बाबाजी की आस्था में चुदती चली गई

भारत में जितना लोग विज्ञान को नही मानते हैं, उससे कंही ज्यादा लोगों साधक यानि बाबा लोगों को मानते हैं | वो सोचते हैं की बाबा हे जो भगवान से बात करते हैं | आजकल तो आप सभी को पता होगा की बाबा लोगों का कमाई इतना ज्यादा हे की कोई भी भांड खुदको बाबा बनाने लगा हे. तो आजका कहानी एक औरत के साथ स्वामीजी की गुप्त चुदाई की कहानी | मस्तराम डॉट नेट पे आज आप ईस कहानी पढ़के मजा लीजिये|

मेरा नाम प्रतिज्ञा है और में एक 34 साल की शादीशुदा औरत हूँ। मेरे परिवार में मेरे पति अभिषेक केशव, समीरा और आरुषी है। हमारी अरेंन्ज मैरिज हुई थी। हमारी शादी को 9 साल हुए है। इसी बीच हमारी 2 बेटियाँ हुई। बड़ी का नाम हमने बड़े प्यार से समीरा और छोटी का नाम आरुषी रखा। मेरे पति एक मिडिल क्लास आदमी है। वो प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे मगर कंपनी में छटनी के दौरान उनकी नौकरी जाती रही।

हम देहरादून शिफ्ट हुए थे काम की तलाश में। मेरे पति को कोई काम नही मिल रहा था। वो कई दफ़्तरों में इंटरव्यू देने गये पर फिर भी उन्हे नौकरी नही मिल पा रही थी। इसी कारण हमारे घर में आये दिन झगड़े होने शुरू हो गये। अब घर तो पैसो से ही चलता है। आम आदमी की ज़रूरत कभी खत्म नही होती। लिमिटेड पैसे होने की वजह से हम काफ़ी टाइम टेंशन में ही रहते थे।

फिर मुझे मार्केट जाते समय एक विज्ञापन दिखा। वो विज्ञापन किसी महेश्वरी बाबा के नाम से था जिसे लोगो ने काफ़ी बड़ा दर्ज़ा दिया हुआ है। कहते थे की वो मन की शक्ति प्रदान करते है और समस्याओं का निवारण निकालते है पूजा कर के मैने घर जा के अपने पति से यह बात की। मेरे पति इन सब बातो में विश्वास नही करते थे। उन्होने मुझसे कहाँ, “तुझे अगर जाना है तो जाओ पर मुझको इन सब के लिए फोर्स नही करना।”

मैने भी सोचा की उन्हे ज़्यादा फोर्स ना करूँ और वैसे भी उन्होने मुझे जाने की अनुमति दे ही दी थी। मैने एक दो बार और सोचा क्या करूँ। चूँकि घर की हालत बहुत बिगड़ गयी थी मैने मजबूरन स्वामीजी से संपर्क करने की सोच लिया था। शायद उनके पास हमारी परेशानी का उपाय हो।

अगले दिन में नहा के अच्छी सी साड़ी पहन के स्वामी जी के आश्रम में गयी। स्वामी जी देखने में 56 से 60 के उम्र के लग रहे थे। उनके आस पास भक्त जन बैठे थे। उनके दोनो बाजू में 2 लडकियाँ करीब 30 की उम्र की सफेद साड़ी में खड़ी थी। स्वामीजी भगवान और शक्ति की बातें कर रहे थे। सत्संग ख़त्म होने के बाद सब लोग एक एक करके स्वामी जी से मिलने जाने लगे। जब मैं उनके पास पहुँची तो वो मुस्कुराये और मुझे आशीर्वाद दिया, “पुत्री तुम्हारे माथे की लकीर देख के लगता है की तुम घोर कष्ट से गुजर रही हो। बताओ क्या कष्ट है। स्वामीजी तेरा कष्ट दूर कर देंगे। कल्याण हो पुत्री तेरा सारा कष्ट दूर हो जायेगा।”

स्वामीजी से मिलने के बाद उन्होने मुझे इंतज़ार करने को कहाँ। में साइड में जा के इंतज़ार कर रही थी। सब के जाने के बाद स्वामीजी ने मुझे बुलावा भेजा। में उनके पास गयी। स्वामीजी के साथ उनकी 2 सेविका भी थी जिन्होने सफ़ेद साड़ी पहन रखी थी। एक शिष्य भी था जिसने धोती पहना था।

स्वामीजी ने मुझे अपने सामने बैठाया और पूजा करने लगे। वो कुछ मन्त्र का जाप कर रहे थे और उनकी सेविका पीछे दीया ले के खड़ी थी। स्वामीजी की आँखे बंद थी और वो अपने होंठ हिलाते जा रहे थे जैसे की मन में कोई मन्त्र का जाप कर रहे हो। फिर स्वामीजी ने आँखे खोली।

फिर उन्होने मुझे गंभीरता से देख के कहाँ“ जिसका डर था वो ही हुआ पुत्री, तुम्हारी जन्म पत्रिका में दोष है। जिसकी वजह से तुम्हारे परिवार के विकास में बाधा आ रही है। इसके लिए यज्ञ करवाना होगा। इसका उपचार करना पड़ेगा। पूजा करवानी होगी।”

स्वामीजी की बात सुन के में थोड़ा घबरा गयी थी। मैने स्वामीजी से कहा “स्वामीजी इसका कोई उपाय बताइये। में कोई भी पूजा करने के लिए तैयार हूँ”।

फिर स्वामीजी ने कहाँ “कल तुम नहा के नये वस्त्र पहन के बिना सिंदूर लगाऐ और बिना मंगलसूत्र पहने आश्रम में आ जाना करीब 12:30 बजे। हम कल से पूजा शुरू कर देंगे। ध्यान रहे, किसी को भी इस पूजन के बारे में मत बताना वरना विघ्न पड़ जायेगा। ”फिर में वहाँ से निकल के अपने घर आ गयी। पूरी रात में सो नही पा रही थी, ये सोच के की मेरे कुंडली में दोष है। मेरी वजह से घर पर मुसीबत आई हें तो में ही इसे सुधारुगी भी।

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अगली सुबह में अपने पति को नाश्ता करा के अपने बच्चो को स्कूल छोड़ने के बाद वापस घर आई। मेरे पति भी नाश्ता कर के दफ़्तर के लिए निकल चुके थे। मैने घर का सारा काम ख़त्म किया फिर नहाने चली गयी। में अच्छे से नहा के एक पीले रंग की साड़ी में तैयार हुई। में फिर बिना सिंदूर लगाऐ और बिना मंगलसूत्र के स्वामीजी के आश्रम चली गयी। आज आश्रम में कोई नही था।

गुरुजी के शिष्यो ने सबको कॉल करके बता दिया था की आज आश्रम में कोई अनोखी पूजा है जिसके कारण वो आज किसी से नही मिलेंगे। में वहा पहुँची तो गुरुजी की सेविकाओं ने मुझे अंदर का रास्ता दिखाया। वो मुझे अंदर कमरे में ले के गये। वहा अंदर एक बेड था और उस बेड के सामने वाली जगह में स्वामीजी ने एक यज्ञ का वेदी खड़ा किया था। मैने सोचा की यही स्वामीजी यज्ञ भी करते होंगे और फिर रात में सोते होंगे।

मेरी सोच को रोकते हुए उनकी एक शिष्या बोली, “तुम बिल्कुल सही जगह आई हो…..

स्वामीजी तुम्हारी हर इच्छा पूरी कर देंगे। उनके पास बहुत बड़ी शक्ति है। अभी तुम उनके साथ पूजन में बैठो, हम लोग बाहर जाते है। तुमने किसी को बताया तो नही ना की तुम यहाँ आई हो।”

मैने ना में सर हिलाया। स्वामीजी ने मुझे बैठने के लिए कहाँ। हम सब वही फर्श पे बैठ गये। स्वामीजी मन्त्र बोल के अग्नि में घी डाल रहे थे। व मंत्रो का उच्चारण करते जा रहे थे। फिर एक सेविका बाहर से दूध का ग्लास ले के आई। बाबा ने थोड़ा दूध अग्नि में डाला और फिर दूध को हाथ में पकड़ के कुछ मन्त्र बोला और फिर वो दूध मुझे पीने को कहाँ।

बोले, “इसे पी जाओ…….. इससे तुम्हारी आत्मा शुद्ध होगी।”मुझे डर लगा मगर मैंने डरते डरते दूध का ग्लास हाथ में ले लिया। मैने दुध एक ही बार में पूरा पी लिया। दूध पीने के बाद मुझे कुछ अजीब सा लगने लगा। अचानक ही मुझे नशा सा चड़ने लगा। मेरी आँखो के आगे अंधेरा छाने लगा। में बेहोश सी होने लगी। में फर्श पे ही गिर पड़ी। मुझे होश तो था की क्या क्या हो रहा है पर में उसका विरोध नही कर पा रही थी। मुझे महसूस हुआ की कुछ जने मिलके मुझे उठा रहे है और फिर उन्होने मुझे पलंग पे लेटा दिया। मैं आँखें खोल के सब देख रही थी मगर कुछ कर नही पा रही थी।

फिर उस स्वामी ने अपने शिष्यो को बाहर इंतज़ार करने के लिए कहाँ। स्वामीजी ने फिर जाके कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया और अंदर से कुण्डी लगा दी। फिर स्वामीजी मेरे पास आये और उन्होने मेरी साड़ी का पल्लू खींच के हटा दिया। वो मेरे सीने पे हाथ फेर रहे थे और कुछ मन्त्र बोलते जा रहे थे। फिर उन्होने मेरी साड़ी को मेरे बदन से अलग कर दिया। अब वो मेरे सीने और पेट दोनो जगह हाथ फेरते जा रहे थे। दोस्तों आप ये कहानी मस्ताराम डॉट नेट पे पढ़ रहे है।

मुझे उत्तेजना हो रही थी। फिर मेरे बदन में एक अजीब सी सिहरन होने लगी। मेरे पेट पे हाथ फेरते-फेरते वो मेरी नाभि में अपनी उंगली बार-बार घुसा रहे थे।फिर वो ऊपर आये और एक-एक कर के मेरी ब्लाउज का हुक खोलने लग गये। मेरी आँखे अपने आप बंद होने लगी। उसके बाद वो मेरे से लिपट गये और अपना हाथ पीछे ले जाके ब्रा का हुक पीछे से खोल दिया।

फिर उन्होने मेरी ब्लाउज और मेरी ब्रा को निकाल के मेरे से अलग कर दिया। मैं शर्म से मरी जा रही थी मगर बेबस थी उस नशीली ड्रिंक की वजह से। मैं कमर से ऊपर बिल्कुल नंगी हो गयी थी। उन्होने हाथ में कोई सुगंधित तेल लिया था और वो मेरे सीने पे मलने लगे। मेरी धड़कन तेजी से धड़क रही थी। मेरी साँसे ऊपर नीचे हो रही थी। मेरे बदन से सुगंधित तेल की वजह से एक खुशबू आने लगी।

स्वामीजी मेरे पास में बैठ गये और मेरे स्तन को दबाने लग गये और मेरी निपल को अपनी उंगलियो से मसलने लगे और पुल करने लग गये। वो मेरी बिगड़ती हालत को देख रहे थे और समझ रहे थे। मुझे नशे में उनकी यह हरकत अच्छी लगने लगी। मेरे बदन में अजीब सी हलचल होने लगी। वो मेरे स्तन को बार-बार दबा रहे थे और मेरी निपल से बारी-बारी खेल रहे थे।

फिर वो और करीब आये और मेरी चुचि को अपने मुहँ में लेकर चूसने लग गये थे। स्वामीजी मेरी चुचि चूसते–चूसते उसे बीच-बीच में काट भी रहे थे। चुचि चूसते–चूसते वो मेरी नाभि में भी उंगली घुसाते जा रहे थे। मुझे उनकी सारी हरकते अच्छी लग रही थी। लग रहा था मानो मैं बहुत दिन बाद कोई मेरी निपल चूस रहा था। अभिषेक ने कई दिन से मुझे छुआ भी नही था। क्योकि वो अपनी परेशानियो से घिरा रहता था। आज पता लग रहा था की मेरे बदन में आज भी आकर्षण है। यानी मैं आज भी किसी को पागल बना सकती हूँ।

स्वामीजी बोलते जा रहे थे, “तुम एकदम शांत हो के इस पूजा का आनंद लो……….मैं तुम्हारी सब परेशानी दूर कर दूँगा। तुम्हारे बदन को शुद्ध करना पड़ेगा……..”फिर स्वामीजी ने मेरी गर्दन पे होंठ लगा दिए और चूमने लगे, फिर दाया स्तन चूमना शुरू किया और मेरे बाये स्तन दबाते जा रहे थे। वो साथ साथ कुछ मन्त्र भी बोलते जा रहे थे। बहुत मादक माहौल था। रूम में एक दीया जल रहा था और अग्नि वेदी से निकलने वाली रोशनी से कमरा नहा रहा था। पूरा कमरा सुगंधित था। मेरे ऊपर स्वामीजी नंगे बदन झुके हुए थे। मेरा भी बदन नंगा था।

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फिर उन्होने मेरे होठों पे अपने होठ रखे और मेरे होठ को चूसना शुरू कर दिया। मेरे होठ चूसते चूसते उन्होने अपनी जीभ मेरे मुहँ में घुसा दी। उनकी जीभ में एक अजीब सा स्वाद था। वो मेरी जीभ चूसने लगे। मुझे महसूस हो रहा था की वो मेरे मुँह के अंदर चाट रहे है। वो उठ के मेरे चेहरे को देखने लगे कही मैं परेशान तो नही लग रही। मगर मेरे चेहरे से एक खुशी की झलक मिली उन्हे।

स्वामीजी बोले, “कैसा लग रहा है पुत्री तुम्हारे दिल में जो भी परेशानी है दिल से निकाल दो मैं दिल पे मन्त्रो से उपचार कर रहा हूँ।

फिर ज़ोर ज़ोर से मन्त्र उच्चारण करने लगे। बाहर बैठे उनके शिष्य भी ज़ोर ज़ोर से मंत्रोचर करने लगे। मुझे लगा की मैं किसी स्वर्ग में हूँ और मेरा रेप होने वाला है। मुझे लगा अब स्वामीजी मुझे चोद के ही छोड़ेंगे। शायद उनके शिष्य भी मेरी इस नशे की हालत का फायदा उठाऐगे। मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई की मैने किसी को बताया नही यहाँ आने के बारे में अगर मैं विरोध करती हूँ तो ये मुझे मार डालेंगे और किसी को कुछ पता भी नही चलेगा। मैं वहाँ से भागना चाहती थी मगर नशे की वजह से मैं कुछ कर नही पा रही थी। चुपचाप लेट के उनकी क्रिया का आनंद ले रही थी।

स्वामीजी बोले, “अभी तुम्हारा मुख शुद्ध हो गया अब बाकी शरीर को शुद्ध करना है। अब मैं नीचे बडूगा। तुम मेरा साथ देती रहो फिर तुम बिल्कुल उलझन मुक्त जीवन जी लोगी।”

में नशे मे थी। हिल नही पा रही थी। दुबारा तेल लेकर मेरी नाभि में मलने लगे। स्वामीजी मेरे पुरे बदन पर हाथ फेर रहे थे और तेल की मालिश भी कर रहे थे। वो मेरे होठों को चूमते चूमते नीचे की तरफ आने लग गये और फिर मेरे दोनों स्तनो को चुसना और दबाना शुरू किया।फिर वो धीरे-धीरे मेरे पेट की तरफ बड़े। अब उन्होने मेरे पेट पे चूमना शुरू किया। पास में पड़ी कटोरी से थोड़ा शहद निकाल के मेरी नाभि में डाल दिया। फिर उनका मुहँ मेरी नाभि पे आया। फिर वो मेरी नाभि को चूसने लगे। वो मेरी नाभि के अंदर अपना लिंग घुसा के अंदर झटके मारने लग गये। इतने में मेरी चूत में भी हलचल मचने लग गयी। तेल की सुगंध और दूध में मिला नशा मुझे मस्त कर रहा था। मैं खुद चूतवाने को उत्सुक हो रही थी। मेरी आँखे रह-रह के बंद हो जा रही थी।

स्वामीजी बोले, “शाबाश पुत्री। तुम बहुत अच्छे से पूजन में हिस्सा ले रही हो। मैं इसी तरह तुम्हारे बदन को शुद्ध करूँगा। “मेरी नाभि चाटते। वो मेरे पेटिकोट का नाडा खोलने लग गये। बंधन खोलने के बाद उन्हे मेरी पिंक पेंटी दिखी। फिर उन्होने मेरे पेटीकोट और मेरी पेंटी खींच के ऊतार फेंकी। फिर ज़ोर ज़ोर से मंत्रोचर करने लगे। अब मैं बिल्कुल नंगी उनके सामने लेटी थी और वो लगातार मेरी साफ चूत को देख रहे थे और मन्त्र बोल रहे थे। फिर अपना हाथ मेरी नंगी चूत पे फेरने लगे।

वो बोले, “अब समय आ गया है की मैं तुम्हारे अंदर की गंदगी को साफ करूँ। मैं अंदर इस पवित्र तेल की मालिश करता हूँ। तुम दिल से उपरवाले को याद करो। तुम्हे पता है योनि देवी पार्वती का रूप है। अपनी टाँगे खोलो पुत्री।”

उन्होने मेरे पैर पकड़ के फैला दिया और मेरे पैरो के बीच में आ के बैठ गये। वो मेरी चूत पे अपना हाथ फेर रहे थे और कुछ बडबडाते जा रहे थे। फिर हाथ में तेल लेकर चूत के उपर लगाया और मालिश करने लगे। चूत के होंठ उनके छूने से कांप रहे थे। मानो उनमें भी जान आ गई हो। वो उंगली से चूत के होंठ पे मालिश किए जा रहे थे। दोस्तों आप ये कहानी मस्ताराम डॉट नेट पे पढ़ रहे है।

फिर मुझे महसूस हुआ की वो मेरी चूत में अपनी उंगली घुसा रहे थे। और अपनी उंगली को मेरी चूत के अंदर बाहर करना शुरू कर दिया था। फिर वो मेरे चूत के दाने को छेड़ने लग गये थे। फिर दुबारा शहद ले कर चूत पे उंड़ेल दिया। शहद और तेल मिल के कयामत ढा रहे थे। वो फिर नीचे झुके और अपनी उंगलियो से मेरी चूत की पलके फैला दी और छेद पे किस करना शुरू कर दिये। बीच-बीच में वो अपनी जीभ मेरी चूत के अंदर भी डाल रहे थे और फिर वो मेरी चूत के बहुत अंदर तक लीक कर रहे थे। अंदर मेरी चूत से गीलापन निकलने लगा। शहद और चूत का रस दोनो स्वामीजी मज़े से चाट रहे थे।

स्वामीजी बोले, “बहुत स्वादिष्ट है पुत्री तुम्हारी योनि का रस जी करता है हमेशा पीता रहूँ। मगर पहले तेरी मुश्किल का हल ढूँढना है बच्चा।”

मुझे ऐसी इच्छा हो रही थी जैसे वो मेरी चूत को चूसते रहे, हटे नही। फिर उन्होने अपनी तेल से भीगी उंगली मेरे गंद में घुसेड दी। एक ही झटके में उनकी बीच वाली उंगली मेरे गांड में समा गयी। वो मेरी चूत चूस रहे थे और साथ-साथ गांड में उंगली भी कर रहे थे। मुझ पर दोहरा वार हो रहा था। काम अग्न से मैने आँखे बंद कर रखी थी। अब मेरी चूत पानी छोड़ने वाली थी। मैं उन्हे हटाना चाहती थी मगर मुझ में इतनी शक्ति नही थी की में ऐसा कर सकूँ। मैं आँखें बंद करके उनके चूत चूसने का मज़ा ले रही थी।

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उन्होने मेरी चूत को काफ़ी देर तक चूसाई की और वो घड़ी आ गई जिसका इंतज़ार था। मैंने बहुत ज़ोर से पानी छोडा स्वामीजी के मुँह पे। मुझे शर्म भी आने लगी मगर स्वामीजी पुरे मज़े से मेरी चूत का पानी पीने लग गये। में उनके मुहँ में ही झड़ गयी। स्वामीजी ने मेरे चूत का पानी को पूरा पी लिया फिर वो उठे और मेरे ऊपर लेट गये। उनका होंठ मेरे होंठ पे रखा था। मैं खुद उनका होंठ चूसने लगी। उनके मुँह से मुझे अपनी चूत के पानी का स्वाद मिलने लगा।

स्वामीजी फिर बोले, “बहुत स्वादिष्ट था तेरा योनि रस तुम क्या खाती हो की तुम्हारा चूत इतना मीठा है। तेरा पति कितना किस्मतवाला होगा जो रोज़ इसका रसस्वादन करता होगा।”

स्वामीजी को क्या मालूम की अभिषेक कभी मेरी चूत नही चूसता। चूत को बहुत गंदा मानता है अभिषेक और चूसना तो दूर वो कभी चूत पे किस भी नही करता है। आज स्वामीजी ने मुझे ज़न्नत दिखा दी। उन्होने अपने हाथ से अपने लंड को मेरी चूत पे रखा और फिर ज़ोर से धक्का लगाया। स्वामीजी का मोटा लंड एक ही बार में मेरी चूत में पूरा घुस गया। मुझे याद नही की उनके लंड का साइज़ क्या है में नशे में थी पुरे टाइम।

स्वामीजी फिर मन्त्र बोलने लगे और चूची चूसने लगे। मैं नीचे से धक्के मारने को इशारा करने लगी। फिर स्वामीजी ने मेरी चूत की चुदाई शुरू कर दी। वो ज़ोर ज़ोर से अपने मोटे लंड को मेरी चूत के अंदर बाहर धक्के लगा रहे थे। स्वामीजी मेरी चूत की चुदाई करते करते मेरे होठों को चूम रहे थे और साथ साथ मेरे स्तन दबाते जा रहे थे। और मेरी निपल को अपनी उंगलियो के बीच मसलते जा रहे थे। मुझे बहुत दर्द हो रहा था पर में कुछ कर नही पा रही थी। वो नशा भी ऐसा था की मेरे पुरे बदन में गर्मी छा गयी थी। मुझे उनका बदन भी गीला महसूस होते जा रहा था जैसे की वो पसीने में भीगे हुए है। वो मुझे जगह जगह चूमते जा रहे थे और मेरी चूत में ज़ोर से अंदर बाहर करते जा रहे थे। उन्होने ऐसा लगभग 15 मिनिट तक किया होगा।फिर मुझे महसूस हुआ की मैं दोबारा झड़ने वाली हूँ। मैने आँखे बंद की और ज़ोर से बदन कड़ा किया।

मैं बोल पड़ी, “ओओओओओओओओऊऊऊऊऊऊऊऊओह्ह्ह्ह्ह।।।।।।आआआआाअगगगगगगगगगगगगघह।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।माआआआआआआअ।।।।।।।।।।।।।मैं पानी छोड़ रही हूँ।”

स्वामीजी ने भी अपना बदन कड़ा किया मैं समझ गयी वो भी झड़ने वाले है। फिर अचानक मुझे मेरे पेट के अंदर गरम पानी भरने जैसा महसूस हुआ और में समझ गयी की वो मेरे अंदर ही झड़ गये हें। झड़ने के बाद वो मेरे ऊपर ही कुछ देर लेटे रहे। फिर वो मेरे उपर से उठे और बाथरूम में चले गये। मुझे अंदर से पानी की आवाज़ आ रही थी। थोड़े टाइम बाद स्वामी जी नहा धो के बाथरूम से बाहर निकले। मुझे वैसा ही छोड़ के वो खुद कपड़े डाल के बाहर चले गये और में वहाँ अंदर नंगी लेटी हुई थी।

मुझे पता ही नही चला की कब मेरी आँख लग गई। जब मुझे होश आया तभी भी मेरा सर घूम रहा था। पर अब में अपने हाथ पैर मूव कर पा रही थी। मेरे दोनों पेरो में दर्द हो रहा था। शरीर अकड़ गया था। दिल कर रहा था की कोई मुझे मालिश कर देता मगर वहाँ ऐसा कौन मिलता। मैं अपनी हालत पे रो रही थी। मुझे ये भी होश नही था की मैं उस वक़्त तक नंगी ही थी। मैने अपनी योनि को सहलाया तो दर्द से बहाल हो गयी। योनि के लिप्स फुल गये थे और दर्द भी था, योनि के ऊपर स्वामीजी का चिप चिपा सा वीर्य था जो बहुत हद तक सूख गया था। स्वामीजी का लंड लगता है बहूत मोटा था जिसने मेरी चूत का भरता बना दिया था। मैं अपनी चूत को सहलाने लगी। मुझे कुछ आराम सा मिला।

मैं और चूत मसलने लगी और एक उंगली को चूत के छेद में घुसेड दिया। अंदर स्वामीजी का वीर्य बह रहा था। मेरी उंगली अंदर तक चली गयी। मुझे इतना मज़ा आने लगा की मैं उंगली से योनि की चुदाई करने लगी। मेरी आँखों के सामने स्वामीजी की चुदाई घूमने लगी। मुझे बहुत दर्द हो रहा था। लेकिन में कुछ नहीं कर सकती थी। मै पूरी तरह मग्न हो के योनि में उंगली कर रही थी तभी हल्की सी आवाज़ हुई। मैं चौंक सी गयी। तभी मेरा पानी निकलने वाला था। मैंने योनि को सहलाना जारी रखा और आँख खोली तो क्या देखती हूँ।………….कहानी जारी रहेगी ……
मैं उठने की कोशिश करने लगी तभी देखा स्वामीजी का एक शिष्य दरवाजे पे खड़ा मुझे देख रहा था। उंगली से योनि सहलाने और चोदने से मुझ को मज़ा आने लगा था और जिससे मेरी आवाज़ निकल गई। स्वामीजी का वो शिष्य बगल के कमरे से उठ के मेरे कमरे में आ गया। मुझे नग्न हालत में देख कर वो घबरा गया, लेकिन जब उस की नज़र मेरी नंगी टागों की तरफ गई तो वो देखता ही रह गया। मेरी चमकती योनि उसे अपनी ओर खींच रही थी। मैं भी बिना रुके उंगली तेज़ी से अपनी योनि में अंदर बाहर करती रही।

वो दिन मेरे लिए बहुत खास था। पहली बार आज सुबह मुझे किसी पराये पुरुष ने चोदा था और अभी पहली बार एक पराये पुरुष ने मुझे नंगी हालत में देखा वो भी अपनी उंगली से चूत चोदते हुए। अब मुझे भी मज़ा आने लगा था। मैने अपनी टांगे और फैला दी और उसे अपनी योनि का दर्शन कराती रही।

कुछ देर बाद वो बोला, “आप स्वामीजी की प्रिय भक्त है। आपको ऐसा नही करना चाहिऐ। बाहर स्वामीजी आपकी प्रतीक्षा कर रहे है।”

मैने कहा, “स्वामीजी की प्रिय भक्त आपको आदेश देती है की मुझे कुछ समय दे। आप वहाँ क्यो खडे हो, आओ और मेरे साथ यहाँ बैठ के देखो।”

मेरे करीब आ गया और ध्यान से मेरी योनि देखने लगा। उसी वक़्त मैं ज़ोर से चिल्लाई, “उउइईईईईईईईईई माआआआआआअ ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। मैन्न्नन्न्न्नन्न्न्न आआआआआआययययीईईईईइ ।”

और मैं शरीर को कड़ा करके झड़ गयी। ये नज़ारा देख के शिष्य जिसका नाम विशेष था, उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी। वो अपना हाथ अपने लंड पे रगड़ने लगा। मैने उसकी धोती की तरफ देखा तो उसका लंड धोती से बाहर झाँक रहा था। एकदम कड़क। मैं उसका खड़ा लंड देख के और गरम होने लगी और विशेष के साथ बेड पर बैठ गयी। मुझे उसका लंड पकड़ने का दिल करने लगा। उसकी साँसे तेज़ चलने लगी और मेरी भी जबकि मैं दो बार आज झड़ चुकी थी।

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मैने आँखे बंद की और अपना चेहरा विशेष की तरफ बढ़ाया ताकि उसे मेरे मन की बात पता चले। उसने मेरा इशारा समझा और अपने होंठ मेरे होंठ पे रख दिए। हम दोनो एक दूसरे के होंठ चूमने और चूसने लगे। उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में घुसा दी और मैं मज़े से उसे चूसने लगी। मेरे पति अभिषेक ने कभी मुझे ऐसे किस नही किया था। फिर उसका हाथ मेरे स्तन पे पहुँच गया। मैं शांत होके उसके अगले कदम की प्रतीक्षा करने लगी और उसकी जीभ तो चूसती रही। वो मेरे स्तनो को जोर जोर से दबाने लग गया उसके होठ मेरे होठों पर थे। कुछ देर के बाद विशेष ने मेरे स्तनो को मसलना शुरु कर दिया। मेरे निपल्स एकदम खड़े हो गये और सामने को तन गये। विशेष ने अपना मुँह मेरे होंठ से हटाया और मेरे निपल को चूसने लगा। वो पाँच मिनिट तक मेरे निपल्स को चूसता रहा। कभी बाया निपल तो कभी दाया निपल। मैने उसका सर पकड़ा हुआ था और में वैसा महसूस कर रही थी जैसा एक माँ अपने बच्चे को दूध पिलाते वक़्त महसूस करती है। उसकी इन हरक़तो से मैं अपने शरीर में उठता दर्द भूल सा गयी और में उसकी आगोश में खो गयी। तभी विशेष ने अपने मुँह को मेरे स्तन से अलग किया। मैं उसकी तरफ प्यासी निगाहो से देखने लगी।

उसके बाद वो मेरे सामने खड़ा हो गया और अपनी धोती को खोल के अलग कर दिया। वो मेरे सामने नंगे खड़ा था और उसका फनफनाता लंड मेरी आँखो के सामने हिचकोले खा रहा था। मैं उसके मोटे लंड को देखती रही। दिल किया की उसे मुँह में लेकर चूसने लगूं ।

उसने अपने लंड को मेरे मुहँ के सामने कर के कहाँ, “इसको चूसो। ले लो इसको अपने प्यारे मुँह में चूस लो इसे। बहूत मज़ा आयेगा।”

पहले तो मुझको बहुत अजीब सा लगा की इतनी गंदी चीज़ को मैं मुहँ मे कैसे लू। मैने मुँह सिकोड के कहाँ, “मगर ये तो गंदा होता है, मैं इसे मुँह में नही ले सकती। कक्चहिईीईईईईईईईईई।।।।।।।।।।” ये तो बहुत गन्दा होता हे मैने कहाँ।

विशेष बोला, “तुम इसको एक बार मुँह मे लो तो ऐसा मज़ा आयेगा की तुम लंड को मुँह से निकालने को तैयार ही नही होगी। देखो ये कैसे फन फ़ना रहा है।”

विशेष ने अपने लंड को मेरे मुँह से लगा दिया तो मैं उसको मुँह मे ले के चूसने लगी। शायद स्वामीजी ने जो दवा पिलाई थी उसका असर अभी तक बाकी था। विशेष को बहुत मज़ा आ रहा था ओर उसके के मुहँ से आवाज़ें निकलने लगी, “ऊऊऊऊऊओ।।।।।।आआआ ऊऊऊ जोऊऊऊऊर सेस्स्स्सस्स्स्सईईए ।” दोस्तों आप ये कहानी मस्ताराम डॉट नेट पे पढ़ रहे है।

मेरी योनि से भी पानी निकल रहा था, ये सोच-सोच के की मैं पहली बार किसी का लंड चूस रही थी वो भी एक पराये मर्द का। विशेष ने मेरा सर पकड़ लिया और धक्के मारने लगा। विशेष मेरे मुहँ मे अपने लंड को अन्दर बाहर करने लगा और दस मिनिट के बाद मुझे उसके लंड में अजीब सी सिहरन महसूस होने लगी। मैं समझ गयी की अब वो पानी छोड़ेगा, और मैं अपने मुँह से उसका लंड हटाने लगी मगर विशेष ने मुझे ऐसा करने नही दिया। उसने मेरा सर दोनो हाथों से पकड़ रखा था। उसका लंड मेरे मुहँ में ही रहा और वो झड़ने लगा। उसके लंड से वीर्य निकलने लगा।

मैं उसके लंड का वीर्य पीना नही चाहती थी, मगर तब तक देर हो चुकी थी। उसने मेरे मुहँ में वीर्य का फव्वारा ज़ोर से छोड़ा और उसके लंड से पानी निकल के मेरे मुहँ मे भरने लगा। उसके वीर्य का स्वाद उतना बुरा नही था तो मैंने लंड को अपने होठों से जोर से दबा लिया। उसका सारा पानी मेरे मुहँ में चला गया और मैं पी गयी। उसके लंड का पानी पीने के बाद मैं दोबारा से उसके लंड को चूसने लगी। मेरा मन नही भरा था। हे भगवान, में एक ही दिन में सती सावित्री नारी से एकदम हलकट हसीना बन गयी थी। पता नही स्वामीजी ने दूध में मिला के मुझे क्या पिलाया था।

कुछ देर बाद विशेष ने कहाँ , “अब तुम लेट जाओ। मैं तुम्हारी चूत को चुसूगा। इतनी मस्त चूत बहुत कम लोगो को नसीब होती है।”

मैं पलंग पर लेट गई। विशेष ने मेरी टाँगों की तरफ आके मेरी टाँगों को फैलाया। वो मन्त्र मुग्ध सा मेरी चूत को देखता रहा। मेरी साफ सुथरी और चिकनी चूत जो स्वामीजी की चुदाई के बाद भी होंठ हिला रही थी। विशेष ने अपना मुँह मेरी योनि पे रख दिया और योनि के होंठ चूमने लगा। उसने अपनी जीभ निकाली और अपनी जुबान से मेरी चूत को चाटने लगा। उसकी ज़ुबान मेरी चूत के दाने को लग रही थी। वो बार बार अपनी ज़ुबान से मेरी चूत के दाने को सहलाता और चूसता। हर बार मैं दुगुने जोश से उसके सर को अपनी चूत पे धकेलती।में भी उससे बोलने लगी, “ऊऊऊऊहह।।।।।। तुम बहुत मज़ेदार हो। इस योनि ने इतना मज़ा पहले कभी नही लिया।अआआआमममिईीईईई।।। चूसो मेरे राजा ज़ोर से चूसो तुम आज मेरी चूत को ज़ोर से चाटो, पता नही फिर मौका मिले ना मिले।।।।। आआहह यार तुम ग्रेट हो।।।।।।। ऊऊहह।।।।।ऊओह यस बड़ा मज़ा आ रहा है बहुत अच्छा लग रहा है। बहुत गरम हो यार तुम तो।”

मेरी ऐसी बातें सुनकर वो और ज़ोर जोर से मेरी योनि चूसने लगा ओर जुबान से चूत चोदने लगा। मैं इतनी मस्ती से अपनी चूत चुसवा रही थी की मैं भूल गयी थी की मैं एक शादीशुदा औरत हूँ। और वो पराया मर्द है। थोड़ी ही देर मे वो वक़्त आ गया और योनि में छटपटाहट होने लगी। मैने ज़ोर से सांस लिया और मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया। मेरी चूत से पानी निकलने लगा। मेरी योनि के रस को विशेष अपनी जुबान से चाटने और चूसने लगा। उसकी इस हरक़त से मैं तो मज़े मे पागल हो गई। मैने उसके बालों को ज़ोर से पकड़ लिया और खींचने लगी। उसे दर्द भी हुआ होगा तो उसने कुछ कहाँ नही और मेरा काम रस चूसता रहा।

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क़रीब पाँच मिनिट के बाद विशेष ने मुझे नीचे लेटा दिया और खुद मेरे ऊपर आ गया। उसने मेरी टाँगों को अपने कंधों पर रखा और लंड चूत के मुँह पे रख दिया। फिर अपने लंड को चूत के होल पर सेट करने के बाद अन्दर की तरफ धक्का दिया। मेरी चूत का छेद उसके मोटे लंड को अन्दर नही ले पाया। वो जोर जोर से धक्के मारने लगा आखिरकार उसका लंड मेरी चूत में पुरे तरीके से सेट हो चुका था जिससे मेरी चूत का छेद पूरी तरह से फैल गया तो मे दर्द से चीखने लगी, “ऊऊऊऊईईईईईई।।माआआआआमममममम। मैं मर गइईईईईईईई। निकालो अपने लंड को निकालो इसे।”

फिर उसने मेरे पैर कंधे से उतारे और फैला कर अपने दोनो साइड पर कर दिये और फिर अपना लंड मेरी योनि मैं डाल दिया। उसने अपने लंड को मेरी चूत मे डाला तो लगा जैसे किसी ने गरम लोहे का सरिया मेरी छोटी सी चूत में घुसेड दिया हो। अब तक मेरी चूत बिल्कुल खुश हो चुकी थी और ऐसा लग रहा था जैसे किसी कुँवारी लड़की की चूत हो। मुझे दर्द भी होने लगा मगर मुझे मज़ा भी लेना था। फिर थोड़ी देर बाद मुझको मज़ा आने लगा और मैं भी विशेष को सलाह देने लगी।

मैं बोली, “छोड़ो मुझे जल्दी करो। ओह तुम बहुत ज़ालिम हो लेकिन बहुत ही अच्छे भी। आआआआआआहह….आराम से करो और प्लीज़ अपने लंड पर तेल (ऑयल) लगा लो, ऐसे सूखा लंड अंदर जाने से तकलीफ़ होती है। आअहह ….आहम्म……तुमने कहाँ से सीखा ये सब बड़ा मज़ा आ रहा है और ऐसा मज़ा कभी भी नही आया मुझे।

तुम रियली एक्सपर्ट हो चोदने मैं। आआआआआआः……आराम से एक ही दिन में सब बर्बाद कर दोगे क्या मुझे घर भी जाना है। मेरे पति ने मुझे ऐसे देख लिया तो गजब हो जायेगा। मैं उन्हे क्या जवाब दूँगी साले। मैं तुम्हारे स्वामीजी की प्रिय भक्त हूँ यार कुछ तो रहम करो। फक मी स्लोली. आअहह……. गो इजी यार………. प्लीज़, सच्ची कह रही हूँ दर्द हो रहा है। टेक इट ईज़ी……यार ईज़ी……आराम से करो ना हाईईईईई…….”लेकिन विशेष ने अपनी स्पीड कम नही की क्योकी अब मेरी योनि कुँवारी लड़की की योनि बन चुकी थी और उसे बहुत मज़ा आ रहा था चोदने में। वो दुगनी स्पीड से मुझे चोदता जा रहा था।

मैं उससे मिन्नते कर रही थी, “आअहह…… यार आज मैं बहुत टाइट हूँ क्या वजह है हाईईई हां मुझे चोदो यार और चोदो आहह। ज़ोर से करो और ज़ोर से पूरा अन्दर डालो ऊऊउईईई करो और ज़ोर से।”

विशेष रुक रुक कर धक्के मारने लगा। 15 मिनिट बाद मैं झड़ गई लेकिन विशेष का लंड अभी भी खड़ा ही था। वो पूरे ज़ोर से हिलता रहा। 10 मिनिट बाद मेरी चूत ने फिर पानी छोड़ दिया और साथ ही विशेष के लंड से भी पानी निकलने लगा। उसने अपनी पीठ को कड़ा किया और वीर्य का फव्वारा छोड़ दिया।

मैने उसे ज़ोर से जकड़ लिया और बोली, “ऊऊओ माआ, इतनी गरम वीर्य। इट इज सो हॉट एंड वॉर्म……. आअहह अब तो रुक जाओ मेरी निकल चुकी है जानू। बहुत पॉवर है जनाब मैं ह्ह्हम्म्म्म ……”

विशेष करीब 2 मिनिट तक मेरी चूत में अपना वीर्य छोड़ता रहा। वो थक गया और मेरे ऊपर ही लेट गया। थोड़ी देर बाद हम उठे तो मैने देखा मेरी टाँगों पर और पलंग पर खून लगा था। विशेष ने मेरी चूत फाड़ दी थी।

अपनी ऐसी हालत देख के मैं घबरा गई। तो विशेष ने कहाँ, “कोई बात नही, कभी कभी ऐसा होता है। चलो मैं चलता हूँ स्वामीजी बुला रहे है। तुम भी तैयार होके आ जाना। अच्छे से धो लेना इसे खून बहना बंद हो गया है।”

मैं इतना थक गई थी की मैं दोबारा सो गयी। दो घंटे के बाद मैं उठी, ओर बाथरूम गई तो मुझ से चला नही जा रहा था। फिर भी मैने अपने आप को संभाला ताकि किसी को कोई शक ना हो जाये। में उठी और बाथरूम में गई। मेरी चूत का होंठ फुल गया था। मुझसे ठीक से चला नही जा रहा था। मैं किसी तरह से दीवार का सहारा लेकर बाथरूम तक पहुँची।

शावर चालू करके नहाने लग गयी। चूत से अभी तक वीर्य निकल रहा था। मुझे नही पता वो स्वामीजी का था या विशेष का। मेरी आँखो से आँसू बहने लग गये पिछली बातो को याद करके। मैने चूत को अच्छे से साफ किया अंदर उंगली डाल-डाल के खुद को साफ करने के बाद मैने अपने कपड़े पहने और बाहर आ गयी।

बाहर स्वामीजी अपने सभी शिष्यो के साथ बैठे थे। जैसे ही में बाहर आई, स्वामीजी मेरे पास आये। स्वामीजी मुझसे बड़े प्यार से बोले “पूजा सफल हुई, अभी के लिए दोष दूर हो गया है, तुम चिंता मत करो और रो मत। तेरा काम हो गया पुत्री। अगर काम हो जाऐ। तो एक किलो लड्डू हनुमान जी को चडाने ज़रूर आना।”

स्वामीजी ने नम्रता से मेरे आँसू पूछे। प्रसाद बोल के उन्होंने मेरे हाथो में कुछ मिठाइया दी और कहाँ की वो में खुद भी खाऊ और अपने घर में सबको खिलाऊ। में 5 बजे वहाँ से निकल के वापस अपने घर आ गयी थी। पुरे टाइम मेरे मन में विचार आ रहे थे। में सोच नही पा रही थी की क्या यह बात में अपने पति को बताऊ की नही। में सोचने लगी की अब से में उस स्वामी के पास नही जाउंगी। दोस्तों आप ये कहानी मस्ताराम डॉट नेट पे पढ़ रहे है।

शाम को जब मेरे पति आये तो वो बहुत खुश लग रहे थे। उन्होने कहा की उन्हे किसी बड़ी कंपनी मैं मैनेजर की नौकरी मिल गयी और उनकी पगार 50000/- महीने है। यह बात सुन के में हैरान रह गयी। मैने सोचा की यह तो चमत्कार हो गया। अब मुझे स्वामीजी पे विश्वास हो गया। अगले दिन से मेरे पति रोज नौकरी पर जाने लग गये थे। में स्वामीजी के पास गयी और उन्हे खुश खबरी सुनाई।

उन्होने कहाँ, “यह में जानता ही था, एक बार कल दोष हट गया तो सब ठीक हो ही जायेगा। अगर तुम चाहती हो की ये ऐसा ही चलता रहे तो तुम अक्सर आती रहा करो। मैं मन से तुम्हारे लिए पूजन करता रहूँगा।”

में फिर से स्वामीजी की बातो में आ गयी। अब स्वामीज़ हफ्ते में 4 बार मुझे पूजा के बहाने बुलाते और उसी तरह के नाटक से मुझे चोदते रहते थे। और में उनकी बातो में आती गयी। घर में सब ठीक होते जा रहा था इसलिए मुझे अब फरक भी नही पड़ता। उधर अभिषेक, मेरे पति अपनी नई नौकरी में इतने मशगूल हो गये की मुझ पे ज़्यादा ध्यान भी नही देते। कभी-कभी मुझे विशेष भी चोदता है जब स्वामीजी किसी काम में व्यस्त होते है। मेरी चूत का भोंसड़ा बन चुका है मगर स्वामीजी को मेरी चूत बहुत पसंद आती है।