प्रेषक: शाकिर अली
दोस्तों मस्तराम डॉट नेट पर ये मेरी पहली कहानी है मै आप लोगो को एक येसी रियल कहानी बताने जा रहा हु जिसे पढ़ के आप लोगो के लंड और चूत पानी छोड़ देगे …… मैं शाकिर अली हूँ, बाईस साल का, और लाहोर में रहता हूँ। जो वाक़्या आज आप को सुनाने जा रहा हूँ आज से चार साल पहले पेश आया था। मेरे घर में अम्मी अब्बा के अलावा एक बहन और एक भाई हैं। मैं सब से बड़ा हूँ। ये तब की बात है जब में दसवीं जमात में पढ़ता था। इस वाक़्ये का ताल्लुक मेरी खाला से है जिनका नाम अम्बरीन है। अम्बरीन खाला मेरी अम्मी से दो साल छोटी थीं और उनकी उम्र उस वक़्त क़रीब अढ़तीस बरस थी। वो शादीशुदा थीं और उनके दो बेटे थे। उनका बड़ा बेटा राशिद तक़रीबन मेरा हम-उम्र था और हम दोनों अच्छे दोस्त थे। अम्बरीन खाला के शौहर नवाज़ हुसैन बेहद रईस थे। उनके लाहोर में इलेक्ट्रॉनिक्स और अप्लाइअन्स के दो बड़े शोरूम थे और एक शोरूम दुबई में भी था। खालू नवाज़ आधा वक़्त लाहोर में और आधा वक़्त दुबई में रहते थे। अम्बरीन खाला भी बेहद ऐक्टीव थीं और खालू के कारोबार में भी मदद करती थीं। उनका लाइफ स्टाईल बेहद हाई-क्लॉस था और वो अपनी शामें अक्सर सोसायटी-पार्टियों और क्लबों में गुज़ारती थीं। खाला लाहोर के रोटरी कल्ब की सीनियर मेंबर थीं और काफी सोशल वर्क करती थीं।
अम्बरीन खाला बड़ी खूबसूरत और दिलकश औरत थीं। वो बिल्कुल मशहूर अदाकारा सना नवाज़ की तरह दिखती थीं। तीखे नैन नक़्श और दूध की तरह सफ़ेद रंग। उनके लंबे और घने बाल गहरे ब्राउन रंग के और आँखें भी ब्राउन थीं। उनका क़द दरमियाना था और जिस्म बड़ा गुदाज़ था लेकिन कहीं से भी मोटी नहीं थीं। कंधे चौड़े और फ़रबा थे। मम्मे भी बहुत बड़े और गोल थे जिन का साइज़ छत्तीस-अढ़तीस इंच से तो किसी तरह भी कम नहीं होगा। उनके चूतड़ गोल और गोश्तदार थे। अम्बरीन खाला काफी मॉडर्न खातून थीं और कभी भी चादर वगैरह नहीं ओढ़ती थीं । उनकी कमीज़ों के गले काफी गहरे होते थे और जब अम्बरीन खाला पतले कपड़े पहनतीं तो उनका गोरा और गदराया हुआ जिस्म कपड़ों से झाँकता रहता था। अक्सर वो कमीज़ के साथ सलवार की बजाय टाइट जींस भी पहनती थीं।
मैं अक्सर उनके घर जाया करता था ताकि उनके उभरे हुए मम्मों और मांसल चूतड़ों का नज़ारा कर सकूँ। खाला होने के नाते वो मेरे सामने दुपट्टा ओढ़ने का भी तकल्लुफ़ नहीं करती थीं इसलिये मुझे उनके मम्मे और चूतड़ देखने का खूब मौका मिलता था। कभी-कभी उन्हें ब्रा के बगैर भी देखने का इत्तेफाक हो जाता था। पतली क़मीज़ में उनके हसीन मम्मे बड़ी क़यामत ढाते थे। उनकी कमीज़ के गहरे गले में से उनके मोटे कसे हुए मम्मे अपनी तमामतर गोलाइयों समेत मुझे साफ़ नज़र आते थे। उनके मम्मों के निप्पल भी मोटे और बड़े थे और अगर उन्होंने ब्रा ना पहनी होती तो क़मीज़ के ऊपर से बाहर निकले हुए साफ़ दिखाई देते थे। ऐसे मोक़ों पर मैं आगे से और साइड से उनके मम्मों का अच्छी तरह जायज़ा लेता रहता था। साइड से अम्बरीन खाला के मम्मों के निप्पल और भी लंबे नज़र आते थे। यों समझ लें कि मैंने तक़रीबन उनके मम्मे नंगे देख ही लिये थे। मम्मों की मुनासबत से उनके चूतड़ भी बेहद मांसल और गोल थे। जब वो ऊँची हील की सैंडल पहन के चलतीं तो दोनों गोल और जानदार चूतड़ अलहदा-अलहदा हिलते नज़र आते। उस वक़्त मेरे जैसे कम-उम्र और सेक्स से ना-वाक़िफ़ लड़के के लिये इस क़िस्म का नज़ारा पागल कर देने वाला होता था।
अम्बरीन खाला के खूबसूरत जिस्म को इतने क़रीब से देखने के बाद मेरे दिल में उनके जिस्म को हाथ लगाने का ख्वाब समा गया। मेरी उम्र भी ऐसी थी के सेक्स ने मुझे पागल किया हुआ था। रफ़्ता-रफ़्ता अम्बरीन खाला के जिस्म को छूने का ख्वाब उनकी चूत हासिल करने की ख्वाहिश में बदल गया। जब उन्हें हाथ लगाने में मुझे कोई ख़ास कामयाबी ना मिल सकी तो मेरा पागलपन और बढ़ गया और में सुबह शाम उन्हें चोदने के सपने देखने लगा। इस सिलसिले में कुछ करने की मुझ में हिम्मत नहीं थी और मैं महज़ ख्वाबों में ही उनकी चूत के अंदर घस्से मार-मार कर उस का कचूमर निकाला करता था। जब मैं उनके घर पे होता था और नसीब से जब कभी मुझे मौका मिलता तो अम्बरीन खाला की ब्रा-पैंटी या उनकी ऊँची हील वाली सैंडल बाथरूम में लेजाकर उनसे अपने लंड को रगड़-रगड़ कर अपना पानी निकाल लेता था। फिर एक ऐसा वाक़्या पेश आया जिस के बारे में मैंने कभी सोचा भी नहीं था।
मेरी बड़ी खाला के बेटे इमरान की शादी पिंडी में हमारे रिश्तेदारों में होना तय हुई। बारात ने लाहोर से पिंडी जाना था। बड़े खालू ने जो फौज से रिटायर हुए थे पिंडी के आर्मी मेस में खानदान के ख़ास-ख़ास लोगों को ठहराने का बंदोबस्त किया था। बाक़ी लोगों ने होटलों में क़याम करना था। हम ने दो बस और दो टोयोटा हाइऐस वैन किराए पर ली थीं। बस को शादी की मुनासबत से बहुत अच्छी तरह सजाया गया था। सारे रास्ते बस के अंदर लड़कियों का शादी के गीत गाने का प्रोग्राम था जिस की वजह से खानदान के सभी बच्चे और नौजवान बसों में ही बैठे थे । मैंने देख लिया था के अम्बरीन खाला एक वैन में बैठ रही थीं। मेरे लिये ये अच्छा मौका था।
में भी अम्मी को बता कर उसी वैन में सवार हो गया ताकि अम्बरीन खाला के क़रीब रह सकूँ। उनके शौहर कारोबार के सिलसिले में माल खरीदने दुबई गये हुए थे लिहाज़ा वो अकेली ही थीं। उनके दोनों बेटे उनके मना करने के बावजूद अपनी अम्मी को छोड़ कर हल्ला-गुल्ला करने बस में ही बैठे थे। वैन भरी हुई थी और अम्बरीन खाला सब से पिछली सीट पर अकेली खिड़की के साथ बैठी थीं। जब में दाखिल हुआ तो मेरी कोशिश थी कि किसी तरह अम्बरीन खाला के साथ बैठ सकूँ। वैन के अंदर आ कर मैंने उनकी तरफ देखा। मैं उन से काफ़ी क़रीब था और मेरा उनके घर भी बहुत आना जाना था इस लिये उन्होंने मुझे देख कर अपने साथ बैठने का इशारा किया। मैं फौरन ही जगह बनाता हुआ उनके साथ चिपक कर बैठ गया। पीछे की सीट पर हम दोनों ही थे। लेखक: शकिर अली।
अम्बरीन खाला शादी के लिये खूब बन संवर कर घर से निकली थीं। उन्होंने सब्ज़ रंग के रेशमी कपड़े पहन रखे थे जिन में उनका गोरा गदराया हुआ जिस्म दावत-ए-नज़ारा दे रहा था। बैठे हुए भी उनके गोल मम्मों के उभार अपनी पूरी आब-ओ-ताब के साथ नज़र आ रहे थे। साथ में दिलकश मेक-अप, ज़ेवर और ऊँची हील के सुनहरी सैंडल पहने हुए कयामत ढा रही थीं। कुछ देर में हम लाहोर शहर से निकल कर मोटरवे पर चढ़े और अपनी मंज़िल की तरफ रवाना हो गये। मैं अम्बरीन खाला के साथ खूब चिपक कर बैठा था। मेरी रान उनकी रान के साथ लगी हुई थी जब कि मेरा बाज़ू उनके बाज़ू से चिपका हुआ था। बगैर आस्तीनो वाली क़मीज़ पहन रखी थी और उनके गोरे सुडोल बाज़ू नंगे नज़र आ रहे थे। अम्बरीन खाला के नरम-गरम जिस्म को महसूस करते ही मेरा लंड खड़ा हो गया। मैंने फौरन अपने हाथ आगे रख कर अपने तने हुए लंड को छुपा लिया।
अम्बरीन खाला ने कहा के में राशिद को समझाऊँ कि मेट्रिक के इम्तिहान की तैयारी दिल लगा कर करे क्योंकि दिन थोड़े रह गये हैं। मैंने उनकी तवज्जो हासिल करने लिये उन्हें बताया के राशिद एक लड़की के इश्क़ में मुब्तला है और इसी वजह से पढने में दिलचस्पी नहीं लेता। वो बहुत नाराज़ हुईं और कहा के मैं उसकी हरकतें उनके इल्म में लाता रहूँ। इस तरह में ना सिर्फ़ उनका राज़दार बन गया बल्कि उनके साथ मर्द और औरत के ताल्लुकात पर भी बात करने लगा। वो बहुत दिलचस्पी से मेरी बातें सुनती रहीं। उन्होंने मुँह बना कर कहा कि आजकल की लड़कियों को वक़्त से पहले सलवार उतारने का शौक होता है। ये ऐसी कुतिया की मानिंद हैं जिन को गर्मी चढ़ी हो। ये तो मुझे बाद में मालूम हुआ कि अम्बरीन खाला खुद भी ऐसी गरम कुत्तिया मानिंद औरतों में से थीं। उनकी बातें मुझे गरम कर रही थीं। मैंने बातों-बातों में बिल्कुल क़ुदरती अंदाज़ में उनकी मोटी रान के ऊपर हाथ रख दिया। उन्होंने क़िसी क़िस्म का कोई रद्द-ए-अमल ज़ाहिर नहीं किया और में उनके जिस्म का मज़ा लेता रहा। वो खुद भी बीच-बीच में मेरी रानों पर हाथ रख कर सहला रही थीं।
बिल-आख़िर साढ़े चार घंटे बाद हम पिंडी पहुंच गये। मैं अम्बरीन खाला के साथ ही रहा। अम्मी, नानीजान और कुछ और लोग मेस में चले गये। अम्बरीन खाला के दोनों बेटे भी मेस में ही रहना चाहते थे। मैंने अम्बरीन खाला से कहा के कियों ना हम होटल में रहें। कमरे में और लोग भी नहीं होंगे, बाथरूम इस्तेमाल करने का मसला भी नहीं होगा और अगले दिन बारात के लिये तैयारी भी आसानी से हो जायेगी। अम्बरीन खाला को ये बात पसंद आयी। उन्होंने अपने बेटों को कुछ हिदायात दीं और मेरे साथ मुर्री रोड पर रिजर्व एक होटल में आ गयीं जहाँ खानदान के कुछ और लोग भी ठहर रहे थे। मैंने अम्मी को बता दिया था के अम्बरीन खाला अकेली हैं में उनके साथ ही ठहर जाऊँगा। उन्होंने बा-खुशी इजाज़त दे दी।
होटल दरमियाना सा था। कमरे छोटे मगर साफ़ सुथरे थे। कमरे में दो बेड थे। कमरे में आकर फिर हम ने कपडे तब्दील किये। अम्बरीन खाला ने घर वाला पतली सी लॉन का जोड़ा पहन लिया जिस में से हमेशा की तरह उनका गोरा जिस्म नज़र आ रहा था। कपड़े बदलने के बावजूद उन्होंने अपनी ब्रा नहीं उतारी थी। मुझे थोड़ी मायूसी हुई क्योंकि बगैर ब्रा के मैं उनके मम्मों को ज्यादा बेहतर तरीक़े से देख सकता था। उन्होंने आदतन ऊँची ऐड़ी वाले सैंडल भी पहने रखे थे। खैर अम्बरीन खाला को अपने साथ एक कमरे में बिल्कुल तन्हा पा कर मेरे दिल में उन्हें चोदने की खाहिश ने फिर सर उठाया। लेकिन में ये करता कैसे? वो भला मुझे कहाँ अपनी चूत लेने देतीं।
अम्बरीन खाला अपने सूटकेस में कुछ ढूँढने लगीं और परेशान हो गयीं। जब मैंने पूछा कि कोई ज़रूरी चीज़ छूट गयी है तो पहले तो बोली की कुछ नहीं लेकिन फिर थोड़ी देर में ज़रा झिझकते हुए बोली – “शाकिर मेरा एक काम करोगे… लेकिन वादा करो कि बाकी रिश्तेदारों को पता ना चले!” मैंने कहा – “आप बेफिक्र रहें, मैं किसी से नहीं कहूँगा!” फिर वो बोलीं कि सोने से पहले उनका थोड़ी सी शराब पीने को काफी दिल कर रहा है और वो शायद अपने सूटकेस में रखना भूल गयीं थीं। इसमें हैरानी वाली कोई बात नहीं थी क्योंकि मैं जानता था कि अम्बरीन खाला शराब पीती हैं। मेरी अपनी अम्मी भी तो किट्टी-पार्टियों में और घर पे भी कभी-कभार अब्बू की रज़ामंदी से अक्सर शराब पीती थीं।
मैंने कुछ अरसे पहले एक फिल्म देखी थी जिस में एक शराब के नशे में चूर औरत को एक आदमी चोद देता है। शराब की वजह से वो औरत नशे में होती है और उस आदमी से चुदवा लेती है। मैंने खाला से कहा कि वो फिक्र ना करें, मैं कुछ इंतज़ाम करता हूँ। मगर मैं वहाँ शराब कहाँ से लाता। लेकिन मैं इस मोक़े से फायदा भी उठाना चाहता था। फिर मैंने सोचा शायद होटल का कोई मुलाज़िम मेरी मदद कर सके। खाला ने मुझे कुछ रूपये देकर कहा कि मैं एहतियात बरतूँ कि होटल में ठहरे दूसरे रिश्तेदारों को पता ना चले। बहरहाल मैं बाहर निकला तो पच्चीस-तीस साल का एक काला सा आदमी जो होटल का मुलाज़िम था मिल गया। वो बहुत छोटे क़द का और बदसूरत था। छोटी-छोटी आँखें और अजीब सा फैला हुआ चौड़ा नाक। ठोड़ी पर दाढ़ी के चन्द बाल थे और मूंछें भी बहुत हल्की थीं। वो हर तरह से एक गलीज़ शख्स लगता था।
मैं उस के साथ सीढ़ियाँ उतर कर नीचे आया और उससे पूछा कि मुझे शराब की बोतल कहाँ मिल सकेगी। उस ने पहले तो मुझे गौर से देखा और फिर कहने लगा के कौन सी शराब चाहिये। खाला ने कुछ बताया नहीं था और मुझे किसी ख़ास शराब का नाम नहीं आया इसलिये मैंने कहा– “कोई भी चल जायेगी। हम लोग शादी पर आये हैं और ज़रा मोज मस्ती करना चाहते हैं।“ उसने शायद मुझे और अम्बरीन खाला को कमरे में जाते देखा था। कहने लगा के “तुम तो अपनी अम्मी के साथ हो। कमरे में कैसे और किसके साथ शराब पी कर मोज मस्ती करोगे।“ मैं उसे ये ज़ाहिर नहीं करना चाहता था कि हकीकत में शराब तो खाला के लिये ही चाहिये इसलिये मैंने उसे बताया के में अपनी खाला के साथ हूँ और वैसे उसे हमारे प्रोग्राम से कोई मतलब नहीं होना चाहिये। खैर उसने मुझ से दो हज़ार रुपये लिये और कहा के आधे घंटे तक शराब ले आयेगा में उसका इंतज़ार करूँ। उस ने अपना नाम नज़ीर बताया।
मैं कमरे में वापस आ गया। मेरा दिल धक-धक कर रहा था। मैं डर रहा था कि नज़ीर कहीं पैसे ले कर भाग ही ना जाये मगर वो आधे घंटे से पहले ही शराब की बोतल ले आया। बोतल के ऊपर वोड्का लिखा हुआ था और उस में पानी जैसी रंग की शराब थी। मुझे इल्म नहीं के वो वाक़य वोड्का थी या किसी देसी शराब को वोड्का की बोतल में डाला गया था लेकिन बोतल सील्ड थी तो मुझे इत्मिनान हुआ। खैर मैंने बोतल ले कर फौरन अपने नेफ़े में छुपा ली। उसने कहा के बाथरूम के तौलिये चेक करने हैं। मैं उसे ले कर कमरे के अंदर आ गया। उस ने बाथरूम जाते हुए अम्बरीन खाला को अजीब सी नज़रों से देखा। मैं समझ नहीं पाया के उसकी आखों में क्या था। वो कुछ देर बाद चला गया।
अम्बरीन खाला ने अपने और मेरे लिये सेवन-अप की बोतलें मँगवाईं जो नज़ीर ही ले कर आया। इस दफ़ा भी उसने मुझे और अम्बरीन खाला को बड़े गौर से देखा। उसके जाने के बाद अम्बरीन खाला ने उनके लिये एक गिलास में थोड़ी वोड्का और सेवन-अप डालने को कहा तो मैं उठ कर कोने में पड़ी हुई मेज़ तक आया और अम्बरीन खाला की तरफ पीठ कर के थोड़ी की बजाय गिलास में एक-चौथाई तक वोड्का डाल कर उसे सेवन-अप से भर दिया। मैं चाहता था कि वो नशे में बदमस्त हो जायें। मैंने वो गिलास उनको दे दिया। उन्होंने गिलास से चन्द घूँट लिये और बुरा सा मुँह बना कर कहा – “ये कितनी वोड्का डाल दी तूने… बेहद स्ट्राँग है ये तो… ज्यादा चढ़ गयी तो?” मेरा दिल बैठ गया के कहीं वो पीने से इनकार ही ना कर दें लेकिन मैंने देखा कि वो फिर से गिलास होंठों को लगा कर घूँट भर रही थीं। मैंने कहा कि वो बेफिक्र होके पियें और इंजॉय करें कुछ होगा तो मैं संभाल लूँगा। मेरी बात से उन्हें इत्मिनान हुआ और वो मुस्कुरा कर पीने लगीं और मैं भी एक बोतल से सेवन-अप पीने लगा। जब उनका गिलास खाली हुआ तो मैंने इसरार करके उनके फिर से गिलास में एक चौथाई वोड्का डाल कर सेवन-अप भर दी। दो गिलास खतम करने बाद तो खुद ही बोलीं कि फिर से गिलास भर दूँ।
रात के कोई साढ़े बारह बजे का वक़्त होगा। अम्बरीन खाला की हालत बदलने लगी थी। उनका चेहरा थोड़ा सा सुर्ख हो गया था और आँखें भारी होने लगी थीं। वो मेरी बातों को ठीक से समझ नहीं पा रही थीं और बगैर सोचे समझे बोलने लगती थीं। उनकी आवाज़ में हल्की सी लरज़िश भी आ गयी थी। वो वाज़ेह तौर पर अपने ऊपर कंट्रोल खोती जा रही थीं। कभी वो खामोश हो जातीं और कभी अचानक बिला वजह बोलने या ज़ोर से हंसने लगतीं। नशा उन पर हावी हो रहा था। इतनी ज्यादा शराब पीने की वजह से नशा भी ज्यादा हुआ था। उन्होंने कहा के अब वो सोना चाहती हैं। वो एक कुर्सी पर पसर कर बैठी हुई थीं। जब उठने लगीं तो लडखड़ा गयीं। मैंने फौरन आगे बढ़ कर उन्हें बाज़ू से पकड़ लिया। उनके गोरे, मांसल और नरम बाज़ू पहली दफ़ा मेरे हाथों में आये थे। लेखक: शकिर अली।
मैं उस वक़्त थोड़ा घबराया हुआ था मगर फिर भी उनके जिस्म के स्पर्श से मेरा लंड खड़ा हो गया। मैं उन्हें ले कर बेड की तरफ बढ़ा। मैंने उनका दुपट्टा उनके गले से उतार दिया और उन से चिपक गया। मेरा एक हाथ उनके सुडौल चूतड़ पर था। मैं उन्हें बेड तक लाया। मेरी उंगलियों को उनके चूतड़ के आगे पीछे होने की हरकत महसूस हो रही थी। मेरे सब्र का पैमाना लबरेज़ हो रहा था। मैंने अचानक अपना हाथ उनके मोटे और उभरे हुए चूतड़ के दरमियाँ में रख कर उसे आहिस्ता से टटोला। उन्होंने कुछ नहीं कहा। इस पर मैंने उनके एक भारी चूतड़ को थोड़ा सा दबाया। उन्होंने अपने चूतड़ पर मेरे हाथ का दबाव महसूस किया तो मेरे हाथ को जो उनके चूतड़ के ऊपर था पकड़ कर अपनी कमर की तरफ ले आईं लेकिन कहा कुछ नहीं।
उन्हें बेड पर बिठाने के बाद मैंने उन से कहा के रात काफी हो गयी है और अब उन्हें सो जाना चाहिये। मैं उनके कपड़े बदल देता हूँ ताकि वो आराम से सो सकें। उनके मुँह से अजीब सी भारी आवाज़ निकली। शायद वो समझ ही नहीं सकी थीं के में क्या कह रहा हूँ। मैंने उनकी क़मीज़ पेट और कमर पर से ऊपर उठायी और उनका एक बाज़ू उठा कर उसे बड़ी मुश्किल से क़मीज़ की आस्तीन में से निकाला। अब उनका एक गोल और भारी मम्मा सफ़ेद रंग की ब्रा में बंद मेरी आँखों के सामने था। उनका दूसरा मम्मा अब भी क़मीज़ के नीचे ही छुपा हुआ था। मैंने उनके मम्मे के नीचे हाथ डाल कर ब्रा के ऊपर से ही उसे पकड़ लिया। अम्बरीन खाला का मम्मा भारी भरकम था और उससे हाथ लगा कर मुझे अजीब तरह का मज़ा आ रहा था। फिर मैंने दूसरे बाज़ू से भी क़मीज़ निकाल कर उन्हें ऊपर से बिल्कुल नंगा कर दिया। उनके दोनों मम्मे ब्रा में मेरे सामने आ गये। मैंने जल्दी से पीछे आ कर उनके ब्रा का हुक खोला और उससे उनके जिस्म से अलग कर के उनके मम्मों को बिल्कुल नंगा कर दिया।
ये मेरी ज़िंदगी का सब से हसीन लम्हा था। मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। अम्बरीन खाला के मम्मे बे-पनाह हसीन, गोल और उभरे हुए थे। सुर्खी-मायल गुलाबी रंग के खूबसूरत निप्पल बड़े-बड़े और बाहर निकले हुए थे। निपल्स के साथ वाला हिस्सा काफ़ी बड़ा और बिल्कुल गोल था जिस पर छोटे-छोटे दाने उभरे हुए थे। मैंने उनका एक मम्मा हाथ में ले कर दबाया तो उन्होंने मेरा हाथ अपने मम्मे से दूर किया और दोनों मम्मों के दरमियाँ में हाथ रख कर अजीब अंदाज़ से हंस पड़ीं। शायद ज्यादा नशे ने उनकी सोचने समझने की सलाहियत पर असर डाला था।
मैंने अब उनके दूसरे मम्मे को हाथ में लिया और उस के मुख्तलीफ़ हिस्सों को आहिस्ता-आहिस्ता दबाता रहा। मैंने ज़िंदगी में कभी किसी औरत के मम्मों को हाथ नहीं लगाया था। अम्बरीन खाला के मम्मे अब मेरे हाथ में थे और मेरी जहनी कैफियत बड़ी अजीब थी। मेरे दिल में खौफ भी था और ज़बरदस्त खुशी भी कि अम्बरीन खाला मेरे सामने अपने मम्मे नंगे किये बैठी थीं और में उनके मम्मों से खेल रहा था। उन्होंने हंसते हुए उंगली उठा कर हिलायी जिसका मतलब शायद ये था कि मैं ऐसा ना करूँ। उनका हाथ ऊपर की तरफ आया तो सलवार में अकड़े हुए मेरे लंड से टकराया तो वो फिर से हंस दी लेकिन शायद उन्हें एहसास नहीं हुआ कि मैं अपना लंड उनकी चूत में डालने को बेताब था। मैं उसी तरह अम्बरीन खाला के मम्मों को हाथों में ले कर उनका लुत्फ़ उठाता रहा।
अचानक कमरे का दरवाज़ा जो मैंने लॉक किया था एक हल्की सी आवाज़ के साथ खुला और नज़ीर अंदर आ गया। नज़ीर ने फौरन दरवाज़ा लॉक कर दिया। उस के हाथ में मोबाइल फोन था जिस से उसने मेरी और अम्बरीन खाला की उसी हालत में तस्वीर बना ली। ये सब पलक झपकते हो गया। मैं फौरन अम्बरीन खाला के पास से हट गया और उनकी क़मीज़ उठा कर उनके कंधों पर डाल दी ताकि उनके मम्मे छुप जायें। नज़ीर के बदनुमा चेहरे पर शैतानी मुस्कुराहट थी। उस ने अपनी जेब से छ-सात इंच लंबा चाक़ू निकाल लिया मगर उसे खोला नहीं। खौफ से मेरी टाँगें काँपने लगीं।
नज़ीर ने कहा के वो जानता था हमें शराब क्यों चाहिये थी। मगर मैं फ़िक्र ना करूँ क्योंकि वो किसी से कुछ नहीं कहेगा। उसे सिर्फ़ अपना हिस्सा चाहिये। अगर हम ने उस की बात ना मानी तो वो होटल मॅनेजर को बतायेगा जो पुलीस को खबर करेगा और आगे फिर जो होगा हम सोच सकते हैं। उसने कहा के शराब पीना तो जुर्म है ही पर अपनी खाला और भांजे को चोदना तो उस भी बड़ा जुर्म है। मुझ से कोई जवाब ना बन पड़ा। अम्बरीन खाला नशे में थीं मगर अब खौफ नशे पर हावी हो रहा था और वो हालात को समझ रही थीं। मेरा दिल भी सीने में ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।
मुझे सिर्फ़ पुलीस के आने का ही खौफ नहीं था। होटल में खानदान के और लोग भी ठहरे हुए थे। अगर उन्हें पता चलता के शराब के नशे में चूर अम्बरीन खाला को मैं चोदना चाहता था तो क्या होता? अम्बरीन खाला की कितनी बदनामी होती। खालू नवाज़ क्या सोचते? उनका बेटा राशिद मेरा दोस्त था। अगर उसे पता चलता के मेरी नियत उसकी अम्मी की चूत पर थी तो उस पर क्या गुज़रती? मेरे अब्बू ने सुबह पिंडी पुहँचना था। उन्हें पता चलता तो क्या बनता? बड़ी खाला के बेटे की शादी अलग खराब होती। मेरा दिल डूबने लगा। अम्बरीन खाला ने हल्की सी लड़खड़ाई हुई आवाज़ में कुछ कहा। नज़ीर उनकी तरफ मुड़ा और उन्हें मुखातिब कर के बड़ी बे-बाकी से बोला के अगर वो अपनी चूत उसे दे दें तो कोई मसला नहीं होगा। लेकिन उन्होंने इनकार किया तो पुलीस ज़रूर आएगी। अम्बरीन खाला चुप रहीं मगर उनके चेहरे का रंग ज़र्द पड़ गया। उन्होंने अपनी क़मीज़ अपने नंगे ऊपरी जिस्म पर डाली हुई थी।
नज़ीर ने मुझसे पूछा के क्या मैंने पहले किसी औरत को चोदा है। मैंने कहा – “नहीं!” वो बोला के औरत नशे में हो तो उससे चोदने का मज़ा आता है लेकिन अम्बरीन खाला कुछ ज्यादा ही नशे में थी। वो अम्बरीन खाला के लिये तेज़ कॉफी ले कर आता है जिसे पी कर उनका नशा थोड़ा कम हो जायेगा। फिर वो चुदाई का जायेगा मज़ा देंगी भी और लेंगी भी। उस ने अपना मोबाइल जेब में डाला और तेज़ क़दम उठाता हुआ कमरे से निकल गया। अम्बरीन खाला ने उसके जाते ही अपनी क़मीज़ ब्रा के बगैर ही पहन ली।
जब उन्होंने क़मीज़ पहनने के लिये अपने हाथ उठाये तो उनके मोटे-मोटे मम्मे हिले लेकिन उनके नंगे मम्मों की हरकत का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ क्योंकि अब उन्हें चोदने का भूत मेरे सर से उतर चुका था। उनके नशे पर भी खौफ गालिब हो रहा था। उन्होंने कहा कि – “शाकिर तुमने ये क्या कर दिया? अब क्या होगा? ये कमीना तो मुझे बे-आबरू करना चाहता है!” उनकी परेशानी वाजिब थी। अगर हम नज़ीर को रोकते तो वो हमें जान से भी मार सकता था या कोई और नुक़सान पुहँचा सकता था। अगर हम होटल में मौजूद अपने रिश्तेदारों को खबर करते तो हमारे लिये ही मुसीबत बनती क्योंकि नज़ीर के फोन में हमारी तस्वीर थी। मैंने अम्बरीन खाला से अपनी हरकत की माफी माँगी। वो कुछ ना बोलीं।
कुछ देर में नज़ीर एक मग में कॉफी ले आया जो अम्बरीन खाला ने पी ली। उनका नशा कॉफी से वाक़य कुछ कम हो गया और वो पहले से काफी हद तक नॉर्मल नज़र आने लगीं। नज़ीर ने मुझे कहा कि – “मैं आज तुम्हें भी मज़े कराऊँगा क्योंकि तुम्हारा दिल अपनी खाला पर है। वैसे तुम्हारी खाला है नंबर वन माल। इस कुत्तिया का नाम क्या है?” मुझे उसकी बकवास सुन कर गुस्सा तो आया मगर क्या करता। मैंने कहा – “अम्बरीन!” उस ने होठों पर ज़ुबान फेर कर अम्बरीन खाला की तरफ देखा। वो बोलीं कि उन्हें पेशाब करना है और अपना ब्रा उठा कर लड़खड़ाती हुई बाथरूम चली गयीं। जब वापस आईं तो उन्होंने अपना ब्रा पहन रखा था और आकर कुर्सी पर बैठ गयीं। उनके आते ही नज़ीर ने अपने कपड़े उतारे और अलिफ नंगा हो गया।
उसका क़द बहुत छोटा था मगर जिस्म बड़ा घुटा हुआ और मज़बूत था। उस का लंड इंतेहाई मोटा था जो उस वक़्त भी आधा खड़ा हुआ निस्फ़ दायरे की तरह उसके मोटे-मोटे टट्टों पर झुका हुआ था। उस के लंड का टोपा निस्बतन छोटा था मगर पीछे की तरफ इंतेहाई मोटा हो जाता था। उसकी झांटो के बाल घने थे और घुंघराले थे और उन के अलावा उसके जिस्म पर कहीं बाल नहीं थे। टट्टे बहुत मोटे-मोटे थे जिनकी वजह से उसका लंड और भी बड़ा लगता था। अम्बरीन खाला नज़ीर के लंड को देख कर हैरान रह गयीं। इतना मोटा लंड शायद उन्होंने पहले कभी नहीं देखा होगा। मेरा ख़याल था कि अपने शौहर के अलावा वे कभी किसी से नहीं चुदी होंगी लेकिन बाद में पता चला कि ये मेरी गलत फ़हमी थी। वो तो अल्लाह जाने अपनी ज़िंदगी में पता नहीं कितने ही लंड ले चुकी थीं।
नज़ीर ने देखा कि अम्बरीन खाला उसके लंड को हैरत से देख रही हैं तो उसने अपना लंड हाथ में ले कर उसे ऊपर नीचे हरकत दी और इतराते हुए अम्बरीन खाला से पूछा कि उन्हें उसका लंड पसंद आया या नहीं। वो खामोश रहीं लेकिन उनकी निगाहें नज़ीर के लंड पर ही जमी हुई थीं। मैंने नोट किया कि उनकी आँखों में अजीब सी चमक थी पर फिर लगा कि शायद मेरा वहम था। वो फिर बोला – “जब ये लंड तेरी फुद्दी में जायेगा तो तुझे बहुत मज़ा देगा!” अम्बरीन खाला ने अपनी नज़रें झुका लीं और उनके गाल सुर्ख हो गये थे। नज़ीर ने अपना फोन और चाक़ू बेड के साथ पड़ी हुई छोटी सी मेज़ पर रखे और मुझे भी कपड़े उतारने को कहा। मैं खौफ के आलम में चुदाई का कैसे सोच सकता था। मैंने इनकार कर दिया।
वो अम्बरीन खाला के पास गया और उनका हाथ पकड़ कर उन्हें कुर्सी से उठाने लगा। उन्होंने अपना हाथ छुड़ाना चाहा तो नज़ीर उन्हें ग़लीज़ गालियाँ देने लगा। कहने लगा – “तेरी चूत मारूँ कुत्तिया… अब शरीफ़ बनती है! तेरे फुद्दे में लंड दूँ हरामज़ादी, कंजरी, बहनचोद! तेरी बहन को चोदूँ… अभी कुछ देर पहले तो तू शराब पीके नशे में मस्त होके अपने भांजे से चुदवाने वाली थी और अब शरीफ़ बन रही है!” इस बे-इज़्ज़ती पर अम्बरीन खाला का चेहरा फिर लाल हो गया। वो जल्दी से खड़ी हो गयीं। मैं भी अंदर से हिल कर रह गया। उस वक़्त मुझे एहसास हुआ के मैं नादानी में क्या गज़ब कर बैठा था।
नज़ीर ने अम्बरीन खाला को खड़ा किया और उनसे लिपट गया। उस का क़द अम्बरीन खाला से तीन इंच छोटा तो ज़रूर होगा। अम्बरीन खाला ने ऊँची पेन्सिल हील के सैंडल भी पहने हुए थे। वो उनके दिलकश चेहरे को ‘चपड़-चपड़’ चूमने लगा। उसका लंड अब पूरी तरह खड़ा हुआ था और अम्बरीन खाला की चूत से नीचे रानों में घुस रहा था। मैं जो थोड़ी देर पहले तक अम्बरीन खाला को चोदने के लिये बेताब था अब खौफ और पशेमानी की वजह से सब कुछ भूल चुका था। मुझे अपना दिल पसलियों में धक-धक करता महसूस हो रहा था।
नज़ीर ने अम्बरीन खाला के होठों को मुँह में ले कर चूसा तो उन्होंने अपना मुँह कुछ ऐसे दूसरी तरफ फेरा जैसे उन्हें घिन्न आ रही हो। इस पर नज़ीर ने उनकी सलवार के ऊपर से ही उनकी चूत को हाथ में पकड़ लिया और कहा – “बाज़ आजा, कुतिया तेरी फुद्दी मारूँ। अगर मुझे रोका तो तेरी इस मोटी फुद्दी को नोच लुँगा।“ अम्बरीन खाला तक़लीफ़ में थीं जिसका मतलब था के नज़ीर ने वाक़य उनकी चूत के अपनी मुट्ठी में जकड़ रखा था। उन्होंने फौरन अपना चेहरा उसकी तरफ कर लिया। नज़ीर ने उनकी चूत छोड़ दी और दोबारा अपने होंठ उनके होठों पर जमा दिये। उस का काला बदसूरत चेहरा अम्बरीन खाला के गोरे हसीन चेहरे के साथ चिपका हुआ अजीब लग रहा था। नज़ीर उनका मुँह चूमते हुए कपड़ों के ऊपर से ही उनके मोटे मम्मों को मसलने लगा।
कुछ देर बाद उसने मेरी तरफ देखा और कहा – “इधर आ, चूतिये मादरचोद। अपनी खाला की क़मीज़ उतार और इस की बाड़ी खोल।” वो ब्रा को बाड़ी कह रहा था। मैंने फिर इनकार कर दिया। सिर्फ़ एक घंटा पहले मैं अम्बरीन खाला के मम्मों की एक झलक देखने के लिये बेताब था मगर अब बिल्कुल ठंडा पड़ चुका था।
मेरे इनकार पर नज़ीर अम्बरीन खाला को छोड़ कर मेरी तरफ आया। क़रीब आ कर उस ने एक ज़ोरदार थप्पड़ मेरे मुँह पर रसीद कर दिया। मैं इसके लिये तैयार नहीं था। मेरा सर घूम गया। उस ने एक और तमाचा मेरे मुँह पर लगाया। मेरा निचला होंठ थोड़ा सा फट गया और मुझे अपनी ज़ुबान पर खून का ज़ायक़ा महसूस हुआ। अम्बरीन खाला शायद घबरा गयीं और नज़ीर से कहा – “इसे मत मारो। तुम्हें जो करना है कर लो।” नज़ीर गुस्से में उनकी जानिब पलटा और कहा – “चुप! तेरी बहन की चूत मारूँ रंडी! अभी तो मुझे तेरी फुद्दी का पानी निकालना है।” फिर मुझे देख कर कहने लगा – “तेरी अम्मी को अपने लंड पर बिठाऊँ… वो भी तेरी इस गश्ती खाला की तरह जबर्दस्त माल होगी। बता क्या नाम है तेरी अम्मी का?” में चुप रहा तो उस ने एक घूँसा मेरी गर्दन पर मारा।
इस पर अम्बरीन खाला बोलीं – “इस की अम्मी का नाम यास्मीन है!” नज़ीर ने कहा – “मैं इस यास्मीन की भी जरूर चोदुँगा।” मैंने बेबसी से उस की तरफ देखा तो कहने लगा – “तेरी अम्मी की चूत में भी ज़रूर अपनी मनि निकालुँगा कुत्ती के बच्चे। उसकी फुद्दी जिससे तू निकला है वो तेरे सामने ही मेरा ये मोटा लंड लेगी। चल जो कह रहा हूँ वो कर वरना मार-मार कर हड्डियाँ तोड़ दूँगा।”
मुझे बाद में एहसास हुआ के नज़ीर गाली गलोच और मार पीट से मुझे और अम्बरीन खाला को डरा रहा था ताकि हम उसकी हर बात मान लें। ये नफ़सियाती हर्बा बड़ा कामयाब भी था क्योंकि हम दोनों वाक़य डर गये थे। उसने फिर मुझे कपड़े उतारने को कहा। मैं इल्तिज़ा-अमेज़ लहजे में बोला कि मेरा दिल नहीं है इसलिए वो मुझे मजबूर नहीं करे। लेकिन वो बा-ज़िद रहा के मैं वो ही करूँ जो वो कह रहा है। मुझे डर था के कहीं वो फिर मेरी और अम्बरीन खाला की और नंगी तस्वीरें ना ले ले।
वो अम्बरीन खाला को ले कर बेड पर चढ़ गया और उनके होठों के ज़ोरदार बोसे लेने लगा। वो भूखे की तरह उनका गदराये हुए गोरे-चिट्टे जिस्म को अपने हाथों से टटोल रहा था। उसने मुझे घूर कर देखा और अपनी तरफ बुलाया। मैं बेड पर चढ़ कर अम्बरीन खाला के पीछे आया तो वो सीधी हो कर बैठ गयीं। मैंने उनकी क़मीज़ को दोनों तरफ से ऊपर उठा कर सर से उतार दिया। उनके लंबे बाल उनकी गोरी कमर पर पड़े थे जिन के नीचे उनकी ब्रा का हुक था। मैंने उनके बाल कमर पर से हटा कर ब्रा का हुक खोला और उसे उनके मम्मों से अलग कर दिया। नज़ीर ने फिर कहा के मैं अपने कपड़े उतारुँ। मैंने जवाब दिया के मैं कुछ नहीं कर पाऊँगा, वो मेहरबानी कर के मुझे मजबूर ना करे। वो ज़ोर से हंसा और बोला – “साले मादरचोद नामर्द, तू क्या किसी औरत को चोदेगा। चल जा, वहाँ बैठ और देख मैं तेरी खाला को कैसे चोदता हूँ।” मैं सख़्त शर्मिंदगी के आलम में बेड से उतरा और सामने पड़ी हुई एक कुर्सी पर जा बैठा।
नज़ीर अम्बरीन खाला के नंगे मम्मों पर टूट पड़ा। उसने उनका एक मम्मा हाथ में पकड़ कर मुँह में लिया और उसे ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा। कमरे में ‘लपर-लपर’ की आवाज़ें गूँजने लगीं। अम्बरीन खाला होंठ भींच कर तेज़-तेज़ साँस लेने लगीं। उनका चेहरा सुर्ख हो गया। मम्मे चुसवाने से वो गरम हो गयी थीं। उनके भारी मम्मे चूसते-चूसते नज़ीर की साँस भी उखड़ गयी मगर वो उनके मम्मों से चिपका ही रहा और उन्हें चूसने के दौरान उन्हें मसलता भी रहा। उसने अम्बरीन खाला को कहा के वो उस के लंड पर हाथ फेरें। उन्होंने उस का लंड हाथ में लिया और अपने मम्मे चुसवाते हुए उस पर हाथ फेरने लगीं। उनकी हालत अब और ज्यादा खराब हो गयी थी। मैं ये सब कुछ देख रहा था।
नज़ीर ने अम्बरीन खाला के दोनों मम्मों को चूस-चूस कर बिल्कुल गीला कर दिया था। फिर उस ने अम्बरीन खाला को सलवार उतारने को कहा। उन्होंने अपनी सलवार का नाड़ा खोला और उसे उतार दिया। उन्होंने नीचे पैंटी नहीं पहनी हुई थी और अब अम्बरीन खाला भी अलिफ नंगी थीं। बस उनके पैरों में ऊँची हील वाले सैंडल मौजूद थे जो हकीकत में उनके नंगे हुस्न में चार चाँद लगा रहे थे। मुझे उनकी चूत नज़र आयी जो बिल्कुल साफ़ और गोरी-चिट्टी थी और झाँटों के नाम पे एक रेशा भी नहीं था। नज़ीर ने उनकी नंगी चूत पर अपना हाथ फेरा। कई दफ़ा उनकी चूत को सहलाने के बाद उसने उन्हें बेड की तरफ धकेल दिया। जब वो बेड पर लेट गयीं तो नज़ीर उनसे फिर लिपट गया और उनके पूरे जिस्म पर हाथ फेरने लगा। उसने उनकी कमर, चूतड़ों और रानों को मुठियों में भर कर टटोला। फिर उनकी मज़बूत टाँगें खोल कर उनकी फुली हुई गोरी चूत पर अपना मुँह रख दिया।
मैंने देखा के वो अपनी ज़ुबान अम्बरीन खाला की चूत पर फेर रहा था। उसने दोनों हाथ नीचे कर के उनके चूतड़ों को पकड़ लिया और उनकी चूत को चाटने लगा। अम्बरीन खाला क़ाबू से बाहर हो रही थीं और उनके मोटे चूतड़ बार-बार अकड़ कर उछल जाते थे। वो शायद नज़ीर के जिस्म को हाथ नहीं लगाना चाहती थीं इसलिये उन्होंने अपने हाथ सर से पीछे बेड पर रखे हुए थे। नज़ीर ने उनकी चूत से मुँह उठाया और कहा – “चुदक्कड राँड तेरा भोंसड़ा मारूँ! अभी खल्लास ना हो जाना। मेरा लंड अपनी चूत में लेकर खलास होना।“ अम्बरीन खाला शर्मिंदा हो गयीं और उनके होंठों से सिसकरी निकल गयी। वो शायद ये छुपाना चाहती थीं के अपनी चूत पर नज़ीर की फिरती हुई ज़ुबान उन्हें मज़ा दे रही थी। मगर वो इंसान थीं और मैं देख सकता था कि मज़ा तो उन्हें बरहाल आ ही रहा था।
इसी तरह कुछ देर उनकी चूत चाटने के बाद नज़ीर सीधा लेट गया और अम्बरीन खाला से कहा के वो उस का लंड चूसें। उसका मोटा लंड किसी डंडे की तरह सीधा खड़ा हुआ था। अम्बरीन खाला अपना चेहरा उसके लंड के करीब ले गयीं लेकिन फिर नाक सिकोड़ते हुए चेहरा दूर हटा लिया और लंड चूसने से इंकार कर दिया तो नज़ीर बोला – “क्यों, अपने शौहर का तो मज़े से चूसती होगी। मेरे लंड में कांटे लगे हैं क्या?” खाला कुछ नहीं बोली तो नज़ीर हंस कर बोला –“तुझे तो कोई मसला नहीं होना चाहिये लंड चूसने में! मुझे पता है तेरी जैसी अमीर औरतें खूब मज़े से लंड चूसती हैं!” अम्बरीन खाला ने कहा की उसका लंड बहुत बदबूदार है तो वो बोला – “साली रंडी नखरे करती है…!” फिर गुस्से से मुझे वोड्का की बोतल लाने को कहा। मैंने उसे बोतल दी तो अपने लंड पर वोडका डाल कर भिगोते हुए बोला – “ले कुत्तिया… धो दिया इसे शराब से… शराब की महक तो बदबू नहीं लगती ना तुझे पियक्कड़ी कुत्तिया!” अम्बरीन खाला ने कोई चारा ना देख उसका लंड अपने मुँह में ले लिया और उसे चूसने लगीं। उन्हें इतने मोटे लंड को मुँह के अंदर कर के चूसने में शायद दुश्वारी हो रही थी। उनके दाँत शायद नज़ीर के लंड को चुभ रहे थे जिस पर उसने उन्हें कहा वो उस के लंड पर ज़ुबान फेरें, दाँत ना लगायें। वो उस का लंड आहिस्ता-आहिस्ता चूसती रहीं। अम्बरीन खाला को लंड चूसते देख कर लग रहा था जैसे उन्हें अस्ब बुरा नहीं लग रहा था बल्कि मज़ा आ रहा था।
लेकिन जब दोबारा अम्बरीन खाला ने उसके लंड ओ दाँत लगाये तो नज़ीर ने नीचे से उनका एक मम्मा हाथ में पकड़ कर ज़ोर से दबा दिया। खाला मबरीन ने तेज़ सिसकी ली। नज़ीर ने कहा कि – “तू अगर अपने दाँत से मेरे लंड को दुखायेगी तो मैं तेरे मम्मे को दुखाउँगा।“ इसके बाद हैरत-अंगेज़ तौर पर अम्बरीन खाला नज़ीर का लंड बड़ी एहतियात और सलीके से चूसने लगीं। नज़ीर ने अपनी टाँगें फैला दीं और खाला उसके लंड को हाथ में लेकर मस्ती से चूसती रहीं। मुझे उनके मम्मे दिखाई दे रहे थे जिन्हे नज़ीर एक हाथ में पकड़ कर मुसलसल मसल रहा था।
यह सिलसिला देर तक चलता रहा। फिर नज़ीर ने अम्बरीन खाला को पीठ के बल लिटा दिया और खुद उनके ऊपर आ गया। उसने अपना लंड हाथ में ले कर उसे खाला की रानों के बीच फिराया। शायद वो लंड से टटोल कर अपना निशाना ढूंढ रहा था। उसे कामयाबी भी मिली। जब उसने अपने कूल्हों को आगे धकेल कर अपने लंड का अगला हिस्सा अम्बरीन खाला की चूत में घुसाया तो उनके मुँह से एक सिसकारी निकल गयी। मेरे दिल की धडकनें तेज़ हो गयी। नज़ीर ने कहा कि – “तेरी चूत तो बड़ी टाइट है बहनचोद!” और उनके होठों पर अपना मुँह रख दिया। कुछ लम्हो तक वो ऐसे ही रुका रहा और फिर उसने अचानक उनकी चूत में पूरी ताक़त से घस्सा मारा। उसका अकड़ा हुआ लंड अम्बरीन खाला की चूत को चीरता हुआ पूरा अंदर चला गया। अम्बरीन खाला ने ज़ोर से “आआआईईईई॥।“ कहा और उनका पूरा जिस्म लरज़ उठा। नजीर ने फौरन ही तावातुर के साथ उनकी चूत में घस्से मारने शुरू किये। कुछ देर बाद तो वो अम्बरीन खाला को बड़ी महारत से चोदने लगा। उसके मोटे लंड ने अम्बरीन खाला की चूत को फैला दिया था और जब घस्सों के दौरान वो अपना लंड उनके अंदर करता तो उनकी चूत जैसे चिर जाती।
हर घस्से के साथ नज़ीर के भारी टट्टे अम्बरीन खाला की गाँड के सुराख से टकराते। अम्बरीन खाला की टाँगें नज़ीर की कमर के दोनों तरफ थीं और उनके सैंडल पहने पांव मेरी जानिब थे। उनकी चूत से पानी निकल रहा था और उसके आसपास का सारा हिस्सा अच्छा-खासा गीला हो चुका था। चूत देते हुए उन के मुँह से मुसलसल “ऊँऊँऊँहह… ओहओहओह…ऊँऊँऊँ!” की आवाज़ें निकल रही थीं। उनकी आँखें बंद थीं। अम्बरीन खाला की चूत में बड़े ज़ोरदार और ताबड़तोड़ घस्से मारते हुए नज़ीर ने अपने दोनों हाथों में उनके हिलते हुए मम्मे दबोच लिये और अपने घस्सों की रफ़्तार और भी बढ़ा दी। अम्बरीन खाला ने अपनी आँखें खोल कर नज़ीर की तरफ अजीब तरह की कशिश भरी नज़र से देखा। उनका मुँह लाल सुर्ख हो रहा था। ज़ाहिर है कि उन्हें चुदाई में बेइंतेहा मज़ा आ रहा था।
अचानक अम्बरीन खाला ने अच्छी खासी तेज़ आवाज़ में “आआऊऊ.. आआहहह … आआआऊँऊँ…. आआहहह!” करना शुरू कर दिया। वो अपने भारी चूतड़ों को ऊपर उठा कर नज़ीर के घस्सों का जवाब देने लगी थीं और उनके मोटे ताज़े चूतड़ों की हर्कत में तेज़ी आती जा रही थी। नज़ीर समझ गया कि अम्बरीन खाला खल्लास होने वाली हैं। वो उन्हें चोदते हुए कहता रहा कि – “चल अब निकाल अपनी चूत का पानी मेरी जान.. शाबाश निकाल… हाँ हाँ… ठीक है छूट जा… छूट जा… चल मेरी कुत्ती खल्लास हो जा… तेरा फुद्दा मारूँ… ये ले… ये ले!”
कोई एक मिनट बाद अम्बरीन खाला के जिस्म को ज़बरदस्त झटके लगने लगे और वो खल्लास हो गयीं। मुझे नीचे से उनकी चूत में घुसा हुआ नज़ीर का लंड नज़र आ रहा था। जब वो छूटने लगीं तो उनकी चूत से और ज़्यादा गाढ़ा पानी निकला जो उनकी गाँड के सुराख के तरफ़ बहने लगा। अम्बरीन खाला ने अपने होंठ सख्ती से बंद कर लिये और उनका जिस्म ऐंठ गया। मैं समझ गया कि खल्लास हो कर उन्हें बेहद मज़ा आया था। लेखक: शकिर अली।
अम्बरीन खाला के खल्लास हो जाने के बाद भी नज़ीर इसी तरह उनकी चूत में घस्से मारता रहा। अभी कुछ ही देर गुज़री थी कि अम्बरीन खाला ने बेड की चादर को अपनी दोनों मुठ्ठियों में पकड़ लिया और फिर अपने हील वाले सैंडल गद्दे में गड़ा कर निहायत तेज़ी से अपने चूतड़ों को ऊपर-नीचे हरकत देने लगीं। ये देख कर नज़ीर ने उनकी चूत में अपने घस्सों की रफ़्तार कम कर दी। जब उसने घस्से मारने तकरीबन रोक ही दिये तो अम्बरीन खाला खुद नीचे से काफी ज़ोरदार घस्से मारने लगीं। वो एक बार फिर खल्लास हो रही थीं और चाहती थीं कि नज़ीर उनकी चूत में घस्से मारना बंद ना करे। वो बिल्कुल पागलों की तरह नज़ीर के लंड पर अपनी चूत को आगे पीछे कर रही थीं।
नज़ीर ने अब उनका मम्मा हाथ में ले लिया। अम्बरीन खाला ने अपना एक हाथ नज़ीर के हाथ पर रखा जिसमें उनका मम्मा दबा हुआ था और दूसरा हाथ अपने पेट पर ले आयीं। फिर उनके जिस्म ने तीन-चार झटके लिये और वो दोबारा खल्लास होने लगीं। चंद लम्हों तक वो इसी हालत में रहीं। नज़ीर ने उनके मम्मे पर ज़ुबान फेरी और पूछा कि क्या उन्हें चुदने में मज़ा आया। अम्बरीन खाला की साँसें बे-रब्त और उखड़ी हुई थीं। वो चुप रहीं पर उनके चेहरे के तासुरात से साफ ज़ाहिर था कि उन्हें बेहद मज़ा मिला था।
कुछ देर बाद नज़ीर ने अपना लंड उनकी चूत से बाहर निकाल लिया। मैंने देखा कि अम्बरीन खाला की चूत से निकलने वाला गाढ़ा पानी नज़ीर के लंड पर लगा हुआ था और वो रोशनी में चमक रहा था। फिर वो बेड पर लेट गया और अम्बरीन खाला को बोला – “चल, अब तू मेरे लंड पर बैठ!” खाला अपने मोटे मम्मे हिलाते हुए उठ गयीं। उन्होंने उसके ऊपर आ कर लंड को हाथ में पकड़ा और उस पर बैठने लगीं तो उनकी नज़रें मुझ से मिलीं। मैंने महसूस किया के ये नज़रें पहली वाली अम्बरीन खाला की नहीं थीं। आज के वहशत-नाक तजुर्बे ने मेरे और उनके दरमियाँ एक नया ताल्लुक़ कायम कर दिया था। शायद अब हम पहले वाले खाला-भांजे नहीं बन सकते थे। खैर अम्बरीन खाला ने नज़ीर के लंड पर अपनी फुद्दी रख दी और उस का लंड अपने अंदर ले लिया। नजीर ने अम्बरीन खाला की कमर से पकड़ कर अपने ऊपर झुकाया और अपनी मज़बूत रानों को उठा-उठा कर उनकी फुद्दी में घस्से मारने लगा। अम्बरीन खाला की गोल गदरायी गाँड अब मेरी तरफ थी।
नज़ीर की रानें बड़ी वर्ज़िशी और ताक़तवर थीं। वो अम्बरीन खाला की चूत में नीचे से पुरजोर घस्से मार रहा था। फिर उस ने उनके चूतड़ों को दोनों हाथों से गिरफ्त में ले लिया और उन्हें पूरी तरह क़ाबू में कर के चोदने लगा। उस के हलक़ से अजीब आवाज़ें निकल रही थीं। अम्बरीन खाला बड़ी खूबसूरत औरत थीं। मुझे यक़ीन था के नज़ीर ने कभी उन जैसी हसीन औरत को नहीं चोदा होगा। उसके घस्से अब बहुत शदीद हो गये थे और उस के चेहरे के नक्श बिगड़ गये थे। वो अब शायद झड़ने वाला था।
नजीर ने अम्बरीन खाला को अपने लंड से नीचे उतारा और उन्हें दोबारा कमर के बल लिटा कर वो उनके ऊपर सवार हो गया। उसने उनकी चूत में अपना लंड घुसाया और फिर से धुआंधार चुदाई शुरू कर दी। अब उसके घस्से बहुत तेज़ हो गये थे और वो बड़ी बे-रहमी से उनकी चूत ले रहा था। हर घस्से के साथ उस के चूतड़ों के पठ्ठे अकड़ते और फैलते थे। उसने अम्बरीन खाला के कन्धों को कस के पकड़ रखा था और उसका लंड तेज़ी से उनकी चूत के अंदर बाहर हो रहा था। कोई एक मिनट के बाद नज़ीर किसी पागल भैंसे की तरह डकारने लगा। उसका जिस्म अकड़ा और वो अम्बरीन खाला की चूत में खल्लास होने लगा।
इस दफा अम्बरीन खाला पहले तो उसके घस्सों का जवाब नहीं देर रही थीं मगर जब उसकी मनि उनकी चूत के अंदर जाने लगी तो वो खुद पर काबू ना रख सकीं और फिर से उसका साथ देने लगीं। नज़ीर ने अपनी मनि उनकी चूत के अंदर छोड़ दी। मुझे उनके चूतड़ों की हर्कत से लगा कि अम्बरीन खाला भी एक दफा फिर खल्लास हुई थीं।
थोड़ी देर बाद वो अम्बरीन खाला के ऊपर से हटा और बेड से उतर गया। अम्बरीन खाला ने भी अपने कपड़े उठाये और बाथरूम की जानिब चल पड़ीं। उनकी ब्रा वहीं बेड पर रह गयी। नज़ीर ने उनकी ब्रा उठायी और उस से अपने लंड को साफ़ किया। फिर ब्रा उनकी तरफ फैंक दी लेकिन खाला रुकी नहीं और बाथरूम में चली गयीं। मेरा खून खौल गया।
नज़ीर भी कपड़े पहनने लगा। कुछ देर बाद अम्बरीन खाला बाथरूम से बाहर आयीं तो उन्होंने सिर्फ कमीज़ पहनी हुई थी लेकिन सलवार नहीं पहनी थी। उनकी कमीज़ ने उनका जिस्म घुटनों तक ढका हुआ था। बाहर आकर अपनी ब्रा एक चुटकी में उठा कर साइड पर रख दी। नज़ीर ने हंस कर उनसे कहा – “अभी तो तुम्हारी चूत ने मेरे लंड की सारी मनि निचोड़ कर पी है और तुम अब भी नखरे कर रही हो।” फिर मेरी तरफ देख कर वो कहने लगा – “यार, तुम्हारी खाला की चूत वाक़य मस्त है। इसे चोद कर बड़ा मज़ा आया। तुम ठीक ही इस कुत्तिया पर गरम थे क्योंकि ये तो माल ही चोदने वाला है। यह बताओ के तुम लोग कब तक यहाँ हो?”
मैं बेवकूफों की तरह खड़ा उसकी बातें सुन रहा था। लेकिन मेरे ज़हन में चुँकि अम्बरीन खाला की ज़बरदस्त चुदाई के मंज़र घूम रहे थे इसलिये मैं उसे फौरन कोई जवाब नहीं दे सका। इस पर वो बोला – “मुँह से कुछ फूटो ना गाँडू तेरी माँ को चोदूँ। चूतिये की तरह चुप क्यों खड़े हो।” मैंने कहा – “हम कल वापस चले जायेंगे।” वो बोला – “मैं कल तुम्हारी अम्मी यास्मीन से मिलना चाहता हूँ। उसकी तो गाँड भी मार कर दिखाऊँगा तुम्हें। अगर तुम अपनी अम्मी के दल्ले बनना क़बूल करो तो मैं तुम्हें भी मज़े करवा सकता हूँ।”
मैं पिछले दो घंटे से ज़िल्लत बर्दाश्त कर रहा था। नज़ीर की मारपीट, गालियों और तंज़िया बातों ने मुझे इंतेहाई मुश्तैल कर दिया था। मेरे सामने उसने ज़बरदस्ती अम्बरीन खाला की चूत ली थी। जब उसने मुझे अम्मी का दलाल बनने की बात कही तो मैं होश-ओ-हवास खो बैठा और मेरे खौफ पर गुस्सा ग़ालिब हो गया। मैंने आव देखा ना ताव और सामने मेज़ पर रखा हुआ शीशे का जग उठाया और पूरी ताक़त से उस के मनहूस सर पर दे मारा। जग का निचला मोटा हिस्सा नज़ीर के सर से टकराया। अम्बरीन खाला के मुँह से हल्की सी चीख निकल गयी। नज़ीर किसी मुर्दा छिपकली की तरह फ़रश पर गिरा और उस के सर से खून बहने लगा।
मैंने फौरन उसका मोबाइल फोन और चाक़ू उठाये और फिर उसके मुँह पर एक ज़ोरदार लात रसीद की। नज़ीर के मुँह से ‘गूं-गूं’ की आवाज़ बरामद हुई और उस ने अपना सर अपने सीने पर झुका लिया। मैंने चाक़ू खोला तो अम्बरीन खाला ने मुझे रोक दिया और कहा कि इस कुत्ते को यहाँ से दफ़ा हो जाने दो। उन्होंने नज़ीर से कहा के वो चला जाये वरना मैं उसे मार डालुँगा। वो मुझ से कहीं ज्यादा ताक़तवर था लेकिन शायद सर की चोट ने उसे हवास-बाख़ता कर दिया था। मेरे हाथ में चाक़ू और आँखों में खून उतरा देख कर उसने इसी में कैफियत जानी कि वहाँ से चला जाये। वो कराहता हुआ उठा और अपने सर के ज़ख़्म पर हाथ रख कर कमरे से निकल गया।
मैंने उसके मोबाइल से अपनी और अम्बरीन खाला की तस्वीर मिटा दी और फिर उस की सिम निकाल ली। अब वो हरामी हमें ब्लैकमेल नहीं कर सकता था। मुझे अफ़सोस हुआ के मैंने अम्बरीन खाला के चुदने से पहले ये हिम्मत क्यों नहीं की। लेकिन वो खुश थीं। उन्होंने मुझे शाबाशी दी और कहा के मैंने बड़ी बहादुरी दिखाई। मैंने कहा कि – “ये सब कुछ मेरी वजह से ही हुआ है जिसके लिये मैं बहुत शर्मिंदा हूँ।” वो कहने लगीं कि – “बस अब किसी को इस बात का पता ना चले और जो हुआ वो सिर्फ़ हम दोनों तक ही रहना चाहिये।” मैंने कहा – “मैं पागल थोड़े ही हूँ जो किसी को बताऊँगा।“
मैं हैरान था कि मैंने उनके साथ इतनी बुरी हरकत की जिसका नतीजा बड़ा खौफनाक निकला था मगर उन्होंने मुझे कुछ नहीं कहा। मैंने बाहर निकल कर इधर-उधर नज़र दौड़ाई लेकिन नज़ीर का कोई पता नहीं था। मैं वापस कमरे में आ गया। फिर अम्बरीन खाला ने मुझे एक गिलास में थोड़ी शराब और सेवन-अप डालने को कहा। इस दफा मैंने थोड़ी सी ही वोडका गिलास में डाल कर उसमे सेवन-अप भर के उन्हें दी। उसके बाद हम सोने के लिये लेट गये।
अगली सुबह मैंने होटल की रिसेप्शनिस्ट से पूछा के मुझ से रात को होटल का एक छोटे से क़द का मुलाज़िम दवा लाने के लिये पैसे ले गया था मगर वो वापस नहीं आया। उस ने माज़रात की और बताया कि – “उसका नाम नज़ीर था और वो रात को काम छोड़ कर भाग गया। था तो वो पंजाब का मगर सारी उम्र कराची में रहा था। शायद वहीं चला गया हो। मैंने राहत की साँस ली।“
शादी की तक़रीब में मेरा और अम्बरीन खाला का आमना सामना नहीं हुआ। हम उसी दिन बारात ले कर लाहोर रवाना हुए। वापसी पर मैं अब्बू की कार में बैठा और अम्बरीन खाला से कोई बात ना हो सकी। रास्ते में हम लोग भेरा इंटरचेंज पर रुके तो वो मुझे मिलीं और कहा कि मैं कल स्कूल से छुट्टी करूँ और उनके घर आऊँ लेकिन इसका ज़िक्र अम्मी से ना करूँ। मैंने हामी भर ली। उनके चेहरे पर कोई परेशानी के आसार नहीं थे। वो अच्छे मज़बूत आसाब की औरत साबित हुई थीं वरना इतना बड़ा वाक़्या हो जाने के बाद किसी के लिये भी नॉर्मल रहना मुश्किल था। लेकिन शायद उन्हें इस वाक़िये को सब से छुपाना था और इस के लिये ज़रूरी था के वो अपने आप पर क़ाबू रखें। जब उन्होंने मुझे अपने घर आने का कहा तो में डरा भी कि ऐसा ना हो अम्बरीन खाला अब मेरी हरकत पर गुस्से का इज़हार करें। लेकिन अगर वो ऐसा करतीं भी तो इसमें हक़-बा-जानिब होतीं। मैंने सोचा अब जो होगा कल देखा जायेगा।
रात को मैं सोने के लिये लेटा तो मेरे ज़हन में हलचल मची हुई थी। अम्बरीन खाला के साथ नज़ीर ने जो कुछ किया उसने मुझे हिला कर रख दिया था और मैं जैसे एक ही रात में ना-उम्र लड़के से एक तजुर्बेकार मर्द बन गया था। बाज़ तजुर्बात इंसान को वक़्त से पहले ही बड़ा कर देते हैं। अम्बरीन खाला वाला वाक़्या भी मेरे लिये कुछ ऐसा ही था। मुझे भी अब दुनिया बड़ी मुख्तलीफ़ नज़र आने लगी थी।
उस रात जब होटल में नज़ीर अम्बरीन खाला को चोद रहा था तो मैंने एहद की थी के अब मैं अपने ज़हन में खाला के बारे में कोई गलत खयाल नहीं आने दुँगा। मैं इस एहद पर कायम रहना चाहता था। मैंने बहुत ब्लू फिल्में देखी थीं लेकिन नज़ीर को खाला की चूत लेते हुए देखना एक नया ही तजुर्बा था जिसने मुझे बहुत कुछ सिखाया था। अब अगर में किसी औरत को चोदता तो शायद मुझे कोई ज्यादा मुश्किल पेश ना आती। सब से बढ़ कर ये के नज़ीर ने जिस नंगे अंदाज़ में मेरी अम्मी का ज़िक्र किया था उसने मुझे अम्मी के बारे में एक बिल्कुल मुख्तलीफ़ अंदाज़ में सोचने पर मजबूर कर दिया था।
ये तो मैं जानता था कि अम्मी भी अम्बरीन खाला की तरह एक खूबसूरत औरत थीं लेकिन मैंने हमेशा उनके बारे में इस तरह सोचने से गुरेज़ किया था। आख़िर वो मेरी अम्मी थीं और मैं उन पर बुरी नज़र नहीं डाल सकता था। लेकिन ये भी सच था के अम्मी और अम्बरीन खाला में जिस्मानी तौर से कोई ऐसा ख़ास फ़र्क़ नहीं था। बल्कि अम्मी अम्बरीन खाला से थोड़ी बेहतर ही थीं। उनकी उम्र चालीस साल थी और वो भी बहुत गदराये और सुडौल जिस्म की मालिक थीं। उनका जिस्म बड़ा कसा हुआ था। इस उम्र में औरतें जिस्मानी तौर पर भारी हो जाती हैं और उनका गोश्त लटक जाता है लेकिन अम्मी का जिस्म कसरत करने की वजह से सुडौल होने के साथ-साथ बड़ा कसा हुआ भी था। अम्मी के मम्मे मोटे और बड़े-बड़े गोल उभारों वाले थे जो अम्बरीन खाला के मम्मों से भी एक-आध इंच बड़े ही होंगे। वैसे तो अम्मी भी फ़ैशनेबल और मॉडर्न ख्यालात की थीं और घर पे और बाहर पार्टियों वगैरह में शराब भी पीती थीं लेकिन अम्बरीन खाला की तरह उनकी कमीज़ों के गले ज्यादा गहरे नहीं होते थे। हम भाई-बहनों की मौजूदगी में भी काफी एहतियात से अपने सीने को दुपट्टे ढक कर रखती थीं। इसलिये उनके साथ रहने के बावजूद मुझे उनके नंगे मम्मे देखने का इत्तफाक़ कम ही हुआ था।
वैसे मैंने उनके बाथरूम में बहुत मर्तबा उनके सफ़ेद, काले, लाल गुलाबी रंग के ब्रेसियर देखे थे जो काफी डिज़ायनर किस्म के होते थे। उसी तरह उनकी पैंटियाँ भी रेग्यूलर पैंटियों कि बजाय जी-स्ट्रिंग वाली होती थीं। जब में बारह साल का था तब मैंने उनके जिस्म का ऊपरी हिस्सा नंगा देखा था। एक दिन मैं अचानक ही बेडरूम में दाखिल हो गया था जहाँ अम्मी कपड़े बदल रही थीं। उन्होंने सलवार पहनी हुई थी मगर ऊपर से बिल्कुल नंगी थीं। उनके हाथ में एक काले रंग की झालर वाली ब्रा थी जिसे वो उलट-पुलट कर देख रही थीं। शायद वो उस ब्रा को पहनने वाली थीं।
मेरी नज़र उनके गुदाज़ मम्मों पर पड़ी जो उनके हाथों की हरकत की वजह से आहिस्ता-आहिस्ता हिल रहे थे। मुझे देख कर उन्होंने फौरन अपनी पुश्त मेरी तरफ कर ली और कहा कि – “मैं कपड़े बदल रही हूँ।“ मैं फौरन उल्टे क़दमों बेडरूम से बाहर आ गया। अम्मी की गाँड काफी टाईट और फूली हुई थी। अम्मी को भी खाला की तरह ऊँची हील के सैंडल-चप्पल पहनने की आदत थी जिससे अम्मी की गाँड और ज्यादा दिलकश लगती थी। उनकी कमर हैरत-अंगैज़ तौर पर पतली थी और ये बात उनके जिस्म को गैर-मामूली तौर पर पुर-कशिश बनाती थी।
मुझे अचानक एहसास हुआ के अम्मी के बारे में सोचते हुए मेरा लंड खड़ा हो गया है। मैंने फौरन अपने ज़हन से इन गंदे ख़यालात को झटक दिया और सोने की कोशिश करने लगा। मुझे अगले दिन अम्बरीन खाला ने घर बुलाया था मगर मैं निदामत और खौफ की वजह से अभी उनका सामना नहीं करना चाहता था। मैंने सुबह स्कूल जाने से पहले उन्हें फोन कर के बताया के स्कूल में मेरा टेस्ट है और मैं आज उनके घर नहीं आ सकता।
स्कूल में मुझे अम्बरीन खाला का बेटा राशिद मिला। वो भी दसवीं में ही पढ़ता था मगर उस का सेक्शन दूसरा था। उससे मिल कर मेरा एहसास-ए-जुर्म और भी बढ़ गया। वो मेरा कज़िन भी था और दोस्त भी लेकिन मैंने उसकी अम्मी को चोदने की कोशिश की थी। मेरी इस ज़लील हरकत की वजह से ही नज़ीर जैसा घटिया आदमी उसकी अम्मी की चूत हासिल करने में कामयाब हुआ था। खैर अब जो होना था हो चुका था।
उस दिन मेरी ज़हनी हालत ठीक नहीं थी लिहाज़ा मैंने आधी छुट्टी में ही घर जाने का फ़ैसला किया। हम दसवीं के लड़के सब से सीनियर थे और हमें स्कूल से निकलने में कोई मसला नहीं होता था। मैं खामोशी से स्कूल से निकल कर घर की तरफ चल पड़ा। घर पुहँच कर मैंने बेल बजायी मगर काफ़ी देर तक किसी ने दरवाज़ा नहीं खोला। तक़रीबन साढ़े-ग्यारह का वक़्त था और उस वक़्त घर में सिर्फ अम्मी होती थीं। अब्बू प्राइवेट कम्पनी में जनरल मनेजर थे और उनकी वापसी शाम सात-आठ बजे होती थी। मेरे छोटे बहन-भाई तीन बजे स्कूल से आते थे। खैर कोई छः-सात मिनट के बाद अम्मी के सैंडलों की खटखटाहट सुनायी दी और उन्होंने दरवाज़ा खोला तो में अंदर गया।
अम्मी मुझे देख कर कुछ हैरान भी लग रही थीं और बद-हवास भी। लेकिन एक चीज़ का एहसास मुझे फौरन ही हो गया था के उस वक़्त अम्मी ने ब्रा नहीं पहनी हुई थी। जब हम दोनों दरवाज़े से अंदर की तरफ आने लगे तो मैंने अम्मी के दुपट्टे के नीचे उनके मम्मों को हिलते हुए देखा। जब वो ब्रा पहने होती थीं तो उनके मम्मे कभी नहीं हिलते थे। ऐसा भी कभी नहीं होता था के वो ब्रा ना पहनें। मैंने सोचा हो सकता है अम्मी नहाने की तैयारी कर रही हों। खैर मैंने उन्हें बताया के मेरी तबीयत खराब थी इसलिये जल्दी घर आ गया।
अभी मैं ये बात कर ही रहा था कि अम्मी के बेडरूम से राशिद निकल कर आया। अब हैरानगी की मेरी बारी थी। मैं तो उसे स्कूल छोड़ कर आया था और वो यहाँ मौजूद था। उसने कहा कि वो अम्बरीन खाला के कपड़े लेने आया था। उस का हमारे घर आना कोई नई बात नहीं थी। वो हफ्ते में तीन-चार बार ज़रूर आता था। मैं उसे ले कर अपने कमरे में आ गया जहाँ अम्मी कुछ देर बाद नींबू शर्बत ले कर आ गयीं। मैंने देखा के अब उन्होंने ब्रा पहन रखी थी और उनके मम्मे हमेशा की तरह कोई हरकत नहीं कर रहे थे। मुझे ये बात भी कुछ समझ नहीं आयी। कोई आधे घंटे बाद राशिद चला गया।
मुझे ये थोड़ा अजीब लगा – राशिद का स्कूल से आधी छुट्टी में हमारे घर आना और मेरे आने पर अम्मी का परेशान होना और फिर उनका बगैर ब्रा के होना। वो तो कभी अपने मम्मों को खुला नहीं रखती थीं लेकिन आज राशिद के घर में होते हुए भी उन्होंने ब्रा उतारी हुई थी। पता नहीं क्या मामला था। मुझे ख़याल आया के कहीं राशिद मेरी अम्मी की चूत का ख्वाहिशमंद तो नहीं है। आख़िर मैं भी तो अम्बरीन खाला पर गरम था बल्कि उन्हें चोदने की कोशिश भी कर चुका था। वो भी अपनी खाला यानी मेरी अम्मी पर गरम हो सकता था। मगर अम्मी ने अपने मम्मों को खुला क्यों छोड़ रखा था? क्या वो राशिद को अपनी मरज़ी से चूत दे रही थीं? मेरे ज़हन में कई सवालात गर्दिश कर रहे थे।
लेकिन फिर मैंने सोचा के चुँकि मैं खुद अम्बरीन खाला को चोदना चाहता था और मेरे अपने ज़हन में ग़लाज़त भरी हुई थी इसलिये मैं राशिद और अम्मी के बारे में ऐसी बातें सोच रहा था। मुझे यक़ीन था कि अगर वो अम्मी पर हाथ डालता भी तो वो कभी उसे अपनी चूत देने को राज़ी ना होतीं। मैं तो यही समझता था कि वो बड़े मज़बूत किरदार की औरत थीं। मैं ये सोच कर कुछ पूर-सुकून हो गया लेकिन मेरे ज़हन में शक ने जड़ पकड़ ली थी। मैंने सोचा के अब मैं राशिद पर नज़र रखुँगा।
हमारे घर में बड़े दरवाज़े के अलावा एक दरवाज़ा और भी था जो ड्रॉइंग रूम से बाहर पोर्च में खुलता था। यहाँ से मेहमानों को घर के अंदर लाया जा सकता था। मैंने इस दरवाज़े के लॉक की चाबी की नक़ल बनवा कर रख ली। स्कूल में अब मैं राशिद की निगरानी करने लगा। कोई चार दिन के बाद ही मुझे पता चला कि राशिद आज स्कूल नहीं आया। मेरा माथा ठनका और मैं फौरन अपने घर पुहँचा। ड्रॉइंग रूम के रास्ते अंदर जाने में मुझे कोई मुश्किल पेश नहीं आयी। अंदर अम्मी और राशिद के बोलने की हल्की-हल्की आवाज़ें आ रही थीं। वो दोनों बेडरूम में थे लेकिन दरवाज़ा बंद था। मैं दबे पांव फिर से ड्रॉइंग रूम का दरवाज़ा लॉक करके घर के पीछे की तरफ बेडरूम की खिड़की के नीचे आ गया जिस पर अंदर की तरफ पर्दे लगे थे लेकिन बीच में से परदा थोड़ा सा खुला था और तक़रीबन दो इंच की दराज़ से अंदर देखा जा सकता था। मैंने बड़ी एहतियात से अंदर झाँका।
मैंने देखा कि राशिद बेडरूम में पड़ी हुई एक कुर्सी पर बैठा हुआ था और पेप्सी पी रहा था। वो स्कूल के बारे में कुछ कह रहा था। अम्मी सामने दीवार वाली अलमारी से कुछ निकाल रही थीं। उनकी पतली कमर के मुक़ाबले में मांसल चूतड़ बड़े नुमायाँ नज़र आ रहे थे। उनका तौर-तरीक़ा उस वक़्त काफ़ी मुख्तलीफ़ था। उन्होंने दुपट्टा भी नहीं लिया हुआ था और वो शायद कहीं जाने के लिये तैयार हो रही थीं वो भी अपने भांजे के सामने। उनके चेहरे पर वो तासुरात नहीं थे जो मैंने हमेशा देखे थे।
कुछ देर इधर उधर की बातों के बाद राशिद ने कहा – “खालाजान, अब तो मुझे चोद लेने दें। मैंने स्कूल वापस भी जाना है।” अम्मी ने जवाब दिया – “राशिद, चाहती तो मैं भी हूँ लेकिन आज वक़्त नहीं है अभी शाकिर की फूफी ने आना है और उसके साथ कुछ और औरतें भी आने वाली हैं। उनके साथ मुझे किट्टी-पार्टी में जाना है। तुम कल आ कर सकून से सब कुछ कर लेना।” राशिद बोला – “खालाजान, अभी तो घर में कोई नहीं है हम क्यों वक़्त ज़ाया करें? मैं आज जल्दी खल्लास हो जाऊँगा। नहीं तो मेरा पढ़ने में मन नहीं लगेगा और आपके बारे में ही सोचता रहुँगा!”
ये बातें मेरे कानो में पहुँचीं तो मेरे दिल-ओ-दिमाग पे जैसे बिजली गिर पड़ी। इन बातों का मतलब बिल्कुल साफ़ था। राशिद ना सिर्फ मेरी अम्मी को चोद रहा था बल्कि इस में अम्मी की भी पूरी मर्ज़ी शामिल थी। वो अपने भांजे से चुदवा रही थीं जो उनसे उम्र में चौबीस साल छोटा था और जिसे उन्होंने गोद में खिलाया था। अम्मी और अम्बरीन खाला की शादी एक ही साल में हुई थी और मेरी और राशिद की पैदाइश का साल भी एक ही था। फिर भी अम्मी अपने भांजे से चूत मरवा रही थीं जो उनके बेटे की उम्र का था। मैं बेडरूम की दीवार के सहारे ज़मीन पर बैठ गया। हैरत, गुस्से, शर्मिंदगी और नफ़रत के मारे मेरी आँखों में आँसू आ गये। मैं कुछ देर दीवार के साथ इसी तरह सर झुकाये बैठा रहा। फिर मैंने हिम्मत कर के दोबारा अंदर झाँका।
उस वक़्त राशिद कुर्सी से उठ कर अम्मी के क़रीब पुहँच चुका था जो बेड के साथ रखी ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी लिपस्टिक लगा रही थीं। उस ने पीछे से अम्मी की पीठ के साथ अपना जिस्म लगा दिया और आगे से उनके मम्मों और पेट पर हाथ फेरने लगा। अम्मी ने लिपस्टिक लगानी बंद कर दी और ड्रेसिंग-टेबल पर अपने दोनों हाथ रख दिये। फिर राशिद एक हाथ से उनके मम्मों को दबाने लगा जबकि दूसरा हाथ उसने उनके मोटे चूतड़ों पर फेरना शुरू कर दिया।
अम्मी ने गर्दन मोड़ कर उसकी तरफ देखा। उनके चेहरे पर मुस्कुराहट थी जैसे उन्हें ये सब बड़ा सकून और लुत्फ़ दे रहा हो। वो थोड़ा सा खिसक कर साइड पर हो गयीं और बेड की तरफ आ कर उस के ऊपर दोनों हाथ रख दिये। राशिद उनके मम्मों और गाँड से खेलता रहा। अम्मी ने अपना हाथ पीछे कर के राशिद के लंड को पतलून के ऊपर से ही पकड़ लिया। साफ़ नज़र आ रहा था के ये सब कुछ उन्हें अच्छा लग रहा था।
राशिद ने अम्मी के मम्मों और कमर पर हाथ फेरते-फेरते सलवार के ऊपर से ही उनके चूतड़ों के बीच में अपनी उंगली डाल कर आगे पीछे हिलायी। अम्मी के मुँह से हल्की सी सिसकारी निकली। राशिद ने पतलून के बावजूद खड़े-खड़े ही अम्मी की गाँड के ऊपर दो-चार घस्से लगाये और उन्हें अपनी तरफ मोड़ कर चूमने लगा। अम्मी कुछ देर पूरी तरह उस का साथ देती रहीं। वो अपना मुँह खोल-खोल कर राशिद के होंठ चूस रही थीं। लेकिन फिर उन्होंने अपना मुँह पीछे कर लिया और बोलीं – “राशिद, ज्यादा वक़्त नहीं है। तुम बस अब अपना बेकाबू लंड अंदर करो और फटाफट फ़ारिग़ होने की कोशिश करो।“
अम्मी को इस अंदाज़ में बातचीत करते सुन कर में हैरान रह गया। अम्मी के लहजे में थोड़ी सी सख्ती थी जिसे महसूस कर के राशिद ने अपनी पतलून खोल कर नीचे की और अंडरवीयर में से उसका अकड़ा हुआ लंड एकदम बाहर आ गया। उस का लंड ख़ासा लंबा मगर पतला था। उसके लंड का टोपा सुर्खी-मायल था और मुझे साफ़ नज़र आ रहा था। अम्मी ने उस के लंड की तरफ देखा और उसे हाथ में ले लिया। राशिद उनकी क़मीज़ का दामन उठा कर मम्मों तक ले गया और फिर उनकी ब्रा बगैर खोले ही ज़ोर लगा कर उनके मम्मों से ऊपर कर दी। अम्मी के गोल-गोल और गोरे मम्मे उछल कर बाहर आ गये। उनके निप्पल तीर की तरह सीधे खड़े हुए थे जिससे अंदाज़ा लगाया जा सकता था के वो गरम हो चुकी हैं।
राशिद ने अम्मी के मोटे ताज़े मम्मे हाथों में ले लिये और उन्हें चूसने लगा। अम्मी ने अपनी आँखें बंद कर के गर्दन एक तरफ मोड़ ली और राशिद के कंधे पर हाथ रख दिया। राशिद उनके मम्मों को हाथों में भर-भर कर चूसता रहा। वो जज़्बात में जैसे होश-ओ-हवास खो बैठा था। दुनिया से बे-खबर वो किसी प्यासे कुत्ते की तरह मेरी अम्मी के खूबसूरत मम्मों को चूस-चूस कर उनसे मज़े ले रहा था। कुछ देर बाद अम्मी ने राशिद को ज़बरदस्ती अपने मम्मों से अलग किया और एक बार फिर उसे कहा के वो जल्दी करे क्योंकि मेहमान आते ही होंगे और अब तो उन्हें फिर से तैयार भी होना पड़ेगा।
राशिद बेड पर लेट गया और अम्मी को हाथ से पकड़ कर अपनी तरफ़ खींचा। अम्मी उसके साथ बेड पर बैठ गयीं तो उसने अपना लंड चूसने को कहा। अम्मी ने जवाब दिया कि – “आज लंड चूसने का वक्त नहीं है तुम बस जल्दी फ़ारिग हो जाओ!” राशिद बोला – “खाला जान बस दो मिनट चूस लें… मुझे मज़ा भी आयेगा और आपकी चूत कें अंदर करने में भी आसानी होगी!” ये सुनकर अम्मी झुक कर उसका लंड कुल्फी की तरह चूसने लगीं। राशिद ने हाथ नीचे कर के उनका दायाँ मम्मा हाथ में ले लिया और उसे मसलने लगा।
कुछ देर उसका लंड चूसने के बाद अम्मी ने फिर कहा कि – “राशिद देर ना करो!” राशिद फौरन बेड से उतरा और अम्मी को भी खड़ा कर दिया। फिर उसने अम्मी की सलवार का नाड़ा खोल दिया। अम्मी की सलवार उनके पैरों में गिर गयी। राशिद फुर्ती से अम्मी के पीछे आया और उनकी पैंटी भी टाँगों के नीचे खिसका कर पैरों के पास छोड़ दी और उनके चूतड़ों के ऊपर से क़मीज़ उठा कर उनकी कमर तक ऊँची कर दी। अम्मी के गोरे-गोरे मोटे और गोल चूतड़ नंगे नज़र आने लगे। राशिद ने अपने लंड पर ऊपर-नीचे दो-तीन दफ़ा हाथ फेरा और उसका टोपा अम्मी के मोटे चूतड़ों के अंदर ले गया। राशिद ने अपना लंड अम्मी की चूत के अंदर करने की कोशिश की मगर कामयाब नहीं हुआ। चंद लम्हों बाद राशिद ने फिर अपने लंड को अम्मी की गाँड के बीच रख कर हल्का-सा घस्सा मारा। लेखक: शकिर अली।
कोशिश के बावजूद राशिद के लंड को इस दफ़ा भी अम्मी की चूत में दाखिला ना मिल सका। अम्मी ने कहा – “ऐसे क्या कर रहे हो? थूक लगा कर डालो!” उन्होंने अपने पैरों में पड़ी सलवार से टाँगें बाहर निकलीं और अपनी सैंडल की ठोकर से उसे थोड़ा दूर खिसका दिया। पैंटी उनके एक पैर की ऊँची पेंसिल हील की सैंडल में उलझ कर रह गयी और उसकी परवाह किये बिना अम्मी सामने बेड पर हाथ रख कर थोड़ा सा और नीचे झुक गयीं ताकि राशिद को लंड उनकी चूत में घुसाने के लिये बेहतर एंगल मिल सके। राशिद ने अपने हाथ पर थूका और अम्मी की टाँगें खोल कर उनकी चूत पर अपना थूक लगाया। राशिद का हाथ उनकी चूत से लगा तो अम्मी के मुँह से ‘ऊँऊँ’ की आवाज़ निकली और उनके चूतड़ थरथरा कर रह गये।
राशिद ने अपने लंड पर भी थूक लगाया और उसे चूत से सटा दिया। अम्मी ने थोड़ा पीछे हो कर उस का लंड अपनी चूत में ले लिया। थोड़ी कोशिश के बाद राशिद अपना लंड पूरी तरह अम्मी की चूत के अंदर ले जाने में कामयाब हो गया। अम्मी ने आँखें बंद कर लीं। अब राशिद ने उनकी चूत में घस्से मारने शुरू किये। अम्मी का जिस्म भी आहिस्ता-आहिस्ता आगे-पीछे होने लगा। चुदवाते हुए अम्मी का मुँह हल्का सा खुला हुआ था और राशिद के धक्कों की वजह से उनका पूरा जिस्म हिल रहा था। मुझे अम्मी के चूतड़ आगे पीछे होते नज़र आ रहे थे। हर घस्से के साथ राशिद की रानों का ऊपरी हिस्सा अम्मी के चूतड़ों से टकराता और उनके खूबसूरत जिस्म को एक झटका लगता। क़मीज़ के ऊपर से उनके मम्मेहिलते हुए नज़र आ रहे थे। राशिद ने आगे से क़मीज़ के अंदर हाथ डाल कर अम्मी के बेक़ाबू मम्मे पकड़ लिये और अपना लंड उनकी चूत के अंदर बाहर करने लगा।
मुझे ना जाने क्यों उस वक़्त नज़ीर का ख़याल आया। मैंने अपना मोबाइल जेब से निकाला और अम्मी और राशिद की चुदाई करते हुए कई तस्वीरें ले लीं। राशिद चुदाई में नज़ीर की तरह तजुर्बेकार नहीं लग रहा था। चंद मिनटों के घस्सों के बाद उसका जिस्म बे-क़ाबू होने लगा। उसने अम्मी की कमर को पकड़ लिया और बुरी तरह अकड़ने लगा। वो अम्मी की चूत के अंदर ही खल्लास होने लगा। अम्मी ने अपने चूतड़ों को आहिस्ता-आहिस्ता तीन-चार दफा गोलाई में हर्कत दी और रशीद की सारी मनि अपनी चूत में ले ली।
जब राशिद पूरी तरह छूट गया और उसने ने अपना लंड अम्मी की चूत से बाहर निकाला तो अम्मी फ़रश से अपनी सलवार उठा कर पहनने लगी राशिद भी अपनी पतलून उठा कर बाथरूम में घुस गया। मैं खामोशी से उठा और वहीं से घर के गेट से बाहर निकल गया।
वहाँ से निकल कर मैं सड़कों पर आवारागर्दी करता रहा। एक बार फिर मैं शदीद ज़हनी उलझन का शिकार था। इस दफ़ा तो मामला अम्बरीन खाला वाले वाकये से भी ज्यादा परेशान-कुन था। अम्मी और राशिद के ताल्लुकात का इल्म होने के बाद मेरी समझ में नहीं आ रहा था के मुझे क्या करना चाहिये। क्या अब्बू से अम्मी की इस हरकत के बारे में बात करूँ? क्या अम्मी को बता दूँ के मैंने उन्हें राशिद से चुदवाते हुए देख लिया है? क्या अम्बरीन खाला के इल्म में लाऊँ कि उनका बेटा अपनी खाला यानी उनकी सग़ी बहन को चोद रहा है? क्या राशिद का गिरेबान पकड के पूछूँ कि वो मेरी अम्मी को क्यों चोद रहा था? मेरे पास फिलहाल किसी सवाल का जवाब नहीं था।
मुझे अम्मी को राशिद के साथ देख कर दुख हुआ था बल्कि सख़्त गुस्सा भी आया हुआ था। लेकिन इस से भी ज्यादा हसद की भड़कती हुई आग में जल रहा था। आख़िर राशिद में ऐसी क्या बात थी के मेरी अम्मी जैसी हसीन और शानदार औरत जो उसकी सगी खाला भी थी उसे अपनी चूत देने को रज़ामंद हो गयी थी। वो एक आम सा लड़का था जिसमें कोई ख़ास बात नहीं थी। लेकिन इस के बावजूद वो किस अंदाज़ में अम्मी से गुफ्तगू कर रहा था। लग रहा था जैसे अम्मी पूरी तरह उस के कंट्रोल में हों। मैं उनका बेटा होते हुए भी उन से बहुत ज्यादा फ्री नहीं था। हम तीनो बहन-भाई अब्बू से ज्यादा अम्मी के गुस्से से घबराते थे। मगर राशिद का तो उनके साथ कोई और ही रिश्ता बन गया था और यही बात मेरी बर्दाश्त से बाहर थी।
मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मेरी कोई बहुत क़ीमती चीज़ किसी ने छीन ली हो। आख़िर ये सब कुछ कैसे हुआ? अम्मी को राशिद में क्या नज़र आया था? अम्मी और अब्बू के ताल्लुकात भी अच्छे ही थे। उनका आपस में कोई लड़ाई झगड़ा भी नहीं था और वो एक खुश-ओ-खुर्रम ज़िंदगी गुज़ार रहे थे। फिर अम्मी ने अपने भांजे के साथ जिस्मानी ताल्लुकात क्यों कायम किये? ये सब बातें सोच कर मेरा दिमाग फटने लगा। मैं घर वापस आया लेकिन अम्मी पर ये ज़ाहिर नहीं होने दिया के में उनका राज़ जान चुका हूँ। मगर फिर चंद घंटों के अंदर ही मेरे ज़हन पर छा जाने वाली धुंध छंटने लगी और मैंने फ़ैसला कर लिया के मुझे इन हालात में क्या करना है।
मैंने फ़ैसला किया था कि मुझे खुद ही इन सारे मामलात को सुलझाना होगा। किसी को ये बताना कि राशिद मेरी अम्मी की चूत मार रहा था पूरे खानदान के लिये तबाही का मंज़र बनता। अगर मैं राशिद से इंतकाम लेता तो अम्मी भी ज़रूर उस की ज़द में आतीं और मुझे अपने तमामतर गुस्से के बावजूद ये मंज़ूर नहीं था। मुझे अम्मी से बहुत प्यार था और उनकी बद-किरदारी के बावजूद मेरे दिल में उनके लिये नफ़रत पैदा नहीं हो सकी थी। हाँ ये ज़रूर था के रद्दे-ए-अमल के तौर पर अब मैं अम्मी की चूत पर अपना हक जायज़ समझने लगा था।
हैरत की बात ये थी के मुझे ऐसा सोचते हुए कोई एहसास-ए-गुनाह नहीं था। मैंने पहले भी ज़िक्र किया है कि बाज़ हौलनाक वक़्यात इंसान को बहुत कम वक़्त में बहुत कुछ सिखा देते हैं। मेरे साथ तो ऐसे दो वक़्यात हुए थे जिन्होंने मुझे एक बिल्कुल मुख्तलीफ़ इंसान बना दिया था। अम्बरीन खाला का नज़ीर के हाथों चुद जाना और राशिद का मेरी अम्मी की चूत लेना। दोनों ने मेरी ज़िंदगी को बदल कर रख दिया था। इसीलिये शायद मुझे अब अम्मी की चूत लेने में कोई बुराई नज़र नहीं आ रही थी। मेरी कमीनगी अपनी जगह लेकिन अम्मी को चोदने की इस ख्वाहिश में हालात का सितम भी शामिल था। मामलात को संभालने के लिये ये बहुत ज़रूरी था के में कुछ ऐसा करूँ कि राशिद और अम्मी का ताल्लुक हमेशा के लिये ख़तम हो जाये। इस का बेहतरीन तरीक़ा यह था कि मैं अम्मी की ज़िंदगी में राशिद की जगह ले लूँ। मुझे यक़ीन था के मैं ऐसा करने में कामयाब हो जाऊँगा।
ये बात तो साफ़ थी के राशिद अम्मी को चोद कर यक़ीनन उनकी जिस्मानी ज़रूरत पूरी कर रहा था वरना अम्मी अपने शौहर के होते हुए अपने बेटे की उम्र के भांजे से अपनी चूत क्यों मरवा रही थीं? उनकी ये ज़रूरत अब मैं पूरी करना चाहता था। मैं फिर कहुँगा के बिला-शुबहा इस फ़ैसले में मेरे अपने ज़हन की कमीनगी भी शामिल थी। मैं अपनी दिलकश खाला को नहीं चोद पाया तो अब अपनी अम्मी को ही चोदना चाहता था। मगर ये भी तो सही था के राशिद से चुदवा कर अम्मी ने मेरे दिल से गुनाह के एहसास को मिटा दिया था। अगर वो राशिद से अपनी चूत मरवा सकती थीं तो मुझसे चुदवाने में उन्हें क्या मसला हो सकता था? इस तरह राशिद भी उनकी ज़िंदगी से निकल जायेगा और में भी उन्हें चोद पाऊँगा।
मैंने ये भी सोच लिया था के अब मेरे लिये अम्बरीन खाला की चूत लेना लाज़मी था। आख़िर हरामी राशिद ने मेरी अम्मी को चोदा था तो मैं उस की अम्मी को क्यों छोड़ूँ? अम्बरीन खाला को इस सारे मामले में लाये बगैर वैसे भी हालात ठीक नहीं हो सकते थे। वो ना सिर्फ राशिद को रोक सकती थीं बल्कि इस बात को भी यक़ीनी बना सकती थीं के ये राज़ हमेशा राज़ ही रहे। लेकिन अम्मी को चोदना सूरत-ए-हाल में एक मुश्किल काम था। मेरे मोबाइल में उनकी और राशिद की तस्वीरें मौजूद थीं मगर मैं उन्हें ब्लॅकमेल कर के उनकी चूत हासिल नहीं करना चाहता था। मेरी ख्वाहिश थी के वो खुशी से मुझे अपनी चूत दे दें। इस के लिये ज़रूरी था कि मैं उनके और ज्यादा क़रीब होने की कोशिश करूँ।
मैंने उस दिन से अम्मी को बहलाना फुसलाना शुरू कर दिया। मैं हर रोज़ किसी ना किसी वजह से उनकी तारीफ करता जिससे सुन कर वो बहुत खुश होती थीं। पता नहीं उन्होंने मेरे बदले हुए रवय्ये को महसूस किया या नहीं पर अब मैं अम्मी को उसी नज़र से देखने लगा था जिस नज़र से अम्बरीन खाला को देखता था। पहले मैं अम्बरीन खाला का तसव्वुर करके मुठ मारता था लेकिन अब मुठ मारते वक़्त अम्मी मेरे ख्यालों में होती थीं। रात को मैं अम्मी की ब्रा, पैंटी और ऊँची हील वाली सैंडल छुपा कर अपने कमरे में ले आता और फिर उन्हें सूँघता, चूमता और अपने लंड पर रगड़ कर मुठ मारता।
फिर सालाना इम्तिहानात से पहले तैयारी के लिये स्कूल की दो हफ्ते के लिये छुट्टियाँ हो गयीं और मैं ज्यादा वक़्त घर में गुज़ारने लगा। मुझे खुशी थी कि कम-अज़-कम इन छुट्टियों में राशिद का हमारे घर आना जाना भी बिल्कुल ख़तम हो जायेगा और वो अम्मी को नहीं चोद सकेगा।
एक दिन मेरे दोनों बहन-भाई नानाजान के घर गये हुए थे और घर में सिर्फ अम्मी और मैं ही थे। उस दिन मैं घर पे आने इम्तिहान के लिये पढ़ाई कर रहा था और अम्मी कुछ खरीददारी करने कार से ड्राइवर के साथ बाज़ार गयी हुई थीं। दोपहर साढ़े तीन बजे के क़रीब अम्मी घर आयीं तो काफी थकी हुई थीं। वो ड्राईंग रूम में ही सोफे पर बैठ गयीं और मैंने उन्हें पानी पिलाया। मैंने कहा कि आज तो वो बहुत थकी हुई लग रही हैं तो मैं उनका जिस्म दबा देता हूँ। वो फौरन मान गयीं। इस में कोई नई बात नहीं थी क्योंकि मैं बचपन से ही अम्मी का जिस्म दबाया करता था। हम बेडरूम में आ गये और वो बेड पर बैठ गयीं। उन्होंने पहले अपने सैंडल उतारे और फिर अपना दुपट्टा उतारा और बेड पर उल्टी हो कर लेट गयीं। लेट कर उन्होंने अपने चूतड़ों के ऊपर अपनी क़मीज़ को ठीक किया। इस के लिये उन्होंने अपने चूतड़ों को ऊपर उठाया और फिर हाथ पीछे ले जा कर उन्हें क़मीज़ के दामन से ढक दिया। अम्मी के गुदाज़ चूतड़ों की हरकत ने मेरा खून गरमा दिया। मैंने सोचा के आज अम्मी को चोदने की कोशिश कर ही लेनी चाहिये।
अम्मी के लेटने के बाद मैंने आहिस्ता-आहिस्ता उनकी कमर को दबाना शुरू कर दिया। मेरे हाथों के नीचे अम्मी की कमर का गोश्त बड़ा गुदाज़ महसूस हो रहा था। मेरी हथेलियों ने अम्मी की सफ़ेद ब्रा के स्ट्रैप को महसूस किया जो उनकी क़मीज़ में से झाँक रहा था। मेरा लंड खड़ा होने लगा। मैंने अम्मी के गोल कंधों को दोनों हाथों में पकड़ लिया और उन्हें होले-होले दबाने लगा। कंधों के थोड़ा ही नीचे उनके मोटे-मोटे मम्मे उनके जिस्म के वज़न तले दबे हुए थे। मैं अपनी उंगलियों को अम्मी के कंधों से कुछ नीचे ले गया और उनके मम्मों का बाहरी नरम-नरम हिस्सा मेरी उंगलियों से टकराया। उनको अब सरूर आने लगा था और वो आँखें बंद किये अपना जिस्म दबवा रही थीं। कमर से नीचे आते हुए मैंने बिल्कुल गैर-महसूस अंदाज़ में अम्मी के सुडौल और मोटे चूतड़ों पर हाथ रख कर उन्हें दबाया और जल्दी से उनकी गोरी पिंडलियों की तरफ आ गया। मैंने पहली दफ़ा अम्मी के चूतडों को हाथ लगाया था। मेरे जिस्म में सनसनाहट सी होने लगी। मुझे अपने लंड पर क़ाबू रखना मुश्किल हो गया।
मैंने बड़ी मुश्किल से खुद को अम्मी की गाँड की दरार में उंगली डालने से रोका। मैंने इससे पहले कभी अम्मी का जिस्म दबाते हुए उनके चूतड़ों को हाथ नहीं लगाया था इसलिये मुझे डर था कि कहीं वो बुरा ना मान जायें मगर वो चुपचाप लेटी रहीं और में इसी तरह उन्हें दबाता रहा। मेरा लंड अकड़ कर तन चुका था। तीन-चार दफ़ा अम्मी की गाँड का इसी तरह लुत्फ़ लेने के बाद मैंने एक क़दम और आगे बढ़ने का इरादा किया। मैं अपना हाथ उनकी बगल की तरफ ले गया और साइड से उनके एक मोटे मम्मे को आहिस्ता से दबाया। पहले तो उन्होंने किसी क़िस्म का रिऐक्शन ज़ाहिर नहीं किया लेकिन जब मैंने दोबारा ज़रा बे-बाकी से उनके मम्मे को हाथ में लेने की कोशिश की तो वो एक दम सीधी हो कर बैठ गयीं और बड़े गुस्से से बोलीं – “ये क्या कर रहे हो तुम शाकिर! तुम्हें शरम आनी चाहिये। मैं तुम्हारी अम्मी हूँ। पहले तुमने मेरी कमर के नीचे टटोला और अब सीने को हाथ लगा रहे हो।”
उनका चेहरा गुस्से से लाल हो गया था। अगरचे मुझे पहले ही तवक्को थी कि वो इस तरह का रद्द-ए-अमल ज़ाहिर कर सकती हैं और मैं जानता था के मुझे इसके बाद क्या करना था। लेकिन फिर भी उनका गुस्सा देख कर मेरा दिल लरज़ गया। मैंने कहा कि – “मैंने कुछ गलत नहीं किया। मैं तो आप को दबा रहा था।” उन्होंने जवाब दिया के मैं उनके सीने को टटोल रहा था जो बड़ी बे-शर्मी की बात है। ये कह कर वो गुस्से में बिस्तर से नीचे उतरने लगीं। अब मेरे पास इसके अलावा कोई चारा नहीं बचा था के में उन्हें बता देता कि मैं उनकी शरम-ओ-हया से बड़ी अच्छी तरह वाक़िफ़ हूँ। मैंने कहा – “अम्मी, जब आप राशिद को अपनी चूत देती हैं उस वक्त तो आपको कोई शरम महसूस नहीं होती! आज मैंने आप के मम्मे को ज़रा-सा हाथ लगा लिया तो आप इतना गुस्सा कर रही हैं।”
मेरे मुँह से इस तरह के जुमले को सुन कर अम्मी जैसे सन्नाटे में आ गयीं। उनके चेहरे के तासुरात फौरन बदल गये और मुँह खुला का खुला रह गया। बिस्तर से नीचे लटकी हुई उनकी टाँगें लटकती ही रहीं और वो वहीं बैठी रह गयीं। मेरे इस ज़बरदस्त हमले ने उन्हें संभलने का मौका नहीं दिया था। उनकी हालत देख कर मेरा खौफ बिल्कुल ख़तम हो गया। इससे पहले के वो कोई जवाब देतीं मैंने कहा – “अम्मी, मेहरबानी कर के अब झूठ ना बोलियेगा कि आपका और राशिद का कोई ताल्लुक नहीं है क्योंकि मैं अपनी आँखों से उसे आपको चोदते हुए देख चुका हूँ और मेरे पास इस का सबूत भी है।”
मैंने जल्दी से अपना मोबाइल निकाल कर उन्हें उनकी और राशिद की तस्वीरें दिखाईं। तस्वीरें अगरचे दूर से ली गयी थीं और थोड़ी धुंधली थीं मगर अम्मी और राशिद को साफ़ पहचाना जा सकता था। राशिद ने पीछे से अम्मी की चूत में अपना लंड डाला हुआ था और अम्मी बेड पर हाथ रखे नीचे झुकी हुई उससे अपनी चूत मरवा रही थीं। तस्वीरें देख कर अम्मी का चेहरा हल्दी की तरह ज़र्द हो गया और उनके चेहरे से सारा गुस्सा यक्सर गायब हो गया। अब उनकी आँखों में खौफ और खजालत के आसार थे। ऐसा महसूस होता था जैसे उन्होंने कोई बड़ी खौफनाक बला देख ली हो। उनकी आँखों से खौफ़ झलक रहा था।
उन्होंने कुछ देर सर नीचे झुकाये रखा और फिर बोलीं कि राशिद ने उन्हें वरगला कर उनके साथ ये सब किया है और वो अपनी हरकत पर बहुत शर्मिंदा हैं। वाक़य उन से बहुत बड़ी गलती हुई है। फिर अचानक उन्होंने रोना शुरू कर दिया। मैं जानता था के वो सफ़ेद झूठ बोल रही हैं। मैंने अपनी आँखों से अम्मी को मस्त होकर राशिद से चुदते हुए देखा था। वो जो कुछ कर रही थीं अपनी मर्ज़ी से और बड़ी खुशी से कर रही थीं। ये रोना धोना सिर्फ इसलिये था के उनका राज़ फ़ाश हो गया था।
मैं अम्मी के पास बेड पर बैठ गया और उनके जिस्म के गिर्द अपने बाज़ू डाल कर उन्हें अपनी तरफ खींचा। उन्होंने कोई मुज़ाहीमत तो नहीं की बल्कि वे और ज्यादा शिद्दत से रोने लगीं। मैं थोड़ा सा परेशान हुआ कि अब क्या करूँ। मैंने अम्मी से कहा कि वो फिक्र ना करें। मैं उनके और राशिद के बारे में किसी से कुछ नहीं कहुँगा। ये राज़ हमेशा मेरे सीने में ही दफ़न रहेगा। ये सुनना था के अम्मी ने रोना बंद कर दिया और बड़ी हैरत से मेरी तरफ देखा। मैंने फिर कहा कि – “अम्मी जो होना था वो हो चुका है। मैं अपना मुँह बंद रखुँगा मगर आप ये वादा करें के आइन्दा कभी राशिद को अपने क़रीब नहीं आने देंगी।“ उन्होंने जल्दी से जवाब दिया कि बिल्कुल ऐसा ही होगा।
अगरचे अब अम्मी इस पोज़िशन में नहीं थीं कि मेरी किसी बात को टाल सकतीं और मैं उनसे हर क़िस्म का मुतालबा कर सकता था मगर ना जाने क्यों मतलब की बात ज़ुबान पर लाते हुए अब भी मैं घबरा रहा था। बहरहाल मैंने दिल मज़बूत कर के अम्मी के गाल को चूम लिया। उन्होंने मेरी गिरफ्त से निकलने की कोशिश नहीं की मगर बिल्कुल ना-महसूस तरीक़े से अपने जिस्म को सिमटा लिया। मैंने हिम्मत कर के कहा – “अम्मी, मैं एक बार आप के साथ वो ही करना चाहता हूँ जो राशिद ने किया है। मगर मैं आपको आपकी मरज़ी से चोदना चाहता हूँ। अगर आपको मुझसे चुदवाना कबूल नहीं तो मैं आप को मजबूर नहीं करूँगा। बस मेरी यही दरखास्त होगी कि राशिद कभी आप के क़रीब नज़र ना आये।” मेरी बात सुन कर अम्मी कुछ सोचने लगीं। उन्होंने किसी क़िस्म का रद्दे-ए-अमल ज़ाहिर नहीं किया जो मेरे लिये हैरानगी का बाइस था।
कुछ देर सोच में डूबे रहने के बाद अम्मी ने कहा कि – “तुम कब इतने बड़े हो गये मुझे पता ही नहीं चला। वैसे मैं कुछ दिनों से तुम्हारे अंदर एक तब्दीली सी महसूस कर रही थी और मुझे शक था कि तुम्हारी नज़रें बदली हुई हैं।“ ये बात भी मेरे लिये हैरान-कुन थी कि अम्मी को अंदाज़ा हो गया था कि मैं उन्हें चोदने का ख्वाहिशमंद था। मैंने पूछा के उन्हें कैसे इस बात का पता चला। उन्होंने जवाब दिया मैं औरत को मर्द की नज़र का फौरन पता चल जाता है चाहे वो मर्द उसका बेटा ही क्यों ना हो। मैंने उन्हें अपनी गिरफ्त से आज़ाद किया और कहा – “अब इन बातों को छोड़ें और ये बतायें कि क्या आप मुझे चूत देंगी?
अम्मी अब काफ़ी हद तक संभल चुकी थीं। उन्होंने कहा – “शाकिर, तुम जो करना चाहते हो उस के बाद मेरा और तुम्हारा रिश्ता हमेशा के लिये बदल जायेगा। इसलिये अच्छी तरह सोच लो।“
मैंने जवाब दिया – “अम्मी, आप राशिद से भी चुदवा रही थीं… आप का और उसका रिश्ता तो नहीं बदला। वो जब यहाँ आता था तो आप दोनों को देख कर कोई ये नहीं कह सकता था के आप का भांजा आपको चोद रहा है। फिर भला हमारा रिश्ता क्यों बदल जायेगा। मैं आप की चूत ले कर भी हमेशा आप का बेटा रहूँगा। मेरे और आपके जिस्मानी रिश्ते के बारे में किसी को कभी कुछ पता नहीं चलेगा। सब कुछ वैसा ही रहेगा जैसा पहले था।“ उनके पास इस दलील का कोई जवाब नहीं था।
वो कुछ देर सोचती रहीं फिर ठंडी साँस ले कर बोलीं – “शाकिर, हम बहुत बड़ा गुनाह करने जा रहे है मगर लगता है मेरे पास तुम्हारी ख्वाहिश को पूरा करने के अलावा कोई चारा नहीं है।“
मेरे दिल में फुलझडियाँ छूटनें लगीं। मैंने अपना एक हाथ आगे कर के अम्मी का एक मोटा मम्मा पकड़ लिया। उन्होंने सर मोड़ कर मेरी तरफ देखा और कहा कि – “अभी मेरी जहनी हालत बहुत खराब है। क्या तुम कल तक सब्र नहीं कर सकते।“ मैंने कहा कि कल छोटे भाई बहन यहाँ होंगे। अम्मी ने जवाब दिया कि वे उन्हें दोबारा नाना के घर भेज देंगी वैसे भी वो वहाँ जाने की हमेशा ज़िद करते हैं। उन्होंने कहा कि वो मुनासिब माहौल बना कर फुर्सत से ये करना चाहती हैं क्योंकि वो इस तजुर्बे को यादगार बनाना चाहती थीं।
मैंने कहा – “ठीक है। मगर अम्मी, ये तो बतायें के आख़िर आप राशिद से चुदवाने पर क्यों राज़ी हुईं? क्या अब्बू आपकी जिस्मानी ज़रूरतें पूरी नहीं करते?”
अम्मी मेरे सवालात सुन कर थोड़ी परेशान हो गयीं। फिर कहने लगीं – “शाकिर, ये बातें कोई औरत अपने बेटे से नहीं करती मगर मैं तुम्हें बता ही देती हूँ कि मर्दों की तरह औरतों की भी जिस्मानी ज़रूरत होती है। पिछले कई सालों से तुम्हारे अब्बू ने मुझ में दिलचस्पी लेना बहुत कम कर दिया है। इसलिये मैंने राशिद के साथ ये काम कर लिया जो मुझे नहीं करना चाहिये था। पहल उस की तरफ से हुई थी और मुझे उसी वक़्त उसे रोक देना चाहिये था।“
वो वाज़ेह तौर पर शर्मिंदा नज़र आ रही थीं और इस गुफ्तगू से दामन बचाना चाहती थीं। मैंने भी उन्हें मज़ीद परेशान करना मुनासिब नहीं समझा और चुप हो गया। अम्मी कुछ देर बाद उठ कर बेडरूम से बाहर चली गयीं। मैं बेसब्री से अगले दिन का इंतज़ार करने लगा।
मैं अम्मी के कहने पर उस वक़्त तो खामोश हो गया लेकिन अगले दिन तक सब्र करना मुझे बड़ा मुश्किल लग रहा था। मैं वक़्त ज़ाया किये बगैर फौरी तौर पर अम्मी की चूत हासिल करना चाहता था। हर गुज़रते लम्हे के साथ मेरी ये खाहिश बढ़ती ही जा रही थी। शाम को मेरे भाई-बहन घर वापस आ गये। मौका मिला तो मैंने अलहदगी में अम्मी से कहा कि हो सके तो वो रात को मेरे कमरे में आ जायें तो मैं आज ही उन्हें चोद लुँगा। मेरे कमरे मे किसी के भी आने का डर नहीं था क्योंकि अब्बू भी कुछ दिनों के लिये कराची गये हुए थे।
मेरे दोनों छोटे बहन-भाई एक कमरे में अलग सोते थे जबकि उनके बिल्कुल साथ वाला कमरा मेरा था। अम्मी और अब्बू अपने अलहदा बेडरूम में सोया करते थे। रात के पिछले पहर भाई-बहन के सो जाने के बाद अम्मी खामोशी से मेरे कमरे में आ सकती थीं और मैं उन्हें आराम से चोद सकता था। किसी को कानोकान खबर ना होती। मेरी बात सुन कर अम्मी कुछ सोचने लगीं और फिर बोलीं कि – “ठीक है मैं रात बारह बजे के बाद थोड़ा मूड बना कर तुम्हारे कमरे में आऊँगी।“ दोनों बहन भाई भी कोई दस बजे के करीब सो गये और मैं अपने कमरे में चला आया। लेखक: शकिर अली।
नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी। आज की रात मेरी ज़िंदगी की बड़ी ख़ास रात थी। मुझे आज रात अपनी अम्मी को चोदना था जो अगरचे मेरी सग़ी अम्मी थीं मगर एक बड़ी खूबसूरत और पुरकशिश औरत भी थीं। दुनिया में ऐसे बहुत कम लोग होंगे जिन्होंने ज़िंदगी में सब से पहले जिस औरत को चोदा वो उनकी अपनी अम्मी थी। अपनी अम्मी की चूत लेने का ख़याल मेरे जज़्बात को बड़ी बुरी तरह भड़का रहा था। मैं मुसलसल सोच रहा था कि जब मेरा लंड अम्मी की चूत के अंदर जायेगा और मैं उनकी चूत में घस्से मारूँगा तो कैसा महसूस होगा। मुझे अपने जिस्म में खून की गर्दिश तेज़ होती महसूस हो रही थी।
पता नहीं कितनी ही ब्लू फिल्मों के मंज़र बड़ी तेज़ी से मेरे ज़हन में घूम रहे थे। यही सब कुछ सोचते हुए मेरा लंड अकड़ चुका था और मुझे अब ये खौफ लाहक़ हो गया था के कहीं अम्मी के आने और उनकी चूत लेने से पहले ही मैं खल्लास ना हो जाऊँ। फिर तो सारा मज़ा किरकिरा हो जायेगा। मैं बड़ी बेसब्री से बारह बजने का इंतज़ार करने लगा। मुझे अम्मी की मूड बना कर आने की बात भी समझ नहीं आ रही थी। फिर मालूम नहीं कब मेरी आँख लग गयी।
कोई साढ़े-बारह बजे अम्मी कमरे में दाखिल हुईं। दरवाज़े की चटखनी बंद करने और उनकी सैंडल की ऊँची हील की आवाज़ से में जाग गया। कमरे में लाईट ऑफ थी लेकिन रोशनदान में से काफ़ी रोशनी आ रही थी और मैं अम्मी को बिल्कुल साफ़ तौर से देख सकता था। वो बेहद सज-संवर के फिरोज़ी रंग का जोड़ा पहन कर आयी थीं और उन्होंने दुपट्टा नहीं ओढ़ा हुआ था। उनके भरे हुए मम्मे अपनी पूरी उठान के साथ तने हुए नज़र आ रहे थे। वो सीधी आ कर मेरे बेड पर बैठ गयीं। उनके चेहरे पर अलग क़िस्म का तासुर था। ऐसा लगता था जैसे वो मेरी अम्मी ना हों बल्कि कोई और औरत हों। पता नहीं ये उनका कौन सा अंदाज़ था। शायद चूत मरवाने से पहले वो हमेशा ऐसी ही हो जाती थीं या शायद मुझे चूत देने की ख़याल से उनके अंदाज़ बदले हुए थे। मैं कुछ कह नहीं सकता था। हम दोनों ही थोड़ी देर खामोश रहे। मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा था कि उन से क्या बात करूँ।
बिल-आख़िर मैंने हिम्मत कर के अम्मी का एक बाज़ू पकड़ कर उन्हें अपनी तरफ खींचा। उन्होंने मुझे रोका नहीं और खुद मेरे ऊपर झुक गयीं और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये। तब मुझे एहसास हुआ कि उन्होंने शराब पी हुई थी। अब मैं समझा कि वो शराब पी कर मूड बना रही थीं। मैंने भी एक हाथ उनके गले में डाला और उनके होठों को चूमते हुए दूसरे हाथ से उनके मम्मों को मसलने लगा। अम्मी के मम्मे बड़े-बड़े और वज़नी थे और ब्रा के अंदर होने के बावजूद मुझे उन्हें मसलते हुए ऐसा लग रहा था जैसे मैंने उनके नंगे मम्मों को हाथों में पकड़ रखा हो। उनकी ब्रा शायद बहुत महीन कपड़े से बनी थी। मैंने उनके मम्मों को ज़रा ज़ोर से दबाया तो उनके मुँह से हल्की सी सिसकी निकल गयी। उन्होंने अपने मम्मों पर से मेरे हाथ हटाया और मेरे कान के पास मुँह ला कर पूछा कि क्या मैंने पहले कभी सैक्स किया है?
यही सवाल मुझ से नज़ीर ने भी किया था जब वो पिंडी में अम्बरीन खाला की चूत मार रहा था। मुझे अपनी ना-तजुर्बेकारी पर बड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई मगर मैंने बहरहाल ‘नहीं’ में सर हिला दिया। अम्मी ने कहा कि मैं उनके मम्मे आहिस्ता दबाऊँ क्योंकि ज़ोर से दबाने पर तकलीफ़ होती है। ये सुन कर मैंने दोबारा अम्मी के तने हुए भरपूर मम्मों की तरफ हाथ बढ़ाया लेकिन उन्होंने फिर मुझे रोक दिया और उठ कर लाईट ऑन कर दी।
फिर वहीं दूर खड़े-खड़े ही मुस्कुराते हुए बड़ी अदा से अपनी क़मीज़ उतारने लगीं। क़मीज़ उनके मम्मों के ऊपर से होती हुई सर पर आयी जिसे उतार कर उन्होंने उसे बेड पर एक तरफ रख दिया। उनका गोरा जिस्म रोशनी में निहायत खूबसूरत लग रहा था। बड़े-बड़े उभरे हुए मम्मे लाल रंग की ब्रा में से काफ़ी हद तक नंगे नज़र आ रहे थे और यों लग रहा था जैसे दो लाल तोपों ने अपने दहाने मेरी तरफ कर रखे हों। अम्मी के मम्मे बड़े और भारी होने के साथ-साथ काफ़ी चौड़े भी थे और ऐसा लगता था जैसे उनके दोनों मम्मों के दरमियाँ बिल्कुल कोई फासला नहीं था। अम्मी का बेदाग और फ्लैट पेट और बिल्कुल गोल नाफ भी नज़र आ रहे थे। मैंने सोचा के क्या अब्बू का दिमाग खराब है जो अम्मी जैसी खूबसूरत और हसीन सैक्सी औरत को चोदना नहीं चाहते? ऐसा कौन सा मर्द होगा जो अम्मी की चूत नहीं लेना चाहेगा।
अम्मी किसी मॉडल की तरह ऊँची हील की सैंडल में अदा से कैटवॉक करके चलती हुई मेरे पास आ गयीं। उनकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। उन्होंने भी देख लिया था कि मैं उनके जिस्म को ललचाई हुई नज़रों से देख रहा था। वो ब्रा,सलवार और सैंडल उतारे बगैर ही बेड पर चढ़ कर मेरे साथ लेट गयीं। मैं हज़ारों दफ़ा अपनी अम्मी के साथ लेटा था मगर आज की रात मामला ज़रा मुख्तलीफ़ था।
मैंने भी फौरन अपने कपड़े उतार दिये और बिल्कुल नंगा हो कर अम्मी की तरफ करवट ली और उन से लिपट गया। जैसे ही मेरा नंगा जिस्म उन के आधे नंगे जिस्म से टकराया मुझे लगा जैसे मेरे लंड में आग सी लग गयी हो। अम्मी का जिस्म नर्म-ओ-मुलायम और हल्का सा गरम था। मेरा लंड फौरन ही खड़ा होने लगा। अम्मी ने अपनी रानों के पास मेरे लंड का दबाव महसूस किया और मेरी तरफ देखा। उनकी आँखों में किसी क़िस्म की तशवीश या शर्मिंदगी नहीं थी।
उसी वक़्त मेरे ज़हन में एक बहुत ही परेशान-कुन ख़याल आया। मैंने ब्लू-फिल्मों में चुदाई का काफ़ी मुशाहिदा किया था और या फिर नज़ीर को अम्बरीन खाला की फुद्दी लेते हुए देखा था। लेकिन आज तक मुझे किसी औरत को चोदने का इत्तेफ़ाक नहीं हुआ था। मेरे दिल में अचानक ये खौफ पैदा हुआ कि कहीं ऐसा ना हो मैं अम्मी को अपनी ना-तजुर्बेकारी की वजह से ठीक तरह चोद ना सकूँ। फिर क्या होगा? मैं इस एहसास-ए-कमतरी का भी शिकार था कि राशिद चुदाई में मुझ से ज्यादा तजुर्बेकार और बेहतर था। मैंने खुद अपनी आँखों से उसे अम्मी को चोद कर उनकी फुद्दी में अपनी मनि छोड़ते हुए देखा था। उसने यक़ीनन और भी कई दफ़ा अम्मी की फुद्दी मारी थी और मुझे ये भी एहसास था कि वो अम्मी को तसल्लीबख्श तरीके चोदता होगा क्योंकि अगर ऐसा ना होता तो अम्मी बार-बार उसे अपनी फुद्दी मारने देतीं? आज अगर में अम्मी को राशिद जैसा मज़ा ना दे सका तो क्या होगा? अम्मी ने मुझे बताया था के अब्बू उन्हें अब कभी-कभार ही चोदते थे। उन्हें मुझ से भी मज़ा ना मिला तो वो अपना वादा तोड़ कर दोबारा राशिद से चुदवाना शुरू कर सकती थीं। ये बात मुझे हरगिज़ क़बूल नहीं थी। मुझे हर सूरत में एक काबिल मर्द की तरह अम्मी की चूत की ज़रूरियात पूरी करनी थीं।
अम्मी मेरे चेहरे से भाँप गयीं के मुझे कोई परेशानी लहक़ है। उन्होंने पूछा – “क्या बात है, शाकिर? क्या सोच रहे हो?” मैं कुछ सटपटा सा मगर फिर उन्हें बता ही दिया कि – “अम्मी, आज मैं पहली दफ़ा सैक्स कर रहा हूँ और मैं डर रहा हूँ कि कहीं आपको मुझे अपनी चूत देकर मायूसी ना हो। मैं जल्दी खल्लास होने से डरता हूँ और इसी वजह से कुछ परेशान हूँ।“
अम्मी हंस पड़ीं और मेरा हौसला बढ़ाते हुए कहा – “पहली दफ़ा सब के साथ ऐसा ही होता है। तुम फिक्र ना करो। चुदाई इंसान की फ़ितरत है और रफ़्ता-रफ़्ता खुद-ब-खुद ही सब कुछ समझ आ जाता है।“ मैं उनकी बात गौर से सुन रहा था। फिर उन्होंने कहा कि – “तुम तो कम-उम्र लड़के हो… तुम से चुदवा कर तो हर औरत खुश होगी। कुछ ही दिनों में तुम इस काम में माहिर हो जाओगे! और फिर मैं तो तजुर्बेकार हूँ… कितनों को… मेरा मतलब राशिद को भी सिखाया है तो वैसे ही तुम्हारी मदद भी करुँगी।”
दोस्तों आगे की कहानी अगले भाग में भेजुगा तब के लिए आप लोगो से विदा चाहता हु और आप लोग कमेंट कर के बताते रहिये कहानी कैसी लगी |