धीरे धीरे मौका मिलने पर वो किचन में मेरी मदद करने के बहाने आते थे और मेरी गांड पर मज़ाक में एक चाँटा मारने लगे, मेरे पीछे खड़े रह कर वो मुझे कहते कि मैं उन्हे खाना पकना सिखा दूं. ऐसे करके वो अपनी ‘टूल’ का अंदाज़ा मुझे महसूस कराने लगे. मूड में रहने पर मैं भी अपनी गांड और पीछे करती और पूरी करती अपनी और उनकी मनोकामना. पर हमे एक- दूसरे से अपनी भावनाए जाहिर करना ना जाने क्यों जम रहा था. शायद तब हमे ये अहसास होता होगा कि हम भले ही एक-दूजे को दोस्त मानते हो पर असल में वो मेरे ससुर और मैं उनकी बहू हूँ. आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | ये ‘खिचड़ी’ पकने का सिलसिल्ला ऐसे ही 2-3 दिन चला, पर एक दिन नहा कर मैं लौटी और साड़ी पहेन कर निकली वोही ससुर जी ने मेरी तारीफो के पूल बांधना शुरू किए. मैने कहा “क्या बात आज कुछ सही नही लग रहा है, आपकी तबीयत तो ठीक है ना?” इस पर उन्होने कहा, ” क्या कहूँ, आज तुम हमेशा से कुछ ज़्यादा ही सुंदर लग रही हो.” मैं शरमाई और हमेशा की तरह किचन में चली गयी. वो मेरे पीछे थोड़ी देर बाद आए, तब मैं आटा गूंद रही थी. उन्होने मुझसे कहा,” आज आता कैसे गूंदते है ये सिखाउन्गा”.
मैं बोली “आईए फिर देर किस बात की?” मेरे बुलावे पर वो रोज की तरह मेरे पीछे खड़े हुए अपना ‘डंडा’ मुझसे टिका कर और मेरी बाहों के उपर से हाथ डालकर आटे में हाथ डाले. मैं दूसरे हाथ से उन्हे पानी का अंदाज़ा देने लगी, तब उन्होने कहा, “पानी ज़्यादा हुआ तो?” मैने कहा,” फिर आटा ज़्यादा लेकर प्रमाण सुधारना पड़ेगा फिर.” मेरा जवाब सुनकर वो हस पड़े और उन्होने मुझे अंजाने में हल्का सा धक्का लगाया पीछे से. उनकी हसी और धक्के का मतलब मैं समज़ह ना पाने के वजह से मैने कहा कि ” आप हंस्र क्यूँ?” उन्होने कहा कि “तुम बड़ी नादान हो अभी भी.” ये कह कर उन्होने मुझे मेरे गाल पर एक चुंबन दिया, उनकी ये मूव की वजह से मैं चौंक गयी. आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | मैं गबड़ा कर उन्हे देखने लगी, तब वो मेरे होठो की ओर अपने होंठ लाने लगे. मैने कहा,” ये सही नही, आप क्या कर रहे हैं? मैं आपकी बहू हूँ.” जवाब में उन्होने कहा, ” मैं जानता हूँ तुम मेरी बहू हो. पर ये भी सही है कि तुम उसके पहले एक नारी हो. जो प्यार की हकदार है. केवल सफेद साड़ी की वजह से उसे इस प्यार का त्याग करना पड़ रहा है.” ये कह कर उन्होने मेरी साड़ी कंधे से हटाई, और दोनो हाथ मेरे कंधे पर रखे. अपने होंठ उन्होने मेरे होंठो से लगाए और उन्होने मुझे किस किया. मैने ज़रा भी अपोज़ नही किया उन्हे, क्यूँ कि मैं गड़बड़ा तो गयी थी ही पर मुझे इसी चुंबन का शायद इंतेजार था? 2-5मिनिट तक उनके होंठ मुझ से जुड़े थे, बाद में उन्होने मेरी आँखों में देखा. मैं शर्मा गयी और वहाँ से भाग कर सीधे अपने बेडरूम गयी. वो वहाँ आ गये, उन्होने मुझसे पूछा,” क्या हुआ? नाराज़ हो क्या मुझसे?” मुड़ी हिलाते हुए मैने नही कहा और उनका चेहरा खिला. मैने भी शर्मा कर, अपना मूह बेडशीट मे छुपा लिया. वो बिस्तर पर चढ़े और उन्होने मुझे बाहों में लिया. मैं भी सुकून से उनके साथ लिपट गयी उनकी बाहों में.
इस ‘स्पर्श’ को मैं खोना नही चाहती थी मैं, मैं उनके चौड़े सीने पर बाल खोलकर अपना सिर रख कर लेती थी. वो भी मेरी बालों को एक हाथ से सहलाते हुए, उनका दूसरा हाथ मेरे गाल्लों पर से घुमा रहे थे. अचानक से उन्होने मुझसे पूछा, “अपनी आटा गूंदने की प्रॅक्टीस तो अधूरी ही रह गयी ना?” मैं बोली, ” उसे तो बाद में भी मैं आपको सिखा दूँगी”. इस पर वो बोले, “अगर अब प्रॅक्टीस करे तो?” मैने पूछा “तो फिर चलिए किचन में.” वो एक नटखट सी स्माइल देकर बोले, “किचन में क्यों? यहाँ करू तो?” “ठीक है, मैं आटा लाती हूँ फिर.” ये कह कर मैं उठने लगी, तब उन्होने मेरा हाथ थामा और मुझे अपनी ओर खींचते हुए कहा, “आता नही तो नही, मैं इन्ही से काम चला लूँगा” कह कर मेरे बूब्स उन्होने अपने हाथ में लेकर उन्हे दबाने लगे.
उनकी इस ‘प्रॅक्टीस’से मैं काफ़ी खुश हुई और मैने उन्हे पूरा सहयोग देने की ठान ली. दबाते दबाते उन्होने अपना मूह मेरे राइट बूब को लगाया और उसे चूसने लगे. एक करेंट सा मेरे शरीर में दौड़ने लगा, ठीक वैसा ही जो मैं नहाते समय महसूस करती थी. कुछ ही मिनितों में उन्होने मेरे ब्लाउस के बटन खोल दिए और ब्रा के उपर से चूस्ते रहे. राइट वाला चूसने के बाद उन्होने लेफ्ट वाले पर अपनी नज़र जमाई और उसे मसल्ने लगे. आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | तब ना जाने क्यों, मैने उन्हे रोका और उन्हे धकेलते हुए कहा, “ये ग़लत है, मैं अपने आपको धोखा दे रही हूँ, सासू मा का विश्वास तोड़ रही हूँ. ये रिश्ता ग़लत है, पाप है. दुनिया इसे नही स्वीकरेगी.” ससुर जी कहने लगे,” क्या ग़लत है? दुनिया के बारे में क्यूँ सोचो? सासू मा क्या तुम्हे घर से निकाल देगी? अरे वो तो बिस्तर से उठकर बैठ भी नही पाती तो उसे क्या समझेगा अपने बीच क्या चल रहा है?” मैने कहा, ” यही तो ग़लत है, कि हम खास करके मैं उनको अंधेरे में रख कर, उन्ही के पति और मेरे ससुर से रिश्ता रख रही हूँ. अपनी वासनाओं को, अपनी प्यास को बुझा रही हूँ.” “इस में कुछ ग़लत नही है. तुम्हारे हाथ से कुछ ग़लत नही हो रहा. तुम तो केवल अपने नारी होने का एहसास खुद को दिला रही हो, और ये तुम्हारी मजबूरी नही ज़रूरत है.” “शायद आप सही होंगे पर मेरी सिद्धांतों में ये बाते नही बैठ रही हैं. मुझे ये सब कुछ मंजूर नही. मुझे ये सब ग़लत लग रहा है. प्लीज़ मुझे समझने की कोशिश कीजिए.”ऐसा मैने उनसे कहा. आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | इसपर वे कुछ नही बोले, थोड़ी देर तक वो खामोश रहे फिर उन्होने कहा,” जैसे तुम्हारी मर्ज़ी. मैं तुम्हारे पर ज़बरदस्ती नही करूँगा, क्योंकि मैं तुम्हे सही मे चाहने लगा हूँ, तुम्हारी कदर करता हूँ. पर जब कभी तुम्हे लगता है कि तुम ग़लत नही हो. और खुद होकर तुम्हारी रज़ामंदी हो, तो मैं तुम्हे ठुकरऊंगा नही. तुम्हे मेरे बेटे की तरह धोका नही दूँगा. आगे तुम्हारी मर्ज़ी, पर सोच-विचार करना और अंतिम निर्णय लेना.” ये कहकर उन्होने मेरा बेडरूम छोड़ा.
उनके जाने के बाद, मैं बहुत देर तक फूट फूट कर रोई. रो-रोकर मेरी आँखे लाल हो गयी. नींद कब लगी इस दौरान पता नही चला. रात का खाना भी मेरे गले से उतरा नही. ससुर जी भी उस दिन बिगैर खाए ही सोने गये. मुझे रातभर नींद नही आए, बार बार दुपहर मे हुई सारे द्रुश्य नज़रोंके सामने आते और मुझे रुलाते थे. ससुर जी भी रात को ढंगसे सो नही पाए, उनके मन मे भी इन्ही बातो चक्कर घूम रहा था. सुबहके 4-4:30 के पास मुझे नींद लगी, ससुर जी कब सोए की नही भी सोए ये पता नही. उस दिन 9 बजे मेरी आँख खुली, देर हुई इसलिए मैं जल्दी मैं ही उठकर ब्रश कर लिया और सासू मा के ब्रेकफास्ट का इन्तेजाम में लग गयी. उनका नाश्ता लेकर मैं उनके रूममें गयी, तब देखा कि ससुर जी अभीतक सोए थे. अपनी पत्नी के अलावा कोई और रूममें आया है ये महसूस कर उनकी आँख खुली, पर उन्होने मेरी ओर देखा नही.उठकर वो ब्रश करने के बहाने से रूमके बाहर गये. माजी का नाश्ता हुआ, और मैं उनका ब्रेकफास्ट और चाय लाई. उन्होने सिर्फ़ चाय पीली और पेपर पढ़ने लगे. हमेशा की तरह मैं बाथरूम नहाने के लिए जाने लगी, पर आज उनकी नज़र मुझे देखने की जगह मुझे अवाय्ड करने की कोशिश मे जुड़ी थी. एक बार भी उन्होने मुझे देखा नही, किचन में मेरे पीछे आए नही, मुझे छूने की कोशिश की नही. मैंभी उनसे नज़रें चुराने लगी, उनकी हरकतों को इग्नोर करने लगी. आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | अपनी ओर्से उनका खाना-पीना सही वक़्तपर हो रहा है नही, ससुमाको कोई तकलीफ़ नही हो रही है, यही खबरदारी मैं ले रही थी. ऐसे करते करते 2-3दिन निकलगए पर ना जाने क्यों मुझे ये सब कुछ ठीक नही लग रहा था, मुझे लग रहा था कि मैने उन्हे दुखाया है, उन्हे ठेस पहुचाई है, उनकी भावनाओं का अनादर किया. इसी कशमकश में मैं पूरी डूब गयी. मन में बार बार उस दोपहरकी स्मृतियाँ आने लगी, उनका वो बालोंको सहलाना, चेरेको सराहना, बूब्स को छूना और उनका मेरे राइट बूब को चूसना, सभी मैं महसूस करने लगी. तब मैने एक ‘अंतिम निर्णय’ लेनेका सोचा. थोड़ी देर तक मैने अपनी आँखें बंद करली, और फिर नाज़ाने क्यों मैं वाहँसे उठी और ससुर जीके सामने हॉल में जा पहुची, मैने उनसे कह, “मैने अंतिम निर्णय लिया है.” बिना कुछ कहते हुए उन्होने मेरी राई जानने की दरख़्वास्त जताई अपने आँखोंसे.
मैं बोली, “आप सही थे और मैं ग़लत, मुझे मेरी ग़लतिओंको सुधारने का मौका मिलेगा क्या?” मेरा ये जवाब सुनकर, वे सोफपर्से उठ गये और उन्होने मुझे अपनी बाहोंमें भर लिया, मैंभी उनकी बाहों में सिमटकर रोने लगी. मेरे आसू पोछते पोछते वे बोले, “ग़लती नही, नासमझ दारी थी वो तुम्हारी पर अब तुम्हारी अकल ठिकाने आई है. तुम इस ग़ल्तीकी सही मे कुसूरवार हो. तुम्हे सज़ा मिलनी चाहिए.” मैं बोली, “सज़ा काटने के लिए मैं तय्यार हूँ पर सज़ा आप ही से लूँगी?” ये बोलकर उन्होने मुझे ठीक उस दिन की तारह एक बढ़ियासा चुंबन दिया और साथ साथ मेरे दोनो बूबसको मसल्ने लगे. मैंभी उत्तेजित होकर सिसकारियाँ लेने लगी, ठीक उसी तरह जैसे मैं नहाते समय लेती थी. आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | हमारी आवाज़ें तेज़ हो रही हैं ये जानते हुए, मैने उन्हे बेडरूम मे चलने के लिए कहाँ. “आपका हुकुम सर आँखो पर” की तरह वो मेरे पीछ पीछ बेडरूम की ओर चलने लगे. बीच बीच मे वे मेरी गांड को धक्का मारते अपने डंडे.
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