कविता की क्लीन सेव की चूत चुदाई

प्यारे मस्तराम डॉट नेट के प्यारे पाठको मै एक साइबर कैफ़े चलाता हु अगर साइबर कैफे है तो वहाँ पर लड़के और लड़कियों का आना-जाना तो लगा ही रहता था। मैंने वो कैफ़े चार साल तक चलाया। उस समय मेरी उम्र २५ साल की थी। मेरे कैफ़े में बहुत सी लड़कियाँ आती थी और मैं उन्हें देख कर बहुत खुश होता था। कभी वो मुझसे पूछती- प्रवीण बताओ न कि यह फाइल मैं कैसे सेंड करूँ? या ये फोटो मैं कैसे डाउनलोड करूँ ! तो मुझे भी बहुत अच्छा लगता था। मैं उनके साथ केबिन में बैठ जाता और उन्हें बताने लगता और कभी कभी मैं अपनी बाजू उनके स्तन पर लगा देता। कुछ तो मुझे अनदेखा कर देती पर कुछ बोल देती- भैया, क्या कर रहे हो ! तो मैं जल्दी से उन्हें सॉरी बोल देता और वो भी इट्स ओके बोल कर मान जाती ! पर मैं था भी स्मार्ट 5.8 और मेरा पप्पू था छोटा तकरीबन 5 इंच ! तभी मेरे कैफे में एक लड़की जिसका नाम कविता था, उसने आना शुरू कर दिया था। वो बड़ी सेक्सी थी। शुरू में जब वो आती तो नेट पर थोड़ी देर ही बैठती थी और चली जाती थी। वो मुझे अच्छी लगती थी। फिर उनसे आना बंद कर दिया। तकरीबन एक महीने बाद वो आई तो मैंने उससे पूछ लिया- कविता, बहुत दिनों के बाद आई हो ! तो उसने कहा- क्यूँ ? मेरी याद आ रही थी क्या ? तो मैं भी मुस्कुरा कर बोला- हाँ, आ तो रही थी ! तो वो मुझे बताने लगी- मैं घर गई थी ! मेरा घर रेवाल्सर में है। फिर वो रोज़ मेरे कैफे में आ जाती और 3-4 घंटे तक बैठी रहती। एक दिन उसने मुझे बुलाया और कहा- मुझे आपकी मदद चाहिए ! मैं फाइल कैसे डाउनलोड करूँ? मैं उसे बताने लगा और साथ में मैंने अपनी बाजू उसके स्तन पर रख दी और की-बोर्ड पर टाइप करते हुए मैं उसके वक्ष को छूने लगा, मेरा छोटा सा पप्पू 5 इंच का खड़ा हो गया। उसे भी अच्छा लग रहा था और उसने भी मुझे कुछ नहीं कहा। तभी बाहर 1-2 ग्राहक आ गए तो मुझे उठ कर जाना पड़ा और मैं उसे छोड़ कर चला गया। आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | कविता अब रोज़ मेरे पास आ जाती और किसी न किसी बहाने से मुझे अपने पास बुला लेती। पर मुझे भी अच्छा लगता था और फिर वही मैं टाइप करते करते उसको छू लेता था और मेरा पप्पू सलामी देने लग जाता। मैं दिन में 3 से 4 बजे तक लंच करने जाता था। वो एक दिन आ गई और कहने लगी- मुझे अभी नेट पर जरूरी काम है ! मैंने कहा- मैं तो अभी लंच करने जा रहा हूँ ! तो कहती- प्लीज़ ! थोड़ी देर ! फिर मैंने कहा- कविता, कोई और ग्राहक आ गया तो मैं उसे भी मना नहीं कर पाऊँगा ! तो मैंने उसे कहा- मैं शॉप बन्द कर देता हूँ और तुम अंदर बैठ जाओ ! तो उसने कहा- ठीक है, पर मुझे आपकी मदद भी तो लेनी है ! मैंने कहा- ठीक है ! और मैं शॉप बंद करके उसके साथ बैठ गया। खुश तो मैं आज बहुत था कि शायद कुछ बात बन जाये और मैं उसके साथ थोड़ा चिपक कर बैठ गया। दोस्तो, आप को पता ही है कि मनाली में बर्फ गिरती है तो सर्दी भी बहुत थी। मैंने कविता को कविता कह कर बुलाया तो वो कहने लगी- मुझे बहुत अच्छा लगा आपने मुझे कविता कहा ! और हम बातचीत करने लग गए। तभी मैंने कहा- कविता आप को बुखार देखना आता है? तो कहने लगी- हाँ ! मैंने अपनी बाजू उसके हाथ में दे दी और वो देखने लग गई, बहुत देर तक उसने मेरी बाजू को पकड़े रखा। जब उसने मेरी बाजू पकड़ी हुई थी तो मैंने आँखें बंद कर ली और मेरा छोटा पप्पू तन गया। मन में मैं सोच रहा था कि यह ऐसी ही मुझे पकड़ कर रखे ! अच्छा लग रहा था ! और तभी जब मेरी आँखें बंद थी तो कविता ने अपने पतले पतले होंठ मेरे होटों पर रख दिए। मैंने कहा- कविता, यह क्या कर रही हो ? कहती- चुप रहो ! जैसे तुम्हें पता न हो ! मुझे अच्छा लग रहा था, मैं भी उसके होटों को बहुत देर तक चूमता रहा और मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी। अब तो मानो ऐसा लग रहा था कि मैं स्वर्ग में हूँ ! आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | तभी मैंने धीरे धीरे अपने हाथ उसके स्तन पर रख दिए। कविता ने नीली ज़ीन्स और गुलाबी स्वेटर पहनी थी। मैं उसके स्तनों को छू कर रहा था स्वेटर के ऊपर से ! तभी मैंने अपना हाथ उसके स्वेटर के अंदर से डाला और मैं अपना हाथ उसके पेट पर फ़ेरने लगा और धीरे धीरे उसकी ब्रा तक पहुँच गया। वो भी गर्म हो रही थी, उसे भी अच्छा लग रहा था। मैंने कहा- कविता, मेरी जान ! तो कविता बोलती- बोलो मेरी जान ! मेरा मन करता है कि मैं आप को ऐसी ही चूमता रहूँ ! कविता कहती- तो करो न ! मैंने कब आप को मना किया ! और कविता ने अब मेरा पप्पू मेरी जींस के ऊपर से पकड़ लिया। उस समय तो मैं पागल हुए जा रहा था। तभी मैंने कविता की स्वेटर उतार दी। वो सिर्फ़ ब्रा के ऊपर स्वेटर पहनी हुई थी। मैंने पहली बार किसी लड़की को ब्रा में देखा था। मैं उसके स्तनों पर चुम्बन करने लग पड़ा। उसके मुँह से आः आआआआ ह़ा आःआआ की आवाज़ आने लगी। तभी मैं उसकी ब्रा खोलने की कोशिश करने लगा पर मुझसे उसके हुक नहीं खुल रहे थे। 2-3 मिनट तक लगा रहा तो उसने कहा- ब्रा खोलनी नहीं आती है क्या ? तो मैंने कहा- पहली बार खोल रहा हूँ ! वो मुस्कुरा दी और खुद ही खोल दी। अब मैं उसके चुचूक को अपने मुँह में लेकर चूस रहा था और वो भी मज़ा ले रही थी। मेरा तो मन कर रहा था कि उसको खा जाऊं पर उसकी चूचियाँ थोड़ी छोटी छोटी थी। तभी कविता कहती- अपनी पैंट खोल दो न ! मैंने कहा- आप ही खुद खोल दो ! आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | तो उसने मुझे खड़ा किया और मेरी पैंट खोल दी। उस दिन मैंने अण्डर्वीयर नहीं पहना था और कविता मेरे पप्पू को चूसने लगी। क्या बताऊँ जिन्दगी का पहला अनुभव था वो मेरा ! मैंने कहा- कविता, अपनी ज़ीन्स खोल दो ! तो उसने भी झट से खोल दी और मैं उसको पागलों की तरह जांघों पर चूमने लगा। उसे भी बहुत अच्छा लग रहा था। तभी मैंने उसकी पैन्टी उतार दी और उसकी फुद्दी में ऊँगली डाल दी। वो चीख पड़ी, मुझे कहने लगी- प्रवीण अब करो न ! जल्दी अपना प्यारा सा पप्पू मेरे अंदर डाल दो ! मैंने कहा- मेरे पास कंडोम नहीं है ! तो कहती- कोई बात नहीं ! डाल दो न जल्दी से ! तो मैंने उसको अपनी गोद में बिठाया और अपना लण्ड उसकी फुद्दी में डालने लगा और वो चीखने लगी- धीरे धीरे करो न ! पर उस समय तो मुझे कुछ नहीं सुनाई दे रहा था और मैंने कविता की फुद्दी के अंदर अपना पप्पू डाल दिया और लगा मैं उसे अंदर-बाहर करने ! अब वो भी पूरा मज़ा ले रही थी और हम पागलों की तरह घुच-घुच कर रहे थे। लगभग दस मिनट तक सेक्स करने के बाद मैंने कहा- कविता, अब मैं अपना माल निकालने वाला हूँ, मुझसे कण्ट्रोल नहीं हो पा रहा है ! तो वो बोली- निकालो न जल्दी से ! पर मेरी फुद्दी के अंदर मत निकालना ! पर मेरे से अपना पप्पू बाहर नहीं निकाला गया और मैंने अंदर ही छोड़ दिया। मैं और कविता थोड़ी देर तक वैसे ही बैठे रहे। अब 4 बजने वाले थे और मुझे शॉप को खोलना था। तो मैंने कहा- कविता, चलो अब चलते हैं ! तो वो भी मान गई। अब तो हम दोनों खुश थे। वो दिन में आ जाती और हम अब रोज़ सेक्स किया करते थे।

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