भाभी के भाई ने मेरी चूत ककड़ी की तरह फाड़ दी

गतांग से आगे …. मैं शर्म और उत्तेजना से दोहरी हो रही थी। जब संजय जी मेरी नाभि से नीचे की तरफ़ बढ़ने लगे तो पूरे शरीर में एक सिहरन सी दौड़ने लगी इसलिये मैंने अपने घुटने मोड़ लिये। संजय जी ने उन्हें सीधा करना चाहा मगर मैंने नहीं किये इसलिये वो उठ कर मेरे घुटनों के पास आ गये और मेरी जाँघों को चूमते हुए मेरी योनि की तरफ़ बढ़ने लगे।मगर मैंने अपनी जाँघों को भींच रखा था इसलिये संजय जी ने अपने हाथों से दबाकर फ़िर से मेरे घुटनों को सीधा कर दिया और मेरी योनि को चूमने लगे। मेरे पूरे बदन में एक आग सी भड़क उठी और मेरी योनि तो भट्टी की तरह से तपती महसूस हो रही थी। इसके बाद संजय जी अपनी जीभ को निकाल कर मेरी योनि के ऊपर के हिस्से को जीभ से सहलाने लगे। मैंने अपनी जाँघों को भींच रखा था इसलिये उनकी जीभ ठीक से मेरी योनि तक नहीं पहुँच रही थी मगर फ़िर भी जब संजय जी अपनी जीभ को नीचे मेरी योनि तक पहुँचाने की कोशिश करते तो मेरी जाँघों में कंपकंपी सी होने लगी और उत्तेजना के कारण अपने आप ही मेरी जाँघें खुल गई। अब संजय जी की जीभ मेरी पूरी योनि पर घूमने लगी। मेरी योनि फ़िर से पानी से लबालब हो गई जिसे संजय जी अपनी जीभ से चाट चाट कर साफ़ करने की नाकामयाब कोशिश कर रहे थे और कभी कभी तो वो मेरी छोटी सी योनि को साबुत ही अपने मुँह में भर कर इतनी जोर से चूस लेते कि मैं छटपटाने लगती और मेरे मुँह से ईइइइशशश…अआआहहहह… की जोर से आवाज निकल जाती। संजय जी अपनी जीभ को मेरे दाने पर और योनि द्वार के चारो तरफ़ घुमा रहे थे जिससे मेरे रोम रोम सुलग उठा और मेरी योनि से पानी रिस रिस कर बाहर आने लगा। उत्तेजना से मेरी हालत खराब हो रही थी इसलिये मैं जोर जोर से सिसकारियाँ भरने लगी। मैं चाह रही थी कि उनकी जीभ मेरी योनि में प्रवेश कर जाये और पहले की तरह ही वो अपनी जीभ से मेरी इस आग को शांत कर दें मगर संजय जी ऐसा नहीं चाहते थे वो तो जानबूझ कर मुझे तरसा रहे थे। जब कभी संजय जी मेरी योनि के प्रवेश द्वार में हल्का सा डालते तो मेरे मुँह से इईशश..श… श… अआआ..ह…ह.. की आवाज निकल जाती और अपने आप मेरे कूल्हे ऊपर उठ जाते ताकि उनकी जीभ मेरी योनि में गहराई तक समा जाये मगर संजय जी तुरंत अपना मुँह मेरी योनि पर से हटा लेते और मुस्कुराने लगते। कुछ देर ऐसे ही तड़फाने के बाद संजय जी ने मेरी योनि को छोड़ दिया और अपनी टी-शर्ट उतार कर मेरे ऊपर लेट गये। अब संजय जी बिल्कुल नंगे थे उनके शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था। संजय जी का भार 70-75 किलोग्राम से ज्यादा ही होगा और मेरा मुश्किल से 40 किलोग्राम था, उनके विशाल शरीर के नीचे मेरा नाजुक कली सा पूरा बदन ढक गया था पता नहीं कैसे मैं उनका भार सहन कर पा रही थी। आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | मेरा यह पहला अवसर था जब मेरा नंगा बदन किसी पुरुष के नंगे बदन का स्पर्श पा रहा था जो कि बड़ा ही सुखद था। संजय जी की बालो से भरी नंगी छाती से मेरे छोटे छोटे बूब्स दब रहे थे और उनके लंड की गरमाहट को मैं अपनी योनि पर महसूस कर रही थी। इसके बाद संजय जी मेरी गर्दन व गालों पर चुम्बन करने लगे और साथ ही अपने शरीर को भी आगे पीछे हिलाने लगे जिससे मुझे बहुत मजा आ रहा था क्योंकि उनकी नंगी छाती से मेरे बूब्स मसले जा रहे थे और उनका गर्म लंड मेरी योनि पर रगड़ खा रहा था। मैं बस आँखें बँद करके सिसकारियाँ भर रही थी। जब संजय जी क़ो लगा कि मैं पूरी तरह से मस्त हो गई हूँ तो संजय जी ने एक हाथ से मेरी गर्दन को थोड़ा सा ऊपर उठा कर मेरे होंठों को अपने मुँह में ले लिया और अपने घुटनों से मेरी जाँघें फैला कर दूसरे हाथ से अपने लंड को मेरी योनि के प्रवेश द्वार पर लगा के एक जोर का झटका मारा जिससे उनके मोटे लंड का एक चौथाई भाग मेरी छोटी सी योनि को चीरता हुआ अन्दर चला गया। यह सब इतना अचानक हुआ कि मैं कुछ समझ ही नहीं पाई। मेरे मुँह से बस घुटी हुई उऊऊँऊँ..ऊँ…ऊँ… हहुहु हुँहुँ..हुँ…हुँ… उउउउ..उ…उ…ह… की आवाज निकली व दर्द से मेरी आँखें बाहर उबल पड़ी, उनमें आँसू भर आये और मेरी योनि से खून का फव्वारा निकल पड़ा। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी योनि में जबरदस्ती कोई मोटी लोहे की जलती हुई छड़ घुसा दी हो। मेरे होंठ संजय जी के मुँह में थे इसलिये मेरा मुँह बँद था नहीं तो मेरे मुँह से इतनी जोर से चीख निकलती की सारे घरवाले जाग जाते। मैं बस उँहह..ह… उँघुँघुँ..घुँ… करके रह गई। मेरी सारी उत्तेजना गायब हो गई और मैं दर्द से तड़पने लगी, मैंने संजय जी की कमर को दोनों हाथों से पकड़ लिया और उन्हें पीछे धकेलने लगी ताकि उनका लंड मेरी योनि से बाहर निकल जाये मगर संजय जी ने अपनी कमर को छुड़वा लिया और मेरे दोनों हाथों की कलाइयों को मेरी गर्दन के पास अपने दोनों हाथों से इस तरह दबा लिया कि अब मैं ना तो अपने हाथ हिला सकती थी और ना ही अपनी गर्दन को हिला पा रही थी। इसके बाद संजय जी ने अपने लंड को थोड़ा सा बाहर खींच लिया जिससे मुझे कुछ राहत मिली मगर फिर से उन्होंने जोरदार झटका मारा। अब की बार उनका आधे से ज्यादा लंड मेरी योनि में चला गया, मैं दर्द से बिलबिलाने लगी और अपने आप को छुड़ाने का प्रयास करने लगी मगर सफल नहीं हो पा रही थी। कुछ देर रुक कर फिर से उन्होंने लंड को बाहर खींचा और एक बार फिर से जोरदार झटका मारा इस बार उनका पूरा लंड मेरी योनि में समा गया। मेरी आँखों के आगे अँधेरा सा छा गया और मैं दर्द से बुरी तरह तड़पने लगी। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे संजय जी का लंड मेरी योनि को चीरकर मेरे पेट तक पहुँच गया है और मैं कुछ भी नहीं कर पा रही थी क्योंकि मेरे दोनों हाथों को संजय जी ने अपने हाथों से दबा रखा था जिनको मैं हिला भी नहीं पा रही थी और मेरे होंठ भी उनके मुँह में थे जिससे मैं चिल्ला भी नहीं सकती और अगर गर्दन को थोड़ा सा भी हिलाती तो संजय जी मेरे होंठों को दाँत से काट लेते जिससे भी मुझे बहुत दर्द हो रहा था। मैं बिल्कुल विवश और लाचार हो गई, बस मेरे पैर ही आजाद थे जिनको मैं जोर जोर से बेड पर पटकने लगी। इसके बाद संजय जी अपनी कमर को धीरे धीरे आगे पीछे हिलाने लगे जिससे उनका लंड मेरी योनि में अन्दर बाहर होने लगा, जब उनका लंड बाहर जाता तो मुझे कुछ राहत मिलती मगर जब वो अन्दर जाता तो मुझे ऐसा लगता कि जैसे उनका लंड मेरी योनि व पेट को फाड़ कर पीछे मेरी कमर से बाहर निकल जायेगा। दर्द के कारण मेरी आँखों से आँसू बहने लगे। मैं कुछ बोल तो नहीं पा रही थी मगर अपनी गीली आँखों से संजय जी से अपने आप को छोड़ देने की भीख माँग रही थी और जोर जोर से अपने पैर बेड पर पटक रही थी मगर संजय जी पर ना तो मेरी आँसुओं से भरी आँखों का और ना ही मेरे पैर पटकने का कोई असर हो रहा था, वो तो बस मेरी योनि पर वार पर वार किये जा रहे थे, उनका एक एक वार मेरी योनि को तहस नहस कर रहा था और मैं दर्द से तड़प रही थी। कुछ देर बाद असहनीय दर्द के कारण मेरा शरीर जैसे संज्ञा-शून्य सा हो गया क्योंकि मेरे पेट के नीचे के भाग पर मुझे कुछ भी महसूस नहीं हो रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे मेरी नाभि के नीचे कुछ है ही नहीं। मगर संजय जी लगातार धीरे धीरे धक्के लगाते रहे। कुछ देर तक मैं ऐसे ही जड़ सी होकर पड़ी रही और अपने आप धीरे धीरे फिर से मेरे शरीर में चेतना आने लगी मगर अब मुझे इतना अधिक दर्द नहीं हो रहा था। कुछ देर बाद तो मेरा दर्द गायब ही हो गया और धीरे धीरे दर्द की जगह आनन्द ने ले ली, मैं फिर से उत्तेजित हो गई, अब संजय जी के झटकों से मुझे दर्द नहीं हो रहा था बल्कि सुख मिल रहा था इसलिये मैंने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया और बिल्कुल शाँत सी हो गई। संजय जी धक्के लगाते हुए मेरे होंठों को बुरी तरह चूस रहे थे। मेरे होंठों को संजय जी ने अपने मुँह में लेकर बँद कर रखा था मगर फिर भी उत्तेजना के कारण मेरे मुँह से उँहु…हुँ…हुँ.. उँह…हुँ…हुँ… उँह…हुँ…हुँ… की आवाज निकलने लगी। कुछ देर बाद जब संजय जी को लगा कि मैं शांत हो गई हूँ तो उन्होंने मेरे हाथों को छोड़ दिया और एक हाथ से मेरे बूब्सों को सहलाने लगे और मेरी गर्दन व गालों पर चुम्बन करने लगे। आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | अब मेरे होंठ और हाथ दोनों आजाद हो गये थे इसलिये मैंने अपने दोनों हाथों से संजय जी के कँधों को पकड़ लिया और अपने आप ही उत्तेजना के कारण मेरे मुँह से इईशश..श…श… अआआहहा..हाँ…हाँ… इईशश..श…श… अआहहा..हम्म…हाँ… की मादक सिसकारियाँ निकलने लगी जिससे संजय जी का जोश दोगुना हो गया और वो तेजी से धक्का लगाने लगे। मेरी भी साँसें तेज हो गई और सिसकारियों की आवाज बढ़ गई। सर्दी का मौसम था फिर भी हम दोनों के शरीर पसीने से पूरे गीले हो गये और साँसें उखड़ने लगी। पूरा कमरा मेरी सिसकारियों और हम दोनों की साँसों की आवाजों से गूंजने लगा। धीरे धीरे मेरा मजा बढ़ता गया और कुछ देर बाद मेरे पूरे शरीर में आनन्द की एक लहर दौड़ गई, मेरे हाथ-पैर संजय जी की कमर से लिपट गये और मेरे कूल्हे अपने आप ऊपर उठ गये, मेरे मुँह से इईशश..श…श… अआहह..ह…ह… की जोर से आवाज निकली और मैं अपनी योनि से ढेर सारा पानी छोड़ते हुए शाँत हो गई। कुछ देर बाद संजय जी भी चरम पर पहुँच गये उन्होंने मेरे शरीर को कश कर पकड़ लिया और अआह.प..आ…य…अ…ल.. इईशशश.. श…श… मेरी ज.आ..न… कहा और उनका लंड ढेर सारा गर्म वीर्य मेरी योनि में उगलने लगा। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरी योनि में कोई गर्म लावा फ़ूट पड़ा हो जो मेरी योनि से रिस कर मेरी गुदा छिद्र पर भी बहने लगा और वो शाँत हो गये। अब पूरे कमरे में सन्नाटा सा छा गया था, बस हम दोनों की उखड़ी हुई साँसों की ही आवाज आ रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे कमरे में कोई तूफान आ गया था और अब वो गुजर गया है। कुछ देर संजय जी मेरे ऊपर ऐसे ही पड़े रहे और जब वो उठने लगे तो मेरा ध्यान उनके लंड व जाँघों पर चला गया जिन पर खून लगा हुआ था। कमरे में इतनी अधिक रोशनी तो नहीं थी मगर संजय जी की जाँघों और लंड पर लगे खून को देखने के लिये पर्याप्त थी। मैं तुरन्त अपनी योनि को देखने के लिये उठी तो मुझे योनि में बहुत पीड़ा महसूस हुई मगर मैं फिर भी उठ कर बैठ गई और अपनी योनि को देखने लगी। मेरी योनि से अब भी खून और वीर्य रिस रिस कर बाहर आ रहा था और मेरी जाँघें व योनि खून से लथपथ थी, चादर पर भी काफ़ी खून गिरा हुआ था, इतना खून देखकर मैं घबरा गई। मैं खड़ी होकर लाईट जलाने लगी तो असहनीय दर्द के कारण मेरी आँखों में फिर से आँसू भर आए और मैं बेड से नीचे गिर पड़ी।

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