चूत मरवाते पति ने पकड़ कर गांड मारी

प्रेषिका: पूनम

दोस्तों, नीचे वाला माल चोरी का है पर मैंने इसे ठोक-पीट कर इसका हुलिया बदल दिया है। आपने पहले पढ़ा हो तब भी एक बार इसे पढ़ कर देखें। मैं पूनम हूँ. मेरी उम्र 29 साल, रंग गोरा, कद 5’7″, वजन 60 किलो है, दिखने में सेक्सी दिखती हूँ. मुझे देख कर किसी का भी दिल मुझ पर आ सकता है, कोई भी मुझे बांहों में लेने को मचल सकता है. मेरे उरोज मध्यम आकार के हैं और नितम्ब गोल और गठीले हैं. विजय मेरा पति है, जिससे मेरी शादी आज से ५ साल पहले हुई थी, इनका रंग भी गोरा है, 6’2 कद, वजन 71 किलो है, अच्छे हैंडसम आदमी हैं, इनकी उम्र 32 साल है। रुचिता मेरी ४ साल की बेटी है। अजय मेरी जिंदगी में आया दूसरा मर्द है, वह करीब ६’२” लंबा, कसे शरीर का आदमी है, इसका रंग खुला है, वजन ७८ kg है, इसकी उम्र करीब ३३ साल के ऊपर की है, यह एक कंपनी में मैंनेजर है। रश्मि अजय की बीवी है, इसका रंग भी गोरा है, यह भरे शरीर वाली कुछ सरारती सी औरत है, इसके चुचिया बड़ी बड़ी हैं और चूतड़ भारी हैं। इसकी उम्र करीब ३१ साल है। पियूष रश्मि और अजय का ११ साल का बेटा है जो ४ कक्षा में है। अब शुरू होती है कहानी: मेरे पिताजी का स्वर्गवास बहुत पहले ही हो चुका था जब मैं बहुत छोटी थी। मेरी माँ ने मुझे बहुत मुश्किल से पाला था, और केवल १० तक पढ़ाया था, उस समय मेरी उम्र 19 बरस की थी। मेरी माँ मुझे आगे पढ़ाने की जगह मेरी जल्दी से शादी कर देने की सोच रही थी, पर गरीब बिन बाप की बेटी को अच्छा लड़का मिलना कठिन था. इस तरह दो साल निकल गए. मेरा शरीर भर गया था, जवानी की महक मेरे बदन से निकलने लगी, मेरी भी तमन्ना होने लगी कि कोई लड़का बाहों में भर कर मुझे चोदे। इस बीच एक-दो शादी के रिश्ते आये। कुछ समय बाद एक लड़का अपने माँ बाप के साथ मुझे देखने आया। इस लड़के का नाम विजय था। इसके पिता गोव्वेर्न्मेंट में काम करते थे। लड़का देखने में सुन्दर था। उसके पिता ने मुझे पसंद कर लिया और बगैर दहेज़ के शादी के लिए हाँ कर दी। इन लोगो ने बताया कि विजय किसी बड़ी कंपनी में काम करता है। मेरी माँ बहुत खुश हो गई। उसके सर से एक जिम्मेदारी उतरने वाली थी। हम लोग सोच रहे थे कि काम बड़ी आसानी से हो गया। उन लोगों को शादी की जल्दी थी, सो मेरी शादी एक महीने के भीतर हो गई। मैं अपने ससुराल आ गई। मैं बहुत खुश थी, मुझे एक सुन्दर और हैंडसम पति मिला था। वह मुझे बहुत प्यार करता था। मुझे पहली बार चोदने का सौभाग्य मेरे पति को ही मिला। मेरी असली परेशानी अब शुरू होने वाली थी, पति मुझे साथ ले कर उस शहर में आया जहाँ वो कंपनी में काम करता था। उसकी कमाई बहुत ज्यादा नहीं थी। हम एक छोटे से किराये के कमरे में रहने लगे पर मैं बहुत खुश थी। मुझे पति का पूरा प्यार यानि चुदाई मिल रही थी। तभी मुझे पता चलने लगा कि मेरे पति को शराब पीने की बुरी आदत है, वो तम्बाकू का गुटका भी खाते थे। पहले तो वो कुछ छिपाते थे पर जब उनको भी पता चल गया कि मैं जान चुकी हूँ तो मेरे सामने ही शराब चलने लगी। उनके दोस्त भी शराबी थे, वो उनके साथ शराब पीते थे और देर रात को घर आते थे।

मैं परेशान रहने लगी, कम्पनी भी कभी जाते थे, कभी नहीं। मैंने अपने ससुर से इस बात की शिकायत की पर उन्हें यह सब पहले से ही पता था। उन्होंने फिर भी विजय को डाँटा, फटकार लगाई। कुछ दिन ठीक रहने के बाद फिर वो ही बात – कमाई कम थी, ऊपर से शराब। घर चलाना मुश्किल हो गया। मेरे ससुर पैसे भेज देते थे पर उसमें से भी पति शराब में उड़ा देता था। मेरी माँ ने यह सुना तो सर पीट लिया। विजय की एक बात अच्छी थी, वो मुझे चाहता बहुत था। अब मुझे समझ में आया कि क्यों ये लोग बगैर दहेज़ के शादी के लिए राजी हो गए और क्यों इन्हें शादी की जल्दी थी। मेरे ससुर बार बार मुझे कहते – बेटी, किसी तरह इसे सुधार दो! पर मैं क्या करती! किसी तरह जिन्दगी चल रही थी, आये दिन कर्ज मांगने वाले आने लगे। इस बीच मैं गर्भवती हो गई। ससुर ने मुझे अपने पास बुला लिया। रुचिता को जन्म देने के 3 माह बाद मैं वापस पति के पास आई तो फिर वही कहानी चालू हो गई। हमारी बिल्डिंग के सामने एक छोटा बंगला था जिसमें एक अजय, अपनी पत्नी रश्मि और बेटे पियूष के साथ रहते थे। वो हमारी कभी कभी मदद क़र देते। उनकी बीवी भी हमारी मदद करती थी। विजय को सुधारने के सभी प्रयास विफल हो गए थे। इस बीच रश्मि गर्भवती हो गई तो उसने मुझसे कहा – तुम काम में मेरी मदद कर दो तो मैं कुछ पैसे तुम्हें दे दिया करुँगी। आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | वैसे भी मैं उन लोगों के अहसान में दबी थी। मैं मान गई। मैं सुबह से उनके घर चली जाती थी – बर्तन साफ करना, सफाई करना, खाना बनाना और पियूष को स्कूल भेजना – ये सब मेरे काम थे। रुचिता भी यही रहती थी। हम लोग खाना भी यहीं खा लेते थे और रात में अपने घर जाते थे। कुछ दिनों के बाद रश्मि डिलीवरी के लिए अपनी माँ के घर गई तो मैं अजय और पियूष के काम करने लगी। जब घर पर मैं और अजय अकेले होते तो मुझे शुरू में डर लगता था कि यह मुझसे शरारत की कोशिश न करे। वैसे तो वो सीधा आदमी था पर जवान और खूबसूरत औरत पर मर्द की नीयत कब बदल जाये कोई नहीं बता सकता। कुछ दिन बाद मैं समझ गई कि यह बस यूँ ही देखता रहेगा। जब तक मैं सावधान हूँ, यह कुछ नहीं कर सकता। कभी कभी मेरे मन में भी चुदास उठती पर मैं अपने आप पर काबू रखे थी। आखिर मेरी जिंदगी में वो खास दिन आ ही गया౹ मैं पियूष को स्कूल भेज चुकी थी, अजय भी ऑफिस जा चुके थे, रुचिता सो रही थी। मैंने उसे गोद में लिया, अजय के घर पर ताला लगाया और अपने कमरे की ओर जाने लगी कि तभी विजय का एक आवारा दोस्त आया और बोला- “भाभी, विजय को पुलिस पकड़ कर ले गई है।” मेरे ऊपर बिजली टूट पड़ी౹ मैंने पूछा- “क्या हुआ?” वो बोला – “कंपनी में लेन देन को लेकर किसी से मारपीट हो गई है, आप थाने जाकर पता करो !”

मैंने रुचिता को एक पड़ोस के घर में दे दिया और थाने जाने लगी। पहली बार थाने जाने के कारण मुझे बहुत डर लग रहा था। मैं जैसे ही थाने पहुँची, एक सिपाही ने पूछा- “क्या काम है?” मैंने कहा- मेरे पति को पुलिस पकड़ कर लाई है। आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | वो बोला- तेरे आदमी का नाम क्या है? मैं बोली- विजय ! “अच्छा वो जो कंपनी में मारपीट में अन्दर है?” मैंने कहा- हाँ! वो कैसे छुटेंगे? वो बोला- “मैं कुछ नहीं कर सकता, साब से बात करो!” फिर वो बोला- “यहीं खड़ी रह! मैं बात करता हूँ।” वो मेरे को वहीं खड़ा कर के अंदर गया और फिर आ कर बोला- “चलो, साब बुला रहे हैं।” मैं थानेदार के कमरे में जाने लगी, वहीं से मुझे लॉकअप में बंद विजय दिखाई दिया, वो बहुत उदास था। मुझे देख कर उसके आँखों में आँसू आ गए। मैं थानेदार के कमरे में चली गई౹ वह बोला- “मारपीट का केस है, आज शनिवार है, कल कोर्ट की छुट्टी है, सोमवार को जमानत करा लेना।” मैं रोने लगी तो वो बोला- “साले, पहले लफड़ा करते हैं, फिर बीवी को भेज देते है यहाँ रोने के लिए। ऐ ठाकुर, इस लड़की को बाहर ले जा कर समझा दे।” ठाकुर नाम का एक हवलदार मुझे बाहर एक तरफ ले कर गया और बोला- “देख लड़की, अभी केस लिखा नहीं है, एक बार एफ. आई. आर. लग गई तो हम भी कुछ नहीं कर सकेंगे। तू पाँच हजार रुपये ले कर आ जा, साब को बोल कर पार्टी से समझौता करा दूँगा। नहीं तो जिंदगी भर कोर्ट और वकील के चक्कर लगाती फिरेगी౹” मैं चुपचाप कमरे पर आई, अपने ससुर को फोन किया। वो बोले- बेटा, आज की बस तो निकल गई, मैं कल शाम तक आऊँगा। मैं वापस थाने गई, मैंने ठाकुर से कहा- “पैसे कल तक आ जायेंगे।” आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | वो बोला- “ठीक है, मैं कल शाम तक पार्टी से समझौता करा दूंगा। तू अपने आदमी को छुड़ा लेना।” मैं वापस घर आई, मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था, तभी रुचिता को तेज बुखार आने लगा, मेरे पास दवा व डाक्टर के लिए पैसे नहीं थे। तभी खिड़की से देखा कि अजय और पियूष आ रहे थे। मुझे उनके लिए चाय और खाना बनाना था। मैं सोच रही थी कि ये लोग जल्दी कैसे आ गए౹ मैं चाभी ले कर अजय साहब के घर गई, रोने से मेरी आँखें सूज गई थी। अजय बोला- “मुझे ऑफिस में पता चला कि विजय अंदर हो गया है। तुम बताओ कि बात क्या है?” तभी भाभी का फोन अजय साहब के पास आया, उन्होंने विजय का पूरा किस्सा बता दिया. साहब उनसे बात करते रहे और फिर ‘ठीक है … करता हूँ’ कह के फोन रख दिया। साहब ने कहा – तुम्हारी मेमसाहब ने कहा है कि मै तुम्हारी मदद जरूर करूँ। मैंने अजय साहब को सारी बात बता दी, वो बोला- “ठीक है, कल छुड़ा लेंगे। तुम मेरे लिए चाय बना दो और खुद भी पी लेना। और खाना भी जल्दी बना दो।” मैंने कहा- “रुचिता को बहुत बुखार है।” साहब ने कहा- “ठीक है, चाय पी कर रुचिता को डाक्टर को दिखा देंगे।” मैं बोली- “मेरे पास पैसे नहीं हैं।” अजय ने कहा- “पैसे की फिकर मत करो, तुम चाय पी कर रुचिता को ले कर आओ, मैं कार बाहर निकलता हूँ।” मैं चाय पी कर तैयार हो कर रुचिता को ले आई, मैं, पियूष, रुचिता और अजय कार से डाक्टर के पास गए, वहाँ बहुत भीड़ थी, काफी टाइम हो गया, दवाई वगैरह लेते करते रात के 8 बज गए। तभी पुलिस की गाड़ियों की आवाज आने लगी, लोग भागने लगे, पूरी अफरा-तफरी मच गई। पता चला कि आगे कोई दंगा हो गया है इसलिए पुलिस ने कर्फ़्यू लगा दिया है। आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | हम कार ले कर घर चले तो पुलिस ने हमें उधर जाने नहीं दिया, बोले- रात भर शहर में कर्फ़्यू रहेगा, उस तरफ के इलाके में दंगे हो रहे हैं౹ आप उधर नहीं जा सकते। मैं अजय साहब को बोली- “अब क्या होगा?” वो बोले- “दूसरी तरफ से निकलते हैं।” पर पुलिस ने उधर से भी नहीं जाने दिया। रात के 10 बज गए। तभी अजय साहब बोले- “सामने होटल है, वहीं चलते हैं౹ कुछ खाने को भी मिल जायेगा।” होटल थ्री स्टार था, महंगा था पर फिलहाल कोई रास्ता नहीं था౹ मैं, पियूष, रुचिता और अजय होटल पहुँचे। साहब बोले- “आज यहीं रुकना पड़ेगा।” मैं चुपचाप सुनती रही। मैं कुछ कहने या करने की स्थिति में नहीं थी। अजय साहब से रिसेप्शन वाला बोला- “साब, आप डबल बेड का एक रूम ले लो౹ आप, आपकी बीवी और बच्चे आराम से उसमें आ जायेंगे। रूम में ऐ. सी. है, टीवी लगा है, बाथरूम अटैच है।” वो मुझे अजय की बीवी समझ रहा था।

अजय साहब – “ठीक है! और जल्दी से सबके लिए रूम में ही खाना पहुँचा दो।” वो बोला- “ठीक है, सर।” एक नौकर हम सब को ले कर कमरे में गया, रूम बहुत अच्छा था। ऐ. सी. चालू होते ही कमरे में ठंडक होने लगी, मैंने पानी पिया तब जा कर इतनी परेशानी के बाद राहत मिली। आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | पर मुझे लग रहा था कि एक पराये मर्द के साथ मैं होटल के कमरे में थी। लेकिन कोई दूसरा रास्ता नहीं था, हाथ मुँह धो कर सबने खाना खाया। दिन भर की परेशानी और पुलिस के चक्कर ने मुझे थका दिया था। रुचिता और पियूष को भी नींद आ रही ही थी। मैंने उन्हें बिस्तर पर सुला दिया और सोच रही थी कि मैं अगर बिस्तर पर सो गई तो अजय कहा सोयेगा? तभी अजय साहब ने कहां- “तुम बिस्तर पर सो जाओ, यह सोफा काफी बड़ा है, मैं यहाँ सो जाऊँगा। वैसे भी मैं टीवी देख रहा हूँ।” मैं चुपचाप बिस्तर पर सो गई। पर मन में डर लग रहा था कि कल जब सबको पता चलेगा तो लोग कैसी बात बनायेंगे। थकान के कारण मुझे नींद लग गई। अचानक रुचिता के रोने से मेरी नींद खुल गई, मैं उसे दूध पिला कर चुप कराने लगी। तभी मेरा धयान गया कि पियूष तो सोफे पर सोया है और मेरी बगल में अजय साहब सोये है౹ मैं सन्न रह गई। वो अभी जाग रहे थे, मुझे जगा पा कर कहा – “मैं सोफे पर सो नहीं पा रहा था इसलिए इधर आ गया।” मैं कुछ बोलने के लायक नहीं थी, चुपचाप रही। मेरा गला सूख गया, जबान अटक गई। बगल में मर्द सो रहा था, इस अहसास से चूत में खुजली होने लगी, नींद नहीं आ रही थी, जवानी की आग भड़क रही थी। विजय ने कई दिनों से मुझे नहीं चोदा था। शायद यही हाल अजय का भी था, बाजू में जवान औरत सो रही हो और आदमी का लंड खड़ा न हो ऐसा नहीं हो सकता। मेरा अपने आप पर से काबू छूटता जा रहा था। मैं सोच रही थी कि अजय पहल करे, वो भी शायद इसी सोच में थे पर आज तक मैंने उसे लिफ्ट नहीं दी थी, इसलिए वे डर रहे थे। तभी मुझे लगा कि अजय के एक पैर का पंजा मेरे पैर के पंजे से छू रहा है। सारे शरीर में करंट दौड़ गया, मेरी वासना भड़क उठी। मैंने वैसे ही उसे छूते रहने दिया, थोड़ी देर बाद उसने उसी पंजे से मेरा पंजे को धीरे से दबाया, मानो मुझसे इजाजत मांगी हो। मर्द के साथ कुछ करने की लालसा इतनी प्रबल हो उठी कि मैं विरोध न कर सकी, मैंने हिम्मत कर उसी अंदाज में उनका पैर दबा दिया। मेरी ओर से सकारात्मक प्रत्युत्तर पा कर उनकी हिम्मत बढ़ी और चूत की आग के आगे मुझे भी अपनी मर्यादा-इज्जत का ख्याल न आया౹ पति थाने में, बेटी बीमार, यह सब भूल कर मैं एक गैर मर्द से चुदने को तत्पर हो उठी।

उसका पैर मेरे पैर से रगड़ खा रहा था। वो अपने पैर से मेरी साड़ी ऊपर कर रहा था। चुदाई की आग में मैं अंधी हो गई थी और मजे ले रही थी। तभी उसका एक हाथ मेरे ब्लाउज़ के ऊपर आया और धीरे धीरे वो मेरी चूचियाँ दबाने लगा। कुछ देर बाद उसने मुझे बाहों में भरने की कोशिश की। मैंने बड़ी मुश्किल से अपने आप पर काबू कर उससे छुटने की कोशिश की। मैंने कहा – नहींईईई…! आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | ये एक कमजोर इन्कार था। पर अब वो मानने वाला नहीं था, उसने मुझे क़स कर बाहों में भर लिया और लेटे लेटे मेरे गाल चूमने लगा। मेरा बदन खुद-ब-खुद ढीला पड़ने लगा। वो समझ गया कि बात बन गई है। मेरे इन्कार की आखिरी कोशिश असफल हो गई। मैं खुद ही उससे लिपटने लगी। उसने मुझे अलग कर मेरी साड़ी हटा दी, फिर ब्लाउज़ निकाल दिया, मैं पेटीकोट और ब्रा में थी। वो मुझसे लिपट गया, पीछे हाथ ले जा कर ब्रा के हुक खोल दिए, ब्रा नीचे ढलक गई। मैंने शर्म के मारे दूसरी तरफ मुँह कर लिया तो वो पीछे से चिपक गया और दोने हाथों से मेरे नंगे कबूतर दबाने लगा। उसका लंड मेरे चूतड़ों की दरार में गड़ रहा था। इसके बाद उसने मुझे चित लिटाया, मेरे पेटीकोट के अन्दर हाथ डाल कर मेरी पेंटी खींची। मैंने एक फिर उसे रोकने की कोशिश की, पर उसने लगभग जबरन मेरी पेंटी उतार ली। अब मैं भी बगैर चुदे नहीं रह सकती थी। चूंचे दब चुके थे और चड्डी उतर चुकी थी! चुदने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था! अब उसने अपनी पैंट और अंडरवियर उतार कर अपना लंड निकाल लिया। वो मेरे पति के लंड जैसा ही बड़ा और मोटा था। उसने मेरी टांगें फैला कर मेरा पेटीकोट ऊपर कर दिया। मैं बोली- “किसी से कहना मत!” उसने हाँ में सर हिलाया और अपना लंड हाथ में ले कर वो मेरे ऊपर चढ़ गया। लंड का सुपाड़ा मेरी चूत के मुँह पर रख उसने धक्का दिया तो मेरी गर्म और गीली चूत में लंड आराम से समाता चला गया। मेरे मुँह से आहें निकलने लगी, बड़े दिनों बाद चुदाई का मजा मिल रहा था। वो हलके हलके धक्के मार रहा था। थोड़ी देर बाद मैं मजे लेने के लिए अपने चूतड नीचे से उछालने लगी तो प्रशान्त बोले – “पूनम, मजा आ रहा है या नहीं?” मैं कुछ नहीं बोली, बस चुपचाप चूतड उछाल उछाल कर चुदवाती रही। वो अब जोर जोर से धक्के मारने लगा, जितनी जोर से वो धक्का मारता, मुझे उतना ही मजा आता। मेरे मुँह से ‘सी सी’ की आवाज निकलने लगी। उसकी स्पीड बढ़ गई। आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | “अह … आह! आह्ह…!” उसका लंड पहले से भी ज्यादा कड़क हो गया था। मेरी चूत से फच-फच की आवाज आने लगी! फिर आठ-दस ज़ोरदार धक्कों के बाद उसके लंड ने मेरी चूत में गर्म गर्म वीर्य की पिचकारी मारी तो मैं उससे चिपक गई। पांच-छः झटके मार कर उसका लंड शांत हो गया। मेरी चूत भी पानी छोड़ चुकी थी। मैं करीब पांच मिनट तक उससे चिपकी रही और फिर हट गई। मैं दूसरी तरफ मुँह कर के सोच रही थी कि जो हुआ वो अच्छा हुआ या बुरा? पर अब तो मैं चुद चुकी थी। अब कुछ नहीं हो सकता था। मैं थक चुकी थी। चुदाई के बाद मुझे नींद आ गई।

सवेरा होने पर वेटर चाय ले कर आ गया। दोनों बच्चे भी जग गए थे। चाय पी कर अजय बोले- “मैं कर्फ़्यू की स्थिति का पता करता हूँ।” मैं उनसे नजर नहीं मिला पा रही थी। वो बाहर चले गए, फिर वापस आ कर बोले- “आठ बजे तक हम यहाँ से घर के लिए निकल लेंगे।” रविवार होने से छुट्टी थी। हम सभी लोग अजय के घर पहुँचे। मैंने खाना बनाना शुरू कर दिया। अजय बाहर चले गए और फिर लौट कर उन्होने मुझे आई-पिल की गोली दी और बोले, “रात को वैसे ही कर लिया था न!” मैं शर्म से लाल हो गई पर सोचा कि इन्हें मेरा इतना ख्याल है। खाना खा कर मैं अपने घर आ गई। शाम चार बजे मेरे ससुर आये। हम ने थाने जा कर पाँच हजार रुपये दिए और विजय को छुड़ा कर लाये। वो बहुत शर्मिंदा था पर वो यह नहीं जानता था कि उसकी बीवी दूसरे मर्द से चुद चुकी थी। अगले दिन मेरे ससुर चले गए। विजय की नौकरी जा चुकी थी। वो किराये का ऑटो चलाने लगा पर उसकी आदत में कोई सुधार नहीं आया। आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | अब मेरी मान-मर्यादा भंग हो चुकी थी। अजय से एक बार चुदने के बाद मैंने फैसला किया था कि दुबारा ऐसा नहीं होगा। पर चुदाई एक ऐसा खेल है की एक बार खेलने में मजा आ जाये तो खेल बंद नही होता। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। अजय साहब मुझे नई नई साड़ियाँ देने लगे, सजने संवरने के साधन, परफ़्यूम, कभी जेवर भी। कभी होटल में ले जा कर खाना खिलाना, कभी घुमाने ले जाना, साथ में मेरी तारीफ़। उनकी बीवी मायके में, मेरा पति शराबी, कभी घर आता, कभी नहीं! दोनों को खुली छूट मिल गई थी। मैं दिल ही दिल में अजय को साहब चाहने लगी। पर विजय आखिर मेरा पति था। मैं अजय के बहुत करीब होने लगी। घर पर या बाहर जहाँ भी मौका मिलता, अजय साहब मुझे चिपका लेते, मुझे चूम लेते, मुझे सहला देते। अजय साहब से ही मुझे ब्लू फ़िल्म और पोर्न की जानकारी हुई। एक दिन अजय मुझे ब्लू फ़िल्म दिखा रहे थे। हम सोफे पर बैठे थे। अजय ने अपना लंड निकाल कर मेरे हाथ में दे दिया। मैं उसे मुठियाने लगी। उन्होंने मेरा ब्लाउज उतारा और मेरे बूब चूसने लगे … मेरी चूत सुलगने लगी। धीरे धीरे हम दोनों के सारे कपड़े फर्श पर आ गए, हम दोनों के बदन पर एक धागा भी नहीं था। मेरा गोरा बदन चमक रहा था।

अजय ने मुझे फिल्म के सीन की तरह घोड़ी बना दिया और बोले- “पूनम, तेरे चूतड़ बहुत मांसल हैं। मैं पीछे से तुझे चोदूँगा तो बड़ा मजा आएगा!” वो घोड़े की तरह मेरे ऊपर चढ़ गये और पीछे लंड को मेरी चूत पर जमा कर उन्होंने धक्का मारा। लंड चूत में घुसता चला गया, वो घोड़े के समान मुझे चोदने लगे। मैं भी अपनी कमर आगे पीछे करती चुदने लगी। मेरे चूतड़ों पर जब उसका धक्का पड़ता तो थप की आवाज आती। उन्होंने बताया कि यह स्टाइल उन्हें बहुत पसंद था।

इसके बाद जब भी वो मुझे चोदते तो घोड़ी जरूर बनाते! मेरा पसंदीदा स्टाइल यह था कि मैं अजय को चित लेटा देती और उस पर नंगी बैठ जाती। फिर मैं उसका लंड पकड़ कर अपनी चूत में डाल लेती और उचक उचक कर चुदवाती। मैं खुश थी कि मुझे खेलने को दो-दो जवान लण्ड मिल गए थे। विजय को शायद शक था पर वो कुछ बोल नहीं रहा था। मुझे सिर्फ एक बात की चिन्ता थी कि विजय सुधर नहीं रहा था। एक दिन की बात है कि विजय शराब पी कर रास्ते में गिर गया। मैं और अजय साहब उसे लेने गए, देखा कि उसने बहुत ही ज्यादा पी रखी थी। सड़क पर गिरने से उसे सर व हाथ पर चोट आ गई थी। वो बेहोश था। उसे उठाया, फिर पास के डॉक्टर के पास ले गए। वहाँ से पट्टी करा कर घर लाये तो रात के दस बज रहे थे। अजय साहब ने कहा- “मैं बाजार से खाना लेकर आता हूँ, तुम यहीं विजय के पास रहो!” विजय को होश नहीं आ रहा था, वो नशे में धुत्त था। मेरे घर में केवल एक रसोई और एक बड़ा कमरा है। साहब खाना ले कर आ गये। हम दोनों अजय के घर गए, दोनों बच्चे वहीं थे, सबने खाना खाया और मैंने बच्चों को सुला दिया। बच्चों के सोने के बाद अजय ने मुझे अपनी बाहों में ले लिया और चूमाचाटी करने लगे। लेकिन मेरा मन अपने पति में पड़ा था, सोच रही थी कि उसे होश आएगा तो अपने को अकेला पा कर क्या सोचेगा। यह सोच कर मैंने कहा- “आज नहीं! मैं अपने घर जा रही हूँ।” आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

यह कह कर मैं रुचिता को गोद में उठाने लगी तो अजय ने कहा- “इसे यहीं सोने दो! चलो, मैं भी चल कर देखता हूँ कि विजय की तबीयत कैसी है।” साहब भी मेरे साथ मेरे घर आ गये। घर आ कर देखा तो विजय उसी तरह नशे में धुत्त सोया पड़ा है। कमरे में बैठे बैठे साहब को क्या सूझा कि वो मुझे पकड़ कर चुदने के लिए मनाने लगे। मैं बोली- “विजय यहीं है।” वो बोले- यह तो नशे में धुत्त है, इसे रसोई में सुला देते हैं। फिर हम यहाँ कमरे में चुदाई करते हैं। मैं मना करती रही पर वो नहीं माने। आखिर विजय को रसोई में लिटा कर मैं चुदने के लिए तैयार हो गई। वैसे भी जब विजय पी कर आता था मैं उसके साथ नहीं सोती थी।

अब अजय मेरे करीब आये और खड़े खड़े ही मुझसे चिपक गये। मैं बोली- जल्दी से काम कर के चले जाओ। हम दोनों बेड पर आ गए। मैं सोच रही थी कि जितने जल्दी हो इन्हें निपटा कर यहाँ से रवाना कर दूँ। मैंने चित लेट कर टांगें फैला दी, पेटीकोट और साड़ी ऊपर कर दी। पेंटी नहीं पहनी थी तो मेरी चूत अजय के सामने थी। पर अजय ने उसमें लंड डालने के बजाय मेरे पेटीकोट का नाड़ा खोल कर उसे निकाल दिया। मैं नीचे पूरी नंगी हो गई तो घबरा कर मैंने कहा- “यह क्या कर रहे हो? विजय यही है।” आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | वो बोले- “उसे होश नहीं आएगा और मैं जल्दी ही निपट जाऊंगा।” वो पेंट और अंडरवियर उतार कर अपना खड़ा लंड हाथ में ले कर मेरे ऊपर चढ़ गये। यह लंड मैं कई बार ले चुकी थी पर आज मैं पनियाई नहीं थी। मैं चूत पर थूक लगा कर लंड का इंतजार करने लगी पर अजय मेरा ब्लाउज़ खोल कर कर मेरे मम्मे दबाने लगे और उनको चूसने लगे। न चाहते हुए भी मेरी चूत की आग भड़क उठी। मैं भूल गई कि पति रसोई में सोया है और चुदने के लिए मतवाली हो गई। वो मेरे ऊपर चिपक गए फिर हाथ से मेरी पीठ को कस कर पकड़ कर ऐसा पलटा मारा कि मैं ऊपर और वो नीचे हो गए। मैं उन पर बैठ गई और अपने चूतड़ों को थोड़ा ऊपर कर के लंड को अपनी चूत के मुँह पर रखा और बोली- “धीरे से धकेलो!” अजय खुश हो गए। उनका लंड पहले से ज्यादा कड़क हो गया। उन्होंने धीरे से धक्का मारा पर लंड अन्दर जाने के बजाय फिसल गया। अब उन्होंने अपने हाथ से लंड को चूत पर जमाया और कुछ देर रुक कर अचानक जोर से धक्का मारा। फच्च से लंड अन्दर हो गया। मेरे मुँह से आह निकली- “ओउsssउ… इतनी जोर से!” वो बेशर्मी से हंस दिये। उन्होंने लंड धीरे धीरे अन्दर बाहर करना शुरु कर दिया, मैं भी गर्म हो चुकी थी इसलिये उनके लंड पर अपने चूतड़ ऊपर नीचे करने लगी। मुझे मजा आ रहा था क्योंकि यह मेरा चुदने का मनपसंद स्टाइल था। जब मैं काफी चुद चुकी तो अजय ने मुझे घोड़ी बना दिया और मेरे ऊपर चढ़ गए। लंड को मेरी चूत के मुँह पर रख कर उन्होंने मेरी कमर पकड़ ली और एक ज़ोरदार धक्का मारा। एक ही धक्के में पूरा लंड मेरी चूत में घुस गया। उन्होंने मुझे हलके धक्कों से चोदना शुरू किया पर धीरे धीरे उनकी स्पीड बढ़ने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई घोडा घोड़ी पर चढ़ा हुआ हो। मैं भी अपने चूतड़ हिला हिला कर उनका साथ दे रही थी, आगे पीछे होने के कारण मेरी चूचियाँ हिल रही थीं। लंड फचाफच अंदर-बाहर हो रहा था। उनकी जांघें मेरे चूतड़ों से टकराती तो ‘थप थप’ की आवाज होती! मैं अब चुदाई का मज़ा ले रही थी। मेरे मुंह से आहें निकलने लगी। मैं ‘आह… आह … सी… सी…’ करते हुए चुद रही थी। कहाँ मैं अजय को जल्दी निपटाने की सोच रही थी और अब खुद निपटने वाली थी। आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

अजय का लंड बहुत कड़क हो गया था और उसका पानी निकलने वाला था। तभी मेरी नजर रसोई के दरवाजे पर गई तो मुझे कुछ सेकण्ड के लिए विजय की आँखें खुलती दिखाई दीं लेकिन वो फिर सो गया। मैंने अजय को अपने ऊपर से हटाने की कोशिश की पर वो इतने ताव में था कि अब उसको रोकना मुश्किल था। वो लंड पूरा अन्दर करके मेरे ऊपर लेट गया। उसने मेरे पेट को जोर से पकड़ कर खींच लिया। दो-तीन करारे धक्कों के बाद उसके लंड ने पानी छोड़ दिया। अजय मुझे चोद कर चले गये पर अब मुझे काटो तो खून नहीं! मैं पहली बार अपने पति के सामने चुदी थी। मुझे पता नहीं था कि विजय नशे की हालत में कुछ देख-समझ पाया या नहीं! यह सोचते मुझे रात भर नींद नहीं आई। विजय सुबह करीब 10 बजे उठा। उठने के साथ ही वो मेरे पास आया और उसने मुझे एक झापड़ मार दिया। यानि उसने रात को मुझे चुदते हुए देख लिया था। मैं किसी को शिकायत नहीं कर सकती थी। कौन मर्द अपनी बीवी का दूसरे आदमी से चुदना बर्दाश्त करेगा। विजय ने पूछा – “कब से मरवा रही है साहब से?” आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | मैं कुछ बोलती उससे पहले विजय मेरे पास आया और मेरे बोबो को कस के दबाने लगा। मै चौक गयी। मै समझी थी की विजय मुझे और मारेगा। मै आश्चर्य से उसके तरफ देखने लगी। उसकी आँखों में अजीब सी चमक थी। अब उसने मेरे ब्लाउस को उतार कर मेरे बोबो को आजाद कर दिया। विजय ने मेरी बोबो दबाते हुए मुझ से कहा – “साली, देख क्या रही है? मेरा लंड पकड़!”

मैंने उसका लंड पकड़ा तो और भी आश्चर्य हुआ। विजय का लंड लुंगी से निकला हुआ था और पूरी तरह से खड़ा था। मै कुछ भी समझ नही पा रही थी। उसके कड़े लंड को जब मैंने मुठी में लिया तब विजय ने मेरी साड़ी खोल दी और बोला- “मैं कब से तुझे कह रहा था कि गांड मारने दे! तूने मुझ से नहीं मरवाई और साहब से मरवा रही है!”

उसकी बात सुन कर मेरा मुँह खुला का खुला रह गया। मैंने कहा, “तुम गलत समझ रहे हो। मैंने साहब से कभी नहीं मरवाई।”

विजय ने मेरा पेटीकोट उतार कर जमीन पर गिरा दिया और बोला, “साली, मुझे बेवक़ूफ़ समझती है! तुझे कुतिया बना कर वो तेरी गांड नहीं मार रहा था तो क्या तेरी पूजा कर रहा था?”

उसकी बात सुन कर मै आश्चर्यचकित रह गयी। यह सच था कि विजय ने मुझे कभी घोड़ी बना कर नहीं चोदा था लेकिन वो सोच रहा था कि यह आसन सिर्फ गांड मारने के लिए होता है, यह सुन कर मुझे अचरज हुआ। मैंने हिम्मत कर के कहा, “मैं सच कह रही हूं। उन्होंने मेरी कभी नहीं मारी।”

विजय ने मेरे चूतड पर कस के थप्पड़ मारा और बोला – “साली कुतिया, फिर वो पीछे से क्या क्या रहा था?”

मै कल रात से अब तक जो हुआ था उससे परेशान थी पर विजय की बात सुन कर मुझे हंसी आ रही थी। वो शादी के समय से ही मेरी गांड के पीछे पड़ा था जो मैंने उसे कभी नहीं दी थी। यह भी सच था कि उसने कभी मुझे पीछे से नहीं चोदा था। लेकिन वो सोच रहा था कि औरत को घोड़ी सिर्फ गांड मारने के लिए बनाया जाता है। मुझे इसी बात पर हंसी आ रही थी। मैंने कहा, “वो पीछे से वही कर रहे थे जो तुम आगे से करते हो!”

अब विजय ने आश्चर्य से कहा, “यानि … वो तेरी चूत ले रहे थे! तू सच कह रही है कि उन्होंने तेरी गांड नहीं ली?”

मैंने कहा, “मैं झूठ क्यों बोलूंगी?” आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

वो बोला, “उन्होंने सिर्फ तेरी चूत ली थी तो ठीक है! पर मैं आज तेरी गांड को नहीं छोडूंगा। बोल, मरवाएगी या नहीं?”

उसने फिर मेरे चूतड़ पर थप्पड़ मारा। मेरे मुँह से आह निकल गयी पर मैंने सोचा कि मैं बहुत सस्ते में छूट रही हूँ। मैं गांड मरवाने से हमेशा डरती थी पर गांड दे कर मैं विजय के गुस्से से बच जाऊं तो सौदा बुरा नहीं था! मैंने कहा – “हां, मरवाऊंगी … पर ज्यादा जोर मत लगाना!”

यह सुन कर विजय खुश हो गया। उसने कहा, “तू चिंता मत कर, बस घोड़ी बन जा और फिर देख कि मैं कितने प्रेम से मारता हूँ।”

उसने अपनी लुंगी निकाल फेंकी। अब उसकी बात मानने के अलावा मेरे पास और कोई चारा नहीं था। जैसे ही मैं घोड़ी बनी, विजय ने मेरे चूतड फैलाए और ‘पिच्च’ से मेरी गांड पर थूका। फिर उसने अपने हाथ पर थूक कर अपने लंड पर अच्छी तरह थूक लगाया और लंड को गांड से सटा कर कहा, “अब अपनी गांड ढीली छोड़ दे और प्रेम से लौड़ा डलवा!”

मै समझ गयी कि विजय ने थूक अच्छी तरह लगाया है, अब मैं गांड ढीली छोड़ दूं तो दर्द कम होगा। मैं यथासंभव ढीली हो गई। मैंने कहा, “देख, फाड़ मत देना। धीरे-धीरे डालना।” आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

यह सुन कर विजय ने मेरी गांड में कस के धक्का मारा और मेरे मुँह से चीख निकल गयी ‘उई मां!!!’ और मै आगे गिरते गिरते बची। विजय का लंड आज अजय के लंड से ज्यादा कड़क था। उस पर जैसे कोई जनून सवार हो गया था। उसने मेरी चीख की परवाह नही करी और लगातार चार-पांच धक्के मार कर अपना लंड मेरी गांड में धंसा दिया।

मेरे मुँह से दर्द भरी आवाज में निकल रहा था, “दईया रे! फाड़ दी मेरी गांड!”

विजय मेरी बात सुन के आगे झुका और मुझे चूमने लगा। वो धक्के मारते हुए बोला, “आहा पूनम, इसके लिए बहुत तरसाया है तूने! आज मैं तेरी गांड का भुर्ता बना दूंगा!”

मै समझ गयी कि दर्द हो तो हो, मैं विजय को खुश करके ही बच सकती हूँ। इसके बाद मैंने सुबकना बंद कर दिया और अपना दिल कड़ा कर के उसके धक्के झेलने लगी! कुछ देर बाद दर्द ख़त्म हो गया और मुझे लगने लगा कि गांड मरवाना उतना मुश्किल नहीं है जितना मैं सोचती थी। बस शुरू में दर्द होता है।

विजय का गुस्सा गायब हो गया था और अब वो बहुत खुश लग रहा था। उसके धक्कों ने रफ़्तार पकड़ ली थी। सात-आठ मिनट जम कर मेरी गांड मारने के बाद वो मेरी गांड के अंदर झड़ गया। उसका पानी मेरी गांड में गया तो मुझे अजीब सा सुख मिला। हम दोनों वही निढाल हो कर गिर पड़े, मैं नीचे और विजय मेरे ऊपर।

कुछ देर बाद विजय ने प्यार से मुझे चूमा और कहा, “देखा, तू बेकार में डर रही थी। शुरू में एक-दो मिनट दर्द होता है, फिर सब ठीक हो जाता है। अगर तू मुझे ये मज़ा देती रहे तो अजय साहब से जी भर के चुदवा सकती है!”

वो उठ कर गुसलखाने चला गया। में वहीं नंगी पड़ी रही। विजय ने जो कहा उस पर मुझे यकीन नहीं हो रहा था।

बाद में जब मैं अजय के घर पहुंची तो वो बड़ा परेशान घूम रहे थे। जब मैंने उन्हें बताया कि सब ठीक है तो ख़ुशी के मारे उन्होंने मुझे रसोईघर में ही पकड़ लिया। लेकिन मैंने उन्हें रोक कर कहा, “हम यह काम यहाँ नही कर सकते। आस पड़ोस वाले बाते करने लगेंगे और आपकी पत्नी भी आने वाली है।” आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

अजय ने दुखी हो कर कहा, “फिर कैसे होगा यह?”

मैंने कहा, “आप मुझे मेरे घर में आ कर चोदना।”

मेरी बात सुन कर अजय परेशान हो गए। वे बोले, “लेकिन वहां भी तो मेरा आना-जाना पडोसी देखेंगे।”

मैंने उन्हें कहा, “आप तभी मेरे घर आयेंगे जब विजय वहां हो। फिर किसी को शक नहीं होगा, आपकी पत्नी को भी नहीं।”

अजय मेरी बात सुन कर और मेरे आत्मविश्वास को देख कर हैरान थे। वे बोले, “लेकिन विजय यह क्यों होने देगा?”

अब मैंने उन्हें पूरी बात बताई। वे सुन कर खुश हो गए। आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

फिर तो उनका मेरे घर आना शुरू हो गया, पर जब विजय घर में हो तभी। वे मुझे मेरे पति के सामने ही चोदते। विजय मेरी चुदाई देखता और फिर अक्सर अजय के सामने ही मेरी गांड मारता। मुझे गांड मरवाने में भी मज़ा आने लगा। अब मेरे पास दो-दो तगड़े लंड थे, एक मेरी चूत के लिए और एक मेरी गांड के लिए।

मेरी चूत पा कर अजय साहब तो खुश हैं ही पर जब से विजय को मेरी गांड मिलने लगी है, वो भी बहुत खुश है। शायद इसी ख़ुशी के कारण उसकी आदतें सुधरने लगी हैं। अब उसका शराब पीना काफी कम हो गया है। परसों तो उसने मुझे कहा, “पूनम, तू मुझे अजय साहब की बीवी की गांड भी दिला दे तो मैं शराब पीना बिलकुल बंद कर दूंगा।” वो कहानी फिर कभी लिखुगी

अब मैं रश्मि मेमसाहब को पटाने का तरीका ढूंढ रही हूँ।

समाप्त

The Author

गुरु मस्तराम

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त मस्ताराम, मस्ताराम.नेट के सभी पाठकों को स्वागत करता हूँ . दोस्तो वैसे आप सब मेरे बारे में अच्छी तरह से जानते ही हैं मुझे सेक्सी कहानियाँ लिखना और पढ़ना बहुत पसंद है अगर आपको मेरी कहानियाँ पसंद आ रही है तो तो अपने बहुमूल्य विचार देना ना भूलें



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