प्रेषिका: नीतू
मैने बचपन से ही अपने मोम पापा का लंड-चूत का खेल चुप-चुपके से देखती थी जिसका कि मम्मी को नही पता था कि जब वो रोज़ पापा से चुदवाने जाती है और मैं देखती हू. जब में 15 साल की थी, तब मेरी चुचियो का साइज़ 34 था, लेकिन ग़रीबी की वजह से मैं ब्रा नही डाल सकती थी. मम्मी के पास भी सिर्फ़ 2 ब्रा थी जो की वो बाहर जाते वक़्त ही डालती थी. नही तो घर आते ही वो पहला काम यही करती थी की बाथरूम में जाकर वो अपनी ब्रा उतारती और सिर्फ़ सलवार कमीज़ मैं रहती थी या सिर्फ़ मॅक्सी (गाउन) ही डालती थी. घर पर डालने के लिए उन्होने पतला सा सूट रखा हुआ था. मेरी चूत मैं हमेशा ही खुजली होती रहती थी कि कोई पापा जैसे लंड मेरे भी चूत मैं डाल कर पूरी तरह अंदर बाहर करे जैसे मम्मी की चूत में मेरे पापाजी करते थे. मैं सोचने लगी कि क्यों ना पापा को ही अपनी ओर आकर्षित करूँ. मम्मी जब लोगों के घर में काम करने के लिए चली जाती , मतलब कि वो पापा को अपने काम पे जाने से पहले ही उठा जाती थी (मीन उनसे अपनी चूत की प्यास बुझा जाती थी) तो पापा जी उठकर नहा धो कर मेर हाथ से नाश्ता पानी करते थे. मैं सोचा कि पापा को मैं किस तरह से आकर्षित करूँ. उस दिन भी जब पापा को मम्मी उठाकर (सेक्स करके) गयी तो पापा सिर्फ़ लूँगी डाल कर ही उठ जाते थे, क्योंकि मम्मी सारे कपड़े उनके उतार देती थी, और नहाने के लिए फिर कपड़े उतारने पड़ते, इसलिया पापा सिर्फ़ लूँगी लाते थे, यह मैं पहले भी देख चुकी थी. लूँगी डालते हुए भी पापा का लंड किसी गधे या घोरे के लंड जैसे लटक जाता था, जैसे गधे या घोरा किसी गधि या घोरी से सेक्स करके फ्री हुआ हो. मेरे दिल में हुलचल होने लगी. मेने एक प्लान सोच लिया था. पापा जब अपने कमरे से बाहर आए तो मुझसे पूछा..नीता बेटी, नहाने के लिया पानी तैय्यर है? में…. हा पापा, मैं पानी रख दिया है पापा… ठीक है, नीता बेटे. मैने उस टाइम एक मम्मी का एक पुराना गाउन (मॅक्सी) डाली हुई थी, जो की कमर से कुछ फॅटी हुई थी. वो मॅक्सी इतनी मुझे ढीली थी कि मेरे मम्मे उसमे से साफ महसूस हो रहे थी. मॅक्सी इतनी ट्रॅन्स्परेंट थी कि मेरे मम्मे की अंगूर (निपल) और काले –काले घेरे (ब्लॅक ब्लॅक राउंड) भी दिखाई दे रहे थे. मैं जानबूझ कर गाउन के नीचे कोई पेंटी नही डाली थी. वैसे भी मेरे पास जो 1-2 पेंटी थी, वो पुरानी हो चुकी थी और मेरी चूत वाली जगह से फट चुकी थी. हमारा बाथरूम बिल्कुल छोटा था. बहुत मुश्किल से उसमे एक ही आदमी आ सकता था, वो सिर्फ़ नहाने के लिए पौडियों (स्टेर्स) के नीचे बनाया गया था. क्योंकि सर्दियों के दिन थे. मैने पानी गरम करके बाथरूम में एक बिग बर्तन में रख दिया था. पानी बहुत गरम था, जो कि मैने जान बूझ कर किया था. पापा जब नहाने के लिया बाथ रूम में गये तो देखा कि पानी से अभी भी भाप (धुआँ) निकल रहा है. पापा जब बाथरूम में आए. वो पानी से धुआँ (हीट) निकलती देख कर बोले .. पापा… नीता बेटे… लगता है पानी बहुत गरम है, ज़रा बाहर से पानी लाकर इसमे मिला दो, ताकि यह थोड़ा ठंडा हो जाए. में : अच्छा पापा में पानी लेकर आती हू. मेरे दिल जोरो से धड़क रहा था. मैं बर्तन मैं बहुत सारा पानी लेकर बाथरूम में चली गई. पापा ने अभी भी लूँगी पहनी हुई थी. में जब पानी से भरा बर्तन लेकर अंदर बाथरूम में गई तो पाप थोड़ा सा पीछे हट गये, ताकि मैं गरम पानी में ताज़ा पानी मिला सकू. में जानबूझ कर अपनी चूचियो (ब्रेस्ट्स) को उँचा उठा कर चल रही थी, जिससे मेरे मम्मे मेरी मम्मी के ढीले गाउन में से उभर कर दिखाई दे रहे थे और मेरे निपल भी अकड़ कर टाइट हो गये थे. मेरी नुकीली चूचियो (ब्रेस्ट्स) को देख कर पापा का लंड लूँगी में उपर नीचे होने लगा. मुझे पता था कि पापा कयी बार मम्मी को कह चुके थे की नीता को भी ब्रा ले कर दो, उसकी भी छातियाँ (चूंचियाँ) बड़ी होने लगी है. पापा का पूरा ध्यान मेरी छातियो की तरफ था. मैने चोर नज़रों से देख लिया था कि पापा का लंड उपर नीचे हो रहा था. और ठुमके लगा रहा था. मेरा दिल भी धक धक कर रहा था….आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | क्योंकि में आज कुछ ख़ास करने वाली थी… ताकि मेरी चूत की खारिश मिट जाए. पापा का ध्यान मेरे मम्मो की तरफ था, जबकि मेरा ध्यान पापा के मोटे डंडे (रोड) की तरफ था जो कि उपर नीचे हो रहा था… में नीचे झुक गयी और अपने चूतरो (हिप्स) उपर उठा दिया… और नीचे रखे बर्तन में पानी डालने लगी… मैने जानबूझ कर अपने चुतड़ो को पापा के लंड के पास टच कर दिया और ऐसे धीरे -2 से पानी डालने लगी, जैसे की मुझे महसूस ही ना हो रहा हो कि मेरे चूतर पापा के लंड को टच कर रहे हैं. मेरे चूतरो से टच होते ही पापा का लंड और भी टाइट हो कर सीधा रोड की तरह मेरे दोनो हिप्स के बीच की दरार में फिट हो गया. में बहुत धीरे-2 से पानी डाल रही थी, आज बड़ी मुश्किल से मौका मिला था, कुछ करने का, पता नही मेरे में कहाँ से इतनी हिम्मत आ गयी थी,
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