गतांग से आगे …. जब उनकी जीभ मेरी योनि पर जाती तो मैं सिकुड़ जाती, उनकी जीभ की गर्मी मुझे पैंटी के ऊपर से ही महसूस हो रही थी। मुझे डर भी लग रहा था मगर पता नहीं क्यों मजा भी आ रहा था। एक बार फिर से मैं उन्हें हटाने लगी इस बार मैंने उनके सर के बाल पकड़ कर खींच लिये, बाल खींचने से उन्हें दर्द हुआ जिससे वो हट तो गये मगर उन्होंने फिर से मुझे पकड़ लिया। इस बार उन्होंने मेरे कँधे को दबाकर मुझे सीधा कर लिया और अपने दोनों पैरों से मेरे दोनों हाथों को दबाकर मेरे ऊपर आ गये। अब मेरे पैरों की तरफ उनका सर व उनके पैरों की तरफ मेरा सर था 69 की पोजिशन में ! और उन्होंने एक झटके में मेरी पैंटी को खींच कर निकाल दिया। यह सब संजय जी ने इतनी जल्दी से किया कि मैं कुछ भी नहीं कर पाई और बिल्कुल बेबस सी हो गई क्योंकि मेरे दोनों हाथों को संजय जी ने अपने पैरों से दबा रखा था। अब नीचे से मैं बिल्कुल नँगी हो गई थी क्योंकि मेरी साड़ी व पटीकोट तो पहले से ही मेरे पेट तक उल्टे हुए थे। इसके बाद संजय जी ने मेरी जाँघों को पकड़ कर फैला दिया व अपने होंठ फिर से मेरी जाँघों के जोड़ से सटा दिये और धीरे धीरे मेरी नँगी जाँघों को और छोटी सी योनि को चूमने चाटने लगे। उनकी इस हरकत से मेरी योनि में एक चिन्गारी सी सुलग उठी और वो चिन्गारी मेरे पूरे बदन को जलाने लगी, मुझ पर एक बेचैनी और खुमारी सी छा गई। धीरे धीरे संजय जी अपनी जीभ को मेरी योनि की दरार में घुमाने लगे। अब तो मुझे भी मज़ा आ रहा था मगर मैं नहीं चाहती थी कि संजय जी को पता चले कि मुझे मज़ा आ रहा है पर मेरी योनि पानी उगल उगल कर मेरी चुगली करने लगी। मैंने अपने मुँह को जबरदस्ती बन्द कर रखा था मगर फ़िर भी जब उनकी गर्म जीभ मेरी योनि के छोटे से गुलाबी दाने (क्लिटोरियस) को छूती तो मेरी जाँघें काँप सी जाती व पूरे शरीर में करेंट की एक लहर सी दौड़ जाती और ना चाहते हुए भी मेरे मुँह से सिसकारी निकल जाती। इस बात का अहसास संजय जी को भी हो गया कि मुझे मज़ा आ रहा है इसलिये संजय जी ने मेरी जाँघों को छोड़ दिया और अपने दोनों हाथों को मेरे कूल्हो के नीचे ले जाकर मुझे थोड़ा सा ऊपर उठा लिया और जीभ निकाल कर मेरी योनि में कभी दाने पर तो कभी योनिद्वार पर घुमाने लगे। मेरे मुँह से ना चाहते हुए भी जोर जोर से सिसकारियाँ फ़ूटने लगी। कभी कभी वो जानबूझ कर मेरे दाने को दाँतों से हल्का सा दबा देते तो मैं उछल पड़ती और मेरे मुँह से कराह निकल जाती। आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | उत्तेजना से मेरी हालत खराब हो रही थी और मेरी योनि तो जैसे उबल ही रही थी जिसमें से पानी उबल उबल कर बाहर आने लगा था जो कि मेरी जाँघों को भी गीला करने लगा। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरी जाँघों के बीच मेरी योनि में लाखो चींटियाँ काट रही हैं। धीरे धीरे संजय जी अपनी जीभ को मेरी योनि में गहराई तक पहुँचाने लगे अब तो मैं अपने आप पर काबू नहीं कर पा रही थी, अपने आप ही मेरे मुँह से जोर जोर से ईइ इशशश्श्श्श शश…अआआह्ह्ह… ईइशशश्श्श्श शश…अआआहहह… की आवाजें निकलने लगी। इससे संजय जी को पूरा यकीन हो गया कि मुझे मज़ा आ रहा है इसलिये संजय जी ने मेरे हाथों को भी आजाद कर दिया और जल्दी जल्दी अपनी जीभ को मेरी योनि में अन्दर बाहर करने लगे। मेरे हाथ आजाद होते ही अपने आप संजय जी के सर पर चले गये और मैं उनके सर को जोर जोर से अपनी योनि पर दबाने लगी। उत्तेजना से मेरा बुरा हाल हो रहा था और मेरी योनि में तो मानो पानी की बाढ़ सी आ गई थी, ऊपर से संजय जी के मुहँ से निकलने वाली लार के मिलने से मेरी पूरी जाँघें भीगने लगी। उत्तेजना से मैं पागल हो रही थी और मेरी योनि में तो जैसे अन्गारे से सुलगते महसूस हो रहे थे इसलिये मैंने अपनी जाँघों को अधिक से अधिक फ़ैला लिया और शर्म लिहाज को भुला कर मैं भी अपनी कमर को ऊपर नीचे हिलाने लगी ताकी उनकी जीभ अधिक से अधिक मेरी योनि में समा जाये। मैं चाह रही थी कि मेरी योनि में जो आग लगी हुई है, संजय जी उस आग को जल्दी से जल्दी अपनी जीभ से शान्त कर दें। संजय जी ने भी अपनी जीभ की हरकत को तेज कर दिया और नीचे से मेरे कूल्हों को धीरे धीरे दबाने लगे। उनकी इस हरकत ने आग में घी का काम किया और मैं उत्तेजना के कारण पागलों की तरह जोर जोर से अपनी कमर को हिलाकर ईइइशश… अआहह्ह्ह… ईइइशश… अआआहहह्ह्ह… की आवाज करने लगी। और अचानक जैसे सब कुछ जैसे थम सा गया, मेरा शरीर अकड़ गया मैंने संजय जी के सर को दोनों हाथों से अपनी योनि पर दबा लिया और अपनी जाँघों से कस कर पकड़ लिया, मेरी सिसकारियाँ हिचकियों में बदल गई और मेरी योनि ढेर सारा पानी उगलने लगी, आनन्द की एक लहर सी पूरे बदन में दौड़ गई। यह मेरा पहला मुखमैथुन था जो अत्यधिक आनन्द से भरा हुआ था। अब सब कुछ शान्त हो गया। कुछ देर तक मैं आँखें बन्द करके ऐसे ही पड़ी रही और संजय जी के सर को भी अपनी जाँघों के बीच दबाए रखा मगर जब संजय जी अपने आप को छुड़वाने के लिये हिले तो मेरी तन्द्रा टूटी, मैंने संजय जी के सर को छोड़ दिया और धीरे से आँखें खोलकर उनकी तरफ़ देखा ! वो मेरी तरफ़ देख कर मुस्कुरा रहे थे उनका मुँह मेरी योनि से निकले पानी से गीला हो रहा था जिसे वो अपनी जीभ होंठों पर फ़िरा कर चाट रहे थे। मैंने फ़िर से अपनी आँखें बन्द कर ली। कुछ देर बाद फ़िर से मैंने आँखें खोल कर उनकी तरफ़ देखा, वो अब भी मुस्करा रहे थे मगर इस बार वो मेरी नंगी योनि और जाँघों की तरफ़ देख रहे थे, तभी मुझे अपने कपड़ों का ख्याल आया जो कि अस्त-व्यस्त हो चुके थे। आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | मैं जल्दी से अपनी साड़ी और पेटिकोट को ठीक करने लगी मगर जल्दी में मेरी पेन्टी नहीं मिल पाई शायद संजय जी ने बिस्तर से नीचे गिरा दी थी इसलिये मैं पेन्टी पहने बिना ही कम्बल लेकर सोने लगी मगर संजय जी ने कम्बल को पकड लिया और कहने लगे- अकेले ही मजा लेकर सोने का इरादा है क्या? मैंने फ़िर से अपनी आँखें बन्द कर ली और बिना कुछ बोले ही करवट बदल कर सो गई क्योंकि अभी जो कुछ हमारे बीच हुआ, उससे मुझे बहुत शर्म आ रही थी और अपने आप पर गुस्सा भी आ रहा था। संजय जी भी मेरे पास मेरी बगल में लेट गये और फ़िर से कहने लगे- कुछ हमारे बारे में भी तो सोचो ! उन्होंने कम्बल को खींच कर मुझ से अलग कर दिया और मेरी गर्दन व गालों पर चुम्बन करने लगे, उनके मुँह से मेरी योनि से निकले पानी की खुशबू आ रही थी। मैं अपने आपको छुड़वाने की कोशिश करने लगीं मगर संजय जी के आगे मेरा कहाँ जोर चलने वाला था, उन्होंने मेरे दोनों हाथों को मोड़ कर बिस्तर से सटा कर पकड़ लिया और मुझे सीधा करके जबरदस्ती मेरे गालों को चूमते चाटते रहे। कुछ देर बाद संजय जी ने मेरे होंठों को अपने मुँह में भर लिया और बुरी तरह से चूसने लगे जैसे कि मेरे होंठों में से कोई रस आ रहा हो। मुझे फ़िर से कुछ होने लगा था जैसे मुझे कोई नशा चढ़ने लगा हो, मैं अपनी सुध बुध खोने लगी यहाँ तक कि मैं संजय जी का विरोध करना भी भूल गई, कभी कभी जब वो मेरे होंठों में अपने दाँत गड़ा देते तो मैं कराह उठती और छ्टपटाने लगती। इसी बीच संजय जी ने अपना पायजामा और अण्डरवियर निकाल लिया और पता नहीं कब उन्होंने अपने लंड पर मेरा हाथ रखवा दिया। जैसे ही मुझे इस बात का अहसास हुआ कि मेरा हाथ कहाँ पर रखा है तो मेरा दिल धक से रह गया, साँसें तेज हो गई और मैंने जल्दी से अपना हाथ खींच कर वहाँ से हटा लिया क्योंकि आज से पहले सिर्फ़ एक बार मैंने अपने भैया का लंड देखा था, आज पहली बार किसी के लंड को स्पर्श करके मैं घबरा गई। मेरी आँखें बन्द थी फ़िर भी मुझे संजय जी के लंड के विशाल आकार का अहसास हो गया। एक बार फ़िर से संजय जी ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रखवा दिया मगर शर्म के करण मैंने फ़िर से अपना हाथ खींच लिया पता नहीं क्यों उनके लंड को छूने के बाद मेरे शरीर में एक अजीब सी सरसराहट होने लगी और मन में गुदगुदी सी होने लगी।इसके बाद संजय जी ने मेरे ब्लाउज के बटन खोल दिये और मेरी ब्रा को ऊपर खिसका कर मेरे छोटे छोटे बूब्सों को मसलने लगे, इससे मुझे दर्द भी हो रहा था और मज़ा भी आ रहा था। पता नहीं क्यों मैं उनका कोई विरोध नहीं कर रही थी। कुछ देर बाद संजय जी मेरे एक निप्पल को अपने मुँह में भरने लगे, मगर एक बड़े नींबू से बस कुछ ही बडे आकार के मेरे बूब्स थे इसलिये पूरा का पूरा बूब्स ही उनके मुँह में समा गया और वो किसी छोटे बच्चे की तरह से उसे चूसने लगे। उनकी इस हरकत ने मेरे तन-बदन में आग लगा दी और मैं फ़िर से उत्तेजित हो गई। आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | इसके साथ साथ संजय जी एक हाथ से मेरे दूसरे बूब्स को मसलने लगे और एक हाथ से कपड़ों के ऊपर से ही मेरी योनि को सहलाने लगे, मेरे मुँह से फ़िर से सिसकारियाँ फ़ूटने लगी। उत्तेजना का मुझ पर एक नशा सा हो गया और पता नहीं कब संजय जी ने मेरी साड़ी और पेटीकोट को उतार दिया। अब मैं नीचे से बिल्कुल नँगी हो गई थी क्योंकि पेंटी तो मैंने ना मिलने के कारण पहनी ही नहीं थी इसलिये शर्म के कारण मैं अपने दोनों हाथों से अपनी योनि को छुपा लिया। इसके बाद संजय जी ने मेरे बूब्सों को छोड़ दिया और मेरे बदन को चूमते हुए धीरे धीरे मेरे पेट की तरफ़ बढने लगे।
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