महीना बीत गया पर समीज़ के उपर से उसकी बढ़ी हुए चुचि को मापने के अलावा राघव अपने लक्ष्या की तरफ एक कदम भी नही बढ़ा पाया था. महीने के अंत में फीस देते समय जब काजल के पिताजी ने काजल की पढ़ाई के बारे में पूछा तो राघव का सारा फ्रस्ट्रेशन बाहर आ गया. उसने खुल कर काजल की शिकायत की. काजल के पिताजी नीरस हो कर बोले “देखिए सर, हमारा काम फीस देना है, पढ़ना इसका काम है और पढ़ाना आपका. अगर पढ़ाई नही करे तो आप इसे जो जी में आए सज़ा दीजिए. मैं और काजल की मा एक शब्द नही बोलेंगे”. ‘जो जी में आए सज़ा दीजिए’ ये शब्द कान में पड़ते ही राघव का लंड खड़ा हो गया. उसने सर झुकाए, आँखे भरी हुई, चेहरा लाल, खड़ी काजल को देखा और उसके पिताजी से आग्या ले हॉस्टिल वापस आ गया. रात भर राघव यही सोचता रहा अपनी इस नयी आज़ादी का लाभ वो कैसे उठाए.
अगले दिन राघव का लंड सुरू से ही खड़ा था. सलवार, समीज़ और ओढनी में बिस्तर पर काजल बैठी थी और सामने कुर्शी पर राघव. काजल जब भी कुछ लिखने के लिए झुकती, उसकी ओढनी नीचे गिर जाती और फिर वो ओढनी ठीक करने लगती. ओढनी के कारण राघव को काजल के अमूल्या निधि का भरपूर नज़ारा नही मिल रहा था. उसने चाइ आने तक इंतेज़ार किया, फिर खुद को मिली आज़ादी से उत्तेजित राघव ने काजल के जिश्म पर से ओढनी खीच कर साइड में रख दी. “इससे बार बार डिस्टर्ब हो रही हो, बिना इसके रहो”. काजल चुपचाप अपने गुरु की आग्या मानते हुए झुक कर पढ़ाई में लग गयी. अब राघव को काजल की पुर्णवीकसित चुचियों के आकार का सही अंदाज़ लग रहा था और उसके आकार ने कदाचित् राघव के लंड का आकार बढ़ा दिया था. अब जब भी काजल नीचे झुकती उसकी समीज़ से उसकी गोल चुचियों का कुछ हिस्सा राघव को दिख जाता जो उसके लंड में रक्त संचार बढ़ा उसे उत्तेजित कर देता. अगले दिन से काजल पढ़ने बिना ओढनी के ही आई और अगले कुछ दिनो में राघव को काजल के ब्रा के कलेक्षन की पूरी जानकारी मिल चुकी थी और उसे काजल की गुलाबी निपल्स के भी दर्शन हो चुके थे. पर बात आगे नही बढ़ रही थी. सिर्फ़ देख कर उसका मंन नही भरता. काजल को पढ़ा कर लौटने पर वो अक्सर हिला कर अपने लंड के जोश को ठंढा करता फिर सोता. वो काजल के जिश्म तक पहुँचने की नयी तरकीब सोचने लगा.
अगले दिन राघव ने उस बेचारी जान को टरिगॉनओमीट्री के सारे आइडेंटिटीस याद करने का होमवर्क दे दिया. राघव अच्छि तरह से जानता था कि काजल की मंदबुद्धि में ये आइडेंटिटीस कभी नही घुसने वाले हैं. पर उसका उद्देश्या उसके दिमाग़ में फ़ॉर्मूला घुसाना नही अपितु उसकी चूत में अपना लंड घुसाना था. काजल राघव की उम्मीद पर पूरी तरह से खरी उतरी. राघव ने झूठ मूठ का गुस्सा दिखाते हुए कहा “तुम पढ़ाई बिल्कुल नही करती, ऐसे काम नही चलेगा. जब तक तुम्हे पनिशमेंट नही मिलता तुम पढ़ाई नही करोगी. चलो मुर्गी बनो” ये सज़ा राघव को बचपन में स्कूल में मिला करती थी, पर इसमे उसे काजल की गांड को नज़दीक से देखने का मौका मिलता. बेचारी काजल रुआंसी हो चुप चाप राघव की बगल में खड़ी हो गयी. उसके लाल गाल देख कर राघव के जी में आया अभी उसे बाहों में भर कर चूम ले. पर उसने कहा “रोने धोने से काम नही चलेगा. जब तक तुम्हे सज़ा नही मिलेगी तुम्हारा पढ़ाई में ध्यान नही लगेगा”. काजल जब फिर भी नही हिली तो राघव खड़ा हो गया और गुस्से में कहा “मैने तुमसे कुछ कहा है?” काजल ने रोती हुई कहा “मुझे मुर्गी बनना नही आता” राघव को ऐसे ही किसी मौके की तलाश थी. वो काजल के पीछे उसके बदन के एकदम नज़दीक खड़ा हो गया और एक हाथ उसके पीठ पर और दूसरी हाथ उसकी चुचि पर रख कर बोला “नीचे झुको”. काजल की चुचि को इससे पहले किसी मर्द ने नही छुवा था. उसके पूरे बदन में सनसनी दौड़ गयी, मानो उसे करेंट लगा हो. वो रोनो धोना सब भूल गयी थी, उसके आँसू ना जाने कहाँ गायब हो गये थे और उसके दिल की धड़कन अचानक बढ़ने लगी. राघव के हाथ का दबाव उसकी चुचि पर बढ़ने लगा, वो काजल के धड़कते दिल को अपनी हथेलियों पर महशूस कर सकता था. जब काजल झुक गयी तो उसने उसे अपने पैर के पीछे से हाथ ला कान पकड़ने को कहा. फिर राघव का शरारती हाथ काजल की टाइट और पूरी तरह से विकसित गांड पर गया और उसने गांड को मसल्ते हुए कहा “इसे उपर उठाओ” फिर अपने हाथ को उसकी गांड पर भ्रमण कराते हुए उसकी चूत पर अपनी उंगली को दबाया. चूत पर सलवार के उपर से उंगली के दबाव ने काजल को जैसे पागल बना दिया. उसे ऐसा एह्शास पहले कभी नही हुआ था. उसे सर जी की ये सज़ा पसंद आ रही थी. चूत पर उंगली पड़ते ही एक सनसनी सी काजल के पूरे बदन मे होते हुए उसके चूत तक पहुँची और गीलापन बन बाहर आ गयी. काजल ने पहले ऐसा कभी महशूष नही किया था. वो उठ कर सीधा टाय्लेट भागना चाहती थी. पर राघव का हाथ उसकी गांड के आयतन, द्राव्यमान और घनिष्टता मानो सब माप लेना चाहता हो. उसका व्याकुल लंड अपने आगे चूत को देख पैंट फाड़ कर बाहर निकलने को बेचैन हो रहा था. पर इस डर से की कहीं कोई चला ना आए, राघव उसके गांड का मज़ा अधिक समय तक नही ले सकता था. उसने थोड़ी ही देर में काजल को उठ जाने को कहा. आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | अब काजल का मंन पढ़ाई में और नही लग रहा था. अपनी चुचि और चूत पर राघव के हाथ के स्पर्श से उसके अंदर आनंद की जो लहर उठी थी काजल उसकी अनुभूति फिर से करना चाहती थी. वो देखना चाहती थी कि उसकी चूत पर कैसा गीलापन है. उसे अगले दिन सारे आइडेंटिटीस याद करने का होमवर्क दे राघव घर आ कर सबसे पहले अपने लंड को हिला कर झाड़ा. फिर उसे एह्शास हुआ कि उसने जो सब काजल के साथ किया है कहीं उसने अपने घर वालों को बता दिया तो गंभीर समस्या हो जाएगी. गुंजन के अनुभव से राघव इतना तो समझ ही गया था कि 11थ की लड़कियाँ छ्होटी बच्ची नही होती. अब उसे भय सताने लगा. कहीं उसने अपने पिताजी को बता दिया हो तो? वो अगले दिन काजल को पढ़ाने नही गया. उधर काजल बेचारी उसकी यादों में नज़रे बिच्छाए बैठी थी. कल वाली सज़ा वो फिर से पाना चाहती थी. रात को काजल के कहने पर काजल के पिताजी ने फोन कर राघव से उसकी तबीयत के बारे में पूछा तो राघव की जान में जान आई. वो समझ चुका था कि अब काजल का शिकार करना अधिक मुश्किल नही होगा. काजल के शिकायत ना करने से राघव की हिम्मत बढ़ गयी थी, अब वो अक्सर काजल को मुर्गी बना सलवार के उपर से उसके गांड और चूत से खेलता था. धीरे धीरे उसकी झिझक जाती रही और अब वो अपने पैंट पर बन रहे पर्वत को छिपाने की कोशिश नही करता. कभी कभी तो वो काजल के सामने ही अपने लंड पर हाथ रख देता. काजल भी इस खेल में मज़ा उठा रही थी. उसे नही पढ़ने का एक और बहाना मिल गया था, होमवर्क नही करो और सर से मस्ती लूटो. धीरे धीरे वो भी खुलने लगी थी. अब वो सर की तरफ सीधे देखती और राघव के पैंट की सूजन को देख कर मुश्कूराती.
एक दिन मुर्गी बनाने की सज़ा पर उसने कह दिया “मैं मुर्गी नही बनूँगी, पैर दुख़्ता है. आप कोई और सज़ा दे दीजिए.” राघव ने उसे बेड पकड़ कर झुकने को कहा और उसके पीछे खड़ा हो उसके गांड पर अपना लंड दबा दिया. फिर वह झुक कर दोनो हाथों से काजल की दोनो चुचि को पकड़ कर मसल्ने लगा. इस खेल में काजल को और अधिक मज़ा आ रहा था. अब से पहले राघव ने उसकी चुचियों को बस दबाया था, पर मसल्ने पर मज़ा कुछ और था. वो भी मचल कर अपनी गांड को राघव के लंड पर धकेलने लगी. फिर राघव को कुछ आहट सुनाई दी, वो झट से काजल के पीछे से हट कुर्शी पर बैठ गया और काजल को बैठ जाने को बोला. पर कोई आया नही था. काजल की चुचियों का ये मज़ा अब राघव से बर्दाश्त नही हो रहा था. उसने उठ कर कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया और काजल से फिर झुक कर खड़ा होने को कहा. काजल राघव के इरादे को समझती थी पर नखड़ा दिखाना तो लड़कियों की अदा है. उसने कहा “अब मैने क्या किया है?” “कल जो फिज़िक्स में होमवर्क दिया था वो तुमने किया है?” राघव फिर से उसके चुचियों को मसल्ने और अपने शख्त लंड पर उसकी कोमल गांड कामज़ा लेने के लिए बहाने खोज रहा था. आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
कहानी जारी है…. आगे की कहानी पढ़ने के लिए निचे दिए गये पेज नंबर को क्लिक करे …..