मम्मी की गरम चूत चाचू का मोटा पप्पू

प्रेषक: रजत वर्मा

आज मै बड़े दिनों के बाद आगे की कहानी भेज रहा हूँ . चाचा से चुदवाने के तीसरे दिन हम भाई बहन स्कूल जा रहे थे , मम्मी ने बोला, बेटा स्कूल जाते हुए चाचा के घर में बोलते जाना की कल सन्डे खेत में हल लगाना है, चाची और दीदी  को भी आने को बोलना. मैं चलते-चलते सोच रहा था की मम्मी सायद एक बार फिर चाचा के खच्चर जैसे लैंड का स्वाद लेना चाहती है लेकिन चाची और उनकी लड़की को भी बुलाया है तो मैंने अपने दिमाग से ये ख्याल निकाल दिया. घर में चाची मिली मैंने उनको बोला तो वो बोली- तेरी माँ ब्याई है, इन्नर (खीस- भैंस का बच्चा होने के सुरु का गाढ़ा दूध) खाने बुलाया है. मैं पता नहीं का जवाब देकर अपने स्कूल के लिए चल दिया. दोपहर को हम दोनों भाई बहन घर पहुंचे. अन्दर से बंद दरवाजा खटखटाया तो मम्मी ने दरवाजा खोला, मम्मी एक दम नंगी थी (नहाते हुए उठकर आयी थी), दरवाजा फिर बंद करने के बाद मम्मी नहाने लगी और हमको कपडे उतारकर अपने पास नहाने के लिए बुलाया (नहाने की जगह झोपड़ी के जानवर बांधने वाली साइड बनी थी). हम दोनों कपडे उतारकर मम्मी के पास जाकर बैठ गए. मम्मी नहा चुकी थी पर हमको नहलाने के लिए नंगी ही बैठी थी. पहले मम्मी ने सिस्टर को अपने सामने बिठाया और पानी डालकर अथला (पेड़ की छाल को कूट कर बनाया गया गुच्छा जो साबुन की तरह झाग देता है, गाँव में लोग उसी से नहाते थे , साबुन यूज नहीं करते थे ) उसके पुरे बदन पर मला (कई बार मम्मी की उँगलियों ने सिस्टर की घेहूँ की शकल जैसी चूत को रगडा). उसको नहलाने के बाद मेरा नंबर आया, मैं उनके सामने उनकी तरफ मुह करके बैठ गया, मम्मी ने पानी डाला और मैं अपनी आँख का पानी साफ़ करते-करते छिपी नज़रों से उनकी चूत देखने की कोसिस करने लगा पर झांटों और एक खाई (लाइन) के अलावा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. मम्मी के कहने पर मैं खड़ा हो गया और मम्मी पत्थर से मेरे घुटनो और पैर के पंजों पर जोर जोर से रगड़ने लगी. बीच-बीच में नोनी पर भी रगड़ देती. अब मम्मी भी खड़ी हो गयी और मेरे सर के ऊपर से पानी डालने लगी जिसके छींटें मम्मी के ऊपर भी पड़ रहे थे और पानी उनके पेट से सरकता हुवा उनकी झांटों पर अटक जाता, झांट के बालों से निकल कर कुछ तो बूंदे बन कर टपक जाती और कुछ नीचे सरकता हुवा दोनों टांगों के ठीक बीच से धार बन कर बह रहा था | आप यह कहानी मस्ताराम.नेट पर पढ़ रहे है | लगरहा था जैसे वो मूत रही हो. अचानक मम्मी ने मेरी नोनी का फोरस्किन पीछे किया और लोटे से पानी डालते हुए उँगलियों से साफ़ कर ने लगी, मेरी नूनी कड़ी हो गयी. मम्मी, बदमास कही का बोलते हुए मेरे मुह पर देखने लगी. नहाने के दबाद मम्मी और मैं नंगे ही झोपड़ी के दूसरी तरफ आये जहाँ मेरी सिस्टर पहले से ही नंगी बैठी थी, मम्मी ने लकड़ी के सन्दुक से हमारे कपडे निकाल कर दिए और अपना पेटीकोट निकाल कर सर के ऊपर से पहनते हुए कमर में नाडा बाँधा , ब्लाउज पहना और फिर धोती. खाना खाने के बाद हम तीनो दरवाजे के सामने बिछी दरी (हमेसा बिछी रहती है) पर सो गए. नेक्स्ट डे मम्मी जल्दी उठ गयी थी, मुझे भी जल्दी उठा दिया नास्ता किया और बोली मैं घेर में जाऊंगी छोटी (सिस्टर) उठेगी तो नास्ता खिला देना. थोड़ी देर में चाचा, चाची और उनकी लड़की बैलों को लेकर आये, मम्मी ने उनको चाय पिलाई फिर उनके साथ घेर में चली गयी. थोड़ी देर में सिस्टर उठी, हम दोनों २ नंबर के लिए झोपड़ी के पीछे की तरफ बने खेत में गए, थोड़ी दुरी बनाकर हम दोनों बैठ गए. मैंने देखा बैठते ही सिस्टर की नन्ही सी चूत से लम्बी पिशाब की धार छुटी और मेरी नोनी से भी. घर आकर हमने पानी से साफ़ करने के बाद मैंने छोटी को नास्ता दिया, जूठे बर्तन धोने के बाद मैंने छोटी को खिड़की के पास बिछे बिस्तर पर बुलाया जिसपर चाचा ने मेरी मम्मी को जबरदस्त तरीके से पेला था. मैंने उसको नया खेल खेलने का बताकर उसको मम्मी की तरह बिस्तर पर लिटाया (उसने कच्छी नहीं पहनी थी-गाँव में कोई पहनता ही नहीं है) और चाचा की तरह उसके ऊपर आकर अपने ढीले ढाले कच्छे को सर्काकर अपनी नूनी (जो कड़ी हो गयी थी) पर थूक लगाया और कुछ थूक छोटी की चूत पर लगाने के बाद अपनी नूनी को उसमे घुसेदने की कोसिस करने लगा, जब जोर लगाया तो छोटी चिल्ला पड़ी- ईईईई भैया मुझे नहीं खेलना ये खेल, दरद होता है. मुझे याद आया मम्मी ने अपनी चूत के छेद को अपने हाथों से चौड़ा कर खोला था सो मैंने उसके ऊपर से हट कर उसकी टांगों को मोड़कर इधर-उधर फैलाया और उसके दोनों हाथों को पकड़कर उसकी चूत के पास लाकर उसकी उँगलियों को उसकी पिद्दी सी चूत के अगल-बगल की स्किन पर रखा और उसको खींचने के लिए बोला. अन्दर गुलाबी रंग की स्किन दिखाई दी, उसको इसी तरह पकडे रहने को बोलकर मैंने उसकी टांगों के बीच में आकर अपनी नोनी पर फिर थूक लगाया और उसकी चूत के मुह पर रखते ही धक्का मारा??.वो चिल्लाई माआआआआआआआआ जी और खिसक कर खड़ी हो गयी, रोते हुए उसने अपनी घाघरी ऊपर उठाई, उसकी जांघ पर खून टपक रहा था, हम दोनों घबरा गए, मैंने झट से कुछ चीनी मुह में डाली और चबाकर अपनी हथेली पर निकाल कर उसकी चूत पर लगायी, खून निकलना बंद हो गया. मैं बहुत घबरा गया था और छोटी को प्यार से समझाने लगा क़ि मम्मी को मत बताना और किसी को भी नहीं बताना, ये गलत खेल होता है और हम दोनों को बहुत मार पड़ेगी. ये भी बताया की ये खेल आदमी और औरत लोग शादी के बाद बच्चा बनाने के लिए खेलते है. रोते-रोते उसने कसम खायी क़ि वो किसी को नहीं बताएगी और मेरे से भी कसम दिलाई क़ि उसके साथ ये खेल कभी नहीं खेलूँगा. दोपहर को मम्मी, चाची और उनकी लड़की घास के गठ्हर लेकर आये, पानी पीने के बाद मम्मी ने उनको मट्ठा (लस्सी) पिलाकर खाना खाकर जाने को बोला लेकिन वो नहीं मानी ये बोलकर क़ि वो सुबह ही दाल चावल पकाकर आई थी. मम्मी ने चाचा के आने तक उनको रोकना चाहा , चाची बोली वो अभी गाद (नदी) में नहायेंगे, दयाल (रस्ते में पड़ने वाले घर का मालिक) के साथ हुक्का पीकर आयेंगे, तुम्हारे घर खाना खायेंगे , तब तक बहुत देर हो जायेगी और दोनों माँ बेटी ने अपना-अपना घास का गठ्हर उठाया और अपने रास्ते चल दी. मम्मी ने हम दोनों को खाना खिलाया और आराम से सोने को बोला. मेरा दिमाग में फिर हलचल मचने लगी, क्या मम्मी आज भी चुद वाएगी ?, नहीं-नहीं अगर चुदवाना होता तो चाची और उनकी लड़की को रोकने की कोसिस क्यों करती?.. फिर सोचने लगा क़ि हमको सोने के लिए क्यों बोल रही है. कभी दिमाग कहता नहीं चुद वाएगी कभी कहता बिना चुदे नहीं रहेगी और थोड़ी देर लेटने के बाद करवट लेकर मैं अपना वही पोज बनाकर हलकी हलकी सांस लेने लगा ताकि मम्मी को पता चल जाये क़ि मैं नींद में हूँ | आप यह कहानी मस्ताराम.नेट पर पढ़ रहे है | काफी देर के बाद जब चाचा नहीं आये तो मैंने बहाने से दूसरी तरफ करवट ले ली (मम्मी को धोखा देने के लिए). इस बीच मम्मी २-3 बार बाहर गयी और लौटी सायद चाचा को देखने गयी होगी. जैसे ही बाहर बैलों की घंटी की आवाज मेरे कानो में पड़ी मैंने फिर खिड़की की तरफ लगे बिस्तर की तरफ करवट ली और हिलते हुए अपने पोज की अद्जुस्त्मेंट की. मम्मी भागते हुए अन्दर से घास की एक छोटी सी गद्दी उठाकर बाहर गयी, अन्दर उनकी बातें करने की आवाज आ रही थी पर समझ में नहीं आ रहा था. मम्मी अन्दर आई और दो थालियों में खाना परोसकर चाचा का इंतजार करने लगी. चाचा अन्दर आये और अपने चिरपरिचित अंदाज़ में बैठे, बैठते ही उनका मुरझाया हुआ लंड कच्छे सेबाहर लटक गया और जमींन पर मुड गया.
मम्मी- तुम इसको संभाल कर नहीं रख सकते.
चाचा- कैसे सम्भालूं, पजामा पहनने की आदत नहीं है और कच्छे में ये अन्दर रह नहीं पाता. उनके बोलने के साथ ही धीरे-धीरे उनका लंड नाग के फन की तरह उठाने लगा. भाभी डरो मत मुझे परसों की कसम याद है.
मम्मी-वो बात नहीं है, पर तुम्हे संभल कर बैठना चाहिए, तुम्हारे घर में जवान लड़की है. चाचा-अपनी तरफ से कोसिस तो करता हूँ पर बाहर निकल ही जाता है.
मम्मी-मुझे पता है तुम जान बूझ कर उसको बाहर निकाल कर बैठते हो ताकि कोई औरत उसको देखे और तुम उसका फ़ायदा उठाओ. अब तो चाचा का लंड पूरी तरह तन गया था और झटके मारने लगा. मम्मी ने खाना सुरु किया और उनको भी खाना सुरु करने को कहा.
चाचा- भाभी एक बार दर्शन तो करवा दो बैठे-बैठे.
मम्मी- तुम्हे तो सरम लिहाज नहीं है, मुझे तो है, फटाफट खाना खाओ .
चाचा- देखने और दिखाने की कसम तो नहीं खायी है भाभी.
मम्मी- देखे बिना मानोगे तो नहीं और मम्मी ने बैठे-बैठे ही अपना पेतिकोत ऊपर सरकाया और जमीन से गांड उठाकर हिप्स से ऊपर खींच कर चाचा की तरह उनके सामने बैठ कर थाली अपने घुटनों पर रख कर खाना खाने लगी. चाचा मम्मी की टांगों के बीच में नज़रे गढा कर मुस्कराते हुए खाना खा रहा था और उनका लंड आधा मुड़ने के बाद तन्न्न्नन्न्न्न से ऊपर झटके मार रहा था. खाना खाने के बाद मम्मी ने उठकर बर्तन इक्कठे किये और धोने के लिए बाहर चली गयी, चाचा ने अपने लंड की तरफ देखा और एक बार उसकी फोरस्किन खींच कर उसके सुपदे को देखा और वापस स्किन से धक् कर बैठ गए. पत्ते में तम्बाकू लपेटकर पीने लगे . मम्मी ने अन्दर आकर बर्तन संभाले और चूल्हे के पास बैठकर चाचा से बोली ये (चाचा का लंड ) अभी शांत नहीं हुवा. चाचा-इतनी जल्दी शांत कहाँ होगा, हो जायेगा धीरे धीरे. लम्बी सांस लेते हुए बोले-चलता हूँ भाभी घर जाकर आराम करूंगा.
मम्मी-आज बहुत जल्दी लग रही है घर जाकर आराम करने की, अभी खाना खाया है थोड़ी देर यही सुस्ता लो. चाचा उठकर मेरे पास आकर बैठने ही वाले थे क़ि मम्मी भागते हुए आई और चाचा का हाथ खींचते हुए उसी बेड के ऊपर लेजाकर बैठ गयी जिसपर २ दिन पहले चिल्ला-चिल्ला कर चाचा के लंड का मज़ा लिया था.
मम्मी- आज बड़े सरीफ बन रहे हो?..
चाचा-भाभी मैंने तुमको कसम दी है
मम्मी- कसम तुमने दी मैंने तो नहीं दी है और मम्मी ने चाचा की छाती पर हाथ रखकर उनको धकेलकर लिटा दिया और उनकी बनियान ऊपर सरकाकर उनकी छाती पर उग्गे बालों पर उँगलियाँ फेरने लगी और चाचा मम्मी के ब्लाउज के ऊपर से उनके दूध दबाने लगे. मम्मी अपना दूसरा हाथ चाचा के कच्छे के अन्दर ले गयी और चाचा के मुरझाये लंड को बाहर निकाल कर हिलाने लगी. तुरंत ही चाचा का लंड तन गया, मम्मी के चेहरे पर मुस्कान फिर सरम और कुछ कुछ घबराहट दिखने लगी . अब मम्मी अपने हाथ की मुठियों से चाचा के तने हुए लंड को नापने लगी, पहले मम्मी ने उनके लंड की जड़ पर अपने एक हाथ की मुठी रखी और उसके ऊपर दुसरे हाथ की मुठी, फिर नीचे वाली मुठी हटाकर ऊपर वाली मुठी के ऊपर रखी और फिर दूसरी वाली मुठी को फिर पहले वाले हाथ की मुठी के ऊपर, अब चाचा के लंड का फोरस्किन बाहर दिखाई दे रहा था | आप यह कहानी मस्ताराम.नेट पर पढ़ रहे है | हे माआआआआआअ बोलते हुए मम्मी ने आधा लेटते हुए चाचा की छाती पर अपना सर रखा और उनके लंड का फोरस्किन ऊपर नीचे करने लगी. चाचा मम्मी के चुतादों के पीछे से अपना हाथ घुमा कर लाये और मम्मी का पेटीकोट खींच कर उनकी चूत को नंगा कर उनकी झांटों के ऊपर उँगलियाँ घुमाने लगे. काफी देर तक रगड़ने के बाद चाचा ने एक ऊँगली मम्मी की चूत में घुसाई और अन्दर बाहर करने लगे. एक मिनट के बाद मम्मी कभी-कभी अपनी टांगों को इक्कठा कर स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स् करने लगी. चाचा ने मम्मी को उनके लंड पर थूक लगाने को बोला, मम्मी अपने पीछे की तरफ मुड़ी और कटोरी (जिसमे दूध निकालने से पहले भैंस के थन पर लगाने वाला मक्खन (बुट्टर) रखा था) से बुट्टर अपनी उँगलियों से निकाला और चाचा के लंड का फोरस्किन खींच कर उसकी गाँठ पर मलने के बाद फोरस्किन को ४-५ बार ऊपर नीचे किया और चाचा से पूछा अब क्या?? चाचा ने लेटे-लेटे मम्मी की एक टांग खींच कर अपने आप उनकी दोनों टांगो के बीच में आ गए फिर उनके हिप्स के पास से उनकी दोनों थाईस को अपने दोनों हाथों से ऊपर उठाया और नीचे से लंड उनकी चूत में घुसाने की कोसिस करने लगे | आप यह कहानी मस्ताराम.नेट पर पढ़ रहे है |  लंड की लम्बाई जादा होने के कारण सीधा खड़ा नहीं हो पा रहा था, आधे में मुड रहा था, मम्मी ने अपना एक हाथ पीछे घुमाकर उनके लंड को पकड़ा और अपनी चूत पर रखा पर फिर भी नहीं घुसा. मम्मी की तड़प मैं देख रहा था, वो जल्दी से उनके ऊपर से उतर कर बैठ गयी और कटोरी से बुट्टर निकाल कर पहले अपनी चूत के ऊपर रगडा और फिर एक ऊँगली में बुट्टर लगा कर अपनी चूत के छेद में डालकर चरों तरफ घुमाया और उतनी ही जल्दी से फिर से चाचा के ऊपर आ गयी. मम्मी ने चाचा क़ि दोनों हथेलियों को पकड़ा और दोनों टांगो के बीचे से लाकर अपने हिप्स ऊपर उठाये और अपनी चूत की दोनों साइड में रखकर बोली चौड़ा करो देवर जी.

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गुरु मस्तराम

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त मस्ताराम, मस्ताराम.नेट के सभी पाठकों को स्वागत करता हूँ . दोस्तो वैसे आप सब मेरे बारे में अच्छी तरह से जानते ही हैं मुझे सेक्सी कहानियाँ लिखना और पढ़ना बहुत पसंद है अगर आपको मेरी कहानियाँ पसंद आ रही है तो तो अपने बहुमूल्य विचार देना ना भूलें



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