मेरी जवानी की गरम कहानी

प्रेषिका : रूपा

मेरा नाम रूपा है. उमर २६ साल की लेकीन आज मैं एक विधवा हूँ.आज में मेरी जिंदगी का एक सच आपको बयां कर रही हूँ. मेरी शादी हुए ३ साल बीत गए और मेरे पती मेरी शादी के ६ महीने बाद ही गुजर गए. मेरे पापा और मम्मी का देहांत ७ बर्ष पहले एक कार एक्सीडेंट मैं हो गया था. २ साल पहले मेरे दो भाई, सुनील और सुरेश ने बडे धूम-धाम सी मेरी शादी की. दोनो भाई मुझसे ७ और ५ साल बडे है. दोनो की शादियाँ हो चुकी है. शादी तो बडे धूम-धाम सी हुयी लेकीन सुहाग रात सी ही मैं अपने आप को तघी हुयी महसूस करने लगी. मेरा पती रंजन बड़ा ही सेक्सी आदमी था. शुहाग रात की रात वह शराब के नशे मैं झूमता हुआ आया और मेरे साथ कोई बातें ना करके सिर्फ अपनी हवस मिटाने की कोशिश करने लगा. मेरे कपडे उसने खींच कर मुझेसे अलग कर दीये. मेरे नंगे जिस्म को देखकर उसकी आंखें चमक ने लगी. आखीर क्यों नही चमकती. मेरे हुस्न है ही एसे. मेरी उफनती हुयी जवानी को देखकर कई घायल हो चुके है. गोरा-चिट्टा बदन और उस पर ऊपर वाले की मेहरबानी सी एकदम परफेक्ट उतार और चढाव. बड़ी आँखों के अलावा मेरे पतले और नाज़ुक होंठ. तरासे हुए मेरे मुम्मे और पतली कमर. गोल-गोल चुताड और गद्रायी हुयी जन्घें. कपडे पहने होने के बावजूद राह चलते हुए लोग आहें भरते थे फीर यहाँ तो मेरा जिस्म एक दम बेपर्दा मेरे पती की आँखों के सामने था. रंजन ने झट सी अपने कपडे उतारे और झूमता हुआ मुझे अपनी बाँहों मैं लेकर बेदर्दी सी मेरे गाल और मेरे दोनो मुम्मो को मसलने लगा. अपने दांतों सी मुझे काट कर मेरे मुम्मो पर अपने निशान दे डाले. फीर अपने लंड को हाथ मैं लेकर मेरी टांगो को चौडा कीया और मुझ पर टूट पड़ा. उसका लंड दिखने मैं एक मज़बूत लंड धिकायी पड रह था. मुझे लगा की यह मुझे बुरी तरह सी रौंद डालेगा. उसने मेरे दोनो होठों पर अपने होठ रखते हुए एक करारा शोट मेरी चूत पर दे मारा. मैं चीख सी बिल्बिलाई लेकीन मेरे होठ उसके होठो सी चिपके हुए थे. आवाज नही निकली लेकीन आँखों सी दर्द के अंशु बह निकले. फीर वह मुझे चोद्ता गया लेकीन ५ मिनट मैं ही मुझ पर से उतर कर बगल मैं सो गया. उसके लंड सी निकला वीर्य मेरी चूत और मेरी झंघो पर चिपचिपाहट पैदा कर रह था. मेरे जिस्म अभी तक तयार ही नही हुआ था की उसका रुस नीकल गया. मैंने सिसकते हुए सारी रात गुजारी. फीर यह सिस्सला रोज होने लगा. अब मुझे रंजन के बारे मैं सब कुछ पता चल चूका था. वह बचपन से ही ऐयाशी करता आ रह था. उसकी कई औरतों से संबंध थे. इसी वजह से उसके घर वालो ने उसकी शादी कर दी की शादी के बाद सुधर जाएगा. लेकीन उसकी जवानी खतम हो चुकी थी. रोज मेरे बदन मैं आग लगा कर खुद चैन की नींद सोता और मैं रात भर करवटे बदलते हुए सारी रात निकाल देती. आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | कभी-कभी ब्लू फिल्म्स की CD लाकर रुम के CD प्लेयर मैं मुझे फिल्म दिखता. Un फिल्म्स को देखकर मैं तो सुलगती रहती लेकीन रंजन ५-७ मिनट के मजे लेकर उनको रात भर देखता रहता. In फिल्मो की तरह ही कभी- कभी मेरी गांड भी मार देता. मुख से उसके लंड को ३-४ दिन मैं चूसना ही पड़ता. जीस दिन उसका लंड मेरे मुहं मैं जाता उस दिन मेरी चूत को सकूं रहता था. लेकीन धीरे-धीरे उसका कमजोर जिस्म और कमजोर पड़ता गया और शादी के ६ माह बाद इस दुनिया से गुजर गया. मेरे दोनो भाई मुझे अपने साथ ही अपने घर ले आये. हालांकि दोनो अब अलग-अलग रहने लगे थे. दोनो के घर पास-पास ही थे. दो-Teen महीने तो जैसे-तैसे गुजर गए लेकीन अब मेरे अन्दर की वासना की आग मुझे जलाने लगी. हेर रात को भाभियों को भैया के साथ हंसी- मजाक करते देख मेरा मन भी छट-पटाने लगता. मेरी दोनो भाभिया है भी Sexy नातुरे की और मेरे दोनो भाइयो को अपने कंट्रोल मैं रखती थी. लेकीन ना जाने क्या हुआ की दोनो भाभियाँ मुझसे नाराज़ रहने लगी. उन्हें लगता था की मैं उनकी CID करती हूँ. एक दीन मुझे लेकर घर मैं बड़ा हंगामा हुआ. फीर फैसला हुआ की मेरे नाम १० लाख की फिक्सड डिपॉजिट कर मुझे हमारे पुराने घर मैं रहना होगा. मैं बड़ी दुखी हुयी. ससुराल तो छुटा ही था अब मैका भी छुट रह है. फीर मैं अपने भैया लोगो को दुखी नही करना चाहती थी. अपने पुराने मकान मैं आ गयी. यह मकान मेरे मम्मी पापा ने लीया था. १ बेडरूम और १ हॉल था. कॉलेज के पास था. दीन भर तो चहल पहल रहती लेकीन शाम होने के बाद एक्का-दुक्का आदमी ही रोड पर नज़र आता. मैं अकेली उस घर मैं रहने लगी. जब दीन मैं मन नही लगता तो कॉलेज काम्पुस मैं चली जाती. आजकल के नौज़वान छोरे और छोकरियों को देखा करती थी. हालांकि मुझे कॉलेज छोड हुए ५ साल ही बीतें है लेकीन टब मैं और अब मैं काफी फरक आ चूका है. इस कॉलेज के पास ही एक पहाडी है और सुनसान जंगल नुमा जगह है. बड़ा जंगल तो नही है लेकीन सुनसान रहता है. कॉलेज के लड़के-लड़की वहाँ अपने प्यार का इजहार करने चले जाते है. दोपहर मैं घूमने जाती तो ७-८ जोड़े मुझे मील ही जाते. आपस मैं खोये हुए. एक दुसरे की बाँहों मैं छुपे हुए. कई चुम्बन लेते हुए मील जाते. दूर कहीं घनी झाडियों मैं एक दुसरे के बदन को सहलाते हुए भी मिलते थे. मैं इनको देखते हुए आगे बढ़ जाती लेकीन मेरे जिस्म मैं एक सरसराहट शुरू हो जाती. कितनी बार मेरा मन बेकाबू हो जाता लेकीन क्या करती मैं. काफी बार कीसी लड़के को लड़की के मुम्मे को चूसते हुए देखा और कितनी ही बार कीसी लड़की को अपने प्यारे के लंड से खेलते हुए देखा है मैंने. दील मैं हलचल मची हुयी रहती. घर आ कर ठंडे पानी से नहा कर अपने जिस्म को ठंडा करने की कोशिश करती लेकीन सब बेकार था. फीर एक दीन मार्केट से गज़र ले आई और अपनी चूत मैं दाल कर अपनी आग को ठंडा करने की कोशिश की. इस से थोडी राहत मीली. अब यह मेरी रोज की आदत हो गयी. फीर एक दीन मेरे ननिहाल के घर के पास से एक आदमी आया. जीसे देखते ही मैं पहचान गयी. मनोज नाम है उसका. मुझसे ४ साल बड़ा. मेरा ननिहाल यहाँ से ६० किलोमीटर की दुरी पर एक छोटे से गाँव मैं है. ७-८ साल पहले गयी थी. टब मेरे नानाजी जीन्दा थे. अब मौजूद नही है. वही मेरी जान-पहचान मनोज से हुयी थी. मनोज एक ग्रेजुएट था और वह एक छोटी सी दुकान चलाता है. गाँव का अल्हड़ नौज़वन जीसे मानो कीसी की फिक्र नही हो. मनचले किस्म का है लेकीन बदमाश नही. मैंने उसे देखते ही पूछा, “अरे मनोज, यहाँ कैसे?” मनोज मुझे देखते ही कहा, “कैसी हो रूपा. तुम्हारे बारे मैं पता चला तो मीलने आ गया. तुम्हारे ससुराल गया था लेकीन मालूम पड़ा तुम यहाँ रहती हो.” मैं बोली, “हाँ अब तकदीर को जो मंज़ूर वही…” मनोज बोला, “सुन कर बड़ा दुःख हुआ.” मैं बोली, “कोई बात नही. टब बताओ कैसे हो. शादी की या नही?” मनोज, “आरे इतनी जल्दी क्या है? जीसे देखो मेरी शादी के पीछे पड़ा रहता है.” मैं कहा, “तो नाराज़ क्यों होते हो. जब शादी के लायक उमर हो तभी तो सब जाने पूछते है ना.” “कर लेंगे शादी भी और जब करेंगे तो सब को बता कर ही करेंगे,” कहकर मनोज हंसने लगा. फीर हम लोगो मैं नयी-पुरानी बातें होने लगी. बातों से ही पता चला की मनोज हर १५-२० दिनों से शहर आता था अपनी दुकान के लिए खरीद-दरी करने. २-३ दीन रुकता फीर गाँव चला जाता. रात को कीसी होटल या कीसी गेस्थौसे मैं रुकता और दीन भर बाज़ार मैं घूमता purchasing के लिए. तभी मैंने कह दीया, “होटल या गेस्थौसे मैं क्यो रुकते हो. यह घर किस काम आएगा.” मनोज थोडा सकपका कर बोला, “लेकीन तुम तो यहाँ अकेली रहती हो.” मैंने उससे कहा, “अरे तुम कोई ग़ैर थोडे ही हो. अपने वालो को नही बोलू तो क्या कीसी ग़ैर इंसानों को बोलू. तुम एक-आध दीन रहोगे तो मेरा मन भी बहल जाएगा. वैसे भी यह सुनसान घर काटने को दौड़ता है.” मनोज ने हाँ भरी और बोला, “ठीक है. आज तो मैं वापस गाँव जा रह हूँ लेकीन अबकी बार अओंगा तो तुम्हारे इधर ही रुकुंगा.” और यह कहकर मनोज चला गया. मेरी दिनचर्या जैसी चलती थी चलने लगी. दोपहर मैं कॉलेज के लड़के-लड़कियों की रासलीला देखती और रात मैं गज़र से अपनी चूत की भूख मिटाने लगती. फीर २० दीनो बाद मनोज मेरे दवाजे पर खड़ा था. मैं खुश हो कर बोली, “वह, मुझे लगा था तुम केवल बोल कर ही चले गए. अब नही आओगे.” मनोज, “कैसे नही आता. अब पुरे तिन दीन रुकुंगा मैं यह. पहले खाना तो बना कर खिलाओ बड़ी भूख लगी है.” मैं खाना बनने किचन मैं चली गयी और मनोज हॉल मैं आराम करने लगा. हम दोनो ने साथ ही खाना खाया और फीर मनोज बाज़ार चला गया. मैं उससे शाम के आते वक़्त सुब्जी लाने को कहा और गज़र लाने को भी कहा. शाम ७-७.३० बजे मनोज वापस आया. मैंने उसके आते ही बाथरूम मैं पानी रख कर उससे कहा की तुम तयार हो जाओ तब तक मैं खाना बना देती हूँ. खाना खाने के बाद हम लोग बातें करने लगे. आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |  फीर मैं अपने कमरे मैं चली गयी सोने और मनोज हॉल मैं ही सो गया. रात के वक़्त जब बेचैनी होने लगी तो मैं उठकर किचन मैं गयी और अपनी प्यारी गज़र को उठा लायी. आज बैचैनी की वजह थी. एक लड़का आज अपनी जानेमन की जंगल मैं चुदाई कर रह था. मैंने साँसे रोके हुए यह नज़ारा देखा. आधे घटे तक चली चुदाई ने मेरे होश उड़ दीये थे. मैं उस सीन को सोच-सोच कर अभी भी हम्फ रही थी. मेरा जिस्म ऐंठने लगा था. हालांकी शाम मैं मनोज आने के बाद थोडी देर के लिए ही यह नज़ारा भूली थी लेकीन तन्हाई मैं फीर से मेरी नज़रों के सामने वह चुदाई का सीन घूमने लगा. और गज़र को तेज-तेज अपनी चूत के अन्दर बाहर कर अपनी बेचैनी को शांत करने लगी. जब चूत से पानी नीकल गया तब जाकर राहत महसूस की. सुबह नहाने-धोने के बाद खाना बनाया और मनोज जब जाने लगा तब उसे शाम के लिए सब्जी लाने को बोल दी और फिरसे अपनी प्यारी गज़र के लिए भी बोल दी. मनोज के आने का इंतज़ार करने लगी. अब अकेले मैं फीर से वह कल वाला सीन आँखों के सामने घूमने लगा और अपने आप को रोक नही पायी. चल पड़ी कॉलेज के पीछे की पहाडी वाले जंगल की तरफ. आज वैसा नज़ारा तो नही दिखाई पड़ा लेकीन एक झाडी की ओत मैं एक लड़की को दो लड़को के बीच पाया. लड़की दोनो की पन्त की चैन खोले उनके लंड को शाहला रही थी. उफ्फ्फ़… मैं फीर से पागल होने लगी. वह लड़की बारी-बारी से उनके लंड को अपने होठ मैं दबाती और चूसने लगती. जिसका लंड मुहं मैं नही होता उसके लंड को वह अपने हाथ से हिला-हिला कर मजे दे रही थी. एक बार तो मैं उनके सामने जा ही रही थी की यहाँ एक लड़की दो-दो लंड और मुझे एक भी लंड नसीब मैं नही लेकीन जैसे-तैसे अपने आपको रोका. वापस आई तो बड़ी बेचैन थी और सीधे सो गयी. शाम के समय तक बेसुध सोयी पड़ी रही. नींद तभी खुली जब दरवाजे पर जोर-जोर से पिटने की आवाज़ आई. दरवाजा खोला तो सामने मनोज खड़ा था. “क्या बात है? बड़ी देर कर दी दरवाजा खोलने मैं. मैं कितनी देर से दरवाजा खड़-खड़ा रह हूँ,” मनोज ने आते ही पूछा. मैंने अलसाई सी बोली, “हाँ. थोडी आँख लग गयी थी. मालूम ही नही पड़ा.” फीर उसके हाथ से शब्जी का थैला ले लीया और किचन मैं आकर बोली, “तैयार हो जाओ. अभी थोडी देर मैं ही खाना बना देती हूँ.” खाना खाने के बाद हम लोग बात-चीत करते रहे फीर मैं उठकर अपने कमरे मैं सोने चली आई. सोने से पहले किचन से गज़र ले आई थी. गज़र हाथ मैं आते ही दीन वाला सीन नज़रों के सामने घूमने लगा. किचन मैं खडे-खडे जी अपनी निघ्टी के ऊपर से ही गज़र को चूत पर रगड़ने लगी. फीर अचानक याद आया की मनोज भी घर पर ही है. लेकीन चूत की आग ने मुझे अंधी कर दीया और गज़र को रगड़ते हुए ही अपने कमरे की और चल पड़ी. बिस्टर पर लेटने के साथ ही दीन वाला सीन को याद करके निघ्टी को ऊपर कर गज़र को चूत मैं फंसा दीया और करने लगी अन्दर-बाहर. आज बड़ा मज़ा आ रह था.

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