आज मेरी सारी प्यास बुझा दो

प्रेषक: अमरदीप

मैं और रश्मि एक ही ऑफ़िस में काम करते थे। रश्मि ने कस्ट्मर केयर में अभी अभी नया ही जॉइन किया था और मैं अकाउंटेंट था। वो एक सरल स्वभाव की चुप सी रहने वाली लड़की थी। ऑफ़िस में किसी से ज्यादा बात नहीं करती थी। ऑफ़िस में वेतन का भुगतान मैं ही करता था इसलिये हमारी बात कभी कभी हो जाया करती थी। धीरे धीरे रश्मि मुझसे थोड़ा खुलने लगी और हम दोनों लन्च एक साथ करने लगे। लेकिन अभी वो चुप चुप सी ही रहती थी, मैं जब भी थोड़ा सा मजाक करता तो वो सिर्फ़ हल्का सा मुस्कुरा देती थी बस। मुझे लगा कि ज़रूर उसके मन में कुछ बात है जो वो किसी को नहीं बताती।

खैर समय बीतता चला गया। एक दिन वो मेरे पास आई और कहने लगी कि उसको कुछ रुपयों की ज़रूरत है इसलिये मैं उसे कुछ एडवांस दे दूँ और उसके वेतन में से काट लूँ। मैंने उसे एडवांस दे दिया। अगले दिन वो ऑफ़िस नहीं आई, मैंने भी सोचा कि शायद घर में कुछ काम होगा, लेकिन उसके दो दिन बाद भी वो ऑफ़िस नहीं आई, मैंने उसके घर पर फोन किया लेकिन वहाँ किसी ने भी फ़ोन नहीं उठाया। शाम को मैं अपनी बाइक से घर जा रहा था कि मुझे बस स्टाप पर कमिनी दिखाई दी, मैंने बाइक रोकी, रश्मि ने मुझे देखा और मेरे पास आ गई। मैंने उससे पूछा कि तुम ऑफ़िस क्यों नहीं आ रही? उसने कहा- घर पर कुछ काम था। मैंने उसको कहा- कहां जाना है। चलो मैं छोड़ देता हूँ। वो बाइक पर बैठ गई। रास्ते में मौसम कुछ खराब होने लगा तो मैंने बाइक एक रेस्तराँ के पास रोक दी और कहा- जब तक मौसम थोड़ा ठीक नहीं होता, तब तक रेस्तराँ में एक एक कप कॉफ़ी पी लेते हैं ! कॉफ़ी पीते पीते मैंने उसको पूछा- क्या बात है? उसने कहा- कुछ नहीं ! लेकिन मेरे थोड़ा कुरेदने पर वो रो पड़ी और बात बताने लगी। उसकी बात सुन कर मेरी आँखें भर आई, उसने बताया कि वो एक शादी शुदा औरत है और एक बच्ची की माँ है, शादी के एक साल बाद ही उसके पति की मौत हो गई। यह बच्ची पति की मौत के पाँच महीने बाद हुई। पति की मौत के बाद उसके ससुराल वाले उसको मारने पीटने लगे और उसकी बच्ची को भी किसी और की बताने लगे। एक बार उसके देवर ने भी उसके साथ बलात्कार करने की कोशिश की। तंग आकर वो ससुराल से अपने घर आ गई और अपने माँ बाप के साथ रहने लगी।

उसके पिता भी यह सदमा सह नहीं पाये और उनकी भी मौत हो गई। अब वो अपनी माँ और बेटी के साथ ही रहती है, इस समय उसकी माँ बीमार है और अस्पताल में है इसीलिये उसने एडवांस लिया था। उसकी दर्द भरी दास्तान सुन कर मैं भी काफ़ी भावुक हो गया था। मौसम अब ठीक हो गया था इस लिये हम दोनों कॉफ़ी पी कर वहां से चल दिये। रास्ते में मैंने रश्मि को अस्पताल छोडा, उसकी माँ के भी हालचाल पूछा और घर पर आ गया। उस रात मैं सो नहीं सका और सारी रात रश्मि और उसके परिवार के बारे में सोचता रहा। अगले दिन मैं ऑफ़िस पहुँचा, रश्मि आज ऑफ़िस आई हुई थी, मैंने उसे अपने केबिन में बुलाया और उसकी माँ का हाल पूछा। उसने कहा कि डाक्टर ने अभी कुछ दिन अस्पताल में रखने के लिये बोला है।

मैने उसको कहा कि अगर रुपयों की जरूरत हो तो मुझे बोल देना। शाम को मैं उसे अपनी बाइक पर ही अस्पताल ले गया, वहाँ डाक्टर ने कुछ दवाइयाँ मँगवाई जो मैंने अपने पैसों से ही खरीद दी। बाद में मैं ही उसे घर पर छोड़ने गया तो काफ़ी रात हो चुकी थी। उसने मुझे कहा- आज रात को आप यहीं पर रुक जायें। मैं भी घर पर अकेला रहता था तो मुझे कोई दिक्कत नहीं थी। उसने मुझे कहा- मैं खाना बनाती हूँ, तब तक आप फ़्रेश हो जायें। मैं फ़्रेश हो कर बाथरूम से बाहर आया तो देखा कि रश्मि ने भी अपने कपड़े बदल कर गाउन पहन लिया था। हम दोनों ने खाना खाया, खाना खाने के बाद मैं टीवी देखने लगा, रश्मि भी अपनी बेटी को सुला कर मेरे पास ही बैठ कर टीवी देखने लगी। टीवी देखते देखते कमिनी की आँख लग गई और वो मेरे कन्धे पर सर रख कर सो गई, धीरे धीरे उसका सर फ़िसल कर मेरी जांघों पर आ गया और उसका मुँह मेरे लन्ड के ऊपर था।

धीरे धीरे मेरा लन्ड खड़ा होने लगा मैं आपे से बाहर होने लगा था, लेकिन मैंने अपने आपको कन्ट्रोल किया, मेरे हाथ रश्मि की कमर पर आ गये, शायद रश्मि को भी मेरे लन्ड के कडकपन का अह्सास हो गया था लेकिन उसने अपना मुँह मेरे लन्ड पर से नहीं हटाया और ऊपर से ही मेरे लन्ड पर अपने होंठों को फ़ेरने लगी शायद उसके मन में भी सालों से सोई हुई अन्तर्वासना जाग गई थी मेरे भी हाथ उसके जिस्म पर चलने लगे। आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

उसने करवट ली और पीठ के बल मेरी जांघों पर सर रख कर लेट गई और वासना भरी आँखों से मेरी तरफ़ देखने लगी। मैने भी उसकी आँखो का इशारा पा कर उसके जलते हुए होन्ठों पर अपने होंठ रख दिये और उन्हें चूसने लगा और अपने हाथों से उसके स्तनों को दबाने लगा। उसके स्तन एकदम टाइट थे, शायद काफ़ी समय से उसके वक्ष किसी ने दबाये नहीं थे। मैंने धीरे धीरे उसके गाउन को ऊपर उठाया और उसकी टांगों पर हाथ फ़ेरने लगा।

क्या गोरी टांगें थी उसकी !

रश्मि भी अब उत्तेजना में भर गई थी और मुझे पागलों की तरह चूमने लगी। मैंने उसे खड़ा किया और उसका गाउन उतार दिया।

उफ़ !! क्या जिस्म था ! भगवान ने शायद उसको फ़ुर्सत से तराशा था। ब्रा और पेन्टी में वो एकदम एश्वर्या राय लग रही थी। उसने मेरे सारे कपड़े उतारे और मेरे लन्ड को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। मैने भी उसका सर दबा कर अपना पूरा लन्ड उसके मुँह में दे दिया। वो अपने दोनों हाथों से मेरे चूतड़ों को भींचने लगी।

उत्तेजना के कारण मेरा वीर्य उसके मुँह में ही झड़ गया। अब मैंने उसे अपनी बाहों में उठाया और बैडरूम में ले गया। बैड पर लिटा कर मैंने उसकी ब्रा और पेन्टी उतार दी।

उफ़ ! क्या चूत थी उसकी ! बिना बालों की और एक दम गुलाबी !

मैं उसकी चूत को चाटने लगा और अपने दोनों हाथों से उसके स्तन दबाने लगा। उसने मेरे सर को अपनी चूत पर जोर से दबा दिया और कहने लगी- और जोर से चाटो ! आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

मैंने अपनी जीभ उसकी चूत के अन्दर डाल दी और अन्दर ही गोलाई में घुमाने लगा, जिससे वो एकदम झड़ गई।

एक बार फ़िर से वो मेरे लन्ड को चूसने लगी जिससे मेरा लन्ड फ़िर से खड़ा हो गया। अब हम दोनों 69 की पोजिशन में आ गये और वो मेरे लन्ड को और मैं उसकी चूत को चाटने लगा। क्या गोल और भारी चूतड़ थे उसके ! एक दम गोरे !

काफ़ी देर तक चाटने के बाद मैने उसको उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया और अपना लन्ड उसकी चूत के दरवाजे रख कर धीरे से एक धक्का दिया। काफ़ी दिनों से उसकी चुदाई नहीं हुई थी इसलिये उसकी चूत काफ़ी टाइट थी। मैने धक्का दिया तो मेरा लन्ड उसकी चूत में थोड़ा सा घुस गया। उसको भी काफ़ी दर्द हुआ लेकिन उसने कहा- निकालना मत, पूरा घुसा दो।

मैंने जोर से एक धक्का लगाया और अपना पूरा लन्ड उसकी चूत में घुसा दिया। रश्मि को काफ़ी दर्द हुआ लेकिन उसने उस दर्द को अपने दांतों से अपने होंठों को दबा कर सह लिया। उसकी आँखों से आन्सू निकलने लगे। धीरे धीरे उसको भी मजा आने लगा और वो भी अपने चूतड़ों को उठा उठा कर मेरा लन्ड अपनी चूत के अन्दर लेने लगी। उसने अपनी दोनों टांगों से मुझे कस लिया और अपने हाथों से मेरे चूतड़ों को खींचने लगी। पूरे कमरे में धप-धप, घचा घच की आवाजें आ रही थी।

मेरे भी धक्के बढ़ते जा रहे थे और मैं पागलों की तरह उसको पूरी जान लगा कर उसको चोद रहा था, उसके बूब्स को चूस रहा था। रश्मि के मुँह से सी……॥सी……॥ हाय्…॥ आह्…॥ की आवाजें निकल रही थी।

कुछ देर उसे चोदने के बाद मैंने उसे अपने ऊपर लिया और नीचे से अपना लन्ड उसकी चूत में घुसा दिया थोड़े से दर्द के साथ रश्मि ने मेरा लन्ड अपनी चूत में ले लिया और ऊपर से धक्के लगाने लगी। मैं उसके चूतड़ों को अपने हाथों से भींचने लगा और जोर जोर से धक्के लगाने लगा। उत्तेजना के कारण उसने अपने नाखून मेरे सीने पर गड़ा दिये। हम दोनों की आँखों में वासना के लाल लाल डोरे नज़र आ रहे थे।

रश्मि कहने लगी- अमर मैं बहुत सालों से प्यासी हूँ, आज मेरी सारी प्यास बुझा दो !

हम दोनों के मुँह से सी……सी……आह…… आह्… की आवाजें निकल रही थी। रश्मि जोर से आह्…। आह्…॥ की आवाज करती हुई झड़ गई लेकिन मेरा जोश कम नहीं हुआ था और मै उसे और चोदना चाहता था।

मैने उसे अपने नीचे लिया और जोर जोर से धक्के लगाने लगा। करीब दस मिनट लगातार धक्के लगाने के बाद मेरा लन्ड टाइट होने लगा। मैने रश्मि को कहा- मै अब झडने वाला हूँ! उसने कहा- चूत में ही झड़ जाओ !

मेरे धक्के तेज होने लगे और मैं झड़ने लगा और अपना सारा वीर्य रश्मि की चूत में छोड़ दिया। रश्मि के चेहरे पर सन्तुष्टि झलक रही थी। उसने जोर से मेरे होंठों को चूमा और मेरे मुँह मे अपनी जीभ डाल दी। मै भी उसकी जीभ को चूसने लगा और वो मेरी जीभ को चूसने लगी। लम्बी चुदाई के बाद हम दोनों काफ़ी थक चुके थे इसलिये एक दूसरे के आगोश में नंगे ही सो गये।

अगले दिन हम सो कर उठे तो सुबह के पांच बज चुके थे। रश्मि की बेटी अभी सो रही थी। रश्मि ने चाय के लिये पूछा तो मैने हाँ कर दी। रश्मि नंगे ही रसोई घर में चली गई। उसके ऊपर नीचे उठते हुए चूतड़ों ने मेरे लन्ड को फिर खडा कर दिया, मैं पीछे से रसोई मे गया और रश्मि को पीछे से पकड़ लिया। मैने अपने हाथों से उसकी दोनों चूचियों को पकड़ लिया और मेरा लन्ड उसकी गान्ड की घाटियों मे सैर करने लगा। मैने उसकी चूत को धीरे से दबा दिया तो उसके मुँह से हल्की सी सिसकारी निकल गई।

मैं नीचे बैठ गया और उसके चूतड़ों पर धीरे धीरे अपने दाँत गड़ाने लगा। रश्मि भी अब उत्तेजित हो चुकी थी।

मैं अपनी उंगली से उसकी गान्ड के छेद को सहलाने लगा तो रश्मि बोली- साहब के ख्याल नेक तो हैं ?

मैने कहा- रश्मि तुम्हारी गान्ड मुझे बहुत अच्छी लगती है और मुझे आज तुम्हारी गान्ड भी मारनी है !

रश्मि हँस पड़ी और बोली- अमर मैने अपना सारा शरीर तुम्हें सौंप दिया है तो ये गान्ड भी तुम्हारी है !

ऐसा कह कर रश्मि आगे की तरफ़ झुक गई उसके गोल गोल चूतड मेरी तरफ़ उभर गये और चूत और गान्ड के छेद बाहर झांकने लगे। मैने उसकी गान्ड के छेद पर अपना थूक लगाया और लन्ड का टोपा उस पर रखा तो रश्मि ने कहा- अमर, मैने अभी तक गान्ड नहीं मरवाई है, ज़रा धीरे धीरे करना !

मैंने हल्का सा धक्का लगाया तो मेरा लन्ड का टोपा उसके अन्दर घुस गया। रश्मि ने हल्की सी सिसकारी भरी। मैने फिर से थोड़ा ज़ोर से धक्का लगाया तो मेरा आधा लन्ड उसकी गान्ड में घुस गया। रश्मि बोली- धीरे…… अमर………!!

मै थोड़ा रुक गया। जब रश्मि थोड़ी सामान्य हुई तो मैने अचानक ज़ोर से धक्का लगाया, जिससे मेरा सारा लन्ड रश्मि की गान्ड में समां गया। रश्मि इस धक्के के लिये तैयार नहीं थी, उसके मुँह से ज़ोर से आवाज़ निकली जिसे मैने उसके मुँह पर हाथ रख कर दबा दिया। आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

थोड़ी देर बाद रश्मि सामान्य हुई तो मैने धक्के लगाने शुरु किये। अब रश्मि को भी मज़ा आने लगा था और अब वो भी साथ देने लगी और अपने चूतड़ों को पीछे की तरफ़ धकलने लगी। मैने भी उसकी चूचियों को पकड़ा और तेजी से धक्के लगाने लगा। मैने उसकी एक टांग को रसोई की स्लैब रखा जिससे उसकी गान्ड का छेद थोड़ा खुल गया। अब मेरे धक्को में काफ़ी तेजी आ गई थी और मैं पागलों की तरह उसकी गान्ड को चोद रहा था।

रश्मि के मुँह से भी कामुक आवाज़ें निकल रही थी जो मेरी वासना को और भड़का रही थी मेरा लन्ड एक दम टाइट हो चुका था और रश्मि की गान्ड का बाजा बजा रहा था। मेरी जांघ रश्मि के चूतड़ों से टकरा कर रसोई के अन्दर तबला बजा रही थी।

आह्……॥ आह्……॥ सी………। सी……॥ की आवाजों से पूरी रसोई गूँज रही थी।

रश्मि…………॥ मेरी जान्……॥ कहते हुए मैं उसकी गान्ड में ही झड़ गया मेरे लन्ड के लावे ने रश्मि की गान्ड की बन्जर ज़मीन को फिर से हरा भरा कर दिया। रश्मि की गान्ड मारने के बाद मुझे भी अजीब सी सन्तुष्टि मिल रही थी और मैं एक दम हल्का महसूस कर रहा था।

उसके बाद हमने चाय पी और अपने अपने कपड़े पहन लिये। तब तक रश्मि की बेटी भी उठ चुकी थी, रश्मि ने उसको स्कूल के लिये तैयार किया और घर के बाहर उसको स्कूल बस में बैठा कर वापस आ गई। मैने रश्मि से कहा- अब हम भी तैयार हो जाते है, मैं तुम्हें अस्पताल छोड़ते हुए ऑफ़िस चला जाउँगा।

रश्मि अपने कपड़े ले कर बाथरूम की तरफ़ चल दी। बाथरूम में जा कर उसने अपने कपड़े उतार दिये और नंगी हो गई। उसने बाथरूम का दरवाज़ा बन्द नहीं किया और मेरे सामने ही नहाने लगी। उसको नहाते हुए देख कर मेरा लन्ड फिर से खड़ा हो गया और मैं भी अपने कपड़े उतार कर बाथरूम में घुस गया। रश्मि मुझे देख कर मुस्कुरा दी, शायद वो भी यही चाहती थी।

शावर के नीचे हम दोनों नहाने लगे। धीरे धीरे हम दोनों के हाथ एक दूसरे के जिस्मों पर चलने लगे और आग एक बार फिर भड़क गई। मैं रश्मि की चूचियों को चूसने लगा और उसके चूतड़ों को भींचने लगा। रश्मि के हाथ भी मेरी गान्ड पर चलने लगे। अब उसने मेरा लन्ड अपने मुँह में ले लिया और उसे चूसने लगी। ऊपर से पानी हमारे जिस्मों पर गिर रहा था जिस के कारण हमारी वासना और भड़क रही थी। रश्मि मेरे लन्ड को मुँह में भर कर जबर्दस्त तरीके से चूस रही थी, उसकी जीभ का मेरे लन्ड के टोपे पर घर्षण मुझे अजीब सी उत्तेजना दे रहा था। आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

अब हम 69 की पोजीशन में आ गये और एक दूसरे को चूसने लगे। मैंने रश्मि की गान्ड में अपनी उन्गली दे दी और उसकी चूत को चाटने लगा। जवाब में रश्मि ने भी मेरी गान्ड में उन्गली दे दी और मेरे लन्ड को बेहताशा चूसने लगी। थोड़ी देर के बाद मैंने रश्मि को अपने ऊपर लिया और नीचे से अपना लन्ड उसकी चूत में डाल दिया। रश्मि अब मेरे लन्ड की सवारी करने लगी और मेरे होंठों को चूसने लगी। होंठ चूसते हुए उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में दे दी और मैं उसकी जीभ को चूसने लगा और उसके चूतड़ों को पकड़ कर ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने लगा।

थोड़ी देर के बाद मैंने उसे अपने नीचे लिया और अपना लन्ड उसकी चूत में डाल कर ज़ोर ज़ोर उसे चोदने लगा। हाय……… मेरे अमर…………… चोद दो मुझे……… सी…………सी……… की आवाज़ रश्मि के मुंह से निकल रही थी और मुझे और भड़का रही थी। मेरे धक्के तेज़ होते जा रहे थे।

आह…… आह… की आवाज से मैं रश्मि की चूत में ही झड़ने लगा और हम दोनों के जिस्म एक दूसरे में समाने की कोशिश करने लगे। थोड़ी देर हम दोनों उसी अवस्था में पड़े रहे, फिर दोनों एक साथ नहाये। नहाने के बाद मैंने रश्मि को अपनी गोद में उठाया और बाहर आ गया। फिर हम तैयार होकर नाश्ता करने लगे। आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

नाश्ता करते हुए मैंने रश्मि को कहा- रश्मि मुझसे शादी करोगी?

मेरा अचानक किया हुआ सवाल सुन कर रश्मि दो मिनट के लिये खामोश हो गई और उसकी आँखें भर आई। उसने सवाल भरी नज़रों से मुझे देखा, शायद उसकी नज़रें पूछ रही थी कि मैं झूठ तो नहीं बोल रहा !

मैने उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया और फिर से वोही सवाल किया जवाब में वो मेरे सीने से लग कर रो पड़ी।

फिर हम अस्पताल गये और मैंने रश्मि की माँ से रश्मि का हाथ माँगा। रश्मि की माँ इसके लिये सहर्ष तैयार हो गई। फिर रश्मि की माँ के अस्पताल से आने के बाद रश्मि और मैने शादी कर ली। आज हमारे दो बच्चे हैं और हम सब बहुत खुश हैं।

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