प्रेषिका: आशिया खान
हेल्लो दोस्तों मै आशिया हु आज मै पहली बार अपनी कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पोस्ट कर रही मेरी कहानी पढ़ने से पहले लड़के अपने लंड हाथ में पकड़ ले और लड़कियां अपनी चूत में बैगन या डिल्डो डाल ले फिर कहानी मेरी चुदाई का मज़ा पढ़ कर देखना अगर मजा ना आ गया तो कहना और अब अपने बारे में बता देती हु मै २६ साल की एक शादीशुदा औरत हु। गोरा रंग और खूबसूरत नाक नक्श। कोई भी एक बार मुझे देख लेता तो बस मुझे पाने के लिये तड़प उठता था। मेरा फिगर, ३६-२८-३८, बहुत सैक्सी है। मेरा निकाह असलम से ६ साल पहले हुआ था। असलम एक बिज़नेसमैन है और असलम निहायत ही हेंडसम और काफी अच्छी फितरत वाला आदमी है। वो मुझे बहुत ही मोहब्बत करता है। मगर मेरी किसमत में सिर्फ एक आदमी का मोहब्बत नहीं लिखी हुई थी। मैं आज एक बच्चे की माँ बनने वाली हूँ मगर असलम उसका बाप है कि नहीं, मुझे नहीं मालूम
कुछ दिनों बाद जेठ और जेठानी वहाँ हमारे पास आये । असलम भी समय निकाल कर घर में ही घुसा रहता था। बहुत मज़ा आ रहा था। खूब हंसी मजाक चलता। देर रात तक नाच गाने और पीने-पिलाने का प्रोग्राम चलता रहता था। फिरोज़ भाई जान और सोफ़िया भाभी काफी खुश मिजाज़ के थे। उनके निकाह को चार साल हो गये थे मगर अभी तक कोई औलाद नहीं हुई थी। ये एक छोटी कमी जरूर थी उनकी ज़िंदगी में मगर बाहर से देखने में क्या मज़ाल कि कभी कोई एक शिकन भी ढूँढ लें चेहरे पर। एक दिन दोपहर को खाने के साथ मैंने कुछ ज्यादा ही शराब पी ली। मैं सोने के लिये बेडरूम में आ गयी। बाकी तीनों ड्राइंग रूम में गपशप कर रहे थे। शाम तक यही सब चलना था इसलिये मैंने अपने कमरे में आकर फटाफट अपने कपड़े उतारे और नशे में एक हल्का सा फ्रंट ओपन गाऊन डाल कर बिस्तर पर गिर पड़ी। अंदर कुछ भी नहीं पहन रखा था और मुझे अपने सैंडल उतारने तक का होश नहीं था। पता नहीं नशे में चूर मैं कब तक सोती रही। अचानक कमरे में रोशनी होने से नींद खुली। मैंने अलसाते हुए आँखें खोल कर देखा तो बिस्तर पर मेरे पास जेठ जी बैठे मेरे खुले बालों पर मोहब्बत से हाथ फ़िरा रहे थे। मैं हड़बड़ा कर उठने लगी तो उन्होंने उठने नहीं दिया। दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
लेटी रहो,” उन्होंने माथे पर अपनी हथेली रखते हुए कहा, अब कैसा लग रहा है आशिया?”
अब काफी अच्छा लग रहा है।” तभी मुझे एहसास हुआ कि मेरा गाऊन सामने से कमर तक खुला हुआ है और मेरी गोरी-चिकनी चूत जेठ जी को मुँह चिढ़ा रही है। कमर पर लगे बेल्ट की वजह से पूरी नंगी होने से रह गयी थी लेकिन ऊपर का हिस्सा भी अलग होकर एक निप्पल को बाहर दिखा रहा था। मैं शरम से एक दम पानी-पानी हो गयी। मैंने झट अपने गाऊन को सही किया और उठने लगी। जेठजी ने झट अपनी बाँहों का सहारा दिया। मैं उनकी बाँहों का सहारा ले कर उठ कर बैठी लेकिन सिर जोर का चकराया और मैंने सिर को अपने दोनों हाथों से थाम लिया। जेठ जी ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया। मैंने अपने चेहरे को उनके घने बालों से भरे मजबूत सीने में घुसा कर आँखें बंद कर लीं। मुझे आदमियों का घने बालों से भरा सीना बहुत सैक्सी लगता है। असलम के सीने पर बाल बहुत कम हैं लेकिन फिरोज़ भाई जान का सीना घने बालों से भरा हुआ है। कुछ देर तक मैं यूँ ही उनके सीने में अपने चेहरे को छिपाये उनके जिस्म से निकलने वाली खुश्बू अपने जिस्म में समाती रही। कुछ देर बाद उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में संभाल कर मुझे बिस्तर के सिरहाने से टिका कर बिठाया। मेरा गाऊन वापस अस्त-व्यस्त हो रहा था। जाँघों तक टांगें नंगी हो गयी थी। मैंने अपने सैंडल खोलने के लिये हाथ आगे बढ़ाया तो वो बोले पड़े, इन्हें रहने दो आशिया …. अच्छे लगते हैं तुम्हारे पैर इन स्ट्रैपी हाई-हील सैंडलों में।” मैं मुस्कुरा कर फिर से पीछे टिक कर बैठ गयी।
मुझे एक चीज़ पर खटका हुआ कि मेरी जेठानी सोफ़िया और असलम नहीं दिख रहे थे। मैंने सोचा कि दोनों शायद हमेशा कि तरह किसी चुहलबाजी में लगे होंगे या वो भी मेरी तरह नशे में चूर होकर कहीं सो रहे होंगे। फिरोज़ भाई जान ने मुझे बिठा कर सिरहाने के पास से ट्रे उठा कर मुझे एक कप कॉफी दी।
ये… ये आपने बनायी है?” मैं चौंक गयी क्योंकि मैंने कभी जेठ जी को किचन में घुसते नहीं देखा था।
हाँ! क्यों अच्छी नहीं बनी है?” फिरोज़ भाई जान ने मुस्कुराते हुए मुझसे पूछा।
नहीं नहीं! बहुत अच्छी बनी है,” मैंने जल्दी से एक घूँट भर कर कहा, लेकिन भाभी जान और वो कहाँ हैं?”
“वो दोनों कोई फ़िल्म देखने गये हैं… छः से नौ…. सोफ़िया जिद कर रही थी तो असलम उसे ले गया है।”
लेकिन आप? आप नहीं गये?” मैंने हैरानीसे पूछा।
तुम नशे में चूर थीं। अगर मैं भी चला जाता तो तुम्हारी देख भाल कौन करता?” उन्होंने वापस मुस्कुराते हुए कहा। फिर बात बदलने के लिये मुझसे आगे बोले, मैं वैसे भी तुमसे कुछ बात कहने के लिये तनहाई खोज रहा था।”
क्यों? ऐसी क्या बात है?”
तुम बुरा तो नहीं मानोगी ना?”
नहीं! आप बोलिये तो सही,” मैंने कहा।
मैंने तुमसे पूछे बिना दिल्ली में तुम्हारे कमरे से एक चीज़ उठा ली थी,” उन्होंने हिचकते हुए कहा।
क्या?” दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
ये तुम दोनों की फोटो,” कहकर उन्होंने हम दोनों की हनीमून पर असलम द्वारा खींची वो फोटो सामने की जिसमें मैं लगभग नंगी हालत में असलम के सीने से अपनी पीठ लगाये खड़ी थी। इसी फोटो को मैं अपने ससुराल में चारों तरफ़ खोज रही थी। लेकिन मिली ही नहीं थी। मिलती भी तो कैसे, वो स्नैप तो जेठ जी अपने सीने से लगाये घूम रहे थे। मेरे होंठ सूखने लगे। मैं फटीफटी आँखों से एक टक उनकी आँखों में झाँकती रही। मुझे उनकी गहरी आँखों में अपने लिये मोहब्बत का बेपनाह सागर उफ़नते हुए दिखायी दिया।
आ… आप ने ये फोटो रख ली थी?”
हाँ इस फोटो में तुम बहुत प्यारी लग रही थीं… किसी जलपरी की तरह। मैं इसे हमेशा साथ रखता हूँ।”
क्यों…. क्यों…? मैं आपकी बीवी नहीं, ना ही माशुका हूँ। मैं आपके छोटे भाई की ब्याहता हूँ। आपका मेरे बारे में ऐसा सोचना भी मुनासिब नहीं है।” मैंने उनके शब्दों का विरोध किया।
सुंदर चीज़ को सुंदर कहना कोई पाप नहीं है, ” फिरोज़ भाई जान ने कहा, अब मैं अगर तुमसे नहीं बोलता तो तुमको पता चलता? मुझे तुम अच्छी लगती हो तो इसमें मेरा क्या कसूर है?”
दो… वो स्नैप मुझे दे दो! किसी ने उसको आपके पास देख लिया तो बातें बनेंगी,” मैंने कहा।
नहीं वो अब मेरी अमानत है। मैं उसे किसी भी कीमत पर अपने से अलग नहीं करुँगा।”
मैं उनका हाथ थाम कर बिस्तर से उतरी। जैसे ही उनका सहारा छोड़ कर बाथरूम तक जाने के लिये दो कदम आगे बढ़ी तो अचानक सर बड़ी जोर से घूमा और मैं हाई-हील सैंडलों में लड़खड़ा कर गिरने लगी। इससे पहले कि मैं जमीन पर भरभरा कर गिर पड़ती, फिरोज़ भाई जान लपक कर आये और मुझे अपनी बाँहों में थाम लिया। मुझे अपने जिस्म का अब कोई ध्यान नहीं रहा। मेरा जिस्म लगभग नंगा हो गया था। उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में फूल की तरह उठाया और बाथरूम तक ले गये। मैंने गिरने से बचने के लिये अपनी बाँहों का हार उनकी गर्दन पर पहना दिया। दोनों किसी नौजवान जोड़े की तरह लग रहे थे। उन्होंने मुझे बाथरूम के भीतर ले जाकर उतारा। दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
मैं बाहर ही खड़ा हूँ। तुम फ़्रेश हो जाओ तो मुझे बुला लेना। संभालकर उठना-बैठना,” फिरोज़ भाई जान मुझे हिदायतें देते हुए बाथरूम के बाहर निकल गये और बाथरूम के दरवाजे को बंद कर दिया। मैंने पेशाब करके लड़खड़ाते हुए अपने कपड़ों को सही किया जिससे वो फिर खुल कर मेरे जिस्म को बेपर्दा ना कर दें। मैं अब खुद को ही कोस रही थी कि किस लिये मैंने अपने अंदरूनी कपड़े उतारे। मैं जैसे ही बाहर निकली तो वो बहर दरवाजे पर खड़े मिल गये। वो मुझे दरवाजे पर देख कर लपकते हुए आगे बढ़े और मुझे अपनी बाँहों में भर कर वापस बिस्तर पर ले आये।
मुझे सिरहाने पर टिका कर मेरे कपड़ों को अपने हाथों से सही कर दिया। मेरा चेहरा तो शरम से लाल हो रहा था।
अपने इस हुस्*न को जरा संभाल कर रखिये वरना कोई मर ही जायेगा… आहें भर भर कर,” उन्होंने मुस्कुरा कर कहा। फिर साईड टेबल से एक एस्प्रीन निकाल कर मुझे दिया। फिर वापस मेरे कप में कुछ कॉफी भरकर मुझे दी और बोले, लो इससे तुम्हारा हेंगओवर ठीक हो जायेगा।” मैंने कॉफी के साथ दवाई ले ली।
लेकिन एक बात अब भी मुझे खटक रही है। वो दोनों आप को साथ क्यों नहीं ले गये…। आप कुछ छिपा रहे हैं… बताइये ना…।”
कुछ नहीं आशिया मैं तुम्हारे कारण रुक गया। कसम तुम्हारी।”
लेकिन मेरे बहुत जिद करने पर वो धीरे धीरे खुलने लगे।
वो भी असल में कुछ तनहाई चाहते थे।
मतलब?” मैंने पूछा। दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
नहीं तुम बुरा मान जाओगी। मैं तुम्हारा दिल दुखाना नहीं चाहता।”
मुझे कुछ नहीं होगा! आप कहो तो…. क्या आप कहना चाहते हैं कि असलम और सोफ़िया भाभी जान के बीच…..” मैंने जानबूझ कर अपने वाक्य को अधुरा ही रहने दिया।
वो भोंचक्के से कुछ देर तक मेरी आँखों में झाँकते रहे।
मुझे सब पता है…. मुझे पहले ही शक हो गया था। असलम को जोर देकर पूछा तो उसने कबूल कर लिया।”
तुम….. तुमने कुछ कहा नहीं? तुम नयी बीवी हो उसकी….. तुमने उसका विरोध नहीं किया?” फिरोज़ ने पूछा। विरोध तो आप भी कर सकते थे। आप को सब पता था लेकिन आप ने कभी दोनों को कुछ कहा नहीं। आप तो मर्द हैं और उनसे बड़े भी,” मैंने उलटा उनसे ही सवाल किया।
चाह कर भी कभी नहीं किया। मैं दोनों को बेहद चाहता हूँ और…..”
और क्या?”
और….. सोफ़िया मुझे कमज़ोर समझती है।” कहते हुए उन्होंने अपना चेहरा नीचे झुका लिया। मैं उस प्यारे इंसान की परेशानी पर अपने को रोक नहीं पायी और मैंने उनके चेहरे को अपनी हथेली में भरकर उठाया। मैंने देखा कि उनकी आँखों के कोनों पर दो आँसू चमक रहे हैं। मैं ये देख कर तड़प उठी। मैंने अपनी अँगुलियों से उनको पोंछ कर उनके चेहरे को अपने सीने पर खींच लिया। वो किसी बच्चे की तरह मेरी छातियों से अपना चेहरा सटाये हुए थे।
आपने कभी किसी डॉक्टर से जाँच क्यों नहीं करवायी?” मैंने उनके बालों में अपनी अँगुलियाँ फ़िराते हुए पूछा।
दिखाया था… कईं बार चेक करवाया…”
फिर?”
डॉक्टर ने कहा….” दो पल को वो रुके। ऐसा लगा मानो सोच रहे हों कि मुझे बतायें या नहीं। फिर धीरे से बोले, मुझ में कोई कमी नहीं है।
क्या?” मैं जोर से बोली, फिर भी आप सारा कसूर अपने ऊपर लेकर चुप बैठे हैं। आपने भाभी जान को बताया क्यों नहीं? ये तो बुजदिली है!” दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
अब तुम इसे मेरी बुजदिली समझो चाहे जो भी। लेकिन मैं उसकी उम्मीद को तोड़ना नहीं चाहता। भले ही वो सारी ज़िंदगी मुझे एक नामर्द समझती रहे।”
मुझे आपसे पूरी हमदर्दी है लेकिन मैं आपको वो दूँगी जो सोफ़िया भाभी जान ने नहीं दिया।”
उन्होंने चौंक कर मेरी तरफ़ देखा। उनकी गहरी आँखों में उत्सुक्ता थी मेरी बात का आशय सुनने की। मैंने आगे कहा, मैं आपको अपनी कोख से एक बच्चा दूँगी।”
क्या???? कैसे??” वो हड़बड़ा उठे।
अब इतने बुद्धू भी आप हो नहीं कि समझाना पड़े कैसे!” मैं उनके सीने से लग गयी, अगर वो दोनों आपकी चिंता किये बिना जिस्मानी ताल्लुकात रख सकते हैं तो आपको किसने ऐसा करने से रोका है?” मैंने अपनी आँखें बंद करके फुसफुसाते हुए कहा जो उनके अलावा किसी और को सुनायी नहीं दे सकता था। इतना सुनना था कि उन्होंने मुझे अपने सीने में दाब लिया। मैंने अपना चेहरा ऊपर उठाया तो उनके होंठ मेरे होंठों से आ मिले। मेरा जिस्म कुछ तो दोपहर के नशे से और कुछ उत्तेजना से तप रहा था। मैंने अपने होंठ खोल कर उनके होंठों का स्वागत किया। उन्होंने मुझे इस तरह चूमना शुरू किया मानो बरसों के भूखे हों। मैं उनके चौड़े सेने के बालों पर अपनी अँगुलियाँ फेर रही थी। उन्होंने मेरे जिस्म पर बंधी गाऊन की उस डोर को खींच कर खोल दिया। अब मैं सिर्फ सैंडल पहने, पूरी तरह नंगी उनके सामने थी। मैंने भी उनके पायजामे के ऊपर से उनके लंड को अपने हाथों से थाम कर सहलाना शुरू किया।
मममम… काफी मोटा है। भाभी जान को तो मज़ा आ जाता होगा?” मैंने उनके लंड को अपनी मुठ्ठी में भर कर दबाया। फिर पायजामे की डोरी को खोल कर उनके लंड को बाहर निकाला। उनका लंड काफी मोटा था। उनके लंड के ऊपर का सुपाड़ा एक टेनिस की गेंद की तरह मोटा था। फिरोज़ भाई जान गोरे चिट्टे थे लेकिन लंड काफी काला था। उनके लंड के मुँह से पानी जैसा चिपचिपा रस निकल रहा है। मैंने उनकी आँखों में झाँका। वो मेरी हरकतों को गोर से देख रहे थे। मैं उनको इतनी खुशी देना चाहती थी जितनी सोफ़िया भाभी जान ने भी नहीं दी होगी। मैंने अपनी जीभ पूरी बाहर निकाली और स्लो मोशन में अपने सिर को उनके लंड पर झुकाया। मेरी आँखें लगातार उनके चेहरे पर टिकी हुई थी। मैं उनके चेहरे पर उभरने वाली खुशी को अपनी आँखों से देखना चाहती थी। मैंने अपनी जीभ उनके लंड के टिप पर लगायी और उससे निकलने वाले रस को चाट कर अपनी जीभ पर ले लिया। फिर उसी तरह धीरे-धीरे मैंने अपना सिर उठा कर अपनी जीभ पर लगे उनके रस को उनकी आँखों के सामने किया और मुँह खोल कर जीभ अंदर कर ली। मुझे अपना रस पीते देख वो खुशी से भर उठे और वापस मेरे चेहरे पर अपने होंठ फिराने लगे। वो मेरे होंठों को, मेरे कानों को, मेरी आँखों को, गालों को चूमे जा रहे थे और मैं उनके लंड को अपनी मुठ्ठी में भर कर सहला रही थी। मैंने उनके सिर को पकड़ कर नीचे अपनी चूचियों से लगाया। उन्होंने जीभ निकाल कर दोनों चूचियों के बीच की गहरी खायी में फ़िरायी। फिर एक मम्मे को अपने हाथों से पकड़ कर उसके निप्पल को अपने मुँह में भर लिया। मेरे निप्पल पहले से ही तन कर कड़े हो गये थे। वो एक निप्पल को चूस रहे थे और दूसरे मम्मे को अपनी हथेली में भर कर मसल रहे थे। पहले तो उन्होंने धीरे-धीरे मसला मगर कुछ ही देर में दोनों मम्मे पूरी ताकत से मसल-मसल कर लाल कर दिये। मैं उत्तेजना में सुलगने लगी। मैंने उनके लंड के नीचे उनकी गेंदों को अपनी मुठ्ठी में भर कर सहलाना शुरू किया। वो बीच-बीच में मेरे फूले हुए निप्पल को दाँतों से काट रहे थे और कभी जीभ से निप्पल को छेड़ने लगते। मैं सीईऽऽऽऽ आआआहहऽऽऽऽऽ मममऽऽऽऽ ऊँऊँऽऽऽऽ” जैसी आवाजें निकालने से खुद को नहीं रोक पा रही थी। उनके होंठ दोनों मम्मों पर घूमने लगे और जगह-जगह मेरे मम्मों को काट-काट कर अपने मिलन की निशानी छोड़ने लगे। पूरे मम्मों पर लाल-लाल दाँतों के निशान उभार आये। मैं दर्द और उत्तेजना में सीईऽऽऽ सीईऽऽऽ” कर रही थी और अपने हाथों से अपने मम्मों को उठाकर उनके मुँह में दे रही थी।
कितनी खूबसूरत हो…” फिरोज़ भाई जान ने मेरे दोनों बूब्स को पकड़ कर खींचते हुए कहा।
आगे भी कुछ करोगे या इनसे ही चिपके रहने की मरज़ी है?” मैंने उनको प्यार भरी एक झिड़की दी। निप्पल लगातार चूसते रहने की वजह से दुखने लगे थे। मम्मों पर जगह-जगह उनके दाँतों के काटने से लाल-लाल निशान उभरने लगे थे। मैं काफी उत्तेजित हो गयी थी। असलम इतना फोर-प्ले कभी नहीं करता था। उसको तो बस टाँगें चौड़ी करके अंदर डाल कर धक्के लगाने में ही मज़ा आता था। दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
उन्होंने मेरी टाँगें पकड़ कर नीचे कीं ओर खींचा तो मैं बिस्तर पर लेट गयी। अब उन्होंने मेरी दोनों टाँगें उठा कर उनके नीचे दो तकिये लगा दिये जिससे मेरी चूत ऊपर को उठ गयी। मैंने अपनी टाँगों को चौड़ा करके छत की ओर उठा दीं। फिर उनके सिर को पकड़ कर अपनी चूत के ऊपर दबा दिया। फिरोज़ भाई जान अपनी जीभ निकाल कर मेरी चूत के अंदर उसे डाल कर घुमाने लगे। मेरे पूरे जिस्म में सिहरन सी दौड़ने लगी। मैं अपनी कमर को और ऊपर उठाने लगी जिससे उनकी जीभ ज्यादा अंदर तक जा सके। मेरे हाथ बिस्तर को मजबूती से थामे हुए थे। मेरी आँखों की पुतलियाँ पीछे की ओर उलट गयी और मेरा मुँह खुल गया। मैं जोर से चींख पड़ी, हाँऽऽऽ और अंदरऽऽ। फिरोज़ आआआहहहऽऽऽऽ ऊऊऊहहहऽऽऽ इतनेऽऽऽ दिन कहाँ थेऽऽऽ। मैंऽऽऽ पाऽऽऽगल हो जाऊँऽऽऽगीऽऽऽ…. ऊऊऽऽऽहहहऽऽऽ ऊऊऊईईईई माँऽऽऽ क्याऽऽऽ कर रहे होऽऽऽऽ फिरोज़ मुझेऽऽऽ संभालोऽऽऽऽ मेराऽऽऽ छूटनेऽऽऽ वालाऽऽऽऽ हैऽऽऽ। फिरोऽऽज़ इसीऽऽऽ तरह साऽऽऽरी ज़िंदगीऽऽऽ तुम्हारी दूऽऽसरीऽऽऽ बीवी बनकर चुदवातीऽऽऽ रहुँऽऽऽऽगी।” एक दम से मेरी चूत से रस की बाढ़ सी आयी और बाहर की ओर बह निकली। मेरा पूरा जिस्म किसी पत्ते की तरह काँप रहा था। काफी देर तक मेरा झड़ना चलता रहा। जब सारा रस फिरोज़ भाई जान के मुँह में उढ़ेल दिया तो मैंने उनके सर को पकड़ कर उठाया। उनकी मूछें, नाक, होंठ सब मेरे रस से सने हुए थे। उन्होंने अपनी जीभ निकाली और अपने होंठों पर फिरायी। दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
छी… गंदे!” मैंने उनसे कहा।इसमें गंदी वाली क्या बात हुई? ये तो टॉनिक है। तुम मेरा टॉनिक पी कर देखना…. अगर जिस्म में रंगत ना आजये तो कहना।”जानु अब आ जाओ!” मैंने उनको अपने ऊपर खींचा, मेरा जिस्म तप रहा है। नशे की खुमारी कम होने की बजाय बढ़ती जा रही है…. इससे पहले कि मैं पागल हो जाऊँ मेरे अंदर अपना बीज डाल दो।”
फिरोज़ भाई जान ने अपने लंड को मेरे मुँह से लगाया।एक बार मुँह में तो लो….. उसके बाद तुम्हारी चूत में डालुँगा। पहले एक बार प्यार तो करो इसे!” मैंने उनके लंड को अपनी मुठ्ठी में पकड़ा और अपनी जीभ निकाल कर उसे चूसना और चाटना शुरू कर दिया। मैं अपनी जीभ से उनके लंड को एकदम नीचे से ऊपर तक चाट रही थी और अपनी जीभ से उनके लंड के नीचे लटकते हुए अंडकोशों को भी चाट रही थी। उनका लंड मुझे बड़ा प्यारा लग रहा था। मैं उनके लंड को चाटते हुए उनके चेहरे को देख रही थी। उनका उत्तेजित चेहरा बड़ा प्यारा लग रहा था। दिल को सकून मिल रहा था कि मैं उन्हें कुछ तो आराम दे पाने में कामयाब रही थी। उन्होंने मुझे इतना प्यार दिया था कि उसका एक टुकड़ा भी मैं वापस अगर दे सकी तो मुझे अपने ऊपर फ़ख्र होगा।उनके लंड से चिपचिपा सा बेरंग का प्री-कम निकल रहा था जिसे मैं बड़ी बेकरारीसे चाट कर साफ़ कर देती थी। मैं काफी देर तक उनके लंड को तरह-तरह से चाटती रही। उनका लंड काफ़ी मोटा था इसलिये मुँह के अंदर ज्यादा नहीं ले पा रही थी और इसलिये जीभ से चाट-चाट कर ही उसे गीला कर दिया था। कुछ देर बाद उनका लंड झटके खाने लगा। उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रख कर मुझे रुकने का इशारा किया।बस….. बस….. और नहीं! नहीं तो अंदर जाने से पहले ही निकल जायेगा,” कहते हुए उन्होंने मेरे हाथों से अपने लंड को छुड़ा लिया और मेरी टाँगों को फैला कर उनके बीच घुटने मोड़ कर झुक गये। उन्होंने अपने लंड को मेरी चूत से सटाया। आपका बहुत मोटा है। मेरी चूत को फाड़ कर रख देगा,” मैंने घबराते हुए कहा, फिरोज़ भाई जान धीरे-धीरे करना नहीं तो मैं दर्द से मार जाऊँगी।” दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
वो हंसने लगे। आप बहुत खराब हो। इधर तो मेरी जान की पड़ी है”, मैंने उनसे कहा।मैंने भी अपने हाथों से अपनी चूत को चौड़ा कर उनके लंड के लिये रास्ता बनाया। उन्होंने अपने लंड को मेरी चूत के दर पर टिका दिया। मैंने उनके लंड को पकड़ कर अपनी फैली हुई चूत के अंदर खींचा।अंदर कर दो….” मेरी आवाज भारी हो गयी थी। उन्होंने अपने जिस्म को मेरे जिस्म के ऊपर लिटा दिया। उनका लंड मेरी चूत की दीवारों को चौड़ा करता हुआ अंदर जाने लगा। मैं सब कुछ भूल कर अपने जेठ के सीने से लग गयी। बस सामने सिर्फ फिरोज़ थे और कुछ नहीं। वो ही इस वक्त मेरे आशिक, मेरे सैक्स पार्टनर और जो कुछ भी मानो, थे। मुझे तो अब सिर्फ उनका लंड ही दिख रहा था। जैसे ही उनका लंड मेरी चूत को चीरता हुआ आगे बढ़ा मेरे मुँह से आआऽऽऽहहऽऽऽ” की आवाज निकली और उनका लंड पूरा का पूरा मेरी चूत में धंस गया। वो इस पोज़िशन में मेरे होंठों को चूमने लगे।अच्छा तो अब पता चला कि मुझसे मिलने के लिये तुम भी इतनी बेसब्र थी…. और मैं बेवकूफ सोच रहा था कि मैं ही तुम्हारे पीछे पड़ा हूँ। अगर पता होता ना कि तुम भी मुझसे मिलने को इतनी बेताब हो तो….” वाक्य को अधुरा ही रख कर वो कुछ रुके।तो?…. तो?” तो तुम्हें किसी की भी परवाह किये बिना कब का पटक कर ठोक चुका होता,” उन्होंने शरारती लहजे में कहा।धत!! इस तरह कभी अपने छोटे भाई की बीवी से बात करते हैं? शरम नहीं आती आपको?” मैंने उनके कान को अपने दाँतों से चबाते हुए कहा। शरम? अच्छा चोदने में कोई शरम नहीं है पर शरम बात करने में ही है ना?” कहकर वो अपने हाथों का सहारा लेकर मेरे जिस्म से उठे और साथ-साथ उनका लंड भी मेरी चूत को रगड़ता हुआ बाहर की ओर निकला और फिर वापस पूरे जोर से मेरी चूत में अंदर तक धंस गया। दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |ऊऊऊहहऽऽऽ दर्द कर रहा है। आपका वाकय काफी बड़ा है। मेरी चूत छिल गयी है। पता नहीं सोफ़िया भाभी इतने मोटे लंड को छोड़ कर मेरे असलम में क्या ढूँढ रही हैं?” मैंने उनके आगे पीछे होने की रिदम से अपनी रिदम भी मिलायी। हर धक्के के साथ उनका लंड मेरी चूत में अंदर तक घुस जाता और उनकी कोमल झाँटें मेरी मुलायम त्वचा पर रगड़ खा जाती। वो जोर-जोर से मुझे ठोकने लगे उनके हर धक्के से पूरा बिस्तर हिलने लगता। काफी देर तक वो ऊपर से धक्के मारते रहे। मैंने नीचे से अपनी टाँगें उठा कर उनकी कमर पर लपेट ली थी और उनके बालों भरे सीने में अपने तने हुए निप्पल रगड़ रही थी। इस रगड़ से एक सिहरन सी पूरे जिस्म में दौड़ रही थी। मैंने अपने हाथों से उनके सिर को पकड़ कर अपने होंठ उनके होंठों पर लगा कर अपनी जीभ उनके मुँह में घुसा दी। मैं इसी तरह उनके लंड को अपनी चूत में लेने के लिये अपनी कमर को उचका रही थी। उनके जोरदार धक्के मुझे पागल बना रहे थे। उन्होंने अपना चेहरा ऊपर किया तो मैं उनके होंठों की छुअन के लिये तड़प कर उनकी गर्दन से लटक गयी। फिरोज़ भाई जान के शरीर में दम काफी था जो मेरे जिस्म का बोझ उठा रखा था। मैं तो अपने हाथों और पैरों के बल पर उनके जिस्म पर झूल रही थी। इसी तरह मुझे उठाये हुए वो लगातार चोदे जा रहे थे। मैं आआऽऽहहऽऽऽ माँआऽऽऽ मममऽऽऽ ऊफफऽऽऽ” जैसी आवाजें निकाले जा रही थी। उनके धक्कों से तो मैं निढाल हो गयी थी। वो लगातार इसी तरह पंद्रह मिनट तक ठोकते रहे। इन पंद्रह मिनट में मैं दो बार झड़ चुकी थी लेकिन उनकी रफतार में कोई कमी नहीं आयी थी। उनके सीने पर पसीने की कुछ बूँदें जरूर चमकने लगी थीं। मैंने अपनी जीभ निकाल कर उन नमकीन बूँदों को चाट लिया। वो मेरी इस हरकत से और जोश में आ गये। पंद्रह मिनट बाद उन्होंने मेरी चूत से अपने लंड को खींच कर बाहर निकाला।उन्होंने मुझे किसी बार्बी डॉल की तरह एक झटके में उठाकर हाथों और पैरों के बल घोड़ी बना दिया। मेरी टपकती हुई चूत अब उनके सामने थी। मममऽऽऽ दोऽऽऽ…. डाऽऽऽल दो*ओऽऽऽ। आज मुझे जितना जी में आये मसल डालो….. आआआह मेरी गर्मी शाँत कर दो।” मैं सैक्स की भूखी किसी वेश्या की तरह छटपटा रही थी उनके लंड के लिये।एक मिनट ठहरो,” कहकर उन्होंने मेरा गाऊन उठाया और मेरी चूत को अच्छी तरह साफ़ करने लगे। ये जरूरी भी हो गया था। मेरी चूत में इतना रस निकला था कि पूरी चूत चिकनी हो गयी थी। उनके इतने मोटे लंड के रगड़ने का अब एहसास भी नहीं हो रहा था। जब तक लंड के रगड़ने का दर्द नहीं महसूस होता तब तक मज़ा उतना नहीं आ पाता है। इसलिये मैं भी उनके इस काम से बहुत खुश हुई। मैंने अपनी टाँगों को फैला कर अपनी चूत के अंदर तक का सारा पानी सोख लेने में मदद की। मेरी चूत को अच्छी तरह साफ़ करने के बाद उन्होंने अपने लंड पर चुपड़े मेरे रस को भी मेरे गाऊन से साफ़ किया। मैंने बेड के सिरहाने को पकड़ रखा था और कमर उनकी तरफ़ कर रखी थी। उन्होंने वापस अपने लंड को मेरी चूत के द्वार पर लगा कर एक और जोरदार धक्का दिया। दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |हममऽऽऽफफफऽऽऽऽ” मेरे मुँह से एक आवाज निकली और मैंने उनके लंड को अपनी दुखती हुई चूत में रगड़ते हुए अंदर जाते हुए वापस महसूस किया। वो दोबारा जोर-जोर से धक्के लगाने लगे। उनके धक्कों से मेरे बड़े-बड़े स्तन किसी पेड़ पर लटके आमों की तरह झूल रहे थे। मेरे गले पर पहना हुआ भारी नेकलेस उनके धक्कों से उछल-उछल कर मेरी चूचियों को और मेरी ठुड्डी को टक्कर मार रहा था। मैंने उसके लॉकेट को अपने दाँतों से दबा लिया जिससे कि वो झूले नहीं। फिरोज़ भाई जान ने मेरी इस हरकत को देख कर मेरे नेकलेस को अपने हाथों में लेकर अपनी ओर खींचा। मैंने अपना मुँह खोल दिया। अब ऐसा लग रहा था मानो वो किसी घोड़ी की सवारी कर रहे हों और नेकलेस उनके हाथों में दबी उसकी लगाम हो। वो इस तरह मेरी लगाम थामे मुझे पीछे से ठोकते जा रहे थे। फिरोज़…..ऊऊऊऽऽऽहहऽऽऽ….. फिरोज़….मेरा वापस झड़ने वाला है…. तुम भी मेरा साथ दो प्लीईऽऽऽज़, मैंने फिरोज़ भाई जान से मेरे साथ झड़ने की गुज़ारिश किया। फिरोज़ भाई जान ने मेरी पीठ पर झुक कर मेरे झूलते हुए दोनों मम्मों को अपनी मुठ्ठी में पकड़ लिया और पीछे से अपनी कमर को आगे पीछे ठेलते हुए जोर-जोर के धक्के मारने लगे। मैंने अपने सिर को झटका देकर अपने चेहरे पर बिखरी अपनी ज़ुल्फों को पीछे किया तो मेरे दोनों मम्मों को मसलते हुए जेठ जी के हाथों को देखा। उनके हाथ मेरे निप्पलों को अपनी चुटकियों में भर कर मसल रहे थे।मममम… फिरोज़… फिरोज़ अब हमारे बीच कोई रिश्तों का तकल्लुफ नहीं बचा था। मैं अपने जेठ को उनके नाम से ही बुला रही थी, फिरोज़….. मैं झड़ रही हूँ….. फिरोज़ तुम भी आ जाओ…. तुम भी अपनी धार छोड़ कर मेल कर दो। मैंने महसूस किया कि उनका लंड भी झटके लेने लगा है। उन्होंने मेरी गर्दन के पास अपना चेहरा रख दिया। उनकी गरम-गरम साँस मेरी गर्दन पर महसूस हो रही थी। उन्होंने लगभग मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा, आशिया ….. मेरा निकल रहा है…. आज तुम्हारी कोख तुम्हारे जेठ के रस से भर जायेगी।भर जाने दो मेरे जानम डाआऽऽऽल दो मेरे पेट में अपना बच्चा डाल दो…. मैं आपको अपनी कोख से बच्चा दूँगी। मैंने कहा और एक साथ दोनों के जिस्म से अमृत की धारा बह निकली। उनकी अँगुलियाँ ने मेरी चूचियों को बुरी तरह निचोड़ दिया। मेरे दाँत मेरे नेकलेस पर गड़ गये और हम दोनों बिस्तर पर गिर पड़े। वो मेरे ऊपर ही पड़े हुए थे। हमारे जिस्म पसीने से लठपथ हो रहे थे। दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |”आआआऽऽऽऽहहहऽऽऽऽ फिरोज़ऽऽऽऽ. आज आपने मुझे वाकय ठंडा कर दिया आआऽऽपने मुझे वो… मज़ा…. दिया जिसके.. .लिये मैं… काफी.. दिनों से तड़प रही थी.. मममऽऽऽ। मेरा चेहरा तकिये में धंसा हुआ था और मैं बड़बड़ाये जा रही थी। वो बहुत खुश हो गये और मेरी नंगी पीठ को चूमने लगे और बीच बीच में मेरी पीठ पर काट भी लेते। मैं बुरी तरह थक चुकी थी। वापस नशे और हेंगओवर ने मुझे घेर लिया। पता ही नहीं चला कब मैं नींद के आगोश में चली गयी। जेठजी ने मेरे नंगे जिस्म पर कपड़े किस तरह पहनाये ये भी पता नहीं चल पाया। उन्होंने मुझे कपड़े पहना कर चादर से अच्छी तरह लपेट कर सुला दिया। मैं हसीन ख्वाबों में खो गयी। अच्छा हुआ कि उन्होंने मुझे कपड़े पहना दिये थे, वरना अपनी इस हालत की सफायी असलम और सोफ़िया भाभी जान से करना मुश्किल काम होता। मेरे पूरे जिस्म पर उकेरे गये दाँतों के निशानों की दिलकश नक्काशी का भी कोई जवाब नहीं था।जब तक दोनों वापस नहीं आ गये फिरोज़ भाई जान की गोद में ही सिर रख कर सोती रही और फिरोज़ भाई जान मेरे बालों में अपनी अँगुलियाँ फेरते रहे। बीच-बीच में वो मेरे गालों पर या मेरे होंठों पर अपने गरम होंठ रख देते। असलम और सोफ़िया भाभी रात के दस बजे तक चहकते हुए वापस लौटे। होटल से खाना पैक करवा कर ही लौटे थे। मेरी हालत देख कर असलम और सोफ़िया भाभी घबरा गये। बगल में ही एक डॉक्टर रहता था उसे बुला कर मेरी जाँच करवायी। डॉक्टर ने देख कर कहा कि बहुत ज्यादा शराब पीने की वजह से डी-हायड्रेशन हो गया है और जूस वगैरह पीने को कह कर चले गये। दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |अगले दिन सुबह मेरी तबियत एकदम सलामत हो गयी। अगले दिन असलम का जन्मदिन था। शाम को बाहर खाने का प्रोग्राम था। एक बड़े होटल में सीट पहले से ही बुक कर रखी थी। वहीं पर पहले हम सबने ड्रिंक्स ली फिर खाना खाया। वापस लौटते समय असलम ने बज़ार से एक ब्लू फ़िल्म का डी-वी-डी खरीद लिया। घर पहुँच कर हम चारों हमारे बेडरूम में इकट्ठे हुए। सब फिर से ड्रिंक्स लेने लगे। मुझे सबने मना भी किया कि पिछले दिन मेरी तबियत शराब पीने से खराब हो गयी थी और कुछ देर पहले होटल में तो मैंने ड्रिंक पी ही थी, पर मैं कहाँ मानने वाली थी। मैंने भी ज़िद करके उनके साथ और ड्रिंक्स लीं। फिर पहले म्यूज़िक चला कर कुछ देर तके एक दूसरे की बीवियों के साथ हमने डाँस किया। मैं जेठ जी की बाँहों में नशे की हालत में थिरक रही थी और सोफ़िया भाभी को असलम ने अपनी बाँहों में भर रखा था। फिर असलम ने कमरे की ट्यूबलाईट ऑफ कर दी और सिर्फ एक हल्का नाईट लैंप जला दिया। हम चारों बिस्तर पर बैठ गये।असलम ने डी-वी-डी ऑन करके ब्लू फ़िल्म चला दी। फिर बिस्तर के सिरहाने पर पीठ लगा कर हम चारों बैठ गये। एक किनारे पर असलम बैठा था और दूसरे किनारे पर फिरोज़ भाई जान थे। बीच में हम दोनों औरतें थीं। दोनों ने नशे में मस्त अपनी-अपनी बीवियों को अपनी बाँहों में समेट रखा था। इस हालत में हम ब्लू फ़िल्म देखने लगे। फिल्म जैसे-जैसे आगे बढ़ती गयी, कमरे का माहौल गरम होता गया। दोनों मर्द बिना किसी शरम के अपनी अपनी बीवियों के गुप्ताँगों को मसलने लगे। असलम मेरे मम्मों को मसल रहा था और फिरोज़ सोफ़िया भाभी के। असलम ने मुझे उठा कर अपनी टाँगों के बीच बिठा लिया। मेरी पीठ उनके सीने से सटी हुई थी। वो अपने दोनों हाथ मेरे गाऊन के अंदर डाल कर अब मेरे मम्मों को मसल रहे थे। मैंने देखा सोफ़िया भाभी असलम को चूम रही थी और असलम के हाथ भी सोफ़िया भाभी जान के गाऊन के अंदर थे। मुझे उन दोनों को इस हालत में देख कर पता नहीं क्यों कुछ जलन सी होने लगी। हम दोनों के गाऊन कमर तक उठ गये थे। और नंगी जाँघें सबके सामने थीं। असलम अपने एक हाथ को नीचे से मेरे गाऊन में घुसा कर मेरी चूत को सहलाने लगे। मैं अपनी पीठ पर उनके लंड की ठोकर को महसूस कर रही थी। फिरोज़ ने सोफ़िया भाभी के गाऊन को कंधे पर से उतार दिया था और एक मम्मे को बाहर निकाल कर चूसने लगे थे। ये देख कर असलम ने भी मेरे एक मम्मे को गाऊन के बाहर निकालने की कोशिश की। मगर मेरे इस गाऊन का गला कुछ छोटा था इसलिये उसमें से मेरा स्तन बाहर नहीं निकल पाया। उन्होंने काफी कोशिशें की मगर सफ़ल ना होते देख कर गुस्से में एक झटके में मेरे गाऊन को मेरे जिस्म से हटा दिया। अब सिर्फ हाई-हील के सैंडल पहने मैं सबके सामने बिल्कुल नंगी हो गयी क्योंकि प्रोग्राम के अनुसार हम दोनों औरतों ने गाऊन के अंदर कुछ भी नहीं पहन रखा था। मैं शरम के मारे अपने हाथों से अपने मम्मों को छिपाने लगी और अपनी टाँगों को एक दूसरे से सखती से दबा लिया जिससे मेरी चूत के दर्शन ना हों। दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |क्या करते हो.. शरम करो बगल में फिरोज़ भाई और सोफ़िया भाभी जान हैं…. तुमने उनके सामने मुझे नंगी कर दिया। छी-छी क्या सोचेंगे जेठ जी? मैंने फुसफुसाते हुए असलम के कानों में कहा जिससे बगल वाले नहीं सुन सकें।
तो इसमें क्या है? सोफ़िया भाभी जान भी तो लगभग नंगी ही हो चुकी हैं। देखो उनकी तरफ़.. मैंने अपनी गर्दन घूमा कर देखा तो पाया कि असलम सही कह रहा था। फिरोज़ भाई जान ने भाभी के गाऊन को छातियों से भी ऊपर उठा रखा था। वो भाभी जान की चूचियों को मसले जा रहे थे। वो भाभी जान के एक निप्पल को अपने दाँतों से काटते हुए दूसरे बूब को अपनी मुठ्ठी में भर कर मसलते जा रहे थे। सोफ़िया भाभी ने फिरोज़ भाई जान के पायजामे को खोल कर उनके लंड को अपने हाथों में लेकर सहलाना शुरू कर दिया था। इधर असलम मेरी टाँगों को खोल कर अपने होंठ मेरी चूत के ऊपर फ़ेरने लगा। उसने ऊपर बढ़ते हुए मेरे दोनों निप्पल को कुछ देर चूसा और फिर मेरे होंठों को चूमने लगा। सोफ़िया भाभी जान के बूब्स भी मेरी तरह काफी बड़े-बड़े थे। दोनों भाइयों ने लगता है दूध की बोतलों का मुआयना करके ही निकाह के लिये पसंद किया था। सोफ़िया भाभी के निप्पल काफी लंबे और मोटे हैं जबकि मेरे निप्पल कुछ छोटे हैं। अब हम चारों एक दूसरे की जोड़ी को निहार रहे थे। पता नहीं टीवी स्क्रीन पर क्या चल रहा था। सामने लाईव ब्लू फ़िल्म इतनी गरम थी कि टीवी पर देखने की किसे फ़ुर्सत थी। असलम ने मेरे हाथों को अपने हाथों से अपने लंड पर दबा कर सहलाने का इशारा किया। मैं भी सोफ़िया भाभी की देखा देखी असलम के पायजामे को ढीला करके उनके लंड को बाहर निकाल कर सहला रही थी। फिरोज़ की नजरें मेरे जिस्म पर टिकी हुई थी। उनका लंड मेरे नंगे जिस्म को देख कर फूल कर कुप्पा हो रहा था।चारों अपने-अपने लाईफ पार्टनर्स के साथ सैक्स के खेल में लगे हुए थे। मगर चारों ही एक दूसरे के साथी का तस्सवुर करके उत्तेजित हो रहे थे। फिरोज़ ने बेड पर लेटते हुए सोफ़िया भाभी जान को अपनी टाँगों के बीच खींच लिया और उनके सिर को पकड़ कर अपने लंड पर झुकाया। सोफ़िया भाभी ने उनके लंड पर झुकते हुए हमारी तरफ़ देखा। पल भर को मेरी नजरों से उनकी नजरें मिली तो वो मुझे भी ऐसा करने को इशारा करते हुए मुस्कुरा दीं। मैंने भी असलम के लंड पर झुक कर उसे चाटना शुरू किया। असलम के लंड को मैं अपने मुँह में भर कर चूसने लगी और सोफ़िया भाभी फिरोज़ के लंड को चूस रही थी। इसी दौरान हम चारों बिल्कुल नंगे हो गये। दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | असलम लाईट बंद कर दो…. शरम आ रही है, मैंने असलम को फुसफुसाते हुए कहा।
इसमें शरम किस बात की। वो भी तो हमारे जैसी हालत में ही हैं, कहकर उन्होंने पास में चुदाई में मसरूफ फिरोज़ और सोफ़िया की ओर इशारा किया। असलम ने मुझे अपने ऊपर लिटा लिया। वो ज्यादा देर तक ये सब पसंद नहीं करते थे। थोड़े से फोर-प्ले के बाद ही वो चूत के अंदर अपने लंड को घुसा कर अपनी सारी ताकत चोदने में लगाने पर ही विश्वास करते थे। उन्होंने मुझे अपने ऊपर खींच कर अपनी चूत में उनका लंड लेने के लिये इशारा किया। मैंने उनकी कमर के पास बैठ कर घुटनों के बल अपने जिस्म को उनके लंड के ऊपर किया। फिर उनके लंड को अपने हाथों से अपनी चूत के मुँह पर सेट करके मैंने अपने जिस्म का सारा बोझ उनके लंड पर डाल दिया। उनका लंड मेरी चूत के अंदर घुस गया। मैंने पास में दूसरे जोड़े की ओर देखा। दोनों अभी भी लंड चुसाई में बिज़ी थे। सोफ़िया भाभी जान अभी भी उनके लंड को चूस रही थीं। मेरा तो उन दोनों की लंड चुसाई देख कर ही पहली बार झड़ गया। नाईट लैंप की रोश्नी में सिर्फ सैंडल पहने नंगी सोफ़िया भाभी का जिस्म दमक रहा था।
तभी असलम ने ऐसी हरकत कि जिससे हमारे बीच बची-खुची शरम का पर्दा भी तार-तार हो गया। असलम ने फिरोज़ भाई जान का हाथ पकड़ा और मेरे एक मम्मे पर रख दिया। फिरोज़ ने अपने हाथों में मेरे मम्मे को थाम कर कुछ देर सहलाया। ये पहली बार था जब किसी गैर मर्द ने मुझे मेरे हसबैंड के सामने ही मसला था। फिरोज़ मेरे एक मम्मे को थोड़ी देर तक मसलते रहे और फिर मेरे निप्पल को पकड़ कर अपनी अँगुलियों से उमेठने लगे। असलम इसी का बहाना लेकर सोफ़िया भाभी के एक मम्मे को अपने हाथों में भर कर दबाने लगे। असलम की आँखें सोफ़िया भाभी से मिली और सोफ़िया भाभी अपने सिर को फिरोज़ भाई जान की जाँघों के बीच से उठा कर आगे आ गयीं जिससे असलम को उनके मम्मों पर हाथ फ़ेरनेके लिये ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़े।
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