मेरा नाम केतन चौधरी है, २७ साल का मस्त नौजवान हूँ, मेरी शादी हो चुकी है, आपलोगों की दुवा से बीवी भी सुन्दर मिली है,एक बच्चा है, मेरी खुद की दुकान है, पुरे परिवार में किसी चीज की कमी नही है | मेरा शरीर काफी हट्टा कट्टा है रोज जिम जाता हूँ इसी लिए मेरी बहुत से लड़कियों से दोस्ती थी। बहुत सारी मुझसे शादी भी करना चाहती थीं, पर मैंने पसंद किया मेघना को। उसका घर मेरे घर के बिलकुल पास में है, वो भी एकदम मेरी जैसी है, खूबसूरत, गोरी-चिट्टी, भरी-पूरी। उससे पहले आँखों-आँखों में बात हुई, फिर मुलाकात, फिर प्रेम और फिर शादी।
हमारी शादी थी तो लव-मैरिज पर मेरे और उसके घर वालों ने अरेंज कर दी थी। मुंबई में मैं अकेला रहता था। माँ-पिताजी सब गाँव में थे। मेघना के घर में सिर्फ़ उसकी छोटी बहन और एक विधवा माँ थे बस।
शादी से पहले मैंने मेघना के साथ कभी कोई ग़लत हरकत नहीं की क्योंकि मैंने सोच लिया था कि शादी इसी से करूँगा, हाँ चोदा-चादी के लिए और बहुत सी लड़कियाँ थी। मेघना को भी पता था कि मेरी इमेज ‘लवर-बॉय’ की है और बहुत सी लड़कियों के साथ मेरे संबंध थे, पर शादी से पहले ही मैंने सब खत्म कर दिए थे।
शादी धूमधाम से हो गई, अब ससुराल पड़ोस में ही थी, तो अक्सर वक़्त बे वक़्त आना-जाना लगा रहता था। कभी वो हमारे यहाँ तो कभी हम उनके वहाँ। साली से खूब खुल्लम खुल्ला हँसी-मज़ाक़ होता था। धीरे-धीरे जब मैंने देखा कि वो बुरा नहीं मानती, तो बीवी से चोरी-छिपे उससे चुम्मा-चाटी शुरू हो गई, जो बढ़कर उसके मम्मे दबाने और चूतड़ सहलाने तक पहुँच गई। मैं चाहता तो था कि उसको भी चोद दूँ, पर जानबूझ कर पंगा नहीं ले रहा था। हाँ उसकी तरफ से मुझे पता था कि कोई इन्कार नहीं था। बातों बातों में मैंने उससे पूछ लिया था और उसने भी इशारे में समझा दिया कि अगर मैं आगे बढ़ूँ तो वो भी पीछे नहीं हटेगी, पर मैं आगे नहीं बढ़ा।
इसी तरह प्यार मोहब्बत में दो साल निकल गए। पंगा तब शुरू हुआ जब मेरी सास के भाई की मृत्यु हुई, तब मैं ही सब को लेकर जालंधर गया। सारे क्रियाकर्म के बाद वापिस आए तो मेरी सास का तो रो-रो कर बुरा हाल था। दोनों भाई-बहन में बहुत प्यार था। आप यह कहानी मस्ताराम.नेट पर पढ़ रहे है |
वापिस आकर हम कुछ दिन अपनी सास के साथ ही रहे। एक दिन शाम को जब मैं अपने काम से वापिस लौटा तो कुछ देर के लिए अपनी सास के पास बैठ गया। उसने सफेद साड़ी पहन रखी थी, 44 साल की उम्र में आधे सफेद बालों के साथ भी वो ‘हॉट’ लग रही थीं। वो चुपचाप बेड पर बैठी थीं, मैं पास जा कर बैठ गया। मेघना बाजार गई थी और रिया (मेरी साली) किचन में मेरे लिए चाय बना रही थी। मैं पास जा कर बैठा तो सासू जी फिर से रोने लगीं।
मैंने उन्हें सहारा दे कर उनका सर अपने कंधे से लगाया और एक बाजू उनके गिर्द घुमा कर अपने आगोश में ले लिया। वो मेरे सीने से लग कर रोने लगीं और जब मैंने नीचे ध्यान दिया तो देखा कि उनकी साड़ी का पल्लू उनके सीने से हट गया था और उनके सफ़ेद ब्लाउज से उनका बड़ा सा क्लीवेज आगे दिख रहा था।
एक शानदार क्लीवेज जो दो खूबसूरत नर्म, गुदाज़,गोरे-गोरे मम्मों के मिलने से बना, मेरी तो आँखें वही गड़ी की गड़ी रह गईं। मैंने खुद को थोड़ा सा एडजस्ट किया, अब सासू जी का बायाँ मम्मा मेरे सीने से लग रहा था। भगवान कसम मेरा मन कर रहा था कि पकड़ कर दबा दूँ पर क्या करता सास थीं !
मैं उन्हें चुप कराने के लिए उनके सर पर हाथ फेरता रहा, पर वो चुप ही नहीं हो रही थीं। मुझे भी लगा कि बुढ़िया कुछ ज़्यादा ही ड्रामा कर रही है क्योंकि उसके बदन की गर्मी अब मुझे चढ़ने लगी थी।
मैं चाहता था कि या तो ये बुढ़िया मुझसे अलग हो जाए, नहीं तो फिर मेरा कोई पता नहीं, कहीं मैं इसके साथ कोई कमीनी हरकत ना कर दूँ। आप यह कहानी मस्ताराम.नेट पर पढ़ रहे है |
जब यह ड्रामा लंबा हो गया, तो मैंने टेस्ट करने की सोची और अपनी सास को सांत्वना देते हुए, उसके गाल को चूम लिया और ऐसे एक्ट किया कि जैसे मुझे उसके रोने की बड़ी चिंता है, पर असल में मैं तो टेस्ट कर रहा था कि बुढ़िया मुझे कितना बर्दाश्त करती है।
जब एक चुम्बन का उसने कोई प्रतिरोध नहीं किया तो मैंने उसका चेहरा ऊपर उठाया और प्यार जताते हुए एक और चुम्बन किया। यह चुम्बन गाल और होंठों के बीच में था। वो फिर भी रोती रही और मुझसे वैसे ही चिपकी रही।
अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मेरा लंड करवटें लेने लगा, फिर तो मैंने सब रिश्ते-नाते भूल कर सासू जी का मुँह ऊपर किया और उसके होंठों पर चुम्बन कर दिया। गाण्ड तो मेरी फटी पड़ी थी कि केतन बेटा अगर दाँव उल्टा पड़ गया तो बहुत महंगी पड़ेगी, पर सासू जी ने कोई विरोध नहीं किया। यह तो मेरे लिए हरी बती थी। मैंने आव देखा ना ताव, दोबारा सासू जी का नीचे वाला होंठ अपने होंठों में ले लिया और चूसना शुरू कर दिया। उनका रोना बंद हो गया, पर वो वैसे ही निढाल सी हो कर मेरे सीने पर गिरी रहीं। मैंने उनके दोनों होंठ बारी-बारी से चूसे, उनके होंठों को अपनी जीभ से चाटा और अपनी जीभ उनके मुँह में डाल कर घुमाई।
उसकी तरफ से कोई विरोध ना देख कर मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैंने उसके होंठ चूसते-चूसते उसके मम्मे भी दबाने शुरू कर दिए। मेरी हैरानी की कोई सीमा ना रही, जब उसने भी अपनी जीभ से मेरी जीभ के साथ खेलना शुरू कर दिया। यह तो मेरे लिए दोहरा ग्रीन सिग्नल था। मैंने तो जल्दी-जल्दी उसके सारे बदन पर हाथ फेरना शुरू कर दिया, कि क्या पता कल को बुढ़िया मुकर जाए, इसलिए आज ही सारी मलाई खा लो।
मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रखा तो उसने मेरा लंड पकड़ कर सहलाना शुरू कर दिया। अब तो साफ़ था कि मैं अब अपनी बीवी की माँ भी चोद सकता हूँ। आप यह कहानी मस्ताराम.नेट पर पढ़ रहे है |
इतने में किचन से रिया की आवाज़ आई- जीजाजी, चाय के साथ क्या खाओगे?
हम दोनों बिजली के झटके से अलग हुए, हम तो भूल ही गये थे कि रिया घर पर है। मैंने भी ज़ोर से कहा- कुछ भी ले आओ।
अब मेरी सास मुझसे नज़रें नहीं मिला रही थीं, पर मैं महसूस कर रहा था कि उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। उसके बाद तो जैसे मुझे खुली छुट्टी ही मिल गई थी। घर में बीवी मेघना, ससुराल में सास सविता और साली रिया मेरे तो पौ बारह थे। जब भी जिस पर भी मौक़ा मिलता, मैं हाथ साफ़ कर लेता था, पर अभी तक कोई भी ऐसा मौक़ा नहीं मिला था कि मैं अपनी सास या साली को चोद पाता।
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