भाभी के भाई ने मेरी चूत ककड़ी की तरह फाड़ दी

गतांग से आगे …. जब संजय जी धक्का लगाते तो उनकी जाँघें मेरी जाँघों से टकरा जाती जिससे ‘पट-पट’ की आवाज निकल रही थीं, और अब तो मैं भी नीचे से धक्के लगा रही थी। इसलिए पूरा कमरा मेरी सिसकारियों और ‘पट-पट’ की आवाजों से गूंजने लगा। ऐसा लग रहा था, जैसे हम दोनों में एक-दूसरे को हराकर पहले चरम पर पहुँचने की होड़ लगी हो। क्योंकि जितनी तेजी और जल्दी से संजय जी धक्का लगाते उतनी ही तेजी और जल्दी से मैं भी अपने कूल्हों को ऊपर नीचे कर रही थी। उत्तेजना से मैं पागल सी हो गई। संजय जी ने मेरे ऊपर के होंठ को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगे। उत्तेजना के कारण पता नहीं कब, उनका नीचे का होंठ मेरे मुँह में आ गया जिसे मैं भी चूसने लगी। हम दोनों के शरीर पसीने से भीग गए और साँसें उखड़ने लगी। मेरे मुँह पर संजय जी का मुँह था फिर भी मैं उत्तेजना में, जोर-जोर से सिसकारियाँ भर रही थी। कुछ देर बाद ही अपने आप मेरे हाथ संजय जी की पीठ से और पैर उनकी कमर से लिपटते चले गए, मेरे मुँह में संजय जी का होंठ था जिसको मैंने उत्तेजना के कारण इतनी जोर से चूस लिया कि मेरे दाँत उनके होंठ में चुभ गए और उसमें से खून निकल आए। पूरे शरीर में आनन्द की एक लहर दौड़ गई और मैं संजय जी के शरीर से किसी बेल की तरह लिपट गई। एकदम से सीत्कार करते हुए शाँत हो गई और मेरी योनि ने ढेर सारा पानी छोड़ दिया। इसके बाद संजय जी ने भी मेरे शरीर को कस कर भींच लिया और उनके लंड से रह-रह कर निकलने वाले गर्म वीर्य को अपनी योनि में महसूस करने लगी। जो मेरी योनि से निकल कर मेरी जाँघों पर भी बहने लगा। और वो निढाल होकर मेरे ऊपर गिर गए। आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | कुछ देर तक वो ऐसे ही मेरे ऊपर पड़े रहे और फिर उठ कर अपने कपड़े पहनने लगे। मगर मैं ऐसे ही शाँत भाव से पड़ी रही और संजय जी को कपड़े पहनते देखती रही। कपड़े पहन कर संजय जी कमरे से बाहर निकल गए। संजय जी के जाने के बाद टीवी को बन्द करने के लिए मैं रिमोट देखने लगी, तो मुझे अपने कूल्हों के नीचे कुछ गीला-गीला व चिपचिपा सा महसूस हुआ। मैंने देखा तो चादर पर मेरी योनि से निकला पानी और संजय जी का वीर्य पड़ा हुआ था। कहीं कोइ देख ना ले ये सोचकर मैं घबरा गई इसलिए मैंने जल्दी से चादर को बदल दिया और टीवी को भी बंद कर दिया। धुलाई के लिए मैंने उस चादर को उठा लिया, मगर नीचे से मैं नंगी थी इसलिए मैंने उस चादर को ही अपने शरीर से लपेट लिया और अपनी सलवार उठा कर जल्दी से बाथरूम में घुस गई। जब मैंने बाथरूम के दरवाजे को बंद करके कुण्डी लगा ली, तब जाकर चैन की साँस ली और मेरा डर कम हुआ। मैंने चादर को खोल कर नीचे डाल दिया व आदत के अनुसार अपने सारे कपड़े उतार कर बाथरुम में लगे शीशे के सामने जाकर नंगी खड़ी हो गई और खुद के शरीर को देखने लगी। मेरे शरीर पर काफी जगह संजय जी के पकड़ने से उनकी उँगलियों के निशान बने हुए थे और पेट के नीचे का योनि क्षेत्र व मेरी जाँघें तो बिल्कुल लाल हो गई थीं। मेरी योनि से अब भी संजय जी का वीर्य एक लम्बी लार की तरह रिस कर मेरी जाँघों पर बह रहा था, जिसमें थोड़ा सा मेरी योनि का खून भी मिला हुआ था। आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | इसके बाद मैंने उस चादर की धुलाई की और नहाकर अपने कपड़े पहन कर बाहर आ गई। बाथरुम से बाहर निकलते ही मैं सीधे नीचे मम्मी के पास चली गई। मम्मी अब भी टीवी पर वो ही फिल्म देख रही थीं। मुझे उन पर गुस्सा आ रहा था, क्योंकि ऊपर मेरे साथ इतना कुछ हो गया और गया। उनको इस फिल्म से ही फुर्सत नहीं है। इसके बाद तो मैंने ऊपर जाना बिल्कुल ही बंद कर दिया चाहे ऊपर कोई हो या ना हो। मैं कभी भी ऊपर नहीं जाती थी। इसी तरह एक सप्ताह बीत गया, भैया की छुट्टियाँ खत्म हो गईं और भैया चले गए। भैया के जाने के बाद भाभी और मम्मी-पापा के दबाव के कारण मैं ऊपर भाभी के कमरे में सोने लगी और इसका फायदा संजय जी को मिला। अब मै अपनी कहानी यही पर समाप्त कर रही हूँ वैसे तो कहानिया लिखू तो अब तक इतने लोगो से चुद चुकी हूँ की हजारो कहानी लिख डालू पर अभी भी मेरी चूत की प्यास नही मिट पाती है | जो भी जल्दी ही अपनी एक और स्टोरी भेजुगी जब मेरे किसी भाई का लंड मेरी चूत में जायेगा | आप लोगो ने निवेदन है की मेल भेजने से पहले मुझे कमेंट लिख कर मुझे बताये मेरी सच्ची दास्ताँ कैसी लगी [email protected]

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