दीदी की रसीली चूत

मेरे जीजू और दीदी नासिक में नई नौकरी लगने के कारण मेरे पास ही आ गये थे। मैंने यहां पर एक छोटा सा घर किराये पर ले रखा था। मेरी दीदी मुझसे कोई दो साल बड़ी थी। मेरे मामले में वो बड़ी लापरवाह थी। मेरे सामने वो कपड़े वगैरह या स्नान करने बाद यूँ आ जाती थी जैसे कि मैं कोई छोटा बच्चा या नासमझ हूँ।

शादी के बाद तो दीदी और सेक्सी लगने लगी थी। उसकी चूंचियां भारी हो गई थी, बदन और गुदाज सा हो गया था। चेहरे में लुनाई सी आ गई थी। उसके चूतड़ और भर कर मस्त लचीले और गोल गोल से हो गये थे जो कमर के नीचे उसके कूल्हे मटकी से लगते थे। जब वो चलती थी तो उसके यही गोल गोल चूतड़ अलग अलग ऊपर नीचे यूँ चलते थे कि मानो… हाय ! लण्ड जोर मारने लगता था। जब वो झुकती थी तो बस उसकी मस्त गोलाईयां देख कर लण्ड टनटना जाता था। पर वो थी कि इस नामुराद भाई पर बिजलियां यूं गिराती रहती थी कि दिल फ़ड़फ़ड़ा कर रह जाता था।

बहन जो लगती थी ना, मन मसोस कर रह जाता था। मेरे लण्ड की तो कभी कभी यह हालत हो जाती थी कि मैं बाथरूम में जा कर उकड़ू बैठ कर लण्ड को घिस घिसकर मुठ मारता था और माल निकलने के बाद ही चैन आता था।

मैंने एक बार जाने अनजाने में दीदी से यूं ही मजाक में पूछ लिया। मैं बिस्तर पर बैठा हुआ था और वो मेरे पास ही कपड़े समेट रही थी। उसके झुकने से उसकी चूंचियां उसके ढीले ढाले कुरते में से यूं हिल रही थी कि बस मेरा मुन्ना टन्न से खड़ा हो गया। वो तो जालिम तो थी ही, फिर से मेरे प्यासे दिल को झकझोर दिया।

“कम्मो दीदी, मुझे मामा कब बनाओगी…?”

“अरे अभी कहां भैया, अभी तो मेरे खाने-खेलने के दिन हैं !” उसने खाने शब्द पर जोर दे कर कहा और बड़े ठसके से खिलखिलाई। दोस्तों यह कहानी आप मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है

“अच्छा, भला क्या खाती हो ?” मेरा अन्दाज कुछ अलग सा था, दिल एक बार फिर आशा से भर गया। दीदी अब सेक्सी ठिठोली पर जो आ गई थी।

“धत्त, दीदी से ऐसे कहते हैं…? अभी तो हम फ़ेमिली प्लानिंग कर रहे हैं !” दीदी ने मुस्करा कर तिरछी नजर से देखा, फिर हम दोनों ही हंस पड़े। कैसी कन्टीली हंसी थी दीदी की।

“फ़ेमिली प्लानिंग में क्या करते हैं ?” मैंने अनजान बनते हुये कहा। मेर दिल जैसे धड़क उठा। मै धीरे धीरे आगे बढ़ने की कोशिश में लगा था।

“इसमें घर की स्थिति को देखते हुये बच्चा पैदा करते हैं, इसमें कण्डोम, पिल्स वगैरह काम में लेते हैं, मैं तो पिल्स लेती हूँ… और फिर धमाधम चुद … , हाय राम !” शब्द चुदाई अधूरा रह गया था पर दिल में मीठी सी गुदगुदी कर गया। लण्ड फ़ड़क उठा। लगता था कि वो ही मुझे लाईन पर ला रही थी।

“हां … हां … कहो धमाधम क्या…?” मैंने जानकर शरारत की। उसका चेहरा लाल हो उठा। दीदी ने मुझे फिर तिरछी नजर देखा और हंसने लगी।

“बता दूँ… बुरा तो नहीं मानोगे…?” दीदी भी शरमाती हुई शरारत पर उतर आई थी। मेरा दिल धड़क उठा। दीदी की अदायें मुझे भाने लगी थी। उसकी चूंचियां भी मुझे अब उत्तेजक लगने लगी थी। वो अब ग्रीन सिग्नल देने लगी थी। मैं उत्साह से भर गया।

“दीदी बता दो ना…” मैंने उतावलेपन से कहा। मेरे लण्ड में तरावट आने लगी थी। मेरे दिल में तीर घुसे जा रहे थे। मैं घायल की तरह जैसे कराहने लगा था।

“तेरे जीजू मुझे फिर धमाधम चोदते हैं…” कुछ सकुचाती हुई सी बोली। फिर एकदम शरमा गई। मेरे दिल के टांके जैसे चट चट करके टूटने लगे। घाव बहने लगा। बहना खुलने लगी थी, अब मुझे यकीन हो गया कि दीदी के भी मन में मेरे लिये भावना पैदा हो गई है।

“कैसे चोदते हैं दीदी…?” मेरी आवाज में कसक भर गई थी। मुझे दीदी की चूत मन में नजर आने लगी थी… लगा मेरी प्यारी बहन तो पहले से ही चालू है … बड़ी मर्द-मार… नहीं मर्द-मार नहीं … भैया मार बहना है। उसे भी अब मेरा उठा हुआ लण्ड नजर आने लगा था। आप पढ़ रहे है दीदी की रसीली चूत दोस्तों यह कहानी आप मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है

“चल साले… अब ये भी बताना पड़ेगा?” उसने मेरे लण्ड के उठान पर अपनी नजर डाली और वो खिलखिला कर हंस पड़ी। उसकी नजर लण्ड पर पड़ते ही मैंने उसकी बांह पकड़ पर एक झटके में मेरे ऊपर उसे गिरा लिया। उसकी सांसें जैसे ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई और फिर उसकी छाती धड़क उठी। वो मेरी छाती पर थी।

मेरा छः इन्च का लण्ड अब सात इन्च का हो गया था। भला कैसे छिपा रह सकता था।

“दीदी बता दो ना…” उसकी गर्म सांसे मेरे चेहरे से टकराने लगी। हमारी सांसें तेज हो गई।

“भैया, मुझे जाने क्या हो रहा है…!”

“बहना … पता नहीं … पर तेरा दिल बड़ी जोर से धड़क रहा है … तू चुदाई के बारे में बता रही थी ना … एक बार कर के बता दे … ये सब कैसे करते हैं…?”

“कैसे बताऊँ … उसके लिये तो कपड़े उतारने होंगे… फिर … हाय भैया…” और वो मुझसे लिपट गई। उसकी दिल की धड़कन चूंचियों के रास्ते मुझे महसूस होने लगी थी।

“दीदी… फिर… उतारें कपड़े…? चुदाई में कैसा लगता है?” मारे तनाव के मेरा लण्ड फ़ूल उठा था। हाय… कैसे काबू में रखूँ !

मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा। लण्ड उछाले मारने लगा। दीदी ने मेरे बाल पकड़ लिये और अपनी चूंचियां मेरी छाती पर दबा दी… उसकी सांसें तेज होने लगी।

मेरे माथे पर भी पसीने की बूंदें उभर आई थी। उसका चेहरा मेरे चेहरे के पास आ गया। उसकी सांसों की खुशबू मेरे नथुने में समाने लगी। मेरे हाथ उसके चूतड़ों पर कस गये। उसका गाऊन ऊपर खींच लिया। मेरे होंठों से दीदी के होंठ चिपक गये। उसकी चूत मेरे तन्नाये हुये लण्ड पर जोर मारने लगी। उसकी चूत का दबाव मुझे बहुत ही सुकून दे रहा था।

आखिर दीदी ने मेरे मन की सुन ही ली। मैंने दीदी का गाऊन सामने से खोल दिया। उसकी बड़ी-बड़ी कठोर चूंचियाँ ब्रा में से बाहर उबल पड़ी। मेरा लण्ड कपड़ों में ही उसकी चूत पर दबाव डालने लगा। लगता था कि पैन्ट को फ़ाड़ डालेगा।

उसकी काली पैन्टी में चूत का गीलापन उभर आया था। मेरी अँडरवियर और उसकी पैन्टी के अन्दर ही अन्दर लण्ड और चूत टकरा उठे। एक मीठी सी लहर हम दोनों को तड़पा गई। मैंने उसकी पैन्टी उतारने के लिये उसे नीचे खींचा। उसकी प्यारी सी चूत मेरे लण्ड से टकरा ही गई। उसकी चूत लप-लप कर रही थी। मेरे लण्ड का सुपाड़ा उसकी गीली चूत में अन्दर सरक गया। उसके मुख से आह्ह्ह सी निकल गई। अचानक दीदी ने अपने होंठ अलग कर लिये और तड़प कर मेरे ऊपर से धीरे से हट गई।

“नहीं भैया ये तो पाप है… हम ये क्या करने लगे थे !” मैं भी उठ कर बैठ गया।

जल्दबाज़ी में और वासना के बहाव में हम दोनों भटक गये थे। उसने अपना चेहरा दोनों हाथों से छुपा लिया। मुझे भी शर्म आ गई। उसके मुख की लालिमा उसकी शर्म बता रही रही थी। उसने मुँह छुपाये हुये अपनी दो अंगुलियों के बीच से मुझे निहारा और मेरी प्रतिक्रिया देखने लगी। उसके मुस्कराते ही मेरा सर नीचे झुक गया।

“सॉरी दीदी… मुझे जाने क्या हो गया था…” मेरा सर अभी भी झुका हुआ था।

“आं हां… नहीं भैया, सॉरी मुझे कहना चहिये था !” हम दोनों की नजरे झुकी हुई थी। दीदी ने मेरी छाती पर सर रख दिया।

“सॉरी बहना… सॉरी…” मैंने उसके माथे पर एक हल्का सा चुम्मा लिया और कमरे से बाहर आ गया। मैं तुरंत तैयार हो कर कॉलेज चला गया। मन ग्लानि से भर गया था। जाने दीदी के मन में क्या था। वह अब जाने क्या सोच रही होगी। दिन भर पढ़ाई में मन नहीं लगा। शाम को जीजाजी फ़ेक्टरी से घर आये, खाना खा कर उन्हें किसी स्टाफ़ के छुट्टी पर होने से नाईट शिफ़्ट में भी काम करना था। वो रात के नौ बजे वापस चले गये। दोस्तों यह कहानी आप मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है

रात गहराने लगी। शैतान के साये फिर से अपने पंजे फ़ैलाने लगे। लेटे हुये मेरे दिल में वासना ने फिर करवट ली। काजल का सेक्सी बदन कांटे बन कर मेरे दिल में चुभने लगा। मेरा दिल फिर से दीदी के तन को याद करके कसकने लगा।

मेरा लण्ड दिन की घटना को याद करके खड़ा होने लगा था। सुपाड़े का चूत से मोहक स्पर्श रह रह कर लण्ड में गर्मी भर रहा था। रात गहराने लगी थी। लण्ड तन्ना कर हवा में लहरा उठा था। मैं जैसे तड़प उठा। मैंने लण्ड को थाम लिया और दबा डाला। मेरे मुख से एक वासनायुक्त सिसकारी निकल पड़ी। अचानक ही काजल ने दरवाजा खोला। मुझे नंगा देख कर वापस जाने लगी। मेरा हाथ मेरे लण्ड पर था और लाल सुपाड़ा बाहर जैसे चुनौती दे रहा था। मेरे कड़क लण्ड ने शायद बहना का दिल बींध दिया था। उसने फिर से ललचाई नजर से लण्ड को निहारा और जैसे अपने मन में कैद कर लिया।

“क्या हुआ दीदी…?” मैंने चादर ओढ़ ली।

“कुछ नहीं, बस मुझे अकेले डर लग रहा था… बाहर तेज बरसात हो रही है ना !” उसने मजबूरी में कहा। उसका मन मेरे तन्नाये हुये खूबसूरत लण्ड में अटक गया था। मैंने मौके का फ़ायदा उठाया। चादर एक तरफ़ कर दी और खड़े लण्ड के साथ एक किनारे सरक गया।

“आजा दीदी, मेरे साथ सो जा, यहीं पर…पर पलंग छोटा है !” मैंने उसे बताया।

मेरे मन के शैतान ने काजल को चिपक कर सोने का लालच दिया। उसे शायद मेरा लण्ड अपने जिस्म में घुसता सा लगा होगा। उसकी निगाहें मेरे कठोर लण्ड पर टिकी हुई थी। उसका मन पिघल गया… उसका दिल लण्ड लेने को जैसे मचल उठा।

“सच… आ जाऊँ तेरे पास… तू तौलिया ही लपेट ले !” उसकी दिल जैसे धड़क उठा। दीदी ने पास पड़ा तौलिया मुझे दे दिया। मैंने उसे एक तरफ़ रख लिया। वो मेरे पास आकर लेट गई।

“लाईट बन्द कर दे काजल…” मेरा मन सुलगने लगा था।

“नहीं मुझे डर लगता है भैया…” शायद मेरे तन की आंच उस तक पहुंच रही थी।

मैंने दूसरी तरफ़ करवट ले ली। पर अब तो और मुश्किल हो गया। मेरे मन को कैसे कंट्रोल करूँ, और यह लण्ड तो कड़क हो कर लोहा हो गया था। मेरा हाथ पर फिर से लण्ड पर आ गया था और लण्ड को हाथ से दबा लिया। तभी दीदी का तन मेरे तन से चिपक गया। मुझे महसूस हुआ कि वो नंगी थी। उसकी नंगी चूंचियां मेरी पीठ को गुदगुदा रही थी। उसके चूचक का स्पर्श मुझे साफ़ महसूस हो रहा था। मुझे महसूस हुआ कि वो भी अब वासना की आग में झुलस रही थी… यानी सवेरे का भैया अब सैंया बनने जा रहा था। मैंने हौले से करवट बदली… और उसकी ओर घूम गया।

काजल अपनी बड़ी बड़ी आंखों से मुझे देख रही थी। उसकी आंखों में वासना भरी हुई थी, पर प्यार भी उमड़ रहा था। लगता था कि उसे अब मेरा मोटा लण्ड चाहिये था। वो मुझे से चिपकने की पुरजोर कोशिश कर रही थी। मेरा कड़ा लण्ड भी उस पर न्योछावर होने के लिये मरा जा रहा था।

“दिन को बुरा मान गये थे ना…” उसकी आवाज में बेचैनी थी।

“नहीं मेरी बहना … ऐसे मत बोल… हम तो हैं ही एक दूजे के लिये !” मैंने अपना लण्ड उसके दोनों पांवों के बीच घुसा दिया था। चूत तो बस निकट ही थी।

“तू तो मेरा प्यारा भाई है… शरमा मत रे !” उसने अपना हाथ मेरी गरदन पर लपेट लिया। मेरा लण्ड अपनी दोनों टांगों के बीच उसने दबा लिया था और उसकी मोटाई महसूस कर रही थी। उसने अपना गाऊन का फ़ीता खोल रखा था। आह्ह … मेरी बहना अन्दर से पूरी नंगी थी। मुझे अब तो लण्ड पर काबू पाना मुश्किल हो रहा था। उसने अपनी चूत मेरे लण्ड से चिपका दी। जैसे लण्ड को अब शांति मिली। मेरा मन फिर से उसे चोदने के लिये मचल उठा। मैंने भी उसे कस लिया और कुत्ते की तरह से लण्ड को सही स्थान पर घुसाने की कोशिश करने लगा।

“भैया ये क्या कर रहे हो… ये अब नीचे चुभ रहा है !” उसकी आवाज में वासना का तेज था। उसकी आंखें नशीली हो उठी थी। चूत का गीलापन मेरे लण्ड को भी चिकना किये जा रहा था।

“अरे यूं ही बस … मजा आ रहा है !” मैंने सिसकी भरते हुये कहा। चूत की पलकों को छेड़ता हुआ, लण्ड चूत को गुदगुदाने लगा।

“देखो चोदना मत…” उसकी आवाज में कसक बढ़ती जा रही थी, जैसे कि लण्ड घुसा लेना चाहती हो। उसका इकरार में इन्कार मुझे पागल किये दे रहा था।

“नहीं रे… साथ सोने का बस थोड़ा सा मजा आ रहा है !” मैं अपना लण्ड का जोर उसकी चूत के आसपास लगा कर रगड़ रहा था। अचानक लण्ड को रास्ता मिल गया और सुपाड़ा उसकी रस भरी चूत के द्वार पर आ गया। हमारे नंगे बदन जैसे आग उगलने लगे।

“हाय रे, देखो ये अन्दर ना घुस जाये…बड़ा जोर मार रहा है रे !” चुदने की तड़प उसके चेहरे पर आ गई थी। अब लण्ड के बाहर रहने पर जैसे चूत को भी एतराज़ था।

“दीदी … आह्ह्ह… नहीं जायेगा…” पर लण्ड भी क्या करे… उसकी चूत भी तो उसे अपनी तरफ़ दबा रही थी, खींच रही थी। सुपाड़ा फ़क से अन्दर उतर गया।

“हाय भैया, उफ़्फ़्फ़्फ़…मैं चुद जाऊँगी… रोको ना !” उसका स्वर वासना में भीगा हुआ था। इन्कार बढ़ता जा रहा था, साथ में उसकी चूत ने अपना मुख फ़ाड़ कर सुपाड़े का स्वागत किया।

“नहीं बहना नहीं… नहीं चुदेगी… आह्ह्ह… ”

काजल ने अपने अधरों से अपने अधर मिला दिये और जीभ मेरे मुख में ठेल दी। साथ ही उसका दबाव चूत पर बढ़ गया। मेरे लण्ड में अब एक मीठी सी लहर उठने लगी। लण्ड और भीतर घुस गया।

“भैया ना करो … यह तो घुसा ही जा रहा है… देखो ना… मैं तो चुद जाऊंगी !”

उसका भीगा सा इन्कार भरा स्वर जैसे मुझे धन्यवाद दे रहा था। उसकी बड़ी-बड़ी आंखें मेरी आंखों को एक टक निहार रही थी। मुझसे रहा नहीं गया, मैंने जोर लगा कर लण्ड़ पूरा ही उतार दिया। वो सिसक उठी।

“दीदी, ये तो मान ही नहीं रहा है… हाय… कितना मजा आ रहा है…!” मैंने दीदी को दबाते हुये कहा। मैंने अपने दांत भींच लिये थे।

“अपनी बहन को चोदेगा भैया … बस अब ना कर… देख ना मेरी चूत की हालत कैसी हो गई है… तूने तो फ़ोड़ ही दिया इसे !” मेरा पूरा लण्ड अपनी चूत में समेटती हुई बोली।

“नहीं रे… ये तो तेरी प्यारी चूत ही अपना मुह फ़ाड़ कर लण्ड मांग रही है, हाय रे बहना तेरी रसीली चूत…कितना मजा आ रहा है… सुन ना… अब चुदा ले… फ़ुड़वा ले अपनी फ़ुद्दी…!” मैंने उसे अपनी बाहों में ओर जोर से कस लिया।

“आह ना बोल ऐसे…मेरे भैया रे… उफ़्फ़्फ़्फ़” उसने साईड से ही चूत उछाल कर लण्ड अपनी चूत में पूरा घुसा लिया। मैं उसके ऊपर आ गया। ऊपर से उसे मैं भली प्रकार से चोद सकता था। हम दोनों एक होने की कोशिश करने लगे। दीदी अपनी टांगें फ़ैला कर खोलने लगी। चूत का मुख पूरा खुल गया था। मैं मदहोश हो चला।

मेरा लण्ड दे दनादन मस्ती से चूत को चोद रहा था। दीदी की सिसकारियाँ मुख से फ़ूट उठी। उसकी वासना भरी सिसकियाँ मुझे उत्तेजित कर रही थी। मेरा लण्ड दीदी की चूत का भरपूर आनन्द ले रहा था। मुझे मालूम था दीदी मेरे पास चुदवाने ही आई थी… डर तो एक बहाना था। बाहर बरसात और तेज होने लगी थी।

हवा में ठण्डक बढ़ गई थी। पर हमारे जिस्म तो शोलों में लिपटे हुये थे। दीदी मेरे शरीर के नीचे दबी हुई थी और सिसकियां भर रही थी। मेरा लण्ड उसकी चूत में भचाभच घुसे जा रहा था। उसकी चूत भी उछाले मार मार कर चुद रही थी।

तभी उसने अपना पोज बदलने के लिये कहा और वो पलट कर मेरे ऊपर आ गई। उसके गुदाज स्तन मेरे सामने झूल गये। मेरे हाथ स्वतः ही उसकी चूंचियां मसलने को बेताब हो उठे… उसने मेरे तने हुए लण्ड पर अपनी चूत को सेट किया और कहा,”भैया, बहना की भोसड़ी तैयार है… शुरु करें?” उसने शरारत भरी वासनायुक्त स्वर में हरी झण्डी दिखाई।

“रुक जा दीदी… तेरी कठोर चूंचियां तो दाब लू, फिर …।” मैं अपनी बात पूरी करता, उसने बेताबी में मेरे खड़े लण्ड को अपनी चूत में समा लिया और उसकी चूंचियां मेरे हाथों में दब गई। फिर उसने अपनी चूत का पूरा जोर लगा दिया और लण्ड को जड़ तक बैठा दिया।

“भैया रे… आह पूरा ही बैठ गया… मजा आ गया !” नशे में जैसे झूमती हुई बोली।

“तू तो ऐसे कह रही है कि पहले कभी चुदी ही नहीं…!” मुझे हंसी आ गई।

“वो तो बहुत सीधे हैं… चुदाई को तो कहते हैं ये तो गन्दी बात है… एक बार उन्हें उत्तेजित किया तो…” अपने पति की शिकायत करती हुई बोल रही थी।

“तो क्या…?” मुझे आश्चर्य सा हुआ, जीजाजी की ये नादानी, भरी जवानी तो चुदेगी ही, उसे कौन रोक सकता है।

“जोश ही जोश में मुझे चोद दिया … पर फिर मुझे हज़ार बार कसमें दिलाये कि किसी मत कहना कि हमने ऐसा किया है… बस फिर मैं नहीं चुदी इनसे…”

“अच्छा… फिर… किसी और ने चोदा…”

“और फिर क्या करती मैं … आज तक मुझे कसमें दिलाते रहते है और कहते हैं कि हमने इतना गन्दा काम कर दिया है… लोग क्या कहेंगे… फिर उनके दोस्त को मैंने पटा लिया… और अब भैया तुम तो पटे पटाये ही हो।”

मुझे हंसी आ गई। तभी मेरी बहना प्यासी की प्यासी रह गई और शरम के मारे कुछ ना कह सकी… ये पति पत्नी का रिश्ता ही ऐसा होता है। यदि मस्ती में चूत अधिक उछाल दी तो पति सोचेगा कि ये चुद्दक्कड़ रांड है, वगैरह।

“सब भूल जाओ काजल… लगाओ धक्के… मेरे साथ खूब निकालो पानी…”

“मेरे अच्छे भैया…मैंने तो तेरा खड़ा लण्ड पहले ही देख लिया था… मुझे लगा था कि तू मेरी जरूर बजायेगा एक दिन…!” और मेरे से लिपट कर अपनी चूत बिजली की तेजी से चलाने लगी। मेरा लण्ड रगड़ खा कर मस्त हो उठा और कड़कने लगा। मेरे लण्ड में उत्तेजना फ़ूटने लगी। बहुत दिनों के बाद कोई चोदने को मिली थी, लग़ा कि मेरा निकल ही जायेगा। मेरा जिस्म कंपकपाने लगा… उसके बोबे मसलते हुये भींचने लगा। मेरा प्यासा लण्ड रसीला हो उठा। तभी मेरे लण्ड से वीर्य स्खलित होने लगा। दीदी रुक गई और मेरे वीर्य को चूत में भरती रही। जब मैं पूरा झड़ गया और लण्ड सिकुड़ कर अपने आप बाहर आ गया तो उसने बैठ कर अपनी चूत देखी, मेरा वीर्य उसकि चूत में से बह निकला था। मेरा तौलिया उसने अपनी चूत पर लगा लिया और एक तरफ़ बैठ गई। मैं उठा और कमरे से बाहर आ गया।

पानी से लण्ड साफ़ किया और मूत्र त्यागा। तभी मुझे ठण्ड से झुरझुरी आ गई। बरसाती ठण्डी हवा ने मौसम को और भी ठण्डा कर दिया था। मैं कमरे में वापस आ गया। देखा तो काजल भी ठण्ड से सिकुड़ी जा रही थी। मैंने तुरंत ही कम्बल निकाला और उसे औढ़ा दिया और खुद भी अन्दर घुस गया। मैं उसकी पीठ से चिपक गया। दो नंगे बदन आपस में चिपक गये और ठण्ड जैसे वापस दूर हो गई।

उसके मधुर, सुहाने गोल गोल चूतड़ मेरे शरीर में फिर से ऊर्जा भरने लगे। मेरा लण्ड एक बार फिर कड़कने लगा। और उसके चूतड़ों की दरार में घुस पड़ा। दीदी फिर से कुलबुलाने लगी। अपनी गान्ड को मेरे लण्ड से चिपकाने लगी।

“दीदी… ये तो फिर से भड़क उठा है…” मैंने जैसे मजबूरी में कहा।

” हां भैया… ये लण्ड बहुत बेशर्म होता है… बस मौका मिला और घुसा…” उसकी मधुर सी हंसी सुनाई दी।

“क्या करूँ दीदी…” मैंने कड़कते लण्ड को एक बार फिर खुला छोड़ दिया। अभी वो मेरी दीदी नहीं बल्कि एक सुन्दर सी नार थी … जो एक रसीली चूत और सुडौल चूतड़ों वाली एक कामुक कन्या थी… जिसे विधाता ने सिर्फ़ चुदने के लिये बनाई थी।

“सो जा ना, उसे करने दे जो कर रहा है… कब तक खेलेगा… थक कर सो ही जायेगा ना !” उसकी शरारत भरी हंसी बता रही कि वो अपनी गाण्ड अब चुदाने को तैयार है।

“दीदी, तेरा माल तो बाकी है ना…?” मैं जानता था कि वो झड़ी नहीं थी।

“ओफ़ोह्ह्ह्ह… अच्छा चल माल निकालें… तू मस्त चुदाई करता है रे !” हंसती हुई बोली।

मैं दीदी की गाण्ड में लण्ड को और दबाव दिये जा रहा था। वो मुझे मदद कर रही थी। उसने धीरे से अपनी गाण्ड ढीली की और अपने पैर चौड़ा दिये। मैंने उसकी चूंचियां एक बार से थाम ली और उसके चूंचक खींच कर दबाने लगा।

“सुन रे थोड़ी सी क्रीम लगा कर चिकना कर दे, फिर मुझे लगेगी नहीं !”

मैंने हाथ बढ़ा कर मेज़ से क्रीम ले कर उसके छेद में और मेरे लण्ड पर लगा दी। लण्ड का सुपाड़ा चूतड़ों के बीच घुस कर छेद तक आ पहुंचा और छेद में फ़क से घुस गया। उसे थोड़ी सी गुदगुदी हुई और वो चिहुंक उठी। मैंने पीछे से ही उसके गाल को चूम लिया और जोर लगा कर अन्दर लण्ड को घुसेड़ता चला गया। वो आराम से करवट पर लेटी हुई थी। शरीर में गर्मी का संचार होने लगा था।

क्रीम की वजह से लण्ड सरकता हुआ जड़ तक बैठ गया। काजल ने मुझे देखा और मुस्करा दी।

“तकिया दे तो मुझे…” उसने तकिया ले कर अपनी चूत के नीचे लगा लिया।

“अब बिना लण्ड निकाले मेरी पीठ पर चढ़ जा और मस्ती से चोद दे !”

मैं बड़ी सफ़ाई से लण्ड भीतर ही डाले उसकी गाण्ड पर सवार हो गया। वो अपने दोनों पांव खोल कर उल्टी लेटी हुई थी… मैंने अपने शरीर का बोझ अपने दोनों हाथों पर डाला और अपनी छाती उठा ली। फिर अपने लण्ड को उसकी चूतड़ों पर दबा दिया। अब धीरे धीरे मेरा लण्ड अन्दर बाहर आने जाने लगा। उसकी गाण्ड चुदने लगी। वो अपनी आंखें बन्द किये हुये इस मोहक पल का आनन्द ले रही थी। मेरा कड़क लण्ड अब तेजी से चलने लग गया था। अब मैं उसके ऊपर लेट गया था और उसके बोबे पकड़ कर मसल रहा था। उसके मुख से मस्ती की किलकारियां फ़ूट रही थी…

काफ़ी देर तक उसकी गाण्ड चोदता रहा फिर अचानक ही मुझे ध्यान आया कि उसकी चूत तो चुदना बाकी है।

मैंने पीछे से ही उसकी गाण्ड से लण्ड निकाल कर काजल को चूत चोदने के कहा।

वो तुरन्त सीधी लेट गई और मैंने उसके चूतड़ों के नीचे तकिया सेट कर दिया। उसकी मोहक चूत अब उभर कर चोदने का न्यौता दे रही थी। उसकी भीगी चिकनी चूत खुली जा रही थी। मेरा मोटा लण्ड उसकी गुलाबी भूरी सी धार में घुस पड़ा।

उसके मुख से उफ़्फ़्फ़ निकल गई। अब मैं उसकी चूत चोद रहा था। लण्ड गहराई में उसकी बच्चे दानी तक पहुंच गया। वो एक बार तो कराह उठी।

मेरे लण्ड में जैसे पानी उतरने लगा था। उसकी तकिये के कारण उभरी हुई चूत गहराई तक चुद रही थी। उसे दर्द हो रहा था पर मजा अधिक आ रहा था। मेरा लण्ड अब उसकी चूत को जैसे ठोक रहा था। जोर की शॉट लग रहे थे। उसकी चूत जैसे पिघलने लगी थी। वो आनन्द में आंखे बंद करके मस्ती की सीत्कार भरने लगी थी। मुख से आह्ह्ह उफ़्फ़्फ़्फ़ और शायद गालियां भी निकल रही थी। चुदाई जोरों पर थी… अब चूत और लण्ड के टकराने से फ़च फ़च की आवाजें भी आ रही थी।

अचानक दीदी की चूत में जैसे पानी उतर आया। वो चीख सी उठी और उसका रतिरस छलक पड़ा। उसकी चूत में लहर सी चलने लगी। तभी मेरा वीर्य भी छूट गया… उसका रतिरस और मेरा वीर्य आपस में मिल गये और चिकनाई बढ़ गई। हम दोनों के शरीर अपना अपना माल निकालते रहे और एक दूसरे से चिपट से गये। अन्त में मेरा लण्ड सिकुड़ कर धीरे से बाहर निकलने लगा और उसकी चूत से रस की धार बाहर निकल कर चूतड़ की ओर बह चली। मैं एक तरफ़ लुढ़क गया और हांफ़ने लगा। दीदी भी लम्बी लम्बी सांसें भर रही थी… हम लेटे लेटे थकान से जाने कब सो गये। हमें चुदाई का भरपूर आनन्द मिल चुका था।

अचानक मेरी नींद खुल गई। दीदी मेरे ऊपर चढ़ी हुई थी और मेरे लण्ड को अपनी चूत में घुसाने की कोशिश कर रही थी।

“भैया, बस एक बार और… ” बहना की विनती थी, भला कैसे मना करता। फिर मुझे भी तो फिर से अपना यौवन रस निकालना था। फिर जाने दीदी की नजरें इनायत कब तक इस भाई पर रहें।

मैंने अपनी अंगुली उसके होंठों पर रख दी और तन्मयता से सुख भोगने लगा। मेरे लण्ड ने उसकी चूत को गुडमोर्निंग कहा और फिर लण्ड और चूत दोनों आपस में फ़ंस गये… दीदी फिर से मन लगा कर चुदने लगी… हमारे शरीर फिर एक हो गये… कमरा फ़च फ़च की आवाज से गूंजने लगा… और स्वर्ग जैसे आनन्द में विचरण करने लगे.

बारिश बन्द हो चुकी थी… सवेरे की मन्द मन्द बयार चल रही थी… पर यहां हम दोनों एक बन्द कमरे में गदराई हुई जवानी का आनन्द भोग रहे थे। लग रहा था कि समय रुक जाये …

तन एक ही रहे … वीर्य कभी भी स्खलित ना हो … मीठी मीठी सी शरीर में लहर चलती ही रहे……।

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