दोस्तों आज मै फिर से एक नई कहानी ले कर आया हूँ आशा करता हूँ मेरी पिछली कहानियो की तरह मेरी इस कहानी को भी प्यार देगे |
अर्नब बड़ी समस्या मे घिर गये. एक मामले मे उन्हे सइंस्पेक्टरेंड कर दिया गया और उनके खिलाफ जाँच भी बैठा दी गयी. इंस्पेक्टर साहब खुद जाँच कर रहे थे. इंस्पेक्टर भी बड़ा कमीना था, अर्नब को फँसाने की पूरी कोशिश कर रहा था. अर्नब की गांड फट गयी थी, नौकरी दाँव पर लगी थी. इंस्पेक्टर साहब अर्नब के पड़ोस मे ही रहते थे. काफ़ी समय से उनकी गंदी नज़र स्वेता पर थी. ये बात अर्नब भी जानता था, पर उसकी नौकरी अब इंस्पेक्टर के ही हाथो मे थी. इसलिए वो बहुत मजबूर हो गया था. होली एक दिन पहले अर्नब ने इंस्पेक्टर को विश किया,
अर्नब : हॅपी होली साहब !
इंस्पेक्टर : दारोगा जी, खाली मुँह से ही हॅपी होली विश करोगे, होली पर साथ मे रंग नही खेलोगे ? तुम तो कभी आओगे नही, कहो तो हम ही तुम्हारे घर आ जायें होली खेलने ?
अर्नब : अरे क्यों नही साहब, आप कल हमारे घर आमंत्रित हैं !
अर्नब के सामने और कोई चारा भी नही था, घर आने से मना करके वो अपनी नौकरी ख़तरे मे नही डाल सकता था क्योंकि उसकी नौकरी इस वक़्त पूरी तरह इंस्पेक्टर के हाथो मे थी.
इंस्पेक्टर : तुम्हारी बेटी स्वेता इस होली पे कही गयी तो नही है ?
अर्नब : नही साहब.
इंस्पेक्टर : ठीक है, तो अपनी बेटी से बोल देना कि इंस्पेक्टर अंकल ख़ास स्वेता के साथ ही होली खेलने आ रहे हैं.
शैलेंद्र चुप-चाप वहाँ से चला गया. और स्वेता को शाम को समझाया
अर्नब : स्वेता बेटा, कल इंस्पेक्टर साहब होली खेलने के लिए घर आ रहे हैं, तुम्हे ही उनके मेहमान नवाज़ी करनी है, ध्यान रखान कि वो किसी भी बात पे नाराज़ ना हो जाए, वरना मेरी और तुम्हारे होने वाले ससुर जी, दोनो की नौकरी चली जाएगी ! आप यह कहानी मस्ताराम.नेट पर पढ़ रहे है |
स्वेता : आप चिंता ना करिए पापा, मैं इंस्पेक्टर अंकल को शिकायत का एक भी मौका नही दूँगी.
अर्नब अपने घर दूसरे शहर गये हुए थे, होली के दिन इंस्पेक्टर अर्नब के घर आ धमका. घर के मेंबर्ज़ ने उसे विश किया पर उसकी निगाहें तो बस स्वेता को ही ढूँढ रही थी, आख़िरकार स्वेता उसके सामने आ ही गयी.
स्वेता : हॅपी होली अंकल !
इंस्पेक्टर ने तुरंत स्वेता के गालो पर गुलाल लगा दिया.
इंस्पेक्टर : स्वेता, तुम्हारी ये ड्रेस तो एक दम नयी लग रही है, जाओ कोई पुरानी टी-शर्ट पहन लो, ये खराब हो जाएगी.
स्वेता अंदर गयी और चेंज करके बाहर आई.
इंस्पेक्टर तुरंत स्वेता पर झपट पड़ा, आज वो होली के बहाने स्वेता को च्छुना चाहता था. पहला हमला उसने स्वेता के बालो पर किया, उसने ढेर सारे रंग स्वेता के बालो मे डाल दिया, फिर उसने स्वेता के गालो पर रंग लगाना शुरू किया. स्वेता कोई विरोध नही कर रही थी, आज तक इंस्पेक्टर की हिम्मत नही हुई थी स्वेता को हाथ लगाने की, पर आज वो किंग था, धीरे-धीरे उसकी हिम्मत बढ़ रही थी.
इंस्पेक्टर ने स्वेता को उठा कर रंग से भरे टब मे डाल दिया, जिससे स्वेता पूरी तरह गीली हो गयी. उसके निप्पल टी-शर्ट के उपर उभर आए, जिन्हे देख कर इंस्पेक्टर पागल होने लगा.
इंस्पेक्टर : स्वेता, अपने अंकल को गले लगा कर एक बार ठीक से होली तो विश कर दो !
इंस्पेक्टर ने बाहें फैला कर स्वेता को पास बुलाया, स्वेता आगे बढ़ी और इंस्पेक्टर की बाहो मे आ गयी. इंस्पेक्टर ने स्वेता को पकड़ कर झटके से अपनी ओर खींचा, स्वेता की बड़ी-बड़ी चूंचियाँ इंस्पेक्टर के सीने से जा टकराई. इंस्पेक्टर ने स्वेता को कस कर पकड़ लिया, कि कही स्वेता उससे अलग ना हो जाए. स्वेता की चूंची का इंस्पेक्टरर्श इंस्पेक्टर के शरीर मे करेंट दौड़ा गया, उसका लंड खड़ा हो गया. इंस्पेक्टर के हाथ बहकने लगे थे, उसके हाथ पीठ पर घूम रहे थे, फिर धीरे-धीरे उसके हाथ सरकते-सरकते स्वेता के बम्स पे आ गये. किसी तरह का कोई विरोध ना पाकर उसने हिम्मत करके एक बार बम्स को स्क्वीज़ कर दिया. स्वेता उसी तरह इंस्पेक्टर की बाहों मे खड़ी रही. इंस्पेक्टर ने रंग लगाने के बहाने स्वेता के पाजामे मे हाथ घुसा ही दिया. स्वेता ने अंदर पॅंटी पहनी नही थी, उसके नरम-मुलायम बम्स इंस्पेक्टर के हाथो मे आ गये. वो बड़े मज़े से उन्हे दबाने लगा. फिर इंस्पेक्टर घूम कर स्वेता के पीछे आ गया और उसके हाथ स्वेता के गले मे सरकते हुए उसके गिरहबान मे जाने लगे.
इंस्पेक्टर : होली है | आप यह कहानी मस्ताराम.नेट पर पढ़ रहे है | नारे लगाते हुए इंस्पेक्टर के हाथ स्वेता की चूंची पर पहुँच गये. उसने फ़ौरन अपनी हथेलियों मे भर लिया और भॉम्पू की तरह दबाने लगा.
इंस्पेक्टर : स्वेता, जब मैं कानपूर मे स्टूडेंट था, वहाँ पर कपड़ा फाड़ होली का बड़ा चलन था.
स्वेता : ये क्या होती है अंकल ?
इंस्पेक्टर : इस होली मे लोग एक दूसरे के कपड़े फाफ-फाड़ कर होली खेलते हैं.
कहते-कहते ही इंस्पेक्टर ने स्वेता का टॉप फाड़ डाला.
स्वेता अब केवल बनियान मे थी. इंस्पेक्टर ने उसका भी गिरहबान पकड़ कर फाड़ दिया, वो पूरी तरह ना फट के झूल गया. एक साइड से झाँकति उसके ब्रा ने इंस्पेक्टर को और उत्तेजित कर दिया. उसने स्वेता की चूंची पर रंग उदेलना शुरू कर दिया.
स्वेता के घरवाले ये सब देख रहे थे, स्वेता की मा से रहा ना गया तो उसने स्वेता को एक टी-शर्ट ला कर दे दी, जिसे स्वेता ने कमरे मे जा कर फटाफट पहन लिया.
पर इंस्पेक्टर अब आपे से बाहर हो चुका था. उसने हाथो मे खूब गाढ़ा रंग लगाया और स्वेता के मम्मो पे रख कर अपने हाथो की छाप बना दी. फिर टी-शर्ट मे नीचे से हाथ घुसा कर टी-शर्ट को उपर उठा दिया, जिससे रंग सने स्वेता के मम्मे सबके सामने आ गये. आप यह कहानी मस्ताराम.नेट पर पढ़ रहे है | ये सब हरकते इंस्पेक्टर स्वेता के घरवालो के सामने ही कर रहा था. लेकिन क्या मज़ाल की कोई भी इंस्पेक्टर को रोक ले. इंस्पेक्टर की मनमानी बढ़ती ही जा रही थी. उसने स्वेता की टी-शर्ट को फाड़ कर स्वेता की मा की ओर उच्छाल दिया. स्वेता के बाप के ऑर्डर के आगे स्वेता की मा भी कुछ नही कर सकती थी.
इंस्पेक्टर : स्वेता, अभी भी तुम्हारे उपर रंग ठीक से चढ़ा नही है, लाओ थोड़ा और रंग लगाता हूँ.
इंस्पेक्टर ने गुलाल लेकर स्वेता के बूबो पर लगाना शुरू कर दिया.
फिर इंस्पेक्टर ने स्वेता का को पाजामा भी फाड़ दिया, और अपने कपड़े भी उतार दिए, फिर स्वेता के बाप से पुछा,
इंस्पेक्टर : और दारोगा, आओ तुम भी स्वेता के साथ होली खेल लो !
अर्नब : अरे नही-नही साहब ! मैं ऐसे ही ठीक हूँ, आप खेलिए होली !
इंस्पेक्टर : ठीक है, मैं स्वेता के साथ बाथरूम नहाने जा रहा हूँ.
इंस्पेक्टर स्वेता को लेकर बाथरूम मे घुस गया. स्वेता अपना रंग छुड़ाने का प्रयास करने लगी.
पर कुछ ख़ास सफलता नही मिल रही थी क्योंकि इंस्पेक्टर ने बहुत पक्का रंग लगाया था.
इंस्पेक्टर : स्वेता, तुमसे नही छूटेगा, लाओ मैं हेल्प करता हूँ
इंस्पेक्टर ने स्वेता के पूरे बदन पर साबुन लगाया और इसी बहाने स्वेता के पूरे बदन को मसल्ने लगा. पूरे बदन मे साबुन लगाने के बाद उसने स्वेता को साबुन दिया और अपने लंड की ओर इशारा करके बोला,
इंस्पेक्टर : स्वेता, ज़रा इस पर साबुन लगा दो.
स्वेता ने साबुन लगा दिया, फिर इंस्पेक्टर ने स्वेता को घुमा दिया,
इंस्पेक्टर : स्वेता, थोड़ा आगे झुको, आज तुम्हारे अंदर तक सफाई कर देता हूँ !
स्वेता को पता था, क्या होने वाला है, वो चुप-चाप आगे की झुक गयी. इंस्पेक्टर ने अपना लंड स्वेता की चूत पर टीकाया और धक्का लगा दिया. साबुन से चिकना हुआ लंड बिना किसी रुकावट के जड़ तक स्वेता की चूत मे समा गया. स्वेता चीख उठी, क्योंकि इंस्पेक्टर का लंड उसके ससुर जी के लंड से ज़्यादा लंबा और मोटा था, जो उसकी चूत के गहराइयाँ नाप रहा था.
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