हेलो दोस्तो, मेरी ये कहानी एक कहानी नहीं, एक वास्तविक घटना है, एक आत्म कथा है, एक उपन्यास के रूप में पेश कर रही हूँ. इस कहानी में एक पात्र ने मुझे ये सचाई बताई है जिसको मैने लिखने की कोशिश की है. उम्मीद है आप पसंद करेंगे. मुझे अपने विचार ज़रूर लिखना.
मुझे अपनी ज़िंदगी की पहली याद है जब मैं पढ़ता भी था और काम भी करता था. मेरा नाम राजपाल है और मैं जनम से ही अनाथ हूँ. मेरी उमर तब १० साल की थी जब से मैं सरकारी स्कूल में पढ़ता था और रात को एक रेस्टोरेंट में सफाई करता था. मेरी वाकफियत शहर के बदमाश लोगों से थी और मैं एक नंबर का हरामी था. रेस्टोरेंट का मालिक अनुज नाम का एक बदमाश था और मुझे अक्सर उसके घर काम करने जाना पड़ता था.
मेरा कद ५.८ फीट का हो चुका था और शरीर भी ताकतवर था. एक दिन मैं मालिक के घर खाना देने गया तो ऐसा लगा कि घर में कोई नहीं है. मैं अभी पलटने ही लगा था कि मालकिन के कमरे से आवाज़ सुनाई पढ़ी तो मैं चौंक पढ़ा,” उफफफफफ्फ़ साले हरामी आराम से चोद….मैं कोई रंडी हूँ क्या? अनुज के सामने तो मुझे भाभी जी कहता है और अब देखो कैसे चोद रहे हो अपनी भाभी को? मादरचोद कितना बड़ा है तेरा लंड? तेरी बीवी खूब मज़े लेती होगी…मुझे तो थका दिया तुमने किशन, काश मेरे पति का भी लंड तेरे जैसा विशाल होता. बहनचोड़ फाड़ कर रख डाली है अपनी भाभी की चूत…..अब जल्दी से चोद डाल मुझे, राजपाल खाना ले कर आता ही होगा….मैं क्या करूँ मूह से अधिक भूखी तो मेरी चूत है….चोद मुझे किशन….ज़ोर से पेल….मैं झड़ी” मेरी ना चाहते हुए भी नज़र दरवाज़े के छेद से अंदर चली गयी. मालकिन का गोरा जिस्म पसीने से नाहया हुआ था. उसका दूधिया बदन मालिक के दोस्त के सामने कुतिया की तरह झुका हुआ था. कितनी प्यारी लग रही थी मालकिन! पीछे से मालिक का दोस्त उसको चोद रहा था और बगलों से हाथ डाल कर मालिकन की गोरी चुचि को बेरहमी से मसल रहा था. आप यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | मैं चुप चाप बाहर हॉल में बैठ कर वेट करने लगा और थोड़ी देर में मैने बेल बजा दी. मालकिन एक गाउन पहन कर आई और मैने उसको खाना पकड़ा दिया. मेरी नज़रें झुक गयी लेकिन मालकिन का जिस्म गाउन से बाहर निकलने को आतुर हो रहा था. खाना लेते हुए मालकिन का हाथ मुझ से स्पर्श कर गया और मुझे एक करेंट सा लगा. मालकिन की आँखें मेरे बदल को टटोल रही थी. वो मुझे वासनात्मक नज़रों से देख रही थी जैसे बिल्ली दूध के कटोरे को देखती है. मेरे सीने पर हाथ रख कर वो बोली,” राजपाल, तुम तो जवान हो गये हो और सुंदर भी. कभी क़िस्सी चीज़ की ज़रूरत हो तो मुझ से माग लेना. मैं जानती हूँ की जवानी में मर्द को बहुत मुश्किल आती है.” मैं जानता था कि वो मुझ से चुदवाने के लिए तड़प रही है, लेकिन मैं अपनी नौकरी को रिस्क में नहीं डाल सकता था.
वापिस आते हुए मेरे बदन में एक अजीब हुलचूल हो रही थी और मेरा लंड ना चाह कर भी अकड़ रहा था. मालकिन का नंगा जिस्म बार बार मेरी नज़र के सामने आ जाता. उस रात मैने मालकिन की याद में मूठ मारी | मालकिन की चुदाई फिर कभी लिखुगा |