प्रेषिका: रिया
मस्तराम डॉट नेट के प्यारे पाठको ये बात उन दिनों की है, जब मेरी शादी हुई थी.. उस वक़्त मेरी उम्र, लगभग 22 और मेरे पति की उम्र 26 थी.. मेरे पति विवेक ने, हमारे हनिमून जाने का प्लान स्थगित कर दिया था क्यों के शादी के खर्चे काफ़ी होने की वजह से संभव नहीं था.. हम मिडिल क्लास परिवार से हैं सो ये सब होता रहता है.. उनके, एक दोस्त हैं – अनुराग.. एक दिन, वो घर पर आए.. उन्हें, जब ये बात पता चला के हनिमून स्थगित कर दिया है तो उन्होंने मेरे पति को प्यार से फटकारा और कहा – ऐसा मत करो, यार.. !! यही टाइम है, मस्ती करने का.. !! अनुराग – विवेक क्या कर रहे हो, यार.. !! अगर पैसों की चकलस है तो मुझसे कहो, मैं कुछ मदद करता हूँ.. !! विवेक – हाँ यार.. !! इतना खर्चा हो गया है के अब और खर्चा नहीं करना चाहता.. !! वैसे भी मैं और लोन नहीं ले सकता क्यों के ऑलरेडी काफ़ी लोगों का क़र्ज़ हो गया है.. !! तू तो जानता है, सब मुझे ही करना है क्यूंकी कहीं से कोई सहारा नहीं है.. !!
अनुराग – ठीक है भाई, मैं समझ गया लेकिन मैं तुझसे तुरंत थोड़े ही मागुंगा.. !! फिर कभी जब भी होंगे, तब लौटा देना.. !!
विवेक – नहीं यार.. !! पर हाँ धन्यवाद, पूछने के लिए.. !! मैं किचन में चाय बनाते बनाते, उनकी बातें सुन रही थी..
जी तो कर रहा था के बाहर आकर कह दूँ के ले लो ना पैसे, बाद में हम लौटा देंगे.. !! पर, मैंने ऐसा नहीं किया..
थोड़ी देर में, मैं चाय लेकर बाहर आई.. उस दिन मैंने, नीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी.. (यहाँ पर मैं अपने जिस्म का विवरण दे देती हूँ.. दूध सा गोरा रंग, 32-28-34 का मेरा फिगर है.. गोल और सुडोल दूध और गाण्ड और भूरे रंग के छोटे से निप्पल हैं.. मुझे यकीन है पढ़ कर, आपके मुँह में पानी ज़रूर आ गया होगा..) चाय लेकर, मैं हॉल में आई..अनुराग और मेरे पति को चाय दी और मैं भी सोफे पर, पति के साथ बैठ गई.. अनुराग, बहुत ही डीसेंट आदमी है.. उम्र होगी, लगभग 25 – 26 के आस पास.. उसकी शादी को 2 साल हो गये थे पर उसका कोई बच्चा नहीं था, अब तक.. अनुराग – देखिए ना भाभीजी.. !! आप ही कुछ कहिए, विवेक को.. !! ऐसा थोड़े ही होता है.. !! अपने आपको मेरा अच्छा दोस्त कहता है और खुशी के मौके पर, मुझसे मदद नहीं लेता.. !! मैं – माफ़ कीजिएगा, अनुरागजी.. !! मैं विवेक के हर फ़ैसले की इज़्ज़त करती हूँ और उनके खिलाफ, कुछ बोल नहीं सकती.. !! विवेक – ऐसी बात नहीं है, अनुराग.. !! तू ही बता, पैसे लेकर करूँ भी क्या.. !! मेरे पास कोई प्लान भी तो नहीं है.. !! दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
अनुराग – अरे भाई, ये भी कोई बात हुई.. !! वैसे मेरी पत्नी वैशाली भी काफ़ी दिनों से घूमने जाने की बात कर रही है तो क्यों ने हम दोनों जोड़े ही साथ मे जाएँ, घूमने के लिए.. !! तुम्हारा पहला हनिमून होगा और मेरा दूसरा.. !! विवेक और अनुराग, हँसने लगे और मैंने भी स्माइल दे दी.. विवेक – अगर ऐसा है, तो ठीक है.. !! अनुराग – ये हुई ना बात.. !! तो ठीक है, विवेक.. !! और हाँ भाभी जी, आपको शादी की बहुत बहुत मुबारकबाद.. मैं – भैया, मुझे भाभी मत कहिए.. !! मैं आपसे छोटी हूँ इसलिए बस आपके लिए मैं हूँ – रिया.. !! अनुराग – तो ठीक है, मिसेस रिया.. !! विवेक, आज मैं वैशाली से बात करता हूँ और हम चारों की जाने की बुकिंग कर देता हूँ.. !! तभी, विवेक का मोबाइल रिंग हुआ.. दफ़्तर से फोन था और घर में सिग्नल नहीं आ रहा था तो वो गैलरी में जाकर, बात करने लगे.. अब पहली बार, अनुराग और मैं आमने सामने बैठे थे..
मैंने अनुराग की तरफ देखा और अनुराग ने मेरी तरफ.. अनुराग को अब मौका मिल चुका था मेरे जिस्म को निहारने का, जो के विवेक के रहते संभव नहीं था.. मैंने अपने होंठ हिलाकर बहुत धीरे से, अनुराग को धन्यवाद कहा..
उसने स्माइल दी और कोई बात नहीं कहा.. मैं उठकर उनके पास गई और चाय का कप लेने के लिए झुक गई..
मैंने देखा उसकी सीधे नज़र, मेरे बूब्स पर थी.. दोनों मम्मो के बीच की दरार, उसने साफ देख ली..
बिना किसी भाव के, मैं मुड़कर किचन की तरफ जाने लगी.. मुझे पूरा यकीन है जब मैं किचन में गई, उसने पीछे से मेरी गाण्ड ज़रूर देखी थी.. फिर विवेक से मिलकर, वो भी घर चला गया.. शाम को उसका कॉल आया के जोधपुर जाने का डिसाइड किया है, वैशाली ने.. हमने भी जोधपुर के लिए, हाँ कर दी.. मेरे पास कुछ पैसे थे सो मैंने, अपने पति से कह दिया के खरीददारी के लिए और छोटी मोटी चीज़ो के लिए हम तैयार हैं.. उस दिन रात को 10 बजे, विवेक मेरे ऊपर आ गये और 2-5 मिनट की जबरदस्त चुदाई के बाद, वो ठंडे हो गये.. सब कुछ होने के बाद वो सो गये, करवट बदल कर पर मैं जाग रही थी..
अनुराग की कामुक नज़रें और मेरी गीली रांड़ चूत मुझे सोने नहीं दे रही थी..
वैसे भी मैं, कोई शरीफ पति व्रता पत्नी तो थी नहीं शादी के पहले ना जाने मैंने कितने लण्ड खाए थे और तो और कई बार पैसे और छोटे मोटे खर्चो के लिए रंडीबाजी भी की थी..
सच बात तो ये है की शादी का आधे से ज़्यादा खर्चा, मेरी चुदाई के पैसों से ही हुआ था..
खैर, अगले दिन अनुराग की पत्नी वैशाली हमारे घर आई..
मैंने उसको चाय नाश्ता करवाया.. दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
विवेक भी, घर पर ही थे..
ऑफीस से, 15 दिन की छुट्टी पर जो थे..
वैशाली ने कहा – प्रिया, ट्रेन का रिज़र्वेशन हो गया है.. !! वैसे अभी, टिकेट्स वेटिंग लिस्ट में हैं.. !! और हाँ इंटरनेट से होटल भी बुक कर दिया था, अनुराग ने.. !!.
हमारा टूर, पूरे 8 दिन का था..
जोधपुर, पुष्कर और आगरा जाकर, हम लोग वापस देहरादून आने वाले थे. वैशाली दिखने में, मीडियम बिल्ड की थी..
सांवला रंग था पर हाँ, दूध मुझसे काफ़ी बड़े थे शायद 36 के होगें..
जिस दिन हमें जाना था, हम लोग बैग पैक करके देहरादून स्टेशन पहुँच गये..
शाम की ट्रेन थी..
हमारे टिकेट्स वैट लिस्ट से अब कन्फर्म हो गये थे..
मेरी सीट 3 नंबर कोच में कन्फर्म थी, जब के बाकी तीनों की सीट्स 10 नंबर बोगी में थीं..
वैशाली 3 नंबर की बोगी में जाने को तैयार हो गई पर मैंने ज़िद की के आप लोग साथ रहें और मैं 3 नंबर की बोगी में चली जाउंगी.. पर मेरे पति ज़ोर देकर, खुद ही 3 नंबर बोगी में चले गये और फिर 10 नंबर बोगी में अनुराग, वैशाली और मैं थे..
हमने कुछ देर बातें करके, फिर डिनर कर लिया..
मैंने उस वक़्त, काले रंग की साड़ी और काला ब्लाउज पहना था..
बातें करते वक़्त, अनुराग मेरे जिस्म को चुपके से घूर भी रहे थे..
मैंने कई बार नोटीस किया पर इग्नोर कर दिया..
मुझे उसकी नज़रें, अपने जिस्म पर बहुत अच्छी लग रहीं थीं और भागती ट्रेन में मेरी चूत गीली हो चुकी थी..
रात के 10 बजे होंगे..
बोगी के सब लोग सोने की तैयारी करने लगे और हमने भी अपनी बर्थ को खोल दिया..
वैशाली, मिडिल बर्थ पर सो गई..
मैं ऊपर बर्थ पर चढ़ने की कोशिश करने लगी, तब ऊपर चढ़ने मे अनुराग ने मेरी मदद की..
मदद क्या की बस मौका मार लिया, मुझे छूने का..
अब अप्पर बर्थ पर मैं थी और ठीक सामने वाली अप्पर बर्थ पर, अनुराग भी आ गये..
मैं लेटी हुई थी और वो भी.. दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
वो मुझे देखकर, स्माइल दे रहे थे और मैं भी..
मेरी स्माइल से उसकी हिम्मत बढ़ गई थी सो उसने अब मुझे आँख मारना शुरू किया..
उसने 3 बार, मुझे आँख मारी..
छीनाल तो मैं भी खानदानी थी, सो मैंने भी स्माइल करके उसको एक आँख मार दी..
फिर तो उसकी हिम्मत और बढ़ गई और वो मुझे फ्लाइयिंग किस भेजने लगा..
मैंने शरमाने का नाटक किया और आँखें नीचे कर लीं..
जब भी मैं उसे देखती, वो मुझे आँख मारता या किस भेजता..
काफ़ी देर तक, ऐसे ही चलता रहा..
फिर उसने मुझे अपने साड़ी का पल्लू हटाने के लिए, इशारे से कहा..
पर मैंने, मना कर दिया और सो गई..
वो काफ़ी देर मेरा इंतेज़ार कर रहा था पर मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई..
रांड़ का मतलब ये तो नहीं है ना की पहली बार में ही चलती ट्रेन में, इतने लोगों के सामने अपना पल्लू गिरा दूँ..
अब हज़ारों के दूध, फ्री में थोड़ी ना इतने लोगों को दिखा देती..
अगले दिन सुबह सुबह, हम लोग जोधपुर पहुँच गये..
होटल पहले से बुक थे, सो हम होटल गये और फ्रेश हो गये..
रूम में जाते ही, मेरे पति ने मुझे पकड़ लिया और किस करने लगे..
मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर मैंने संयम रखते हुए कहा – थोडा तो इंतेज़ार कीजिए.. !!
फिर मैं नहाने के लिए, बाथरूम में गई..
वो भी कुत्ते की तरह, पीछे पीछे आ गये..
मज़बूरी में हम दोनों ने साथ में स्नान किया और एक चुदाई का दौर भी चला..
दिन भर आराम करके, शाम के वक़्त जोधपुर घूमने के लिए हम सब बाहर गये और खूब मस्ती की और डिनर भी बाहर ही लिया.. दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
वैशाली ने प्लान बनाया के कल सुबह आमेर फ़ोर्ट जाएँगे और उसके अगले दिन, पुष्कर जाएँगे..
कहानी जारी रहेगी पढ़ते रहिये मस्तराम डॉट नेट पर मस्त मस्त हजारो कहानिया है ……
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