मस्ताराम की स्टोरी पढ़ भाभी बन गई चुदासी

घर में हम तीन लोग ही रहते थे- मैं, मेरी भाभी और भैया। मेरा अधिकतर समय कॉलेज में या खेलने कूदने में ही निकलता था। मेरा एक दोस्त उस समय एक छोटी सी दुकान से अश्लील पुस्तकें लाया करता था। वो किताब उसने मुझे भी पढ़ने दी। धीरे धीरे मुझे सेक्स की उन अश्लील किताबों को पढ़ने मे मजा आने लगा था। उस मित्र ने उस दुकान वाले से मेरी जान पहचान करवा दी थी। अब मैं भी, जब पैसे होते थे, तब पढ़ने को पुस्तक ले आया करता था। पढ़ते समय ज्यादातर मेरा लण्ड खड़ा हो जाया करता था।

एक बार रात को जब मैं पुस्तक पढ़ रहा था तब मेरा लण्ड खड़ा हुआ था। अनजाने में मेरा हाथ लण्ड पर आ गया और मैंने उसे दबा डाला। फिर मुझे उसे ऊपर नीचे करने में मजा आने लगा। तभी मेरे लण्ड में से जोर से कुछ गाढ़ा सा सफ़ेद लसलसा सा छूट पड़ा।

मैं हैरान रह गया… पर पुस्तक में पढ़ा था कि जब जोर की मस्ती चढ जाती है तो वीर्य स्खलित हो जाता है। यह मेरा प्रथम स्खलन था। मैंने जल्दी से जाकर अपनी चड्डी बदल ली। पर भूल गया कि भाभी इसे कपड़े धोते समय धोएंगी। भाभी ने उसे अवश्य देखा होगा धोते समय क्योंकि अब भाभी मुझ पर नजर रखने लग गई थी।

एक दिन भाभी ने झिझकते हुये मुझसे कह ही दिया,”भैया, आजकल आप बिगड़ते जा रहे हो।”

“न…न… नहीं तो भाभी … क्या हो गया ?”

“आजकल आप चड्डी बहुत बदलते हो…”

मैं बुरी तरह से हड़बड़ा गया,”वो भाभी, आजकल जाने कैसे, कुछ हो जाता है और…!”

“चड्डी बदलनी पड़ती है, है ना? ऐसी पुस्तकें पढ़ोगे तो यह सब होगा ही…”

इसका मतलब भाभी ने मेरी अनुपस्थिति में मेरे बिस्तर के नीचे से वो अश्लील पुस्तकें ढूंढ ली थी और उसे पढ़ा था।

“वो … मेरा दोस्त है ना … उसने पढ़ने को दी थी।”

“अब नहीं लाते हो क्या?”

“जी… मेरे पास पैसे नही रहते ना…” मुझे भाभी का यह पूछना कुछ सकारात्मक सा लगा।

“ओह हो … बस पैसे की बात थी … मेरे से ले जाया करो… मुझे भी ये पुस्तकें अच्छी लगती हैं।”

यह सुनते ही मेरी तो बांछें खिल गई,”आप पढ़ेंगी ? भैया को मत बता देना… !”

अब तो रोज मैं अश्लील कहानी की पुस्तकें लाने लगा। भाभी उसे दिन में पढ़ती थी और मैं रात को पढ़ता था। अब भाभी मुझे भैया से छुपा कर ज्यादा जेब खर्च देने लगी थी।

उन्हीं दिनों मेरे उसी मित्र ने मुझे बताया कि अब पैसे खर्च करने की जरूरत नहीं है, ये तो कम्प्यूटर में मस्ताराम डॉट नेट में फ़्री में पढ़ने को मिल जाया करती हैं। तब मैं ये कहानियाँ मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ने लगा। भाभी को भी मैंने मस्ताराम डॉट नेट के बारे में बता दिया।

इसमें कहानी पुस्तकों से बहुत अच्छी पढ़ने को मिलती थी, मजा भी खूब आता था। अब तो बस जब इच्छा हुई, कहानी पढ़ ली। बस मजे की बात यह हुई कि भाभी को कहानियाँ पढ़ने के लिये मेरे कमरे में आना पड़ता था। फिर कहानी पढ़ते समय उसकी हालत देखने योग्य हो जाती थी। उसकी छातियां यूं ऊपर नीचे होने लगती थी कि बस मन करता था कि दबा दूँ जाकर।

इन दिनों मुझ में बहुत बदलाव आता जा रहा था। मेरी नजर भाभी पर पड़ने लगी थी। मुझे उसके स्तन उत्तेजक लगने लगे थे। मेरी नजरें हमेशा उसके पेटीकोट में कुछ ढूंढती रहती थी। मुझे लगता था कि भाभी जानकर के मेरे सामने कम कपड़ों में आती है। ना तो चूंचियां छिपाती है और ना ही अपने अन्य अंग।

एक दिन ऐसे ही मेरे दोस्त ने मुझे ब्ल्यू सीडी लाकर दी। मैंने यह शुभ सूचना भाभी को दी और देखने के लिये बीस रुपये भी किराये का बहाना कर के ले लिये। पर अब वो फ़िल्म अपने टीवी पर देखा करती थी। यहां से आरम्भ होता है भाभी के साथ मेरा अंतरंग प्रसंग…।

भाभी अश्लील मूवी देख रही थी। मेरे कमरे में आने का उस पर कोई प्रभाव नही पड़ा, बस मुझे एक बार देखा और फिर से फ़िल्म देखने में तल्लीन हो गई। मैं भी एक तरफ़ सोफ़े में बैठ गया और फ़िल्म देखने लगा। कुछ ही देर में मेरा लण्ड पजामे में से फ़ुफ़कारने लगा। मैंने अपना लण्ड थाम लिया। दोस्तों आप ये कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है।

मैंने अपने आप को बहुत रोका पर मन बावला हो गया था। मैं धीरे से उठा और भाभी के पीछे आ गया। बहुत साहस जुटा कर मैंने अपने दोनों हाथ उसके कंधे पर रख दिये। भाभी का शरीर गर्म था, मेरे हाथ रखने उसने कुछ नहीं कहा। मेरा साहस और बढ़ गया, तब मैने अपना हाथ नीचे सरका कर भाभी के कठोर और उन्नत उरोजों पर रख दिया।

मैंने हिम्मत करके स्तनों को धीरे से सहला कर दबा दिया। भाभी के मुख से एक प्यारी सी सिसकी निकल पड़ी, पर उसने मुझे कुछ नहीं कहा। मुझे उसने पीछे मुड़ कर देखा और अपनी नशीली आंखों से आंखें मिला दी।

मैंने कुछ नही कहा, बस हौले हौले कठोर पत्थरों को सहलाता रहा। उसने मेरा हाथ थाम लिया और अपने पास बैठने का इशारा किया। मैं घूम कर वापस उसके पास आ गया और साथ में बैठ गया। उसकी पीठ की तरफ़ से हाथ डाल कर फिर से भाभी की चूचियाँ दबाने लगा।

मेरे मन में विचित्र सा आभास होने लगा था। भाभी की दिल की धड़कनें मुझे अब महसूस होने लगी थी। मेरे सफ़ेद पतले से पजामे मे मेरे लण्ड का उभार देख कर उसे पकड़ लिया। भाभी का मुख मेरी ओर बढ़ चला … अधरों से अधर मिल गये। चुम्बन और मर्दन का काम एक साथ चलने लगा था।

कहानी जारी है ….. आगे की कहानी पढने के लिए निचे लिखे पेज नंबर पर क्लिक करे …..

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