लेखिका: तसलीमा
बहुत ही हिम्मत करके इस कहानी के ज़रिये मैं अपनी ज़िंदगी की एक ऐसी हक़ीकत बयान कर रही हूँ जिसका रुसवाई के डर से मैं किसी से भी रुबरू हो कर ज़िक्र नहीं कर सकती। दरअसल मैं पिछले करीब आठ सालों से बाकयदा अपने पालतू कुत्ते से चुदवाती आ रही हूँ। मुझे पूरा एहसास है कि मेरी हरकतें इस दुनिया की नज़रों में बेहद नाजायज़ और बदकार हैं लेकिन मैं अपने कुत्ते से चुदवाये बगैर नहीं रह सकती। मैं उससे बेहद मोहब्बत करती हूँ और उससे चुदवाने की निहायत आदी हो चुकी हूँ। अपनी दास्तान तफसील से बयान करने से पहले मैं अपने बारे में बता दूँ। मेरा नाम तसलीमा है और मैं सैंतीस साल की मॉडर्न ख्यालों वाली तालीम-याफता तलाकशुदा औरत हूँ। मैंने बंगलौर के नामी-गिरामी कॉलेज से एम-बी-ए किया हुआ है। वैसे तो मैं नासिक की रहने वाली हूँ लेकिन तलाक के बाद पिछले ग्यारह साल से मैं मुम्बई में अकेली रहती हूँ और एक प्राइवेट बैंक में जनरल मैनेजर हूँ। अच्छी-खासी तनख्वाह है जिसकी वजह से मेरा लाइफ-स्टाइल भी काफी हाई-क्लास है। वैसे तो मैं पिछले आठ साल से अपने एलसेशन कुत्ते, ‘जैकी’ से चुदवा रही हूँ लेकिन कुत्तों से चुदाई से मेरा तार्रुफ बाईस साल की उम्र में ही हो गया था। तब मैं नासिक में ही एम-कॉम कर रही थी और फाइनल ईयर शुरू होने के पहले दो महीने ट्रेनिंग के लिये मुम्बई आयी थी। मेरे अब्बू के किसी दोस्त की एक दूर की रिश्तेदार तब मुम्बई में जुहू इलाके में अकेली रहती थीं और मैं उन ही के साथ उनके शानदार फ्लैट में पेईंग-गेस्ट बन कर रहने लगी। उनका नाम रहिना था और वो करीब चालीस साल की बहुत ही खूबसूरत और खुशदिल औरत थीं। उनके शौहर किसी दूसरे मुल्क में नौकरी करते थे। शायद दुबई या कुवैत में पर मुझे ठीक से याद नहीं। मैं उन्हें ‘रहिना आँटी’ कह कर बुलाती थी। उनके पास एक बड़ा सा काले रंग का डोबरमैन कुत्ता भी था जिसे वो ‘जानू’ कह कर बुलाती थीं। ट्रेनिंग के लिये मुझे नारीमन पॉइन्ट के करीब जाना पड़ता था इसलिये मैं सुबह ही निकल जाती थी और शाम को लौटती थी। शाम को मैं खाना बनाने में रहिना आँटी की मदद करती और उनके कुत्ते जानू के साथ खेलती और टीवी देखती थी। उनके शानदार फ्लैट में तीन बेडरूम थे इसलिये मैं और रहिना आँटी अलग-अलग कमरे में सोती थीं। एक-दो हफ्तों में मैं रहिना आँटी से काफी वाकिफ हो गयी। रहिना आँटी काफी खुले और आज़ाद ख्यालों वाली थीं। हर रोज़ रात को खाने से पहले टीवी देखते हुए शराब के एक-दो पैग पीती थीं। मुझसे भी बॉय-फ्रेंड्स वगैरह के बारे में पूछती और अपने कॉलेज के दिनों में इश्कबाज़ी के किस्से और शादी से पहले गैर-मर्दों से अपनी चुदाई के किस्से भी मुझे सुनाती।
एक दिन शाम को मैं घर आयी तो रहिना आँटी ने मुझे बताया कि उन्हें एक पार्टी में जाना है और उन्हें लौटने में रात को काफी देर हो जायेगी। उन्होंने मुझे हिदायत दी कि मैं दरवाजा ठीक से अंदर से लॉक कर लूँ और खाना खा कर सो जाऊँ और उनके लौटने का इंतज़ार ना करूँ। उनके पास बाहर से दरवाजा खोलने के लिये दूसरी चाबी थी। मैं खाना खा कर टीवी देखने लगी और टीवी देखते-देखते वहीं सोफे पर ही सो गयी।
करीब आधी रात के वक्त रहिना आँटी वापस लौटीं तो मेरी नींद खुली। मैंने देखा कि रहिना आँटी काफी नशे में थीं। इससे पहले मैंने उन्हें कभी इतने नशे में नहीं देखा था। उन्होंने ऊँची हील के सैन्डल पहने हुए थे और नशे में उनके कदम ज़रा से लड़खड़ा भी रहे थे। “काफी मज़ा आया पार्टी में… आज थोड़ी ज्यादा ही पी ली”, रहिना आँटी मुस्कुराते हुए बोलीं। “तू फिक्र ना कर और अंदर जा कर सो जा…. सुबह जाना भी है तुझे…. मैं थोड़ी देर टीवी देखुँगी… मेरी सहेली ने एक इंगलिश मूवी की कैसेट दी है!” (उस ज़माने में सी-डी या डी-वी-डी प्लेयर नहीं थे)
उन्हें ड्राइंग रूम में छोड़ कर मैं अपने बेडरूम में जा कर सो गयी। सोते हुए मुझे करीब एक घंटा हुआ होगा जब सिसकरियों की आवाज़ से मेरी नींद खुल गयी। हालाँकि मुझे चुदाई का कोई तजुर्बा नहीं था लेकिन मैं बाईस साल की थी और सैक्सी किताबों और ब्लू-फिल्मों की बदौलत उन सिसकरियों का मतलब बखूबी समझती थी। लेकिन मुझे ताज्जुब इस बात का था कि रहिना आँटी के साथ आखिर था कौन। मैं बिस्तर से उठी और दरवाजे के पास जाकर बिना आवाज़ किये धीरे से थोड़ा दरवाजा खोला। जब मैंने ड्राइंग रूम में झाँक कर देखा तो मुझे अपनी नज़रों पर यकीन नहीं हुआ।
रहिना आँटी ने जो सलवार-कमीज़ पहले पहन रखी थी वो अब सोफे पर एक तरफ पड़ी थी और उनके जिस्म पर इस वक्त सिर्फ एक छोटी सी ब्रा और उनके पैरों में वही ऊँची पेंसिल हील वाले सैन्डल मौजूद थे। सबसे हैरत की बात ये थी कि रहिना आँटी फर्श पर अपने हाथ और घुटनों के बल झुकी हुई थीं और उनका कुत्ता जानू पीछे से उनकी कमर के दोनों तरफ अपनी अगली टाँगें जकड़े हुए उनके चूतड़ों पर चढ़ा हुआ था और आहिस्ता-आहिस्ता झटके मार रहा था। रहिना आँटी की पीठ पर पुरी तरह से झुका हुआ वो कुत्ता सामने देख रहा था और उसके कुल्हे एक लय में रहिना आँटी के चूतड़ों पर आगे-पीछे ठुमक रहे थे। रहिना आँटी अपनी आँखें मूंदे सिसक रही थीं। करीब दो मिनट तक मैं हैरत-अंगेज़ आँखें फाड़े देखती रही और उसके बाद मेरे होशो हवास बहाल हुए। साफ ज़ाहिर था कि उस डोबरमैन कुत्ते के लन्ड से अपनी चूत चुदवाते हुए रहिना आँटी दुनिया जहान से बिल्कुल बेखबर थीं।
फिर अचानक जानू ज़ोर से झटका मारते हुए रहिना आँटी की कमर पर और आगे झुक गया और उसके कुल्हे हैरत-अंगेज़ रफ्तार से आगे-पीछे चोदने लगे। जानू के पिछले पैर ज़मीन पर फिसलने लगे थे लेकिन उसने चोदने की रफ्तार ज़रा भी कम नहीं की। “आऊ…! आआऊ…! ऊऊऊहहह…! ऊँआआऊ!”रहिना आँटी ज़ोर से कराहने लगीं और अपना एक हाथ नीचे से अपनी टाँगों के करीब ले गयीं। “ओहह नहींऽऽ! आआऊऊऽऽऽ! ऊँऽऽ…! मर गयीऽऽऽ!”
कुत्ता जो भी कर रहा था उसकी हरकत से रहिना आँटी को तकलीफ हो रही थी। उनकी मुठ्ठियाँ फर्श के मुकाबिल जकड़ कर बंद और खुल रही थीं। उनका खुला हुआ मुँह दर्द से बिगड़ा हुआ था। “ऊँहहऽऽ आआईईऽऽऽ! मादरचोद…. जानू! आज फिर तूने अपनी ज़ालिम गाँठ अंदर ठूँस दी!” कराहते हुए रहिना आँटी फर्श पर ज़रा सा आगे की ओर खिसकीं तो कुत्ता भी उनके साथ चिपका हुआ खिंच गया लेकिन उनसे अलग नहीं हुआ। कुत्ते ने उसी तेज़ रफ्तार से चोदना ज़ारी रखा। मुझे साफ ज़ाहिर था कि रहिना आँटी तकलीफ में थीं। उनके खिसकने से अब वो दोनों साइड से मेरी नज़रों के सामने थे और मैं उनकी तकलीफदेह हालत साफ-साफ देख पा रही थी। कुत्ते के लन्ड की जड़ में गेंड जैसी फूली हुई गाँठ रहिना आँटी की चूत में पैंठ कर फंस गयी थी और दोनों एक दूसरे से वैसे ही जुड़ गये थे जैसे कुत्ता और कुत्तिया अक्सर आपस में चिपक कर जुड़ जाते हैं।
“ऊँऊँऽऽ जानू…!” रहिना आँटी कराही पर फिर उन्होंने जूझना बंद कर दिया और अपनी गाँड हवा में कुत्ते के मुकाबिल और ऊपर ठेल कर अपना सिर फर्श पर टिका दिया। जानू अभी भी ज़ोर-ज़ोर से आगे पीछे चोदना ज़ारी रखे हुए था। रहिना आँटी अब पुर-सकून हो गयी थीं तो कुत्ता बहुत तेज़ रफ्तार से छोटे-छोटे झटके मार कर चोद रहा था। जानू के कुल्हे लरजते और काँपते नामुदार हो रहे थे। मुझे फिर से रहिना आँटी की सिसकियाँ और कराहें सुनाई दीं लेकिन अब ऐसा लग रहा था कि एक बार फिर हालात उनके काबू में थे और अब उन्हें मज़ा आ रहा था।
मुझे भी एहसास नहीं हुआ कि मैंने कब अपनी नाइटी उठा कर पैंटी में हाथ डाल कर अपनी चूत सहलाना शुरू कर दिया था। मैंने देखा कि रहिना आँटी के ऊपर झुके हुए जानू ने अचानक अपने कुल्हे चलाना बंद कर दिये और उसी तरह बे-हरकत खड़ा हो गया। रहिना आँटी से कस कर चिपका हुआ कुत्ता ऐंठ कर काँप रहा था। उसकी आँखें भी शीशे की तरह जम गयी थीं। फिर उसने आहिस्ता-आहिस्ता अपने कुल्हे चला कर चोदना शुरू किया लेकिन एक-दो मिनट में ही फिर से बिल्कुल रुक गया। उस वक्त मुझे एहसास हुआ कि जानू ने रहिना आँटी की चूत में अपना रस छोड़ दिया है।
जानू तो निबट गया था लेकिन जब उसने रहिना आँटी से अलग होने की कोशिश की तो ज़ाहिर हो गया कि वो और रहिना आँटी अभी भी एक दूसरे से चिपक कर जुड़े हुए थे। “नहीं… जानू…! प्लीज़! रुक! जानु रुक!” रहिना आँटी ने उसे हुक्म दिया। जानू भी फरमाबरदार था और रहिना आँटी की कमर से उतरने की और कोशिश नहीं की और मुँह खोलकर अपनी जीभ बाहर निकाले हाँफता हुआ उनकी कमर पर चढ़ा रहा। रहिना आँटी भी हाँफ रही थीं और गहरी साँसें ले रही थीं। “मेरा अच्छा बच्चा जानू!” वो प्यार से बोलीं, “नाइस बॉय! बस ऐसे ही रुके रहो!” जानू रहिना आँटी की पीठ पर निढाल सा हो गया और उनकी गर्दन और बालों को चाटने लगा। दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
रहिना आँटी बहुत ही एहतियात से आहिस्ता से खिसकीं ताकि उनकी चूत में फंसी कुत्ते के लन्ड की गाँठ पर खिचाव ना पड़े। ऐसे ही कुलबुलाते हुए रहिना आँटी थोड़ा और इधर उधर खिसकीं और अपना दाहिना हाथ अपनी टाँगों के बीच में ले जा कर अपनी चूत और कुत्ते के लन्ड को टटोला। फिर रहिना आँटी अपनी चूत सहलाने लगीं। बहुत ही चोदू नज़ारा था। दो-तीन मिनट में ही रहिना आँटी पूरे जोश में अपनी चूत अपने हाथ और उंगलियों से ज़ोर-ज़ोर से सहला रही थीं जबकि उनका आशिक-कुत्ता जानू उनकी कमर पर सवार था और उसका लन्ड उनकी चूत में फंसा हुआ था। इधर मैं भी अपनी चूत ज़ोर-ज़ोर से रगड़ रही थी।
मुझे ये देख कर हैरत हुई कि कुत्ते ने फिर आहिस्ता-आहिस्ता अपने कुल्हे चलाने शुरू कर दिये। रहिना आँटी के हिलने डुलने और लन्ड से भरी चूत सहलाने से शायद जानू का लन्ड फिर से उकसा गया था। “नहीं जानू! फिर से नहीं! रुक..!” रहिना आँटी कराहते हुए चींखी लेकिन वो खुद उस वक्त बहुत मस्ती में थीं और झड़ने के करीब थीं। जानू अब ज़ोर-ज़ोर से अपने कुल्हे आगे-पीछे चलाने लगा था और रहिना आँटी भी अपने चूतड़ हिलाती हुई पूरे जोश में अपनी चूत रगड़ने लगीं। “आआआईईईऽऽ! आआऽऽऽ ऊँआआआईईईऽऽऽ!” रहिना आँटी की चूत में झड़ने की आगाज़ी लहरें फूटने लगीं तो वो मस्ती में कराहने लगीं। कुत्ते का लन्ड उनकी चूत में वैसे ही कायम था और दोनों ने अपनी-अपनी मस्ती में डूबे हुए अपनी अलग-अलग ताल पकड़ ली।
“ऊँहह आँहह ऊँऽऽ आँईईऽऽ!” रहिना आँटी ज़ोर-ज़ोर से कराह रही थीं। उनका चमकीला जिस्म ऐंठ गया था। एक हाथ अपनी चूत सहलाने में मसरूफ होने की वजह से वो एक ही हाथ के सहारे झुकी हुई थीं और उनके तने हुए मसल लरज़ते हुए अलग ही नज़र आ रहे थे। वो रुक-रुक कर लंबी साँसें लेती तो फुफकारने जैसी आवाज़ निकलती। जानू बेहद जोश में रहिना आँटी की चूत में लन्ड पेल रहा था और रहिना आँटी भी वैसे ही डटी रही। रहिना आँटी की चूत में झड़ने की आखिरी लहरें दौड़ने लगीं तो उनकी ताल अहिस्ता हो गयी और उन्होंने अपना हाथ चूत से हटा लिया। एक बार फिर अपने दोनों हाथों और घुटनों के सहारे झुकी हुई सइदा आँटी अपनी कमर पर कुत्ते को सम्भालने लगीं। दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
कुत्ता भी वैसे ही झड़ने लगा जैसे कि पिछली बार झड़ा था। बस इतना फर्क था कि इस बार झड़ते हुए वो दो -तीन बार रिरियाया। “ओहह जानू! आँहह जानू!” सइदा आँटी सिसकीं, “ऊँह! आँह! उँहह.. ऊँह!” रहिना आँटी की सिसकियों और कुत्ते की रिरियाहट से साफ ज़ाहिर था कि कुत्ते के लन्ड से गरम शीरा रहिना आँटी की चूत में बह रहा था। रहिना आँटी उस वक्त जानू की कुत्तिया बनी हुई थी। कईं सारे हल्के-हल्के झटके मारते हुए जानू का झड़ना बंद हुआ और फिर से वो रहिना आँटी की कमर पर निढाल सा हो गया।
“मादरचोद जानू! तूने फिर से चोद दिया! मेरी चूत दर्द कर रही है!” रहिना आँटी सिसकते हुए बोली, “बस अब ऐसे ही रुके रहो!” जानू को तो जैसे पहले से ही सइदा आँटी के इस हुक्म की उम्मीद थी। वो पहले से ही बिना हिले-डुले उनकी पीठ पर झुका हुआ था। दोनों थके हुए और ज़ाहिरन मुतमाइन थे। सइदा आँटी ने अपना सिर फर्श पर टिका दिया लेकिन अपनी गाँड कुत्ते के मुकाबिल उठी रहने दी जिसका लन्ड इस वक्त अपनी कुत्तिया की चूत में कस कर बंधा हुआ था।
मैं खुद तीन-चार बार झड़ चुकी थी और अपनी चूत रगड़ते हुए एक बार फिर झड़ने के बहुत करीब थी। तभी जानू ने मेरी तरफ देखा और उसके कान खड़े हो गये। “या अल्लाह!” मैं मन ही मन में बोली। खुशकिस्मती से रहिना आँटी थोड़ा कसमसायीं और कुत्ते का ध्यान पल भर के लिये उनकी तरफ फ़िर गया। मैंने जल्दी से दरवाज़ा बंद किया और पलट कर बिस्तर में घुस गयी। मेरा दिमाग घूम रहा था और हज़ारों ख्याल उमड़ रहे थे। साफ ज़ाहिर था कि अपने कुत्ते से सइदा आँटी की ये चुदाई पहली दफा नहीं थी बल्कि वो अक्सर उससे चुदवाती थीं।
हालाँकि मुझे चुदाई का तजुर्बा नहीं था लेकिन मैं चुदाई से मुत्तलिक सब जानती थी। सत्रह-अठारह साल की उम्र से ही मैं भी हम-उम्र लड़कियों की तरह सैक्स में दिल्चस्पी लेने लगी थी। स्कूल के दिनों में ‘मिल्स एंड बून’ की रोमाँटिक किताबें बहुत मज़े लेकर पढ़ती थी और फिर बी-कॉम के दिनों से धीरे-धीरे गंदी सैक्सी किताबें पढ़ने का शौक लग गया था। दिन में कईं बार अपनी उंगलियाँ या केले, मोमबत्ती और वैसी कोई भी चीज़ अपनी चूत में घुसेड़-घुसेड कर चोदते हुए मज़े लेती थी। बी-कॉम के फाइनल इयर में ही थी जब मैंने पहली बार कुछ सहेलियों की सोहबत में ब्लू-फिल्म देखी थी और अब तक पाँच छः दफा ब्लू-फिल्में देख चुकी थी। लेकिन आज तो मैंने चुदाई का एक ऐसा हैरतअंगेज़ और चुदास नज़ारा अपनी आँखों से देखा था जो मैंने पहले कभी किसी ब्लू-फिल्म या सैक्सी किताब में भी नहीं पढ़ा था और ना ही ऐसा कभी तसव्वुर किया था।
फिर एक हफ्ते बाद मैं नासिक वापस आ गयी और धीरे-धीरे वक्त गुज़र गया। एम-कॉम पूरा करने के बाद मुझे एम-बी-ए करने के लिये बैंगलौर के बहुत ही जाने-माने कॉलेज में दाखिला मिल गया। बैंगलौर में हॉस्टल में रहती थी और इस दौरान मैंने कभी-कभार शराब पीना भी शुरू कर दिया। मैं बेहद खूबसूरत और हसीन थी और स्कूल के ज़माने से ही कितने ही लड़के मुझे लाइन मारते थे लेकिन मैं कभी भी किसी के इश्क़ में नहीं पड़ी ना ही शादी से पहले कभी किसी से चुदवाया।
एम-बी-ए पूरा होते ही मेरा निकाह हो गया। मेरे शौहर भी काफी तालीम-याफता थे और उनकी बेहद अच्छी नौकरी थी। शादी के बाद शुरू-शुरू में उनके साथ बेहद खुश थी पर धीरे-धीरे मुझे पता चला कि मेरे शौहर को सट्टे-बाजी का शौक था। अक्सर क्रिकेट मैचों के वक्त बड़ी-बड़ी शर्तें लगाते थे। मैंने कईं दफा उन्हें समझाने रोकने की कोशीश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। आखिर में एक दिन बहुत बड़ी शर्त हार कर दिवालिया भी हो गये तो मुझे दहेज के लिये परेशान करने लगे। आखिर में तंग आ कर शादी के दो साल बाद ही मैंने तलाक ले लिया और मुम्बई में एक बड़े प्राइवेट बैंक में नौकरी कर ली।
मुम्बई में मैं अकेली किराये के फ्लैट में रहने लगी। इसलिये हिफाज़त और अकेलापन दूर करने के लिये एक एलसेशन कुत्ता ले लिया। आहिस्ता-आहिस्ता ज़िंदगी बाकायदा चलने लगी। ज्यादा वक्त तो मैं काम में ही मसरूफ रहती और अक्सर मुझे दूसरे शहरों और कभी-कभार गैर-मुल्कों जैसे अमेरिका,यूरोप भी दौरों पर जाना पड़ता। ज़िंदगी वैसे तो पुरसुकून थी लेकिन तन्हाई की वजह से मैं कुछ ज्यादा ही चुदासी रहने लगी थी। हालाँकि ऐसे हज़ारों मौके आये कि जब अगर मैं चाहती तो गैर-मर्दों से चुदवा सकती थी लेकिन मैं कभी हिम्मत नहीं जुटा पायी। पाँच-छः साल पहले सइदा आँटी के किस्से के बावजूद अपने कुत्ते जैकी से चुदवाने का ख्याल भी कभी मेरे ज़हन में नहीं आया।
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