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दोस्त की चुदक्कड माँ और बहन-12

फिर मैंने जैसे ही दरवाज़ा खोला तो मैं माया को देखकर एक पल के लिए घबरा सा गया था कि पता नहीं कहीं इन्होंने कुछ सुन या देख तो नहीं लिया?
पर दरवाजा खुलते ही उन्होंने जो बोला, उससे मेरा डर एक पल में ही छू हो गया क्योंकि दरवाज़ा खुलते ही माया बोली- अरे राहुल, तुम अभी तक तैयार होकर गए नहीं? क्या इरादा ही नहीं जाने का?
मैं बोला- अरे नहीं ऐसा नहीं है, मेरी कुछ चीज़ें नहीं मिल रही थी तो उन्हें खोजने में समय लग गया… खैर अब सब मिल चुका है।
तो वो बोली- यह क्या? ऐसे ही जायेगा क्या? तुम्हारी माँ देखेगी तो बोलेगी मेरा लड़का आवारा हो गया है।
तो मैंने प्रश्नवाचक निगाहों से उनकी ओर देखा तो वो मेरा हाथ पकड़कर कमरे में लगे बड़े शीशे की ओर लाई और खुद कंघा उठा कर मेरे बाल सही करने लगी।
तो मैंने बोला- आप रहने दें, मैं कर लूंगा। और रूचि अभी बाथरूम से निकलेगी तो यह देखकर मुझे चिढ़ाएगी जो मुझे अच्छा नहीं लगेगा।
तो वो मेरे गालों पर चुम्बन करके कंघे को मुझे देती हुई बाथरूम की ओर चल दी, और जैसे ही दरवाज़े के पास पहुंची कि रूचि खुद ही बाहर आ गई।
और उसे देखते ही माया ने कहा- अरे मेरा बच्चा, तुम्हारी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है… क्या डॉक्टर के पास चलें?
तो रूचि बोली- नहीं माँ, मैंने अभी दवाई ली है, देखते हैं अगर मुझे अब लगता है कि अभी सही नहीं हुआ तो मैं बता दूंगी।
फिर मैं भी बोला- अरे आंटी, बेकार की टेंशन मत लो, होता है!
और मैं रूचि की चुहुल लेते हुए बोला- अभी इसका पेट साफ़ हो रहा है, आप देखती जाओ, इन दो दिनों में इसकी सारी शिकायत दूर हो जाएगी।
तो आंटी बोली- ऐसे कैसे?
तो मैं बोला- अरे मैं हूँ ना… इसे इतना खुश रखूँगा कि इसकी बिमारी दूर हो जायेगी। डॉक्टर भी बोलते है कि हंसने से कई बिमारियों का इलाज़ अपने आप हो जाता है। तो वो भी मेरी बात से सहमत होते हुए हम्म बोली।
फिर मैंने कंघा रखा और प्लान के मुताबिक मैंने आंटी से कहा- अच्छा, मैं अब चल रहा हूँ। और रूचि तुम ठीक समय पर फ़ोन कर देना।
‘ठीक है…’
पर यह साला क्या? बोल तो मैं रूचि से रहा था, पर मेरी नज़रें रूचि के चेहरे की ओर न होकर उसके चूचों पर ही टिकी थी, क्या मस्त लग रही थी यार… शायद क्या बिल्कुल यक़ीनन… उसने टॉप के नीचे कुछ न पहना था जिससे उसके संतरे संतरी रंग के ऊपर से ही नज़र आ रहे थे जिसे माया और रूचि दोनों ही जान गई थी कि मेरी निगाह किधर है।
माया ने मेरा ध्यान तोड़ने के लिए ‘अच्छा अब जल्दी जा, नहीं तो आएगा भी देर में…’ और रूचि इतना झेंप गई थी कि पूछो ही मत! दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
इतना सुनते ही वो चुपचाप वहाँ से अपने बेड पर आराम करने का बोल कर लेट गई और मैं वहाँ से बाहर आने के लिए चल दिया।
साथ ही साथ माया भी मुझे छोड़ने के लिए बाहर आते समय पहले रूचि के दरवाज़े को बाहर से बंद करते हुए बोली- बेटा, तू आराम कर ले थोड़ी देर, अभी तुमने दवाई ली है, मैं दरवाज़ा बाहर से बंद कर लेती हूँ।
बोलते हुए दरवाज़ा बंद किया और इधर मैं भी मन ही मन खुश था कि आंटी को तो पता ही नहीं चल पाया कि रूचि ने आज मेरी ही टॉनिक पी है जिसके बाद अच्छा आराम मिलता है।
तभी आंटी ने मेरा हाथ पकड़ा और किचेन की ओर चल दी, जब तक मैं कुछ समझ पाता, उसके पहले ही उन्होंने फ़्रिज़ से बोतल निकाली और मेरे हाथों में देते हुए बोली- अब विनोद अगर बीच में उठता है तो तुम बोलना कि मैं पानी पीने आया था।
तो मैं बोला- फिर आप?
तो उन्होंने कुछ बर्तन उठाये और सिंक में डाल दिए और धीमा सा नल का पानी चालू कर दिया।
मैं उनसे बोला- जान क्या इरादा है? जाने का मन तो मेरा भी नहीं है, पर जाना पड़ेगा और वैसे भी अभी थोड़ी देर में ही फिर आता हूँ। वो बोली- वो मुझे पता है, पर कितनी देर हो गई कम से कम एक पप्पी ही ले ले !
कहते हुए उन्होंने मेरे होठों को अपने होठों में भर लिया और किसी प्यासे पथिक की तरह मेरे होठों के रस से अपनी प्यास बुझाने लगी।
और मैंने भी प्रतिउत्तर मैं अपने एक हाथ से उनकी पीठ सहलाना और दूसरे हाथ से उनके एक चुच्चे की सेवा चालू कर दी और मन में विचार करने लगा कि माँ और बेटी दोनों मिलकर मेरे लिए इस घर को तो स्वर्ग ही बना देंगी आने वाले दिनों में।
इतना सोचना था कि नहीं मेरे लौड़े ने भी मेरे विचार को समर्थन देते हुए खुद खड़ा होकर माया की नाभि में हलचल मचा दी जिसे माया ने महसूस करते ही मेरे जींस के ऊपर से मेरे लौड़े को अपनी मुट्ठी में भर लिया और उसे दबाते हुए बोलने लगी- क्यों राहुल, अभी रूम में तुम्हारी नज़र किधर थी?
मैं बोला- किधर?
वो बोली- मैंने देखा था जब तुम रूचि के स्तनों को देख रहे थे।
तो मैं बोला- अरे ऐसा नहीं है…
तो बोली- अच्छा ही है अगर ऐसा न हो तो !
मैंने उनके विचारों को समझते हुए उन्हें कसके बाँहों में जकड़ लिया मानो उन्हें तो मन में गरिया ही रहा था पर फिर भी मैंने उनके होठों को चूसते हुए बोला- जब इतनी हॉट माशूका हो तो इधर उधर क्या ताड़ना, और वैसे भी तुमने मेरे लिए अनछुई कली का इंतज़ाम करने का वादा किया है, तो मुझे और क्या चाहिए।
तो वो बोली- उसकी फ़िक्र मत करो पर मेरी बेटी का दिल मत तोड़ना अगर पसंद हो तो जिंदगी भर के लिए ही पसंद करना।
मैंने उनके माथे को चूमा और स्तनों को भींचते हुए बोला- अच्छा, अब मैं चल रहा हूँ, वरना मैं शाम को जल्दी नहीं आ पाऊँगा।
कहते हुए मैं उनके घर से चल दिया और आंटी भी मुस्कुराते हुए बोली- चल अब जल्दी जा, और आराम से जाना और तेरी माँ को बिल्कुल भी अहसास न होने देना।
मैं उनके घर से जैसे तैसे निकला और रास्ते भर अपने खड़े लण्ड को दिलासा देता रहा कि ‘प्यारे अभी परेशान न कर, दुःख रहा है, तू बैठ जा, तेरा जुगाड़ जल्दी ही होगा…’ क्योंकि माया की हरकत ने मेरे लौड़े को तन्ना कर रख दिया था, उसके हाथों के स्पर्श से मेरा लौड़ा इतना झन्ना गया था कि बैठने का नाम ही नहीं ले रहा था।

जैसे तैसे मैं घर पहुँचा, दरवाज़ा खटखटाया तो माँ ने ही दरवाज़ा खोला और मुझे देखते ही बोली- अरे राहुल बेटा, तुम आ गए।
मैंने बोला- हाँ माँ!
तो वो बोली- तुम इतनी देर से क्यों आये?
तो मैं बोला- आ तो जल्दी ही रहा था पर वो लोग अभी तक नहीं आये और फ़ोन भी नहीं लग रहा था तो आंटी बोली शाम तक चले जाना। तो मैं अब आ गया।
फिर माँ बोली- वो लोग आ गए?
मैं बोला- नहीं, अभी तक तो नहीं आये थे, आ ही जायेंगे।
वो बोली- अच्छा जाओ मुँह हाथ धो लो, मैं चाय बनाती हूँ।
बस फिर क्या था, मैं तुरंत ही गया और सबसे पहले जींस को उतार कर फेंका और रूम अंदर से लॉक करके अपने लौड़े को हाथ से हिलाते हुए बाथरूम की ओर चल दिया, इतना भी सब्र नहीं रह गया था कि मैं अपने आप पर काबू रख पाता और बहुत तेज़ी के साथ सड़का मारने लगा।
आँखें बंद होते ही मेरे सामने रूचि का बदन तैरने लगा और कानो में उसकी ‘अह्ह ह्ह्ह शिइई इइह…’ की मंद ध्वनि गूंजने लगी।
मैं इतना बदहवास सा हो गया था कि मुझे होश ही नहीं था की मैं सड़का लगा रहा हूँ या उसकी चूत पेल रहा हूँ।
खैर जो भी हो, आखिर मज़ा तो मिल ही रहा था और देखते ही देखते बहुत तेज़ी के साथ मेरे हाथों की रफ़्तार स्वतः ही धीमी पड़ने लगी और मेरा वीर्य गिरने लगा। मैं सोचने लगा ‘जब इन दो पलों में इतना मज़ा आया है, तो मैं उसे जब चोदूंगा तो कितना मज़ा आएगा!’
‘पर कैसे चोदूँ’ उसे यही उधेड़बुन मेरे अंतर्मन को और मेरी कामवासना धधकाये जा रही थी कि कैसे करूँगा मैं रूचि के साथ… अब तो घर में माया के साथ साथ विनोद भी है।
‘क्या करूँ जो मुझे रूचि के साथ हसीं पल बिताने का मौका मिल जाये!’
इसी के साथ मैंने मुँह पर पानी की ठंडी छींटे मारे और लोअर पहनकर बाहर आ गया, पर मन मेरा रूचि की ओर ही लगा था, इन दो दिनों में मुझे हर हाल में उसे पाना ही होगा कैसे भी करके!
तब तक माँ ने आकर चाय सोफे के पास पड़ी मेज़ पर रख दी थी जिसे मैं नहीं जान पाया था, मेरी इस उलझन की अवस्था को देखते हुए माँ ने कहा- क्या हुआ राहुल, तुमने चाय पी नहीं?
मैं बोला- कुछ नहीं माँ, बस यही सोच रहा हूँ कि मेरा दोस्त घर पहुँचा या नहीं क्योंकि आंटी को बच्चों की तरह डर लगता है।
माँ बोली- होता है किसी किसी के साथ ऐसा…
मैं बोला- माँ, बस उन्हें होरर फिल्म की आवाज़ सुना दो, फिर देखो !
माँ बोली- अच्छा ऐसा क्या हुआ? दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
तो मैं बोला- माँ, अभी कल ही मैं टीवी देख रहा था कि अचानक सोनी चैनल लग गया और उस वक़्त उसमें ‘आहट’ आ रहा था तो उसमे डरावनी आवाज़ सुनते ही आंटी पागल हो उठी उन्होंने झट से टीवी बंद कर दिया और मुझसे बोली- अब रात को मेरे कमरे में ही सोना, नहीं तो मुझे डर लगेगा तो पता नहीं क्या होगा।
उस पर मैं बोला- अच्छा आंटी कोई बात नहीं!
और फिर सोते समय जान बूझकर वही सीन उन्हें दिलाने लगा मस्ती लेने के लिए… आंटी बाथरूम जा ही रही थी कि फिर से मारे डर के दौड़ के मेरे पास आने लगी और उनका कपड़ा पता नहीं कैसे और कहाँ फंसा तो वो गिर पड़ी।
तो माँ ने मुझे डांटा कि ऐसा नहीं करते हैं।
हम चाय पीने लगे और चाय ख़त्म होते ही माँ कप लेकर किचन की ओर जाने लगी, तभी उनका फ़ोन बजा और मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई।
माँ ने फ़ोन उठाया और चहक कर बोली- अरे रूचि, अभी राहुल तुम्हारे ही घर की बात कर रहा था।
फिर दूसरी तरफ की बात सुनने लगी और कुछ देर बाद फिर बोली- हाँ, वो यहीं है, अभी आया है कुछ देर पहले…
‘क्यों क्या हुआ?’ कहकर फिर शांत हो गई, उधर की बात सुनने लगी और क्या बताऊँ यारो, मेरी फटी पड़ी थी क्योंकि अबकी बार सब नाटक हो रहा था फिर तभी मैंने सुना, माँ बोली- अरे कैसे?
फिर शांत हो कर कुछ देर बाद बोली- अब कैसे और कब तक आओगी?
तो वो जो भी बोली हो फिर माँ बोली- अरे कोई नहीं, परेशान मत हो, मैं राहुल को भेज दूंगी, तुम लोग अपना ध्यान रखना।
मैं तो इतना सुनते ही मन ही मन बहुत खुश हो गया कि चलो अब तो ऐश ही ऐश होने वाली है।
तभी माँ फ़ोन रखकर किचन में गई, मैं उनके पीछे पीछे गया, पूछने लगा- माँ क्या हुआ? रूचि घर क्यों बुला रही थी?
तो माँ ने जो बोला उसे सुनकर मैं तो हक्का बक्का सा हो गया, ‘साली बहुत ही चालू लौंडिया थी क्योंकि प्लान दो दिन का था पर अब 5 दिन का हो चुका था!
वो कैसे?
तो अब सुनें, माँ ने बोला कि उसकी तबीयत कुछ खराब हो गई थी जिसकी वजह से उनकी ट्रेन छूट गई थी और वापसी के लिए उन्हें रिजर्वेशन भी नहीं मिल पा रहा है। जैसे तैसे उनका रिजर्वेशन तो हो गया पर पांच दिन के बाद का मिला है। और हाँ, वो बोली है कि माँ से पैसे लेकर विनोद के अकाउंट में ट्रांसफर कर दें कल, क्योंकि उनके पास पैसे भी कम हो गए हैं।
तो मैं बोला- ठीक है, पर अब मैं क्या करूँ?
तो वो बोली- करना क्या है, अपना बैग उठा और आंटी के पास जा और हाँ अब उन्हें डराना नहीं, नहीं तो मैं तुझे मारूँगी और उनसे पूछूँगी कि कोई शरारत तो नहीं की तूने फिर से… इसलिए अब अच्छे बच्चे की तरह रहना 5 से 6 दिन… अब जा जल्दी, देर न कर !
तो मैं बोला- ठीक है माँ!
और मैं ख़ुशी में झूमता हुआ अपने दूसरे कपड़ों को निकाल कर रखने लगा और अपनी उस चड्डी को जो की रूचि की चूत रस भीगी हुई थी, उसे बतौर निशानी मैंने अपनी ड्रॉर में रख दी जिसकी चाभी सिर्फ मेरे ही पास थी, उसे मेरे सिवा कोई और इस्तेमाल नहीं करता था।
फिर बैग पैक करके मैं उनके घर की ओर चल दिया पर मैं रूचि को चोदना चाहता था इसलिए मैं प्लान बना रहा था कि कैसे हमें मौका मिल सकता है।
तभी मेरे दिमाग में विचार आया कि क्यों न माया से इस विषय पर बात की जाये।
फिर मैं यही विचार मन में लिए उनके घर की बजाये, पास में ही एक पार्क था, तो मैं वहाँ चल दिया, और दिमाग लगाने लगा कि कैसे स्थिति को अनुरूप किया जा सके। फिर यही सोचते सोचते पार्क में बैठा ही था कि माया का फोन आया- क्यों राजा बाबू, माँ ने अभी परमिशन नहीं दी क्या?

मैं- नहीं, उन्होंने तो भेज दिया है।
‘फिर तू अभी तक आया क्यों नहीं?’ दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
तो मैं बोला- अरे, ऐसा नहीं है, मैं थोड़ा परेशान हूँ, इसी लिए पार्क में बैठा हूँ।
उन्होंने मुझसे मेरी परेशानी के बारे में पूछा तो मैंने उन्हें कहा- आप मदद तो कर सकती हो, पर कैसे… यह सोच रहा हूँ।
तो वो बोली- अरे बात तो बता पहले, ये क्या पहेलियाँ बुझा रहा है?
तो मैंने उन्हें अपने मन की अन्तर्पीड़ा बताई तो वो बोली- पागल, पहले क्यों नहीं बताया? यह तो मैं भी चाहती थी।
मैं बोला- फिर आपके पास कोई प्लान है?
वो बोली- नहीं, पर तुम कोई जुगाड़ सोचो!
मैं बोला- अच्छा, फिर मैं ही कुछ सोचता हूँ, बस आप मेरा साथ देना, बाकी का मैं खुद ही देख लूंगा।
तो वो बोली- बिल्कुल मेरे राजा, पर थोड़ा जल्दी से सोच और घर आ जा!
मैं पुनः सोच ही रहा था कि पास बैठे कुछ बच्चों के गानों की आवाज़ आई, मैंने देखा लो वहाँ कुछ बच्चे ग्रुप में बट कर अन्ताक्षरी खेल रहे हैं और हारने पर एक दूसरे को कुछ न कुछ दे रहे थे जैसे कि कभी कोई टॉफी तो कभी चॉकलेट, कभी लोलीपोप!
तो मेरे दिमाग में तुरंत यह बात बैठ गई और मैंने सोचा कि क्यों न इस खेल को बड़े स्तर पर खेला जाये?
और प्लान बनाते ही बनाते मैं मन ही मन चहक सा उठा क्योंकि इस प्लान से मुझे ऐसी आशा की किरण दिखने लगी थी जिसकी परिकल्पना करना हर किसी के बस की बात नहीं थी, यहाँ तक मैंने भी कुछ देर पहले ऐसा कुछ भी नहीं सोचा था पर मुझे प्रतीत हो गया था कि अब मेरे कार्य में किसी भी प्रकार की कोई बाधा नहीं आएगी।
बस अब रूचि को तैयार करना था साथ देने के लिए तो मैंने तुरंत ही अपना फ़ोन निकाला और रूचि को कॉल किया। जैसे जैसे उधर फोन पर घंटी बज रही थी, ठीक वैसे ही वैसे मेरे दिल की घंटी यानि धड़कन…
खैर कुछ देर बाद फ़ोन उठा पर मैं निराश हो गया क्योंकि उधर से फ़ोन रूचि ने नहीं बल्कि मेरे दोस्त विनोद ने उठाया था। जैसे उसकी आवाज़ मेरे कान में पड़ी, मैं तो इतना हड़बड़ा गया था, जैसे मेरे तोते ही उड़ गए हों। फिर उधर से तीन चार बार ‘हेलो हेलो’ सुनने के बाद मैं ऐसे बोला जैसे उल्टा चोर कोतवाल को डांटे… मैं बोला- क्यों बे, फोन की जब बेटरी चार्ज नहीं कर सकते तो रखता क्यों है, कब से तेरा फोन मिला रहा हूँ!
अब आप सोच रहे होंगे ऐसा मैंने क्यों कहा, तो आपको बता दूँ कि हर भाई को अपनी बहन की चिंता होती है और मेरे अचानक से उसके फोन पर फोन करने उसके मन पर कई तरह के प्रश्न उठ सकते थे क्योंकि ऐसा पहली बार था जब मैंने रूचि को अपने फोन से काल की थी। तो वो बोला- बेवकूफ हो का बे? मेरा फोन तो ओन है।
मैंने बोला- फिर झूट बोले?
तो बोला- सच यार… अभी रुक और उसने अपने फोन से कॉल की ओर देखा मेरा नंबर वेटिंग पर आ रहा है।
मैंने बोला- हम्म आ तो रहा है पर मिल क्यों नहीं रहा था?
वो बोला- होगा नेटवर्क का कोई इशू…
मैं बोला- चल छोड़, यह बता मैं आ रहा था तो सोच रहा हूँ बाहर से कुछ ले आऊँ खाने पीने के लिए?
वो बोला- रहने दे यार, माँ खाना बना ही रही है।
तब मुझे कुछ आवाज़ सुनाई दी जो रूचि की थी पर मुझे यह तब मालूम पड़ा जब उसने खुद विनोद से फोन लेकर हेलो कहा, बोली- अरे आप हो कहाँ? आये नहीं अभी तक?
मैंने बोला- पास में विनोद हो तो थोड़ा दूर हटकर बात करो, जरूरी बात करनी है।
वो बोली- अच्छा!
और फिर कुछ रुक कर बोली- वैसे आप लाने वाले क्या थे?
मैं बोला- जो तुम कहो?
तो वो बोली- खाना तो बन ही गया है, आप थम्स-अप लेते आना, खाने के बाद पी जाएगी।
साथ बैठकर कहती हुई वो विनोद से दूर जाने लगी और उचित दूरी पर पहुँच कर मुझसे बोली- हाँ बताओ, क्या जरूरी बात थी?
मैं बोला- मेरे दिमाग में एक प्लान है जिसे सुनकर तुम झन्ना जाओगी और सबके साथ रहते हुए भी हम साथ में वक़्त गुजार पाएंगे।
तो वो बोली- लव यू राहुल, क्या ऐसा हो सकता है?
मैं बोला- क्यों नहीं, अगर तुमने साथ दिया तो!
फिर वो बोली- अरे, मैं क्यों नहीं दूंगी साथ… पर अपना प्लान तो बताओ?
मैंने उसे अपना प्लान सुना दिया तो वो बहुत खुश हुई और मारे ख़ुशी के उछलने सी लगी थी और मुझसे कहने लगी- जल्दी से आ जाओ, अब मुझे तुम्हारी जरूरत है। क्या प्लान बनाया… मास्टर माइंड निकले तुम तो!
कहते हुए बोली- अब और देर न करो, बस जल्दी से आओ।

मैंने बोला- बस अभी आया!
और फ़ोन काट दिया।
अब आप लोग सोच रहे होंगे कि ऐसा कौन सा प्लान मैंने बनाया जिससे मेरी चूत इच्छा आसानी से पूरी हो सकती थी, वो भी सबके रहते हुए?
फिर मैं उठा और विनोद के घर की ओर चल दिया और कुछ ही देर में मैं उसके घर के पास पहुँच गया, उसके अपार्टमेंट के पास एक बेकरी की शॉप थी जहाँ से मैंने रूचि के लिए थम्स-अप की बड़ी बोतल ली और अपार्टमेंट में जाने लगा।

जैसे ही मैंने घंटी बजाई, वैसे ही अंदर से विनोद की आवाज आई- कौन?
मैं बोला- दरवाज़ा भी खोलेगा या नहीं?
तो वो बिना बोले ही आया और दरवाज़ा खोला, मैंने अंदर जाते हुए उससे पूछा- आंटी और रूचि कहाँ हैं?
वो बोला- माँ किचन में है और रूचि शायद रूम में है तो मैंने अपना बैग वहीं सोफे पर रखा और विनोद से बोला- यार कोई बढ़िया चैनल लगाओ, तब तक मैं इसे यानि की कोल्ड्ड्रिंक को फ्रीज़ में लगा कर आता हूँ।
कहते हुए किचन की ओर दबे पाँव जाने लगा।
जैसे ही मैं किचन के पास पहुँचा तो मैं माया को देखकर मतवाला हाथी सा झूम उठा, क्या क़यामत ढा रही थी वो… मैं तो बस देखता ही रह गया, एक पल के लिए मेरे दोनों पैर स्थिर हो गए थे जैसे कि मैं धरती से चिपक गया हूँ, उसने उस वक़्त साड़ी पहन रखी थी और बालों को पोनी टेल की तरह संवार रखा था जो उसके ब्लॉउज के अंतिम छोर से थोड़ा सा नीचे लटक रहे थे और उसका ब्लाउज गहरे गले का होने के कारण उसकी पीठ पीछे से स्पष्ट दिख रही थी जिसकी वजह से मैं मंत्र-मुग्ध सा हो गया था।
जैसे तैसे अपने आप को सम्हालते हुए धीरे से मैं उनके पीछे गया और कोल्ड्ड्रिंक की बोतल को उनकी जांघों के बीच में घुसेड़ते हुए उनके पीछे से में चिपक गया जिससे माया तो पहले चौंक ही गई थी और एक हल्की सी चीख निकल गई पर मुझे देखते ही उसने अपना सर झुका कर मेरे गालों पर चुम्बन लिया और गालों की चुटकी लेते हुए बोली- राहुल, बहुत शैतान हो गए हो तुम… ऐसे कहीं करते हैं मैं अगर जल जाती तो?
मैं तपाक से बोला- ऐसे कैसे जलने देता? मैं हूँ ना… वैसे आज तुम मुझे बहुत ही खूबसूरत लग रही हो!
तो वो बोली- हर समय मक्खन मत लगाया करो!
मैं बोला- नहीं यार, मैं मक्खन नहीं लगा रहा हूँ, सच ही बोल रहा हूँ, तभी तो मैं खुद पर कंट्रोल न रख सका… क्या एक चुम्मी मिलेगी अभी?
तो बोली- नहीं, अभी रूचि कभी भी आ सकती खाना लगाने के लिए… बाद में!
मैं बोला- नहीं, मुझे अभी चाहिए!
वो बोली- अच्छा ठीक है बाबा, परेशान मत हो, बस थोड़ा रुको और देखते जाओ कैसे मैं तुम्हें आज अपने बच्चों के सामने चुम्मी दूँगी।
मैं बोला- देखते हैं क्या कर सकती हो?
और मैंने उन्हें बोतल दी फ्रीज़ में लगाने को और फिर हॉल में आ गया पर मैंने एक चीज़ नोटिस की, वो यह थी कि जो पूरे प्लान का मास्टर माइंड है, वो अभी तक यहाँ मेरे सामने क्यों नहीं आया तो मैंने सोचा खुद ही रूम में जाकर इसका जवाब ले लेता हूँ।
मैंने अपना बैग उठाया और विनोद से बोला- मैं रूम में बैग रख कर आता हूँ और कपड़े भी चेंज कर लेता हूँ।
वो बोला- अबे जा, रोका किसने है तुझे? अपना ही घर समझ!
तब क्या… मैंने बैग लिया और चल दिया रूम की तरफ और अंदर घुसते ही रूचि भूखी बिल्ली की तरह मुझ पर टूट पड़ी और मुझे अपनी बाँहों में लेकर मेरे गालों और गर्दन पर चुम्बनों की बौछार करने लगी। उसकी इस हरकत से मैं समझ गया था कि वो क्यों बाहर नहीं आई थी, शायद इस तरह से वो सबके सामने मुझे प्यार न दे पाती!
फिर मैंने भी उसकी इस हरकत के प्रतिउत्तर में अपने बैग को बेड की ओर फेंक कर उसे बाँहों में भर लिया और उसके रसीले गुलाबी होठों को अपने अधरों पर रखकर उसे चूसने लगा जिससे उसके होठों में रक्त सा जम गया था, मुझे तो कुछ होश ही न था कि कैसी अवस्था में हम दोनों का प्रेममिलाप हो रहा है। वो तो कहो, रूचि ज्यादा एक्साइटेड हो गई थी, जिसके चलते उसने मेरे होठों पर अपने दांत गड़ा दिए थे जिससे मेरा कुछ ध्यान भंग हुआ।
फिर मैंने उसे कहा- यार, तुम तो वाकयी में बहुत कमाल की हो, तुम्हारा कोई जवाब ही नहीं!
वो कुछ शर्मा सी गई और मुस्कुराते हुए मुझसे बोली- आखिर ये सब है तो तुम्हारा ही असर!
मैं बोला- वो कैसे?
तो बोली- जिसे मैंने केवल सुना था, उससे कहीं ज्यादा तुम मेरे साथ कर चुके हो और सच में मुझे नहीं मालूम था कि इसमें इतना मज़ा आएगा जो मुझे तुमसे मिला है। मैं तुमसे सचमुच बहुत प्यार करने लगी हूँ…
‘आई लव यू राहुल…’ कहते हुए उसने मुझे अपनी बाँहों में जकड़ लिया, उसका सर इस समय मेरे सीने पर था और दोनों हाथ मेरे बाजुओं के नीचे से जाकर मेरी पीठ पर कसे थे और यही कुछ मुद्रा मेरी भी थी, बस फर्क इतना था कि मेरे हाथ उसकी पीठ को सहला रहे थे। मुझे भी काफी सुकून मिल रहा था क्योंकि अभी हफ्ते भर पहले तक मेरे पास कोई ऐसा जुगाड़ तो क्या कल्पना भी नहीं थी कि मुझे ये सब इतना जल्दी मिल जायेगा!
पर हाँ इच्छा जरूर थी और इच्छा जब प्रबल हो तो हर कार्य सफल ही होता है, बस वक़्त और किस्मत साथ दे !
फिर मैंने उसके चेहरे की ओर देखा तो उधर उसका भी वही हाल था वो भी अपनी दोनों आँखें बंद किए हुए मेरे सीने पर सर रखे हुए काफी सहज महसूस कर रही थी जैसे कि उसे उसका राजकुमार मिल गया हो।
मैं इस अवस्था में इतना भावुक हो गया कि मैंने अपने सर को हल्का सा नीचे झुकाया और उसके माथे पर किस करने लगा जिससे रूचि के बदन में कम्पन सा महसूस होने लगा।
शायद रूचि इस पल को पूरी तरह से महसूस कर रही जो उसने मुझे बाद में बताया।
वो मुझे बहुत अधिक चाहने लगी थी, मैं उसका पहला प्यार बन चुका था!
अब आप लोग समझ ही सकते हो कि पहला प्यार तो पहला ही होता है।
आज भी जब मैं उस स्थिति को याद कर लेता हूँ तो मैं एकदम ठहर सा जाता हूँ, मेरा किसी भी काम में मन नहीं लगता है और रह रह कर उसी लम्हे की याद सताने लगती है।
आज मैं इसके आगे अब ज्यादा नहीं लिख सकता क्योंकि अब मेरी आँखों में सिर्फ उसी का चेहरा दौड़ रहा है क्योंकि चुदाई तो मैंने जरूर माया की करी थी पर वो जो पहला इमोशन होता है ना प्यार वाला… वो रूचि से ही प्राप्त हुआ था।
दोस्तो, आज के लिए क्षमा… आज मैं अपनी लेखनी को यही विराम देना चाहूँगा। इसी तरह मैंने चुम्बन करते हुए उसके गालों और आँखों के ऊपर भी चुम्बन किया और जैसे ही उसकी गर्दन में मैंने अपनी जुबान फेरी.. तो उसके मुख से एक हलकी सी ‘आह’ फूट पड़ी- आआआअह.. शीईईईई.. मत करो न.. गुदगुदी होती है..
वो मेरी बाँहों में से छूटते हुए बोली- यार अब मुझसे रहा नहीं जाता.. कुछ भी करो.. पर मुझे आज वो सब दो.. जो मुझे चाहिए..
तो मैं बोला- जान बस तुम साथ देना और कुछ न बोलना.. जैसा मैं बोलूँ.. करती जाना.. फिर देखना.. आज नहीं तो कल पक्का तुम्हें मज़ा ही मज़ा दूँगा।
वो बोली- ठीक है.. तुम्हारा प्लान तो ठीक है.. पर भगवान करे सब अच्छा अच्छा ही हो..
तो मैं बोला- तुम फिक्र मत करो.. अब मैं विनोद के पास जा रहा हूँ।
उसने मुझे फिर से मेरे कन्धों पर हाथ रख कर मेरे होंठों पर चुम्बन लिया और बोली- तुम कामयाब होना..
फिर मैं सीधा बाहर आ गया और विनोद के पास आकर बैठ गया और हम इधर-उधर की बात करते हुए टीवी देखने लगे।
इतने में ही रूचि आई और मेरी ओर मुस्करा कर बोली- आप के लिए चाय ले आऊँ?
मैं बोला- अरे खाना खाते हैं न पहले?
तो बोली- खाने में अभी कुछ टाइम और लगेगा..
मैं बोला- फिर चाय ही बना लाओ..
तो बोली- जरूरत नहीं है.. माँ को आपकी पसंद पता है.. वो बना चुकी हैं.. मैं तो बस आपकी इच्छा जानने आई थी कि आप क्या कहते हो?
मैंने कहा- अगर जवाब मिल गया हो.. तो जाओ.. अब ले भी आओ..।
यह कहते हुए मैंने विनोद से बोला- यार ये भी तुम लोगों की तरह.. मेरी मौज लेने लगी.. जैसे मेरे सभी दोस्त चाय के लिए मेरे पीछे पड़े रहते थे..
तभी विनोद भी बोला- और इतनी ज्यादा चाय पियो साले.. मैंने 50 दफा बोला कि सबके सामने अपने इस शौक को मत जाहिर किया करो.. पर तुम मानते कहाँ हो.. अब झेलो..
तभी आंटी और रूचि दोनों लोग आ गईं.. और दूसरी साइड पड़े सोफे पर बैठते हुए बोलीं- आज तो बहुत ही गरम है।
तो मैं हँसते हुए बोला- चाय तो गर्म ही अच्छी होती है।
वो बोली- मैं मौसम की बात कर रही हूँ।
सभी हंसने लगे.. फिर हमने चाय खत्म की और फिर रूचि मेरी तरफ देखते हुए बोली- अच्छा खाना तैयार है.. अब आप बोलें.. कितनी देर में लेना चाहोगे?
उसके इस दो-अर्थी शब्दों को मैंने भांपते हुए कहा- मज़ा तो तभी है.. जब गर्मागर्म हो।
वो भी कातिल मुस्कान लाते हुए बोली- फिर तैयार हो जाओ.. मैं यूं गई और आई..
अब आंटी.. विनोद और मैं उठे और खाने वाली टेबल पर बैठ कर बात करने लगे।
तभी मैंने आंटी को छेड़ते हुए पूछा- आज आप इतना थकी-थकी सी क्यों लग रही हो..?
वो बोलीं- नहीं ऐसा तो कुछ भी नहीं है..
मैं बोला- फिर कैसा है?
वो बोलीं- कुछ नहीं.. बस गर्म बहुत है तभी कुछ अच्छा नहीं लग रहा है..
मुझे उन्होंने बाद में बताया था कि उन्हें बेचैनी इस बात की सता रही थी कि विनोद के होते हुए हम चुम्बन कैसे लेंगे..
खैर.. फिर मैंने बोला- अरे कोई बात नहीं.. आप खाना खाओ.. फिर आज हम लोग भी एक गेम खेलेंगे।
वो बोलीं- अरे ये गेम-वेम तुम लोग ही खेलना.. मुझे इस चक्कर में मत डालो.. मुझे कोई खेल-वेल नहीं आता।
मैं बोला- अरे ये बहुत मजेदार है.. आप खेल लोगी.. और तो और इससे आपको पुराने दिनों की बातें भी याद आ जाएगीं।
वो बोलीं- ऐसा क्या है.. इस गेम में?
तो मैं आँख से इशारा करते हुए बोला- क्या है.. ये खुद ही देख लेना..
वो समझते हुए बोलीं- अब तुम इतना कह रहे हो.. तो देखते हैं ये कौन सा खेल है?
तभी रूचि आई और मेरी ओर देखकर हँसते हुए बोली- अरे मुझे भी बताओ.. तुम लोग कौन से खेल की बात कर रहे हो?
तो विनोद बोला- हम में से सिर्फ राहुल को ही मालूम है।
मैं बोला- सब कोई खेल सकता है इस खेल को।
तो वो बोला- पहले बता तो दे कि कौन सा खेल है?
मैं बोला- ठीक है.. पहले पेट पूजा बाद में काम दूजा..
एक बार इसी के साथ साथ सब लोग फिर हंस दिए।
अब आप लोगों को बता दूँ कि हम कैसे बैठे थे.. ताकि आप आगे का हाल आसानी से समझ सकें।
खैर.. हुआ कुछ इस तरह कि मेरे दांए सेंटर चेयर पर विनोद बैठा था और मैं उसके बाईं ओर बैठा था। फिर आंटी यानि कि वो मेरे बाईं ओर.. फिर रूचि विनोद के दांई ओर.. यानि कि मेरे ठीक सामने..
तो दोस्तो, दिल थाम कर बैठ जाईए क्योंकि अब असली खेल शुरू होता है।
आंटी ने प्लेट लगाना चालू किया तो सबसे पहले रूचि को दिया.. पर उसने ये बोल कर अपनी थाली को अपने भाई विनोद की ओर सरका दी.. कि माँ आपने इसमें अचार क्यों रख दिया..
तो माया हैरान होकर बोलीं- पर ये तो तुम्हें बहुत पसंद है.. तुम रोज ही लेती हो।
वो बोली- मेरा पेट ख़राब है।
जबकि आपको बता दूँ उसने ऐसा इसलिए किया था ताकि वो देर तक खाना खा सके।
विनोद ने खाना शुरू नहीं किया था तो वो फिर बोली- भैया शुरू करो न..
तो विनोद बोला- पहले सबकी प्लेट लग जाने दे।
वो बोली- अभी जब बन रहा था तो आपको बड़ी भूख लगी थी.. अब खाओ भी.. हम में से कोई बुरा नहीं मानेगा।
तो मैंने भी बोल दिया- हाँ.. शुरू कर यार.. वैसे भी प्लेट तो लग ही रही हैं।
इस पर उसने खाना चालू कर दिया और इधर आंटी ने खाना लगाया और रूचि को प्लेट दी.. तो वो रखकर बोली- सॉरी.. अभी आई.. मैंने हाथ तो धोए ही नहीं..
उसने मुझे आँखों से अपने साथ चलने का इशारा किया.. जिससे मैंने भी तपाक से बोल दिया- अरे हाँ.. मैंने भी नहीं धोए.. थैंक्स रूचि.. याद दिलाने के लिए..
फिर हम उठे और चल दिए।
अब मैं आगे और रूचि मेरे पीछे थी.. शायद उसने इसलिए किया था ताकि मैं पहले हाथ धोऊँ।
मैं वाशबेसिन के पास जाकर हाथ धोने लगा और रूचि से इशारे में पूछा- क्या हुआ?
तो वो फुसफुसा कर बोली- जान कुछ होगा.. तो अपने आप बोलूँगी तुम्हें..
और उसने एक नॉटी स्माइल पास कर दी।
प्रतिक्रिया में मैं भी हंस दिया। मैं हाथ धो ही रहा था.. तभी वो बोली- खाना खाते समय चौंकना नहीं.. अगर कुछ एक्स्ट्रा फील हो तो..
मैं बोला- क्यों क्या करने का इरादा है?
वो बोली- इरादा तो नेक है.. पर हो.. ये पता है कि नहीं.. ये ही देखना है बस..
फिर मैं हाथ धोकर टेबल की ओर चल दिया.. साथ ही साथ सोचने लगा कि रूचि क्या करने वाली है.. ये सोचते हुए बैठ गया।  तब तक मेरी थाली भी लग चुकी थी और आंटी की भी.. उन्होंने खाना भी शुरू कर दिया था।
मेरे बैठते ही बोलीं- चल तू भी शुरू कर..
तो मैंने भी चालू कर दिया.. तभी रूचि आई और बैठते हुए उसने चम्मच नीचे गिरा दी.. जो कि उसकी एक चाल थी। फिर वो चम्मच उठाने के लिए नीचे झुकी.. और उसने एक हाथ से चम्मच उठाई और दूसरे हाथ से मेरे पैरों को खींच कर आगे को कर दिया।
मैंने भी जो हो रहा था.. होने दिया.. फिर वो अपनी जगह पर बैठ गई और अपना खाना शुरू करने के साथ ही साथ उसने अपनी हरकतें भी शुरू कर दीं।
अब वो धीमे-धीमे अपने पैरों से मेरे दायें पैर को सहलाने लगी.. जिससे मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।
मेरे चेहरे पर कुछ मुस्कराहट सी भी आ रही थी.. वो बहुत ही सेंसेशनल तरीके से अपने पैरों से मेरे पैर को रगड़ रही थी.. जिसका आनन्द सिर्फ अनुभव किया जा सकता है।
कुछ ही देर बाद अब हम सिर्फ तीन ही रह गए थे.. यानि कि मैं रूचि और माया क्योंकि विनोद अपना खाना समाप्त करके टीवी देखने चला गया था।
इधर रूचि की हरकत से मैं इतना बहक गया था कि मेरे खाने की रफ़्तार स्वतः ही धीमी पड़ गई थी।
शायद यही हाल उसका भी था.. क्योंकि वो खाना कम.. मेरे पैरों को ज्यादा सहला रही थी।
मैं अपने सपनों में खोने वाला ही था.. या ये कह लो कि लगभग स्वप्न की दुनिया में पहुँच ही गया था कि तभी माया ने अपना खाना समाप्त कर पास बैठे ही मेरे तन्नाए हुए लौड़े पर धीरे से अपने हाथ जमा दिए।
इस हमले से मैं पहले तो थोड़ा सा घबरा सा गया.. पर जल्द ही सम्भलते ही बोला- अरे आंटी आपने तो अपना खाना बहुत जल्दी फिनिश कर दिया?
तो वो बोली- हाँ.. इसी लिए तो बैठी हूँ.. ताकि तुम लोगों को सर्व कर सकूँ।
वो निरंतर मेरे लौड़े को मनमोहक अंदाज़ में सहलाए जा रही थी और उधर रूचि नीचे मेरे पैरों को सहला रही थी.. जिससे मुझे जन्नत का एहसास हो रहा था।
मेरे मन में एक डर भी था कि दोनों में से कोई भी कहीं और आगे न बढ़ जाए वरना सब गड़बड़ हो जाएगी.. क्योंकि अगर रूचि आगे बढ़ती है.. तो माया का हाथ लगेगा और माया आगे बढ़ती है.. तो रूचि का पैर..
फिर मैंने इसी डर के साथ अपने खाने को जल्दी फिनिश किया और उठ कर मुँह धोने के बाद सीधा वाशरूम जाकर मुठ मारने लगा.. क्योंकि इतना सब होने के बाद मैं अपने लौड़े पर काबू नहीं रख सकता था।
शायद मेरी कामुकता बहुत बढ़ गई थी और खुद पर कंट्रोल रख पाना कठिन था।
मुठ्ठ मारने के बाद जब मेरा लण्ड शांत हुआ.. तब जाकर मेरे दिल को भी शान्ति मिली और इस सब में मुझे बाथरूम में काफी देर भी हो चुकी थी.. तो मैंने झट से कपड़े ठीक किए और बाहर निकल कर आ गया।
बाहर आकर देखा सभी टीवी देखने में लगे थे और जैसे ही मैं वहां पहुँचा तो माया और रूचि दोनों ही मुझे देखकर हँसने लगीं.. जिसे मैं भी देखकर शरमा गया था।
मुझे ऐसा लग रहा था कि जो मैंने अभी बाथरूम में किया.. वो सब ये लोग समझ गईं शायद..
मुझे अपने ऊपर गुस्सा भी आ रहा था कि मैं आखिर कंट्रोल क्यों नहीं कर पाया।  मैं अभी इसी उलझन में था कि माया ने मुझे छेड़ते हुए बोला- बड़ी देर लगा दी अन्दर.. सब कुछ ठीक है न?
तभी रूचि भी चुहल लेते हुए कहा- कहीं ऐसा तो नहीं मेरी पेट वाली समस्या आपके पास ट्रांसफर हो गई?
तो मैं झेंपते हुए बोला- नहीं कुछ भी गड़बड़ नहीं है.. जैसा आप लोग समझ रहे हैं।
रूचि हँसते हुए बोली- फिर कैसा है?
तो मैंने बोला- अरे मैं टॉयलेट गया था.. तभी मेरी आँख में शायद कोई कीड़ा चला गया था.. तो मैं अपनी आँख धोकर देखने लग गया था कि वो आँख के अन्दर है कि नहीं..
तभी रूचि मेरे पास आई उसने कातिलाना मुस्कान देते हुए कहा- लाओ मैं अभी तुम्हारा कीड़ा चैक किए देती हूँ..
तो मैं बोला- अरे नहीं.. अब हो गया..
वो मेरे लौड़े को देखते हुए बोली- हाँ दिख तो रहा है.. कि साफ़ हो गया।
फिर से चुहलबाज़ी में हँसने लगी।
तभी माया ने मेरा पक्ष लेते हुए कहा- तू उसे तंग मत कर.. बड़ा है तेरे से..
तब कहीं जाकर रूचि शांत हुई.. फिर हम टीवी देखने लगे कि तभी माया बोली- टीवी में आज कुछ अच्छा आ ही नहीं रहा है..
रूचि भी बोली- हाँ.. माँ आप सच कह रही हो.. मैं भी बोर हो रही हूँ।
तो मैंने भी उनकी ‘हाँ’ में ‘हाँ’ मिलाते हुए अपने प्लान को सफल बनाने के लिए अपनी इच्छा प्रकट की- हाँ यार.. कुछ मज़ा नहीं आ रहा है..
तो विनोद बोला- फिर क्या किया जाए?
रूचि बोली- कुछ भी सोचो.. जिससे आसानी से टाइम पास हो सके।
वो बोला- अब सोचो तुम ही लोग.. मेरा क्या है.. मैं तो बस शामिल हो जाऊँगा।
अब मुझे अपना प्लान सफल होता हुआ नज़र आने लगा जो कि मैंने घर से आते ही वक़्त बनाया था.. जिसकी सम्पूर्ण जानकारी सिर्फ रूचि को ही थी.. लेकिन प्लान क्या था.. इसके लिए अभी थोड़ा और इंतज़ार कीजिएगा.. जल्द ही मैं इस कहानी के अगले भाग को लिखूंगा और प्लान भी बताऊँगा और तब तक आप भी सोचते रहिए कि आखिर प्लान क्या हो सकता है।
आप लोगों को बताना चाहूंगा कि मेरी एक फ्रेंड है जिसका नाम तो नहीं बता सकता.. पर आप लोग पूजा कह सकते हैं और उसे मेरी कहानी के बारे में मेरे ही कंप्यूटर से जानकारी मिल गई थी.. जो कि उसने मुझे बाद में बताया।
उसे उन कहानियों को पढ़कर इतना मज़ा आया कि वह भी मेरे साथ कुछ हसीन पल बिताना चाहती है। पर मुझसे उसने 31 मई तक का समय माँगा है कि मैं यह कर पाऊँगी कि नहीं.. तो मैंने बोला है कि जैसा समझो.. पर अगर तुम्हें लगे कि तुम आनन्दित महसूस करोगी तो बता देना..
दोस्तों मजा लेते रहिये और आगे की कहानी अगले भाग में तब तक के धन्यवाद मेरे गुरु जी के मेल पर आप मेल कर के बता सकते है आप लोगो को ये कहानी कैसी लगी Email: [email protected]

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