मेरा नाम रमेश है और मेरी उम्र २८ वर्ष है। मेरा कद ५ फीट ७ इंच और मेरा रंग गोरा है। देखने में बहुत स्मार्ट हूँ क्योंकि जिम में जाने की वजह से मेरा शरीर भी एकदम गठीला हो गया है। मेरे डोले १७ इंच के है और छाती ४५ इंच की है। इतनी जानकारी से मेरे व्यक्तित्व एवं शख़्सियत का अंदाजा तो अब आप खुद ही लगा सकते हैं।
मेरी दीदी निशा और पड़ोसन निधि द्वारा मेरी वर्षगाँठ और उसके बाद के दस दिन तक तोहफे में मुझे बहुत सेक्स दिया। दस दिनों के बाद दीदी तो अपने घर राजगढ़ चली गई और मेरे साथ सेक्स करने के लिए सिर्फ निधि ही रह गई थी! निधि और मैं लगभग अगले डेढ़ वर्ष तक जब भी हमें मौका मिलता था हम सेक्स करते थे और एक दूसरे को संतुष्ट करके दोनों बहुत ही खुश थे! उन दिनों जब भी निधि के पति किसी काम से शहर से बाहर जाते थे तब मैंने पूरी रात उसके ही घर में ही सोता था और उसे खूब चोदता था!
ऐसी ही एक रात को जब निधि के पति तीन दिनों के लिए शहर से बाहर गया हुआ था तब उसके घर में मेरे साथ सेक्स करते हुए उसने बताया कि उसके पति का स्थानान्तरण जयपुर में हो गया था और वह कुछ ही दिनों में राजस्थान से जयपुर चली जायेगी।
उस रात के बाद अगले पन्द्रह दिन तक निधि ने हर रोज़ पति के जाने के बाद दिन के समय या फिर शाम को उनके वापिस आने से पहले मेरे साथ सेक्स ज़रूर करती थी। जयपुर जाने से पहले वह मुझे अपन पता भी दे गई थी और कह गई थी कि जब भी उसके पति शहर से बाहर जायेंगे वह मुझे फ़ोन कर के बुला लेगी लेकिन अफ़सोस आज तक उसका फोन नहीं आया है।
निधि के जाने के बाद अगले छह माह तक मैं बिल्कुल अकेला ही रहा और अपना हाथ जगन्नाथ के सहारे अपनी इच्छाएँ एवं ज़रूरतें पूरी करता था। बीच बीच में तीन-चार दिनों के लिए जब भी निशा आती थी तब वह अपने वादा निभाती थी और उन तीन या चार दिन एवं रातों में अनेक बार मेरी वासना की संतुष्टि करती थी।
पुरानी बीती बातों में उलझा कर मैं आपका अधिक समय बर्बाद नहीं करते हुए आपको उस घटना का विवरण बताना चाहूँगा जो मेरे साथ तीन वर्ष पहले घटी थी।
तब मैं अपने पड़ोस में रहने वाली अपनी शिष्या रेश्मा के साथ सेक्स किया था, उस घटना के समय रेश्मा की उम्र १८ वर्ष थी और वह शाम सात बजे से आठ बजे के बीच में मुझसे विज्ञान पढ़ने के लिए मेरे घर पर आती थी।
रेश्मा की सुन्दरता और शरीर के बारे में कुछ भी कहने के लिए तो मेरे पास शब्द ही नहीं हैं, वह तो एक अप्सरा थी जिसके शरीर का पैमाना था 36-26-36 और जब वह चलती है तो मानो क़यामत आ जाती है। उसका रंग गोरा और चेहरा अंडाकार है तथा नैन नक्श बहुत ही तीखे हैं! ऐसा लगता है कि वह किसी प्रख्यात मूर्तिकार की एक उत्कृष्ट रचना है। आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | रेश्मा एक उच्च-माध्यमिक स्कूल मैं 10+2 के अंतिम वर्ष में पढ़ती थी और प्रथम तिमाही परीक्षा में विज्ञान के विषये में उसके अंक कम आने के कारण वह बहुत ही चिंतित रहती थी। उसने अपनी चिंता को अपनी माँ के द्वारा मेरी माँ के साथ साझा करी और मेरी माँ से अनुरोध किया कि वह मुझे कह कर रेश्मा को विज्ञान के विषय में पढ़ा दिया करूँ!
माँ ने रेश्मा की माँ की बात सुन कर उन्हें आश्वासन दे कर भेज दिया और सांझ के मेरे से इस बारे में सारी बात बताई! जब माँ ने मुझ पर रेश्मा को पढ़ाने के लिए दबाव डाला तब मुझे उनकी आज्ञा माननी पड़ी और मैंने उनसे कह दिया कि शाम को ऑफिस से वापिस आने के बाद सात बजे से आठ बजे के बीच में ही उसे पढ़ा पाऊंगा।
अगले दिन से माँ के बताये समय पर रेश्मा हमारे घर आई तो माँ उसे लेकर उपरी मंजिल में मेरे कमरे में ले कर आई और मुझसे परिचय कराया।
माँ के जाने के बाद मैंने रेश्मा से लगभग एक घंटे तक उसकी पढ़ाई और स्कूल के बारे में पूछताछ की तथा विज्ञान में उसे क्या आता है और क्या नहीं आता इसके बारे में जानकारी ली।
फिर अगले दिन मैंने उसे क्या पढ़ाना है उसके बारे में तैयारी करके आने के लिए कह कर घर भेज दिया।
उस दिन के बाद रेश्मा रोजाना शाम सात बजे मेरे कमरे में आ जाती और मुझसे आठ बजे तक पढ़ती और फिर अपने घर चली जाती।पहले दस दिन तक तो वह उस एक घंटे में वह मुझ से बहुत ही संकोच से बात करती थी लेकिन आहिस्ता आहिस्ता उसका संकोच दूर हो गया और वह मुझ से खुल कर बात करने लगी।
एक दिन उसने मुझे यह कह कर मेरा मोबाइल नंबर माँगा कि अगर वह किसी कारणवश किसी दिन पढ़ने के लिए आने को असमर्थ होगी तो वह मुझे पहले ही मेरे मोबाइल पर बता देगी।
मैंने उसकी बात को उपयुक्त समझते हुए उसे अपना नंबर दे दिया तो उसने मेरे मोबाइल पर मिस्ड-काल दे कर अपना नंबर मुझे दे दिया। आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | अगले दिन से रोजाना सुबह सुबह छह बजे मेरे फ़ोन पर उसके शुभ-प्रभात के और रात को दस बजे शुभ-रात्रि के सन्देश आने लगे, मैं भी उसे उन संदेशों क उत्तर शुभ-प्रभात तथा शुभ-रात्ति लिख कर भेज देता। धीरे-धीरे वह संदेशों के बदले मुझसे फ़ोन पर शुभ-प्रभात और शुभ-रात्रि कहने लगी और इस तरह हम दोनों की बातचीत का सिलसिला भी शुरू हो गया! पहले तो हम दोनों की सामान्य बातें ही होती थी लेकिन बाद में यह सामान्य बातें सेक्स की तरफ बढ़ने लगी। पढ़ाई के समय तो वह पूरा ध्यान लगा कर पढ़ती और कोई इधर उधर की बात नहीं करती लेकिन उसके घर पहुँचते ही हम दोनों देर रात तक अश्लील बातें करने लगते। जैसे मैं उसे कहता– मुझे तुम्हारा दूध पीने का मन हो रहा है!
तब वह कहती- ज़रूर पिलाऊंगी, लेकिन पहले तुम्हें मुझे अपना मक्खन खिलाना पड़ेगा!
कभी कभी वह कहती- मेरी शर्मगाह में बहुत आग लगी हुई है!
तब मैं उसे उत्तर दे देता- मैं अपनी नली को तुम्हारी शर्मगाह के अन्दर डाल कर उस आग को बुझा दूंगा!
कुछ ही दिनों के बाद रेश्मा ने अधिक अश्लील हो कर लिखा- तुम्हारा लंड कितना लम्बा है?
तब मैंने भी लिख दिया- मुझे उसे नापना नहीं आता, क्या तुम अपनी बिना दांतों वाले मुँह में डलवा कर उसे नाप दोगी?”
उसका जवाब आया- क्या तुम्हारे लंड ने अभी तक किसी चूत में डूबकी नहीं लगाई है?
मेरा उत्तर था- नहीं, अभी तक डुबकी नहीं लगाई है, अगर लगाई होती तो तुम्हें नाप ज़रूर बता देता!!
फिर उसने प्रश्न किया- तुम मेरी चूत में डुबकी कब लगाओगे, मुझे काफी दिनों से उसमें खुजली हो रही है!
उस समय मुझे आगे बात बढ़ाना ठीक नहीं लगा इसलिए मैंने कोई उत्तर नहीं दिया और फ़ोन काट दिया। उसकी बातों पर विचार करने के बाद मुझे विश्वास हो गया था कि आग दोनों तरफ लगी हुई है और रेश्मा मुझसे भी अधिक आतुर थी मेरे नीचे लेटने को ! आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | हम दोनों ही एक दूसरे में समाने के लिए बेताब हो रहे थे क्योंकि मेरे और उसके दिन अपना हाथ जगन्नाथ करते करते कट रहे थे! अक्सर सेक्स की बातें करते करते हम दोनों कब झड़ जाते पता ही नहीं चलता था।
करीब चार महीनों तक हम दोनों के बीच में ऐसे ही बातचीत चलती रहा क्योंकि हमें हम-बिस्तर होने के लिए कोई जगह नहीं मिल रही थी। रेश्मा को मेरा कमरा पढ़ाई का मंदिर लगता था और घर में दूसरी जगह सुरक्षित नहीं थी। रेश्मा की उम्र भी छोटी होने के कारण मैं उसे कहीं बाहर ले जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था!
कहते है कि किसी भी काम में देर हो सकती है परन्तु अंधेर नहीं हो सकता है, और यह भी कहते हैं कि जब मिलता है तो छप्पर फाड़ कर मिलता है। ऐसे ही कुछ दिन हमें भी मिल गए क्योंकि मेरे नाना जी को दिल का दौरा पड़ने से हस्पताल में भरती कर दिया गया! माँ और पापा को उनको देखने के लिए जाना पड़ा और चार दिनों के लिए मेरे घर अन्य कोई नहीं था। रेश्मा तो मुझे डुबकी लगवाने के लिए पहले से ही बहुत आतुर थी इसलिए जब मैंने उसे बताया कि चार दिनों के लिए मेरे घर में कोई भी नहीं होगा तो वह ख़ुशी के मारे नाचने लगी।
हम दोनों द्वारा बनाई योजना के अनुसार रेश्मा ने अपने माँ से कह दिया कि अगले सप्ताह उसके कक्षा टेस्ट है इसलिए उनकी तैयारी करने के लिए उसे अगले चार दिन शाम छह बजे से आठ बजे तक पढ़ने के लिए जाना पड़ेगा।
और फिर रेश्मा ने माँ से अनुमति लेकर उसी दिन शाम छह बजे मेरे घर पहुँच गई।
रेश्मा को शायद हम-बिस्तर होने की अधिक जल्दी थी क्योंकि जब मैंने उसे पढ़ने के लिए ऊपर कमरे में चलने के लिए कहा तो वह मुँह बनाने लगी। आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
मैंने उसे समझाया कि पहले पढ़ाई करेंगे और उसके बाद मौज-मस्ती ! अगर पहले मौज-मस्ती करेंगे तो फिर थकान के कारण पढ़ाई में मन नहीं लगेगा और कुछ समझ भी नहीं आएगा।
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