लेके फिर से कोने में बैठ गयी और उससे खाने लगी. तोड़ा प्रसाद खाने के बाद मुझे थोड़े चाकर से आने लगे. मुझे लगा कहीं इन्न दोनो ने इस्स प्रसाद में नींद की डॉवा तो नही मिला रखी हुई है. मैं फिर टाय्लेट चल गई और बाकी प्रसाद फेक दिया. मैने अपना मूह पानी से धोया और बाहर आ गई. मैं जब बाहर आई तो वहा मुझे परेश बाबा ही दिखाई दिए. मैं उनसे पूच की ” सुलेमान बाबा कहा है” उन्होने कहा की वो ढाबे से खाना लाने के लिए गये है” मैं उनसे कहा की यहा ढाबा कहा है ” उन्होने कहा की हां थोड़ी दूर में है शहेर के पास….. यहा से 10 मीं का रास्ता”. यह सुनके मैं चौक गयी क्यूंकी सुलेमान बाबा ने मुझे बताया था की यहा से शहेर भाओट दूर है और यहा आस पास कोई रहता भी नही है. एब्ब मुझे पक्का यकीन हो गया की सुलेमान बाबा काफ़ी नीच और घटिया इंसान है और इस्स साधू को भी मेरे मज़े करवाने के लिए लेके आया है. मैं अपने आप को कोसने लगी की क्यूँ मैने वो प्रसाद खा ळिया. थोड़ी देर बाद मैं ज़मीन पर ही बेहोश हो गयी. मेरे बेहोशी में नज़ाने मेरे साथ क्या क्या किया होगा इन्न दोनो ने मुझे कुछ नही पता था. मेरी हल्की सी आँख खुली और मैने देखा सुलेमान बाबा मेरे सामने खड़े हुए थे और मुझे पानी च्चिड़क रहे थे. मैने कोशिश की मैं एक डम से उठके भाग जाऊ. मगर उस्स प्रसाद ने मेरी ताक़त ख़तम करदी थी. मैं आधी बेहोशी की हालत में खध्ि हो गयी. सुलेमान बाबा हस्ने लगे मेरी ऐसी हालत को देखके. फिर मैने दरवाज़े खुलने की आवाज़ सुन्नी और मैने देखा की परेश बाबा आए और मुझे देखके हस्ने लगे. मैं अपने आपको संभाल ना पाई और सुलेमान बाबा पे गिर गयी. सुलेमान बबाने मुझे संभाला और मुझे बिस्तर पे फेक दिया. मैं अंदर ही अंदर रो रही थी मुझे समझ नही आ रहा था मुझे हो क्या गया है मैं हिल भी नही पा रही थी. सुलेमान बाबा ने वीर्नथ बाबा से कहा की अब्ब क्या करें इसका. परेश बाबा मेरे सामने बैठ गये और मेरी च्चती को देखने लगे. मैने हाथ बढ़के उनको नौचना चाहा मगर उन्होने मेरे हाथ को पकड़ के चूम ळिया. फिर वो मेरी उंगलियो को चूसने लगे. परेश बाबा ने मुझे देखते हुया कहा ” ये हाथ है ना मेरे लंड को पकड़ने के लिए ही राखिॉ इससे ज़्यादा कुछ करा ना तो काटके जालके खा जाऊँगा”. सुलेमान बाबा बिस्तर के दूसरी ओर बैठ गेयर मेरे दूसरे हाथ को चूमने लगे. दोनो की धोती में टेंट सा बन गया था और यह देखके मुझे अंदाज़ा हो गया था की दोनो मुझे चोद चोद के मार डालेंगे. दोनो बाबओ ने मेरे हाथो को अपने लंड पे रख दिया जो की अभी धोती से ढाका हुआ था. और फिर मेरी उंगलिओ से अपने लंड को दबाने लगे. दोनो हल्के हल्के से आवाज़े निकालने लगे. सुलेमान बाबा ने अपना हाथ मेरे मोमें पे रख दिया और उसे मसालने लगे. मेरा ड्रेस का कपड़ा काफ़ी पतला था और इसकी वजह से ड्रेस का होना या ना होना एक ही बात थी. वो मेरे मूमें को गोलाई में घूमने लगे और फिर कभी उपर नीचे. आप यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | वो काफ़ी मज़े ले कर मेरे मूएन से खेल रहे थे. वीर्नथ बाबा भी काफ़ी काफ़ी गरम हो गये थे और वो अपना हाथ मेरी चूत के पास लियाए. और मेरी चूत के अनादर अपनी उंगली ख़ुसाने लगे. काफ़ी टाइम तक यह चलता रहा और मैं सब कुछ सहती रही. कुछ ही पल में मेरी आँख लग गई और परेश बाबा ने अपने दूसरे हाथ से मुझे खीचके थप्पड़ मारा. मैं उठ गयी और मेरे पूरा गाल लाल हो गया था.

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