मेरा नाम राधेश्याम है. मै एक छोटे से गाव का रहने वाला था. मेरे पिता सरकारी स्कूल के टीचर थे. मेरी उम्र १४ वर्ष की थी जब मै और मेरे माता पिता अपने ननिहाल गया हुआ था. वहां मेरे मामा की शादी थी. वहां पर सभी सगे संबंधी जुटे थे. हम लोग शादी के पंद्रह दिन पहले ही पहुँच गए थे. मेरे पिता जी हम लोग को पहुंचा कर वापस अपनी ड्यूटी पर चले गए और शादी से एक-दो दिन पहले आने की बात बोल गए. वहां पर दिल्ली से मेरे मौसा भी अपने बाल बच्चों के साथ आये थे. मेरी एक ही मौसी थी. उनको एक बेटा और एक बेटी थी. बेटा का नाम गनेश था और उसकी उम्र लगभग सोलह साल की थी. जबकी मौसी की बेटी का नाम अनन्या था और उसकी उम्र लगभग पंद्रह साल की थी.
हम तीनो में बहुत दोस्ती थी. मेरे मौसा भी अपने परिवार को पहुंचा कर वापस अपने घर चले गए. उनका ट्रांसपोर्ट का बिजनस था. पहले वो भी साधारण स्तर के थे लेकिन ट्रांसपोर्ट के बिजनस में कम समय में ही काफी दौलत कम ली थी उन्होंने. उनका परिवार काफी आधुनिक विचारधारा का हो गया था. हम लोग लगभग सात या आठ वर्षों के बाद एक दुसरे से मिले थे. मै , गनेश और अनन्या देर रात तक गप्पें हांकते थे. अनन्या पर जवानी छाती जा रही थी. उसके चूची समय से पहले ही विकसित हो चुके थे. मै और गनेश अक्सर खेतों में जा कर सेक्स की बातें करते थे. गनेश ने मुझे सिगरेट पीने सिखाया. गनेश काफी सारी ब्लू फिल्मे देख चूका था. और मै अभी तक इन सब से वंचित ही था. इसलिए वो सेक्स ज्ञान के मामले में गुरु था. एक दिन जब हम दोनों खेतों की तरफ सिगरेट का सुट्टा मारने निकलने वाले थे तभी अनन्या ने पीछे से आवाज लगाई – कहाँ जा रहे हो तुम दोनों? मैंने कहा – बस यूँ ही, खेतो की तरफ, ठंडी ठंडी हवा खाने. दोस्तों आप यह कहानी मस्ताराम.नेट पर पढ़ रहे है | अनन्या – मै भी चलूंगी. मै कुछ सोचने लगा मगर गनेश ने कहा – चल अब वो भी हमारे साथ खेतों की तरफ चल दी. मै सोचने लगा ये कहाँ जा रही है हमारे साथ? अब तो हम दोनों भाइयों के बिछ सेक्स की बातें भी ना हो सकेंगी ना ही सिगरेट पी पाएंगे. लेकिन जब हम एक सुनसान जगह पार आये और एक तालाब के किनारे एक पेड़ के नीचे बैठ गए तो गनेश ने अपनी जेब से सिगरेट निकाली और एक मुझे दी. मै अनन्या के सामने सिगरेट नहीं पीना चाहता था क्यों की मुझे डर था कि
अनन्या घर में सब को बता देगी.
लेकिन गनेश ने कहा – बिंदास हो के पी यार. ये कुछ नही कहेगी. लेकिन अनन्या बोली – अच्छा…तो छुप छुप के सिगरेट पीते हो ? चलो घर में सब को बताउंगी. मै तो डर गया. बोला – नहीं, अनन्या ऎसी बात नहीं है.बस यूँही देख रहा था कि कैसा लगता है. मैंने आज तक अपने घर में कभी नहीं पी है. यहाँ आ कर ही गनेश ने मुझे सिगरेट पीना सिखलाया है. अनन्या ने जोर का ठहाका लगाया. बोली – बुद्धू, इतना बड़ा हो गया और सिगरेट पीने में शर्माता है. अरे गनेश कितना शर्मिला है ये. गनेश ने मुस्कुरा कर एक और सिगरेट निकाला और अनन्या को देते हुए कहा – अभी बच्चा है ये. मै चौंक गया. अनन्या सिगरेट पीती है? अनन्या ने सिगरेट को मुह से लगाया और जला कर एक गहरी कश ले कर ढेर सारा धुंआ ऊपर की तरफ निकालते हुए कहा – आह !! मन तरस रहा था सिगरेट पीने के लिए. तब तक गनेश ने भी सिगरेट जला ली थी. गनेश ने कहा – अरे यार राधेश्याम, शहर में लडकियां भी किसी से कम नहीं. सिगरेट पीने में भी नहीं. वहां दिल्ली में हम दोनों रोज़ 2 – 3 सिगरेट एक साथ पीते हैं. एकदम बिंदास है अनन्या. चल अब शर्माना छोड़. और सिगरेट पी. मैंने भी सिगरेट सुलगाया और आराम से पीने लगा. हम तीनो एक साथ धुंआ उड़ाने लगे. अनन्या – अब मै भी रोज आउंगी तुम दोनों के साथ सिगरेट पीने. गनेश – हाँ, चली आना. सिगरेट पी कर हम तीनों वापस घर चले आये. अगले दिन भी हम तीनो वहीँ पर गए और सिगरेट पी. अभी भी मामा की शादी में 12 दिन बचे थे. अगले दिन सुबह सुबह मामा गनेश को ले कर शादी का ड्रेस लेने शहर चले गए. दिन भर की मार्केटिंग के बाद देर रात को लौटने का प्रोग्राम था. दोपहर में लगभग सभी सो रहे थे. मै और अनन्या एक कमरे में बैठ कर गप्पें हांक रहे थे. अचानक अनन्या बोली – चल ना खेत पर, सुट्टा मारते हैं. देह अकड़ रहा है. मैंने कहा – लेकिन मेरे पास सिगरेट नहीं है. अनन्या – मेरे पास है न. तू चिंता क्यों करता है? अब मेरा भी मन हो गया सुट्टा मारने का. हम दोनों ने नानी को कहा – अनन्या और मै बाज़ार जा रहे हैं. अनन्या को कुछ सामान लेना है. कह कर हम दोनों फिर अपने पुराने अड्डे पर आ गए. दोपहर के डेढ़ बज रहे थे. दूर दूर तक कोई आदमी नही दिख रहा था. हम दोनों बरगद के विशाल पेड़ के पीछे छिप कर बैठ गए..
और अनन्या ने सिगरेट निकाली.
हम दोनों ने सिगरेट पीना शुरू किया. अनन्या ने एक टीशर्ट और स्कर्ट पहन रखा था. स्कर्ट उसकी घुटने से भी ऊपर था. जिस से उसकी गोरी गोरी टांगें झलक रही थी. आज वह कुछ ज्यादा ही अल्हड सी कर रही थी. उसने अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रखा और मेरे से सट कर सिगरेट पीने लगी. धीरे धीरे मुझे अहसास हुआ कि वो अपनी चूची मेरे सीने पर दबा रही है.पहले तो मै कुछ संभल कर बैठने की कोशिश करने लगा मगर वो लगातार मेरे सीने की तरफ झुकती जा रही थी. अचानक उसने कहा – देख, तू मुझे अपनी सिगरेट पिला. मै तुझे अपनी सिगरेट पिलाती हूँ. देखना कितना मज़ा आयेगा. मैंने कहा – ठीक है. उसने मुझे अपना सिगरेट मेरे होठों पर लगा दिया. उसके सिगरेट के ऊपर उसके थूक का गीलापन था. लेकिन मैंने उसे अपने होठों से लगाया और कश लिया. फिर मैंने अपना सिगरेट उसके होठों पर लगाया और उसे कश लेने को कहा.
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