पापा ने मेरी जम कर चुदाई की

प्रेषिका: अंकिता राय

मेरी सहेलिया मुझे अक्सर मेरे सामने औरत और मर्द के रिश्तो की बात करती थी, मैं फिर भी बेख़बर थी,जानती ही नहीं थी कि क्यों मैं ऐसा फील करती हूँ?? क्या कारण है कि मैं सब लड़कियों की चुचियों को,और सब लड़को के पॅंट के उस उभरे हिस्से को मैं इतने लालच से, इतनी गौर से देखती हू……. उस दिन जब पापा बनारस से आए और मुझे पुकारा .. मैं भागी भागी उनके पास गयी और बोली ..हांजी पापा!! पापा बोले.. अरे बेटा इतनी दूर क्यों खड़ी है यहाँ आ देख मैं तेरे लिए क्या लाया हूँ??

मैं पास आकर पापा की चेर के पास खड़ी हो गयी… पापा ने मुझे एक पॅकेट दिया जिसमे दो बहुत सुंदर बनारसी साड़ियाँ थी.. फिर एक और पॅकेट दिया जिसमे शायद साज़ शिंगार का समान था… मैं तो जैसे खुशी से झूम उठी….

कैसा लगा???? ये कह कर पापा ने मेरे गोल गोल चूतड़ पर हाथ रख दिए और उन्हे सहलाते हुए बोले… अपनी माँ से मत कहना नहीं तो अभी जल मरेगी!!!…

मैने चुपचाप अपनी गर्दन हां करते हुए हिलाई लेकिन ध्यान तो उस प्यार से सहलाते हुए हाथ पर ही था….

तभी माँ की आवाज़ आई और पिताजी ने एकदम से हाथ खींच लिया…

मैं भी पॅकेट ले कर वहाँ से भाग खड़ी हुई… आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

कमरे में आकर भी मेरे बदन पर वो प्यारा सा स्पर्श मुझे महसूस हो रहा था ….और ठीक उसी रात एक बहुत प्यारा सा हादसा हुआ जब हम सब छत पर सो रहे थे….आक्च्युयली हम लोग एक मिड्ल क्लास फॅमिली से है…. घर भी ज़्यादा बड़ा नहीं है…..इसलिए अक्सर गर्मी के कारण हम अक्सर उपर छत पर सो जाया करते थे …..

जुलाइ का महीना था, सब लोग खाना खा कर सो गये थे लेकिन पता नहीं क्यों मेरी आँखो से तो जैसे नींद गायब थी..मेरे दिमाग़ में तो रह रह कर वो अजीब सी गुदगुदी जो मुझे पिताजी के सहलाने से हुई थी गूँज रही थी….

तभी माँ जो कि मेरी बराबर में लेटी थी धीरे से फुसफुसाई..

….अंकिता बेटा!!!!

मैने सोचा ज़रूर पानी वाणी मंगाएगी मम्मी मैं तो चुप चाप ही लेटी रही…. माँ ने एक आवाज़ और लगाई और उठ के बैठ गयी..

मैं फिर भी चुप चाप लेटी रही..

तभी माँ उठ कर पिताजी के बिस्तर की तरफ चली गयी..

मैने सोचा माँ वहाँ क्यों गयी है?? लेकिन माँ तो पापा के पास पहुँचते ही उनसे किसी भूखे भेड़िए की तरह लिपट गयी….

ये देखते ही मेरा अंग अंग झंझणा उठा…..

तभी पापा की आवाज़ आई इतनी देर क्यों लगा दी….

माँ बोली तुम तो कुछ भी नहीं समझते घर में जवान बेटी है और एक तुम्हारी भूख है कि बढ़ती ही जा रही है!!!

पापा बिना कुछ बोले माँ की बड़ी बड़ी चुचियो को दबाने लगे….

मैं चुप चाप हड़बड़ाई सी पड़ी हुई उन्हे देखने लगी….चाँदनी रात में मैं तो उन्हे सॉफ देख पा रही थी लेकिन मुझे नहीं पता कि उन्हे मेरी खुली हुई आँखे दिख रही थी या नहीं???

पापा माँ की गोल गोल चुचियों को ज़ोर ज़ोर से दबा रहे थे…माँ के चेहरे जैसे बदल सा गया था..माँ पापा के पाजामे के उपर से ही पापा के लिंग को सहला रही थी … मुझे तो जैसे सब कुछ बर्दास्त के बाहर लग रहा था… पता नहीं क्यों मेरा हाथ मेरी सलवार के अंदर सरक गया..और मैं अपनी चूत को धीरे धीरे मसालने लगी…

हाईए….. क्या मस्त फीलिंग्स आ रही थी… आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

उधर पापा ने माँ का ब्लाउस खोल कर अलग कर दिया था..माँ भी पापा का लिंग पाजामे का नाडा खोल कर बाहर निकाल चुकी थी….. अचानक माँ झुकी और पापा के लिंग को मुँह मे लेकर किसी लॉलीपोप की तरह चूसने लगी…उधर मेरे हाथ की रगड़ान मेरी चूत पर बढ़ती ही जा रही थी…

अचानक पापा बोले …ज़रा नीचे आजा

माँ चुप चाप नीचे लेट गयी और पापा उपर आ गये …. पापा ने माँ के होंठो पर एक जबर दस्त चुंबन लिया और .. उसके उपर लेट गये ..तभी पापा ने माँ की साड़ी को उनके पेट तक सरका दिया और अपना लंड सेट किया और माँ की चूत में सरका दिया…. मेरी तो जैसे सिसकारी सी निकल गयी….

माँ भी कराहने सी लगी… फिर पापा धीरे धीरे झटके मारने लगी….. मैं तो जैसे पागल सी हो गयी थी…

पापा जो कि पहले धीरे धीरे झटके मार रहे थे तभी ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगे…. माँ ने अपनी टाँगो को पिताजी के बदन से लपेट लिया …तभी माँ ने उन्हे ज़ोर से भीच लिया और धीरे धीरे जैसे उनका शरीर जैसे ठंडा सा पड़ने लगा और वो बिल्कुल बेजान सी हो कर लेट गयी ….लेकिन पापा अभी भी उसी जोश से लगे हुए थे …. तभी माँ बोली ..बस करो! अब क्या जान ही निकालोगे ….

पापा बोले … तू तो बूढ़ी हो गयी है अगर मेरे सामने कोई सोलह साल की जवान लड़की भी आ जाए तो मैं उसको भी नानी याद करा दूं….

मेरे दिमाग़ में सीटिया सी बजने लगी.. मैं भी तो सोलह साल की ही हूँ…..

और एक बात जब पापा ये बात बोल रहे थे तो मुझे लगा कि शायद पापा मेरी ही ओर देख रहे थे.. मैं तो गन्गना उठी मेरे हाथ की उंगली मेरी चूत में सरक चुकी थी..मैं तो पागलो की तरह अपने मस्त हुए पापा की तरफ देख कर ज़ोर ज़ोर से अपनी उंगली को अंदर बाहर करने लगी…तभी पापा जी बोले.. बस अंकिता की माँ,, थोड़ी देर और बर्दास्त करले मैं भी झड़ने ही वाला हूँ..

ये सुनकर तो मैं और ज़ोर ज़ोर से हाथ चलाने लगी… आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

तभी पापा जी जैसे अकड़ से गये और उन्होने माँ को ज़ोर से बाहों में भींच लिया…

उधर मुझे भी ऐसा लगा कि जैसे मेरा पिशाब निकल जाएगा…मैं अपनी उंगली को चाह कर भी ना रोक पायी और अचनाक मैने देखा कि पापा के मूह से एक ज़ोर की सिसकारी निकली है….उधर मैं भी पानी छोड़ चुकी थी मैं और पापा एक साथ ही झाडे ये सोच कर मैं तो जैसे गन्गना उठी…. पापा ने मम्मी को फिर एक बार ज़ोर से चूमा और अलग हो कर लेट गये….. मैने भी अपना हाथ अपनी सलवार से निकाला और चुपचाप आँखे बंद करली….

मैने फिर माँ के उठने की आवाज़ सुनी जैसे वो पापा की चारपाई से उठ कर फिर से मेरे पास ही लेट गयी हो…

उस रात तो ऐसी नींद आए कि मुझे अपनी भी होश नहीं रहा…

सुबह माँ ने मुझे ज़ोर ज़ोर से हिला कर उठाया ….अंकिता उठ घर का कम नहीं करना है क्या … भंग खा के सोई थी क्या????

मैं उठ कर जब बाथरूम गयी तो अपने सलवार की तरफ देखा वहाँ पर एक बड़ा सा निशान बन चुका था… मेरे अंदर तो एक गुदगुदी सी दौड़ गयी.. मैने चुप चाप नये कपड़े निकाले और उन्हे लेकर नहाने के लिए चली गयी..लेकिन रात की बात मुझे जैसे कचोट रही थी…

जब मैं नहा कर निकली तो पापा बाहर ही खड़े थे मैं तो जैसे सकपका गयी .. पापा मेरे पास आए और बोले…. अरे!बेटा आज तो बड़ी जल्दी नहा ली?? मैने जवाब दिया … पापा आज गर्मी बहुत है….

पापा बोले… बेटा जवानी मैं गर्मी कुछ ज़्यादा ही लगती है!!

ये कह कर उन्होने एक हाथ मेरे गाल पर रख दिया ..और एक हाथ को बेख़बरी के साथ मेरी चुची पर टिका कर सहलाने लगे… मैं तो जैसे मस्त सी हो गयी….. तभी जैसे कुछ आहट सी हुई..पापा मुझसे अलग हो गये..मैं भी अपने कमरे की तरफ चल दी…

तभी माँ किचन से बाहर आ गयी…. और मुझे देखते हुए बोली …शाबाश बेटा .. रोज जल्दी नहा लिया कर तू अच्छी बच्ची बन जाएगी…

मैं चुप चाप कमरे में चली गयी…. आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

उस समय मुझे मेरी माँ मेरी सबसे बड़ी दुश्मन लग रही थी…

मेरे दिमाग़ तो जैसे हर समय पापा के पास जाने को ही मचलता रहता था..

और फिर वो दिन भी आया जिसका मुझे इंतजार था …..करीब दस दिन के बाद संदेसा आया कि एक हफ्ते बाद मेरे सबसे छोटे मामा की शादी थी… माँ तो बहुत खुश थी …मुझसे बोली बेटा मैं तो कल ही चली जाऊंगी तू पापा के साथ शादी से दो दिन पहले पहुँच जाना.. मैं तुझे भी साथ ले चलती लेकिन यहाँ तेरे पापा का खाना कौन बनाएगा….

माँ ने उसी रात सारी पॅकिंग करली… सुबह ही माँ की ट्रेन थी..

अगले दिन सुबह ही माँ ने मुझे जगाया बोली…बेटा मैं जा रही हूँ अपना और अपने पापा का ख्याल रखना…और मम्मी ने मुझे कुछ रुपये भी दिए.. ये कह कर माँ पापा के साथ निकल गयी….

मैं घर पर अकेली हूँ ये सोच कर तो जैसे मेरे सारे बदन मैं आग सी लगी हुई थी…

मैने सोच लिया कि आज तो कुछ करके ही मानूँगी….

मैं उठी और नहा कर तैयार हो गयी… तभी पापा का फोन आया…. बेटा अंकिता मैं इधर से ही काम पर जा रहा हूँ शाम को जल्दी आ जाऊँगा.. तू घर का ख्याल रखना!!!!

मुझे इतना गुस्सा आया …मैं तो जैसे जल भुन सी गयी….

सारा दिन मैने कैसे गुज़रा मुझे ही पता है..

मैने इतने प्यार से पापा की लाई हुई साड़ी पहनी थी .. गुस्से मैं आ कर मैने वो साड़ी उतार कर फेंक दी… और पेटिकोट ब्लाउस में आ गयी..

दिमाग़ तो जैसे खराब हो चुका था …मैं जा कर अपने बिस्तर पर लेट गयी…पता नहीं कब नींद आ गयी…

रात को डोर बेल की आवाज़ से मेरी नींद खुली…..देखा 8 बज चुके थे मैं उठी और जा कर दरवाजा खोला.. देखा पापा आ गए थे..पापा ने मेरी ओर प्यार से देखा..और बोले.. क्या बात है साड़ी नहीं पहनी…मुझे होश आया ..और मैं अंदर की ओर छुप गयी..

पापा बोले..अरे!! शर्मा क्यों रही है मैं तेरा बाप हूँ तुझे तब से देखता हूँ जब तू नंगी सारे घर में घूमती थी..

मैं धीरे से बोली.. खाना लगा दूँ???? आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

पापा बोले …नहीं मैं तो खा के आया हूँ .. तू बिस्तर लगा दे मैं आराम करना चाहता हूँ..

मैं बोली…. अच्छा!!! और खिड़की के पास जा कर खड़ी हो गयी..

पापा बोले.. क्या हुआ? और मेरे पास आकर खड़े हो गये..

मैने खिड़की की तरफ मुँह कर लिया और झुक कर बाहर झाँकते हुए उनसे बोली ..पापा! बाहर तो बादल से हो रहे है .. लगता है बारिश होगी.. पापा मेरे करीब आ गये और उन्होने मेरी गान्ड पर हाथ रख दिया..

और बोले.. हां लगता है आज जम कर बारिश होगी! इतना कह कर पापा मेरी गान्ड को धीरे धीरे दबाने लगे….मैं तो जैसे सारे दिन का गुस्सा भूल कर मदमस्त हो गयी.. तभी पापा ने मेरी गान्ड के बीच में हाथ रखते हुए अपनी उंगली ठीक मेरी गान्ड के छेद पर दबाई…. मेरे तो सारे बदन में एक आग सी दौड़ गयी..

पापा मेरी गान्ड पर हाथ फेरते हुए बोले … बेटा तेरी माँ कहती है कि तू जवान हो गयी है .. तेरे लिए लड़का देख लूँ.. आज मैं भी देखूँगा कि तू कितनी जवान हो गयी है…

यह कह कर उन्होने मेरी ब्लाउस के उपर की खुली हुई पीठ पर धीरे से एक पप्पी ले ली… और मुझे छोड़ कर दूसरे कमरे की तरफ बढ़ गये…

मैं भी आकर बिस्तर को लगा ने लगी,मैं दूसरा बिस्तर लगा ही रही थी कि पापा आ गये और बोले ..अरे.. ये दूसरा बिस्तर किसलिए?? तू जब छोटी थी तो मेरे ही पास सोती थी… आज अपने पापा के साथ सोने में डर लगता है क्या???

मैने भी चुप चाप अपने बिस्तर को समेट कर रख दिया….

पापा बोले …बेटा तू लेट जा मैं अभी ज़रा फ्रेश हा के आता हूँ???

मैं अकेली ही बेड पर लेट गयी मैने सोचा ..आज तो ज़रूर कुछ करना है..

यह सोच कर मैने अपने ब्लाउस उपर के दोनो बटन खोल लिए…और अपना पेटिकोट भी घुटनो तक चढ़ा कर लेट गयी ..

तभी पापा कमरे में आए ..मुझे देख कर वो मुस्कुराए..मैं उनकी आँखो में चमक सॉफ देख सकती थी..

वो मेरे पास आकर बैठ गये..और बोले.. अंकिता बेटा!ज़रा उपर को सरको..

मैं जानभूझ कर अपने पैरो को मोड़ कर उठी.. पेटिकोट उपर था इसलिए शायद पापा को मेरी मदमस्त चूत की एक झलक तो मिल ही गयी हो गी… आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

तभी पापा ने अपना हाथ मेरी टाँगो पर रख दिया… और बोले..अंकिता तू तो सच मैं काफ़ी बड़ी हो गयी है मैने शरम से आँखें बंद कर ली.. पापा ने धीरे धीरे मेरी जांघे सहलानी शुरू कर दी . मैं तो जैसे मस्त सी हो गयी.सहलाते सहलाते पापा ने अपना हाथ मेरी चूत की तरफ बढ़ा दिया..मेरी मस्त जाँघो को देख कर वो भी मस्ताये से लग रहे थे… तभी पापा ने अपना हाथ बढ़ा कर मेरी चूत के उपर रख दिया,,मुझे ज़ोर से करंट सा लगा…

पापा मेरी चूत को धीरे धीरे सहलाने लगे..मैने अपनी आँखे बंद कर ली… तभी पापा ने मेरे पेटिकोट का नाडा खोल दिया.. और मेरी पेटिकोट को नीचे से सरका कर अलग कर दिया ..अब मैं नीचे से बिल्कुल नंगी अपने पापा के सामने थी..पापा बोले..अंकिता आँखे खोल!!! मैने आँखे खोली और पापा की तरफ देखा..पापा ने झुक कर मेरे होंठो को चूम लिया…फिर पापा ने मेरे ब्लाउज को खोलना शुरू किया….उसे भी उतारने के बाद तो जैसे वो पागल से हो गये और मुझे पागलो की तरह चूमने लगे..फिर उन्होने मेरी चुचियो को अपने हाथों में भर लिया.. और उन्हे ज़ोर ज़ोर से दबाने लगे मुझे दर्द भी हो रहा था और मज़ा भी आ रहा था…..तभी पापा नीचे की ओर सरके और उन्होने मेरी चूत पर अपने होंठ रख दिए… पहले तो धीरे धीरे फिर तेज तेज वो मेरी चूत को चूसने लगे..मैने भी धीरे से अपनी टांगे चौड़ी कर ली और मस्ती के मारे अपनी आँखे बंद कर ली… तभी पापा उठे और बोले..अंकिता ज़रा उठ जा.. मैं उठ कर बैठ गयी..पापा बोले ले ज़रा इसे सहला दे.. मैने अपने हाथों से पापा का लंड सहलाना शुरू कर दिया …फिर पापा ने अपना नाडा खोल दिया और अपने अंडरवेर के साथ ही उसको उतार दिया….मेरे सामने कम्से कम 7 इंच का तना हुआ लंड था.. मैं सोचने लगी क्या माँ की तरह मैं भी इसे अंदर ले पाउन्गि. तभी पापा बोले.. बेटा अंकिता!इसे थोड़ा सा चूस दे ….

मैं तो चाहती ही यही थी मैने उस प्यारे से लंड को अपने मुँह में भर लिया ….और धीरे धीरे टॉफी की तरह चूसने लगी.. पापा के मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थी…तभी पापा बोले बेटा ज़ोर ज़ोर से चूस..इसे पूरा अंदर लेले…

मैं कोशिश करने के बाद भी उसे सिर्फ़ 4-5 इंच ही अंदर ले पायी..

फिर मेरा मुँह दुखने लगा … मैने पापा की तरफ देखा ..पापा बोले …चल अब तू लेट जा बेटा… मैं लेट गयी..फिर वो भी मेरी बगल में बनियान उतार कर लेट गये…उनका नंगा बदन जैसे ही मेरे नंगे बदन से टकराया मैं तो जैसे काँप सी उठी…

फिर पापा ने मेरी चुचियों को बारी बारी चूसा.. और मेरे होंठो को चूसने लगे ….अचानक ही पापा मेरे उपर आ कर लेट गये…. और अपने लंड का आंगल मेरी चूत पर बैठाने लगे… आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

मैं डर गयी और बोली…पापा ये तो काफ़ी बड़ा है….

पापा बोले ……अरे! मेरा बच्चा..तू रुक बेटा मैं अभी आया …

ये कह कर पापा उठ कर बराबर वाले कमरे में गये…और जब आए तो उनके हाथ में एक तेल की शीशे थी… फिर तेल को पहले मेरी चूत पर लगा कर मसल्ने लगे और अपनी एक उंगली भी अंदर सरका दी….पहले एक, फिर दो उंगलियों को वो मेरी चूत में अंदर बाहर करने लगे मैं तो जैसे पागल सी हो गयी थी…. तभी पापा ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख लिया और बोले.. अंकिता बेटा ले इसपर भी तेल लगा दे..

मैं भी उनके रोड जैसे सख़्त लंड पर तेल लगाने लगी…

फिर करीब 10 मिनट बाद पापा फिर से मेरे उपर आ गये और अपने लंड के आंगल को मेरी चूत से लगाया….फिर धीरे से उन्होने मेरी चूत मैं अपना लंड सरका दिया .. मैं तो हैरान थी इतना बड़ा लंड इतने प्यार से मेरी चूत में घूसा जा रहा है….

फिर पापा ने धक्के मारने शुरू किए …पहले धीरे …फिर तेज …मेरी तो जैसे जान ही निकल गयी थी…पापा ने धक्को की स्पीड बढ़ा दी मैं…. मैं भी मस्त हो कर पापा से चिपट गयी..

करीब 1/2 घंटे के बाद मैं और पापा एक साथ झाडे,…पापा के गरम गरम वीर्य ने मेरी चूत को भर कर रख दिया…. मैं तो जैसे बेहोश सी हो गयी थी… झाड़ते समय ऐसा लग रहा था जैसे चूत से पानी नहीं मेरी जान निकल रही थी……

उस रात पापा ने मुझे पता नहीं कितने आंगल से चोदा… और मैने भी भरपूर सहयोग दिया…. करीब 5 बार हम ने चुदाई का प्यारा सा गेम खेला….. अगले दिन पापा ने छुट्टी लेली..और फिर से मेरी जम कर चुदाई की………

मम्मी के आने तक तो लगभग रोज़ ये सिलसिला चला…फिर मम्मी आ गयी तो भी मौका मिलते ही हम एक दूसरे को पूरा पूरा सुख देते रहे……

समाप्त

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