प्यारे दोस्तो, आप सभी को रिषभ आहुजा का प्यार भरा नमस्कार! मैं जो कहानी आप सभी को सुनाने जा रहा हूँ यह मेरे जीवन की एक सच्ची घटना है, केवल गोपनीयता की दृष्टि से नाम बदल दिये हैं मैंने! इस किस्से की शुरुआत तब हुई जब मैं चौबीस साल का छह फीट का एक बांका नौजवान था, मेरी शादी हुए एक साल हो चुका था, पर व्यापार के कारण मैं अपनी पत्नी से अलग नागपुर में रहता था। यहाँ मेरी गैस एजेंसी थी, कमाई बढ़िया थी। पत्नी के ज्यादा नजदीक मुझे घरवालों ने जान बूझकर नहीं जाने दिया था मगर कुदरत की दी हुई चीज से मैं हाथ से खेलकर खुश हो जाया करता था।
फ़िर भी एक अनबुझी आग अन्दर ही अन्दर भड़क रही थी, रोज रात को अश्लील किताबें पढ़ना और मोबाइल पर कहानी पढ़ना या मोबाइल पर ही इन्डियन पोर्न वीडियो देखना और मुठ मार कर सो जाना ही जिन्दगी बन गया था। उधर मेरी बीवी जो मुझसे ज्यादा कामातुर थी, वो परेशान रहती थी और मुझे रोज वहाँ लाने की जिद करती थी पर घरवालों के डर से न तो मैं कभी कुछ कह पाया न वो कुछ बोली।
पंद्रह दिन में एक बार पत्नी के पास जा पाता था, उस दिन रात भर चुदाई होती। यह हम दोनों की इच्छा थी कि जब तक साथ नहीं रहेंगे, तब तक बच्चा नहीं करेंगे।
अगले दिन अगले पंद्रह दिनों के बाद मिलने की आस में मुझे नागपुर वापस आना पड़ता! मेरे पड़ोस में एक पंजाबी परिवार रहता था, पूरा परिवार था, उनका होलसेल कपड़ों का व्यापार था, उस परिवार की सबसे छोटी बहू जानवी लगभग तीस साल की होगी, मगर लगती उम्र मुझसे छोटी थी और बला की खूबसूरत थी।
उसका पति सरोज बतीस साल का सेक्स में बहुत रूचि रखने वाला व्यक्ति था। यह बात अक्सर उसकी बातों से मालूम पड़ती थी जब वो सेक्स और रोमांच की बात खुलेआम करता था। उनके दो जुड़वाँ बच्चे हुए थे और वो अपने बाबा दादी के साथ उनके कमरे में रहते, सोते थे। इस कारण सरोज जानवी को अपने लिए पूरा वक़्त मिल जाता था। उनकी और मेरे मकान की छत मिली हुई थी इसलिए रात को हम लोग अपनी अपनी छत पर से गप्पें मार लेते थे। जब मैं घर से वापस आता था तो सरोज जानवी बड़ी बेबाकी से पूछ लेते थे कि खाट तोड़ी या नहीं? और मैं बस हंस कर रह जाता!
एक रात को वो दोनों ऊपर खाना खा रहे थे, मुझे देख कर मुझे जबरदस्ती बुला लिया, मैं छत कूदकर ही चला गया। उन्होंने मुझे अपने साथ खाने पर बिठा लिया।
हालाँकि मुझे बहुत संकोच हो रहा था क्योंकि भाभी केवल एक फ्रॉक पहने थी और सरोज लुंगी में था जिसे उसे घुटने के ऊपर बंधा था। भाभी के गोल गोल मम्मे साफ दिखाई दे रहे थे। मैं भी टी शर्ट और लोअर में था।
भाभी ने मुझे अपने पास बिठाया था, मेरी हालत ख़राब हो रही थी और लोअर में तम्बू बन चुका था। सरोज ने हंस कर कहा- कब तक मुठ मारता रहेगा, एक लोकल इंतजाम भी कर ले। मैं शर्मा गया भाभी के सामने। अब वो मेरे लोअर की ओर इशारा करके सरोज से बोली- रिषभ वाकयी बहुत परेशान है, कुछ तो तुम्हें इसके लिए करना चाहिए। इसका मन भी कैसे लगता होगा?
सरोज मस्ती में बोला- चल तेरा कुछ जुगाड़ करता हूँ… शाम को तू यहाँ आ जाया कर, एक एक पैग साथ लगाया करेंगे और तुझे मस्त वीडियो दिखाया करूँगा।
मैं समझ नहीं पा रहा था कि आज कामदेव मुझ पर मेहरबान क्यों हो रहे हैं। खाना खाकर सरोज ने लुंगी उठा कर मुँह पौंछा तो मैंने देखा कि उसका औजार बहुत बड़ा नहीं है।
मुझे झांकते देखकर भाभी बोली- यह क्या रिषभ, आदमी का क्या देखना, देखना है तो लड़की का देखो!
अब मेरी भी शर्म खुल चुकी थी, मैंने भी हंस कर कह दिया- कभी दिखवा दो। सरोज मस्ती के मूड में था, ये सुनते ही उसने कहा- ये कौन सी बड़ी बात है और जानवी की फ्रॉक पर झपट्टा मारकर उसे उठाने की कोशिश की। उसकी नीयत भांप कर जानवी हँसते हुए वहीं खाट पर गुल्टी खाकर मुड़ गई मगर इस कोशिश में उसकी फ्रॉक ऊपर उठ गई और जन्नत का नजारा मैंने कर लिया।
इस बात को सरोज ने नहीं देखा पर जानवी जान गई कि उसने मेरी चाहत पूरी कर दी है। अब मेरा जानवी को और उसका मुझे देखने का नजरिया बदल गया था। मैं भी हँसते हुए उनसे गुडनाइट बोल कर आ गया और दो बार जानवी की चूत का ख्याल करके मुठ मार कर सो गया। सुबह उठा तो सीधे छत पर गया पर जानवी कहीं दिखाई नहीं दी। नहा कर दुकान गया, मगर काम में मन नहीं लग रहा था। तभी मोबाइल बजा, दूसरी ओर जानवी थी, मेरी तो बज गई, आवाज नहीं निकल रही थी।
जानवी बोली- क्यों नाराज हो, अब तो तुम्हारी इच्छा पूरी हो गई।
मेरी तो जैसे जान में जान आई, मैंने विश करके थैंक्स बोला।
वो हंस कर बोली- बस इतना ध्यान रखना कि सरोज को कुछ पता नहीं।
वो बोली- वैसे तो सरोज बहुत खुले दिमाग का है, वो तो हरदम मुझसे कहता है कि बिना ब्रा के टॉप पहन कर घूमने चलो या रात को लॉन्ग फ्रॉक पहन लो जिसमें वो जब चाहे हाथ घुसा सके।
मैंने जानवी से यह वादा किया कि मैं सरोज को कुछ नहीं बताऊँगा। इसके बाद मेरी और जानवी की रोज तीन चार बार बातें होने लगी, हम बातों में खुलने भी लगे। दोस्तों आप ये कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है l
एक दिन वो मुझे बाजार में मिली। उसने अभी ख़रीदा ऑरेंज कलर का सूट दिखाया। वो गोरी थी, उस पर ये रंग फबेगा, ऐसा मैंने उससे कहा।
बाद में लेडीज शॉप से मैंने ऑरेंज कलर का अंडरगारमेंट्स सेट ख़रीदा। साइज़ पसंद करने में सेल्सगर्ल ने मेरी हेल्प की। इसके बाद मैंने कलर मैचिंग की नेलपालिश भी ली।
शाम को जानवी को फ़ोन किया कि तुम्हारे लिए एक रिटर्न गिफ्ट है।
वो बड़ी बेशर्मी से हंस कर बोली- क्या अपना दिखाओगे रिटर्न में?
मैंने कहा- वो तो कभी भी देख लेना, आज तो भाभी कुछ खास लाया हूँ तुम्हारे लिए!
वो इतरा कर बोली- मुझे भाभी मत बोला करो, नाम लिया करो।
मैंने कहा- सरोज भैया बुरा मान गए तो?
वो बोली- उन्हें किसी चीज का बुरा नहीं लगता, जब तक मैं खुश हूँ।
मैंने भी बेशर्म होकर पूछ ही लिया- अच्छा और किस चीज का उन्हें बुरा नहीं लगेगा जिसमें आप खुश हो? वो मेरा मतलब समझ गई, हंस कर बोली- पहले मुझे खुश तो करो!
मैंने उससे पूछा- गिफ्ट कैसे दूँ आपको? वो अब तक मजाक समझ रही थी।
जब मैंने कहा- कुछ लिया है तुम्हारे लिए!
तो वो बोली- छत पर रख दो। मैं दुकान नौकर पर छोड़ कर घर गया और उसकी छत पर पैकेट रख आया। उतरते समय मैंने देख लिया कि वो छत पर आ गई थी।
मैं दुकान पर धड़कते दिल से आकर बैठ गया, इंतज़ार करने लगा उसके फ़ोन का मगर उसका कोई फ़ोन नहीं आया। ]मेरे को घबराहट होने लगी कि मैंने कितनी बड़ी गलती कर ली!
रात को घर पहुँचा तो उसके मकान की तरफ देखने की भी हिम्मत नहीं हुई। नहा कर खाना खाने होटल भी नहीं गया, डर रहा था कि सरोज के घर आने पर वो उससे शिकायत करेगी। पता नहीं सरोज क्या करेगा।
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