प्रिय पाठको, आशा करती हूं कि आप लोग मेरी कामुक गाथा के पहले 3 भागों को पढ़ चुके होंगे। अब मैं उसी के चौथे भाग के साथ आपके सम्मुख फिर हाजिर हूं। अबतक आप लोगों ने पढ़ा कि किस तरह मैं तीन वासना के भूखे बूढ़ों की कामुकता की शिकार बन कर उनकी काम क्षुधा शांत करने की सुलभ साधन बन चुकी थी। उन्होंने अपनी कुटिल चाल से अपने जाल में फंसाकर अपनी कामुकता भरी विभिन्न वहशियाना तरीकों से मेरी देह का भोग लगा कर मुझ नादान अबोध बालिका को पुरुष संसर्ग के नितांत अनिर्वचनीय आनंद से परिचित कराया। अब आगे….
रात में दो बजे तक कामपिपाशु नानाजी ने मुझे कुत्ती की तरह चोद चोद कर मेरे तन का पुर्जा पुर्जा ढीला कर दिया था। सुबह करीब 8 बजे मेरी नींद खुली। हड़बड़ा कर उठी और सीधे बाथरूम घुसी। बड़े जोर का पेशाब लग रहा था, चुद चुद कर मेरी चूत का दरवाजा इतना बड़ा हो गया था कि पेशाब रोकने में सफल न हो सकी और टायलेट घुसते घुसते ही भरभरा कर पेशाब की धार बह निकली। नानाजी के विशाल श्वान लौड़े की बेरहम चुदाई से मेरी चूत फूल कर कचौरी की तरह हो गई थी और किसी कुतिया की तरह थोड़ी बाहर की ओर भी उभर आई थी। मेरी अर्धविकसित चूचियां जालिम नानाजी के बनमानुषि पंजों के बेदर्द मर्दन से लाल होकर सूज गई थी। मेरी चूचियों और चूत में मीठा मीठा दर्द उठ रहा था। टायलेट से फारिग हुई और नंग धड़ंग आदमकद आईने के सामने खड़ी हो कर अपने शरीर का बारीकी से मुआयना करने लगी और यह देख कर विस्मित थी कि दो ही दिन में मेरी काया कितनी परिवर्तित हो गई थी, निखरी निखरी और आकर्षक।
“इस लड़की को आखिर हुआ क्या है? इतनी देर तक तो सोती नहीं है। कामिनी उठ, इतनी देर तक कोई सोता है क्या?” मम्मी की आवाज से मेरा ध्यान भंग हुआ और “आती हूं मां,” कहती हुई हड़बड़ा कर फ्रेश हो कर बाहर आई।
ड्राइंग हॉल में जैसे ही आई, मैंने देखा कि तीनों बूढ़े एक साथ बैठे हुए आपस में खुसर फुसर कर रहे थे। जैसे ही उन्होंने मुझे देखा, चुप हो गये और बड़े ही अजीब सी नजरों से मुझे देखने लगे। उनके होंठों पर मुस्कान खेल रही थी और आंखों पर चमक।
“आओ बिटिया, लगता है रात को ठीक से नींद नहीं आई।” दादाजी रहस्यमयी मुस्कुराहट के साथ बोल उठे।
मैं ने नानाजी की ओर घूर कर देखा और बोली, ” नानाजी आप जरा इधर आईए,” और बोलते हुए बाहर बगीचे की ओर चली। पीछे-पीछे नानाजी किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह मेरे पास आए।
“क्या हुआ” उन्होंने पूछा।
” क्या बात कर रहे थे आपलोग?” मैं ने गुस्से से पूछा।
“अरे और क्या, ऊ लोग पूछ रहे थे कि रात को का का हुआ?” नानाजी बोले।
” और आपने उन्हें सब कुछ बता दिया, है ना?” मैं नाराजगी से बोल पड़ी।
” हां तो और का करता? पीछे ही पड़ गये थे साले। आप यह हॉट हिंदी सेक्सी कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | मुझे बताना ही पड़ा।” नानाजी बोले।
ये भी पढ़े: मेरी इज्जत अब तुम्हारे हवाले इसे लुट लो
हाय रे मेरे बेशरम कुत्ते राजा, आप सब बहुत हरामी हो।” मैं बोली। समझ गई कि मैं इन हवस के पुजारी बूढ़ों के चंगुल में फंसकर उनकी साझा भोग्या बन गयी हूं। मैं ने भी हालात से समझौता करने में कोई नुक्सान नहीं देखा, आखिर मैं भी तो उनकी कामुकता भरी कामकेलियों में बेशर्मी भरी भागीदारी निभा कर अभूतपूर्व आनंद से परिचित हुई और अपने अंदर के नारीत्व से रूबरू हुई। अपने स्त्रीत्व के कारण प्राप्त होने वाले संभोग सुख से परिचित हुई।
“ठीक है कोई बात नहीं मेरे कुत्ते राजा, मगर अपनी कुतिया की इज्जत परिवार वालों के सामने कभी उतरने मत देना। यह राज सिर्फ हम चारों के बीच ही रहनी चाहिए, ठीक है ना!” कहते हुए घर की ओर मुड़ी।
” ठीक है हमरी कुतिया रानी, ई बात किसी पांचवे को पता ना चलेगा।” कहते हुए मेरे पीछे पीछे आए और हम साथ नाश्ते की टेबल पर बैठे जहां दोनों बूढ़े, परिवार के बाकी लोगों के साथ बैठे थे। नाश्ते के वक्त पूरे समय तीनों बूढ़े मुस्कुराते मुझे शरारती नज़रों से देख रहे थे। मेरे मन में इन बूढ़ों के प्रति कोई गिला शिकवा नहीं रह गया था बल्कि अपने ऊपर चकित थी कि मुझे उन बूढ़े वासना के पुजारियों पर प्यार क्यों आ रहा था। मैं ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए मम्मी से शिकायत भरे लहजे में कहा “देखो ना मम्मी दादाजी और नानाजी मुझ पर हंस रहे हैं।”
कहानी जारी है … आगे की कहानी पढ़ने के लिए निचे दिए पेज नंबर पर क्लिक करें ….