हाय मेरा नाम माहिरा है मै पाकिस्तान में रहती हूँ सेक्सी कहानियां पढ़ने और चुदवाने की शौक़ीन हूँ | मुझे ग्रुप चुदाई सबसे ज्यादा पसंद है | मेरी शादी हो चुकी है मेरे पति को भी मैंने अपने टाइप की बना ली हूँ | पहले मै अपने बारे में बता दूँ मेरी उम्र २८ साल है रंग गोरा बदन एकदम भरा हुआ | अगर वैसे देखेगे तो ३६-30-३८ का है अब तो आप समझ गये होंगे कितनी सेक्सी हूँ मै | मेरा निकाह मिकाल से 5 साल पहले हुआ था | मेरे शौहर एक बिज़नस मैंन है मेरे शौहर भी बहुत स्मार्ट है | मेरे शौहर मुझे बहुत प्यार करते है | मगर मेरी किसमत में सिर्फ एक आदमी का मोहब्बत नहीं लिखी हुई थी। मैं आज एक बच्चेै की माँ बनने वाली हूँ मगर मिकाल उसका अब्बा है कि नहीं, मुझे नहीं मालूम। खून तो शायद उन्ही की फैमिली का है मगर उनके वीर्य से पैदा हुआ या नहीं, इसमें शक है।
आपको ज्यादा बोर नहीं करते हुए मैं आपको पूरी कहानी सुनाती हूँ। कैसे एक सीधी साधी लड़की जो अपनी पढ़ाई खत्म करके किसी कंपनी में सेक्रेटरी के पद पर काम करने लगी थी, एक सेक्स मशीन में तबदील हो गयी। निकाह से पहले मैंने किसी से जिस्मानी ताल्लुकात नहीं रखे थे। मैंने अपने सेक्सी जिस्म को बड़ी मुश्किल से मर्दों की भूखी निगाहों से बचाकर रखा था। एक अकेली लड़की का और वो भी इस पद पर अपना कौमार्य सुरक्षित रख पाना अपने आप में बड़ी ही मुश्किल का काम था। लेकिन मैंने इसे मुमकीन कर दिखाया था। मैंने अपना कौमार्य अपने शौहर को ही सौंपा था। लेकिन एक बार मेरी चूत का बंद दरवाज़ा शौहर के लंड से खुल जाने के बाद तो पता नहीं कितने ही लंड धड़ाधड़ घुसते चले गये। मैं कईं मर्दों के साथ चुदाई का मज़ा ले चुकी हूँ। कईं लोगों ने तरह-तरह से मुझसे चोदा।
मैं एक खूबसूरत लड़की थी जो एक मीडियम क्लास फैमिली को बिलाँग करती थी। पढ़ाई खत्म होने के बाद मैंने शॉर्ट हैंड और ऑफिस सेक्रेटरी का कोर्स किया। कोर्स खत्म होने पर मैंने कईं जगह जॉब के लिए प्रयास किया | कंपनी एहसान इंडस्ट्रीज़ से पी-ए के लिये काल आया। इंटरव्यू में सेलेक्शन हो गया। मुझे उस कंपनी के मालिक मिस्टर खुशी इरफ़ान के पी-ए की पोस्ट के लिये सेलेक्ट किया गया। मैं बहुत खुश हुई। घर की हालत थोड़ी नाज़ुक थी। मेरी तनख्वाह गृहस्थी में काफी मदद करने लगी।
मैं काम मन लगा कर करने लगी मगर खुशी इरफ़ान जी कि नियत अच्छी नहीं थी। खुशीराम जी देखने में किसी भैंसे की तरह मोटे और काले थे। उनके पूरे चेहरे पर चेचक के निशान उनकी शख्सियत को और बुरा बनाते थे। जब वो बोलते तो उनके होंठों के दोनों किनारों से लार निकलती थी। मुझे उसकी शक्ल से ही नफरत थी। मगर क्या करती, मजबूरी में उसे झेलना पड़ रहा था।
मैं ऑफिस में सलवार कमीज़ पहन कर जाने लगी जो उसे नागवार गुजरने लगा। लंबी आस्तीनों वाली ढीली ढाली कमीज़ से उसे मेरे जिस्म की झलक नहीं मिलती थी ना ही मेरे जिस्म के तीखे कटाव ढंग से उभरते।
“यहाँ तुम्हें स्कर्ट और ब्लाऊज़ पहनना होगा। ये यहाँ के पी-ए का ड्रेस कोड है।” उसने मुझे दूसरे दिन ही कहा। मैंने उसे कोई जवाब नहीं दिया। उसने शाम तक एक टेलर को वहीं ऑफिस में बुला कर मेरे ड्रेस का ऑर्डर दे दिया। ब्लाऊज़ का गला काफी गहरा रखवाया और स्कर्ट बस इतनी लंबी कि मेरी आधी जाँघ ही ढक पाये। उसने शाम को मुझे चार हज़ार रुपये दिये और कुछ जोड़ी ऊँची हील के सैंडल खरीदने को कहा।
दो दिन में तीन-चार जोड़ी ड्रेस तैयार हो कर आ गये। मुझे शुरू में कुछ दिन तक तो उस ड्रेस को पहन कर लोगों के सामने आने में बहुत शरम आती थी। मगर धीरे-धीरे मुझे लोगों की नजरों को सहने की हिम्मत जुटानी पड़ी। ड्रेस तो इतनी छोटी थी कि अगर मैं किसी कारण झुकती तो सामने वाले को मेरे ब्रा में कैद बूब्स और पीछे वाले को अपनी पैंटी के जलवे करवाती।
मैं घर से सलवार कमीज़ में आती और ऑफिस आकर अपना ड्रेस चेंज करके ऑफिशल स्कर्ट ब्लाऊज़ और ऊँची हील के सैंडल पहन लेती। घर के लोग या मोहल्ले वाले अगर मुझे उस ड्रेस में देख लेते तो मेरा उसी पल घर से निकलना ही बंद कर दिया जाता। लेकिन मेरे पेरेंट्स पुराने खयालों के भी नहीं थे। उन्होंने कभी मुझसे मेरी पर्सनल लाईफ के बारे में कुछ भी पूछताछ नहीं की थी।
एक दिन खुशी इरफ़ान ने अपने केबिन में मुझे बुला कर इधर उधर की काफी बातें की और धीरे से मुझे अपनी ओर खींचा। मैं हाई हील सैंडल के कारण कुछ डिसबैलेंस हुई तो उसने मुझे अपने सीने से लगा लिया। उसने मेरे होंठों को अपने होंठों से छू लिया। उसके मुँह से अजीब तरह की बदबू आ रही थी। मैं एक दम घबरा गयी। समझ में ही नहीं आया कि ऐसे हालात का सामना किस तरह से करूँ। उसके हाथ मेरी दोनों चूचियों को ब्लाऊज़ के ऊपर से मसलने के बाद स्कर्ट के नीचे पैंटी के ऊपर फिरने लगे। मैं उससे अलग होने के लिये कसमसा रही थी। मगर उसने मुझे अपनी बाँहों में बुरी तरह से जकड़ रखा था। उसका एक हाथ एक झटके से मेरी पैंटी के अंदर घुस कर मेरी टाँगों के जोड़ तक पहुँच गया। मैंने अपनी दोनों टाँगों को सख्ती से एक दूसरे के साथ भींच दिया लेकिन तब तक तो उसकी अँगुलियाँ मेरी चूत के द्वार तक पहुँच चुकी थी। दोनों अँगुलियाँ मेरी चूत में घुसने के लिये कसमसा रही थी।
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मैंने पूरी ताकत लगा कर एक धक्का देकर उससे अपने को अलग किया और वहाँ से भागते हुए निकल गयी। जाते जाते उसके शब्द मेरे कानों पर पड़े, “तुम्हें इस कंपनी में काम करने के लिये मेरी हर इच्छा का ध्यान रखना पड़ेगा।”
मैं अपनी डेस्क पर लगभग दौड़ते हुए पहुँची। मेरी सांसें तेज़-तेज़ चल रही थी। मैंने एक ग्लास ठंडा पानी पीया। बेबसी से मेरी आँखों में आँसू आ गये। नम आँखों से मैंने अपना रेसिजनेशन लेटर टाईप किया और उसे वहीं पटक कर ऑफिस से बाहर निकल गयी। फिर दोबारा कभी उस रास्ते कि ओर मैंने पाँव नहीं रखे।
फिर से मैंने कईं जगह एपलायी किया। आखिर एक जगह से इंटरव्यू काल आया। सेलेक्ट होने के बाद मुझे सी-ई-ओ से मिलने के लिये ले जाया गया। मुझे उन्ही के पी-ए की पोस्ट पर अपायंटमेंट मिली थी। मैं एक बार चोट खा चुकी थी इसलिये दिल बड़ी तेजी से धड़क रहा था। मैंने सोच रखा था कि अगर मैं कहीं जॉब करुँगी तो अपनी इच्छा से, किसी मजबूरी या किसी की रखैल बन कर नहीं। मैंने सकुचाते हुए उनके कमरे में नॉक किया और अंदर गयी।
“यू आर वेलकम टू दिस फैमिली” सामने से आवाज आयी। मैंने देखा सामने एक ५७ साल का बहुत ही खूबसूरत आदमी खड़ा था। मैं सी-ई-ओ मिस्टर ताहिर अज़ीज़ खान को देखती ही रह गयी। वो उठे और मेरे पास आकर हाथ बढ़ाया लेकिन मैं बुत की तरह खड़ी रही। ये तहज़ीब के खिलाफ था। मैं अपने बॉस का इस तरह से अपमान कर रही थी। लेकिन उन्होंने बिना कुछ कहे मुस्कुराते हुए मेरी हथेली को थाम लिया। मैं होश में आयी। मैंने तपाक से उनसे हाथ मिलाया। वो मेरे हाथ को पकड़े हुए मुझे अपने सामने की चेयर तक ले गये और चेयर को खींच कर मुझे बैठने के लिये कहा। जब तक वो घूम कर अपनी सीट पर पहुँचे, मैं तो उनकी शराफत पर मर मिटी। इतना बड़ा आदमी और इतनी नेक शख्सियत। मैं तो किसी ऐसे ही एंपलायर के पास काम करने का सपना इतने दिनों से संजोय थी।
खैर अगले दिन से मैं अपने काम में जुट गयी। धीरे धीरे उनकी अच्छाइयों से रूबरू होती गयी। सारे ऑफिस के स्टाफ मेंबर उन्हें दिल से चाहते थे। मैं भला उनसे अलग कैसे रहती। मैंने इस कंपनी में अपने बॉस के बारे में उनसे मिलने के पहले जो राय बनायी थी उसका उलटा ही हुआ। यहाँ पर तो मैं खुद अपने बॉस पर मार मिटी, उनके एक-एक काम को पूरे मन से पूरा करना अपना इमान मान लिया। मगर बॉस था कि घास ही नहीं डालता था। आप यह हॉट हिंदी सेक्सी कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | यहाँ मैं सलवार कमीज़ पहन कर ही आने लगी। मैंने अपने कमीज़ के गले बड़े करवा लिये जिससे उन्हें मेरे दूधिया रंग के बूब्स दिखें। अब मैं काफी ऊँची हील के सैंडल पहनने लगी ताकि मेरी चाल में और नज़ाकत आ जाये और मेरा फिगर और भी उभर सके। बाकी सारे ऑफिस वालों के सामने तो अपने जिस्म को चुनरी से ढके रखती थी। मगर उनके सामने जाने से पहले अपनी छातियों पर से चुनरी हटा कर उसे जान बूझ कर टेबल पर छोड़ जाती थी। मैं जान बूझ कर उनके सामने झुक कर काम करती थी जिससे मेरी ब्रा में कसे हुए बूब्स उनकी आँखों के सामने झूलते रहें। धीरे-धीरे मैंने महसूस किया कि उनकी नजरों में भी बदलाव आने लगा है। आखिर वो कोई मौलवी तो थे नहीं और मैं थी भी इतनी सुंदर कि मुझसे दूर रहना एक नामुमकिन काम था। मैं अक्सर उन्हें सताने की कोशिश करने लगी। कभी-कभी मौका देख कर अपने बूब्स उनके जिस्म से छुआ देती।
मैंने ऑफिस का काम इतनी काबिलियत से संभाल लिया था कि अब ताहिर अज़ीज़ खान जी ने काम की काफी जिम्मेदारियाँ मुझे सौंप दी थी। मेरे बिना वो बहुत बेबस फ़ील करते थे। इसलिये मैं कभी छुट्टी नहीं लेती थी।
धीरे-धीरे हम काफी ओपन हो गये। फ्री टाईम में मैं उनके केबिन में जाकर उनसे बातें करती रहती। उनकी नज़र बातें करते हुए कभी मेरे चेहरे से फ़िसल कर नीचे जाती तो मेरे निप्पल बुलेट की तरह तन कर खड़े हो जाते। मैं अपने उभारों को थोड़ा और तान लेती थी।
उनमें गुरूर बिल्कुल भी नहीं था। मैं रोज घर से उनके लिये कुछ ना कुछ नाश्ते में बनाकर लाती थी और हम दोनों साथ बैठ कर नाश्ता करते थे। मैं यहाँ भी कुछ महीने बाद स्कर्ट ब्लाऊज़ में आने लगी और हाई-हील के सैंडल तो पहले से ही पहनने लगी थी। जिस दिन पहली बार स्कर्ट ब्लाऊज़ में आयी, मैंने उनकी आँखों में मेरे लिये एक तारीफ भरी चमक देखी।
मैंने बात को आगे बढ़ाने की सोच ली। कईं बार काम का बोझ ज्यादा होता तो मैं उन्हें बातों बातों में कहती, सर अगर आप कहें तो फाईलें आपके घर ले आती हूँ, छुट्टी के दिन या ऑफिस टाईम के बाद रुक जाती हूँ। मगर उनका जवाब दूसरों से बिल्कुल उलटा रहता।
वो कहते, माहिरा! मैं अपनी टेंशन घर ले जाना पसंद नहीं करता और चाहता हूँ कि तुम भी छुट्टी के बाद अपनी लाईफ इंजॉय करो। अपने घर वालों के साथ या अपने बॉयफ्रेंड्स के साथ शाम इंजॉय करो। क्यों कोई है क्या? उन्होंने मुझे छेड़ा।
आप जैसा हेंडसम और शरीफ़ लड़का जिस दिन मुझे मिल जायेगा, उसे अपना बॉय फ्रेंड बना लुँगी। आप तो कभी मेरे साथ घूमने जाते नहीं हैं। उन्होंने तुरंत बात का टॉपिक बदल दिया।
अब मैं अक्सर उन्हें छूने लगी। एक बार उन्होंने सिर दर्द की शिकायत की और मुझे कोई टेबलेट ले कर आने को कहा।
सर, मैं सिर दबा देती हूँ। दवाई मत लीजिये, कहकर मैं उनकी चेयर के पीछे आयी और उनके सिर को अपने हाथों में लेकर दबाने लगी। मेरी अँगुलियाँ उनके बालों में घूम रही थीं। मैं अपनी अँगुलियों से उनके सिर को दबाने लगी। कुछ ही देर में आराम मिला तो उनकी आँखें अपने आप मूँदने लगीं। मैंने उनके सिर को अपने जिस्म से सटा दिया। अपने दोनों उरोजों के बीच उनके सिर को दाब कर मैं उनके सिर को दबाने लगी। मेरे दोनों उरोज उनके सिर के भार से दब रहे थे। उन्होंने भी शायद इसे महसूस किया होगा मगर कुछ कहा नहीं। मेरे दोनों उरोज सख्त हो गये और निप्पल तन गये। मेरे गाल शरम से लाल हो गये थे।
बस अब काफी आराम है, कह कर जब उन्होंने अपना सिर मेरी छातियों से उठाया तो मुझे इतना बुरा लगा कि कुछ बयान नहीं कर सकती। मैं अपनी नज़रें जमीन पर गड़ाये उनके सामने कुर्सी पर आ बैठ गयी।
धीरे धीरे हम बेतकल्लुफ़ होने लगे। अभी छः महीने ही हुए थे कि एक दिन मुझे अपने केबिन में बुला कर उन्होंने एक लिफाफा दिया। उसमें से लेटर निकाल कर मैंने पढ़ा तो खुशी से भर उठी। मुझे पर्मानेंट कर दिया गया था और मेरी तनख्वाह डबल कर दी गयी थी।
मैंने उनको थैंक्स कहा तो वो बोल उठे, सूखे सूखे थैंक्स से काम नहीं चलेगा बेबी, इसके लिये तो मुझे तुमसे कोई ट्रीट मिलनी चाहिये।
“जरूर सर! अभी देती हूँ!” मैंने कहा।
क्या? वो चौंक गये। मैं मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहती थी। मैं झट से उनकी गोद में बैठ गयी और उन्हें अपनी बाँहों में भरते हुए उनके लिप्स चूम लिये। वो इस अचानक हुए हमले से घबरा गये।
माहिरा क्या कर रही हो? कंट्रोल योर सेल्फ। इस तरह जज़्बातों में मत बहो, उन्होंने मुझे उठाते हुए कहा, ये ठीक नहीं है। मैं एक शादीशुदा बाल बच्चेदार बूढ़ा आदमी हूँ।
क्या करूँ सर आप हो ही इतने हेंडसम कि कंट्रोल नहीं हो पाया, और वहाँ से शरमा कर भाग गयी।
जब इतना होने के बाद भी उन्होंने कुछ नहीं कहा तो मैं उनसे और खुलने लगी।
ताहिर जी! एक दिन मुझे घर ले चलो ना अपने, एक दिन मैंने उन्हें बातों बातों में कहा। अब हमारा रिश्ता बॉस और पी-ए का कम और दोस्तों जैसा ज्यादा हो गया था।
क्यों घर में आग लगाना चाहती हो? उन्होंने मुस्कुराते हुए पूछा।
कैसे?
अब तुम जैसी हसीन पी-ए को देख कर कौन भला मुझ पर शक नहीं करेगा।
चलो एक बात तो आपने मान ही ली आखिर।
क्या? उन्होंने पूछा।
यही कि मैं हसीन हूँ और आप मेरे हुस्न से डरते हैं।
वो तो है ही।
मैं आपकी वाईफ से और आपके बच्चों से एक बार मिलना चाहती हूँ।
क्यों? क्या इरादा है?
हम्म्म कुछ खतरनाक भी हो सकता है। मैं अपने निचले होंठ को दाँत से काटते हुए उठ कर उनकी गोद में बैठ गयी। मैं जब भी बोल्ड हो जाती थी तो वो घबरा उठाते थे। मुझे उन्हें इस तरह सताने में बड़ा मज़ा आता था।
देखो तुम मेरे बेटे से मिलो। उसे अपना बॉय फ्रेंड बना लो। बहुत हेंडसम है वो। मेरा तो अब समय चला गया है तुम जैसी लड़कियों से फ्लर्ट करने का…. उन्होंने मुझे अपनी गोद से उठाते हुए कहा, देखो ये ऑफिस है। कुछ तो इसकी तहज़ीब का खयाल रखा कर। मैं यहाँ तेरा बॉस हूँ। किसी ने देख लिया तो पता नहीं क्या सोचेगा कि बुड्ढे की मती मारी गयी है।
इस तरह अक्सर मैं उनसे चिपकने की कोशिश करती थी मगर वो किसी मछली की तरह हर बार फ़िसल जाते थे।
इस घटना के बाद तो हम काफी खुल गये। मैं उनके साथ उलटे सीधे मजाक भी करने लगी। लेकिन मैं तो उनकी बनायी हुई लक्ष्मन रेखा क्रॉस करना चाहती थी। मौका मिला होली को।
होली के दिन हमारे ऑफिस में छुट्टी थी। लेकिन फैक्ट्री बंद नहीं रखी जाती थी, कुछ ऑफिस स्टाफ को उस दिन भी आना पड़ता था। मिस्टर ताहिर हर होली को अपने स्टाफ से सुबह-सुबह होली खेलने आते थे। मैंने भी होली को उनके साथ हुड़दंग करने के प्लैन बना लिया। उस दिन सुबह मैं ऑफिस पहुँच गयी। ऑफिस में कोई नहीं था। सब बाहर एक दूसरे को गुलाल लगा रहे थे। मैं लोगों की नज़र बचाकर ऑफिस के अंदर घुस गयी। अंदर होली खेलना अलाऊड नहीं था। मैं ऑफिस में अंदर से दरवाजा बंद कर के उनका इंतज़ार करने लगी। कुछ ही देर में मिस्टर ताहिर की कार अंदर आयी। वो कुर्ते पायजामे में थे। लोग उनसे गले मिलने लगे और गुलाल लगाने लगे। मैंने गुलाल निकाल कर एक प्लेट में रख लिया और बाथरूम में जाकर अपने बालों को खोल दिया। रेशमी ज़ुल्फ खुल कर पीठ पर बिखर गयी। मैंने एक पुरानी शर्ट और स्कर्ट पहन रखी थी। स्कर्ट काफी छोटी थी। मैंने शर्ट के बटन खोल कर अंदर की ब्रा उतार दी और शर्ट वापस पहन ली। शर्ट के ऊपर के दो बटन खुले रहने दिये जिससे मेरे आधे बूब्स झलक रहे थे। शर्ट छातियों के ऊपर से कुछ घिसी हुई थी इसलिये मेरे निप्पल और उनके चारों ओर का काला घेरा साफ़ नज़र आ रहा था। उत्तेजना और डर से मैं मार्च के मौसम में भी पसीने-पसीने हो रही थी।
मैं खिड़की से झाँक रही थी और उनके फ्री होने का इंतज़ार करने लगी। उन्हें क्या मालूम था मैं ऑफिस में उनका इंतज़ार कर रही हूँ। वो फ्री हो कर वापस कार की तरफ़ बढ़ रहे थे। तो मैंने उनके मोबाइल पर रिंग किया।
सर, मुझसे होली नहीं खेलेंगे।
कहाँ हो तुम? माहिरा … आ जाओ मैं भी तुमसे होली खेलने के लिये बेताब हूँ, उन्होंने चारों तरफ़ देखते हुए पूछा।
ऑफिस में आपका इंतज़ार कर रही हूँ!
तो बाहर आजा ना! ऑफिस गंदा हो जायेगा!
नहीं! सबके सामने मुझे शरम आयेगी। हो जाने दो गंदा। कल करीम साफ़ कर देगा, मैंने कहा।
अच्छा तो वो वाली होली खेलने का प्रोग्राम है? उन्होंने मुस्कुराते हुए मोबाइल बंद किया और ऑफिस की तरफ़ बढ़े। मैं लॉक खोल कर दरवाजे के पीछे छुप गयी। जैसे ही वो अंदर आये मैं पीछे से उनसे लिपट गयी और अपने हाथों से गुलाल उनके चेहरे पर मल दिया। जब तक वो गुलाल झाड़ कर आँख खोलते, मैंने वापस अपनी मुठ्ठियों में गुलाल भरा और उनके कुर्ते के अंदर हाथ डाल कर उनके सीने में लगा कर उनके सीने को मसल दिया। मैं उनके दोनों सीने अपनी मुठ्ठी में भर कर किसी औरत की छातियों की तरह मसलने लगी।
ए..ए…. क्या कर रही है? वो हड़बड़ा उठे।
बुरा ना मानो होली है, कहते हुए मैंने एक मुठ्ठी गुलाल पायजामे के अंदर भी डाल दी। अंदर हाथ डालने में एक बार झिझक लगी लेकिन फिर सब कुछ सोचना बंद करके अंदर हाथ डाल कर उनके लंड को मसल दिया।
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ठहर बतता हूँ। वो जब तक संभले, तब तक मैं खिलखिलाते हुए वहाँ से भाग कर टेबल के पीछे हो गयी। उन्होंने मुझे पकड़ने के लिये टेबल के इधर उधर दौड़ लगायी। लेकिन हाई-हील पहने होने के बावजूद मैं उनसे बच गयी। लेकिन मेरा मक्सद तो पकड़े जाने का था, बचने का थोड़ी। इसलिये मैं टेबल के पीछे से निकल कर दरवाजे की तरफ़ दौड़ी। इस बार उन्होंने मुझे पीछे से पकड़ कर मेरी कमीज़ के अंदर हाथ डाल दिये। मैं खिलखिला कर हँस रही थी और कसमसा रही थी। वो काफी देर तक मेरे बूब्स पर रंग लगाते रहे। मेरे निप्पलों को मसलते और खींचते रहे। मैं उनसे लिपट गयी और पहली बार उन्होंने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिये।
मेरे होंठ थोड़ा खुले और उनकी जीभ को अंदर जाने का रास्ता दे दिया। कईं मिनट हम इसी तरह एक दूसरे को चूमते रहे। मेरा एक हाथ सरकते हुए उनके पायजामे तक पहुँचा और फिर धीरे से पायजामे के अंदर सरक गया। मैं उनके लंड की तपिश अपने हाथों पर महसूस कर रही थी। मैंने अपने हाथ आगे बढ़ा कर उनके लंड को थाम लिया। मेरी इस हरकत से जैसे उनके पूरे जिस्म में एक झुरझुरी सी दौड़ गयी। उन्होंने मुझे एक धक्का देकर अपने से अलग किया। मैं गर्मी से तप रही थी, लेकिन उन्होंने कहा, नहीं माहिरा! नहीं ये ठीक नहीं है।
मैं सर झुका कर वहीं खड़ी रही।
तुम मुझसे बहुत छोटी हो! उन्होंने अपने हाथों से मेरे चेहरे को उठाया, तुम बहुत अच्छी लड़की हो और हम दोनों एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त हैं।
मैंने धीरे से सर हिलाया। मैं अपने आपको कोस रही थी। मुझे अपनी हरकत पर बहुत शर्मिंदगी हो रही थी। मगर उन्होंने मेरी कश्मकश को समझ कर मुझे वापस अपनी बाँहों में भर लिया और मेरे गालों पर दो किस किये। इससे मैं वापस नॉर्मल हो गयी। जब तक मैं संभलती, वो जा चुके थे।
धीरे धीरे समय बीतता गया। लेकिन उस दिन के बाद उन्होंने मेरे और उनके बीच में एक दीवार बना दी।
मैं शायद वापस उन्हें सिड्यूस करने का प्लैन बनाने लगती लेकिन अचानक मेरी ज़िंदगी में एक आँधी सी आयी और सब कुछ चेंज हो गया। मेरे सपनों का सौदागर मुझे इस तरह मिल जायेगा, मैंने कभी सोचा ना था।
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