कैसे हैं मस्तराम की मस्त दुनिया के सभी मस्तानो को अनुराधा (29) के दोनों स्तनों का प्रणाम । । मेरी पिछली दो कहानियां “मस्तियों की कीमत चुकाई, जाने कितनो से अपनी चूत चुदवाई, 27 सितम्बर 2017, और “अनुराधा 69 इन 2009” 6 अक्टूबर 2017 को मस्तराम डॉट नेट पर प्रकाशित हुईं । जिन्होंने इन्हें पढ़ा है उनके लिए आगे का क्रम लेकर आई हूँ । अगर आपने इन्हें अभी तक नही पढ़ा है तो मस्तराम डॉट नेट पर जाकर पढ़ सकते हैं । खैर अब सीधे कहानी पर आती हूँ । अपने बॉयफ्रेंड सुमित,फिर पड़ोसी अंकल, और फिर दोनों पंडितो से चुदवाने के बाद भी मैं प्रेग्नेंट नही हुई । तो मुझे भी शक हुआ कि आखिर क्या बात है जो इतनी घनघोर चुदाई के बाद भी मेरी कोख में बीज नही ठहरा, खैर मेरे लिए तो ये अच्छी बात ही थी क्योंकि मैं भी 21 साल में माँ नही बनना चाहती थी और फिर मुझे अभी अभी तो चुदाई का चस्का लगा था तो कुछ दिन तो मज़े करना चाहती थी ।
इसलिए मैंने एक लेडी डॉक्टर से परामर्श कर कुछ गर्भ निरोधक दवा लेनी शुरू कर दी । अब जब भी सुमित और मैं चुदाई करते तो मैं हर बार उसका बीज अपनी कोख में लेती और एहसास करती स्त्री होने के उस परम् सुख का जो मुझे अत्यधिक उत्तेजित कर देता । खैर अब ये सब सिलसिला चलता रहा जब भी सुमित को छुट्टी मिलती वो रात में मेरे घर आ जाता और रात भर मैं अपनी चूत की खुजली मिटवाती । सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था पर फिर मेरी बड़ी दीदी के गांव में अच्छे स्कूल न होने की वजह से उनके बच्चे हमारे यहां रहकर पढ़ाई करने लगे वो क्या आये मेरी तो जैसे चूत पर ही ताला लग गया,अब सुमित से मिलना मुश्किल हो गया ऊपर से आये दिन बड़े जीजाजी हमारे घर आते जाते तो मुझे और खीज आती । ऐसे ही वक़्त गुज़रने लगा और मैं अपनी चूत में गाजर मूली चलाकर काम चलाने लगी लगभग 8 महीने बीत गए न तो लण्ड नसीब हुआ न कुछ,फिर गर्मियों की छुट्टी हुई तो दोनों दीदियाँ अपने बच्चों ।
को लेकर आ गयीं । बड़ी दीदी सविता के पति राजेश(40वर्ष) और सरिता दीदी के पति विलास(34वर्ष) जीजू थे । कुछ दिन बाद जब गर्मियों की छुट्टियों खत्म होने को आयीं तो दोनों जीजू दीदियों को लिवाने घर आये । तो माँ के आग्रह पर वो दोनों ही7-8 दिन के लिए रुक गए । तभी कुछ उसी समय की बात है,रात का वक़्त था सभी सो रहे थे मैं बाथरूम जाने को उठी तो मेरी नींद उड़ सी गयी तो मैं यूँही आधी नींद में लेटी हुई थी कि तभी 2 लोग अचानक सीढ़ियों से उतरे उनमे एक औरत और एक आदमी था दोनों आकर नीचे हॉल में बिछे बिस्तरों पर आकर लेट गए । मुझे लगा की दीदी जीजू ही होंगे शायद रात में नींद नही आ रही होगी । फिर मैं भी सो गयी । फिर अगले दिन हम सब बरगी बाँध घूमने गए और खूब मज़े किये फिर रात में सबके सोने के बाद अचानक मुझे किसी के फुसफुसाने की आहत हुई मैंने देखा कि 2 साये चुपचाप छत की ओर जा रहे हैं मैं समझ गयी की आज तो मेरी बहन चुदने वाली है पर मैं अब तक ये नही समझपा रही थी की ये बड़े जीजू दीदी है या सरिता दीदी जीजू हैं…
खैर इतने दिनों से मैंखुद प्यासी थी तो सोचा ज़रा live चुदाई भी देखि जाये । फिर में भी उनके पीछे दबे पाँव चल दी ऊपर छत पर एक कमरा था स्टोर रूम जैसा उसकी लाइट जल रही थी मैंने दरवाज़े को हल्का धक्का दिया तो वो अंदर से बन्द था फिर मैंने पीछे की और बने रोशनदान में से झाँका तो देखा की सरिता दीदी हरे रंग की साड़ी को कमर तक उठाये और अपने लाल रंग के ब्लाउज़ को खोले कुतिया बनी चुद रही हैं और उन्हें चोदने वाला कुत्ता था सरिता दीदी और मेरा बड़ा जीजा राजेश जो कि सिर्फ बनियान और लुंगी में थे और अपनी साली को कुतिया के पोज़ में धकाधक चोदे जा रहे थे अब 40 के आदमी को 27 साल की चूत मिल जाये तो उसकी तो लॉटरी ही निकल पड़े खैर उनकी चुदाई चोरीछुपे और ज़ोरदार तरीके से जारी थी जीजाजी का काला लण्ड जब सरिता दीदी की गोरी चूत मेसे निकलता तो ऐसा लगता कि एक सफ़ेद गाय को कोई काला भैंसा चोद रहा हो ।
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मेरी ग़लतफ़हमी दूर होगई,मैं अबतक समझ रही थी कि दीदी और जीजाजी साथ में चुदाई कररहे होंगे पर ये दोनों तो चालू आइटम निकले । सरिता दीदी मज़े से अपनी बड़ी बहन के पति का लण्ड खा रही थीं और बड़े जीजाजी अपनी 27 साल की साली को चोद रहे थे । अभी सरिता दीदी की डिलेवरी हुए बस कुछ 7-8 महीने ही हुए थे तू जब जीजाजी ने उनको पीछे से चोदते चोदते उनके दूधों को पकड़ा तो उनमे से दूध निकलने लगा तो जीजाजी सरिता दीदी से बोले-:वाह सरिता इतने मस्त दूधों का दूध पीने की कबसे ख्वाहिश थी मेरी पर कभी सोचा न था की मुझे ये मौका मिलेगा, तो दीदी बोलीं-: जीजाजी आपने मेरे पति का क़र्ज़ चुकवाया और मेरी लड़की के इलाज का खर्चा भी उठाया,फिर रिश्ते में भी आप मेरे जीजा लगते हैं क्या मै आपकी इतनी सी ख्वाहिश पूरी नही करसकती ।
दीदी जीजाजी की स्पेशल चुदाई
तब मुझे समझ आया की दीदी अपनी चूत से जीजाजी के एहसानो का बदला चुका रही हैं । फिर तभी जीजाजी ने दीदी को गोद में बिठालिया और उनके दूधों से टपकती दूध की बूंदों को पीने लगे और दीदी उनके लण्ड पर ऊपर निचे होती रही फिर जीजाजी ने दीदी को लिटाया और उनके ऊपर आकर चोदने लगे फिर कुछ देर बाद जब उनका बीज निकलने वाला हुआ तो उन्होंने झटके तेज़ करदिये तो दीदी बोलीं की बाहर निकाल लीजिये जीजू कहीं मैं पेट से न होजाऊँ, तो जीजाजी ने जल्दी से अपना लण्ड निकला और दीदी के दूधों के बीच रख दिया और दीदी अपने दोनों दूधों से रगड़कर उनके लण्ड को हिलाने लगी फिर जीजाजी के लण्ड से पिचकारी निकली जो दीदी के गले पर और चेहरे पर लगगयी ।
मैं समझ गयी कि अब ये लोग बाहर आने वाले हैं तो मैं भी जल्दी से नीचे आगयी और आकर अपनी जगह पर लेट गयी कुछ ही देर में जीजाजी और दीदी आकर अपनी अपनी जगह लेट गए । आप यह हॉट हिंदी सेक्सी कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | अपने बड़े जीजाजी का मूसल लण्ड देख मेरी चूत बहने लगी और मैं भी चादर में हाथ डाल अपनी मुनिया को सहलाने लगी और जीजाजी के मूसल लण्ड की कल्पना करते करते सोचने लगी कि क्यों न मैं भी जीजाजी का लण्ड लेकर मज़े लेलूँ? पर क्या ये सही रहेगा? बस यही असमंजस में खोयी खोयी मेरी नींद लगगयी और मैं सोगयी । अगले दिन मैंने बहुत सोचा फिर ख्याल आया की जीजू अभी भी तो अपनी एक साली को ही चोद रहे हैं और दीदी भी अपनी मर्ज़ी से अपनी बड़ी बहन के पति से चुद रही हैं |
जब वो गलत नही है तो मेरा उनसे चुदना कैसे गलत हो सकता है । बस फिर मैंने उनपर डोरे डालना शुरू करदिया,अब जब भी मैं उनके आसपास होती तो अपना दुपटटा हटा देती और आपने दूधों की झलक उनको दिखती वो भी धीरे धीरे चोर नज़रों से मेरे दूधों को ताड़ने लगे फिर कभी आते गुज़रते ऐसा मौका आता की हम दोनों एक दुसरे से टच होते हुए गुज़रते तो मैं अपनी गांड या दूध जीजाजी से टच करदेती ।
तो वो भी रोमांचित होकर रह जाते । फिर एक दिन शाम की बात है कुछ 6-7 बज रहे थे हम सब बहने जीजाजी वगैरा हॉल में बैठे गप्पे लगा रहे थे लाइट थी नहीं और लालटेन जल रही थी ।
जीजा का मोटा बॉस जैसा लंड
मैं जानबूझकर जीजाजी के आगे खड़ी हो गई और अँधेरे का फायदा उठाकर अपनी गांड जीजू के लण्ड पर पेंट के ऊपर से रगड़ने लगी थोड़ी देर ऐसा करने के बाद जीजाजी का लण्ड भी खड़ा हो गया और मुझे उनका लण्ड महसूस होने लगा मैंने भी अँधेरे का फायदा उठाकर अपना एक हाथ पीछे किया और पेंट के ऊपर से जीजू का लण्ड पकड़कर मसलने लगी जीजाजी भी मेरी गांड पर हाथ फेरना लगे, सभी लोग बातों में लगे थे और अँधेरे का असली फायदा हम दोनों उठा रहे थे । अभी सुरूर चढ़ना शुरू ही हुआ था की कमबख्त लाइट आगयी और हमे अलग होना पड़ा । फिर सब नॉर्मल होगया और हम अपने अपने काम में लग गए ।
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रात करीब 9 बजे सब खाना खा रहे थे तो सरिता दीदी का का 8 महीने का बेटा रोने लगा तो मैंने उसे गोद में उठालिया और घुमाने लगी फिर मुझे एक तरकीब आई,मैंने उसे अपने साथ लिया और ज़ोर से बोली-:”भैय्यू चलो अपन छत पर घूमने चलते हैं खूब मस्ती करेंगे जैसे शामको कररहे थे”!! मेरी बात सुनकर जीजू समझ गए की ये इशारा उनके लिए ही था ।
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