प्रेषक: राहुल सिंह
दोस्तों मै हु चुदक्कड यानी आपका दोस्त राहुल सिंह ये कहानी जो आज आप लोग पढने जा रहे है मेरे एक दोस्त के चाचा की है मेरे दोस्त के घर आते जाते उसके चाचा से गहरी दोस्ती हो गयी अब हम दोनों लोग एक दुसरे की हर बाते शेयर करते है अब आप लोग यह कहानी उनहीं शब्दों में सुनिए… मेरी उम्र करीब ३३ साल है मैं एक प्राइवेट ऑफिस मैं मैंनेजर हूँ एक दिन शाम को ऑफीस से जल्दी घर जा रहा था.रास्ते मे अचानक एक गेद मेरे सिने पर लगी.मैंने नजर उठा कर देखा तो एक घर की छत पर एक १६-१७ साल की लड़की और एक ११ साल का लड़का खड़े थे,जो की शायद खेल रहे होगे ओर उनकी गेद मुझे आकर लगी.मैंने वो गेद उठाई ओर उनकी तरफ फैंकते हुए कहा की ध्यान रखकर खेलो, किसी को लग जाएगी.वो कुछ भी नही बोले.ओर मेरी तरफ देखते रहे.फिर मे जाने लगा.काफ़ी दूर जाकर मैंने सोचा की क्या बात हो सकती हे ये बच्चे मुझे बड़े गोर से देख रहे थे.इसी कशमकश मे मैंने पलट कर देखा,तो मैंने पाया की वो दूर से अभी तक भी मुझे देख रहे थे.फिर मे चला गया.ओर अपने घर आकर अपने कामो मे मशरूफ हो गया.दूसरे दिन मे रात को 9 ब्जे वही से निकला , तो मैंने देखा की वो १६-१७ साल की लड़की छत पर खड़ी किसी का इन्तिजार कर रही थी.मैंने गुज़रते हुए एक बार उसकी तरफ देखा, तो पाया की वो बड़े ही गोर से मेरी तरफ देख रही हे.मुझे एसा महसूस हुआ की शायद वो मेरा ही इन्तिजार कर रही थी.खैर मे चुप चाप वहा से चला गया.मैंने इस बात को नॉर्मल ही लिया.तीसरे दिन ऑफीस मे ज़्यादा काम होने की वजह से मे रात 11 बजे फ्री हुआ.ओर घर की तरफ जाने लगा.तो मैंने देखा की वही लड़की छत पर बैठी मेरा इन्तिजार कर रही है.मैं हेरत भरी निगाहो से उसे देखता हुआ चला गया.अब रात को मेरा सोना भी दुश्वार हो गया.सोचता रहा की ये लड़की जिसकी उम्र मुझसे आधी भी नही हे,ये क्यू मेरा इन्तिजार करती है ? आख़िर क्या बात है,ये रोजाना मुझे मोहब्बत भरी निगाहो से क्यू देखती है.ओर ये क्या चाहती हे.इनहीं ख़यालो मे मैं कब नींद की आगोश मे चला गया मुझे पता भी नही चला.इस तरह ये सिलसिला कई माह तक चला मे रोजाना ऑफीस से घर को जाता ओर देखता रास्ते मे वही लड़की अपने घर की छत पर मेरा इन्तिजार कर रही होती.उसे ये भी मालूम था की शुक्रवार को मेरी छुट्टी रहती है इसलिए वो शुक्रवार को इन्तिजार नही करती.मुझे भी पता नहीं क्या हो गया की गुज़रते हुए मे उसकी छत पर ना चाहते हुए भी ज़रूर देखता. एक बार रात को मे ऑफीस से लॉट रहा था तो मैंने उस लड़की की छत पर देखा मुझे वो नजर नहीं आई.फिर मेरी नज़र उसके घर के दरवाजे पर पड़ि , मैंने देखा की वो दरवाजे पर खड़ी शायद मेरा ही इन्तिजार कर रही थी.मुझे आता देख कर वो मेरी तरफ आने लगी.ओर मेरे पास आकर एक लेटर मेरी तरफ बढ़ाते हुए बोली की ये लो, ये आपके लिए है.मैंने पूछा की ये क्या हे ? तो वो बोली की इसे घर जाकर पढ़ना सब समझ मे आ जाएगा.मैंने कुछ सोच कर वो लेटर लेलिया.ओर चलने लगा.घर पहुचते ही मैंने जल्दी से उस लेटर को खोला ओर देखा , तो मेरी आँखे फटी की फटी रह गई , उसमे लिखा था ” ए अजनबी इंसान, जब से आपको देखा है आप ही के ख़यालो मे गुम हू.जिस दिन आपका दीदार नहीं होता वो दिन मेरी जिंदगी का सब्से बेकार दिन होता है.रोजाना आपके दीदार से अपनी आँखो की प्यास बुझाती हू.ओर आपके दीदार के लिए दिन भर रात के आने का इन्तिजार करती हू.हर वक्त आपके ख़यालो मे गुम रहती हू, खाना पीना खेलना कुछ भी अछा नहीं लगता.इसे मे क्या कहूँ , मोहब्बत का नाम दुगी तो शायद आपको बुरा लग जाए.की आपकी ओर मेरी उम्र मे बहुत ज़्यादा फरक है.मगर प्यार उम्र को नहीं देखता , दिल को ओर उसके ज़ज्बात को देखता है.मे नहीं जानती की आप मुजसे मोहब्बत करेगे या नहीं मगर मे आपसे बेहद मोहब्बत करने लगी हू.अगर मुझे अपनी मोहब्बत के काबिल समझो तो मेरे लेटर का जवाब ज़रूर देना.ये लेटर पढ़कर मे सोचता ही रह गया , ये नादानी है या प्यार ? वो लड़की अभी तक बच्ची है,फिर उसने ये सब केसे किया क्यू किया.इसी तरह सोचते सोचते मुझे नींद आगाई.ये प्यार नहीं बलकी ये तो बचपना है,नादानी है.मैंने सोचा की करू भी तो क्या करूँ.फिर इसमे मुझे अपनी भी कुछ ग़लतिया नजर आई,वो ये की क्यू मे रोजाना वाहा से गुज़रता हू.ओर क्यू मेरी नज़र उसे देखती है.मुझे अपने उपर सरमींदगी महसूस हुई.फिर मैंने सोचा की इसको समझना चाहिए.मैंने एक जवाबी लेटर लिखा जिसमे मैंने उससे अकेले मे मिलने की ख्वाहिश का इज़हार किया.वो पढ़कर बहुत खुश हुई.ओर मिलने को राज़ी हो गई.एक पार्क मे हम दोपहर के वक्त मिले.मैंने उसे कहा की देखो अभी तुम बहुत छोटी हो, तुम्हारी इन सब चीज़ो की उम्र नहीं है.तो वो बोली की प्यार उम्र नहीं देखता. आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | मैंने कहा की जिसे तुम प्यार का नाम देती हो वो प्यार नहीं , बलकी नादानी हे, बचपना है.वो बोली की आप मुजसे प्यार करते है या नहीं मे नहीं जानती , मगर मे आपसे अपनी जान से ज़्यादा मोहब्बत करती हू.मैंने उसे हर तरीक़े से समझने की कोशिशे की मगर वो कम उम्र लड़की मेरी हर बात का जवाब देकर मुझे खामोश कर देती.आख़िर मे मैंने कहा की आज के बाद मे उस रास्ते से नहीं गुजरगा, जहा तुम रहती हो.वो बोली की मे फिर भी इन्तिजार करूगी.फिर वो चली गई.ओर मे भी घर आ गया. मै हर वक्त यही सोचता रहता की इसकी नादानी इसकी जिंदगी बर्बाद कर देगी, ये बच्ची समझने के लिए बिल्कुल तय्यार नहीं.मे कई दिन तक उस रास्ते से नहीं जाता जहा पर उसका घर आता था.फिर मेरे एक दोस्त ने एक दिन मुजसे कहा की यार घर जाते हुए मे रास्ते मे एक लड़की को छत पर उदास उदास बैठा देखता हू,वो रोजाना जेसे किसी के इन्तिजार मे आँखे बिछाए बैठी रहती है. आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | रात को 12 ब्जे तक वो एसे ही अपने घर की छत पर बैठी नीचे देखती रहती है.ये सुनकर मेरा दिल पासिज़ गया , ओर आँखो से आँसू बहने लगे.मे समझ गया की ये वो ही नादान लड़की हे , ओर वो मेरा इन्तिजार करती रहती है.उस दिन मे भी उसी रास्ते से निकला , मुझे आता देख कर वो खुशी से झूमने लगी.मैंने उसकी उदास आँखो मे एक नई चमक देखी.उस मंज़र को मे बयान नहीं कर सकता की उसकी खुशी का आलम क्या था.मैंने एक नजर देखा फिर नज़रे नीची करके चला गया.मगर ये सारा मामला मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा था.बार बार ना चाहते हुए भी ख़याल उसकी तरफ चले जाते.दूसरे दिन मे स्कूटेर प्र कही जा रहा था , ओर इनहीं ख़यालो मे गुम सोचता हुआ जा रहा था , की अचानक एक टॅक्सी से टकरा गया.ओर मेरा एक हाथ ज़ख्मी हो गया.दर्द ज़्यादा होने की व्जाह से डॉक्टर ने हाथ पर पट्टी बाँध दी थी.दूसरे दिन मे रात ऑफीस से उसी रास्ते से गुजरा , तो देखा की वो लड़की छत पर उसी तरह बैठी है.उसकी नज़र मेरे हाथ पर पड़ी , जिसपर पट्टी बँधी हुई थी.वो दौड़कर नीचे आई.ओर चुप चाप मेरे पीछे पीछे चलने ल्गी.फिर एक सुनसान जगह देखकर उसने कहा की रुकिये तो………… मे रुका.उसने पूछा की ये चोट केसे आई.मैंने कहा की कल आक्सिडेंट हो गया था.ये सुनकर उसके चहरे का रंग उड़ गया.ओर बोली की ज़्यादा चोट तो नहीं आई ? तो मैंने गुस्से मे कहा की ये सब तुम्हारी वजह से हुआ है.ओर मे गुस्से मे जल्दी जल्दी कदम बढ़ाता हुआ चला गया.मैंने महसूस किया की वो रोटी हुई वापस चली गई.मुझे घर जाकर अपनी बात का बेहद दुख हुआ.मैंने सोचा की यार मैंने क्यू उस मासूम लड़की का दिल दुखा दिया , मुझे एसा नहीं करना चाहिए था.फिर मैंने एक लेटर उसके नाम लिखा जिसमे मैंने उससे कल वाली बात की माफी माँगी,ओर सोचा की कल ऑफीस से वापस आते वक्त उसे देदुगा.दूसरे दिन जब मे ऑफीस से उस रास्ते से गुजरा , तो ये देख कर मेरे होश उड़ गये की उस लड़की के हाथ पर भी पट्टी बँधी हुई थी.मे कुछ सोचता हुआ कुछ दूर गया , मैंने पीछे किसी के कदमो की आहट सुनी.पलट कर देखा तो वो लड़की खड़ी थी.मैंने उससे पूछा की ये तुम्हारे हाथ को क्या हो गया ? तो वो बदी मासूमियत से बोली की मेरी वजाह से आपका आक्सिडेंट हुआ , इसी लिए आज मैंने अपने हाथ को भी ज़ख्मी कर लिया.ये सुनकर मेरे तो हवाश ही जाते रहे.फिर वो बोली की इन हाथो को मैंने इसलिए भी ज़ख्मी किया हे ताकि मुझे अपने महबूब की तकलीफ़ का अहसास हो सके.मैंने उससे कहा की ये पागलपन हे , वो बोली की नहीं ये सच्चा प्यार हे.फिर मे चला गया.पर रात भर उसकी दीवानगी मेरी आँखो के सामने घूमती रही.मे क्या करू इस नादान लड़की का ? इसको हर तरीक़े से समझा कर देख लिया मगर इसके दिमाग़ मे कुछ आता ही नहीं.अगर ये इसी तरह करती रही तो , मे भी बदनाम हो जाउन्गा ओर इसका तो पता नहीं क्या होगा.मैंने ये फेसला किया की इसके मा बाप से बात करनी चाहिए शायद वो इसकी बीमारी का इलाज़ कर सकें.मे हिम्मत करके दिन मे उसके घर गया ओर उसके अम्मी पापा से हाथ जोड़कर कहने लगा की आप मुझे ग़लत मत समझना , ओर मेरी बातो का बुरा मानने के बजाय उस पर गोर करना.फिर मैंने उनको सारी कहानी बता दी.मेरी बाते सुनने के बाद उसके पापा बोले की शुक्रिया जनाब , की आपने हमें वक्त पर सब कुछ बता दिया ,वरना हम तो बदनाम हो जाते.वो मेरी बतो का बिल्कुल बुरा नहीं माने.ओर मुझे बा इज़्ज़त विदा किया.मुझे दरवाजे तक पहुचा कर वो अंदर गये ओर जाते ही उन्होने उस लड़की को बुरी तरह से मारना सुरू किया.वो लड़की बे तहाशा रो रही थी, ओर कह रही थी की पापा आप मुझे जान से मार दे मगर मे उस शख्स से मोहब्बत करती रहूगी.ओर उसके मा बाप उसे मारते रहे. आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | मै अपने घर चला गया.मगर मुझे बहुत ज़्यादा दुख हो रहा था , की मे कैसा जालिम हू की जो मेरे लिए अपनी जान की भी फ़िक़र नहीं कर रही मे उसे उसके मा बाप से पिटवा रहा हू , जेसे की मे ही उसे अपने से मोहब्बत करने की सज़ा दिला रहा था.मेरा दिल बहुत दुखी हुआ.
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