प्रिय पाठको, मैं कनक २१ साल की हूँ मै मुंबई के घाटकोपर में रहती हूँ। जब मैं ५ कक्षा में थी तो मेरी माँ ने मुझे पुने पढ़ने भेज दिया। ११ तक तो मैंने वहीं पढाई की लेकिन जब मैं १२ में पहुँची तो मेरे साथ एक अजीब घटना घट गई। आज मैं आप सबको वही घटना बताने वाली हूँ।
पुने में हमारा अपना एक छोटा सा घर था। मम्मी-पापा मुंबई में रहते थे तो पुने का घर खाली पड़ा था। ग्यारहवीं तक मैं हॉस्टल में थी लेकिन बारहवीं में जाने के बाद मैं अपने घर में रहने लगी। मैं खूबसूरत हूँ, कोई भी लड़का मुझे देख कर आह भरे बिना नहीं रह सकता, उस पर 32-25-32 की 18 साल की जवानी भी थी। मैं नए ज़माने की लड़की थी इसलिए कपड़े भी सेक्सी पहनती थी। मेरे घर के सामने एक और घर था उसमें चार लड़के रहते थे वो एक साथ बी.ए तृतीय में पढ़ते थे, उम्र में वो मुझसे लगभग चार साल बड़े थे।
जिस दिन से मैं अपने घर में रहने आई, उनकी नज़र मुझ पर रहती थी। मेरे घर के सामने एक बरामदा था जिसमें कुर्सी लगी थी। मैं अकसर शाम के समय वहाँ बैठ कर पढ़ती थी। घर में कोई और तो था नहीं, सिर्फ एक खाना बनाने वाली थी, समय से आती खाना बना कर और सफाई करके चली जाती।
एक दिन मैं स्कूल से घर आई तो देखा कि चार में से एक अपने घर के बाहर खड़ा होकर मेरे घर की तरफ देख रहा है। मैं उसका इरादा समझ गई। जवानी मेरी भी काबू में नहीं थी, घर में आकर मैं शीशे के सामने खड़ी हो गई और खुद को देखने लगी। मैंने जानबूझ कर दरवाजा खुला छोड़ दिया ताकि वो मुझे देख सके।
मैंने अलमारी से अपने लिए काले रंग की सिल्क की ब्रा और पैंटी निकली और फिर शीशे के सामने आ गई। वो अब भी लगातार मेरे कमरे में देख रहा था, शीशे में मुझे वो दिख रहा था।
मैंने अपने शर्ट के बटन खोल दिए और धीरे से उसे अपने शरीर से अलग किया। वो देख कर थोड़ा सजग हो गया, उसने अंदर से अपने तीनों दोस्तों को भी बुला लिया।
मैं स्कूल ड्रेस के नीचे ब्रा और पैँटी नहीं पहनती थी। मैंने पहले पैंटी पहनी और फिर स्कर्ट भी उतार दिया अब वो चारो मुझे पीछे से केवल पैंटी में देख रहे थे। फिर मैंने ब्रा पहनी और उसी तरह घूम कर शीशे की तरफ पीठ करके अपना हुक बंद किया। मेरी चूचियाँ और चिकनी नाभि देख कर वो चारों वासना के सागर में गोते लगाने लगे।
फिर मैंने अलमारी में से एक नीली स्कर्ट और गुलाबी टॉप निकाली और वापिस शीशे के सामने आ कर मैंने स्कर्ट पहना जो घुटने के कुछ ऊपर तक ही था। फिर टॉप जो चूचियों के कारण नाभि के ऊपर ही अटक जाता था। फिर मैं घूम के दरवाजे तक आई और ऐसा दिखाया कि मैंने उन्हें देखा ही नहीं।
थोड़ी देर बाद मैं किताब ले कर बाहर कुर्सी पर बैठ गई वो चारों अब भी वहीं थे, मेरी गोरी टांगें और चूचियाँ देख देख कर पागल हुए जा रहे थे। दोस्तों आप यह कहानी मस्ताराम.नेट पर पढ़ रहे है |
तभी खाना बनाने वाली आ गई, लगभग डेढ़ घंटे तक वो घर में रही, खाना बनाया और फिर बाहर आकर बोली- मैंने खाना बना दिया है, खा लेना ! अब मैं जाऊँ?
मैंने कहा- ठीक है, जाओ !
अब मैं निश्चिंत थी। मेरे दिमाग में घूम रहा था कि मैं कैसे उनमें से किसी एक को कमरे में बुलाऊँ !
तो मैं थोड़ी देर बाद खुद ही उनके कमरे के तरफ चल पड़ी। वहाँ पहुँच कर मैंने उनमें से एक से कहा- सुनिए !
वो मेरी तरफ देखने लगा। उन्हें डर लगने लगा कि कहीं मैंने उन्हें देख तो नहीं लिया।
तभी मैंने कहा- जी मुझे एक सवाल नहीं आ रहा ! अगर आप में से कोई बता दे तो ?
मेरा इतना कहना था कि चारों एकदम खुश हो गए, लेकिन उनमें से एक धीरज मेरे साथ मेरे कमरे में आया। दरवाजे से अंदर आते ही उसने कहा- आप यहाँ अकेली रहती हैं क्या ? दोस्तों आप यह कहानी मस्ताराम.नेट पर पढ़ रहे है |
मैंने कहा- हाँ ! क्यों ?
वो कहने लगा- नहीं, आप लड़की हैं और अकेली ?
मैंने दूरी कम करने के लिहाज से कहा- पहले तो आप मुझे आप नहीं कहेंगे क्योंकि मैं आप से छोटी हूँ ! और मैं छटी कक्षा से घर से बाहर रह रही हूँ इसलिए अब आदत हो गई है।
मैं उसे सीधे अपने सोने के कमरे की तरफ ले गई बिस्तर की तरफ इशारा किया और कहा- बैठिये !
और किताब ले आई। मैं उसके सामने पैर पर पैर चढ़ा कर बैठ गई। उसकी नजर मेरी गोरी टांगों पर थी। मैं समझ रही थी।
मैंने थोड़ा और नजदीक आकर पूछा- आप चारों एक साथ रहते हैं?
उसने कहा- हाँ !
उसकी नजर अब भी मेरी टांगों पर थी। फिर मैंने किताब का पन्ना पलट कर एक सवाल उसके सामने रख दिया। वो तेज था, उसने तुरंत सवाल हल कर दिया।
मैंने खुश होते हुए कहा- धन्यवाद, आपने मुझे कल टेस्ट में फ़ेल होने से बचा लिया ! अगर बुरा न माने तो क्या आप लोग आज रात का खाना मेरे साथ खाना पसंद करेंगे?
एक लड़की का सीधा आमंत्रण पा कर कोई जवान लड़का मना कैसे करता ! उसने कहा- लेकिन आपको तकलीफ होगी | दोस्तों आप यह कहानी मस्ताराम.नेट पर पढ़ रहे है |
मैंने कहा- तकलीफ कैसी? नौकरानी खाना बना कर गई है। अपने मेरी इतनी मदद की है तो यह तो मेरा फ़र्ज़ है !
फिर उसने हाँ में सर हिला दिया। फिर वो बाहर की तरफ चल पड़ा। मैं उसे छोड़ने दरवाजे तक आई और जाते जाते उससे कहा- भूलिएगा मत ! ठीक नौ बजे !
उसने कहा- ठीक है !
मेरा मन जैसे झूम उठा, मेरी सहेलियाँ मुझे उनकी चुदाई की कहानियाँ बताती थी, मेरा भी मन करता था कि मेरे पास भी काश मुझे भी कोई चोदने वाला होता ! अब तक मैं बिलकुल कुँवारी थी, किसी ने हाथ भी नहीं लगाया था। लेकिन
आज मेरी कुँवारी बुर हसीन सपने देख रही थी।
फिर मैं तैयार हो कर बाहर आकर कुर्सी पर बैठ गई और नौ बजने का इंतजार करने लगी। ठीक नौ बजे वो चारों घर से निकले, मैंने उन्हें घर से निकलते देख लिया था इसलिए मैं सोने का नाटक करने लगी।
वो चारों आये और मुझे सोता देख कर चुपचाप मेरे आसपास खड़े हो गए। नियत तो उनकी खराब थी लेकिन कुछ करने की हिम्मत नहीं हो रही थी।