प्रशंशा सुन कर मेरा मन झूम उठा, लेकिन झेंप कर मैंने अपनी आँखें चुरा ली,तब पापा जी ने मेरी ठोडी पकड़ कर चेहरा उपर उठा दिया, मेरी पलकें बंद ही थी, मेरी साँसे भारी हो गई थी, पापा जी ने मेरी दोनों आँखों को चुमते हुवे कहा, ” अब आँखें ना चुराओ जानेमन, पलकें खोल दो जरा देखुं तो तुम्हारी झील जैसी आँखों की गहराई कितनी है,”
उनके डायलोग सुन कर मुझे हंसी आ गई, मेरी पलकें उठ गई, आँखें मिलते ही मैंने उनके गले में बाहें डाल कर अपनी ठोडी उनके कंधे पर टिका दी, तब पापा जी मेरी नंगी कमर को सहलाने लगे, मेरी साँसे तेज तेज चलने लगी थी, आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | तुम्हारी पतली कमर बड़ी कातिल है, जब जब नजर पड़ती थी आह भर कर रह जाता था, मैंने धीरे से चुटकी ली ” यानि नीयत पहले से खोटी है?”
वे एकदम से आवेश में आ गये, उन्होंने मुझे कंधे से अलग करके चीत गिरा दिया, मेरे दोनों पाँव उनकी गोद में ही सिकुड़े पडे थे, उन्होंने मेरे पांव के पंजों को दोनों हांथों में उठा लिया और पल भर तक घुर घुर कर देखने के बाद जी जान से चूमने लगे,
” तुम्हारे पांव तो कमल के फूल जैसे हैं, ऐसे ही पांवों को चरणकमल की उपाधि दी गई है,”
मेरे पांवों को चुम चुम कर पापा जी ने मुझे आसमान के सिंहासन पर बैठा दिया था, इतनी प्रशंशा पहले किसी के मुंह से नहीं सुनी थी, पति से भी नहीं, मुझे बहुत अच्छे पुरुष लगे पापा जी, आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | पांवों को छोड़ कर पापा जी ने दोनों हाँथ मेरी कमर में डाल कर पहले तो उसे नापा फिर उचका कर उठा लिया, मेरा लंबा जिस्म पुल की भाँती बिच से उठ गया, वे मुस्कुराते हुवे मेरे पेट को कुछ छण देखते रहे फिर नाभि पर होंठ रख कर चुमने लगे,
मेरा अंग अंग सिहर उठा था, नाभि चुमने के बाद मेरी कमर वापस बिस्तर पर रख दिया और थोडा झुक कर मेरे उरोजों को टटोलने लगे, मेरे कमरे में रौशनी थी, उसकी रोशनी से पापा जी का कमरा भी हल्का हल्का रोशन था,
” इन सबको थोडी देर के लिये उतार फेंको ना, ये मजा किरकिरा कर रहे हैं,” कह कर वे ब्लाउज का हूक खोलने लगे, मैं छिपी नजरों से उनका मुंह ताक लेती थी, धीरे धीरे मेरी हिचक भी दुर होती जा रही थी,
पापा जी ने ब्लाउज, ब्रेजियर उतारने के बाद साडी भी खींच दी, मेरे उन्मत उरोजों ने उन्हें इस कदर आकर्षित कर लिया की साडी के बाद पेटीकोट को भूल ही बैठे, उन्होंने पहले तो अपने हांथों को उभारों पर हल्के से रखा और हल्के हल्के सहलाते रहे, फिर धीरे धीरे दबाने लगे, दबाव भी बढ़ता गया, आखिर में उन्होंने निर्दयता के साथ भींच दिया, आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | ” उई री माँ ” मैं सीत्कार कर उठी, साथ ही मैनें उनके हांथों पर हाँथ रख कर राहत देने के लिये आँखों ही आँखों से अनुरोध किया, वे मान गये, खिसक कर मेरी बगल में आ बैठे और उरोजों को सहलाने लगे, काम क्रीड़ा से उन्होंने मुझे पर्याप्त आनंदित कर दिया था, मैंने फिर अपने निचले होंठ को दांतों तले दबाया तो वे मेरे चेहरे पर झुक कर बोले, ” तुम अपने होंठों को घायल मत करो, मेरे हवाले कर दो मैनें होंठ को मुक्त कर दिया, उसी समय उन्होंने अपने होंठों के बिच दबा कर चुसना सुरु कर दिया, मेरी साँसे एकदम तेज हो गई, पिंजरे में फंसी मैना की भाँती मैं छटपटा रही थी और वे होंठों का स्वाद ले रहे थे, उन्होंने मेरी एक बांह उठा कर अपने गले पर लपेट दी और दुसरे हाँथ की उंगुलियां पकड़ कर अपने गुप्तांग की ओर ले जाने लगे, आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | ” तुम्हारा खिलौना यह है, तुम भी खेलो, अगले ही पल उनका लिंग मेरी मुट्ठी में था, उसका स्पर्श बहुत आनन्ददायक लगा, भयभीत होने की उम्र मैं पार कर चुकी थी, पापा जी का कद मेरे पति से लंबा ही था, शायद इसीलिए उनके लिंग की लंबाई भी कुछ अधिक थी और कोई अन्तर नहीं था, मैं लिंग को धीरे धीरे सहलाने लगी, होंठों पर दर्द महसुस होने लगा तो मैं उनकी गर्दन पीछे की ओर धकेलने लगी, वे समझ गए, मुंह उठा कर मेरी आँखों में आँखें डाल कर पूछा ” मेरे साथ आनन्द आ रहा है या नहीं, मैंने मुस्कुरा कर उनके गाल पर हलकी सी चपत लगाईं और नाक चढा कर बोली, ” बहुत आनन्द आ रहा है,”
” तुम्हारी यही अदा तो कातिल है,” कह कर उन्होंने मेरी नाक पर एक चुंबन अंकित कर दिया ओर मुस्कुराने लगे,
मैनें पुछा ” मेरे साथ आप कैसा महसुस कर रहे हैं,”
” तुम्हारे सहवास का जो आनन्द मुझे मिल रहा है, वह पहले कभी नहीं मिला, तुम सुन्दरता की एक मिशाल हो,”
कह कर उन्होंने मेरे उरोजों के अग्रभाग को बारी बारी से चुमा फिर एक को मुंह में डाल लिया, मैं पापा जी से ऐसी उम्मीद नहीं रखती थी, मेरे पति भी उरोजों को पहले चूसा करते थे, पापा जी के मुंह में पड़े उरोज के अग्रभाग पर गर्मी महसुस हुई तो मेरा रोम रोम उत्तेजना से खडा हो गया, मेरी साँसे रुकने सी लगी, उत्तेजना के कारण मेरे होंठों पर सिसकारियां उभर आई थीं,
बारी बारी से उन्होंने दोनों उरोजों को देर तक चुसा, होंठ दर्द करने लगे तो मुंह उठा कर मेरे चेहरे की ओर देखा,
” क्या हुआ,”मैंने मुस्कान बिखेरते हुए पुछा,
” तुम तो चुप पड़ी हो, कुछ ना कुछ तुम भी करती रहती तो मुझे विश्राम मिलता रहता, थक गया ना,”
मैं हंस दी ” आप मेरी बारी आने दें तब ना,”
इतना कहना था की उन्होंने मेरे बगल में हाँथ डाल कर अपने जिश्म से चिपका लिया और चित्त हो गये, मेरा समूचा जिश्म उनके उपर फ़ैल गया, आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | मेरे होंठ उनके होंठों से जा लगे, मैंने धीरे धीरे होंठों को हरकत दी और फिर सिसिया कर चूसने लगी,बीच बीच में मैं होंठों को दांतों तले दबा लेती तो वे पीड़ा से कसमसा उठते, चुंबन लेते हुवे मैंने अपनी कमर से निचे का भाग तिरछा करके उनके उपर से निचे उतार लिया, उनका गुप्तांग कपडों के बीच से झाँक रहा था, पहले तो मैनें उसे पकडा फिर छोड़ कर उन्हें निःवस्त्र करने लगी, कुल एक ही वस्त्र था उसे उतारते ही वे पुर्णतः निःवस्त्र हो गये, तब उनके होंठों पर से मुंह उठा कर मैनें लिंग का सम्पूर्ण दीदार किया और हाँथ से सहलाते हुवे जायजा लिया, मेरा अनुमान सही था, पापा जी के लिंग की लंबाई मेरे पति से ज्यादा थी, मोटा उतना ही था,
पापा जी ने पुछा ” इतने गौर से क्या देख रही हो?”
मैंने उनकी ओर देखे बिना ही जवाब दिया, ” आपका बहुत बड़ा है,”
” इससे भी बड़ा होना चाहिये, लिंग जितना ही लंबा और मोटा होता है, स्त्रियों को सम्भोग का उतना ही ज्यादा आनन्द और संतोष प्राप्त होता है, इसे देख कर घबराओ मत,”
कह कर उन्होंने मेरा मुखड़ा अपनी ओर खींच लिया, ” तुम चेहरा इधर तो रखो, बहुत सुन्दर हो, मुझे जी भर के देखने दो,”
उन्होंने मेरे चेहरे को हथेलियों में बाँध सा लिया, मुझे भी अपना रुप उन्हें दिखाने में आनन्द आ रहा था, उत्तेजना के कारण मेरी नाशिकाएं फुल और पीचक रही थी, चेहरा तमतमा गया था, जैसे सारे जिश्म का खून चेहरे पर ही जमा हो गया हो,
यह सब सही था तभी तो पापा जी ने थोडा तिरछा करके मेरा चेहरा झुकाया और गाल अपने होंठों पर रख लिया, उन छणों में मैं वास्तविक सम्बंध को एकदम भूल बैठी, मैं इस गुमान में बहुत खुश हो उठी थी की मेरा जिश्म और हुस्न मेरे एक मनपसंद पुरुष के आगोश में है, प्रभावित हो कर मैंने अपना गाल उठाया और उनके गाल पर रख कर चूमने लगी, आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | मेरी हिचक सहसा ही लुप्त हो गई, मैं उन्हें इस तरह प्यार करने लगी मानो वे मेरी पसंद के मनपसंद युवक हों, मैनें उनकी बाजुओं को चुमा, चौड़े सीने को बार बार चुमा, उसके बाद उनके वक्ष पर सीर टीका कर समर्पण कर दिया, आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | उनके हाँथ मेरे पेट की और तेजी से बढ़े, नाभी पर सहलाने के बाद पेटीकोट उतार दिया, मैं उनके सीने पर टिकी हुई थी, मेरी पीठ पर बाहों को कसा और अपने साथ साथ मुझे भी उठा कर खडा कर दिया, हम दोनों एकदम निःवस्त्र अवस्था में एक दुसरे की बाहों में बंधे खड़े थे, उनका कठोर लिंग मेरी नाभी से एक इंच निचे चुभ रहा था और मेरे दोनों उरोज उनके जिस्म से दबे हुवे थे, उन्होंने मेरी ठोढी को छुवा तो मैंने अपना मुखड़ा उपर की और उठा दिया, उन्होंने मेरे होंठों पर गहरा चुंबन अंकित कर के मुझे अपने से अलग कर दिया, वे मेरा निःवस्त्र बदन देखना चाहते थे, इसलिए स्वयं ही दो फुट पीछे सरक कर मेरे बदन का अवलोकन करने लगे, कुछ छण बाद वे बैठ गये फिर थोड़ा उठ कर उपर से निचे तक नजर दौड़ाने लगे, मेरे बदन ने उन्हें कितना प्रभावित किया यह उनके चेहरे पर स्पष्ट झलक रहा था,
मैनें मुस्कुरा कर पूछा ” मुझे शर्म लग रही है, बैठ जाऊं?”
उन्होंने बाहें फैला कर मेरा स्वागत किया, मैं झुक कर उनकी बाहों में गिर पड़ी, ठुनक कर बोली ” अब ज्यादा मत तडपाइये, मेरा दम घुट रहा है,”
कहानी जारी है…. आगे की कहानी पढ़ने के लिए निचे दिए गये पेज नंबर को क्लिक करे …..