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मेरी शर्मीली बीवी की ग्रुप में चुदाई पार्ट 4

गतांग से आगे …..

बातों बातों में मेरी सीधी सादी पत्नी ने मुझे वैवाहिक सम्बन्ध की वह बात कह डाली जो एक सटीक खतरे की और इंगित करती थी। मेरी बीबी ने मुझसे दीपक का नाम लिए बगैर यह भी कह दिया की एक बार चुदने के बाद हो सकता है वह दीपक से बार बार चुदवाना चाहे। तब फिर मुझे इसकी इजाज़त देनी होगी। पर मैंने इस बारे में काफी सोच रखा था और मेरी पत्नी के लिए मेरे पास भी सटीक जवाब था। हालांकि मेरी पत्नी की बातों से मुझे एक बात साफ़ नजर आयी की पिछले कुछ दिनों में रश्मि और दीपक के थोड़े करीब आने से मेरी पत्नी का दीपक के प्रति जो भय अथवा वैमनस्य था, वह नहीं रहा था। मुझे अब हमारा रास्ता साफ़ नजर आ रहाथा।

तब मैंने कहा, ” डार्लिंग, मुझे एक बात बताओ, मानलो जिस दिन तुम दीपक के सामने तौलिये में खड़ी थी दीपक ने तुम्हे यदि चोद दिया होता, तो क्या तुम मुझे छोड़ देती? या क्या मैं तुम्हें छोड़ देता? मैं तुम्हें यह कहना चाहता हूँ की सेक्स और प्रेम में बहुत अन्तर है। आज हम पति पत्नी मात्र इस लिए नहीं हैं क्योंकि हम एक दूसरे से सेक्स करते हैं। बल्कि हम पति पत्नी इस लिए भी हैं क्योंकि हम न सिर्फ एक दूसरे से प्यार एवं सेक्स करते हैं पर एक दूसरे की जिम्मेदारियां, खूबियाँ और कमियां हम मिलकर शेयर करते हैं और उसका फायदा या नुक्सान हम क़बूल करते हैं। यदि हम अपने इस बंधन से वाकिफ हैं तो ऐसी कोई बात नहीं जो हमें जुदा कर सके। मैं तो एक जातीय अनुभव करने मात्र के लिए ही कह रहा हूँ।” रश्मि कुछ न बोली और चुपचाप मुझे टेढ़ी नज़रों से देखने लगी।

उस रात को रश्मि बहुत खिली हुई लग रही थी। मैंने मेरी पत्नीको इतनी बार झड़ते हुए कभी नहीं देखा। शायद वह हमारी बातों को याद करके अपने ही तरंगों में खोयी हुई थी।

मेरी ज़िन्दगी में बहार सी आ गयीथी। अब मैं पहले से कई गुना खुश था। दूसरी और दीपक भी अपने सपनों में था। उस दिन जब रसोई में वह रश्मि के इतने करीब आ पाया था, यह सोचने से ही उत्तेजित हो रहा था। पहले उसने जब रश्मि को देखा था तो वह उसे एक मात्र सपनों में आने वाली नायिका के सामान लग रही थी। वह नायिका जो मात्र सपनों में आती है और जिसके छूने कि कल्पना मात्र करने से पुरे बदन में एक सिहरन सी दौड़ जाती है। वह वास्तव में भी कभी इतने करीब आएगी यह सोचने से ही उसके बदन में एक आग सी फ़ैली जा रही थी।

अगर मैं होता न तो मैं तो वंदना की बजा ही देता

एक दिन शाम को हम दोनों दोस्त एक क्लब में जा बैठे। दीपक उसी दिन अपने टूर से वापस आया था। मैं वास्तव में बहुत खुश था।  आप यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | पिछली रात को रश्मि ने मुझे गले लगा कर इतना प्यार कियाथा की मैं उसके नशे में तब तक झूम रहा था। दीपक ने मुझे इतने खुश होने का कारण पूछा। मैंने उसे कहा की इसका कारण वह खुद ही था। दीपक एकदम अचम्भे में पड़ गया। उस से जो मैं कहना चाहता था कह नहीं पाया और चुप हो गया। दीपक ने तब कहा, “खैर, मुझे यह बताओ की मेरे घरमें तुम्हारी विजिट कैसी रही? वंदना ने मुझे कहा की उसने एक बार तुम्हे रात को घर बुलाया था।

मैंने फिर वही सारी कहानी पूरी सच्ची दीपक को सुनाई। जब दीपक ने सुना की वंदना मुझसे लिपट गयी थी तो वह जोर से हंस पड़ा और बोला, “देखा, मेरी बीबी ने भी यह बात मुझसे छुपाई थी। पर तुमने मुझसे नहीं छुपाई। अरे यार, तुम तो बड़े सच्चे और कच्चे निकले। तुम्हारी जगह अगर मैं होता न तो मैं तो वंदना की बजा ही देता।”

मैंने उसके मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, “यार, मैं कोई साधू नहीं। पर तू मेरा पक्का दोस्त है। देख मैंने भी बड़ी मुस्श्किल से संयम रखा था। मन तो मेरा भी उछल रहा था। पर मैं तुम्हें आहत करना नहीं चाहता था।”

दीपक ने तब मुझे एक बात कही। उसने कहा, “यार, तू क्या समझता है? मैं क्या अपनी बीबी को तेरे बारे में बताता नहीं हूँ? मैं वंदना को दिन रात तेरे बारे में बताता हूँ। मैंने तो मेरी बीबी से यहां तक कह दिया है, की यदि सौरभ तुमसे थोड़ी बहुत छेड़खानी भी करे तो बुरा मत मानना। वैसे सच बताओ यार, तुम्हे मेरी बीबी कैसी लगी?”

मैं यह सुनकर हक्काबक्का सा रह गया। तब फिर मरी झिझक थोड़ी कम हुई। मैंने दीपक से पास जाते हुए कहां, “दीपक, सच कहूं। जब वंदना मेरे इतनी करीब बैठी ना तो मेरे तो छक्के छूट गए। मैं तो पसीना पसीना हो गया। बाई गॉड यार, भाभी तो कमाल है।”

दीपक ने तब मुझे एक बात कही। उसने कहा, “यार, तू क्या समझता है? मैं क्या अपनी बीबी को तेरे बारे में बताता नहीं हूँ? मैं वंदना को दिन रात तेरे बारे में बताता हूँ। मैंने तो मेरी बीबी से यहां तक कह दिया है, की यदि सौरभ तुमसे थोड़ी बहुत छेड़खानी भी करे तो बुरा मत मानना। वैसे सच बताओ यार, तुम्हे मेरी बीबी कैसी लगी?”

मैं यह सुनकर हक्काबक्का सा रह गया। तब फिर मरी झिझक थोड़ी कम हुई। मैंने दीपक से पास खिसकते हुए कहां, “दीपक, सच कहूं। जब वंदना मेरे इतनी करीब बैठी ना, तो मेरे तो छक्के छूट गए। मैं तो पसीना पसीना हो गया। बाई गॉड यार, भाभी तो कमाल है।”

दीपक ने मुझे एक धक्का मारते हुए कहा, “यह क्यों नहीं कहते की वह माल है। यार वह है ही ऐसी। कॉलेज मैं हम सब उस पे मरते थे। सब लड़के उसे देख कर सिटी बजाते थे। बेटा तू आगे बढ़ मैं तेरे साथ हूँ।”

मैंने भी अपनी झिझक को बाहर निकाल फेंका और बोला, “एक बात कहूं? मैं और रश्मि भी तुम्हारे बारेमें बहुत बातें करते हैं। मैं उसे तेरे करीब लाने की कोशिश करता हूँ। वह भी तुझे अच्छा मानती तो है, पर उससे आगे कुछ भी बात नहीं करना चाहती।”

दीपक ने तब मेरा कन्धा थपथपाते हुए कहा, “दोस्त, अब हम एक दूसरे के सामने जूठा ढ़ोंग ना करें। सच बात तो यह है की हम दोनों एक दूसरे की बीवी से सेक्स करना चाहते हैं। शायद बीबियों को भी हम पसंद है। पर वह अपनी कामना जाहिर नहीं कर सकती और चुप रह जाती है। हमारी बीबियाँ एक असमंजस मैं है। तूने जो अब तक किया वही बहुत है। अब इसके आगे मुझे कुछ करने दे। कहानी का शीर्षक है ” मेरी शर्मीली बीवी की ग्रुप में चुदाई ”  बस मुझे तेरी इजाजत और सपोर्ट चाहिए।“

मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा, “मैं तेरे साथ हूँ। अब तो आगे बढ़ना ही है। “

पर इस बातचित के बाद काफी समय तक हम एक दूसरे से मिल नहीं पाए, हालांकि हमारी फ़ोन पर बात होती रहती थी। दीपक और मैं अपने ऑफिस के काम में व्यस्त हो गए और एक दूसरे के घर आना जाना हुआ नहीं। कई बार रश्मि दीपक के बारेमें पूछ लेती थी, तब मैं मेरी दीपक से हुयी टेलीफोन पर बातचीत का ब्यौरा दे देता था। ऐसे ही कुछ हफ्ते बीत गए। समय को बितते देर नहीं लगती। सर्दियाँ जानेको थी। गर्मी दरवाजे पर दस्तक दे रही थी। शहर के लोग मस्ती में होली के त्यौहार की तैयारियां कर रहे थे। हर साल हम होली के दिन एक दोस्त के वहां मिलते थे। सारे दोस्त वहीं पहुँच कर एकदूसरे को और एक दूसरे की बीबियों को रंगते थे।

दोस्तों अगर सच में मज़ा आ रहा है तो कमेंट तो बनता है ना फिर क्यूँ मुरझाये लंड की तरह देख रहे हो | ठोको कमेंट तभी तो कहानी में जान आएगी |

The Author

गुरु मस्तराम

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त मस्ताराम, मस्ताराम.नेट के सभी पाठकों को स्वागत करता हूँ . दोस्तो वैसे आप सब मेरे बारे में अच्छी तरह से जानते ही हैं मुझे सेक्सी कहानियाँ लिखना और पढ़ना बहुत पसंद है अगर आपको मेरी कहानियाँ पसंद आ रही है तो तो अपने बहुमूल्य विचार देना ना भूलें
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