गतांग से आगे ….. सुस्मिता भी साथ हुआ करती थी, मगर न जाने कैसे मेरी और आप की नज़रें दूर से ही एक दूसरे से टकराती यूं भिड़ जाती थीं कि फिर किसी और के साथ होने का अह्सास ही न होता था. आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | हां, तब मै भी न जाने कहां खो जाता था. मुझे यूं लगता जैसे पास आते-आते स-शरीर मेरे अन्दर समा गई हो. आह, प्यार का यह कैसा अजीब संयोग था. और तब क्या होता था जानते हो ? दिन और रात हर घडी़ नज़रों से गुजरता वह नज़ारा झरने की तरह वहां पहुंचकर बेचैन गुदगुदी से यूं भर देता कि उसके साथ मेरी समूची देह रिसने लगती थी. किरन प्रियंका की आवाज़ जैसे किसी स्वप्नलोक से आ रही थी. उसका कहना जारी था-एक रात तो मैं सपनों में यूं मचलती रही कि आंख खुलने पर अपने को रिस-रिसकर सचमुच रात के रस में बहता पाया कहीं यह दो दिन पहले की बात तो नहीं जब मैने तुम्हें रेशमी हरी कुर्ती और वैसी ही चमकती सफेद सलवार में देखा था?
हां, उसी सुबह जब आप को मैने भी हल्की हरी धारियों वाले वासंती केसरिया फूलों के रंग में पाया था. उस रोज किसी एक ने मजा़क में जब यह कहा कि आज तो सुबह-सुबह केसरिया और हरे के साथ पार्क में वसन्त उतर आया है री. लगता है कि जैसे पहले से आज का मुहूर्त तय करके आए हैं. उसे सुनकर सभी खिलखिलाकर हंस पडी़ थीं. केवल दीदी सुस्मिता ने प्रश्नित करती उदास आंखों से मेरे चेहरे को देखा था.
मैने प्रियंका की चिबुक थामकर उसके चेहरे को प्यार से निहारा और उसे फिर गले से लिपटाता अपनी छाती से चिपका लिया. अपने होठ नेहा के कान से सटा उसकी कोमल फुनगी को नरमी से चबाते मैने प्यार में सनी आहिस्ता आवाज़ में कहा-उस रात मेरी भी हालत वैसी ही थी. सुबह की तुम्हारी खूबसूरत छबि को आंखों में बसाये मैं भी तुम्हारी यादों में सारी रात ठीक तुम्हारी तरह भीगता और रिसता रहा था.
इस तरह प्यार में लिपटी जाती देह और आनन्द की तरंगों पर मचलते दिलों को पूरा भरोसा हो चला था कि हम एक-दूसरे के लिये ही बने हैं. बातों को विराम देतेप्रियंका और मैं चुप्पी में अचानक गंभीर हो चले थे.
बातों-बातों में प्रियंका और मैं इतने नजदीक आ चले थे कि अब किसी भूमिका की ज़रूरत नहीं रह गई थी. जैसे तूफान आने से पहले हवा थम जाती है, वैसे ही अब जो होने जा रहा था उसका मूड हमपर छा चला था. हम दोनों के चेहरे लाल हो गये थे और एक-दूसरे को निगल जाने के लिये नसों में दौड़ता खून खलबली मचा रहा था.
मुझे कुछ देर पहले कही प्रियंका की बात याद आई. मैने अपनी उंगलियों से उसकी चिबुक थामकर आखों में आंखें डाल उसकी सूरत को प्यार से निहारते हुए शरारत से छेडा़ – तुमने अभी-अभी कहा था कि मेरी देह का नज़ारा झरने की तरह तुम्हारे वहां कहीं पहुंचकर बेचैन गुदगुदी से यूं भर देता कि उसके साथ तुम्हरी समूची देह रिसने लगती थी.मुझे बताओ न कि वहां का मतलब कहां ? आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
प्रियंका शरमा गई. उसकी आंखें चमककर बिजली की तरह मेरी आंखों पर झपटीं. मेरे गाल पर हल्की सी चपत पडी़ – शरारत…? छाती से चिपकती निगाहें नीची किये रबर के गुड्डे को बारीक फांक के मुहाने पर टिकाती वह बोली- यहां.
न जाने अचानक भावना का वह कैसा ज्वार मुझसे लिपटीप्रियंका की देहलता में उमड़ आया था कि अपने स्तनों पर मुझे भींचती और मेरे कन्धे पर सिर गडा़ए प्रियंका सिसकियां ले रही थी. उसके लिये मेरा भी प्यार ज्वार बनकर मुझपर छा चला. यह सम्पूर्ण मिलन की बेला थी. अब देर करने का कोई काम न था.प्रियंका को मैने धीरे से अलग किया. अपनी उंगलियों से उसके सुन्दर मुखडे़ की चिबुक थाम मैने उसकी आंखों को बारी-बारी से चूमा.प्रियंका के आंसुओं के सारे मोती मेरे अधरों ने सोख लिये.प्रियंका के दोनों गालों को अपनी हथेलियों के बीच मैने कसकर समेटा और प्रियंका के नाजुक अधरों से मेरे होठ टूटकर भिड़ चले. तेज होती सांसों के तूफ़ान के बीच लताओं की तरह गुंथी पड़ती हमारी कायाएं बिस्तर पर बिछ्ती चली गई थीं. मेरे हाथों की हथेलियांप्रियंका के फैल चले हाथों की हथेलियों पर अपनी उंगलियों में उसकी उंगलियों को जकड़कर दबाये थीं.प्रियंका की गुब्बारे की तरह फूलती छातियां मेरी छाती की जकड़न में बन्धीं उठती-बैठतीं मचल रही थीं. एड़ियों, घुटनों से जंघाओं तक हम दोनों की टांगें एक-दूसरे पर काबू पाने होड़ ले रही थीं. झाड़ियों में छिपी राजकुमारी के बारीक होठों को बेचैनी मे लहराते मेरे राजकुमार ने झटके से ठेल किले में जैसे ही प्रवेश किया वैसे ही मेरी प्यारी प्रियंका किरन की बेहोश होती पलकों ने आह भरी सिसकी ली. उसकी वह मीठी आह उस गुठली के स्वाद की थी जो उसके होठों के बीच अटक गई थी.
हाय..,बहुत मोटा लग रहा है. ये तो दरवाजे पर ही एकदम टाइट हो गया है..मै कैसे संभाल पाउंगी..बहुत डर लग रहा है. धीरे-धीरे करना प्लीज़. -शीतल बोली.
तुम देखो तो.., एक बार घुस जाने दो फिर कुछ नहीं होगा. लो संभालो..- कहकर मैने जैसे ही अपने हथियार को उसकी चूत में ठेला तो वह उठती हुई चीख पडी़ – हाय-हाय..मेरी चूत फट गई. उसने अपनी मुठ्ठी में लौडे़ को कसकर जकड़ लिया और गुस्से में चिल्लाई – नइ ना प्लीज़. निकाल लो इसको. मैने कहा ना कि मेरी चूत फट रही है.
आधे धंसे लौडे़ को आंख फाडे़ वह देख रही थी. वह उसकी हथेली के घेरे में नहीं समा रहा था.प्रियंका की आंखों से लालच की लार टपक रही थी मगर जुबान कह रही थी- हा..य ! कहां मेरी पतली सी नाजुक चूत और कहां तुम्हारा इत्ता मोटा लौडा़ ! मैं घुसाने नहीं दूंगी. इसे निकालो न प्लीज़..
उसका हाथ हटाते हुए मैने कहा – अच्छा बाबा.., लो.
मुसंबी जैसे स्तनों को कसकर झिन्झोड़ते हुए मैने प्रियंका को बिस्तर पर दबाया और बाहर निकालने की बजाय अपने लौडे़ को प्रियंका की चूत में बेरहम झटके से पूरा का पूरा यूं ठेला कि उसकी कमर, नितंब और जांघें चमककर उछल पड़ीं. मेरी प्यारी, जिसके लिये तुम डर रही थीं वो हो गया.
प्रियंका की चूत-कुमारी का मूड वैसे तो पहले से ही पिघलता हुआ लार टपका रहा था लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता और नजाकत के साथ चोदते हुए मैने और पिघलाना शुरू किया.
इतना कि वह खुद मूड में आ गई थी. वह बोली – हाय.., तुमने मुझे आखिर वश में कर ही लिया.
…मेरे राजा, अब चोद डालो जितना चोदना हो. मैं भी चाहती हूं कि आज जी भर कर चुदवाऊं और तुमको पाने की तमन्ना पूरी कर लूं.
ठीक इसी वक्त सुस्मिता की रिन्ग आई. उसका संदेशा आया कि बीस-पच्चीस मिनट में पहुंच रही हूं.प्रियंका ने सुना तो, लेकिन इस वक्त वह दूसरी दुनिया में थी.
मुझसे बोली कि राजा अब मैं पीछे नहीं हटने वाली. आए तो अभी आ जाये.आज मैं जी भर चुदवा कर ही हटूंगी. तुम्हे कसम है मेरी. तुम उसके सामने ही मुझे उठा-उठाकर, पटक-पटककर, रगड़-रगड़कर चोदना.
मौज में तन्ना-तन्नाकर ऐंठते, फूल-फूलकर लगातार मुटाते, और हर कदम के साथ लंबाते जा रहे प्यारे गुब्बारे के हर झटके को सुन्दरीप्रियंका की आह भरी सिसकारी आनंद के स्वर्गिक संगीत में बदल रही थी. कहीं कोई रुकावट न आए इसलिये ऊपर से किन्चित नीचे खिसक अपना सिर मैने प्रियंका की संगमरमरी छातियों पर ला टिकाया था. इधर कटिभाग से नीचे मैने अपनी देह को प्रियंका की देह के साथ यूं अवस्थित किया था कि बिना किसी अतिरिक्त आसन के मेरा लंब बिछौने पर ठीक समान सतह पर आगे-पीछे होता उसकी गुलाबी फांक को चपाचप पूरी लंबाई का मज़ा पहुंचाता हुआ ठोंक सके. स्पीड बढ़ती गई और उसके साथ झाग में भीगते चूत और लौडे़ की हर टक्कर जोर-जोर से फक्क-फक्क, चप्प-चप्प का शोर मचाती तेज़ होती गई.
प्रियंका तरन्नुम में थी. सारा संकोच हवा में उड़ चुका था.खुशी में वह उछ्ली पड़ रही थी -आह, कितना मजा आ रहा है. मेरे राजा तुम कितने अच्छे हो. .चोदो राजा..चोदे जाओ…आह..तुम तो मुझे स्वर्ग में ले आये हो.
लो मेरी किरन..लेती जाओ..ये लो..और जोर से…लो…ये संभालो.. कहता मैं भीप्रियंका की प्यास मिटा रहा था.
दीवानगी अब काबू से बाहर हो रही थी. मैने प्रियंका की टांगें उठाकर अपने कन्धे पर सम्भाल ली और सामने कीचड़ से सनी चूत पर एक-एक फीट की दूरी बना दनादन यूं
चोट देनी शुरू की कि प्रियंका की चूत और मेरे लौडे़ के साथ हम दोनों की जांघें और टांगें भी चटाचट-चटाचट, छ्पाछप की चीख के साथ हाहाकार मचाने लगीं.प्रियंका की झाड़ियों और जांघ का प्रदेश प्यार की दलदल में नहाया पड़ रहा था. उसकी पानी-पानी होती चूत के लिये मेरे भन्नाये लौड़े की चोट को संभालना मुश्किल पड़ रहा था. आंखें मूंदे वह टांगें फटकारती और हाथों से मुझे ठेलती चीख रही थी – हाय-हाय बस करो..छोड़ दो प्लीज़..छोड़ दो मेरे राजा ..बस करो..हाय-हाय मर गई रे……..आह…उफ्फ़..मार डाला राजा..
जितनी जोर की टक्कर होती उतनी ही ज्यादा जोश से मेरा लौडा़ फूला पड़ रहा था. शरीर का सारा आनंद बनकर उसमें भर आया था. अपनी प्रियंका किरन की चूत में उस रस को खाली किये बगैर वह ह्टने वाला नहीं था. आखिरकर बिजली की सनसनी के साथ लगातार फुहारों से प्रियंका किरन की अंधेरी सुरंग के हर सिरे को कंपाते मेरा लौडा़ अपनी प्यारी चूत में बरस पडा़.प्रियंका की चूत सिकुड़ती-कसती-बांधती उस वक्त अपने प्यारे लौडे़ को अपने अंदर समेटे गले लगा रही थी. बारिश के उस लम्हे में प्रियंका और मैं मदहोश होकर एक-दूसरे में यूं समा गए कि न वह अलग रही और न मै अलग रहा.रहा तो केवल वह आनंद जिसकी चाहत में हम दोनों पागल हुए जा रहे थे. समय कुछ देर के लिये हमारे बीच से गायब हो चला था. आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | सुस्मिता के आने की आहट से तुरंत अलग होकर अच्छे बच्चों की तरह मैं और प्रियंका अपनी-अपनी जगहों पर बैठ गये थे. क्या हो रहा है ? कहते हुए उसने बारी से हम दोनों के चेहरों की तरफ देखा. मेरा चेहरा खून की लाली से अब भी असाधारण रूप से दमक रहा था.प्रियंका का चेहरे पर मिहनत की थकान अब भी लिखी थी. सुस्मिता ने प्रियंका और मेरे बीच की असाधारण खामोशी को जरूर पढा़ होगा. उसने मेरी तरफ खिसियाई मुस्कुराहट के साथ देखा था. उसकी दृष्टि में जिज्ञासा भरा व्यंग था- ” अच्छा, तो ये बात ? देखती हूं तुम्हें बाद में | आज के लिए बस इतना ही क्युकी मेरी चूत का पानी निकल गया अब मन नही कर रहा है | नीद आ रही है सॉरी यार पर आप लोग अपने विचार मेरी मेल आई डी पर भेज दीजियेगा मै रिप्लाई जरुर दुगी क्युकी अभी तक सिंगल जो हु |
बाय बाय [email protected]