मे- हां.
अनुराग- तुम भी आके देखो, कितना ठंडा पानी है.
मे- नहीं नहीं, मुझे डर लगता हे.
अनुराग- डरने की कोई बात नहीं.
मे- मेरे कपड़े भीग जाएँगे.
अनुराग- अरे तो उसको साइड मे रख दो, जैसे मैंने रखे हैं. गीले नही होंगे.
वो एकदम मेरे सामने खड़ा था पानी मे, उसकी नज़र से मेरी चूत सिर्फ़ 3/4 इंच दूर थी. मेरी चूत पर बाल नहीं थे. एकदम चिकनी. वो उसी को देख रहा था. मैंने ज़रा गौर से देखा, उसने अपनी धोती तो उतार दी थी, नीचे कुछ पहना हुआ भी था या नही? शाम के अंधेरे उजाले मे ऐसा लगा कि उसने कुछ पहना हुआ नही हे. मैंने भी उसको देखने की सोची.
मे- पर मेरी सहेली भीतर अस्तबल मे है.
अनुराग- तो क्या हुआ, वो मना थोड़ी करेगी.
मे- फिर भी, वो देखेगी तो?
अनुराग- कुछ नहीं होगा, तुम कपड़े सूखी जगह पर रख दो, बाहर निकलो तब पहन लेना.
मे- ओके आती हू.
मैंने उसके सामने ही टॉप उतारा, समीज़ उतारी. अब सिर्फ़ स्कर्ट थी.. मैंने उसके बटन खोले और नीचे सरका के उतार दी. अब मे उसके सामने नंगी थी. चोर नज़रो से देखा, अमृता अस्तबल के भीतर से देख रही थी.. अनुराग को देखा. वो आँखे फाड़ के मुझ को नंगा देख रहा था, उसका एक हाथ पानी मे था.
पहले मैं हौड़े के किनारे पर बैठी. अनुराग ने मेरा हाथ पकड़ के पानी मे उतार दिया. मेरा बॅलेन्स खराब हुआ. उसने अपने दोनो हाथो से मेरी दोनो चुचि पकड़ ली और सहारा देने लगा. मैंने भी संभलते संभलते हुए उसको पकड़ने की कोसिस की और उसका लंड मेरे हाथ मे आ गया. मैंने उसको छोड़ा नही.
मे- कितनी फिसलन है पानी मे.
अनुराग- वो तो हे, पर अब ठीक हे, तुम अब नही गिरोगी. आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
मे- हां, पर आपने मेरी चुचि क्यू पकड़ी,, हाथ भी पकड़ सकते थे.
अनुराग- तुमको गिरने से बचाने के लिए जो सामने आया वो पकड़ लिया.
मे- मेरा हाथ पकड़ लेते. अगर मैंने पाइप नहीं पकड़ा होता तो ज़रूर गिर जाती.
अनुराग- हां सही कहा. पाइप पकड़ के रहना, गिरोगी नही.
मे- पर मैंने पहले जिस पाइप को पकड़ा था वो छोटा और मुलायम था.
अनुराग- ये वही पाइप है बेटी.
अंधेरा हो गया था… अमृता कब बाहर आ कर खड़ी हो गयी मालूम नहीं हुआ, वो हौड़े के बाहर से देख रही थी. मैंने फिर फिसलने की आक्टिंग की, अनुराग ने फिर मेरी चुचि पकड़ ली, सीधा खड़े होने के बाद भी उसने चुचि नही छ्होरी. वो उसको दबाने लगा. मुझे मज़ा आ रहा था. अमृता का मन भी हुआ पानी मे आने का.. उसने जल्दी से अपने कपड़े उतारे और पानी मे आ गयी.
मे- अमृता, आजा, देख कितना ठंडा पानी है
अमृता- हां काजल. वाकई.
मे- मालूम? अगर मैंने पाइप नहीं पकड़ा होता तो डूब जाती.
अमृता- देखु तो कोन सा पाइप.
अमृता ने पानी क भीतर हाथ डाला और उसने भी लंड पकड़ लिया.
अमृता- काजल ये पाइप नहीं है.
मे- तो क्या हे, इतना हार्ड तो पाइप होता है.
अमृता- अनुराग जी, आप बताओ ये क्या है?
अनुराग- ये मेरा लंड है. काजल ने इसको पकड़ के खुद को बचाया.
अमृता- देखु तो ,, और ये कहकर अनुराग का लंड पकड़ लिया. आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
मैं हौड़े की दीवार की तरफ मूह करके खड़ी हो गयी, मेरी पीठ अनुराग की तरफ थी. मैंने घूम कर देखा अनुराग अमृता को चूम रहा था, अमृता उसके लंड को पानी मे मसल रही थी. फिर अनुराग ने मेरे पीछे से आकर मेरी बाँहो के नीचे से हाथ डाला और मेरे बूब्स पकड़ लिए. और दाबने लगा. उसका लंड मेरी गंद से टकरा रहा था.
अमृता ने मेरी चूत मे उंगली घुसा दी और हिलने लगी. मुझे मस्ती आ गयी. मैंने अपने पैरो को फैला दिया.. अमृता दूसरे हाथ से अनुराग का लंड तैयार कर रही थी जैसे वो घोड़े का करती थी.. अब मुझे समझ मे आया कि वो मेरी चुदाई देखना चाहती थी. जब उसका लंड तैयार हो गया तो वो मेरे सामने आ गयी और मुझे किस करने लगी.
अनुराग का लंड छु कर मुझे इतना तो एहसास हो गया था कि इस तरह के लंड से मैं पहले भी चुद चुकी हू, इसलिए मन मे कोई ख़ौफ़ नहीं था. मैंने भी अमृता की चुचि दबानी शुरू कर दी. इधर अनुराग ने अपना लंड मेरी चूत मे घुसाने की कोसिस की. मैंने अमृता से कहा अगर चुदाई देखनी है तो पानी से बाहर आना पड़ेगा, पानी मे कुछ नहीं दिखेगा.
अमृता राज़ी हो गयी और बाहर आ गयी, मुझे और अनुराग को बाहर आने बोला. हम तीनो बाहर आ गये. अब मैंने अनुराग के लंड देखा. वो तना हुआ था और चूत मे घुसने को तैयार था. मेरी चूत भी तैयार थी. मैंने खुद को कुतिया की पोज़िशन मे किया. अनुराग मेरे पीछे अपने घुटनो पर बैठ गया,
अब उसका लंड एकदम सीधा था. अमृता ने मेरी चूत फेलाइ और अनुराग ने अपना लंड उसमे घुसा दिया.. थोड़ा आह के बाद लंड पूरा चला गया और चुदाई शुरू हो गयी.. अमृता को देख के मज़ा आ रहा था.
मे- प..री..या.. आ आ …. तू…झे..भी… चु…दवा…ना … है ?
अमृता- हां, पर तुम पहले चुद लो, तुम्हारे बाद मेरा नंबर.
मे- आग…आर…उसका… लंड… दुबा…रा…टाइट…नहीं…हुआ…तो? आ… आहह
अमृता- हो जाएगा. मास्टर जी से एक बार मे 3/4 बार चुद्ति हू, हर बार उनका लंड चूस के टाइट करती हू, इसका भी कर दूँगी.
मे- ठ… ईक…है ,, हां .प्या.. रे.. ज़ोर ….से ज़ोर… से
अनुराग पहलवान तो था ही. मेरी कमर पकड़ के इतनी ज़ोर ज़ोर से धक्का लगा रहा था कि मेरा पूरा सरीर हिल रहा था. फिर अचानक उसने अपना लंड बाहर निकाला और मेरी गंद मे घुसा दिया. और जबरदस्त तरीके से पेलने लगा.. लंड के नीचे की बॉल हर थाप के साथ मेरी चूत को टक्कर मार रही थी… करीब 15 मिनिट के बाद उसने अपना जूस मेरी गंद मे निकाल दिया. और मुझे अलग कर दिया. आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
अब अमृता का नंबर था.. उसने अनुराग के लंड को चूसना शुरू किया. वो फिर टाइट हो गया. उसने अनुराग को ज़मीन पर लिटाया और कहा कि वो अनुराग को चोदेगि. अनुराग का लंड सीधा उपर की तरफ टाइट खड़ा हुआ था. वो अनुराग के उपर आई, अपनी दोनो टाँग अनुराग के दोनो साइड मे की, थोड़ी सी चूत फैलाई और लंड पर रख दी.
अब वो उसपर बैठने लगी.. लंड उसकी चूत मे जाने लगा. वो उसपर बैठती चली गयी.. धीरे धीरे उसने पूरा लंड अपनी चूत मे समा लिया. अब वो लंड पर गोल गोल घूमने लगी और अपनी गंद हिलाने लगी. अनुराग चुद रहा था और अमृता चोद रही थी.. मैंने अपनी चूत अनुराग क मूह पर रख दी. वो चाटने और चूसने लगा.. 15/20 मिनिट तक अमृता की चुदाई के बाद उसका रस निकल गया..
आज हम दोनो बहुत खुस थी.. हमारी चुदाई हुई थी, सरीर हल्का हो गया. अनुराग और हमने अपने कपड़े पहने.. कल भी यही प्रोग्राम के लिए हमने अनुराग को कह दिया.. हम दोनो सहेलिया हवेली की तरफ खुशी खुशी चल दिए.. आज पहले दिन ही हमारा काम हो गया था.. 9 दिन और बचे थे.. हमने प्लान बनाया कि अनुराग तो है ही, अगर कोई एक और मिल जाए तो ट्राइ करेंगे.
हवेली पहुचे. आंटी बोली कहाँ थी तुम दोनो . हमने कहा कि हम गार्डेन मे थी,, गावं की फ्रेश एर खा रही थी,, सहर मे ये सब कहाँ? आंटी बोली ओके बेटी, जब तक यहाँ हो, तुम दोनो खूब एंजाय करो.. फिर ये मौका नही मिलेगा.. हम दोनो सहेलियो ने एक दूसरे को देखा और मुस्करा दी… हां हम खूब एंजाय करेंगे.. प्लीज आप लोगो को मेरी सच्ची कहानी पढ़ के मज़ा आया हो जरुर बताईयेगा |