प्रेषिका : रूचि शाक्या
मै रूचि हूँ घर में बैठे बैठे बोरिंग लगती है तो मस्ताराम.नेट पर कहानियां पढ़ती रहती हु आज मै अपनी कहानी लिख रही हूँ सच्ची है | मैं अपनी चालीस की उम्र पार कर चुकी थी। पर तन का सुख मुझे बस चार-पांच साल ही मिला। मैं २६ वर्ष की ही थी कि मेरे पति एक बस दुर्घटना में चल बसे थे। मेरी बेटी की शादी मैंने उसके अठारह वर्ष होते ही कर दी थी। अब मुझे बहुत अकेलापन लगता था। पड़ोसी नैना का जवान लड़का मंदन अधिकतर मेरे यहाँ कम्प्यूटर पर काम करने आता था। कभी कभी तो उसे काम करते करते बारह तक बज जाते थे। वो मेरी बेटी रिया के कमरे में ही काम करता था। मेरा कमरा पीछे वाला था … मैं तो दस बजे ही सोने चली जाती थी। एक बार रात को सेक्स की बचैनी के कारण मुझे नींद नही आ रही थी व इधर उधर करवटें बदल रही थी। मैंने अपना पेटीकोट ऊपर कर रखा था और चूत को हौले हौले सहला रही थी। कभी कभी अपने चुचूकों को भी मसल देती थी। मुझे लगा कि बिना अंगुली घुसाये चैन नहीं आयेगा। सो मैं कमरे से बाहर निकल आई। मंदन अभी तक कम्प्यूटर पर काम कर रहा था। मैंने बस यूं ही जिज्ञासावश खिड़की से झांक लिया। मुझे झटका सा लगा। वो इन्टरनेट पर लड़कियों की नंगी तस्वीरें देख रहा था। मैं भी उस समय हीट में थी, मैं शान्ति से खिड़की पर खड़ी हो गई और उसकी हरकतें देखने लग गई। उसका हाथ पजामे के ऊपर लण्ड पर था और धीरे धीरे उसे मल रहा था। ये सब देख कर मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई। मेरे हाथ अनायास ही चूत पर चले गये, और सहलाने लग गये। कुछ ही समय में उसने पजामा नीचे सरका कर अपना नंगा लण्ड बाहर निकाल लिया और सुपाड़ा खोल कर मुठ मारने लगा। मन कह रहा था कि तेरी प्यासी आंटी चुदवाने को तैयार है, मुठ काहे मारता है? तभी उसका वीर्य निकल पड़ा और उसने अपने रूमाल से लण्ड साफ़ कर लिया। अब वो कम्प्यूटर बंद करके घर जाने की तैयारी कर रहा था। मैं फ़ुर्ती से लपक कर अपने कमरे में चली आई। उसने कमरा बन्द किया और बाहर चला गया। उसके जाते ही मेरे खाली दिमाग में सेक्स उभर आया। मेरा जिस्म जैसे तड़पने लगा। मैंने जैसे तैसे बाथरूम में जा कर चूत में अंगुली डाल कर अपनी अग्नि शान्त की। आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | पर दिल में मंदन का लण्ड मेरी नजरों के सामने से नहीं हट पा रहा था। सपने में भी मैंने उसके लण्ड को चूस लिया था। अब मंदन को देख कर मेरे मन में वासना जागने लगी थी। मुझे लगा कि मंदन को भी कोई लड़की चोदने के लिये नहीं मिल रही है, इसीलिये वो ये सब करता है। मतलब उसे पटाया जा सकता है। सुबह तक उसका लण्ड मेरे मन में छाया रहा। मैंने सोच लिया था कि यूं ही जलते रहने से तो अच्छा है कि उसे जैसे तैसे पटा कर चुदवा लिया जाये, बस अगर रास्ता खुल गया तो मजे ही मजे हैं। मंदन सवेरे ही आ गया था। वो सीधे कम्प्यूटर पर गया और उसने कुछ किया और जाने लगा। मैंने उसे चाय के लिये रोक लिया। चाय के बहाने मैंने उसे अपने सुडौल वक्ष के दर्शन करा दिये। मुझे लगा कि उसकी नजरें मेरे स्तनों पर जम सी गई थी। मैंने उसके सामने अपने गोल गोल चूतड़ों को भी घुमा कर उसका ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश की और मुझे लगा कि मुझे उसे आकर्षित में सफ़लता मिल रही है। मन ही मन में मैं हंसी कि ये लड़के भी कितने फ़िसलपट्टू होते हैं। मेरा दिल बाग बाग हो गया। लगा कि मुझे सफ़लता जल्दी ही मिल जायेगी। मेरा अन्दाजा सही निकला। दिन में आराम करने के समय वो चुपके से आ गया और मेरी खिड़की से झांक कर देखा। उसकी आहट पा कर मैं अपना पेटीकोट पांवों से ऊपर जांघों तक खींच कर लेट गई। मेरे चिकने उघाड़े जिस्म को वो आंखे फ़ाड़-फ़ाड़ कर देखता रहा, फिर वो कम्प्यूटर के कमरे में आ गया। ये सब देख कर मुझे लगा चिड़िया जाल में उलझ चुकी है, बस फ़न्दा कसना बाकी है। रात को मैं बेसब्री से उसका इन्तज़ार करती रही। आशा के अनुरूप वो जल्दी ही आ गया। मैं कम्प्यूटर के पास बिस्तर पर यूँ ही उल्टी लेटी हुई एक किताब खोल कर पढने का बहाना करने लगी। मैंने पेटीकोट भी पीछे से जांघो तक उठा दिया था। आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | ढीले से ब्लाऊज में से मेरे स्तन झूलने लगे और उसे साफ़ दिखने लगे। ये सब करते हुये मेरा दिल धड़क भी रहा था, पर वासना का जोर मन में अधिक था। मैंने देखा उसका मन कम्प्यूटर में बिलकुल नहीं था, बस मेरे झूलते हुये सुघड़ स्तनों को घूर रहा था। उसका पजामा भी लण्ड के तन जाने से उठ चुका था। उसके लण्ड की तड़प साफ़ नजर आ रही थी। उसे गर्म जान कर मैंने प्रहार कर ही दिया। “क्या देख रहे हो मंदन…?” “आं … हां … कुछ नहीं रूचि आण्टी… !” उसके चेहरे पर पसीना आ गया था। “झूठ… मुझे पता है कि तुम ये किताब देख रहे थे ना ……?” उसके चेहरे की चमक में वासना साफ़ नजर आ रही थी। वो कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और मेरे पास बिस्तर के नजदीक आ गया। “आण्टी, आप बहुत अच्छी हैं, एक बात कहूँ ! आप को प्यार करने का मन कर रहा है।” उसके स्वर में प्यार भरी वासना थी। मैंने उसे अपना सर घुमा कर देखा,”आण्टी हूँ मैं तेरी, कर ले प्यार, इसमे शर्माना क्या…” वो धीरे से मेरी पीठ पर सवार हो गया और पीछे से लिपट पड़ा। उसकी कमर मेरे नितम्बो से सट गई। उसका लण्ड मेरे कोमल चूतड़ों में घुस गया। उसके हाथ मेरे सीने पर पहुंच गये। पीछे से ही मेरे गालों को चूमने लगा। भोला कबूतर जाल में उलझ कर तड़प रहा था। मुझे लगा कि जैसे मैंने कोई गढ़ जीत लिया हो। मैंने अपनी टांगें और चौड़ी कर ली, उसका लण्ड गाण्ड में फ़िट करने की उसे मनमानी करने में सहायता करने लगी। “बस बस, बहुत हो गया प्यार … अब हट जा…” मेरा दिल खुशी से बाग बाग हो गया था। “नहीं रूचि आण्टी, बस थोड़ी सी देर और…” उसने कुत्ते की भांति अपने लण्ड को और गहराई में घुसाने की कोशिश की। मेरी गाण्ड का छेद भी उसके लण्ड को छू गया। उसके हाथ मेरी झूलती हुई चूंचियों को मसलने लगे, उसकी सांसें तेज हो गई थी। मेरी सांसे भी धौकनीं की तरह चलने लगी थी। दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। लगा कि मुझे चोद ही डालेगा। “बस ना… मंदन …तू तो जाने क्या करने लगा है …ऐसे कोई प्यार किया जाता है क्या ? …चल हट अब !” मैंने प्यार भरी झिड़की दी उसे। वास्तव में मेरी इच्छा थी कि बस वो मुझे पर ऐसे ही चढ़ा रहे और अब मुझे चोद दे… मेरी झिड़की सुन कर वो मेरी पीठ पर से उतर गया। उसके लण्ड का बुरा हाल था। इधर मेरी चूंचियां, निपल सभी कड़क गये थे, फ़ूल कर कठोर हो गये थे। “तू तो मेरे से ऐसे लिपट गया कि जैसे मुझे बहुत प्यार करता है ?” “हां सच आण्टी … बहुत प्यार करता हूँ…” “तो इतने दिनों तक तूने बताया क्यों नहीं?” “वो मेरी हिम्मत नहीं हुई थी…”उसने शरमा कर कहा। “कोई बात नहीं … चल अब ठीक से मेरे गाल पर प्यार कर… बस… आजा !” मैं उसे अधिक सोचने का मौका नहीं देना चाहती थी। उसने फिर से मुझे जकड़ सा लिया और मेरे गालों को चूमने लगा। तभी उसके होंठ मेरे होठों से चिपक गये। उसने अपना लण्ड उभार कर मेरी चूत से चिपका दिया। मेरे दिल के तार झनझना गये। जैसे बाग में बहार आ गई। मन डोल उठा। मेरी चूत भी उभर कर उसके लण्ड का उभार को स्पर्श करने लगी। मैंने उसकी उत्तेजना और बढ़ाने के लिये उसे अब परे धकेल दिया। आप लोग यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | वो हांफ़ता सा दो कदम दूर हट गया। मुझे पूर्ण विश्वास था कि अब वो मेरी कैद में था। “मंदन, मैं अब सोने जा रही हूं, तू भी अपना काम करके चले जाना !” मैंने उसे मुस्करा कर देखा और कमरे के बाहर चल दी। इस बार मेरी चाल में बला की लचक आ गई थी, जो जवानी में हुआ करती थी।
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