बंबई का बाबू गुजराती छोरी लायो रे !
बंबई का बाबू गुजराती छोरी लायो रे |
कच्चे उसके ताल-कटोरे, खोल के देखा उसने चोली
मसल के गूँधा, गूँध के मसला मुंह में भर ली मीठी निंबोली
कसी हुई सँकरी खटिया पर मचक-मचक मचकायो रे |
बंबई का बाबू . . .
कस ली ज़ीन, चढ़ गयो घोड़ी ; खींच लगाम मार दियो एड़ी
चारों खाने चित्त पटक दी, धचक-धचक धचकायो रे |
बंबई का बाबू . . .
लाल-भभक था उसका लौड़ा, मस्त कलंदर लंबा चौड़ा
भगनाशा – बच्चेदानी तक सरपट चू त में घोडा दौड़ा
कर डाली बेहोश छुकरिया, घुसड़-फुसड़ चोदायो रे |
बंबई का बाबू . . .
‘ बोल छबीली, तेरा भी मन है?’ ”लेकिन मुझको लागे शरम है”
‘अरे, लजीली| एक बार कह– ”लग-लग लंड लड़ायो रे” ||||