गरमा गर्म चुदाई घर में -16

प्रेषक: सुभास

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गतांग से आगे….. अब बस हम दोनों भाई-बहन और अंकल घर पर थे। मैंने मौका ठीक समझा तो कहा, “अंकल अगर आप बूरा न माने तो एक बात कहूँ…”। मैं और विभा अंकल के सामने एक ही सोफ़ा पर बैठे हुए थे। जब अंकल ने मुझे प्रश्नवाचक नजरों से देखा तो मैंने बेशर्म की तरह कह दिया, “रात में तो हम लोग थक कर सो गए थे, फ़िर सुबह मौका मिला नहीं और कुछ दिन में हम लौट भी जाएंगे… तो क्या करीब आधा घन्टा हम दोनों अकेले एक कमरे में जा सकते हैं”… कहते हुए मैंने विभा की कमर के गिर्द अपने हाथ लपेट दिया। अंकल समझ कर मुस्कुराए और फ़िर कहा, “ठीक है, पर आंटी के आने के पहले बाहर आ जाना…”। मैंने कहा, “बस घडी देख कर आधा घन्टा से ज्यादा नहीं लगेगा”। वो मुस्कुराते हुए हमे अपने बेडरूम में ले गए और बोला, “इस कमरे से बाथरूम अटैच है तो सुविधा होगी बाद के लिए”। मैंने थैन्क-यू कहा और फ़िर विभा को कमरे में खींच लिया। मैंने दरवाजा वैसे हीं छोड दिया, पर अंकल थोडा सज्जन थे, वो टीवी खोल कर बैठ गए। विभा ने दरवाजे की तरफ़ इशारा किया तो मैंने कहा, “चल आ जल्दी से ऐसी ही न रंडी-गिरी की डीग्री मिलेगा तुमको”, और फ़टाफ़ट उसके कपडे उतार दिए। मेरा लन्ड तो कमरे में घुसते समय हीं लहराने लगा था सो मैंने उसको अंकल की बिस्तर पर लिटा कर उसकी झाँटों वाले चूत चाटने लगा, जल्दी हीं उसके मुँह से सिसकी निकलने लगी थी। मैंने फ़िर उसको सीधा लिटा कर चोदना शुरु कर दिया। थप्प-थप्प की आवाज होने लगी थी और मेरे धक्कों पर कभी-कभी विभा के मुँह से कराह निकल जाती… मुझे पक्का भरोसा था कि अंकल को हमारी चुदाई की आवाज सुनाई दे रही होगी। करीब ८ मिनट की धक्कमपेल चुदाई के बाद मैं उसकी चूत के भीतर हीं झड गया और मेरा सब माल उसकी बूर से बह निकला। मैंने अब अपने रुमाल से उसकी चूत पोछी, पर कुछ माल उसकी बूर में भीत्र ही रह गया। फ़िर जब हम कपडे पहनने लगे तो मैंने कहा, “ऐसे हीं बिना पैन्टी के ही जीन्स पहन लो, पैन्टी गन्दा हो जाएगा… अभी जब खडा हो कर चलोगी तो मेरा कुछ पानी तो तुम्हारे बूर से रिसेगा हीं बाहर”। विभा भी मेरा बात मान ली और फ़िर जीन्स सीधे पहन कर अपने पैन्टी को अपने जीन्स की जेब में ठुँस लिया।दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | जब वो उठी तो मैंने देखा कि उसकी बूर का रज और मेरा वीर्य उस बिस्तर पर थोड़ा स लग गया था और करीब एक ईंच व्यास का गीला दाग बना दिया था। फ़िर हम बाहर आ गए, कुल करीब ३८ मिनट हमने लिया था। अंकल हमे देख कर मुस्कुराए और कहा, “तुम दोनों का चेहरा देख कर लगता है बहुत मेहनत करना हुआ है जल्दी के चक्कर में”, फ़िर विभा को देखते हुए बोले, “इसका तो चेहरा लाल भभूका हो गया है जल्दी से पाने से चेहरा धो लो, वर्ना आंटी को सब समझ में आ जाएगा ऐसा चेहरा देख कर”। विभा तुरंत डायनिंग टेबूल के पास के वाश-बेसीन पर चली गई। हम दोनों मर्द एक-दूसरे को देख कर मुस्कुराए। अंकल ने मुझे देख कर कहा, “बधाई हो…. मेरे बिस्तर पर लाल दाग तो नहीं लगा दिया”। मैंने कहा, “अरे नहीं अंकल, पहले से भी मेरे साथ सो रही है, ऐसी नहीं है… नहीं तो ऐसे शान्ति से सब होता कि रोना-चीखना भी होता”। मेरी बात सुनकर वो बुढा ठहाका लगा कर हँस पडा। विभा की कमर पर नजर गडाए हुए वो कहा, “इसकी पैन्ट कहाँ गई गुड्डू जी, कहीं बिना पैन्ट उतारे भीतर तो नहीं उसको ठेल दिए…”, अब फ़िर से हम दोनों का जोरदार ठहाका लगा। मैंने कहा, “नहीं, उसकी जेब में है…. अभी पहनती तो गन्दा हो जाता न, सब भीतर ही था जब हम हटे थे”। वो समझ गया और बोला, “बहुत गजब का है वो पैन्ट भी”। तभी विभा अपना चेहरा तौलिया से पोछती हुई वहाँ आई तो मैंने उसको कहा, “डार्लिंग डीयर… जरा अपना पैन्टी अंकल को दिखाओ न, बेचारे के टाईम में ऐसा तो होता नहीं था”। विभा तो शर्म से लाल हो गई पर उसने बिना हिचके अपने जेब से उस छोटी सी लाल पैन्टी को जेब से निकाल कर अंकल के हाथ में दे दिया और उस ठरकी बुढे ने उस पन्टी को ऊलट-पुलट कर खुब प्यार से देखा और फ़िर कहा, “हमारी ऐसी किस्मत कहाँ थी कि ऐसी को लडकी की कमर से उतारते…, कभी फ़ोटो में भी किसी को ऐसी चीज में नहीं देखा”। मैंने तब कहा, “डार्लिंग एक बार अंकल को जल्दी से पहन कर दिखा ही दो, बेचारे को इतनी कीमत तो देनी ही चाहिए, आखिर हम उनका बिस्तर इस्तेमाल किए हैं”। विभा को अपना झाँट को ले कर कन्फ़्युजन था, पर मैंने अंकल को कह दिया, “अंकल असल में बेचारी अपना बाल साफ़ की नहीं है सो ऐसा खुले में पहनना चाह नहीं रही है, वो तो कमर पर ऐसी डोरी दिखाने के फ़ैशन के चक्कर में पहन ली थी”। अंकल को जब मौका मिल रहा था यह सब देखने का तो बोले, “अरे तो कोई बात नहीं है, मुझे तो यह पैन्ट देखना है कि कैसी लगती है बाकी चीज थोदे न देखना है”। उनकी मुस्कुराहट सब कह रही थी तो मैंने विभा को इशारा किया और वो अंकल के हाथ से पैन्टी ले कर फ़िर से कमरे की तरफ़ मुडी तो मैंने कहा, “इस पैन्टी को पहनने के लिए कहीं जाने की क्या जरुरत है, यही पहन लो… वैसे भी जैसे अंकल ने नोटीस किया ऐसे ही आंटी भी तुम्हें बिना पन्टी के देख कर बेचारे अंकल का जीना हराम कर देगी”। हम दोनों हँस पडे और विभा समझ गई कि मेरी इच्छा है कि वो वहीं हमारे सामने पैन्टी पहने। उसने फ़ट से अपने जीन्स की बट्न को खोल कर उसको उतार दिया और उसकी झांटों भरी चूत हम दोनों के सामने थी। मैं खुश था कि विभा मेरा कहा मान कर बेशर्म की तरह मेरा सहयोग कर रही थी। अंकल ने अपनी जेब से रुमाल निकाल कर कहा, “पोछ कर साफ़ कर लो फ़िर पहनना…”, विभा भी आराम से अंकल के रुमाल सफ़ेद रुमाल में अपनी चूत को पोछी और फ़िर अपने फ़ाँक को थोडा खोल कर भी साफ़ किया। रुमाल पर उसकी चूत का गीला पन अपना दाग बना दिया था। फ़िर उसने पैन्टी पहन ली। अंकल की नजर लगातार सिर्फ़ और सिर्फ़ उसकी बूर पर थी। विभा ने फ़िर जीन्स पहन लिया तब जा कर अंकल को होश आया। वो अब आराम से बैठे और कहा, “थैन्क यू”, उनकी साँस गर्म हो गई थी और वो रुमाल को ले कर अपने जेब में रख लिए। मैंने कहा, “अब यह रुमाल तो शायद नहीं धुलेगा…”। अंकल ने भी हँसते हुए कहा, “सही कह रहे हैं गुड्डू जी आप, अब यह बिल्कुल नहीं धुलेगा… आज जो हुआ वह रोज थोडे न होता है जिन्दगी में। यह आज का यादगार रहेगा”।दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |  हम हम दोनों हँस पडे और विभा मुस्कुरा दी। फ़िर हम बातें करने लगे। करीब १० मिनट बाद आंटी आ गयी और हम सब नाशता-वाश्ता करके करीब ११.३० में अंकल के साथ हीं उनकी गाड़ी से निकले, वो हमें होटल में ड्रौप करते हुए औफ़िस चले गये।दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | विभा रूम में पहुंच कर नकली नाराजगी दिखा रही थी कि मैंने क्यों ऐसा व्यवहार किया था अंकल के सामने। फ़िर उसने कहा कि अब वो सोएगी, तो मैंने भी उसको परेशान नही किया और सोने दिया। वो बेड पर सो गई और मैंने टीवी खोल लिया। फ़िर आधे घन्टे बाद मैं भी अलग बिस्तर पर सो गया। करीब दो घन्टे बाद तीन बजे हम दोनों लगभग साथ साथ उठे। विभा ब जिद करने लगी कि अब मैं उसका बाल बना दूँ, वर्ना वो मेरे साथ कहीं नहीं जाएगी। मैंने भी रुम सर्विस को चाय का आर्डर करते हुए हाँ कह दिया और फ़िर मैंने बाल्टी में पानी गर्म करने को लगा दिया, कहा कि दो मिनट रेजर को पानी में उबाल देता हूँ, नया ब्लेड नहीं है अभी… तुम तब तक तैयार हो जाओ”। वो खुश हो कर बिस्तर से उठी और चट से अपने कपडे उतार कर नंगी हो गई। ऐसे उसको नंगी होते देख कर मुझे खुशी हुई, विभा सेक्स का खेल खेलने मे अब थोड़ा खुलने लगी थी। विभा आराम से नंगी बिस्तर पर अधलेटी हो कर अपने झाँटों से खेल रही थी। जैसे हीं मैं रेजर ले कर बाथरुम से बाहर आया कि दरवाजा नौक हुआ, “चाय”, बाहर से आवाज आई। विभा घबडागई तो मैंने चट दुसरे बिस्तर से चादर खींच कर उसपर उछाल दिया और फ़िर दरवाजे की तरफ़ बढा। जब मैंने दरवाजा खोला तो एक १८-२० साल का लडका चाय और बिस्किट की ट्रे लिए सामने खडा था। तब तक विभा चादर से अपने बदन को ढक चुकी थी, हडबडी में उसने चादर लम्बाई के बजाए चौडाई में ओढ ली थी सो उसके पैर लगभग घुटनों तक बाहर हो गए थे, जो उसकी मजबूरी थी वर्ना उसकी चुची उघड जाती। चाय जिस टेबुल पर रखा जाता वहाँ उसने अपने कपडे उतार कर रख दिए थे सो वेटर बिस्तर के बगल में रखे टेबुल के पास जा कर सकपका कर खडा हो गया। विभा अब थोडा संभलते हुए अपना एक हाथ चादर से बाहर निकाली और चादर को अपने गले से नीचे अपनी छाती तक कर लिया और फ़िर ठीक से काँख से चादर को दबा कर अपने एक हाथ को फ़ैला कर कपडे हटाने लगी। उसको अपने काँख के बाल को भी उस लडके की नजर से बचाना था। इसके लिए वो हाथ कम फ़ैलाई और थोडा सा उस दिशा में घुमना भी पड़ा था पर इससे चादर उसके बदन से खिसका और उसका पूरा पीठ और कमर नंगा हो गया। उस लडके की नजर विभा के बदन पर एक बार फ़िसली और उसका हाथ काँप गया। विभा अब फ़िर से हडबडा कर चादर पकडी और फ़िर अपने काँख की चिन्ता छोड कर वो किसी तरह से फ़िर से अपने बदन को ढकी और फ़िर टेबुल से कपडे हटाए तो वेटर चाय वहाँ रखा और फ़िर सकपकाते हुए सर नीचे किए हुए बाहर निकल गया। मैंने हँसते हुए कहा, “क्या से क्या हो जाता है”। वो भी अब चादर बदन से फ़ेंकते हुए बोली, “चाय के बारे में तो मैं भूल हीं गई थी, …. बेचारा क्या सोच रहा होगा”। मैंने कहा, “छोडो साले को… साला का दिन बन गया आज”। फ़िर विभा आराम से नंगी हीं चाय बनाई और फ़िर वैसे हीं मेरे सामने बैठ कर मेरे साथ चाय पीने लगी। मुझे याद आया, मेरी माँ कहती थी कि अगर एक बार लडकी की शादी हो जाते है तो उसमें आत्मविश्वास बढ जाता है, मुझे लगा वो कहना चाहती थी कि अगर लडकी चुदा कर अपना कुँवारापन खो देती है तो उसमें आत्मविश्वास आ जाता है। चाय पीने के बाद मैंने पहले उसकी काँख के बाल साफ़ किए और फ़िर उसकी चूत पर से झाँट को पहले कैंन्ची से काट कर छोटा कर दिया और फ़िर उसकी झाँट को साफ़ कर दिया। उसकी चिकनी चूत एकसम से बदल गई थी। पहले और अब उसकी चूत की शक्ल में कोई तुलना ही नहीं था। वो अब किसी बच्ची के चूत की तरह दिख रही थी साफ़, चिकनी और मुलायम। विभा इसके बाद उठी और नहाने चले गई। मैं भी साथ में हीं नहाने के लिए बाथरुम में घुस गया। नहाते हुए ही मैंने उसको कह दिया कि आज उसको फ़िर से मैं वहीं समूद्र किनारे बालू पर ले जाऊँगा। वो समझ गई और सलवार-सूट पहनते हुए बोली, दुपट्टा काम आएगा वहाँ बालू पर बैठने में। हम करीब ५ बजे कमरे से निकले। रास्ते में चलते हुए मैं सोच रहा था कि अब विभा को कुछ ऐसे चोदना है कि वहाँ का बाकी जोड़ा अपना चुदाई छोड कर विभा की चुदाई देखे। मैंने विभा को कह दिया कि वहाँ वो मुझे पुरा सहयोग करे और बिन्दास चुदे, बिना कोई फ़िक्र। वो बोली, “अभी तक आपको परेशानी हुई है…. जो कहे सब कर रही हूँ। जैसा कपड़ा बोले… पहनी, जब जैसा कहे… की। यहाँ ऐसे खुले में सब के सामने करते इतना लाज लगेगा फ़िर भी आपके लिए अभी तैयार हुई की नहीं। आपको क्या लगता है कि मैं आपको निराश करुँगी। मम्मी-पापा के बाद आप हम सब को इतना मेहनत से और प्यार से पाले हैं। आपकी शादी के लिए कैसे सब जोर दे रहे थे माँ के मरने के बाद की घर में ३ लडकी है कैसे रहेगी, पर अगर आप शादी कर लेते और भाभी के साथ अलग हो जाते तब हम लोग कहाँ जाते।” उसकी आँख डबडबा गई थी, यह सब कहते। मैंने उसको कहा, “पगली यही सब सोचती हो… तुम लोग को पाले तो क्या इसीलिए तुम चुदवा रही हो। मैं प्यार नहीं करता क्या? सिर्फ़ चुदाई का हीं रिश्ता हमारे बीच नहीं है। यह सब मत सोच… मेरी बहन। अब चट-पट मेरी जान बन जाओ…. यहाँ अभी तुम बहन नहीं हो मेरी, कोई दया नहीं करने वाला मैं…” और मैंने उसको आँख मारी। वो हँसने लगी… तो मैंने कह दिया, “यहाँ तो मैं अपनी जान को रंडी बनाने के लिए लाया हूँ”। वो बोली, “चुप… बदमाश… गुंडा कहीं का”। हम दोनों हँस दिए। बीच पर पहुँचते-पहुँचते ६ बजने लगा था और सूर्यास्त के बाद का हल्का सा रोशनी अब था। उस चाय की दुकान पर फ़िर हम दोनों पहुँचे तो उस लडके ने पहचान कर पूछा, “कल कोई परेशानी नहीं हुई न… कुछ हो तो बताना”। मैंने उस लडके को २०० रु० देते हुए कहा, “पीछे खाली है?” वो मुस्कुराते हुए बोला, “खाली होता है ऐसा जगह… अभी भी दो या तीन होगा, अब लोग के आने का समय हुआ है… जाओ, ८ बजे का टाईम याद रखना।” मैं अभी बात कर हीं रहा था कि दो और जोडा आ गया। दोनों दक्षिण भारतीय लग रहे थे, एक तो ४० पार का जोडा था और एक जवान जोडा था विद्यार्थी टाईप। हम सब एक दुसरे पर नजर डाले और लगभग साथ-साथ झोपड़ी के पीछे चल दिए। पीछे दो और जोडा था। एक अपनी चुदाई खत्म कर चुका था और लडकी खडा हो कर अपनी साड़ी पहन रही थी, जबकि लड़का पास में सिर्फ़ अंदरवीयर पहन कर बैठा था, शाय्द वो एक बार और चुदाई करने के लिए आराम कर रहा था। दुसरा जोडा का चुदाई चल रहा था। लडकी आँख बन्द करके लेटी थी और अपना चेहरा अपने हथेली से ढकी हुई थी। घरेलू नौकरानी टाईप की थी २० के आस पास की और उसके जाँघ को अपने हाथों से फ़ैला कर एक दुबला-पतला मरीयल सा करीब ४० साल का मर्द उसको चोद रहा था। उसको हमारे आने से कोई फ़र्क नहीं पडा था। हमारे साथ का जवान जोडा एक तरफ़ अलग आगे बढा और फ़िर साईड में बैठ कर एक दुसरे को बाँहों में भर कर चुमने लगा। हमारे साथ वाले अंकल-आंटी भी अपना जगह खोज लिए और शान्ति से बैठ कर कभी समुद्र तो कभी उस चुदाई कर रहे जोडे को देखते थे चुप-चाप। शायद उन्हें अंधेरा होने का इंतजार था। मैं विभा का हाथ पकड कर उस चुदाई कर रहे जोड़े की तरफ़ बढ गया। हमारे साथ वाले दोनों जोडे भी ऐसी जगह बैठे थे कि उनको चुदाई करते देख सकते थे और थोडा दूर थी। पर मैंने जो जगह चुना वो ऐसा था जैसे मैं विभा को दिखाना चाहता था सब।दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | मैं विभा का हाथ पकड़े उन चुदाई करते जोडे से २’ की दूरी पर जा कर उनपर भरपूर नजर डालते हुए बैठा और फ़िर विभा को भी बैठने का इशारा किया। उस लडकी को चोद रहे लडके अपना धक्का रोक कर एक नजर हम दोनों पर डाली तो उस लडकी ने भी अपना हाथ चेहरे से हटा कर आँख खोल कर देखा। हम सब की नजरे मिली। उसी समय मैंने विभा को कहा कि वो अपना कपड़ा उतारे और मैं भी अपने शर्ट की बटन खोलने लगा। हमें अपने चुदाई की तैयारी करते देख उस मर्द ने थोडा निश्चिन्त हो कर अपना लन्ड बाहर निकाला और लडकी से पलटने को कहा। लड़की की चूत झाँटों से भरी हुई थी, जैसा कि गरीब नौकरानी टाईप लडकियों का होता है। उसका केवल सलवार खुला था और वो अपना कुर्ता पहने हुए थी। वो पलट गई और तब उस मर्द ने उसको पीछे से चोदना शुरु किया। मैं अपना आधा बदन नंगा किया तब तक विभा भी अपना कुर्ता उतार दी थी। वो काली ब्रा पहने हुए थी नई वाली। घुटने पर बैठ कर वो अपने सलवार का डोरी खींचने वाली थी कि मैं उसको अपने बाँहों में भर लिया और होठ चुमने लगा। मुझे पक्का यकीन था कि सब अब हमें भी देख रहे हैं। मैं तिरछी नजर से इसकी जाँच भी की और फ़िर विभा को खड कर दिया और उसकी सलवार उतार दी। काली नन्ही सी पैन्टी में विभा का सिर्फ़ फ़ाँक ढ़का हुआ था और वो उस ब्रा-पैन्टी में मस्त माल दिख रही थी। उस जगह १० लोग थे, पर वो अकेली खडी थी। जब वो बैठने लगी तब मैंने उसको वैसे ही रुकने को कहा और भर नजर उसकी खुबसुरती को देखने लगा। शाम के रोशनी में मैंने विभा का सुनदर गोरा बदन को खुब निहारा सामने बैठ कर और बाकी सब को भी खुब मौका दिया कि वो लोग भी विभा की जवानी का रस पान करें। फ़िर मैं उठा और उसको सीने से चिपका कर चुमते हुए उसके ब्रा का हूक खोला, फ़िर चुचियों को सहलाते हुए अपने हाथ पेट से कमर पर घुमा कर उसको अपने कमर से सटाया। इसके बाद मैं घुटनों क बल बैठ गया जैसे नमाज पढते समय लोग बैठता है और उसकी पैन्टी की डोरी पकड कर नीचे खींच दिया। उसका मक्खन जैसई चिकनी चूत शाम की हल्की रोशनी में दमक उठी। उसी समय मेरे बगल में चोद रहे मर्द ने अपना माल उस नौकरानी के चूत में निकाल दिया और और गुस्सा करने लगी। फ़िर दोनों अपना-अपना कपड़ा पहनने लगे और अब वो दोनों मेरी विभा को भरपूर नजर से देख रहे थे। उस शाम की रोशनी में भी मुझे विभा का चेहरा शर्म से लाल होता हुआ दिखा। मैंने नजर घुमाई तो देखा कि सब मर्द लोग अपनी अपनी लडकी के कपडे उतारते हुए चुम्मा-चाटी कर रहे हैं। मैंने विभा को हिम्मत दिया, लोग पर ध्यान मत दो, सब अपने काम में लगे हैं, तुम भी अपने काम में लगो। कहानी जारी रहेगी….

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