प्रेषक: राहुल
हेल्लो दोस्तों कैसे हो आप सब आज मै भी अपनी कहानी भेज रहा हु पर कहानी का असली मज़ा लेने के लिए अपने अपने सामान पर हाथ रख ले तभी कहानी पढने का असली मज़ा आएगा | वैसे तो आप लोग मुझे जानते ही होगे पर कुछ भाई लोग मुझे नही जानते होगे सो फिर से बता देता हु मेरा नाम राहुल है | और मैंने मस्ताराम पे ढेर सारी कहानीया लिखी है | मेरी हाईट ५.८” है.. मेरी उम्र २५ है और दिखने में बहुत ही सेक्सी और आकर्षक लगता हूँ | मेरे लंड का नाप ६.५ इंच का है। मुझे सिर्फ़ चुदी-चुदाई आंटियों में ही मजा आता है, मुझे लड़कियों में ज़रा भी मजा नहीं आता है। यह बात करीब डेढ़ साल पहले की है, मैं जॉब के लिए मुंबई गया था। मैं वहाँ पर मेरे एक रिश्तेदार के करीबी दोस्त के यहाँ रहने के लिए गया.. उनके यहाँ एक कमरा खाली था। जब मैं उनके घर पहुँचा तो संजय अंकल ने दरवाजा खोला.. संजय अंकल की उम्र ५५-५६ वर्ष की थी। मैं उनसे नमस्ते करके अन्दर गया.. उनसे थोड़ी देर बातचीत की। इतने में संजीता आंटी चाय लेकर आईं। मैं उनको देखते ही रह गया.. क्या आइटम और माल दिखती थीं.. 38-३२-38 के उनके जिस्म के कटाव को देख कर किसी का भी कलेजा हलक में आ जाए.. उनकी उम्र जरूर ४४ की थी.. लेकिन वे ३२ की लगती थीं। उनके उठे हुए चूतड़ वाली गाण्ड बहुत ही मादक और कामुक लगती थी। जब वो चलती थी.. तो उनके दोनों चूतड़ थिरकते थे.. थिरकते चूतड़ों को देख कर यूँ लगता था कि अभी उठूँ और लवड़ा उनकी गाण्ड में ठूंस दूँ। उनका दो मंज़िला मकान था.. ग्राउंड फ्लोर पर वो रहते थे और ऊपर एक कमरा खाली पड़ा था.. उनके घर में वो दो ही लोग रहते थे.. उनकी एक बेटी थी.. जिसकी शादी हो चुकी थी। अंकल एक कंपनी में काम करते थे.. वे सुबह 9 बजे निकलते और शाम को 6 बजे वापस आते थे। मैं भी एक कंपनी में काम करता था और सुबह 10 बजे निकलता था और शाम को 7 बजे आता था। मैं शाम को बाहर खाना ख़ाता था। थोड़े दिनों बाद हम घुलमिल गए और आंटी और अंकल मुझे अपने घर का ही सदस्य समझते थे। मैं भी उनके हर काम में मदद करता था। मुझे बाहर के खाने से थोड़ी दिक्कत हो रही थी.. इसलिए आंटी के मुझे शाम का खाना अपने साथ ही खाने को कहा। जब ही मैं टीवी देखता या खाना खाने जाता तो आंटी की गाण्ड और मम्मों को घूरता रहता था। आंटी ने मुझे कई बार देखते हुए देखा भी था | लेकिन उन्होंने कभी भी कुछ नहीं कहा। आंटी मुझे इतनी मस्त लगती थीं कि मैं उनके नाम की मुठ भी मार लेता था। वहाँ पर घर के पीछे एक ही बाथरूम था.. मुझे वहीं जाना पड़ता था। एक दिन मैं सुबह नहा रहा था.. मुझे पूरा नंगे होकर नहाने की आदत है और मैं दरवाजे की सिटकनी बन्द करना भूल गया था। आंटी कुछ काम से आईं और दरवाजा खोल दिया.. मैं उनके सामने नंगा खड़ा था वो मुझे और मेरे लंड को घूर रही थीं। मैंने झट से दरवाजा बंद कर दिया। उस दिन से आंटी का बर्ताव कुछ बदल गया था। जब मैं नीचे आता तो वो मुझे अलग नज़र से देखतीं और नॉटी स्माइल देतीं.. लेकिन मेरी कभी कुछ भी करने की हिम्मत नहीं हुई। एक दिन में काम से लौटा तो आंटी ने मुझे बताया कि अंकल काम की वजह से देर से आने वाले हैं। मेरे मन में एक ख़याल आया और मैं नहाने के लिए चला गया और आंटी को चोदने का प्लान बनाने लगा। मेरा लंड खड़ा हो गया था… बाथरूम से आकर वैसे ही मैं तौलिया लपेट कर जानबूझ कर आंटी के सामने से होता हुआ कमरे में आ गया। आप यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | आंटी मेरे पीछे-पीछे आ गईं.. जब वो कमरे में आईं तो मैंने अपना तौलिया गिरा दिया और ऐसे दिखाया कि गलती से निकल गया हो। वो मेरे खड़े लंड को तीखी नज़रों से देख रही थीं और शर्माते हुआ भागीं। उस रात मैं करीब 10 बजे टीवी देख रहा था.. तब आंटी मेरे पास आकर बैठ गईं और मुझसे पूछने लगीं- तुम्हारी कोई गर्ल-फ्रेण्ड है? मैंने कहा- नहीं.. उन्होंने पूछा- मैं तुम्हें कैसी लगती हूँ? मैंने कहा- आप मुझे बहुत अच्छी लगती हो। तब वो मेरे और करीब आकर बैठ गईं और मेरे लंड को पैन्ट के ऊपर से ही सहलाने लगीं। मेरा लंड कड़ा हो गया.. मैं भी अपना संयम खोने लगा और आंटी को बाँहों में भर लिया। मैंने अपने होंठों को उनके होंठों पर रख दिए और मैं उन्हें मस्ती से चूमने लगा.. तभी दरवाजे की घन्टी बजी और हम अलग हो गए.. बाहर अंकल आ गए थे। फिर हम सब खाना खाने बैठ गए.. आंटी मेरी तरफ़ कामुक नजरों से देख रही थीं और टेबल के नीचे से मेरे पैर को अपने पैर से सहला रही थीं। मैं डर गया और पैर पीछे कर लिया। ख़ाना खाने के बाद हम टीवी देख रहे थे करीब ११ बजे में और अंकल सोने के चले गए.. लेकिन आंटी अभी भी टीवी देख रही थीं। मुझे नींद नहीं आ रही थी.. मेरी नज़रों के सामने आंटी ही घूम रही थीं। करीब 12 बजे होंगे.. मेरी आँख लगने ही वाली थी | तभी दरवाजे पर एक मद्धिम सी आवाज आई.. मैंने दरवाजा खोला तो देखा कि आंटी खड़ी थीं। वो झट से अन्दर आईं और मेरे ऊपर भूखी शेरनी की तरह टूट पड़ीं.. वो मेरे कपड़े उतारने लगीं और मुझे चूमने लगीं। मैंने भी उनको कस कर पकड़ लिया और चुम्बन करने लगा। उनको अपनी बाँहों में भरे हुए उनको बेतहाशा चूमते हुए ही मैंने दरवाजे की सिटकनी लगा दी। फिर अपने दोनों हाथ उनकी गाण्ड के ऊपर फेरने लगा। करीब 5 मिनट तक हम दोनों चूमा-चाटी करते रहे और मैंने जी भर के उनकी गाण्ड और मम्मों को दबाया। मैंने उनकी साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट और ब्रा-पैन्टी उतार फेंकी.. अब हम दोनों नंगे खड़े थे। मैंने उन्हें गोद में उठाया और बिस्तर पर ले गया और बिस्तर पर लिटा कर उनकी टाँगें फैला दीं और चूत चाटने लगा। वो सिसकारियाँ ले रही थीं। ‘आआअहह…’ मैं भी जोश में आ गया था। मैंने अपनी जीभ चूत में घुसेड़ दी.. आप यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | उसके मुँह से लगातार सीत्कार निकल रही थीं। ‘आहह..आअ… राहुल और प्यार करो मुझे जी भर के… चूसो.. अपना लंड घुसेड़ दो.. मेरी चूत में..’ अब मैंने अपना लंड उनके मुँह में दे दिया.. वो उसे चॉकोबार की तरह चूस रही थीं। मैं उनके मम्मों को दबा रहा था। मैंने उनको झुका कर गाण्ड मेरी तरफ़ करके उनके हाथों को बिस्तर पर रख कर खड़ा किया और लंड गाण्ड में घुसेड़ दिया। ‘आआहह… आआआ…’ वो बोल रही थी- ज़रा धीरे.. गाण्ड फाड़ दोगे क्या…? दस मिनट तक उनकी गाण्ड मारने के बाद मैंने लंड बाहर निकाला और उनकी चूत पर लौड़े को टिका दिया और जोर का धक्का ठेल दिया.. लंड ‘पक्क’ से अन्दर चला गया और मैं आगे-पीछे करने लगा। कुछ ही पलों में आंटी अकड़ गईं और झड़ गईं.. थोड़ी देर बाद मैं भी झड़ने वाला था.. तो मैंने लंड बाहर निकाल लिया और उसके मम्मों पर माल पोत दिया। चुदाई के बाद हम दोनों ही थक गए थे करीब 15 मिनट हम वैसे ही लेटे रहे। फिर उसने मुझे बताया- जब से मुझको बेटी हुई है.. तब से अंकल का चुदाई में मन कम हो गया था और हमें चुदाई किए कई बरस हो गए.. आज तुमने मेरी प्यास बुझा दी। मुझे उनके चेहरे पर एक अलग ही तेज दिखाई दे रहा था। रात को करीब ३ बजे वो मुझे चूम कर चली गईं। इसके बाद जब भी मौका मिलता है.. हम खूब चुदाई करते हैं.. मैंने उनको अलग-अलग तरीकों में खूब चोदा है। कहानी कैसी लगी मुझे ईमेल कर सकते है | [email protected]