दोस्तों ये कहानी मेरी पड़ोसन गरिमा चाची की है जो आप लोग पढने जा रहे है मेरे एक दोस्त ने मस्ताराम के बारे में बताया की तू भी अपनी पड़ोसन चाची की कहानी लिख दे तो मैंने नाम बदल कर अपनी कहानी लिख दिया हूँ तो बात कुछ एसी है | गरिमा चाची पडोसन हैं, उनके बदन का सबसे सुन्दर अंग है उनकी गांड मस्त मोटी है। उनके बदन की साइज़ लगभग ३८-३८-३८ होगी अक्सर मटकते हुए हिरनी की तरह जब वो चलती हैं, उनके सारे हसीं बदन की सुन्दरता उनके गांड के मतवाले पन में झलकती है। उनके बारे में एक कहानी प्रचलित है, कि जगदीश डाकिये ने उनकी गांड मार ली थी। इतनी खूबसूरत गांड के लिए कौन क्या नहीं करता। तो कहानी कुछ यूं है जैसा कि मेरे दोस्तों ने मुझे सुनाया है। गरिमा चाची जब जवान हुआ करती थीं, पहले तो कमसिन कली की शादी कर दी जाती थी तब की बात है, उनके पति देव बोले तो रामजी चाचा गुजरात जहाज पर काम करते थे और यहां गरिमा चाची, अपनी जवानी को अकेले जिया करती थीं, और हर महीने मनी आर्डर भेजते थे। वो मनी आर्डर लेकर अक्सर डाकिए को आना होता था। पर जमाना देखो, कम पढी लिखीं गरिमा चाची को क्या पता कि जो पैसा डाकिया लेकर आता है वो उसके पति का होता है। हर महीने डाकिया पांच सौ रुपये लेकर आता और गरिमा चाची को थमा के उनको चोद के चला जाता। उस पैसे से खर्चे चलते उनके। यह सिलसिला लगभग पांच साल तक चला जब कि उनके हसबैंड बोले तो रामजी चाचा पहली बार गुजरात से आए और पूछा कि डाकिया उनको पैसे तो देता था ना? तब उनको समझ आया कि वो हरामी पिल्ला उनको अपने पैसे नहीं बल्कि पति के पैसे देकर ही चोद के जाता था। खैर ये तो कहानी की भूमिका थी। चलिए चल्ते हैं पहली बार डाकिए द्वारा गरिमा की गांड की मस्ती छानने की कहानी पर। सच बताएं तो मेरे दोस्त की जगदीश से बहुत ज्यादा पटती है और उसने सुनाई ये कहानी उसको चटखारे ले ले कर। पहला मनीआर्डर दिसंबर की सर्दियों में आया, जगदीश डाकिया एक गबरु जवान आदमी हुआ करता था। वह सुबह सुबह गरिमा के घर आया, ठंड के मारे सिकुड़ी हुई गरिमा ने अपने बदन को शाल में छुपा रखा था। और अंगीठी सेंक रही थी। जगदीश भी जाकर बैठ गया, चूंकि गरिमा का घर गांव के किनारे है तो कोई भी आए जाए तो जल्दी दिखता नहीं है। आप यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | जगदीश अंदर गया और सिटकनी लगा दी। गरिमा चाची ने अपनी अंगीठी उठा के रख दिया और पानी लाने गयीं। जगदीश ने देखा, उनकी सेक्सी गांड साड़ी के उपर से भी एक दम कयामत लग रही थी। ऐसी गांड पर कुर्बान जाएं लंड्। जगदीश ने बस उस मनीआर्डर के पैसे से ही उनको चोदने के बारे में सोचने लगा। जैसे ही गरिमा आई, उसने पांच सौ का नोट जमीन पर गिरा दिया। उसे देखते ही गरिमा ने उठा के कहा कि इसे ले लिजिए, आपका है ना? जगदीश ने कहा – अरे हां गरिमा, पर अगर तुझे जरुरत है तो रख लो। गरिमा को जरुरत तो थी ही पैसो की, पर वो क्या जाने कि ये पैसा उसके ही पति का भेजा हुआ है। उसने आराम से वो पैसा अपनी कमर में बनाए थैले जिसे कि गांवों में अंटी कहते हैं, उसमें रखा और बोली, बदले में क्या लोगे जगदीश? उसका इशारा साफ था। नैनों को मटका के उसने अपनी गांड तिरक्षी खड़ी कर के कहा। जगदीश खड़ा हुआ और उसकी कमर पकड़ के मसलते हुए बोला। गरिमा बस एक बार दे दो, मैं तुम्हे हर महीने पैसे दिया करुंगा। गरिमा तो खुश हो गयी। आप यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | ठन्डी मे सिकुड़ी गांड और मोटा लन्ड इतनी ठंड, पति इतना दूर और पैसे का अभाव। ऐस्से में एक गबरु जवान साथ दे और घर का हर खर्चा चलाए, क्या कहना। ये अच्छा आफर था। गरिमा ने वहीं अपना आंचल ढलका दिया। मस्त मस्त स्तन एक दम से किसी पहाड़ की तरह से खड़े थे। दोनों हाथों में भर कर के जगदीश बोला “मेरी गरिमा, तुम बस मुझ पर ऐसे ही मेहरबानी करती रहो, मैं तुम्हें हर महीने पैसे पहुंचाता रहूंगा।” और जगदीश ने उसकी साड़ी खोल दी। अब वह बस पेटीकोट और ब्लाउज में थी। आंगन में ही शुरु हो गये थे दोनों। एक आम का पेड़ छोटा सा था आंगन में। वहीं उसके नीचे सारा खेल देसी स्टाइल में शुरु था। अपनी धोती खोल कर जगदीश डाकिये ने अपना मोटा गदह जैसा लंड निकाला और गरिमा को थमा दिया, गरिमा ने देखा, पति से दो गुना बड़ा हथियार उसके हाथ में था। चोली में पांच सौ का नोट और हाथ में आठ इंच का लन्ड्। क्या आफर था। उसने तुरत अपना पेटीकोट उठा कर अपनी गांड जगदीश के आगे कर दी। जगदीश ने आंगन में रखा जैतून का तेल उठाकर गरिमा की गोरी गांड के कशे छेद पर मला और अपना खड़ा लन्ड अंदर पेल दिया। बहुत दर्द हो रहा था गरिमा को पर क्या करे, पैसे के लिए ये करना ही था। जगदीश हरामखोर हराम के पैसो से गैर औरत की गांड मार रहा था। मोटा लंड गांड में जा ही नहीं रहा था, खड़े खड़े वो उसमें धांस रहा था, और गरिमा अपने दोनों हाथों से गांड को खोल कर चौड़ी करने का प्रयास भी कर रही थी। धीरे धीरे लन्ड ने गान्ड के रास्ते में अपनी जगह बनानी शुरु कर दी। आप यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | और गरिमा की मस्त सुगठित पिछवाडे के किले को खोलते हुए लन्ड गांड के साथ मेल कर रहा था। आधे घन्टे तक खड़े खड़े गांड मारने के बाद छ्न्नो को पेड़ पकड़ा कर वहीं आधी कुतिया स्टाइल में खड़ा करके पीछे से लन्ड चूत में टेलना शुरु कर दिया। हद्द से ज्यादा मजा अब गरिमा को अपनी सूखी पड़ी चूत में लंड के अकाल को खतम करके आ रहा था। पेलवाते हुए वो पेड के तने को पकड़ कर के कमर आगे पीछे हिलाती हुई लंड के उपर अपनी सख्त चूत के कड़े पकड को बनाए हुए थी। अरे भाई जगदीश बताता है, साली केला पेरने के मशीन की तरह से लंड का जूस निकाल देती है गरिमा। रुक रुक के स्पीड पकड़ते हुए जगदीश ने उसकी चूत मारनी जारी रखी। उसने अपनी कुतिया स्टाइल का बेस्ट पर्फार्मेंस हमेशा दिया। आधे घन्टे तक वो अपनी चूत मरवाती रही और फिर जब वो झड़ने वाली थी, जगदीश ने तेज झटकों से उसके चूत का फलूदा बना दिया। आखिर में गर्भवती होने से बचाने के लिए उसने अपना लन्ड निकाल के उसके गांड में डाल दिया और सारा लावा उगल दिया। तब से जगदीश डाकिये द्वारा गरिमा की गांड मारने की कहानी ह्मारे गांव में प्रसिद्ध है।
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