डरावनी कहानियां – | hindisexstories.autocamper-service.ru //hindisexstories.autocamper-service.ru 100% Free Hindi Sex Stories - Sex Kahaniyan Wed, 21 Mar 2018 09:30:56 +0000 en-US hourly 1 /> //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/wp-content/uploads/2015/10/cropped-mastaram-dot-net-logo-red-32x32.png डरावनी कहानियां – | hindisexstories.autocamper-service.ru //hindisexstories.autocamper-service.ru 32 32 नेशनल हाइवे का रहस्य -4 | hindisexstories.autocamper-service.ru //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/%e0%a4%a1%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%a8%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%82/national-highway-ka-rahasya-part-4.html //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/%e0%a4%a1%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%a8%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%82/national-highway-ka-rahasya-part-4.html#respond Wed, 24 Jan 2018 07:48:40 +0000 //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/?p=11446 नेशनल हाइवे का रहस्य अभी जारी है दोस्तों अभी नेशनल हाइवे का रहस्य गहराता जा रहा है जो आपको इस स्टोरी में पढ़ने को मिलेगा |

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नेशनल हाइवे का रहस्य -4

मित्रो मै फिर लौट आया हूँ नेशनल हाइवे का रहस्य – 4 के साथ आप पढ़ रहे है मेरी सच्ची स्टोरी जो की मेरे साथ घटी नेशनल हाइवे पर एक शैतानी घटना जिसके बारे में जान कर हर किसी का दिल सिहर उठेगा | अगर जिन्होंने पिछला भाग नहीं पढ़ा है वो यहाँ क्लिक कर पढ़ सकते है | अब मै ज्यादा देर ना करते हुए सीधे कहानी पर आता हूँ | वो दादाजी के आखिरी शब्द थे, दादाजी ने मुझसे कुछ माँगा था और मुझे हर हाल में उनकी अंतिम इच्छा पूरी करनी थी। उस कागज़ के टुकड़े में एक छोटा सा नक्शा था |

किसी जगह का जो नोएडा से १२० किलोमीटर दूर एक जंगल में था। ठीक एक महीने बाद मैं उस जगह की खोज में निकल पड़ी, मेरी यात्रा सामान्य थी पर अंतिम ५० किलोमीटर बहुत मुश्किल से पर हुए। जिसे देखो वो ही उस हाईवे तक जाना ही नहीं चाहता था, एक टैक्सी ड्राइवर से मैंने जाने को कहा तो वो अपनी गाडी छोड़कर ऐसे भागा जैसे मैंने किसी भूतमहल जाने की बात कर दी हो।

थोड़ा आस-पास के गाँव से पूछने पर पता चला कि वो हाइवे भुतहा है और ना जाने कितनी दुर्घटनाये वहां हो चुकी थी। आलम तो ये था कि पिछले २० सालों में कम से कम ५० लोग लापता हो गए थे। मेरे दिल में डर की लहर दौड़ गई, दादाजी को ऐसी जगह में ना जाने कौन सा काम था। सबने मुझे वहाँ जाने से रोका पर मैं अपना वचन नहीं भुला सकती थी।

काफी कोशिशों के बाद मैं उस जगह पहुंची जहाँ दादाजी ने कहा था। यह जंगल के बीचो-बीच ऊँचाई पर एक छोटी सी गुफा थी जिसके चारों तरफ जंगल इतना घना था की दिन में भी डर लगता था। अजीब से शान्ति थी वहाँ बड़ा ही अजीब सा सन्नाटा फैला हुआ था वहाँ, पता नहीं क्यों मेरा दिल वहाँ पर जोर-जोर से रोने को क्यों कर रहा था। मैं गुफा के अंदर गई, ये मेरे दादाजी की साधना का गुप्त स्थान था |

अब मुझे समझ आया जब दादाजी अचानक ही कई-कई दिनों के लिए गायब हो जाते थे। पर दादाजी ने मुझे यहाँ क्यों भेजा? . क्या कोई राज दफ़न है यहाँ? मैं उस जगह की तलाशी लेने लगी तो एक छोटे से संदूक में एक छोटी सी डायरी मिली, ये दादाजी की डायरी थी। दादाजी डायरी भी लिखते थे ये उन्होंने कभी बताया नहीं।

मैं घरवालों को बताकर आई थी की सहेली की शादी में जा रहीं हूँ और २-३ दिनों बाद लौटूंगी, मैंने अपनी एक सहेली का नंबर देकर उसे समझ भी दिया अगर घर से फोन आये तो क्या करना है। शाम घिर आई थी, आज का दिन तो निकल ही गया था पर फिर भी मेरे पास पुरे दो दिन थे दादाजी की डायरी पढ़ने के लिए। मैंने अपना सामन जमाया, खाने पीने का सामान रखा और शुरू हो गई दादाजी की डायरी को पढ़ने के लिए।

——– दादाजी की डायरी / पेज न. १ ———

आज मैं बहुत खुश हूँ, मेरे घर में एक नन्ही से गुड़िया आई है,
मेरी पोती बहुत प्यारी है,
आखिर इतने सालों बाद मैं खुश हुआ हूँ,
मेरा बरसों से चला इन्तजार अब ख़त्म होने को है।

——– दादाजी की डायरी / पेज न. २३ ———

आज मैं और मेरी पोती बहुत खेले,
पौधों में पानी डालते हुए उसने मुझे पूरा भिगो दिया,
पूरी की पूरी शरारती है ये गुड़िया,
मैं भी उसे भिगोने के लिए दौड़ा तो वो भाग गई,
हा हा हा ।

दादाजी की डायरी पढ़कर मुझे बहुत मजा आ रहा था, मैं पन्ने पर पन्ने पलटती रही कि तभी एक पन्ने पर आकर मेरी ख़ुशी गायब हो गई।

——– दादाजी की डायरी / पेज न. २०६, १९७०, शनिवार ———

आज मैं जबसे यहाँ आया हूँ बड़ा अजीब लग रहा है,
पूरा माहौल बदला हुआ था,
अजीब सी नाकारास्तमकता फैली हुई हैं यहाँ।
कुछ तो गलत हुआ है यहाँ, .. जो भी हो मुझे पता करना पड़ेगा!

जब से मैं यहाँ आया हुँ, बड़ा अजीब सी लग रहा है। हमेशा मेरी साधना से पवित्र यह जगह मानों किसी मनहूसियत का शिकार हो गई है। कई बार तो एैसा लगा जैसे कोई मुझे पुकार रहा हो .… किसी लड़की की दर्द भरी कराह लगातार आ रही है। पहली बार एैसा लग रहा है कि शायद यह मेरी डायरी का आखिरी पेज़ है।

——– दादाजी की डायरी / पेज न. २२३, १९७० ———

. रात के तीन बज रहेे है और मैं अभी भी उस सपने के बारे में सोंच रहा हुँ जो मुझे पिछली तीन रातों से जगा रहा है। सपने में कोई लड़की चीख रही थी .. उसकी चीखें बड़ी दर्दनाक थी, एैसा लग रहा था जैसे कोई उसे जिन्दा ही खा रहा था।

मैंने टार्च संभाली और गुफ़ा के बाहर आया तो आसमान एकदम काला था, दूर-दूर तक सितारों का कोई निशाना ना था। पास में ही मेरी धूनी अभी भी जल रही थी …. अचानक एैसा लगा जैसे किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा, .. मैंने पलटकर देखा तो कोई नहीं था। मैंने अपना रक्षा कवच मंत्रों से सक्रीय कर लिया। मेरा मंत्र पाठ जारी ही था कि किसी के जोर से चीखने की आवाज़ आई, सहसा ही मेरे कदम उस तरफ़ बढ़ चले। मैंने कुछ उड़द के दाने अभिमंत्रित कर रखे थे जो एैसा प्रेत माया का अंत कर सकते थें।

लड़की की दर्दनाक चीखें लगातार गूँज रही थी | अचानक मैंने टार्च की रोशनी जमीन पर डाली तो एक लड़की का हाथ दिख रहा था। शायद कोई उसे मारने के इरादे से यहाँ साया और जिंदा ही दफ़नाकर चला गया। मै आगे बढ़ा और लड़की का हाथ पकड़कर निकालने की कोशिश की तो लड़की का कटा हाथ निकला, .. उससे पहले मैं अभी समझने की कोशिश कर ही रहा था कि कहीं से कुछ ‘चपर चपर की आवाज़ आने लगी। दो खूंखार भेड़िये लड़की के दूसरे हाथ को नोंच-नोंच कर खा रहे थे।

हाथ पूरा खून से सना हुआ था और जमीन में सीधा धँसा हुआ था। हाँथ से खून निकलकर नीचे मिट्टी में मिल रहा था। सर्द रात में दो स्याह भेड़िये और उनकी खूनी लाल आँखें बड़े भयानक लग रहे थे, अगर मैं तांत्रिक ना होकर कोई साधारण इंसान होता तो कब का मेरा दिल धड़कना बंद कर देता। मुझे देखकर तरफ़ खूंखार भेड़िये गुर्राते हुए मेरी तरफ़ लपके, मैं पीछे हटा और अभिमंत्रित उड़द के दाने फेंके तो दोनों भेड़िये तड़पकर पीछे हटे।

मैंने आगे बढने के लिये कदम बढ़ाया तो मेरे पैर जमीन से चिपक से गए। दो हाथ जमीन फाड़कर निकले और मेरे पैरों को जकड़ लिये। … अचानक जमीन में गड़ा हाँथ काँपने लगा… इससे पहले मैं कुछ समझ पाता, हाँथ के साथ-साथ एक लड़की का सडा-गला शरीर जमीन फाड़कर निकला। वो मेरी तरफ़ बढ़ी | आप यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

मेरे दोनों हाथों को भेड़िये चबा गए, .. मैं कुछ पकड़ भी नहीं सकता था। धीरे-धीरे वो मेरे पास आई और मेरे कान में बोली “ब……द.ला!!”

मेरी आँखें खुल गई .. शुक्र है यह एक सपना था। पर उसने मुझे मारा क्यों नहीं? ….. शायद उसकी कोई इच्छा अधूरी है। अब वक्त आ गया है इस सपने के पीछे का सच जानने का ….. आज की रात! .. फ़ैसले की रात होगी।
—— डायरी / पेज न. २२३ ——-

दिनभर से मेरी साधना जारी है, मेरी तैयारी पूरी हो गई है और अब उस शैतानी शक्ति के बारे में पता चल ही जाएगा जिसने मेरे साधना स्थल को दूषित किया है। पता नहीं वो लड़की कौन थी? क्या वो मेरी मदद चाह रही थी या वो भी कोई माया थी। ..

रात के दस बजी है और मैंने अपनी तैयारी शुरू कर दी है, पूजा का सामान तैयार है। मैंने माँ का नाम लेकर अपनी अलख जला दी, माँ का आह्वान करने के बाद भोग दिया और पूरी गुफा को अभिमंत्रित करने के बाद मैंने अपना रक्षा कवच धारण कर लिया। अपने चारों और रक्षा घेरा बनाकर मैंने अपनी साधना शुरू की।

जैसे जैसे आहुति पड़ रही थी पूरी गुफा में पवित्रता लौट रही थी। अभी ११ आहुतियाँ ही हुई थी कि पूरी गुफा में अजीब से हलचल शुरू हो गई। कोने में रखा पानी का मटका अपने आप गिर पड़ा, अलमारी में रखी मेरी किताबें बाहर गिरने लगी, कुछ किताबों में तो आग भी लग रही थी। जैसे-जैसे मेरी आहुति पड़ती जा रही थी हलचल और बढ़ती जा रही थी, आखिरकार एक तेज हवा का झोंका आया और गुफा की सारी मशालें बुझ गई। सिर्फ मेरी धूनी ही जल रही थी, आख़िरकार मैंने कहा “अगर तुम्हारा मन भर गया हो तो बात करें ?

“कौन हो तुम! ..मैंने सवाल किया पर जवाब नहीं आया बदले में कोने में रखा बड़ा सा संदूक बड़ी तेजी के साथ उछलकर छत से टकराया और नीचे गिर गया। “तो तुम नहीं मानोगी! ..मैं फिर बोला “क्यों आई हो यहाँ? यह मेरा साधना स्थल हैइतना सुनते ही वो मेरी तरफ झपटी पर मेरे रक्षा घेरे से तड़पकर दूर हो गई। रात के बारह बजे थे और इस सन्नाटे में उस अँधेरी गुफा में मेरी आवाज गूँज रही थी, इससे पहले में मैं दूसरी बार आवाज लगता तभी उसने जवाब दिया “मैं आई नहीं हूँ . लाई गई हूँ”।

“कौन लाया है तुम्हे? .. क्या चाहती हो!…मैंने पूछा। “बबदला!!उसकी आवाज भारी हो रही थी जैसे रोने वाली हो, मुझे अंदर से लगने लगा की ये कोई शैतानी शक्ति नहीं हो सकती, यह कोई भटकी हुई आत्मा है जो मुक्त नहीं हो पा रही है। “किससे बदला चाहती हो और क्यों?..कोई जवाब न पाकर मैंने नरमी से कहा “मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ। पर उसके लिए तुम्हे मुझे बताना होगा की क्या हुआ था तुम्हारे साथ । मेरा इतना पूछते ही वो जोर से चीखी की पूरा जंगल दहल गया, थोड़ी देर के लिए तो मुझे भी अपने कान बंद करने पड़े। “मार डालूंगी उनको। .. मैं उन्हें मार डालूंगी!!उसकी आवाज में दर्द था और साथ ही थी नफरत जिससे वो पूरी दुनिया को जलाना चाहती थी।

वो कुछ भी बताने की स्तिथि में नहीं थी, मैंने कर्णपिशाचिनी का आह्वान करके अपनी आँखे बंद की ताकि मैं इसके बारे में जान सकूँ। आँखें बंद करते ही पिछले कुछ दिनों पहले जो हुआ वो मेरे सामने चलचित्र की तरह आ गया। माँ ने मुझे बताया की मेरी गुफा में आई आत्मा कौन थी। मेरी शक्ति ने मुझे दिखाया की किस तरह पाँच दरिंदो ने उस मासूम लड़की को बेरहमी से नोंच-नोंचकर खाया है। मैंने देखा की कैसे वो जुल्मी भेड़िये उस लड़की को मसल रहे थे, दो ने लड़की के हाथ पकड़ रखे थे और बाकी दो लड़की के स्तनों का मर्दन करने में लगे हुए थे। पहले उस शक्तिशाली आदमी ने उस फूल सी लड़की का घाघरा फाड़कर फ़ेंक दिया बाकी दोनों ने लड़की की चोली जानवरों की तरह फाड़ डाली और उसके नग्न स्तनों को अपने नाखूनों से नोंचते, खसोटते, काटते, दर्द से लड़की की चीखों से पूरा जंगल गूँज रहा था पर उन शैतानों के कानों में जू तक नहीं रेंग रही थी।

पहले वो भीमकाय व्यक्ति लड़की की नंगी जांघो पर झुक गया और लड़की की दर्दनाक चीकों से आसमान गूँज गया। रात की घनघोर बारिश में पूरी जमीन लड़की के खून से रंग गई, वो दर्द से चिल्लाती रही पर इन हैवानों पर कोई असर ना हुआ, वो बारी-बारी अपनी भूख मिटाते रहे। काली रात में जंगल के बीचोंबीच पांच भेड़िये उस लड़की को नोंचते रहे और वो चीखती रही चीखती रही |

चीखती रही तब तक जब तक उसके गले में आवाज थी और शरीर में प्राण। आखिरकार इंसानियत हार गई और हैवानियत जीत गई, उन पाँच भेड़ियों की हवस की भूख मिट गई और इसके साथ ही मिट गई एक फूल से बच्ची की हैसियत। ना जाने कितने सपने देखे होंगे उसने पर उन सपनों का ये अंत होगा ये कभी नहीं सोचा था। ये तो तय था कि उस दिन भगवान् भी वहां नहीं थे अन्यथा यह घोर पाप ना होता।

मैंने आँखे खोली, वो भी शांत हो गई थी जैसे उसका मकसद पूरा हो गया था। वो मुझे यही बताना चाहती थी वो मुझसे मदद चाहती थी। . मदद उन पाँचों को मारने में मदद। . जो मेरे सिद्धांतों के खिलाफ था। मैंने उसे समझाने की कोशिश की पर वो नहीं मानने वाली थी। मैंने उसे समझाया की बदला लेकर भी उसको शान्ति नहीं मिलेगी | आप यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |  भगवान् उनको सजा देंगे पर वो ना सुनी। देखते ही देखते उसने एक साल के अंदर उन पाँचों को मार डाला। उसका बदला पूरा हो गया था और मौत का ये सिलसिला भी अब ख़त्म होने वाला था। पर वो एक अंत नहीं था बल्कि शुरुआत थी एक नए खुनी संघर्ष की जिसमे ना जाने कितने लोगों को उसने बदले की इच्छा से मार डाला।

जो भी उस हाइवे से निकला, वो घर नहीं पहुंचा। वो अँधेरी रात में लोगों से लिफ्ट लेती, भरी रात में सुनसान हाइवे पर एक सुन्दर से लड़की देखकर हर आदमी फँस गया, उसका गदराया बदन देखकर सबका ईमान डोला और फिर उसने किसी को नहीं छोड़ा। काश कोई वहां से सच्चा इंसान निकलता जो इस तुच्छ वासना से ऊपर उठ कर उस लड़की की मदद करता तो शायद उसको मुक्ति मिल जाती पर नहीं, उसकी मुक्ति आसान नहीं थी और अब यही मेरा लक्ष्य बन गया था।

“एक्सक्यूज मी!” डाक्टर ने वार्ड में घुसते हुए कहा “पेशेंट की ड्रेसिंग का वक्त हो गया है, आप लोग बाहर जाइए”। सभी बाहर चले गए, डाक्टर ने आदतानुसार कुछ सवाल किये फिर संतुष्ट होकर चला गया। केतन वापस आते वक्त मेरे लिये जूस ले आया और बाकी सबके लिये कॉफ़ी थी।

हॉस्पिटल के उस प्राईवेट वार्ड में खामोशी छाई हुई थी। डंकिनी की तरफ़ सबकी नज़रें थी तभी मैंने खामोशी तोड़ी “चलो मान लिया कि तुम सच बोल रही हो, . लेकिन इसका हमसे क्या संबंध है? …. क्यों हमारे जंगल से बचकर आने के बाद वो अभिशाप खत्म हो गया, … अगर पिछल ४० सालों से इस मौत के हाइवे से कोई जिन्दा नहीं लौटा तो हम कैसे बच गए” ….”और सबसे है सवाल. वो पाँचों हैवान कौन थे?”। एक पल को तो डंकिनी थोड़ा झिझकी, तभी विवेक उठकर मेरे पास आया और बोला “विपिन की बातों का जवाब दो! .. झिझको मत!”

“क्योंकि . क्योंकि! .. तुम लोगों के पिता थे!” मुझे एैसा लगा जैसे कोई बहुत बड़ा धमाका मेरे कानों में हुआ था … आँखों के सामने अँधेरा छा गया, कुछ ना सुनाई दे रहा था और ना ही कुछ दिखाई दे रहा था। जैसे मैं किसी अंधेरे कमरे में हुँ जहाँ मीलों तक था सिर्फ़ अँधेरा। अचानक मेरे सामने का दृश्य साफ हुआ, . मैं अभी भी उसी वार्ड में था … मेरे दोस्त मेरे सामने थे और सामने थी वो जिसके टुकड़े करने को मेरा रोम-रोम कह रहा था।

“गोली मत चलाना विपिन!!! ….” विवेक मिन्नतें कर रहा था, सभी मुझे रोक रहे थे …. मेरी आँखों में खून उतर रहा था … मेरे पिता का अपमान!!!!!

सामने डंकिनी खड़ी थी और उसकी आँखों में डर नहीं था, .. मेरी आँखों की पुतलियाँ सिकुड़ गई, … मेरे जबड़े भिंच गए और रिवाल्वर के ट्रिगर पर मेरी अंगुलियाँ दबाव बढ़ा रही थी। आज मेरी सबसे बड़ी लड़ाई खुद से है, .. इसे मार दूँ या इसे बोलने का का मौका। अगले किसी भी पल में गोली चल सकती थी

…. दिसम्बर की सर्द हवाएँ मेरे गले को छू रही थी। .आसमान में घुमड़ते बादल जैसे किसी अनहोनी की आशंका से सहमे हुए थे . परिंदे भी चीख-चीखकर मानों मुझे रोकना चाहते हों …. गली में भौंकते कुत्तों का हुजूम भी आने वाली मौत की दहशत से डरकर मातम मनाने लगा।

“धाँ!.य!..” मैंने ट्रिगर दबा दिया और एक दर्दनाक चीख के साथ सब शांत हो गया। केतन और पंकज ने अपनी आँखें बंद कर ली, .. विवेक भौचक्का मुझे देख रहा था … सामने थी डंकिनी उसकी आँखें अभी भी मुझे देख रही थी, शायद उसे इसकी उम्मीद पहले से ही थी। वो अभी भी जिन्दा थी …..….. क्योंकि गोली उसके सिर के बगल से निकल गई। सबकी आँखों में हैरानी थी |

मेरा निशाना चूका नहीं था किन्तु बदल गया था। मैं डंकिनी की आँखों में झूठ का डर ढूँढ रहा था लेकिन आखिरी पल तक उसकी आँखों में तैरती सच्चाई मुझे बेचैन कर रही थी …. वो सच कह रही थी।

“मैंने पूरी जाँच की है इसकी बात की!” विवेक ने मेरी तरफ़ देखा और बोला “२४ दिसम्बर १९७०, शुक्रवार को हम सबके पिता मेरे पिता की गाड़ी में फ़तेहपुर से शाम साढे छः बजे निकले थे नोएड़ा के लिये”। “. उनके दोस्त और हमारे अंकल सुनेर सिंह तोमर की शादी थी।….. वो निकले जरूर थे पर पहुँचे सुबह के १० बजे थे, अंकल के पूछने पर उन्होंने बताया एक जंगली जानवर ने हमला कर दिया था इसलिए देर हुई।

अचानक भड़ाक से वार्ड का दरवाजा खुला और डाक्टर के साथ तीन पुलिसकर्मी अंदर आए “गोली किसने चलाई!!.” एक पुलिस वाले ने पूछा। केतन ने घबराहट को छुपाते हुए कहा “क … किसी ने नहीं सर!..। “तुझे मैं क्या पागल दिखता हुँ क्या? यहाँ गोली चली है! …किसने गोली चलाई है?” दूसरा पुलिस वाला आँखें तरेरकर बोला। हवलदार ने केतन के कंधे पर हाथ रखा और बोला “रे भाया सुन! चुपचाप बता दे गोली किसने चलाई वरना ताऊ, इब थारे को कौन बचाएगा”।

“मैं जानती हुँ गोली किसने चलाई!.” डंकिनी की आवाज़ सुन सब पलटे। “तो मैडम आप ही बता दो गोली किसने चलाई! बड़ी मेहरबानी होगी” हवलदार डंकिनी के उभारों पर लालची नज़र डालते हुए बोला। ये देख हवलदार पर मुझे गुस्सा आने लगा, मन कर रहा था कि हवलदार को यहीं ठोक दूँ, पता नहीं डंकिनी के लिये मेरे दिल में हमदर्दी कब से आ गई।

डंकिनी की अंगुली मेरी तरफ़ घूम गई, हवलदार ने मेरी तरफ़ देखा और हँसते हुए बोला “अच्छा तो ये साहब थे? बहुत गर्मी है इनके हाँथों में”। हवलदार मेरे पास आया, एक पल को लगा जैसे सब खत्म हो गया | आप यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | “अब तेरा क्या होगा कालिया!!” हँसते हुए हवलदार चला गया। मेरा सर चक्करघिन्नी बना हुआ था, तभी सब हँसने लगे और सबकी मेरी तरफ़ थी। विवेक ने मुझे पीछे देखने का इशारा किया और फिर मैं भी पेट पकड़कर हँसने लगा।

पीछे टेलीविजन पर ‘शोले’ आ रही थी जिसमें गब्बर कालिया को गोली मार देता है। ना जाने हम कितनी देर तक हँसते रहे पहली बार डंकिनी हँसते हुए अच्छी लग रही थी। उस एक पल ने वार्ड का पूरा माहौल बदल दिया और इसका सबूत था कि मेरे हाथ में रिवाल्वर की जगह जूस का ग्लास था। थोड़ी देर बाद मैंने डंकिनी की तरफ़ देखकर मुस्कुराते हुए कहा “तो तुम दुश्मन नहीं हो!” उसके गालों में लाली छा गई।

“अब मैं कोई सवाल नहीं करूंगा, अगर तुम कुछ कहना चाहती हो तो हम सब सुन रहे हैं” मैंने डंकिनी को कॉफ़ी देते हुए कहा।

डंकिनी ने कॉफ़ी का सिप लेते हुए आगे कहना शुरू किया मेरे सामने सबसे बड़ा सवाल था कि गौरी को मुक्ति कैसे दिलाई जाए किसी आत्मा को सजा देना या उसे कैद करना आसान है पर मुक्ति का कोई तरीका मुझे नहीं पता था और शायद यही दुविधा दादाजी की भी थी। मुझे कुछ एैसा करना था जो मैंने कभी नहीं किया। महीनों मैं इस समस्या का हल ढूँढती रही लेकिन कुछ नहीं हुआ, फिर मेरी मुलाकात हुई विवेक से लंदन के एक पॅरानेचुरल साइंस फ़ाउंडेशन का वर्कशॉप था जो १० दिनों तक चला। मेरी शक्तियों की वजह से मैं जान गई कि विवेक के पिता उन पाँचों में से एक थे इसलिए मैंने विवेक से बात की ।

मेरी नज़रें विवेक पर जा टिकी, विवेक चुप था। डंकिनी फिर बोली “पहले-पहल तो विवेक ने मेरी बात का विश्वास नहीं किया . फिर जब मैंने उसे सबूत दिखाए तो उसने खुद जाँच की आखिरकार उसे मेरी बातों पर भरोसा करना ही पड़ा।

गौरी के साथ घटी इस दुर्घटना ने मर्दों पर से उसका भरोसा उठा दिया। वो समझने लगी कि सारे मर्द हैवान होते हैं और इसी वजह से अपने दोषियों को मारने के बाद भी उसे मुक्ति नहीं मिली। . उसके सीने में आग धधक रही थी … नफ़रत की आग। उसकी मुक्ति का एक ही तरीका था कि उसे अहसास दिलाया जाए कि सभी मर्द एक जैसे नहीं होते हैं”।

डंकिनी ने मेरी तरफ़ देखते हुए कहा “कुछ मर्द होते हैं जो स्त्रियों का सम्मान करते हैं और उनकी रक्षा के लिये अपनी जान तक दे सकते हैं”।

“इसलिए तुमने इतिहास को दोहराया, विवेक की मदद से हम सबको उसी परिस्थिति में डाला ताकि हम हमारे पिता के द्वारा की गई गलती को सुधार सकें” मैंने डंकिनी की तरफ़ देखकर कहा, उसने सहमति में सिर हिला दिया और बोली “इसमें खतरा जरूर था लेकिन गौरी की मुक्ति तभी हो सकती थी जब उसे तुम बचाओ …. अपनी जान देकर”।

मैं गहरी सोंच में डूबा हुआ था ….. “अगर एैसा था तो हम सबने हाइवे पर उसकी मदद की थी, फिर तुम्हारा वहाँ क्या काम था? अगर हम गौरी को सही-सलामत जंगल से बाहर छोड़ देते तो उसे मुक्ति मिल जाती”। डंकिनी मेरी बातों पर मुस्कुराते हुए बोली “ये इतना आसान नहीं था, मरने के बाद भटकती आत्मा के कुछ गुण इंसानों के रहते हैं और कुछ प्रेत योनी के। उसे सामान्य इंसानों की तरह नहीं समझाया जा सकता, वे कुछ भावनाएँ ही समझते हैं जैसे डर, दर्द, प्रेम, वासना, बदला आदि। तुम उसको तभी बचा पाते जब वो खतरे में हो, किसी भयंकर खतरे में।

इस कहानी में तुम्हें नायक बनाने के लिये किसी खलनायक की जरूरत थी, .. तुम्हें राम बनाने के लिये मुझे रावण बनना पड़ा और मैं देविका से बन गई डंकिनी।

“चलो तुम्हारा असली नाम तो पता चला, … अब कम से कम मुझे तुम्हें डंकिनी नहीं कहना पड़ेगा, यह नाम मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं” मैंने कहा।

“मुझे भी यह नाम पसंद नहीं! जब तुम मुझे इस नाम से पुकारते थे तो मन करता था कि सच में तुम्हारा खून पी जाँऊ” वो बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोली।

वार्ड में शांती छाई हुई थी और ये सच में सुकून भरी शांती थी। काफ़ी देर तक कोई नहीं बोला फिर मैं उठा और देविका (डंकिनी) के पास गया और बोला – “देविका, . मैंने तुम्हें बहुत गलत समझा ….. यहाँ तक की तुम पर गोली भी चला दी पर फिर भी तुमने मेरी जान बचाई |

दोस्तों बाकी की कहानी अगले भाग में सुनाऊंगा अब विदा चाहता हूँ आप लोगो का कमेंट ना आने की वजह से मै कहानी जल्दी जल्दी आगे नहीं बढ़ा पा रहा हूँ तो कृपया करके अपने कमेंट लिखे ताकि मै भी जल्दी जल्दी कहानी पूरा कर सकू |

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नेशनल हाइवे का रहस्य -3 | hindisexstories.autocamper-service.ru //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/%e0%a4%a1%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%a8%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%82/national-highway-ka-rahasya-part-3.html //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/%e0%a4%a1%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%a8%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%82/national-highway-ka-rahasya-part-3.html#respond Tue, 16 Jan 2018 05:41:40 +0000 //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/?p=11445 दोस्तों नेशनल हाइवे का रहस्य का ये भाग तीन आप पढने जा रहे है जैसा की अभी तक आप समझ गये होंगे की ये कहानी एक भुत की कहानी है जो की कुछ दोस्तों को एक नेशनल हाइवे के खँडहर के पास मिले थे |

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मित्रो मै फिर लौट आया हूँ नेशनल हाइवे का रहस्य – 3 के साथ आप पढ़ रहे है मेरी सच्ची स्टोरी जो की मेरे साथ घटी नेशनल हाइवे पर एक शैतानी घटना जिसके बारे में जान कर हर किसी का दिल सिहर उठेगा इस कहानी को पढ़ कर जैसा की आप सभी जानते है अगर भगवान , अल्ला है तो भुत , प्रेत, जिन्न भी होते है दोस्तों अगर भगवन को मानते है तो इन्हें भी मानना ही पड़ेगा | अगर जिन्होंने पिछला भाग नहीं पढ़ा है वो यहाँ क्लिक कर पढ़ सकते है | अब मै ज्यादा देर ना करते हुए सीधे कहानी पर आता हूँ | अनायास ही हमारे कदम मंदिर की तरफ़ बढ़ गए। वह मंदिर क्या था एक छोटे से १०×१० के करने में हनुमानजी की तीन फीट ऊँची मूर्ति रखी गई थी। मूर्ति बहुत ही पुराने जाने की लग रही थी, पत्थर की बड़ी शिला को बड़ी ही मेहनत से महीनों तराशा गया होगा तब जाकर यह मूर्ति बनी होगी, सिंदूर से रंगी प्रतिमा पर जगह-जगह दिये जलने की वजह से कालिख थी। मंदिर की बाँई दीवार पर गणेशजी और दुर्गाजी की मूर्तियाँ रखी हुई थी मंदिर की दायी तरफ़ बड़ा बरगद का पेड़ था। सुबह के पाँच बज रहेे थे और मंदिर से आती घण्टे की आवाज़ मन को सुकून दे रही थी .. शायद पुजारी सुबह की आरती में व्यस्त था।

“अब क्या करें?केतन के सवाल ने मेरा ध्यान भंग किया “. ये हरामखोर पुलिस वाले तो हमारी सुनने को तैयार नहीं है और उस विधायक को तो हाइवे का नाम सुनते ही जैसे साँप सूँघ गया हो!केतन की बात सही थी और हमें जल्द ही कुछ करना होगा।

“हमें विपिन को जल्द ही बचाना होगा, पता नहीं वो किसी खतरे में हो .पंकज की बात से मैं भी चिंतित था तभी केतन बोला “…लेकिन कैसे??.. किससे मदद लें कौन करेगा हमारी मदद? उस भुतहे हाइवे में कोई नहीं जाना चाहता .. तो अब क्या भगवान जाएंगे हमारे दोस्त को बचाने??., केतन की बात पूरी होती इससे पहले एक दमदार आवाज़ मेरे पीछे से आई “क्यों नहीं जाएँगें भगवान?…हमने पलटकर देखा तो पुजारी खड़ा था।

बड़ी-बड़ी आँखें, लम्बे चेहरे पर बड़ी-बड़ी रौबदार मूँछें, साढे छः फुट लम्बी बलिष्ठ काया वह सिर्फ़ नाम से पुजारी लगता था, देखने में तो वह पहलवान से कम नहीं था। किसी जमानें में प्रसिद्ध पहलवान रहा होगा। पुजारी हमारे पास आया और प्रसाद हाथ में देते हुए बोला “..अगर सच्चे मन से पुकारो तो भगवान को आना ही पड़ता है”।

“ओ पंडितजी!.. ये प्रवचन देने का वक्त नहीं है हमारे दोस्त की जान खतरे में है और कोई हमारी मदद नहीं कर रहा हैकेतन पहले ही बहुत परेशान था और पुजारी की बातों ने उसे भड़का दिया। “मैं प्रवचन भी सुपात्र को ही देता हुँ . और तुम्हें सात जन्म लगेंगे इस लायक बनने में!पंडितजी ने भड़कते हुए कहा। बात बिगड़ती देख मैं बीच-बचाव करते हुए बोला “पंडितजी इसे माफ़ कर दीजिये हम सब परेशान थे इसलिए ये गलती हो गई”।

“तुम समझदार लगते हो! क्या परेशानी है तुम्हें?पुजारी ने संयत होते हुए कहा, मैंने पुजारीजी को हमारी यात्रा की पूरी दास्तान सुनाई कि कैसे हमारा ड्राइवर खो गया और कैसे एक एक्सीडेंट की वजह से एक लड़की की मदद हमें करनी पड़ी। मैंने यह भी बताया की हमारा एक दोस्त उस लड़की की सुरक्षा के लिए उसके साथ रुक गया है, पता नहीं हमारी दोस्त किस हाल में होगा यही चिंता हमने खाये जा रही है।

पुजारीजी ने पूरी बात बड़ी गंम्भीरता से सुनी फिर कुछ सोचकर बोले “तुम्हारा सामना परामानवीय शक्तियों से हुआ था और उनसे ये पुलिसवाले तो क्या कोई भी नहीं जीत सकता तुम्हारी मदद कोई नहीं कर सकता सिवाय एक के!”, हमारी सवालिया नजर पुजारी पर थी, पुजारी ने आगे कहा “सिवाय भगवान् के तुम्हारी मदद कोई नहीं कर सकता!”। “देखा! | मैंने कहा था ना | ये पुजारी हमारा वक्त बर्बाद कर रहा है,. अब भगवान् को कहा से लेकर आये मदद करने के लिए?केतन बिफरते हुए बोला पर इस बार पुजारी ने शांत होकर जवाब दिया “तुम्हारी मदद ना तो पुलिस ने की और ना ही उस नेता ने | और जब मदद के सारे रास्ते बंद हो गए है तो एक बार भगवान् को याद करने में हर्ज क्या है?इससे पहले केतन कुछ कहता मैं बोला “पुजारीजी हमें हमारा दोस्त सही सलामत चाहिए | अगर भगवान् हमारी मदद कर सकते हैं तो वो ही सही हमें क्या करना होगा?”, कुछ नहीं!बस सच्चे मन से भगवान् को याद करो!

हमारे पास वैसे भी कोई रास्ता नहीं था मैंने आँखे बंद की और मन ही मन प्रार्थना की “हे भगवान् | मैं नहीं जानता की आपका अस्तित्व है भी या नहीं मैं ये भी नहीं जानता की आप हमें सुन सकते हैं की नहीं पर . अगर आप हमें सुन सकते हैं तो प्लीज | हमारी मदद कीजिये”।

पता नहीं कितनी देर मुझे हो गई थी ऐसे ही बैठे की तभी केतन की हंसी ने मेरा ध्यान भंग किया “हा हा हा! एक और मार मेरी तरफ से .. बहुत अकड़ रहा था”। मैंने पलटकर देखा तो विधायक की पत्नी कुर्सी से नीचे गिरी हुई थी, उसका गाल लाल था जैसे किसी ने उसे जोरदार थप्पड़ लगा दिया हो पर किस में इतनी हिम्मत थी की एक विधायक की बीबी पर हाथ उठा सके। थोड़ी देर में ही मैं सारा माजरा समझ गया थोड़ी देर पहले वह बंदरो को चने खिला रही थी, शायद किसी बन्दर ने किसी बात से चिढ़कर उसे थप्पड़ जड़ दिया था। जो भी था मुझे भी बड़ा मजा आया सारे पुलिसवाले बंदरो को भगाने में लगे थे पर बन्दर तो जाने से रहे। उस अंगूठा छाप बन्दर को क्या पता की विधायक क्या होता है, तभी एक बन्दर विधायक की पत्नी के पास आया और उसका तीन लाख का हार ले कर भाग गया। अब तो जैसे विधायक पर दौरा चढ़ गया वो खिसियाते हुए पुलिसवालों पर चिल्लाने लगा।

हमारी हँसी रुकने का नाम ही नही ले रही थी की तभी मुझे कुछ याद आया “नितीश! ये बन्दर उधर ही जा रहे हैं जहाँ से हम आये हैं राईट? नितीश ने देखा और बोला “हाँ ये वहीँ जा रहे है, चलो चलते हैं शायद अब ये हमारी मदद कर दें”। हम फटाफट गाडी में सवार होकर उसी दिशा में भागे, तब तक पुलिस की कई जीप भी हमारे पीछे पीछे आ गई। बंदरो का पीछा हम कर रहे थे और हमारे पीछे पुलिस की जीप आ रही थी, जो भी हो भगवान् ने हमारी मदद कर ही दी। बन्दर इतनी तेज भाग रहे थे की हमारी गाडी जबतक एक तक पहुँचती तो वह हार दूसरे बन्दर को फेक देता था और फिर हम दूसरे का पीछा कर रहे थे। थोड़ी देर में बन्दर हाइवे छोड़कर जंगल में घुस गए और हम भी बिना सोचे समझे उनका पीछा करते हुए जंगल में खो गए।

“अब क्या करें?केतन बोला, “हम भटक गए हैं, नरेंद्र तक कैसे पहुंचे ?”।

“श श श | कोई आवाज आ रही है . नितीश कान लगा कर सुनने की कोशिश करने लगा फिर एक तरफ इशारा करते हुए बोला “उधर!!। हम सब उसी दिशा में भागे चीखों की आवाज तेज होती जा रही थी और थोड़ी ही देर में हमने तुम्हे ढूँढ लिया। तुम्हारी दोनों टाँगे टूट गई थी और वो खूबसूरत चुड़ैल किसी पुतले में कुछ घुसा रही थी जिसका असर तुम पर हो रहा था।

मैं समझ गया उसने तुम पर अफ्रीकन काला जादू ‘वुडू’ किया था और इसका तोड़ हममें से किसी के पास नहीं था। तुम्हारी जान बहुत बड़े खतरे में थी पर किसी को कुछ सूझ नहीं रहा था क्या करें। तभी मुझे ध्यान आया की वुडू का सिद्धांत असल में तीव्र सम्मोहन है जिसमें सामने वाला व्यक्ति सम्मोहित सा हो जाता है और उसी की वजह से पुतले पर किये गए वार का असर उस व्यक्ति पर होता था। तुम्हे बचाने के लिए कुछ तो करना था वो भी जल्दी। . तभी मुझे कुछ ध्यान आया और मैं बन्दूक निकाल कर उस चुड़ैल पर तीन फायर किये और वो गिर गई। दो फायर मिस हुए थे पर तीसरा उसकी खोपड़ी में छेद कर गया।

सुबह के छः बज रहे थे और सूरज की पहली किरण के साथ ही इस भयानक रात का अंत हो गया साथ ही साथ अंत हो गया उस अभिशाप का जिसने इसे मौत का हाइवे बना दिया था। तुम दो हफ्ते तक बेहोश रहे फिर डेढ़ महीनों तक तुम खुद को भी नहीं पहचान पा रहे थे। हम सब तो उम्मीद खोने लगे थे पर वो देवी की तरह तुम्हारी सेवा में लगी रही, दिन-रात उसने एक कर दिया तुम्हे मौत के मुँह से खींच कर लाने में, आखिरकार उसकी मेहनत रंग लाई और धीरे-धीरे तुम्हारी हालात सुधरती गई और आज हम यहाँ हैं।

जानते हो उसका असली नाम क्या है? . मैं तो जैसे चार फुट ऊपर उछल गया “क्या !!!! ये नहीं हो सकता!! उसका नाम डंकिनी नहीं हो सकता!”, उसका नाम डंकिनी ही है नरेंद्र विवेक बीच में ही बोला। “पर ये कैसे हो सकता है? तुमने उसे ठीक माथे पर गोली मारी थी फिर वो बच कैसे सकती है? मेरी हैरानी बढ़ती जा रही थी।

मेरे ख्याल से इसका जवाब तुम्हे डंकिनी बेहतर दे सकती है डंकिनी! दरवाजा खुला और डंकिनी अंदर आई उसे देखते ही मेरी आँखों में नफरत का तूफ़ान उमड़ने लगा, इससे पहले मैं उसकी गर्दन तक पहुचता मेरे दोस्तों ने मुझे उठने से रोका “पहले इसकी बात तो सुनलो नरेंद्र! वरना बाद में तुम पछताओगे!विवेक ने मुझे रोकते हुए कहा। “इससे ज्यादा पछताने के लिए कुछ नहीं बचा है इसने गौरी को तो मार ही डाला था कोई भी औरत किसी लड़की के साथ वो नहीं करेगी जो इसने किया इसने भैरव को गौरी की इज्जत लूटने के लिए छोड़ दिया और अगर मैं सही वक्त पर नहीं आता तो वो राक्षस गौरी के बदन को नोच खाता!मेरी आँखों में खून उतर रहा था और ये देख विवेक ने डंकिनी को बाहर जाने का इशारा किया और वो रोती हुई बाहर चली गई।

“मैं तुझे मार दूंगा!! तू दुनियाँ के किसी भी कोने में छुप जाए पर मैं तुझे ढूंढकर मार डालूंगा!! मैं अभी भी बड़बड़ा रहा था।

क्या हो गया है तुम्हें? इसी लड़की की वजह से तुम्हारी जान बची है और तुम इसे ही मारना चाहते हो! विवेक झल्लाते हुए बोला, “बचाना नहीं मारना चाहती थी ये मुझे और कोई कसर छोड़ी भी नहीं थी क्या तुम भूल गये? तुमने ही तो इसे गोली मारी थी!मैं गुस्से से पागल हो रहा था। “मेरी बात सुनो! जो तुम देख रहे थे वो सही नहीं था और ये समझने के लिए की क्या हुआ था तुम्हे ठन्डे दिमाग से काम लेना होगा एक बार उसे अपनी बात कहने का मौका तो दो!विवेक मुझे समझाने की कोशिश कर रहा था, आखिरकार मैं उसकी बात सुनने को तैयार हुआ लेकिन मैंने लोडेड रिवाल्वर अपने पास रखी थी की चाहे जो हो जाए अगर ये झूठ बोल रही है तो इसे वही गोली मार दूंगा चाहे जो अंजाम हो।

थोड़ी देर बाद डंकिनी कमरे के अंदर आई और मैंने रिवाल्वर निकाल कर उसे दिखाते हुए टेबल पर रखा और बोला “मैं नहीं जानता की तुमने दोस्तों को क्या पट्टी पढाई है पर अगर तुम्हारा एक शब्द भी गलत निकला तो मैं तुम्हे शूट करने में जरा भी देर नहीं करूँगामेरे चेहरे पर सख्त रुख देखकर वो सहम गई और उसकी आँखों में आँसु आ गए। विवेक मुझे रोकने के लिए उठा लेकिन डंकिनी ने उसे रोक दिया फिर बोली “मुझे मार दीजिये! मैं इसी के लायक हुँ,”फ़ालतू के बकवास बंद करो और काम की बात करो! तुम बेगुनाह हो तो साबित करो या फिर मरने के लिए तैयार हो जाओ! नरेंद्र!! विवेक गुस्से से बोला लेकिन मैंने बन्दूक का रुख उसकी तरफ करते हुए कहा “वहीँ बैठे रहो विवेक! मुझे मजबूर मत करो की मैं सब भूलकर तुम्हे गोली मारने पर मजबूर हो जाऊं, ये लड़की तुम्हे बेवकूफ बना रही है मैं साँप पर भरोसा कर सकता हूँ पर इस पर नहीं |

मैं तो जैसे चार फुट ऊपर उछल गया “क्या !!!! ये नहीं हो सकता!! उसका नाम डंकिनी नहीं हो सकता!”, उसका नाम डंकिनी ही है नरेंद्र विवेक बीच में ही बोला। “पर ये कैसे हो सकता है? तुमने उसे ठीक माथे पर गोली मारी थी फिर वो बच कैसे सकती है? मेरी हैरानी बढ़ती जा रही थी।

मेरे ख्याल से इसका जवाब तुम्हे डंकिनी बेहतर दे सकती है डंकिनी! दरवाजा खुला और डंकिनी अंदर आई उसे देखते ही मेरी आँखों में नफरत का तूफ़ान उमड़ने लगा, इससे पहले मैं उसकी गर्दन तक पहुचता मेरे दोस्तों ने मुझे उठने से रोका “पहले इसकी बात तो सुनलो नरेंद्र! वरना बाद में तुम पछताओगे!विवेक ने मुझे रोकते हुए कहा। “इससे ज्यादा पछताने के लिए कुछ नहीं बचा है इसने गौरी को तो मार ही डाला था कोई भी औरत किसी लड़की के साथ वो नहीं करेगी जो इसने किया इसने भैरव को गौरी की इज्जत लूटने के लिए छोड़ दिया और अगर मैं सही वक्त पर नहीं आता तो वो राक्षस गौरी के बदन को नोच खाता!मेरी आँखों में खून उतर रहा था और ये देख विवेक ने डंकिनी को बाहर जाने का इशारा किया और वो रोती हुई बाहर चली गई।

“मैं तुझे मार दूंगा!! तू दुनियाँ के किसी भी कोने में छुप जाए पर मैं तुझे ढूंढकर मार डालूंगा!! मैं अभी भी बड़बड़ा रहा था।

क्या हो गया है तुम्हें? इसी लड़की की वजह से तुम्हारी जान बची है और तुम इसे ही मारना चाहते हो! विवेक झल्लाते हुए बोला, “बचाना नहीं मारना चाहती थी ये मुझे और कोई कसर छोड़ी भी नहीं थी क्या तुम भूल गये? तुमने ही तो इसे गोली मारी थी!मैं गुस्से से पागल हो रहा था। “मेरी बात सुनो! जो तुम देख रहे थे वो सही नहीं था और ये समझने के लिए की क्या हुआ था तुम्हे ठन्डे दिमाग से काम लेना होगा एक बार उसे अपनी बात कहने का मौका तो दो!विवेक मुझे समझाने की कोशिश कर रहा था, आखिरकार मैं उसकी बात सुनने को तैयार हुआ लेकिन मैंने लोडेड रिवाल्वर अपने पास रखी थी की चाहे जो हो जाए अगर ये झूठ बोल रही है तो इसे वही गोली मार दूंगा चाहे जो अंजाम हो।

थोड़ी देर बाद डंकिनी कमरे के अंदर आई और मैंने रिवाल्वर निकाल कर उसे दिखाते हुए टेबल पर रखा और बोला “मैं नहीं जानता की तुमने दोस्तों को क्या पट्टी पढाई है पर अगर तुम्हारा एक शब्द भी गलत निकला तो मैं तुम्हे शूट करने में जरा भी देर नहीं करूँगामेरे चेहरे पर सख्त रुख देखकर वो सहम गई और उसकी आँखों में आँसु आ गए।  हैलो! हम पेशे से इंजीनियर हैं और ये मेरे दोस्त हैं, एक-एक कर उसने सबसे परिचय करवाया फिर बोला “तुम्हारा घर कहाँ है? जी वहां पहाड़ी के पास एक गाँव है बस वहीँ पर मेरा घर हैगौरी ने मासूमियत से कहा। गाडी में बैठने से पहले बारिश शुरू हो गई थी इसलिए गौरी का बदन भीग गया था |

इसलिए ड्राइवर के बगल वाली सीट में हवा बहुत लग रही थी जिससे उसे ठण्ड लग रही थी, ये देखकर वो बोला लगता है आप काफी भीग गई हैं, आप यहाँ आ जाइये नहीं आप खुद बीमार पड़ जाएंगी”। गौरी अब पीछे वाली सीट में बैठ गई और एक आगे बैठ गया। पीछे अब गौरी के साथ तीन लोग बैठे थे, कुछ देर तो सब ठीक रहा पर थोड़ी देर बाद उसने महसूस किया की ड्राइवर के बगल में बैठा आदमी उसे मिरर से घूर-घूर के देख रहा था। इससे वो थोड़ी असहज हो गई तो उनका लीडर था वो बोला “आप इधर आ जाइये. गौरी जॉन के बगल में बैठ गई”।

गौरी के सामने बैठे आदमीं की नज़रें उसके उभारों का साइज नाप रही थी, उनके लीड़र की नजर अब गौरी के बदन पर घूमने लगी, बारिश ने उसका पूरा बदन भिगा दिया था जिससे उसके कपडों से उसके अंग झलकने लगे। धीरे-धीरे उसने महसूस किया कि सभी की आँखें उसके कपडों के अंदर झाँक रही थी।

असहज होते हुए वह बोली “साहब, बस मुझे यहीं उतार दीजिये .. मुझे अच्छा नहीं लग रहा है” तभी उनमें से एक बोला “मैं डाक्टर हुँ लाओ तुम्हारा चेकअप कर देता हुँ” इतना कहते हुए उसने स्टेथेस्कोप निकालकर गौरी के सीने पर रखते हुए बोला “कहाँ दिक्कत हो रही है बतानाऔर इतना कहते हुए गौरी के मना करते-करतेे उसने स्टेथेस्कोप सीधा बाए स्तन पर रखकर दबाते हुए बोला “कुछ हो रहा है या नहीं | ”। “मुझे जाने दीजिये ..मैं पैदल ही घर चली जाऊँगी!” गौरी ने घबराते हुए कहा, ”अरे चेकअप अभी पूरा नहीं हुआ है, अभी तो चेकअप शुरू हुआ है, ..यारों मुझे समस्या की जड़ मिल गई समस्या इनके गीले चोली में है, ….. चोली उतारनी पड़ेगी” इतना कहते ही गाड़ी के पीछे बैठे उन तीनों ने गौरी को पर लिया “.. अरे! चोली उतारने में हम तुम्हारी मदद करते हैं “ इसी के साथ वो तीनों के हाथ गौरी के बदन पर फिसलने लगे, वह बेचारी बार-बार मिन्नतें कर रही थी लेकिन उन पर उसका बातों का कोई असर नहीं हो रहा था और वो बेदर्दी से उसके अंगों को मसलने लगे।

“अरे क्या अकेले ही मजे लोगे इसके? ..” ड्रायवर के बगल में बैठा वो शख्स बोला, “अरे नहीं ! ….. तुम भी आ जाओ साथ में मिलकर सुहागरात मनाते हैं” उनका लीड़र गौरी के बाँए स्तन को जोर से मसलते हुआ बोला। “भगवान के लिये मुझे जाने दीजिये .. मेरे बापू बीमार हैं वो मर जाएँगें!” गौरी रोते हुए बोली। “यार! ….. ये गाँव वाले अपनी लड़कियों को क्या खिलाते हैं चोली तो देख इसकी …..…. साली जवानी आ नहीं रही है चोली में .. चलो चोली फाड़ देते हैं”।

गौरी बड़े संकट में थी, उसके पिता के साथ-साथ उसकी इज्जत भी खतरे में थी। अचानक उन सबने गौरी को छोड़ दिया, इससे पहले वह कुछ समझपाती, उनका लीड़र बोला “जाओ छोड़ दिया | ”, “अबे ये क्या कर रहा है? .. अभी तो हमने कुछ किया ही नहीं!” बाकी ने विरोध जताया पर लीड़र बोला “जाओ.. चली जाओ…. पर अगर तुम वापस नहीं आई तो हम आएँगे और तुम्हारे पिता के सामने तुम्हारा बलात्कार करेंगे”। गौरी बुरी तरह फँस चुकी थी और बीमार पिता की जान बचाने का अब एक ही रास्ता था कि वो इन शैतानों की बात मान ले, उसने हाँ मे सिर हिलाया और गाड़ी से निकलनें लगी कि तभी दूसरे आदमी ने उसे रोका “चली जाना पर चोली के नीचे क्या है ये तो हमने देख लिया पर …..” जरा रुककर उसने सबकी तरफ़ देखकर मुस्कुराया और बोला “ इस घाघरे के नीचे क्या है वो अभी तक पता नहीं चला …..”, “…पता चल जाएगा यारों! ….. ये खुद अपना घाघरा उतारकर हमें दिखाएगी” लीड़र हँसते हुए बोला।

“मैं विनती करती हुँ, मुझे जाने दीजिये” वह बेचारी लगातार उन्हें छोड़ देने की गुहार लगा रही थी कि तभी लीड़र बोला “एे लड़की या तो अपनी घाघरा उतारकर अपनी माँसल जाँघे दिखा या हम तेरा घाघरा उतारेंगे और तू बिना घाघरे के अपनें बाप के पास जाएगी”। वो बेचारी मजबूर थी .गौरी के हाथ घाघरे की तरफ़ बढ़े और घाघरा सर्र से सरक कर नीचे गिर पा, उस भयानक काली रात में एक कुँवारी लड़की पाँच अजनबियों के सामने अपनी नंगी जाँघें लिये खड़ी थी, ना जाने किस पल वो दरिंदे उस नाजुक कली पर टूट पड़ेंगे। पाँचो राक्षसों की आँखों में वासना के डोरे तैरने लगे।
सुनसान हाइवे की उस काली रात में कोई दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता था। आंधी और तेज बारिश की वजह से एक मीटर से ज्यादा कुछ दिखाई नहीं देता था, बीच-बीच में कड़कती बिजली की वजह से पूरा जंगल काँप जाता था।

सभी जीव-जंतु भी डर से अपने बिलों में घुसे हुए थे, दिसम्बर की उस सर्द रात में बेमौसम बरसात और घुप्प अँधेरे की वजह से जंगल और भी डरावना हो गया था। इसी अँधेरे के बीच कोई बेतहाशा बाग़ रहा था, .. उसे रास्ते के पत्थरों के टकराने से लगी चोंटों की कोई परवाह नहीं थी, वह तो बस भाग जाना चाहता हो उस जंगल से, .. उस भयानक रात से और हो सके तो उन हैवानो से जो उसकी इज्जत लूटना चाहते थे।

गौरी की साँस धौकनीं की तरह चल रही थी, ना जाने कितनी देर से भाग रही थे वो और अब उसके पैर जवाब देने लगे थे पीछे वो पाँचो शैतान शिकारी कुत्तों की तरह उसके पीछे पड़े हुए थे और गौरी किसी हिरनी की तरह अपना अस्तित्व बचाने में लगी थी। पर वो शिकारी कुत्ते पाँच थे और वो एक अकेली, यह उनका पहला शिकार नहीं था इससे पहले भी लोग ना जाने कितनी लड़कियों का शिकार कर चुके थे और आज गौरी की बारी थी। गौरी भागते हुए एक गुफा के पास जाकर चुप गई, थोड़ी ही देर में वो पाँचो वहाँ आ गए।

“कहाँ गई वो छमियाँ | उनमे से एक बोला, गौरी एक चट्टान के पीछे छुपी हुई थी । “यहीं कही होगी वो कहाँ बचकर जायेगी हमसे ..” दूसरा आदमी बोला। तूफ़ान के साथ घनघोर बारिश की वजह से काफी ढूँढने के बाद भी चट्टान के पीछे छुपी गौरी उन्हें दिखाई नहीं दी तभी उनमे से एक बोला “लगता है चिड़िया निकल गई हाथ से। ये सब इसकी गलती है!अगर ये लड़की को नहीं छोड़ता तो वो हाथ से ना निकलतीदूसरे ने लीडर की तरफ देखकर कहा। “छोड़ न यार! ऐसी लड़कियां और भी मिलेगी, चलो यहाँ से चलते हैं । . साल सारा मजा किरकिरा हो गया!लीडर बोला और वो सब वापस जाने को हुए की तभी जोर से बिजली कड़की और गौरी की सिसकारी निकल गई जो लीडर ने सुन ली।

“चिड़िया कहीं नहीं गई है | ठीक से ढूँढोउनके लीडर ने कहा, आज गौरी की किस्मत इस बेरहम मौसम के ऊपर है, तूफानी मौसम के अँधेरे और बेतहाशा होती बारिश की वजह से लाख ढूँढने के बाद भी गौरी उन शैतानो को नहीं दिखी। आज ये तूफानी मौसम गौरी को अच्छा लग रहा था क्यों की यही उसे छुपने में मदद कर रहा था शायद गौरी की किस्मत उसका साथ दे रही थी। शायद वह मासूम लड़की उन बेरहम दरिंदों के चंगुल में पड़ने से बच जायेगी यह सोचकर उसके मन में उम्मीद की किरण जाग उठी।

“बस और नहीं! हम ज्यादा वक्त बर्बाद नहीं कर सकते उस लड़की के लिए, उसे छोड़ो और निकलते हैं यहाँ से | लीडर की ये बातें सुनकर गौरी की जान में जान आई। लीडर चट्टान के ऊपर खड़ा था और उसी के नीचे वह लड़की छुपी थी पर घुप्प अँधेरे ने उसे छुपा रखा था। जैसे ही लीडर वापस जाने को मुड़ा एक जोरदार बिजली कड़की जिससे पूरा जंगल पलभर के लिए रोशनी से नाहा गया और ये एक पल गौरी की सभी उम्मीदों के दीयों को बुझाकर चला गया।
उन दरिंदों ने उसे ढूंढ लिया, गौरी की इज्जत बचाने वाला अब कोई नहीं था। उन पाँचों हैवानो ने गौरी के जिस्म के साथ खेलना शुरू किया, गौरी का बदन उन पाँचो के बीच पीसा जा रह था, कभी इस हाथ तो कभी इस हाथ। उन सबके हाथ गौरी के हर अंग को बेदर्दी से मसल रहे थे तभी लीडर का हाथ गौरी की चोली की तरफ बढ़ा, …..गौरी ने भागने की कोशिश की पर सब बेकार था। उसकी सिसकियों से पूरा जहाँ गूँज रहा था, लीडर के हाथ गौरी की चोली के अंदर यहाँ-वहाँ घूम रहे थे की तभी उसने लड़की की चोली फाड़ दी। खट, खट, खट करके उसकी चोली के सारे बटन इधर-उधर टूट के बिखर गए। वो सब गौरी के निर्वस्त्र स्तनों को बेदर्दी से मसल रहे थे जिसके दर्द से गौरी की चीखें आसमान को फाड़ने को बेताब थॆ।

थोड़ी ही देर में गौरी का घाघरा भी उसके बदन से जुड़ा हो गया और उस तूफानी रात में बारिश में भीगती निर्वस्त्र लड़की को खा जाने को बेताब थे वो कमीने। “रोती क्यों है मेरी रानी तेरा चीर हरण तो हमने कर ही दिया है .. एक बार हमें खुश कर दे, तुझे रानी बनी कर रखेंगे …..” लीड़र लार टपकाते हुए बोला, तभी दूसरे आदमी ने उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा “हाँ | तू हमारी द्रौपदी है और हम तेरे पाँच पति! ”।

“मैं तुम्हारे पैर पड़ती हुँ, मुझे जाने दीजिये ” गौरी ने आखिरी बार विनती की पर शैतानों पर विनती का असर हुआ है कभी जो अब होता? “साली तुझे एक बार में बात समझ नहीं आती | अब हम तुझे अपनी रखैल बनाकर रखेंगे!” लीड़र तमतमाते हुए बोला। “तुझे हमारे बच्चों की माँ बनाएँगे ….. “ दूसरा बोला इतनें में लीड़र बोला “नहीं | उससे भी बुरा होगा तेरे साथ! अगर हमारी बात चुपचाप मान लेती तो हम तुझे छोड़ देते और बहुत पैसा भी देते लेकिन अब नहीं अब हम नहीं पूरा शहर तुझ पर पैसा लुटाएगा अब तू हर मर्द का बिस्तर गर्म करेगी . रोज रात को तू एक नए मर्द के साथ होगी और वो तेरे साथ वही करेगा जो हम करने वाले हैं”।

लीड़र का इशारा पाते ही दो ने उसके हाथ पकड़कर जमीन हर फैला दिये, उधर दो ने गौरी की माँसल टाँगे फैला दी, ….. लीड़र ने अपनी पैंट उतारकर दो हजार रुपए निकाले अपनी अडरवियर निकालने के बाद लीड़र गौरी के निर्वस्त्र बदन पर पैसे फेंकते हुए बोला “.. शहर की सबसे बड़ी रंडी बनेगी तू | रंडी!! और इसकी शुरूआत होती है आज से आज के बाद तु हमारी सूरत कभी नहीं भूलेगी!.”।

दिसम्बर की वो सर्द तूफानी रात उस इंसानियत को शर्मिंदा करने वाले उस अपराध की गवाही बन गई। सारी रात वो उसकी अस्मत को लूटते रहे, उसके बदन को कुत्तों कि तरह नोंचते, खसोसटते, काटते और वो बेचारी अपनी किस्मत को रोती रही।

“बचाओ!! | ब . चा!” अंतिम साँस तक वो पुकारती रही कि शायद कोई उसे बचाने आ जाए। जिस हैवानियत के साथ एक कुँवारी लड़की का उन पाँचों ने बलात्कार किया था उससे तो कुदरत भी जैसे क्रोध में आ गई थी। बारिश और तूफ़ान की उस मनहूस रात की सुबह नहीं हुई।

उस प्राईवेट वार्ड में सब चुप थे, ….. मेरी आँखें जल रही थी और जैसे ही मैंने आँखें बंद की तो आँसुओं की एक बूँद उनसे टपक पड़ी।

थोड़ी देर में मैं संयत होते हुए बोला “उस लड़की के साथ बहुत ही अन्याय हुआ है डंकिनी! तुमने हमारी मदद की है, .. तुम सच बोल रही हो …..” इतना सुनते ही डंकिनी के गालों पर पर खुशी की लाली छा गई, “मेरी बात पूरी नहीं हुई है! ….” मैंने डंकिनी को बीच में रोकते हुए कहा “..तुम सच बोल रही हो ये मानने का मेरा मन कर रहा है .. पर तुम झूठ बोल रही हो”। “क्या बात कर रहा है यार मुझे लगता है ये सच बोल रही है” केतन के सवाल से सबकी नजर मुझपर आ टिकी।

“अभी पता चल जाएगा कि ये सच बोल रही है या नहीं | डंकिनी, तुम्हारी कहानी ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं और उनका जवाब दिये बगैर तुम्हारी किसी भी बात पर भरोसा करना असंभव है” मेरी बातों से डंकिनी के चेहरे पर दर्द साफ़ झलक रहा था तभी विवेक ने स्थिति संभालने की कोशिश करते हुए कहा “कमअॉन यार | वो झूठ क्यों बोलेगी?” तभी डंकिनी ने अपने आँसु पोछते हुए कहा “रहने दो विवेक! ….. मैं जानती थी कि तुम्हारे दोस्त आसानी से मेरी बातों का भरोसा नहीं करेंगे” मेरी तरफ़ मुँह करते हुए वह बोली “पूछो विपिन जो तुम्हें पूछना है, मैं तुम्हारे हर सवाल का जवाब देने को तैयार हुँ”।

मेरे होठों पर मुस्कान थी वो तैयार थी और मेरे सवाल भी।

——- सवाल नं १ ——

“तुम्हारे हिसाब से यह दुर्घटना ४० सालों पहले घटी थी लेकिन तुम इस घटना को इतनी बारीकी से कैसे जानती हो? ४० साल पहले हममे से कोई भी पैदा नहीं हुआ था और अगर तुम कोई चुड़ैल नहीं हो तो तुम्हारा जन्म भी इस घटना के कई सालों बाद हुआ होगा। एैसा तो तभी हो सकता है जब या तो तुम्हारे पास गौरी की पर्सनल डायरी हो गौरी पढी-लिखी भी थी कि नहीं ये भी पता नहीं है और एक पल को ये मान भी लें की गौरी अपने जीवन से जुड़ी हर बात लिखती हो तब भी गौरी की डायरी में इस घटना का कोई जिक्र नहीं हो सकता क्योंकि..” सबकी नजरें मेरी तरफ़ थी, “क्योंकि मुर्दे डायरी नहीं लिखते गौरी तो उसी रात मर गई थी और ये राज उसके साथ ही दफन हो गया होगा, फिर भी तुम्हें इस घटना के बारे में इतनी पता है जैसे तुमने खुद ये मंज़र देखा हो जो संभव नहीं है इसका एक ही मतलब है कि ये कहानी तुम्हारे शैतानी दिमाग की उपज है”।

तुम सही हो, ….!” सबकी नजर गौरी पर आ टिकी, वो आगे बोली “ये घटना ४० साल पहले हुई थी और उस समय मैं तो पैदा भी नहीं हुई थी…. तुम सही कह रहे हो, गौरी कोई डायरी नहीं लिखती थी पर एक डायरी थी जो मेरे दादाजी लिखते थे। वो एक जाने-माने तांत्रिक और ज्योतिषी थे, . जिस जगह गौरी की अस्मत लूटी गई वो गुफ़ा मेरे दादाजी का साधना स्थल थी। उस दिन मेरे दादाजी नोएड़ा में एक गाँव के सरपंच के घर गए थे, उनकी बहु को कोई ऊपरी बाधा थी। वहाँ से जब दादाजी लौटे तो उन्हें गुफ़ा के आस-पास अजीब सी उर्जा का अहसास हुआ। थोड़ी ही देर में वो समझ गए कि क्या हुआ था। उस दिन के बाद से दादाजी बीमार रहने लगें . दादाजी गौरी की मदद करना चाहते थे पर उनकी यह विद्या उनके साथ ही लुप्त होने वाली थी, उन्हें किसी शिष्य की जरूरत थी जो उनके अधूरे काम को कर सके। करीब १५ सालों तक दादाजी इस राज को लेकर मन ही मन कुढ़ते रहे फिर मेरा जन्म हुआ। उम्र बढ़ने की वजह से उनकी साधना में मैं मदद करने लगी और मुझे दादाजी की क्रियॉओं में दिलचस्पी होने लगी।

धीरे-धीरे मैंने दादाजी की सभी विद्याओं में महारत हासिल कर ली पर दादाजी की उदासी और बीमारी की वजह के बारे में मुझे कुुछ भी पता नहीं था शायद दादाजी फ़ैसला नहीं कर पा रहे थे कि मुझे उस खतरनाक राज़ के बारे में बताएँ या नहीं। एक रात दादाजी ने मुझे पास हिलाया उस दिन उनकी तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब थी मेरे माता-पिता किसी शादी में गए हुए थे और रात को नहीं आने वाले थे “क्या हुआ दादाजी?..” मैंने पूछा पर दादाजी कुछ बुदबुदा रहे थे, शायद कोई मंत्र पढ़ रहे थे। उनके चेहरे पर दर्द साफ़ झलक रहा था।

“बेटी | ”, “हाँ दादाजी ..” मेरी चिंता बढ़ रही थी। “जाने का वक्त आ गया बेटी” दादाजी बोल ही रहे थे कि मैंने उनकी बात काटते हुए कहा “एैसा मत कहिये दादाजी | आपको कुछ नहीं होगा”।

“मुझे पर एक अहसान करेगी? दादाजी की आँखों में आँसु थे। “आज्ञा दीजिये दादाजी! ….. आपने मुझे ये सब सिखाया है” मेरी आँखों में भी आँसु आ गए।

“ये मेलोडी इतनी चॉकलेटी क्यों है?.” दादाजी बोले।
पलभर के लिए तो मैं भी स्तब्ध रह गई फिर ठठाकर जोर से हँस पड़ी। दादाजी इस स्थिति में भी मजाक कर लेते हैं और इसी वजह से मेरी और दादाजी की खूब बनती थी। फिर वो गंभीर होकर बोले “बेटी! हाँ दादाजी! आप कुछ कहना चाहते हैं मुझसे। .. प्लीज बताइये ना!मैं बेचैन होते हुए बोली। दादाजी थोड़े हिचके फिर बोले “बेटी! मैंने तुम्हे मेरी सारी विद्या सिखाई। .. अगर बदले में कुछ माँगू तो देगी?मैं थोड़े अचरज से बोली “हाँ दादाजी | बोलिये ना मैं आपके लिए क्या कर सकती हूँ”।

“बेटी मेरे दिल पर एक बोझ है। एक कर्ज है जो मैं नहीं चुका पाया, तू मेरी मदद करेगी!दादाजी खाँसते हए बोले “हाँ दादाजी मैं आपके लिए कुछ भी कर सकती हूँ, प्लीज बताइये मुझे क्या करना होगा। …मैंने जवाब दिया।
“उधर मेरी अलमारी की दराज में एक किताब लेकर आ बेटीउन्होंने एक तरफ इशारा किया, मैंने अलमारी की दराज खोलकर एक छोटी सी किताब निकाली और दादाजी को थमा दी। थोड़ी देर तक दादाजी उस किताब के पन्ने पलटते रहे फिर एक छोटा सा कागज़ का टुकड़ा किताब के बीच से निकाल कर मुझे दिया और बोले “मैं तुम्हे एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी देने जा रहा हूँ बेटी! इसे ठीक से निभाना . उसके साथ बहुत गलत हुआ है उसे मुक्ति देनी होगी”। “किसे मुक्ति देने की बात कर रहे है दादाजी?मैंने पूछा तो वो आँखे बंद करते हुए बोले “सब पता चल जाएगा बेटी, ये कागज़ का टुकड़ा तुझे तेरी मंजिल तक पहुंचाएगा”।

दोस्तों बाकी की कहानी अगले भाग में सुनाऊंगा अब विदा चाहता हूँ आप लोगो का कमेंट ना आने की वजह से मै कहानी जल्दी जल्दी आगे नहीं बढ़ा पा रहा हूँ तो कृपया करके अपने कमेंट लिखे ताकि मै भी जल्दी जल्दी कहानी पूरा कर सकू |

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नेशनल हाईवे का रहस्य -2 | hindisexstories.autocamper-service.ru //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/%e0%a4%a1%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%a8%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%82/national-highway-ka-rahasya-part-2.html //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/%e0%a4%a1%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%a8%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%82/national-highway-ka-rahasya-part-2.html#respond Mon, 08 Jan 2018 15:17:04 +0000 //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/?p=11444 यह कहानी कुछ दोस्तों की है जो एक रात एक हाईवे पर गाड़ी से यात्रा कर रहे थे की रस्ते में उन्हें कुछ रहस्यमयी दिखा जिसका जिक्र इस कहानी में किया गया है |

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हेल्लो दोस्तों थोड़ा टाइम हो गया उसके लिए क्षमा चाहता हूँ | जिन लोगो ने पहल भाग नहीं पढ़ा वो यहाँ क्लिक कर पढ़ ले नेशनल हाईवे का रहस्य -1 तो तो चलिए अब कहानी को आगे बढाता हूँ दोस्तों उसने मेरे सिर पर हाथ फेरा और मेरे बाल पकड़कर बोली तुम्हें भोग मिलेगा! पर पहले देवता को भोग लगाना है । कौन हो तुम! मुझे जाने दो मैं आपके हाथ जोड़ती हुँ। डंकिनी! .. डंकिनी कहते हैं मुझे सबयह कहकर उसनें एक थाल से सिंदूर लेकर मेरे पूरे बदन पर उड़ेल दिया, मेरे माथे पर सिंदूर लगाते हुए वह बोली देवता का भोग हो तुम! तुम किस्मत वाली हो जो देवता तुम्हारा भोग करेंगे।

मैं गिड़गिड़ाते हुए उससे मुझे छोड़ने की विनती करने लगी पर मेरे बाल पकडे हुए वह किसी गर्म तरल पदार्थ से धोने लगी। वह मानव रक्त था। मेरे पूरे शरीर पर रक्त से कुछ बनाते हुए वह बोली तुम मेरी बरसों की साधना को सफल बनाओगी। मैं अंदर तक सिहर गई और विनती करने लगी मुझे जाने दो मैं आपके किसी काम की नहीं हुँ, मैं तो आपकी बेटी की तरह हुँ, इतना सुनकर वह मेरी तरफ़ देखकर हँसी मूर्ख लड़की! साधना में कोई रिश्ता सच नहीं होता, मेरी बेटी को मैं कब का देवता को बलि चढ़ा चुकी हूँ, अब तेरी बारी हैइतना कहते हुए उसने एक खोपड़ी पर सिंदूर लगाकर मेरी नाभि पर रख दी।

थोड़ी देर बाद जब वह वापस आई तोे उसके हाँथ में कटार थी मैंने डरकर अपनी आँखें बंद कर ली पर काफ़ी देर तक जब उसने प्रहार नहीं किया तो मैंने आँखें खोली, वह कोई मंत्र बुदबुदा रही थी की तभी उसकी कटार चली और मैं एवं खोपड़ी खून से नहा गई और मेरी चीख निकल गई। वह मेरा खून था या शायद नहीं।

डंकिनी की कलाई से खून खोपड़ी पर गिरा और जैसे ही खून खोपड़ी के मुँह से मेरी नाभि पर गिरा तो जैसे मुझे करंट सा लगा। मेरा पूरा बदन सूखे पत्ते की तरह काँपने लगा, मेरे अंग-अंग में अजीब सी एेठन होने लगी और अचानक मेरा शरीर हवा में सात फुट ऊँचा उठ गया। डंकिनी का वह भयानक अट्टाहास मेरे कान फाड़े डाल रहा था, मैं जिसका भोग बनने जा रही थी वो मुझे लेने आ रहा था। एक भीमकाय साया धुँए से बनकर मुझे आगोश में ले रहा था, कुछ ही पलों में मेरा अस्तित्व खत्म होने वाला था और मेरी आत्मा तक इस शैतान की गुलाम होने वाली थी। मैंने आखिरी बार अपनी आँखें बंद की जो अब तभी नहीं खुलेंगी तभी एक धमाका हुआ और मेरे काम सुन्न पड़े गए। मेरा शरीर पत्थर की तरह अकड़ा हुआ था और सब धुंधला सा दिख रहा था।

अचानक एक साया मेरे करीब आया, शायद वही शैतान था, पर मुझे नुकसान पहुँचने की जगह मेरे पास चुपचाप बैठा था। अचानक उसने मुझे उठाकर झिंझोड़ा, वह कुछ बोल रहा था पर मुझे कुुछ सुनाई नहीं दे रहा था। बेटी!.अचानक यह शब्द मेरे कानों में पड़ा, ये ..ये तो बापू की आवाज़ है। मैंने आँखों पर जोर डालकर देखा ये बापू नहीं थेतो बापू की आवाज़ कहाँ से आई?

बेटी!वो अजनबी बोला, बापू!…मेरी बात पूरी होने से पहले वो बोले मैं जानता हुँ बेटी इसलिए तुझे बचाने आया हुँ पर मैं डंकिनी को ज्यादा देर नहीं रोक पाउँगा, यहाँ से भाग जा बेटी!बापू की आँखों में आँसु थे।

बापू!.. यह तुम्हें क्या हो गया?मैं रोते हुए बोली, तु मेरी फ़िक्र मत कर बेटी, यहाँ से भाग जा! ., पर बापू! वक्त कम है बेटी भाग जा यहाँ से,मौत के हाइवे से जानाबापू मेरी बात काटते हुए बोलेे।

पर बापू वहाँ तो कोई नहीं आता …मैंने सवाल भरी आँखों से बापू को देखा पर जैसे आज बापू के पास मेरे हर सवाल का जवाब था, उन्होंने मेरे सिर पर हाथ फेरा और कहा आज वहाँ तुझे मदद भी मिलेगी जा बेटी!। मैंने जल्दी से अपनें कपड़ेे पहनें और जाने लगी बापू ने टोका गौरी!.. मेरी बेटी. वादा कर की कुछ भी हो जाए तु वापस यहाँ नहीं आएगी, मैं वादा करती हुँ पर मेरी मदद कौन करेगा?. मेरे इस सवाल पर बापू थोड़ी देर चुप रहे फिर बोले मुझपर भरोसा कर बेटी!..मदद तेरी इंतजार कर रही है!

काफ़ी देर से हम दोनों सड़क पर खामोश चल रहे थे, कितना बुरा हुआ इस लड़की के साथ आखिर भगवान कुछ लोगों का इतना इम्तेहान क्यों लेता है। सुबह के चार बजने मे सिर्फ़ एक मिनट बाकी था ये रात बहुत लम्बी थी सुबह होने वाली थी और ये सुबह बहुत कुछ लाने वाली थी लेकिन अंधेरे को जाने में अभी काफ़ी वक्त बाकी था। अंधेरे की एक खासियत है कि यह तब तक नहीं जाता जब तक हम इसे भगाने की नहीं ठान लेते..और मैंने इस अंधेरे को हमेशा के लिये दूर करने का फ़ैसला कर लिया।

तुम्हारे बापू ने गलत नहीं कहा था, मैं तुम्हारा मदद करूंगा.. पर आप मेरी मदद क्यों करना चाहता हैं,आप मेरे लिये अपनी जान खतरे में क्यों डाल रहे हैं? क्यों?उसकी आँखों में सवाल था जिसका जवाब मेरे पास नहीं था या शायद मैं जवाब देना नहीं चाहता था।

वो छोड़ो, .. सुबह होने वाली है, .. जल्द ही हम इस जंगल और इस हाइवे से दूर निकल जाएँगेंमैं थोड़ा आश्वस्त होने चला था पर मुझे क्या पता था कि मेरा आखिरी इम्तेहान बाकी था। हम दोनों बातें करते हुए चले जा रहे थे कि अचानक वह चलते-चलते रुक गई क्या हुआ?मैंने पलटकर उसे देखा, वो शर्म से लाल हो रही थी जैसे कुछ कहना चाहती हो पर कह नहीं पा रही हो।

मेरे बार-बार पूछने के बावजूद वह कुछ ना बोली, थोड़ी देर में उसने इशारों में बताया और मेरी हँसी छूट गई और उसने नाराज होते हुए मुझे घूमने को कहा ताकि मैं उसको ना देख सकुँ। उसे बाथरुम आ रही थी।
और कितना देर?..मुझे खड़े-खड़े पाँच मिनट हो गए थे पर वो जवाब नहीं दे रही थी, …अगर तुम कुछ नहीं बोलोगी तो मुझे तुम्हारे पास आना पड़ेगा!..काफ़ी देर बाद उसका कोई जवाब ना पाकर मैंने वहाँ जाकर देखा पर वो कहीं नहीं थी, मैंने आस-पास देखा पर उसका नामो-निशान तक नहीं था।

गौरी!!.किसी संभावित खतरे की आशंका से मेरा दिल घबरा रहा था। गौरी!! . कहाँ हो तुम!!!गौ., बचा!..ओ!!!!!एक चीख ने मेरा ध्यान खींचा, वो गौरी ही थी जो किसी भयानक खतरे में पड़ गई थी और मुझे उसे बचाना था। मेरे इम्तेहान की घड़ी आ गई है बत्तीस सालों से सीधी चली जा रही मेरी जिन्दगी एक एेसे मोड़ पर खड़ी है जहाँ एक प्रचंड मुकाबला है .. सही और गलत के बीच . मानवीय इच्छाशक्ति और क्रूर तामसिक शक्तियों के बीच आज कोई एक ही जीतेगा .. आज कोई एक ही सुबह का सूरज देखेगा मेरे गुरू ने सत्य ही कहा था कि बहुत जल्दी मेरा वक्त बदलने वाला है।

चीख दक्षिण दिशा से आई थी और मैं पूरी शक्ति के साथ उस दिशा में दौड़ रहा था। कुछ भी हो जाए मैं गौरी को कुछ नहीं होने दूंगा | गौरी आज फिर उन्हीं दरिंदों के बीच फँस गई थी जिनसे वह अबतक भाग रही थी। ये डर तब तक नहीं जाता जब तक हम इसे मार-मार कर भगा नहीं देते। उन तीन दरिंदों के अट्टाहास के बीच एक जानी पहचानी आवाज़ गूँजी आ गई लड़की! …कैसा लग रहा है मौत को सामने देखकर?डंकिनी गौरी के पास गई और उसकी आँखों में आँखें डालकर बोली तुझे क्या लगा! तु मुझसे भाग सकती है? हा हा हा हा.. अरे पगली! मौत से भी कोई भाग पाया है आजतक?।

गौरी ने नफ़रत से मुँह दूसरी तरफ़ कर लिया पर डंकिनी के डंक जैसे शब्द जारी थे मेरी बात मान लेती तो आसान मौत देती तुझे .. लेकिन अब मैं तुझे वो मौत दूँगी की दुनियाँ देखेगी . अब तेरा भोग देवता नहीं.. भैरव करेगा,.. भैरव!!!डंकिनी के इतना कहते ही जैसे तूफान आ गया, उन तीनों में जो इतना देर से सबसे भूखी नजरों से गौरी को देख रहा था, वो भीमकाय दानव भैरव उठा लड़की को एक हाथ से उठा लिया। गौरी की चीखों से धरती और आसमान दोनों सिहर उठे।

भैरव ने उसे नीचे पटक दिया, गौरी की जैसे सारी हड्डियाँ टूट गई, यह देख वह राक्षस और भयानक अट्टहास करने लगा। तूने अपनी मौत खुद बुलाई है लड़की, देख इसे! यह भैरव है, इसने पिछले चालीस सालों से किसी औरत को नहीं छुआ है आज यह तेरे बदन से अपनी बरसों पुरानी प्यास बुझायेगा! और तो और मारने के बाद भी तू इसकी गुलाम रहेगी और यह तेरी आत्मा के साथ अगले ३०० सालों तक दुष्कर्म करता रहेगा। यह है तेरा अंजाम मेरी बात ना मानने का आज के बाद तू मौत मांगेगी पर ये तुझे मौत भी आसानी से नहीं देगा। पहले यह तुझसे अपनी भूख मिटाएगा फिर मन भर जाने पर यह तुझे अपने हज़ारों सेवकों को दे देगा जो पल-पल तेरा बदन नोचेंगे

डंकिनी की बातें सुनकर गौरी अंदर से आतंकित हो गई और अपनी जान बचाने के लिए एक शिला के छुप गई। भैरव जोर से हँसा और उसने शिला के दो टुकड़े कर दिए, इतने में डंकिनी गरजी जानना चाहती है उन औरतों का क्या हुआ जिन्हें भैरव ने भोगा? ये देख!!इतना कहकर उसने अपने गले में टंगी खोपड़ी उतारी और गुफा की दिवार पर दे मारी तो पूरी दिवार ही भरभराकर गिर गई। दिवार के पीछे का नज़ारा किसी को भी आतंकित करने के लिए काफी था, दिवार के पीछे औरतों के सैकड़ो कंकाल थे जिनका भैरव ने भोग लगाया था। उनकी चीखें आज भी यहाँ सुनाई दे रही थी, एक हड्डी भी सलामत नहीं थी.. भैरव ने एक-एक ऊँगली तक को नोच कर अलग कर दी थी कंकालों की।

गौरी को पकड़ने के लिए भैरव ने अपना हाथ बढ़ाया जिससे बचने के लिए गौरी भागी और उसकी चुनरी भैरव के हाथ आ गई और उसने पल भर में ही चुनरी के टुकड़े कर दिए। आज के बाद तू मेरी दासी बन कर रहेगी! भैरव की गरजदार आवाज ने उसको हिलाकर रख दिया, वह शैतान एक बार फिर गौरी पर झपटा और उसे पकड़कर नीचे गिरा दिया। भैरव के आगे गौरी एक छोटे मेमने से ज्यादा नहीं थी, उसने गौरी के दोनों हाथों को अपने एक हाथ में पकड़कर ऊपर किया और उसका दूसरा हाथ गौरी की चोली की तरफ बढ़ा।

उसकी लाल आँखों में वासना भरी थी और जबान से लार गौरी के ऊपर गिर रही थी, उसकी सांसों की बदबू से वो मरी जा रही थी। गौरी के हलक से गगनभेदी चीख निकली और उसकी चोली फटकर भैरव के हाथ में तभी जोरदाज बिजली कड़की और मौसम का मिजाज बदल गया, आसमान में घने काले बादल छा गए, सूरज भी जैसे आज निकलना नहीं चाहता था वो राक्षस अभी तक चोली को ही चाट रहा था, .. गौरी ने अपने हाथों से अपने स्तनों को ढक लिया। आसमान भी शायद यह देखकर रोने लगा और घनघोर बारिश शुरू हो गई तभी भैरव का ध्यान गौरी पर गया और उसका अर्धनग्न बदन देखकर उसकी आँखों में खून उत्तर आया अब गौरी भी समझ चुकी थी की उसे उसके दर्दनाक अंत से कोई नहीं बचा सकता इसलिए उसने विरोध करना छोड़ दिया।

उस दैत्य ने गौरी के घागरे को भी चीरकर फेक दिया गौरी अब उसके सामने निर्वस्त्र पड़ी थी अकेली और सामने था उसके बदन को खा जाने को आतुर वो हैवान। गौरी अपनी आँखे बंद कर ली, उसकी आँखों में उसके बचपन की यादें उत्तर आई, बापू के साथ रोज शाम को पूजा के लिए थाल सजाना, .. बापू हमेशा कहते थे की सच्चे मन से पुकारो। तो भगवान् जरूर आतें हैं .. पर .. ये द्वापर युग नहीं है की भगवान् श्री कृष्णा आएंगे उसकी लाज बचाने के लिए।

भैरव धीरे-धीरे गौरी के निर्वस्त्र बदन की तरफ बढ़ रहा था, .. युग चाहे कोई भी हो पर अगर पुकार सच्ची हो तो चमत्कार होते देर नहीं लगती, गौरी को मदद की जरुरत थी जिसकी उसे बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी। अचानक जोरदार बिजली कड़की और वही हुआ जिसकी उम्मीद नहीं थी, भैरव अचानक रुक गया था, दो धमाके और हुए और भैरव निढाल होकर एक तरफ लुढ़क गया। गौरी की आँखों में हैरानी या डर में क्या ज्यादा था ये तो पता नहीं पर जो सामने आया उसे देखकर उसकी आँखों में ख़ुशी के आंसू जरूर आ गए थे। श्रीकृष्ण तो नहीं पर उनका दूत जरूर आ गया था उसकी लाज बचाने के लिए जो उसे ढूंढते हुए यहाँ तक आ पंहुचा था अपने वचन को निभाने जो उसने हाईवे में रोती हुई गौरी को दिया था।

मैं तुम्हे कुछ नहीं होने दूंगागौरी को उसकी बातें याद आने लगी, कितनी सच्चाई थी उसकी बातों में .. वो आ गया था अपना वचन निभाने।

वो २० मिनट मुझे २० साल की तरह लग रहे थे जब मैं गौरी को पागलों की तरह ढूंढ रहा था, आखिरकार उसकी चीखों की आवाज पास आती जा रही थी और मैं अपनी मंजिल के करीब था। वहाँ का नज़ारा देखकर मेरा खून खौल गया .. वो दैत्य गौरी के कपड़ों को तार-तार कर रहा था पर ये वक्त बुद्धि से काम लेने का था, मेरे पास रिवाल्वर था पर निशाना गलत निकल तो ये राक्षस बच जाएगा और मैं गौरी को बचा नहीं पाऊंगा। मैंने अपनी रिवाल्वर निकाल ली और छुपते हुए शिला के पीछे आ गया और किस्मत से उस हैवान ने गौरी को वही गिराया था, जब वो गौरी के घाघरे को तार तार कर रहा था तब मेरा रोम-रोम कह रहा था की मैं उसके सर के टुकड़े कर दूँ पर मैंने दिमाग को शांत कर निशाना लगाया। पहली गोली उस शैतान के सिर के आर-पार हो गई, दूसरी गोली उसकी गर्दन को चीरती हुई चली गई और तीसरी गोली ने उसके दिल को छेड़कर मेरे दिल को शांत कर दिया। धम्म से उसका भारी शरीर नीचे आ गिरा और हैरान होने की बारी डंकिनी की थी।

कहानी जारी है … आगे की कहानी अगले पेज में पढ़े |

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हेल्लो दोस्तों जैसा की मैंने आप सभी से वादा किया है की मै अपनी रहस्यमयी और रोमांचक कहानियो के खजाने से रोज एक कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर प्रेषित करूँगा और आप लोगो को एक नए रोमांच का एहसास होगा अगर आप लोगो को मेरी कहानी अच्छी लगे तो इसे शेयर करना ना भूले दोस्तों आज ज्यादा बात ना करते हुए सीधे कहानी पर आता हूँ | आप लोग यहाँ पर क्लिक कर मेरे सभी कहानी पढ़ सकते है | रात के 11.30 बजे हम लोगो की गाड़ी हवा से बाते करती हुई हाईवे पर सरपट दौड़ी जा रही थी। राजू गाड़ी चला रहा था और मैं, विवेक, पंकज, केतन और नितीश पीछे बैठे बातों में मशगूल थे। पिछले मंगलवार को यह पता चला की हमारे बचपन के यार की शादी नोएड़ा में तय हो गई है। बस फिर कया था, आनन फ़ानन में सफ़र की योज़ना बनी और छह घंटो में हम फ़तेहपुर से 400KM आगे निकल आए।

बाते की दौर चल ही रहा था कि बीयर की बोतलें खुल गई। आदत से मजबूर पंकज ने मुझे आफर की पर मैने मना कर दिया। ‘पीलो यार, पूरे दल में तुम ही एक हो जो नही पीते हो!’ विवेक ने नशे में मुझसे कहा।

‘अच्छे सफ़र के लिये हम में से किसी एक की होश में रहना जरूरी है’ मैंने कहा।

‘ये हुई ना बात!’ केतन ने हँसते हुए कहा ‘तुम संत जो ठहरे’.

‘इसमें संत वाली क्या बात हुई’ मैने तल्ख लहजे में कहा।

‘नाराज़ क्यों होते हो यार’ विवेक बीच बचाव करते हुए बोला ‘जानते हो हम इस समय कहाँ हैं?’

‘कहाँ?’ सबकी नज़र विवेक पर आ टिकी। विवेक ने एक नज़र सबको देखा और बोला ‘हम इस समय दिल्ली-नोएड़ा हाईवे पर हैं, देश की सबसे भूतही जगह’

यह सुनते ही गाड़ी में अज़ीब सा सन्नाटा छा गया।

यह सुनते ही गाड़ी में अज़ीब सा सन्नाटा छा गया। इसी खामोशी में सिर्फ़ गाड़ी के इंजन की आवाज आ रही थी। बाहर घुप्प अंधेरे के बीच चाँद बादलों के बीच झाँक लेता था।

“‘तुम भी कहाँ की बात लेकर बैठ गए, ‘ये भूत-प्रेत दिमाग में होता है सच में नहींलगभग डेढ घंटे बाद केतन चुप्पी तोड़ी।

“हाँ यही तो में भी बोल रहा थापंकज ने हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा। “तुम कब बोल रहे थे पंकज?विवेक ने मजाकिया अंदाज में कहा। “अरे तो अब बोल रहा हूँ भईपंकज ने भी उसी अंदाज में कहा।

रात के डेढ बज़े हैं और चारों तरफ़ सन्नाटा पसरा हुआ है, बीच-बीच में जो चाँद बादलों से झाँक लेता था अब वो भी खतम हो गया। अंधेरा इतना था कि गाड़ी की तेज़ लाईट के बावजूद ५० मीटर से ड्यादा नहीं दिखता था।

हमसब अपनी बातों में इतना मसरूफ़ हो गए कि हमें पता ही नहीं चला कि कब ढाई बज गए और हम दिल्ली-नोएड़ा मेन हाईवे पर ८० किलोमीटर की रफ़्तार से बढ़े जा रहे थे कि राजू ड्रायवर ने अचानक ब्रेक मारा और गाड़ी जोर से आवाज करते हुए रुक गई।

गाड़ी के अंदर हम सब उलट-पुलट हो गए कि तभी केतन ने गाली देते हुए राजू से गाड़ी रोकने की वजह पूछी।

“राजू, पागल हो गया है क्या? गाड़ी क्यों रोक दी?विवेक ने झल्लाते हुए कहा पर राजू कुछ नहीं बोला।

“अरे बोलता क्यों नहीं, भाँग खाए है क्या?केतन चिढकर बोला। राजू अभी भी सामने देख रहा था। उसकी शक्ल बता रही थी की वह बहुत डरा हुआ था।

मैंने खुद को शांत रखकर राजू के कंधे पर हाथ रखा और पूछा “राजू, तुम डरो मत हम सब तुम्हें कुछ नहीं होने देंगे”। उसकी नज़रें अभी भी सामने ही घूर रही थी।

आखिरकार १५ मिनट बाद राजू सामने बोला “वो आ गई है, वो वापस आ गई है |

आखिरकार १५ मिनट बाद राजू सामन देखकर बोला “वो आ गई है, वो वापस आ गई है”। “कौन आ गई है?केतन ने बेचैन होते हुए पूछा लेकिन राजू ड्रायवर कुछ बोलने से पहले ही बेहोश हो गया।”

अब समस्या बड़ी विकट हो गई, राजू हमारा ड्रायवर ही नहीं बल्कि गाइड भी था। वह यहाँ के चप्पे-चप्पे से वाकिफ़ था और हम इस इलाके से अनजान थे। विवेक और केतन ड्रायवर को होश में लानें की कोशिश करने लगे, पंकज तो पहले ही डरपोक किस्म का था और इस दुर्घटना ने उसके हाँथ-पैर फुला दिये। जनाब के मुँह से लगातार हनुमान चालीसा का पाठ निकल रहा था।

वो वापस आ गई है’ ‘ये शब्द मेरी खोपड़ी में धाड़-धाड़ कर गूंज रहे थे। कौन आ गई है जिससे राजू इतना डरा हुआ था? बहरहाल यहाँ अधिक देर तक रुकना मुनासिब ना था इसलिए ड्रायवर को गाड़ी के पीछे लेटाया गया। विवेक ने स्टियरिंग संभाल लिया और जैसे ही गाड़ी स्टार्ट करने को हुआ, ” धाँ.. य!सन्नाटे को चीरती हुई एक जोरदार आवाज ने हमारा ध्यान खींच लिया।

ये बंदूक की आवाज थी और लुटेरों के ख़तरे को भाँपकर केतन बोला “जल्दी कर विवेक, शायद लुटेरें आस-पास ही हों”। “मैं जानता हूँ पर ये गाड़ी स्टार्ट नहीं हो रही है, धक्का लगाना पड़ेगाविवेक झुँझलाकर बोला।

“मैं गाड़ी से बाहर नहीं जाउगा, तुम लोग ही धक्का लगाओपंकज घबराते हुए बोला। मैंने कहा “ठीक है मैं धक्का लगाता हुँ, विवेक मेरी मदद करो”। विवेक ने केतन को रिवाल्वर देते हुए कहा “चारों कर नज़र रख़ना और ख़तरा दिखे तो गोली चलानें में हिचकना मत”।

केतन रिवाल्वर संभाल कर खड़ा हो गया, अबतक नितीश जो पीकर टल्ली था वो भी उठ गया था और उसने स्टियरिंग संभाल लिया। गाड़ी स्टार्ट होते ही सबने राहत की साँस ली और थोड़ी देर में ही हमारी गाड़ी हाईवे पर दौड़ रही थी। विवेक और नितीश के चुटकुलों ने माहौल को हल्का कर दिया, ख़तरा शायद टल गया था या शायद नहीं।

बैठे-बैठे कब मेरी आँख लग गई पता ही नहीं चला। सपनें*में के वही शब्द गूँज़ रहे थे और मेरा वही सवाल “कौन वापस आ गई है?”। ड्रायवर मेरे सामने अभीभी बेहोश था, मैंने घड़ी देखी रात के सवा तीन बज़े थे। नितीश जो गाड़ी चला रहा था उसे छोड़कर सब से रहे थे। मैं खिड़की के बाहर देखने लगा जहाँ सुनसान सड़क पर दूर-दूर तक कोई नहीं था। अंधेरे का साम्राज्य हर जगह फ़ैला हुआ था।

“वो आ गई हैमैंने पलटकर देखा तो ड्रायवर बैठा मुझे देखकर रहा था। “वो वापस आ गई हैड्रायवर फिर से बोला और मैं पूछ बैठा “राजू, कौन वापस आ गई है मुझे बताओ”।

“आगे मत जाओ साहब! वापस लौट जाओराजू मुझे एकटक देख रहा था और बोला “वो सबको मार डालेगी, सिर्फ़ आप इन्हें बचा सकते हो”।
“मुझे बताओ तुम किसकी बात कर रहे हो, और मैं इन्हें कैसे बचा सकता हूँमैंने राजू के कंधे पर हाथ रखकर कहा।

“पहले वादा करो साहब, आप इनको कुछ नहीं हो ने दोगेराजू ने मेरी आँखों में आँखे डालते हुए कहा। “मैं वादा करता हुँ, अब बताओ तुम किसकी बात कर रहे होमैंने राजू से कहा।

“वो सबको मार डालेगीराजू सिर झुकाए हुए बोला, मैं राजू को देख रहा था, मेरी छठी इन्द्री ख़तरे का आभास दे रही थी कि वो फिर बोला “नहीं, मैं सबको मार डालूंगी”, अचानक राजू की शक्ल किसी लड़की की तरह लगने लगी तभी वह मेरी तरफ झपटी। मैंने अपनें हाथों से उसे रोका और उसका नाखून मेरी कलाई में लगा और तेज दर्द की सिरहन से मेरी नींद खुल गई।

मेरा पूरा बदन पसीने से लथपथ था, विवेक मुझे उठाने की कोशिश कर रहा था। तभी दर्द ने मेरा ध्यान मेरी कलाई पर खींचा जहा नाखून का गहरा घाव था।
“ये घाव कैसे लगा? एकदम ताजा हैविवेक ने पूछा। “पता नहीं, मुझे क्या हुआ थामैंने पूछा।

“तुम सो रहे थे तभी कुछ तुम्हारे पास दिखाकेतन मेरी तरफ देखते हुए बोला। “क्या देखा तुमने?मैं बेचैन होकर बोला। “पता नहीं, कुछ साफ़ नहीं दिखा पर किसी का साया था शायदविवेक थोड़ा झिझका फ़िर बोला “किसी लड़की का साया था”।

“ड्रायवर के अंदर से एक साया निकलकर तुम पर झपटा थापंकज थोड़ा रुककर फिर बोला “वो कुछ बोल भी रहा था”। मेरी आँखों की पुतलियाँ सिकुड़ने लगीं, “मैं सबको मार डालूंगी”, सब आश्चर्य से मेरी तरफ देखने लगे।

“हाँ, यही कहा था उसनें, पर तुम्हें कैसे पता चला यह?केतन बीच में बोल उठा। मैंने सबको एक नज़र रेखा और सपनें का सारा हाल कह सुनाया। सबकी आँखे विस्मय से फ़ैल गईं। “हो सकता है वो हम सबका वहम होविवेक ने माहौल को भाँपते हुए कहा, मैंने हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा “जरूर यह एक सपना ही था और सपनें कभी सच नहीं .धा!!ड़!!

मेरे शब्द पूरे होने से पहले ही कुछ भारी चीज गाड़ी से टकराई और हमारी गाड़ी का संतुलन बिगड़ गया। गाड़ी के ब्रेक की आवाज सन्नाटे को चीरती हुई गई और गाड़ी हिचकोले खाती हुई हाईवे से नीचे उतरकर रुक गई।

गनीमत ये थी की गाड़ी नहीं पलटी वरना ८० किलोमीटर की रफ़्तार पर तो हमारे चिथड़े उड़ जाते।

“नितीश!! .. हरामखोर! हमारी जान लेगा क्या?केतन बौखलाते हुए बोला। “मेरी गलती नहीं है, गाड़ी से कुछ टकराया हैनितीश घबराते हुए बोला।

“क्या टकराया बे!विवेक गुस्से से पागल हो रहा था, उसे कंधे पर हल्का चोट भी लगी था। “पता नहीं पर शायद कोई आदमी थाबौखलाहट ने नितीश बोला। “हे भगवान! किस को उड़ा दिया तूने?पंकज बोल पड़ा। दोस्तों आप यह रहस्यमयी कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

“तुमने देखा कौन था वह?मैं पूछ बैठा और नितीश के जवाब ने हम सबके दिल में सिहरन पैदा कर दी। नितीश ने हम सबको देखा और बोला “जो गाड़ी से टकराया वो गाड़ी का ड्रायवर राजू था”
“दिमाग खराब हो गया है क्या?केतन खिसिआकर बोला, “ड्रायवर तो यहाँ!!!ड्रायवर!! ड्रायवर कहाँ गया??केतन के तो होश उड़ गए।
“क्या मतलब कहाँ गया?, इतनी तेज चलती गाड़ी से तो कोई नहीं निकल सकता फ़िर वो किधर गयाविवेक झल्लाते हुए बोला।*

“पता नहीं पर मैंने उसे ही गाड़ी से टकराते हुए देखा हैनितीश अपनी बात पर द्रढ था फिर बोला “जो भी गाड़ी से टकराया है वो जिन्दा नहीं बचा होगा, चलो निकल लेते हैं”। “नहींमैं बोल उठा “वो हमारे साथ आया था और हम उसे एैसे नहीं छोड़ सकते”।

“क्यों नहीं छोड़ सकते?नितीश ने मेरी तरफ़ देखते हुए कहा। “क्योंकि जो तुम्हारी गाड़ी से टकराया वह ड्रायवर नहीं था, वह तुम्हारा भ्रम था पर ड्रायवर गाड़ी में नहीं है यह हकीकत हैविवेक ने सिगरेट सुलगाते हुए कहा, एक कश लेकर वह फिर बोला “हमें जाकर तसल्ली करनी पड़ेगी”।

बड़ी कशमकश में था मैं, राजू का बेहोश होना, फिर मुझपर हमला करना और अब उसका रहस्यमय ढंग से गाड़ी से टकराना। कुछ तो था जो हमारी समझ से परे था, मैंने घड़ी देखी तो रात के तीन बजकर तीस मिनट हो रहे थे। सुबह तक पहुँचने से पहले हमें इस काली रात को पार करना था। वापस जाकर देखने का फ़ैसला हुआ कि गाड़ी से ड्रायवर टकराया था या कोई और था। लाश से पचास मीटर दूर गाड़ी रोक दी गई, यह तय किया गया कि दो लोग लाश की जाँच करेंगे, केतन गन से हमें कवर करेगा बाकी गाड़ी के अंदर ही रहेंगे।

मैंने टार्च संभाली और विवेक ने रिवाल्वर। ‘हम धीरे-धीरे लाश के पास आने लगे। मेरा दिल धाड़-धाड़ कर धड़क रहा था, मैंने लाश के कंधे को पकड़कर पलटाया और राहत की साँस ली। यह ड्रायवर नहीं बल्कि अधेड़ उम्र का कोई आदमी था। लाश पूरी चिथड़ों में तब्दील हो गई थी। मैंने पहले विवेक की तरफ़ पलटकर सब ठीक है का* इशारा किया फ़िर उसने केतन को फ़ोनकर सब बता दिया। तभी किसकी के कराहनें की आवाज़ ने मेरा ध्यान खींचा, विवेक सड़क के किनारे गया और मुझे इशारा किया। मैंने टार्च की रोशनी वहाँ डाली, कराहनें की आवाज़ अब रोने में बदल गई थी।

वह एक औरत की आवाज़ थी जो घायल थी। जख्मों की वजह से उसका रोना माहौल को और डरावना बना रहा था। उसे देखकर रह-रह कर मुझे सपने वाली लड़की याद आ रही थी।
“हेलो! आप कौन हैं?वो सिर झुकाए लगातार रोए जा रही थी। मैं उसके थोड़ा और करीब गया और बोला “आप घबराइए मत, हम आपकी मदद कर सकते हैं, आप घायल हैं”। कोई जवाब ना पाकर मैं विवेक की तरफ़ पलटा, वो पास आया और बोला “आपको डाक्टर की सख्त जरूरत है, हम आपको हॉस्पिटल पहुँचा सकते हैं”। वो सिर झुकाए हमारी तरफ़ पीठ किये बैठी थी, मैंने उसके कंधे की तरफ़ हाथ बढ़ाया, विवेक का रिवाल्वर ठीक मेरे कंधे से लड़की के सिर का निशाना लिये हुए था। कुछ भी ख़तरा होता ही विवेक लड़की को शूट कर देता।

उसके कंधे को छूते ही वह बेहोश हो गई। हम उसे इस हालत में हम नहीं छोड़ सकते थे अतः हम उसे गाड़ी में ले आए। “ये कौन है? और ड्रायवर कहाँ है?नितीश ने हैरत से पूछा। “पता नहीं पर तुमने जिसे ठोका वह ड्रायवर नहीं बल्कि कोई और आदमी था बेचाराविवेक ने हाँफ़ते हुए कहा। बेहोश चाहने कमसिन लड़की ही क्यों ना हो पर बेहोश होने पर काफ़ी भारी हो जाती है। ये बेशरम अपहरणकर्ता पता नहीं कौन सा बोर्नवीटा पीकर आते हैं कि पल में लड़कियों को उठा ले जाते हैं और हम दोनों से तो एक भी नहीं उठाई जा रही थी वो भी मदद करने के लिये।

“और ड्रायवर? पंकज मुझे देखते हुए बोला। मैंने सबकी तरफ़ एक नज़र डाली और बोला “ड्रायवर का पता नहीं, पर वह मरा नहीं है, हम उसे बाद में ढूँढेंगे”। गाड़ी स्टार्ट होते ही हवा से बाते करने लगी। सब थके थे इसलिए तुरंत सो गए। अब मेरा ध्यान बेहोश लड़की पर गया। २३-२४ लाल की उमर, गोरा रंग, चौड़े नितम्ब, पतली कमर पर लाल रंग का घाघरा और उसके मिलते-जुलते रंग की चोली थोड़ी तंग थी शायद उसके नाप की नहीं थी। लड़की किसी पास के गाँव की होगी शायद। बेहोश होने की वजह से उसके कपड़े अस्त-व्यस्त थे जिससे केतन का ध्यान कहीं और ही जा रहा था। मैने एक कंबल लेकर उसे ढक दिया ताकी बच्चे बिगड़ ना जाएँ।

मैंने घड़ी देखी तो लगा वक्त जैसे मंद पड़ गया हो, तीन बजकर चालीस मिनट हुए थे। सिर्फ़ दस मिनट में हमने घायल लड़की को गाड़ी में लिटाकर मरहमपट्टी की थी और सफ़र शुरू।

अचानक हलचल महसूस हुई, लड़की होश में आ रही थी। खुद को गाड़ी में अनजान लोगों के साथ पाकर वो थोड़ा घबराई लेकिन मैंने तुरंत उसे गाड़ी में लाने की वजह बताई जिससे वो थोड़ा झेप गई। बड़ी-बडी झील सी आँखों मे घबराहट भी किसी सम्मोहन से कम नहीं थी।

“क्या नाम है तुम्हारा?मैंने पूछा, “जी गौरी!संयत होते हुए उसने जवाब दिया। “क्या हुआ था?मैंने दूसरा सवाल दागा, “वो मुझे मारना चाहते थेवह घबराते हुए बोली। “कौन थे वो लोगमेरे सवाल जारी थे जिससे वह रोने लगी।

“मुझे पूरी बात बताओमैंने सीधा सवाल किया और वो टेपरिकार्डर की तरह चालू हो गई —

“मैं पास ही के गाँव में रहती हूँ, मेरे पिता वहाँ मंदिर के पुजारी हैं। कुछ दिनों पहले दो आदमीं बापू के पास आए, उनमें से एक मुझे घूर-घूर के देख रहा था। पता नहीं बापू और उनमें क्या बातें हुई कि तब से बापू दिन-रात मेरी तरफ़ देखकर रोते रहते थे। एक रात अचानक बापू मुझे रात में उठाकर बोले “”भाग जा बेटी! वो वापस आ रही है, वो हम सबको मार डालेगी””।

“”कौन मार डालेगी बापू!”मैंने डरकर पूछा पर बापू बोले “”अब समय नहीं है बेटी, उसनें उन दोनों को भेजा है तुझे लाने के लिये””, “”मुझे क्यों बापू?”मैंने पूछा पर बापू अचानक नीचे गिर पड़े, उनके चेहरे से दर्द साफ़ झलक रहा था। “”उत्तर! उत्तर दिशा में जाओ उस सुनसान हाईवे की तरफ़! वहाँ कोई ना कोई तेरी मदद करेगा”वो रोते हुए बोले।

मैं डरकर वहाँ से भाग आई पर बापू को कैसे इस हालत में छोड़ देती इसलिए थोड़ी देर बाद मैं वापस गई तो डर के मारे मेरी चीख गले में अटक गई। बापू की लाश छत से लटकी हुई थी, दोनों हाथों की अंगुलियाँ कटी हुई थी और पैर एड़ियों से कटे थे। खून हाथों से नीचे टपक रहा था। मैंने चीखने के लिये मुँह खोला लेकिन किसी के तगड़े हाथों ने मेरा मुँह कसकर ढक दिया। मेरी साँस रुकने लगी और मैं जल बिना मछली की तरह तड़प रही थी। इसी छटपटाहट में मेरे हाथ कोई भारी चीज आ गई और मैंने पूरी ताकत से उस पर दो मारी।

मैं वहाँ से भागने लगी की तभी किसी ने मेरे सिर पर कुछ मारा और मैं बेहोश हो गई। जब होश में आई तो आप लोगों को देखा।”–

“लेकिन तुम्हारे हिसाब से तुम्हे हाईवे पर होना ही नहीं चाहिये था, हाईवे तक ‘तुम कैसे पहुँची?केतन बोला। उसे लड़की की कहानी पर भरोसा नहीं था, सच पूछो तो मुझे भी विश्वास नहीं था।

“तुम्हें ये चोट कैसे लगी?मैंने उसके पैर की चोट की तरफ़ इशारा किया। “पता नहींवह बोली। “झूठ! हमने जब तुम्हें देखा तब तुम होश में थी और वो रही थी दर्द की वजह सेविवेक ने आँखे तरेरकर कहा। “मुझे कुछ नहीं पता मैं यहाँ कैसे आई और ये चोट मुझे कैसे लगीवह रोते हुए बोली।

“तब तो हमें तुमको गाड़ी से उतारना होगा अभीविवेक ने सख्त लहजे में रहा, “नहीं एेसा मत करना, वो मुझे मार डालेंगेवो विनती करने लगी, “क्यों नहीं! हो सकता है तुम भी लुटेरों की साथी हो और हमें किसी जाल में फँसा रही होविवेक का शक जायज था।

उसने मेरी तरफ़ देखा और बोली “मेरा यकीन कीज़िए, मैं ने जो रहा वह सच है और अगर मैं लुटेरों का साथ दे रही होती तो किसी मुख्य हाईवे पर होता, ना कि इस अभिशप्त हाईवे पर जहँ पिछले ४० सालों से कोई नहीं आता”। हम सबके दिमाग में जैसे धमाका हुआ। “क्या कहा तुमने? अभिशप्त! ये दिल्ली-नोएड़ा हाईवे है, भारत का सबसे व्यस्त हाईवेनितीश ने अपनी चुप्पी तोड़ी।

“क्यों मजाक करते हैं साहब, यह अभिशप्त हाईवे है हमारी गाँव में इसे मौत का हाईवे कहते हैंलड़की की बात ने हमें उलझा दिया। मैंने नितीश को गाड़ी का जीपीएस चेक करने को कहा ताकी लड़की के झूठ को सामने ला सकुँ। जीपीएस सिग्नल नहीं मिलने की वजह से हमें पता नहीं चल पा रहा था कि हम सही रास्ते पर हैं कि नहीं।

“मुझे लगता है यह लड़की झूठ बोल रही हैनितीश बोले “या शायद नहीं,सबकी नज़रें विवेक पर टिकी थी तभी उसने फ़ोन पर गूगल सर्च पर कुछ दिखया और बात पूरी की “एक हाईवे है जो १९७० तक ठीक-ठाक चल रहा था कि तभी एक दुर्घटना हुई, पाँच लोग रहस्यमयी ढंग से गायब हो गए सिवाए एक बूढे की लाश के जो शायद उनकी गाड़ी के नीचे आ गया था।”

“इसका हमसे क्या संबंध?पंकज मुझे देखते हुए बोला। “क्योंकिमैंने विवेक का फ़ोन देखते हुए कहा “क्योंकि जो लोग गायब हुए वो पाँच थे, उनकी गाड़ी का रंग लाल था और जानते हो उनकी गाड़ी का नंबर क्या था?”

सबकी नज़रें मुझपर टिकी थी, मैंने फ़ोन विवेक को वापस दिया और कहा “गाड़ी का नंबर था HA 1X XXXX। “येये तो हमारी गाड़ी का नंबर हैपंकज की हवाइयाँ उड़ रही थी।
“ये क्या बक रहे हो, ये कैसे हो सकता है?नितीश गाडी से उतारते हुए बोला। “क्या हम अतीत में पहुँच गए हैं? केतन ने सवाल किया। “मुझे नहीं लगता!मैं बीच में ही बोल उठा, सब मेरी तरफ देखने लगे. मैंने दूसरी सिगरेट सुलगा ली और एक कश लगाने के बाद बोला “अगर हम अतीत में होते तो हमारे फ़ोन पर इन्टरनेट नहीं चलता पर ऐसा नहीं है”। मैं किसी गहरी सोच में था तभी मैंने विवेक से फ़ोन लिया और कुछ सर्च करने के बाद बोला “दरअसल ये नंबर प्रीमियम है इसलिए ये नंबर कई बार बेचा गया है”।

“विवेक, ये गाडी कितनी पुरानी है?मैंने विवेक की तरफ देखा और वो मेरा मतलब समझ कर बोला मैंने ये गाडी दो हफ्ते पहले ही खरीदी है”। गाडी का नंबर भी मुझे मेरे कार एजेंट ने दिलवाया था। “और जितने भी लोग इस हाईवे पर गायब हुए हैं उन सबकी गाडी का नंबर HA 1X XXXX था”

छोटी सी उस इनफार्मेशन ने हम सबको हिलाकर रख दिया, गाडी का सिर्फ नंबर ही नहीं बल्कि हमारे नाम तक मिलते थे, ये एक इत्तेफाक नहीं हो सकता। थोड़ी ही देर में विवेक ने इतिहास में घटी उस दुर्घटना की पूरी कहानी गूगल से सर्च कर ली। रात के तीन बजकर पचास मिनट हो रहे थे और अगले कुछ ही पलों में पता चला की उस रात उन पांच दोस्तों के साथ क्या हुआ था।

४० साल पहले ठीक इसी जगह पर कुछ भयानक हुआ जिसने इस हाईवे को मौत का हाईवे बना दिया जो कि इस प्रकार है –

२७ जनवरी की वो शाम थी जब पांच दोस्त अपने किसी दोस्त की शादी में शामिल होने के लिए फतेहपुर से नॉएडा जा रहे थे। गाडी में शराब का दौर चल रहा था और बातों की महफ़िल जवान थी। दोस्तों आप यह रहस्यमयी कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | मौसम खुशनुमा था और रात अपने अंचल से सितारों के मोती बिखेर रही थी। गाडी नोयडा हाईवे पर ९० किलोमीटर की रफ़्तार से जा रही थी की तभी उनकी गाडी से एक बूढ़ा टकरा गया। थोड़ी बहस के बाद सभी दोस्त वापस गए तो बूढ़ा मर चूका था, तभी एक लड़की उन्हें घायल मिली जो सड़क के किनारे रो रही थी. वो बुढा उसी लड़की का बाप था, लड़की ने बताया की कुछ लोग उसे मारना चाहते हैं और उन लोगो ने उसके बाप को भी मार दिया था। उस भोली सी लड़की ने मदद मांगी ताकि ये लोग उसे उन थीं हत्यारो से बचा सकें। लाख मिन्नतों के बावजूद इन लोगो ने लड़की की मदद नहीं की और उनकी आँखों के सामने वो तीन हत्यारें उस कमसिन लड़की को उठा कर ले गए। उन दरिंदों ने लड़की को बेरहमी से मार डाला।

इस घटना के बाद से इस हाईवे से जो भी गया वो कभी लौटकर नहीं आया और रहस्यमयी ढंग से गायब हो गया।

उस लड़की का नाम था ‘गौरी’।

हम सब गाड़ी से बाहर थे, सिर्फ़ गौरी गाड़ी के अंदर बैठी थी। वो बेचारी सोच रही होगी की हम उसकी मदद करेंगे या नहीं। किसने सोचा था कि एक हाईवे पर हम एेसी अजीब और शायद खतरनाक परिस्थिति में पड़ जाएंगे। पहली बार मुझे यह सवाल सताने लगा कि क्या हम वापस घर जा पाएंगेजिंदा। आसमान में चाँद भी शायद हमारी दुविधा समझकर टकटकी लगाकर हमें देख रहा था। बीच-बीच में अपनी मुँह बादलों में छुपा लेता था

“इसका मतलब वो लड़की..”, “नहीं, यह महज एक इत्तेफाक भी हो सकता हैमैं पंकज की बात बीच में ही काटते हुए बोला। “क्या इत्तेफाक? वह लड़की जरूर भूत हैपंकज बेचैन था और शायद हम सब भी।

“तब क्या अगर यह लड़की सच में किसी मुसीबत में हो?विवेक ने चुप्पी तोडी। “और अगर यह लड़की भूत हुई तो हम सब भी उन पाँच दोस्तों की तरह मारे जाएँगेंपंकज के तर्क में दम था, अगर यह लड़की सच में आत्मा है तो हम सबकी जान खतरे में थी।

“मैं कहता हुँ इस लड़की को नहीं छोड़कर निकलते हैं, हम एक लड़की के लिये अपनी जान खतरे में क्यों डालेंगे?नितीश की बात सही थी पर पता नहीं जा में क्यों मेरी अंतरआत्मा इस बात की गवाही नहीं दे रही थी। हम एेसे दो राहे पर खड़े थे कि एक गलत फ़ैसला और हम सब भी अतीत का एक हिस्सा बन जाते और ना जाने मौत का यह सिलसिला ना जाने कितने लोगों की जिन्दगी से लेगा। मैं बहुत बहादुर तो नहीं हुँ पर पता नहीं कहाँ मेरे अंतर्मन में इस सिलसिले को खत्म करने की इच्छा प्रबल हो रही थी।

एक बड़े फ़ैसले की घड़ी नजदीक आ रही थी। एक एैसा फैसला जो शायद इस अभिशाप को मिटा सकता था।

“लड़की को साथ से जाने में ख़तरा है लेकिन अगर हमारा शक गलत निकला तो यह लड़की बेमौत मारी जाएगी और इस के जिम्मेदार हम होंगेमेरी बात सुन विवेक बोला “लगता है तुम्हारे पास कोई प्लान है”।

“हाँ, मैं इस लड़की की मदद के लिये यहाँ रहूँगा और तुम लोग आगे सुरक्छित आगे निकल जाओ”, “तुम होश में तो हो? ये क्या बक रहे हो!नितीश बौखलाकर बोला।
मैंने सबको एक नज़र देखा और कहा “मैं जानता हूँ मैं क्या कह रहा हुँ लेकिन इस लड़की की मदद करना भी जरूरी है, अगर यह लड़की आत्मा है तो भी मैं यह ख़तरा लेने को तैयार हुँ, क्या पता शायद यही एक तरीका हो हमारे यहाँ से सही-सलामत निकलनें का और शायद यही अंत हो इस अभिशाप का”।

मेरी बात सुन सब सन्न रह गए, “क्यों?क्यों तुम उस लड़की के लिये अपनी जान खतरे में डालेगी रहे हो?पंकज के इस सवाल का जवाब नहीं था मेरे पास।

“नहीं! हम तुम्हें छोड़कर नहीं जाएँगें …विवेक ने दृढता से कहा किन्तु मैंने बात काटते हुए कहा “ये बहस का वक्त नहीं है, हम साथ रहेंगे तो सबकी जान को ख़तरा होगा लेकिन मेरी बात मानोगे तो तुम सबकी जान बच सकती है”। “और तुम्हारा क्या होगा? नितीश मेरी तरफ़ ही देख रहा था। “मैं इस लड़की के साथ हाईवे पार करूंगा और कहीं सुरक्छित छोड़कर तुमसे मिलने की कोशिश करूंगापता नहीं मुझे में इतना हिम्मत कैसे आ गई थी और इस हिम्मत के आगे सब हार गए। आखिरकार मैं लड़की के साथ गाड़ी से उतर गया और वो सब चले गये।

सुनसान सड़क पर मैं आगे चल रहा था और वो मेरे पीछे सिर झुकाए चल रही थी। आसमान में चाँद अपनी साँसे रोके हमें देख रहा था जैसे मानों वो भी जानना चाहता हो कि अब आगे क्या होने वाला है। चारों तरफ़ फैली नीरस खामोशी को तोड़ा उसकी आवाज़ ने “आप क्यों नहीं गए? आपके दोस्त सही कह रहे थे, एक अजनबी लड़की के लिये आपको अपनी जान खतरे में नहीं डालनी चाहिये थी”।

दो पल मैं रुका फिर उसकी तरफ़ देखकर मैंने जो कहा वो सुनकर वो अवाक रह गई “मैं नहीं जानता कि तुम कौन हो, मैं यह भी नहीं जानता कि तुम सच भी बोल रही हो या नहीं लेकिन मैं मुसीबत में पड़ी एक लड़की को एैसे छोड़कर नहीं जा सकता”।

“लेकिन क्यों? . मैं आपकी कुछ लगती नहीं हुँ फिर भी आप मेरे लिये आप अपनी जान खतरे में क्यों डालेंगे रहे हैं?. हो सकता है आपके दोस्त सही हों, हो सकता है मेरी वह से आपकी जान चली जाएउसकी आँखों में सवाल के साथ दर्द की झलक साफ दिख रही थी।

“शायद तुम मुझे अच्छी लगने लगी होमैंने माहौल को हल्का करते हुए चुटकी ली और उसके चेहरे की लाली देखने लायक हो गई थी। थोड़ी देर के लिये वह सब भूल कर हँसी फिर संयत होकर वह बोली “आप पूरे पागल हो साहब, आप इस डरावनी जगह पर भी मजाक कर लेते हो”। “करना पड़ता है गौरी ताकी मेरे साथ चलने वाली लड़की इस समय डरे नहीं और मुझे भी डराए नहीं, अब यहाँ से निकलनें पर ध्यान दें?वह हाँ में सिर हिलाकर मेरे पीछे चल दी।

हम कुछ आधा किलोमीटर ही चले थे कि मेरी घड़ी का अलार्म बज उठा। चार बजने में सिर्फ़ पाँच मिनट बाकी थे तभी वो अचानक चलते-चलते रुक गई “साहब”। मैंने पलटकर उसकी तरफ़ देखा तो उसकी आँखों में आँसु थे, इससे पहले कि मैं कुछ बोलता.. वो बोली “साहब, आप बहुत अच्छे हो, आप यहाँ से चले जाइए”।

“क्या हुआ गौरी?मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था, वह अपनें आँसु पोछते हुए बोली “आप यहाँ से चले जाइए, वो मेरे साथ आपको भी मार देंगे”। “कौन हैं ये लोग जो तुम्हारे पीछे पड़े हैं”

इस बार उसने सच कहा – “साहब, वो तीन पूरे हैवान हैं, उन्होने मेरे बापू को मार दिया और मुझे जंगल में उठाकर ले गए। मैं समझी कि ये अब मुझे मार डालेंगे पर मैं जिन्दा थी,..पूरे तीन घंटों बाद मुझे होश आया था और मैं एक ही पत्थर की शिला पर निर्वस्त्र लेटी हुई थी। मुझे सिर से लेकर पाँव तक बाँध रखा था इन लोगों ने,

…उन तीनों की भूखी नज़रें मेरे बदन को जैसे नोच रही थी। तभी उनमें से एक मेरे पास आया, शराब की तेज दर्गंध मेरे नथुनों से टकराई। उसने मुझे छूने के लिये हाथ आगे बढ़ाया और मैंने डरकर आँखें बंद कर ली

आज शायद मेरी इज्जत और मेरी जान दोनों जाने वाली थी, मेरे बापू के सपने मेरे तीनों में शब्द बनकर घूम रहे थे। “मेरी बेटी एकदम देवी है, देखना एकदम देवता जैसा दूल्हा ढूंढुगा तेरे लिये”, उनक़ी देवी इन हैवानों के हाथों लुटने जा रही थी, इससे अच्छा तो मैं मर जाती तो अच्छा होता …
“दूर हटो! किसी महिला कि दमदार आवाज़ से वो तीनों डरकर पीछे हट गए। एक अधेड़ उम्र की महिला थी वो पर चेहरे पर झुर्रियाँ उम्र से भी ज्यादा थी। माथे पर रक्त का तिलक, कानों में हड्डियों से बनी बालियाँ गले में पड़ी नरमुण्डों की माला किसी का भी दिल दहलाने के लिये काफ़ी थी पर मुझे तो वह उस समय देवी लग रही थी। वह धीरे-धीरे मेरे पास आई और मैं इस उम्मीद में कि वो मुझे इन शैतानों से बचाने आई है खुश हो गई पर मैं गलत थी।

दोस्तों कहानी लम्बी है तो हम धीरे धीरे चलेगे असली रहस्य की ओर और आप लोग अपने अपने विचार जरुर लिखे ताकि मुझे ये रहस्यमयी कहानी आगे बढ़ाने में मदत मिले |

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दरवाजे की आवाज और फिर.. | hindisexstories.autocamper-service.ru //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/%e0%a4%a1%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%a8%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%82/darwaje-ki-awaj-aur-fir.html //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/%e0%a4%a1%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%a8%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%82/darwaje-ki-awaj-aur-fir.html#respond Thu, 13 Jul 2017 03:33:44 +0000 //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/?p=9427 तो दोस्तों जैसा की मेने आपसे वादा किया था मै आप लोगो के लिए एक और डरावनी और ख़ौफ़नाक कहानी के साथ लौटा हूँ। कहानी सुनाने से पहले मै आप लोगो का धन्यवाद करना चाहूँगा क्योंकि आप सबसे लोकप्रिय वेबसाइट मस्ताराम.नेट पर अपने कदम रखे है। आपको यहाँ ऐसी अजब गजब , डरावनी और भूतिया कहानियों का खज़ाना मिलेगा। तो चलिए […]

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तो दोस्तों जैसा की मेने आपसे वादा किया था मै आप लोगो के लिए एक और डरावनी और ख़ौफ़नाक कहानी के साथ लौटा हूँ। कहानी सुनाने से पहले मै आप लोगो का धन्यवाद करना चाहूँगा क्योंकि आप सबसे लोकप्रिय वेबसाइट मस्ताराम.नेट पर अपने कदम रखे है। आपको यहाँ ऐसी अजब गजब डरावनी और भूतिया कहानियों का खज़ाना मिलेगा। तो चलिए कहानी की और बढ़े।

दोस्तों सच कड़वे होते है यह तो आपने सुना ही होगा पर कुछ सच ख़ौफनाक भी होते है । इसी ख़ौफनाक सच को हमारे सामने वैभव जी प्रस्तुत करने जा रहे है। वैभव एक इन्शुरन्स कंपनी में काम करते है। उनकी कंपनी उनको एक जगह से दूसरे जगह क्लाइंट से मिलने के लिए भेजती रहती है जिसके कारण वो अपना घर एक ठिकाने पर नहीं रख सकते थे| इस बार उन को नेपाल के छोटे से पहाड़ी इलाके में जाना था करीब 1महीनो के लिए इसलिए इस बार उन्होंने अपनी पत्नी को भी साथ ले लिया।

परिवार में सिर्फ वो और उनकी पत्नी ही रहती थी। विनय और उसकी पत्नी दोनों नेपाल के लिए निकल पड़े वैसे भी ठण्ड का मौसम था और नेपाल में ऊपर से बहुत तेज़ बर्फ पड़ रही थी। आप यह कहानी मस्ताराम.नेट पर पढ़ रहे है |  वो लोग अपने घर पहुँच चुके थे। अपने घर तक पहुँचने के लिए उनको बहुत संघर्ष करना पड़ा क्योंकि घर छोटे से गाँव में एक पहाड़ी इलाके में था। जिसकी वजह से दोनों बहुत थक चुके थे।

रात के 12:30 बज चुके थे। जहाँ वो रह रहे थे वहाँ दूसरे घर एक दुसरो से बहुत दूर दूर थे। बाहर ज़ोरो से ठंडी हवा और बर्फ गिर रही थी। दोनों अपने रजाई में दुबक कर आराम ही कर रहे थे की अचानक उनको लगा की किसी ने उनके घर का दरवाज़ा खटखटाया है। फिर उन्होंने सोचा की क्या पता तेज़ हवा चलने की वजह से ऐसा जो रहा हो इसी लिए उन्होंने उसको अंदेखा कर दिया। अगली सुबह विनय जिस काम के लिए आया था उसके लिए वो निकल पड़ा उसकी पत्नी घर में अकेले ही थी।

विनय की पत्नी घर में अकेले ही थी उसको समझ नहीं आ रहा था कि वो घर में बैठे वक़्त कैसे बिताए उसने सोचा की चलो क्यों न बाहर जा कर ही कुछ देख लिया जाए। बाहर ठण्ड तो थी पर हवा नहीं चल रही थी। आप यह कहानी मस्ताराम.नेट पर पढ़ रहे है |  इसी लिए उसने अपना स्वेटर पहना और बाहर निकलने को तैयार हो गयी जैसे ही उसने अपना घर का गेट खोला वैसे ही देखती है कि घर के पास बने एक खम्बे के पीछे एक छोटा सा बच्चा खड़ा है। जो उसको चुपके चुपके देख रहा है।
विनय की पत्नी ने उसको अपनी और बुलाया पर वो नहीं आया और वो वहाँ से भाग गया। अगले दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ वो लड़का उसको फिर से घूरे देखा जा रहा था इस बार उसकी पत्नी ने उस बच्चे को पकड़ लिया और पूछा की तुम यहाँ क्या कर रहे हो।

उस बच्चे ने कुछ नहीं बोला और न ही कुछ बताया। विनय की पत्नी ने उससे उसके घर के बारे में पूछा तब भी वो कुछ नहीं बोल रहा था। आखिर में उसका नाम पूछने पर उसने अपने धीमी सी आवाज़ में अपना नाम सूर्य बताया और फिर वहाँ से भाग गया। उसको उसका व्यवहार कुछ समझ नहीं आया। ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहा वो बच्चा रोज़ उसको खम्बे के पीछे से निहारता रहता था।

विनय और उसकी पत्नी को अपने नए घर 5-6 निकल चुके थे। उस दिन sunday की रात थी दोनों घर में अँगीठी के सामने आग ताप रहे थे क्योंकि बाहर की हालत बहुत ख़राब थी इतनी ख़राब की कोई थोड़ी देर के लिए बाहर निकल जाए तो उसकी जान चली जाए।
अचानक दरवाज़ा किसी ने खटखटाया उन दोनों को फिर से लगा की शायद हवा की वजह से ऐसा हो रहा हो। तभी फिर से किसी ने दरवाजा खटखटाया। इस बार खटखटाने की आवाज़ साफ़ आरही थी।

ये आवाज़ सुन कर दोनों डर गए क्योंकि इतनी रात को वो भी जान ले लेने वाली ठण्ड में आखिर कोन हो सकता है। दोनों केवल एक दूसरे का मुह देख रहे थे। अचानक दरवाज़े के बाहर से धीरे धीरे रोने की आवाज़ आने लगी। तभी विनय ने जोर से आवाज़ में बोला “कौन है बहार”
कुछ देर तक आवाज़ तो नहीं आई पर बाद में एक धीमी सी आवाज़ आई “दरवाज़ा खोलो”….. “कृपया करके दरवाज़ा खोलो, बहुत ठण्ड है।”
ये आवाज़ किसी छोटे से बच्चे की थी। आप यह कहानी मस्ताराम.नेट पर पढ़ रहे है |  तभी विनय की पत्नी को ये आवाज़ जानी पहचानी लगी उसने कहाँ कि ये तो वही बच्चे की आवाज़ लगती है जो रोज़ घर के बाहर खड़ा रहता था। विनय की पत्नी ने कहा कि हमें उसे अंदर लाना चाहिये। वो भागते हुए अभी दरवाज़े के पास जा ही रही थी की अचानक उनके घर के फ़ोन की घंटी बाजी। फोन एक पड़ोस में रहने वाली औरत का था जिससे आज ही विनय की पत्नी मिल कर आई थी।
विनय की पत्नी ने फ़ोन उठाया। वहाँ से उस औरत की आवाज़ आई “हेल्लो, जी मै आपको बताना भूल गई थी की अगर आपके घर के बाहर अगर कोई भी दरवाज़ा खटखटाए तो उसको मत खोलना।”

विनय की पत्नी ने कहा की “अभी मेरे घर जे बाहर एक बच्चे की आवाज़ आरही है जो दरवाज़ा खोलने को कह रहा है”

तभी उस औरत ने कहा कि ” नहीं आप बिलकुल मत खोलना, वो असल में एक आत्मा है। यहाँ जब जब तेज़ आंधी और ठण्ड पड़ती है वो तब तब सबके घर के बहार जाता है और दरवाज़ा खोलने को कहता है। वो ठण्ड का बहाना बनाता है और दरवाज़ा खुलवाने की कोशिश करता है । अगर कोई गलती से भी दरवाज़ा खोल देता है तो वो अगले दिन बर्फ में दबा हुआ मिलता है।”
ये सुनते ही जैसे उनके पैरों से ज़मीन ही खिसक गयी। वो सोचने लगी की जो बाहर दरवाज़ा खटखटा रहा है वो असल में एक आत्मा है।

उन्होंने ने दरवाज़ा नहीं खोला अगले दिन ही वो दोनों भाग कर पडोसी के पास गए और पूरे मामले के बारे में पूछा। उस औरत ने बताया कि इस गाँव में एक परिवार रहता था पहाड़ टूटने की वजह से उस परिवार का विनाश हो गया बस एक बच्चा बच गया। वो दुसरो के घर जा जा कर खाना मांगता। एक दिन बहुत ज़ोरो से बर्फ की आंधी पड़ रही थी। आप यह कहानी मस्ताराम.नेट पर पढ़ रहे है |  वो दुसरो के घर के बाहर दरवाज़ा खटखटा कर घर के अंदर आने को गुहार लगा रहा था। पर किसी ने भी उसकी गुहार नहीं सुनी ठण्ड की वजह से सब अपने घरों में दुबके हुए थे। कल सुबह होने पर उस बच्चे की लाश बर्फ में अकड़ी हुई मिली।

आज भी कभी भी ज़ोरो से बर्फ की आंधी आती है तो उसकी आत्मा सबके घर के पास आती है और गुहार लगाती है। ये सब सुन कर दोनों हैरान रह गए।

लेकिन वो वहाँ 1 महीने जब तक रहे तब तक 3-4 बार उनके साथ ऐसा ही हुआ। लेकिन विनय का काम खत्म हो जाने पर वो वहाँ से चले गए।
पर विनय की पत्नी में दिमाग में एक रहस्य हमेशा बना रहा की उस घटना के बाद जो बच्चा उसे रोज़ घर के बाहर दिखता था वो कभी नहीं दिखा।
ये घटना विनय और उसकी पत्नी के लिए एक ऐसा ख़ौफनाक सच था जिसे उन्हें अपनाना ही पड़ा। और भी मजेदार भुत प्रेतों की कहानियां हो या चुदाई की कहानियां सभी एक ही जगह मिलेगी मस्ताराम.नेट दोस्तों आप भी पढ़े अपने दोस्तों से भी शेयर करें 

धन्यवाद।

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अनजाने में हुयी गलती का बदला | hindisexstories.autocamper-service.ru //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/%e0%a4%a1%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%a8%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%82/anjane-me-huyi-galti-ka-badla.html //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/%e0%a4%a1%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%a8%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%82/anjane-me-huyi-galti-ka-badla.html#respond Mon, 10 Jul 2017 03:34:05 +0000 //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/?p=9402 हेल्लो दोस्तों मै हु मस्ताराम.नेट का न्यू घोस्ट राइटर मतलब भुतही कहानियों का लेखक | आज से मै मस्ताराम.नेट पर भुत प्रेत से जुडी कुछ येसी घटनाओ से अवगत करूँगा जो आप विस्वास नहीं करेंगे | अगर आप भुतही कहानियां नहीं पढ़ना चाहते हो तो आप कोई और भी कहानी पढ़ सकते है | तो […]

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हेल्लो दोस्तों मै हु मस्ताराम.नेट का न्यू घोस्ट राइटर मतलब भुतही कहानियों का लेखक | आज से मै मस्ताराम.नेट पर भुत प्रेत से जुडी कुछ येसी घटनाओ से अवगत करूँगा जो आप विस्वास नहीं करेंगे | अगर आप भुतही कहानियां नहीं पढ़ना चाहते हो तो आप कोई और भी कहानी पढ़ सकते है | तो मित्रो येसी ही हुछ बात है कभी कभी कुछ ऐसी घटनाए हो जाती है जिसे भुलाना अच्छा होता है पर किसी करण हमें वो घटनाए वापस याद आ जाती है या कहें जी उन घटनाओं से जान मुच कर फिर मुलाकात करा दिया जाता है जिसका उदहारण आज आप इस कहानी में पढ़ेंगे। bhoot stories in hindi
ये कहानी है 3 दोस्तों की जो कश्मीर की पहाड़ियों में छुट्टियाँ बनाने जा रहे थे। ये उनका पहली बार नहीं था इससे भी पहले वो वहाँ पर एक बार जा चुके थे। तीनो दोस्तों में से एक का नाम सौरव और दूसरे का नाम आकाश और तीसरे बन्दे का नाम यश था। तीनो एक ही कार में बैठ कर कश्मीर की पहाड़ियों की तरफ जा रहे थे। पढाड़ी का रास्ता बहुत घुमावदार और खतरनाक था। थोड़ी सी भी गलती उनको खाई से नीचे गिरा सकती थी। वो लोग अपनी गाड़ी से पहाड़ पर चढ़ ही रहे थे की उनकी गाड़ी ने जवाब देना शुरू कर दिया। तभी उनमे से एक जिसका नाम आकाश था उसने जोर से चिलाय “कुछ भी हो जाए सौरव गाडी यहाँ मत रोकना।

सौरव को भी ये बात पता थी क्योंकि यहाँ पर उनके साथ एक घटना घटी थी जो की आपको आगे कहानी में पता चलेगी।

सौरव ने कैसे भी करके अपनी गाड़ी को उस जगह से 2 km दूर ले गया जहाँ पर उनकी गाड़ी खराब हो गई। आकाश ने कहा कि आज हम बाल बाल बचे नहीं तो अगर गाडी उस जगह खराब होती तो हमारी मौत तय थी।

पर समस्या अब यह थी की गाडी को अब ठीक कैसे किया जाए क्योंकि गाडी में से तेल ख़तम हो गया था। और आस पास कोई दूसरी गाडी भी नज़र नहीं आरही थी। तेल लेने के लिए उनको फिर से पहाड़ी के निचे यानी 20 km जाना था। गौरव ने आकाश और यश को कहा कि तुम दोनों गाडी के अंदर ही रहना में नीचे जा कर तेल ले कर आऊँगा। और तुम दोनों कुछ भी हो जाए पर गाडी का दरवाज़ा मत खोलना क्योंकि हमें अभी बहुत खतरा है।

तभी गौरव देखता है कि ऊपर से एक ट्रक नीचे की और जा रही है। गौरव ने उसे झट से रुकवा दिया और नीचे साथ ले जाने के लिए आग्रह किया। ट्रक में एक सरदार और उसकी घूँघट लगाए पत्नी बैठी थी। वो भी उसी ट्रक में जा कर बैठ गया। ट्रक नीचे की और अब जाने लगी। रस्ते में वही जगह आनी थी जिससे गौरव और उसके दोस्त डर रहे थे। जैसे ही वो जगह आया वैसे ही गौरव ने अपनी आँखे बंद करली और उस जगह से पार हो जाने का इंतज़ार किया। जैसे ही ट्रक कुछ आगे निकला। ट्रक में बैठी सरदार की पत्नी ने कुछ ऐसा कहा कि गौरव के पसीने छूट गए। सरदार की पत्नी ने कहा कि ” छोडो न नहीं तो कोई देख लेगा।” आखिर ऐसा क्या था कि ये सुनते ही गौरव डर गया। गौरव झट से चलती ट्रक से कूद गया। उसको बहुत खरोंचे आई । उसके शरीर पर जगह जगह खून बहने लगा । उसको बहुत गंभीर चोट आ गई थी। वो समझ गया था कि जिसका डर था अब वही होने वाला है।

वो वापस अपनी गाड़ी की और ऊपर भगा ये देखें की उसके दोस्त तो ठीक है। वो कैसे भी गिरते पड़ते गाडी तक पहुच गया। वो गाडी की खिड़की को ज़ोर ज़ोर से पीटने लगा। अंदर बैठे दोस्त उसको उसकी खून से लथपथ हालात की वजह से पहचान नहीं पा रहे थे। जब उसने उनको अपना नाम बताया तब जा कर उन्होंने दरवाज़ा खोला। और वो झट से जा कर अंदर बैठ गया और दरवाज़ा बंद कर दिया। और फिर उसने सारी बात अपने दोस्तों को बताई की वो लोग आचुके है।

तभी आकाश गौरव की बात सुन कर यश की तरफ देखने लगता है और वही बात बोलता है जो उस ट्रॅक में उस औरत ने बोला था “छोडो न नहीं तो कोई देख लेगा।” गौरव समझ गया कि ये आकाश और यश नहीं है वो जल्दी जल्दी कार का दरवाज़ा खोलने लगा पर वो खुल नहीं रहा था। अचानक पहाड़ के ऊपर रखा एक बड़ा सा पत्थर उस गाडी पर गिर गया। असल में आकाश और यश गाडी के बाहर खड़े थे और गौरव का इंतज़ार कर रहे थे। उन्होंने गाडी पर पत्थर गिरने की आवाज़ सुनी और झट से गाड़ी की और गए। उन्होंने देखा की गाडी में गौरव था जो अब ज़िंदा नहीं बचा था। वो भी समझ गए की अब उनकी भी जान खतरे में है। आप यह कहानी मस्ताराम.नेट पर पढ़ रहे है | तभी आकाश ने कहा कि हमें जल्दी से जल्दी पहाड़ से उतरना चाहिए और police के पास जाना चाहिए और उनको सारी बात बतानी चाहिए। दोनों बहुत डरे हुए थे। तभी उन्होंने एक बस को आता हुआ देखा और इसको रुकवा कर वो उसमे बैठ गए। बस driver, coducter और 4- 5 लोग और थे। conductor ने उनसे पूछा “कहाँ जाना है” उन्होंने घबराते हुए कहा ” पुलिस…पुलिस sation” और दोनों ने उससे टिकेट लेली। कुछ आगे जाने के बाद बस फिर से रुकी पर इस बार इसमें 2 लोग और चढ़े, दोनों ने कंबल ओढ़ रखी थी जिससे उनका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था। दोनों यश और आकाश के सीट के पीछे ही बैठे। अचानक ऐसा लगा जैसे पीछे बैठे उन दोनों लोगो ने यश और आकाश को गले से पकड़ लिया और उनको जान से मारने की कोशिश करने लगे। उन दोनों का दम घुटा जा रहा था। वो दोनों आवाज़ भी लगा रहे थे। पर पास में बैठे लोग और कंडक्टर ऐसे बैठे थे जैसे वहाँ कुछ हो ही न रहा हो। अब जब आकाश और यश को लगा की अभी उनकी जान निकलने वाली है तभी कंडक्टर ने आवाज़ लगाई “आगया पुलिस स्टेशन” उन्होंने देखा की पीछे तो कोई था ही नहीं। और बस में सब कुछ वैसा का वैसा ही था पर दोनों के गले पर उंगलियों के निशान बने थे।

दोनों भागते हुए बस उतरे और बस अपने रास्ते निकल पड़ी। वो देखते है कि वही दो कंबल ओढ़े लोग बस के पीछे वाली खिड़की से उन्हें ही झाँक रहे है। यश और आकाश भागते हुए पुलिस के पास गए और कहा कि “उन्होंने गौरव को मार दिया, आप जल्दी चलो हमारे साथ।” police ने पुछा “किन्होंने मार दिया और ये गौरव कौन है” आकाश और यश पुलिस वापस पहाड़ी पर ले गए और गौरव की लाश दिखाई और कहा कि ये हमारा दोस्त है और हम यहाँ घूमने आए थे और इसको उन प्रेतों (ghost) ने मारा है। पुलिस समझ गई की ये दोनों पुलिस को बेवकूफ बना रहे है और इन्होंने ही गौरव को मारा होगा और ऐसी बाते बना कर ये दोनों बचना चाहते है। पुलिस दोनों को पुलिस स्टेशन ले गई और पूछताछ करने लगी। पुलिस ने पूछा की तुमने गौरव को क्यों मारा। आकाश रोते हुए बोला सर हम अपने ही दोस्त को क्यों मारेंगे ये सब उन प्रेतों (ghost) ने किया है।

पुलिस घुस्से में पूछती है कौन से प्रेत और कैसे प्रेत मुझको पगार मत बनाओ। तब आकाश डरते हुए उनको एक बात बताता है । वो कहता है कि सर एक और कुछ साल पहले इस पहाड़ी पर आ चुके है। उस वक़्त भी हम तीन ही थे। अभी हम गाडी से जा ही रहे थे की हमने एक चट्टान के पीछे से एक आवाज़ सुनी। आप यह कहानी मस्ताराम.नेट पर पढ़ रहे है |  हम वो देखने के लिए उस चट्टान के पीछे गए हमने देखा की नया शादी शुदा पति पत्नी वहाँ बैठे थे। और पत्नी उसको बार अपना हाथ चढ़ाते हुए कह रही थी की “छोडो न नहीं तो कोई देख लेगा” और दोनों वहीँ बैठ कर एक दूसरे के प्यार में डूब गए। उनको ये भी नहीं पता था कि उनको कोई देख रहा है। और हमने उनका पूरा seen अपने मोबाइल में video में बना लिया । हमने यहीँ पर सबसे बड़ी गलती कर दी थी। हमने घर जा कर उस वीडियो को internet पर डाल दिया जिसके कारण वो वीडियो बहुत फेल गई। ये बात उन पति पत्नी को भी पता चल गई थी उन्होंने शर्म के मारे आत्म- हत्या कर ली। और ये बात हमें न्यूज़ द्वारा पता चली।

ये बोलते हुए आकाश रो पड़ा और कहा कि सर हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई थी । और आज उन्ही की आत्मा हमें मारने के लिए ये सब कर रही है। पुलिस ने कहा कि तुमने तो बहुत बड़ी गलती की ही है और इसकी सजा तुमको जरूर मिलेगी। और दोनों को पुलिस ने पति पत्नी के मौत के ज़ीमेवार घोषित करते हुए उम्र कैद की साजा दे दी। और गौरव को तो पहले ही सजा मिल चुकी थी। और उन दोनों पति पत्नी की आत्मो को भी सही इन्साफ मिल गया।

दोस्तों कभी कभी लोग जाने- अंजाने में भी गलती कर जाते है पर कुछ गलतियां ऐसी भी होती है जिसको न सुधार जाए तो वो हमसे ही बदला जरूर लेती है।

तो इसी तरह और ऐसी डरावनी और भूतिया कहानी के साथ में फिर लौटूँगा तब तक आप हमारी ghost stories पढ़ते रहे।

और दोस्त अगर आपके साथ भी कोई येसी घटना हुयी हो तो आप हमें लिख कर भेजे हम उसे मस्ताराम.नेट पर प्रकाशित करेंगे हमारी ईमेल आई डी है [email protected] 

मित्रो एक बात आपसे और अनुरोध करना चाहूँगा इस कहानी को लेकर अगर आपके मन में कोई विचार हो तो आप मुझे अपने सवाल निचे कमेंट बॉक्स में लिख कर भेजे |

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एक भूत बंगले का भुतहा राज | hindisexstories.autocamper-service.ru //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/%e0%a4%a1%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%a8%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%82/ek-bhoot-bangle-ka-bhutaha-raaj.html //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/%e0%a4%a1%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%a8%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%82/ek-bhoot-bangle-ka-bhutaha-raaj.html#respond Wed, 04 Jan 2017 19:36:57 +0000 //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/?p=7122 दोस्तों यह कहानी एक भूत बंगले की है अगर आपको भूत प्रेतों की कहानियां पढ़ कर डर लगता है तो कृपया इस कहानी को ना ही पढ़े तो बेहतर होगा मेरी एक स्टोरी का नाम एक भूत बंगले का भुतहा राज है अगर आपको मेरी कहानी पसंद आये तो कमेंट जरुर करना | “नह्ह्हीईईईईईईईइ ………………………..”पूरे कमरे […]

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दोस्तों यह कहानी एक भूत बंगले की है अगर आपको भूत प्रेतों की कहानियां पढ़ कर डर लगता है तो कृपया इस कहानी को ना ही पढ़े तो बेहतर होगा मेरी एक स्टोरी का नाम एक भूत बंगले का भुतहा राज है अगर आपको मेरी कहानी पसंद आये तो कमेंट जरुर करना |

“नह्ह्हीईईईईईईईइ ………………………..”पूरे कमरे में उसकी चीख गूँज उठी | “उफ्फ्फ…… फिर वोही सपना, आखिर क्यों आता है मुझे यह डरावना सपना बार बार.”

रात के बारह बज रहे थे. वो बिस्तर से उठा और बेसिन पे लडखडाते कदमो से जा पंहुचा. चेहरे पे ठन्डे पानी के छींटे मार कर उसे कुछ सुकून मिला. वो बाहर अपार्टमेन्ट की बालकोनी में आ गया. सामने का नज़ारा बहुत सुन्दर था.

लन्दन दुनिया के सबसे बड़े शहरो में आता है और ज़ाहिर सी बात है की आधी रात में भी लन्दन में चहल पहल रहती है. लन्दन रात में भी उतना ही व्यस्त रहता है जितना दिन में |

थोड़ी देर वही खड़े रहने के बाद जब उसे ठण्ड लगने लगी तो वो भारी कदमो से वापस अपने बेडरूम में आ गया. रात ज्यादा हो गयी थी, येही सोच कर वो वापस सो गया. यह अजीब सपने उसे बचपन से आते थे, पर अब तो उसे जैसे इसकी आदत हो गयी थी |

टर्र्र्रन्न्न टर्र्र्रन्न्न उसके मोबाइल में अलार्म बज उठा.

“हे शीट! आज पापा ने ऑफिस बुलाया है, अगर में लेट हो गया तो वो मुझे कच्छा चबा जायेंगे.” वो तपाक से बिस्तर से उठा और जल्दी जल्दी अपना सुबह का रूटीन करने लगा. फिर भी निकलते निकलते उसे देरी हो ही गयी |

“माय गोड आज तो पापा के गुस्से का सामना करना ही पड़ेगा.” वो जल्दी से अपना अपार्टमेन्ट लोक करके गेराज से अपनी कार निकलते हुए सोचने लगा. तेज़ रफ़्तार से गाड़ी भगाते हुए उसे जल्दी पापा के ऑफिस पहुचना था.

खैर लेट ही सही वो ऑफिस पहुँच ही गया. अपने पापा के केबिन में पहुच कर वो सामने कुर्सी पर बैठ गया, उसे लगा की आज तो उसे डांट पड़ने वाली है क्यूंकि उसके पापा काम के मामले में बहुत सख्त थे |

“आखिर साहबजादे आ ही गए!!! अरुन तुम्हे तो पता ही है की हमारा बिज़नस कितना घाटे में जा रहा है फिर भी तुम लेट आ रहे हो ऑफिस में.”

“सॉरी पापा….अब से लेट नहीं करूँगा.”
“ह्म्म्म….. मेरे पास तुम्हारे लिए एक काम है.” अरुन के पापा ने गंभीर होके कहा.

“या सॉर पापा बताइए क्या काम है ?”

“असल में तुम्हे इंडिया जाना पड़ेगा.”

“क्यों पापा ऐसा क्या काम आ गया की आप मुझे लन्दन से इंडिया जाने को बोल रहे है.”

“कोई और चोइस नहीं है बेटे, यह लो फाइल इसमें सब डिटेल्स है, पढ़ लो और तैयार हो जाओ इंडिया जाने के लिए, एंड रेमेम्बेर इट्स ओउर लास्ट चांस अगर यह मौका हमारे हाथ से निकल गया तो हमारे बिज़नस को बहुत लोस होगा.” अरुन अपने पापा के हाथो से फाइल लेके केबिन से निकल गया |

“ना जाने ऐसा क्या काम है की डैड मुझे व्यक्तिगत रूप से इंडिया भेज रहे है, पर ज़रूर काफी जरुरी होगा नहीं तो यह काम हमारे इंडिया के अजेंट्स ही कर देते.”

अरुन एक सुन्दर, स्मार्ट और होशियार नौजवान लड़का था, उसकी उम्र यही कोई 24-25 साल होगी, रंग गोरा, हलकी नीली आँखे और बाल भी लम्बे रखे थे उसने, हाईट भी अछि खासी थी, वैसे वो कोई बॉडी बिल्डर तो नहीं था पर जिम जाने से उसकी स्लिम बॉडी परफेक्ट शेप में थी. उसके लूक्स होलीवूड हीरो ब्रेडेली कूपर से कम नहीं थी. बहुत सी लडकिया गयी पर कोई भी उसका दिल नहीं जीत सकी |

उसके पापा मिस्टर. अरविन्द गुप्ता का लन्दन में रियल एस्टेट का बड़ा बिज़नस था. वो कांट्रेक्ट बेसिस पे घरो को बिल्डर्स से लेके पब्लिक को बेचते थे. पर कुछ सालो से उन्हें बिज़नस में बहुत लोस हो रहा था और अब तो हालत यह थी की उनके पास लन्दन में कोई फ्लेट्स बचे ही नहीं थे. यह सब का असली गुनाहगार उनका दामाद यानि अरुन का जीजा अजीत था |

खैर अपने बिज़नस को बचने के लिए अरविन्द ने इंडिया में उसके 20 साल पहले खरीदे हुए बंगले को बेचने की सोची ताकि कुछ प्रोफिट हो सके | अरुन फाइल खोल के बंगले की डिटेल्स पढने लगा |

“हम्म्म्म……..तो यह बंगला जयपुर के जोधपुर शहर के बाहरी इलाके में बना हुआ है, और इसमें लिखा है की आस पास के लोग कहते है की यहाँ भूत प्रेतों का डेरा है…….ह्म्म्म….

अरुन फाइल बंद कर के सोचने लगा,“What the ****…….आज के जमाने में भी लोगो को भूत प्रेत पे विश्वास है, होना हो यह अजीत का ही कोई गन्दा चाल है ताकि लोग डर के मारे हमारा बंगला नहीं खरीदे और हमे बिज़नस में ऐसे ही लोस होता रहे.”

“खैर अब जब डैड ने कह ही दिया है तो इंडिया जाना ही पड़ेगा.”

अगले ही दिन अरुन अपना सामान पैक कर के तैयार हो गया इंडिया जाने के लिए वो सीधा फलाईट से जोधपुर इंटरनेशनल एअरपोर्ट पे उतरा. बाहर निकलते ही उसे सामने उसके डैड की कंपनी का अधिकारी दिखाई पड़ा |
“हेल्लो सर जी … वेलकम टू जोधपुर, में इज मनोहर लाल फरोम पास का गाँव … एंड आई वर्क फॉर यौर फादर.” मनोहर ने देहाती स्टाइल में टूटी फूटी अंग्रेजी बोलनी चाही |

“कोई बात नहीं मनोहर तुम मुझसे हिंदी में बात कर सकते हो.” अरुन मनोहर के बोलने के ढंग पे मुस्कुरा उठा.
“का करे सर हमको तो लगा था की आप बीदेस में रहते है तो बिदेसी भाषा ही बोलत होंगे.” मनोहर ने अरुन का सामान उठा कर कार की डिक्की में रख दिया |

“अरे कोई ज़रूरी थोड़े ही है की जो विदेश में रहे वो इंग्लिश ही बोले.” हँसता हुआ अरुन कार में बैठ गया और अपने मंजिल की तरफ बढ़ चला |

पूरे रास्ते भर मनोहर चपड़ चपड़ बोलता रहा जिसे अरुन एक कान से सुन कर दुसरे कान से निकाल देता था. मनोहर एक हंसमुख मिज़ाज का आदमी था, उसकी उम्र यहीं कोई 35 40 होगी |

जोधपुर में अरुन पहली बार आया था और यहाँ की संस्कृति देख कर उसका मन मोहित हो गया. राजसी ठाठ बाट और राजपूतो का आन बान और शान पूरे शहर में दिखाई दे रहा था. वहां ढेरो सारे विदेशी टूरिस्ट भी दिखाई दे रहे थे
“दिस प्लेस हज गोट ए ग्रेट potiantal इन टूरिस्म……..यदि हम यह बंगला न बेच कर इसे हाई प्रोफाइल होटल के रूप में डेवेलोपे करे तो ज्यादा प्रोफिट हो सकता है.” अरुन सोचने लगा, तभी उसे बंगले के बारे में उडी अफवाए याद आ गयी |

“मनोहर मैं कुछ पूछु तुमसे ?”

“अरे हा हा सर, अब आपकी जिम्मेदारी म्हारी है, जो पूछना है पूछिए.” मनोहर खिल खिलाता हुआ बोला और गाड़ी चलाने लगा |

“मेने इस बंगले के बारे में सुना है की यहाँ भूत प्रेत का वास है.”

“अब कौन जाने सर इस्मा कितना सच है सरजी, पर मन्ने तो कई बार लोगो से यह भूत प्रेत के बारे में सुन रखा है.”

अरुन कुछ ना बोला और गाडी चलती रही जब तक जोधपुर का बाहरी इलाका ना आ गया. लोग कम ही दिखाई दे रहे थे यहाँ और वो भी अपने जयपुरिया लिबास में थे, शायद गाँव वाले थे |

अरुन को सामने एक बहुत बड़ा, पुराने ज़माने का बंगला दिखाई दिया. कार बंगले के सामने जा के रुकी. अरुन कार से उतरा, तो पीछे से कुछ लोगो की भीड़ जाती हुई दिखाई दी | आप यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

“यह कौन लोग है मनोहर ?”

“पता नहीं सरजी, माहरे को नहीं पता, लगता है कौनो के अर्थी जा रही है…”

“अर्थी…?”

तभी उस भीड़ में से एक आदमी निकला और इन दोनों की तरफ आने लगा |

“आप इस बंगले के मालिक है न ?” उसने अरुन से सवाल किया |

“हा मेरे पिताजी ने यह बंगला बहुत पहले खरीदा था.”

अरुन की बात सुनते ही न जाने उस आदमी को क्या हो गया, जिस आँखों में आंसू थे उसमे अंगारे आ गए. उसने अरुन को धक्का देते हुए उसका कॉलर पकड़ लिया |

“थारे वजह से आज म्हारा भाई जिन्दा नहीं है….मन्ने कहे रहो मालिक से की ये बंगला श्रापित है.” उसने अरुन का गला पकड़ लिया |

मनोहर ने जैसे तैसे करके उस आदमी को अलग किया पर जाते जाते उस आदमी ने चीख के अरुन को बोला, “चले जाओ अगर अपनी जान प्यारी हो तो चले जाओ वर्ना मरोगे सब के सब……….थारी जान ले लेगा वो…”
गर्दन छूटते ही अरुन को खांसी आ गयी. उस आदमी ने सच मुच उसका दम ही निकल दिया था |

थोडा सांस लेते हुए उसने मनोहर से पुछा, “ये…यह सब क्या है मनोहर…..कौन था यह आदमी ?”
मनोहर ने अरुन को पानी देते हुए कहा, “सर जी इसका नाम भुवन है, ये और इसका भाई दोनों इस बंगले के चौकीदार थे. यह दोनों कहते थे की इस बंगले में भूत है. दो हफ्ते पहले एक रात को इसका भाई अकेले चौकीदारी कर रहा था, और अगली सुबह उसकी लाश यही जहाँ आप खड़े है वहीँ मिली.”

कहानी जारी है ….. आगे की कहानी पढने के लिए निचे लिखे पेज नंबर पर क्लिक करे …..

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समस्या भूत की या चूत की | hindisexstories.autocamper-service.ru //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/%e0%a4%a1%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%a8%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%82/samasya-bhoot-ki-ya-chut-ki.html //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/%e0%a4%a1%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%a8%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%82/samasya-bhoot-ki-ya-chut-ki.html#respond Tue, 29 Nov 2016 04:28:34 +0000 //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/?p=6423 हैलो दोस्तो, आज मैं आपको एक और भूतहा कहानी सुनाने जा रहा हूँ। कहानी है, डरना मत। मेरा नाम सचिन जैन है, मैं तीस साल का शादीशुदा मर्द हूँ, लखनऊ में रहता हूँ, रेलवे में टी सी हूँ। करीब 6 महीने पहले मेरी बदली भोपाल की हो गई, मैंने ड्यूटी जॉइन की और स्टेशन के […]

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हैलो दोस्तो, आज मैं आपको एक और भूतहा कहानी सुनाने जा रहा हूँ। कहानी है, डरना मत। मेरा नाम सचिन जैन है, मैं तीस साल का शादीशुदा मर्द हूँ, लखनऊ में रहता हूँ, रेलवे में टी सी हूँ।

करीब 6 महीने पहले मेरी बदली भोपाल की हो गई, मैंने ड्यूटी जॉइन की और स्टेशन के पास ही बने क्वाटर लेकर अपना समान वहाँ रख लिया। समान क्या बस रोज़ मर्रा की चीज़ें ही थी, बाकी परिवार को मैं साथ नहीं लाया। हर छुट्टी पर मैं खुद ही घर चला जाता था।

मेरे साथ वाला क्वाटर जो था उसमें मिश्रा जी रहते थे, छोटा सा परिवार था, मियां बीवी और दो बेटियाँ। छोटी बेटी शादीशुदा थी, मगर बड़ी कुमुद कुँवारी थी। कुमुद करीब 26-27 साल की, साँवली मगर बहुत ही भरपूर बदन की लड़की थी, नैन नक़्श साधारण थे, मगर बदन बहुत ही खूबसूरत, गदराया हुआ, जैसे भुने हुये खोये का पेड़ा हो।

सच कहूँ तो उसे देख कर मुँह में पानी आ गया। आते जाते मिश्रा जी से बातचीत होती रहती थी। थोड़े दिनों में घर में भी आना जाना हो गया।

एक दिन रात के डेढ़ दो बजे मिश्रा जी के घर से बहुत ही शोर शराबा सुना जैसे कोई बर्तन फेंक फेंक के मार रहा हो। मैं उठ कर उनके घर गया। आप यह कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | कमाल की बात यह कि इतने शोर के बावजूद और कोई पड़ोसी उनके घर नहीं गया, न ही किसी ने अपने घर की बत्ती ही जलाई।

मैंने जाकर मिश्रा जी के घर का दरवाज़ा खटखटाया, मिश्राजी बाहर आए- अरे सचिन भाई आप?
मैंने कहा- मिश्रा जी आपके घर से बहुत शोर आ रहा था तो मैं देखने चला आया, सब ठीक है न?

उसके बाद मिश्रा जी ने मुझे अपनी दुखभरी कहानी सुनाई कि कैसे उनकी बेटी पर एक प्रेत का साया है और जब प्रेत का असर होता है तो वो कैसे सारे घर को सर पे उठा लेती है। मैंने मन ही मन में सोचा कि मिश्रा जी आपकी बेटी को कोई भूत प्रेत नहीं लगा, उसको तगड़ा लण्ड चाहिए।

आईये आज जानते है स्‍तन और सेक्‍स में क्या सम्बन्ध है

मैं मिश्रा जी के साथ उनके घर के अंदर गया, अंदर घर का काफी समान बिखरा पड़ा था, आगे बेडरूम में उनकी बेटी फर्श पे लेटी पड़ी थी और उसकी माँ उसके पास बैठी थी।

काली स्लेक्स और सफ़ेद कुर्ता पहने, कुर्ता सामने से पूरा ऊपर उठा हुआ था, जिस वजह से उसकी मोटी गुदाज़ टाँगें बहुत खूबसूरत लग रही थी, उसके गोल भरे हुये मम्मे एक बड़ा सा क्लीवेज बना रहे थे।

मुझे देख कर मिश्राईन ने अपनी लड़की के कपड़े ठीक किए, मगर हरामी नज़र सब कुछ ताड़ चुकी थी। मैंने मिश्रा जी के साथ मिल कर लड़की को उठा कर बेड पे लिटाया। मिश्रा जी ने मुझे थैंक यू कहा, मैंने मन में सोचा ‘साले, थैंक यू तो मुझे कहना चाहिए, तेरी बेटी को उठाने के बहाने उसके नर्म जिस्म को छूने को जो मिला |

खैर बेड पर लेटा कर मैं साइड में खड़ा हो गया। मिश्रा जी कोई दवाई लेने चले गए और मिश्राईन चाय बनाने के लिए किचन में चली गई। मेरे पास एक मिनट से कम का समय था, मैंने बिजली की फुर्ती से उस लड़की के दोनों मम्मे पकड़ के दबा दिये सिर्फ दो बार , जब वो नहीं हिली और चित्त लेटी रही तो मैंने बाहर को देखा, उसका कुर्ता ऊपर उठाया और और उसकी स्लेक्स नीचे खींच दी।

क्‍या आपकी पत्‍नी आपसे खुश नहीं रहती ? क्या करे ?

वो थोड़ा सा कसमसाई, मगर मैंने जो देखा वो लाजवाब था। भरी हुई चर्बी वाली मोटी कमर, दो संगमरमरी जांघें, और दोनों जांघों के बीच में एक छोटी सी चूत।

छोटी सी, साँवली सी, शेव की हुई चूत, जैसे पेंसिल से एक बारीक सी लकीर खींच दी हो। मैंने झट से एक चुम्मी उसकी चूत पे ली, उसकी स्लेक्स ऊपर चड़ाई, कुर्ता ठीक किया और ऐसे उस से दूर जा कर खड़ा हो गया, जैसे मुझे तो बहुत ही दुख हो रहा हो, उस बेचारी लड़की की हालत देख कर।

इस सारी कारवाई में मैंने 10 से भी कम सेकंड लिए। थोड़ी देर बाद, मिश्रा जी आ गए दवाई लेकर, फिर मिश्राईन आ गई, चाय और पानी का गिलास ले कर।

मिश्रा जी ने अपनी लड़की को हिला जुला कर उठाया और उसे दवाई खिला दी। लड़की फिर से सो गई या क्या, पता नहीं। चाय पीते पीते हमने कुछ देर बातें की और उसके बाद मैं अपने क्वाटर में आ गया, आकर मैं बेड पे लेट गया, मगर मेरे मन में तो उस साँवली सलोनी का कुँवारा बदन ही घूम रहा था।

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ज़िंदगी में पहली बार सुकून | hindisexstories.autocamper-service.ru //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/koi-mil-gaya/jindagi-me-pahali-bar-sukun.html //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/koi-mil-gaya/jindagi-me-pahali-bar-sukun.html#respond Thu, 14 Apr 2016 16:19:38 +0000 //hindisexstories.autocamper-service.ru/youjizzmobileporn/?p=3211 रास्ता भूल गये हैं क्या साहब आवाज़ सुनकर मैं पलटा वो एक छोटे से कद की लड़की थी, मुश्किल से 5 फुट, रंग सावला और आम सी शकल सूरत. देखने में उसमें कोई भी ख़ास बात नही थी जो एक लड़के को पसंद आए. उसने एक सफेद रंग की सलवार कमीज़ पहेन रखी थी. मुझे अपनी तरफ […]

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रास्ता भूल गये हैं क्या साहब आवाज़ सुनकर मैं पलटा वो एक छोटे से कद की लड़की थी, मुश्किल से 5 फुट, रंग सावला और आम सी शकल सूरत. देखने में उसमें कोई भी ख़ास बात नही थी जो एक लड़के को पसंद आए. उसने एक सफेद रंग की सलवार कमीज़ पहेन रखी थी. मुझे अपनी तरफ ऐसे देखते पाया तो हँस पड़ी. “मैने यहीं रहती हूँ, वो वहाँ पर मेरा घर है” हाथ से उसने पहाड़ के ढलान पर बने एक घर की तरफ इशारा किया “अक्सर शहर से लोग आते हैं और यहाँ रास्ता भूल जाया करते हैं. गेस्ट हाउस जाना है ना आपने?” “हां पर यहाँ सब रास्ते एक जैसे ही लग रहे हैं. समझ ही नही आता के कौन से पहाड़ पर चढ़ु और किस से नीचे उतर जाऊं” मैने भी हँसी में उसका साथ देते हुए कहा. मैं देल्ही से सरकारी काम से आया था. पेशे से मैं एक फोटोग्राफर हूँ और काई दिन से अफवाह सुनने में आ रही थी के यहाँ जंगल में एक 10 फुट का कोब्रा देखा गया है. इतना बड़ा कोब्रा हो सकता है इस बात पर यकीन करना ही ज़रा मुश्किल था पर जब बार बार कई लोगों ने ऐसा कहा तो मॅगज़ीन वालो ने मुझे यहाँ भेज दिया था के मैं आकर पता करूँ और अगर ऐसा साँप है तो उसकी तस्वीरें निकालु. उत्तरकाशी तक मेरी ट्रिप काफ़ी आसान रही. देल्ही से मैं अपनी गाड़ी में आया था जो मैने उत्तरकाशी छ्चोड़ दी थी क्यूंकी वान्हा से उस गाओं तक जहाँ साँप देखा गया था, का रास्ता पैदल था. कोई सड़क नही थी, बस एक ट्रॅक थी जिसपर पैदल ही चलना था. मुझे बताया गया था के वहाँ पर एक सरकारी गेस्ट हाउस भी है क्यूंकी कुछ सरकारी ऑफिसर्स वहाँ अक्सर छुट्टियाँ मनाने आया करते थे.
मैं गाओं पहुँचा तो गाओं के नाम पर बस 10-15 घर ही दिखाई दिए और वो भी इतनी दूर दूर के एक घर से दूसरे घर तक जाने का मातब एक पहाड़ से उतरकर दूसरे पहाड़ पर चढ़ना. ऐसे में मैं गेस्ट हाउस ढूंढता फिर ही रहा था के मुझे वो लड़की मिल गयी. आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | यूँ तो उसमें कोई भी ख़ास बात नही थी पर फिर भी कुछ ऐसा था जो फ़ौरन उसकी तरफ आकर्षित करता था. उसके सफेद रंग के कपड़े गंदे थे, बाल उलझे हुए, और देख कर लगता था के वो शायद कई दिन से नहाई भी नही थी. “आइए मैं आपको गेस्ट हाउस तक छ्चोड़ दूं”
और तब मैने पहली बार उसकी आँखो में देखा. नीले रंग की बेहद खूबसूरत आँखें. ऐसी के इंसान एक पल आँखों में आँखें डालकर देख ले तो बस वहीं खोकर रह जाए. वो मेरे आगे आगे चल पड़ी. शाम ढल रही थी और दूर हिमालय के पहाड़ों पर सूरज की लाली फेल रही थी.  चारों तरफ पहाड़, नीचे वादियों में उतरे बदल, आसमान में हल्की लाली, लगता था कि अगर जन्नत कहीं है तो बस यहीं हैं. “ये है गेस्ट हाउस” कुछ दूर तक उसके पिछे चलने के बाद वो मुझे एक पुराने बड़े से बंगलो तक ले आई.
“थॅंक यू” कहकर मैने अपना पर्स निकाला और उसे कुछ पैसे देने चाहे. वो देखने में ही काफ़ी ग़रीब सी लग रही थी और मुझे लगा के वो शायद कुछ पैसो के लिए मुझे रास्ता दिखा रही थी. आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |  मेरे हाथ में पैसे देख कर उसको शायद बुरा लगा. “मैने ये पैसे के लिए नही किया था” आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | और वो खूबसूरत नीली सी आँखें उदास हो गयी. ऐसा लगा जैसे मेरे चारो तरफ की पूरी क़ायनात उदास हो गयी थी.
“आइ आम सॉरी” मैने फ़ौरन पैसे वापिस अपनी जेब में रखे “मुझे लगा था के…..” “कोई बात नही” उसने मुस्कुरा कर मेरी बात काट दी. मैने गेस्ट हाउस में दाखिल हुआ. मैने अंदर खड़ा देख ही रहा था के वहाँ के बुड्ढ़ा केर टेकर एक कमरे से बाहर निकला.
“मेहरा साहब?” उसने मुझे देख कर सवालिया अंदाज़ में मेरा नाम पुकारा | “जी हान” मैने आगे बढ़कर उससे हाथ मिलाया “आपसे फोन पर बात हुई थी” “जी बिल्कुल” उसने मेरा हाथ गरम जोशी से मिलाया “मैने आपका कमरा तैय्यार कर रखा है”
उसने मेरे हाथ से मेरा बॅग लिया और एक गेस्ट हाउस से बाहर आकर एक गार्डेन की तरफ चल पड़ा. वो लड़की भी हम दोनो के साथ साथ हमारे पिछे चल पड़ी. आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |  “तुमने घर नही जाना” मैने उसको आते देखा तो पुछा उसने इनकार में गर्दन हिला दी.  “मुझसे कुछ कहा साहब” केर्टेकर ने आगे चलते चलते मुझसे पुछा
“नही इनसे बात कर रहा था” मैने लड़की की तरफ इशारा किया | हम तीनो चलते हुए गार्डेन के बीच बने एक कॉटेज तक पहुँचे. मुझे लगा था के एक पुराना सा गेस्ट और एक पुराना सा रूम होगा अपर जो सामने आया वो उम्मीद से कहीं ज़्यादा था. गेस्ट हाउस से अलग बना एक छ्होटा सा कॉटेज जो पहाड़ के एकदम किनारे पर था. दूसरी तरफ एक गहरी वादी और सामने डूबता हुआ सूरज. “कोब्रा मिले या ना मिले” मैं दिल ही दिल में सोचा “पर मैं यहाँ बार बार आता रहूँगा”
“आप आराम करिए साहब” केयरटेकर ने मेरे कॉटेज का दरवाज़ा खोला और समान अंदर रखते हुए कहा “वैसे तो यहाँ हर चीज़ का इंटेज़ाम है, बाकी और कुछ चाहिए हो तो मुझे बताईएएगा” आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |  कहकर उसने हाथ जोड़े और वापिस गेस्ट हाउस की तरफ चला गया. पर वो लड़की वहीं खड़ी रही. आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |  मैं कॉटेज के अंदर आया तो वो भी मेरे साथ साथ ही अंदर आ गयी. आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |  “क्या हुआ?” मैने उसको यूँ अंदर आते देखा तो पुछा जवाब में उसने सिर्फ़ कॉटेज का दरवाज़ा बंद कर दिया और पलटकर मेरी तरफ देखा. इससे पहले की मैं कुछ और समझ पाता, उसने अपने गले से दुपट्टा निकाल कर एक तरफ फेंक दिया. ओहो हो हो ” मैं उसकी इस हरकत पर एकदम घबरा कर पिछे को हट गया “क्या कर रही हो?”
तभी मुझे केर्टेकर की 2 मिनट पहले कही बात याद आई के यूँ तो यहाँ सब इंटेज़ाम है, पर कुछ और चाहिए हो तो मैं उसको बता दूं. “देखो अपना दुपट्टा प्लीज़ उठा लो. मेरी इस तरह की कोई ज़रूरत नही है. अगर तुम पैसो के लिए ये सब कर रही हो तो वो मैं तुम्हें ऐसे ही दे दूँगा” वो मेरे सामने एक सफेद रंग की कमीज़ में बिना दुपट्टे के खड़ी थी. कमीज़ के पिछे से सफेद ब्रा ब्रा की स्ट्रॅप्स नज़र आ रही थी. जैसे ही मैने फिर पैसे की बात की, उसकी वो नीली आँखें फिर से उदास हो चली.
“आपको लगता है ये मैं पैसे के लिए कर रही हूँ? किस तरह की लड़की समझ रहे हैं आप मुझे?”
कहते हुए उसकी आँखों में पानी भर आया. मेरा दिल अचानक ऐसे उदास हुआ जैसे मेरा जाने क्या खो गया हो, दिल किया के छाती पीटकर, दहाड़े मारकर रो पडू, अपने कपड़े फाड़ दूं, इस पहाड़ से कूद कर अपनी जान दे दूं. “नही मेरा वो मतलब नही था” मैने फ़ौरन बात संभालते हुए कहा “मुझे समझ नही आया के तुम ऐसा क्यूँ कर रही हो. मेरा मतल्ब…..” मैं कह ही रहा था के वो धीरे धीरे चलती मेरे नज़दीक आ गयी.  “ष्ह्ह्ह्ह्ह” कहते हुए उसने अपनी अंगुली मेरे होंठों पर रख दी “यूँ कहिए के ये मैं सिर्फ़ इसलिए कर रही हूँ क्यूंकी आप पसंद हैं मुझे” बाहर हल्का हल्का अंधेरा हो चला था. कमरे के अंदर भी कोई लाइट नही थी. उस हल्के अंधेरे में मैने एक नज़र उस पर डाली तो मुझे एहसास हुआ के वो गंदी सी दिखने वाली लड़की असल में कितनी सुंदर थी.  वो दुनिया की सबसे सुंदर लड़की थी. मैने बेधड़क होकर अपने होंठ आगे किए और उसके होंठों पर रख दिए. उन होंठों की नर्माहट जैसे मेरे होंठों से होती मेरे जिस्म के रोम रोम में उतर गयी. हम दोनो दीवाना-सार एक दूसरे को चूम रहे थे. वो कभी मेरे चेहरे को सहलाती तो कभी मेरे बालों में उंगलियाँ फिराती. कद में मुझसे काफ़ी छ्होटी होने के कारण उसको शायद मुझे चूमने के लिए अपने पंजों पर उठना पड़ रहा था और मुझको काफ़ी नीचे झुकना पड़ रहा था. अपने हाथों से मैने उसकी कमर को पकड़ रखा था और उसको ऊपर की तरफ उठा रहा था. आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |  और तब मुझे एहसास हुआ के उसको चूमते चूमते अब मैं पूरी तरह सीधा खड़ा था. उसका चेहरा अब बिल्कुल मेरे चेहरे के सामने था और उसकी बाहें मेरे गले में थी. मैने हैरत में एक नज़र उसके पैरों की तरफ डाली तो  पता चला के मैने उसको कमर से पकड़ कर ऊपर को उठा लिया था और उसकी पावं हवा में झूल रहे थे. वो किसी फूल की तरह हल्की थी. मुझे एहसास ही नही हो रहा था के मैने एक जवान लड़की को यूँ अपने हाथों के बल हवा में पकड़ रखा है. ज़रा भी थकान नही. अगर वो उस वक़्त ना बोलती तो पता नही मैं कब तक उसको यूँ ही हवा में उठाए चूमता रहता.  “बिस्तर” उसने मुझे चूमते चूमते अपने होंठ पल भर के लिए अलग किए और उखड़ती साँसों के बीच बोली. इशारा समझ कर मैं फ़ौरन उसको यूँ उठाए उठाए रूम के एक कोने में बने बेड तक लाया और उसको नीचे लेटाकार खुद उसके ऊपर आ गया. मैं इससे पहले भी कई बार कई अलग अलग लड़कियों के साथ बिस्तर पर जा चुका था इसलिए अंजान खिलाड़ी तो नही था. जानता था के क्या करना है पर उस वक़्त जैसे दिमाग़ ने काम करना ही बंद कर दिया था. जितना मज़ा मुझे उस वक़्त उसको चूमने में आ रहा था उठा तो कभी किसी लड़की को छोड़ कर भी नही आया था. आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |  “एक मिनट” मैं एक पल के लिए अलग होता हुआ बोला “किस हद तक तुम्हारे लिए ठीक है” आख़िर वो एक छोटे से गाओं की लड़की थी. पहली बार में सब कुछ शायद उसको ठीक ना लगे. “मैं पूरी तरह से आपकी हूँ” उसने हल्की सी आवाज़ में कहा और फिर मुझे अपने ऊपर खींच लिया. आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | कमरे में अब पूरी तरह अंधेरा था. बस हम दोनो के चूमने की आवाज़, कपड़ो की सरसराहट और भारी साँसों के अलावा और कोई आवाज़ नही थी.  पहाड़ों में शाम ढल जाने के बाद एक अजीब सा सन्नाटा फेल जाता है. दूर दूर तक सिर्फ़ हवा और किसी जानवर के चिल्लाने की आवाज़ को छ्चोड़कर और कुछ सुनाई नही पड़ता. कुछ को ये सन्नाटा बड़ा आरामदेह लगता है और कुछ को ये सन्नाटा रुलाने की ताक़त भी रखता है. उस वक़्त भी यही आलम था. बाहर पूरी तरह अजीब सी खामोशी थी | आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | जैसे पूरी क़ायनत खामोश खड़ी हम दोनो के मिलन की गवाह बन रही हो. दिल की धड़कन इस तरह तेज़ हो चली थी के मुझे लग रहा था के कहीं कोई शोर ना सुन ले. मेरा दिमाग़ कुन्द पड़ चुका था. आगे बढ़ने का ख्याल भी मेरे दिमाग़ में नही आ रहा था. उस पर चढ़ा बस उसको चूमे जा रहा था. तभी उसने मेरा एक हाथ पकड़ा और अपने गले से हटाते हुए धीरे से नीचे लाई और अपनी एक छाती पर रख दिया. आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |  एक बड़ा सा नरम गुदाज़ अंग मेरी हथेली में आ गया. “इतने बड़े” ये पहला ख्याल था जो मेरे दिमाग़ में आया था. उसको पहली बार देख कर ये अंदाज़ा हो ही नही सकता था के उसकी चूचियाँ इतनी बड़ी बड़ी हैं. “बड़ी पसंद है ना आपको?” उसने धीरे से मेरी कान में कहा | और ये सच भी था. अपनी लाइफ में काई ऐसी लड़कियाँ जो मुझपर फिदा थी उनको मैने इसलिए रिजेक्ट किया था क्यूंकी उनकी चूचियाँ बड़ी बड़ी नही थी. मेरे हिसाब से एक औरत की सबसे पहली पहचान थी उसकी चूचियाँ और अगर वो ही औरत होने की गवाही ना दें तो फिर क्या फायडा.  “हां” मैने हाँफती हुई आवाज़ में कहा और अपने हाथ में आए उस बड़े से अंग को धीरे धीरे दबाने लगा. तब भी मेरे दिमाग़ में ये नही आया के दूसरी चूची भी पकड़ लूँ और वो जैसे मेरा दिमाग़ पढ़ रही थी. उसने मेरा दूसरा हाथ भी पकड़ा और अपनी दूसरी चूची पर रख दिया. आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |  “ज़ोर ज़ोर से दबाओ. मसल डालो” और मेरे लिए शायद इतना इशारा ही काफ़ी था. मैने उसकी चूचियों को जानवर की तरह मसलना शुरू कर दिया और उसके गले पर बेतहाशा चूमने लगा. कोई और लड़की होती तो शायद इस तरह चूची दबाए जाने पर दर्द से बिलबिला पड़ती पर उसने चूं तक नही करी. आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | जब उसने देखा के मैं बस उसकी गले पर चूम रहा हूँ तो उसने मेरा सर पकड़ा और अपनी चूचियों की तरफ धकेला. दबाए जाने के कारण दोनो चूचियो का काफ़ी हिस्सा कमीज़ के ऊपर से बाहर को निकल रहा था और मेरे होंठ सीधा वहीं जाकर रुके. मैने नीचे से चूचियों को ऊपर की ओर दबाया ताकि वो और कमीज़ के बाहर आएँ और उनके ऊपर अपने होंठ और अपनी जीभ फिराने लगा. उसको इस बात का एहसास हो चुका था के मैं दबा दबा कर उसकी कमीज़ के गले से उसकी चूचियाँ जितनी हो सकें बाहर निकलना चाह रहा हूँ. “चाहिए?” उसने पुछा हां?” मैने चौंकते हुए पुछा |
“ये चाहिए?”
कमरे में पूरा अंधेरा था और मैं उसको बिल्कुल देख नही सकता था, बस उसके जिस्म को महसूस कर सकता था पर फिर भी उसके पूछने के अंदाज़ से मैं समझ गया के वो अपनी चूचियों की बात कर रही थी.
इससे पहले के मैं कोई जवाब देता, उसने मुझे पिछे को धकेला और उठकर बैठ गयी. उसके जिस्म की सरसराहट से मैं समझ गया था के वो अपनी कमीज़ उतार रही थी. जब उसने फिर मेरे हाथ पकड़ कर अपनी चूचियों पर रखे तो इस बार मेरे हाथ को उसके नंगेपन का एहसास हुआ. उसने अपनी ब्रा भी उतार दी थी. “किस रूप में चाहोगे मुझे?” उसने पुछा
मुझे सवाल समझ नही आया और इस बार भी उसने शायद मेरा दिमाग़ पढ़ लिया. इससे पहले के मैं उससे मतलब पुछ्ता वो खुद ही बोल पड़ी. “किसे चोदना चाहोगे आज? जो चाहो मैं वही बनने को तैय्यार हूँ” मुझे अब भी समझ नही आ रहा था. “कहो तो तुम्हारी पड़ोसन, तुम्हारे दोस्त की बीवी, एक अंजान लड़की” मुझे अब उसकी बात समझ आ रही थी. शहेर में हम इसे रोल प्लेयिंग कहते थे. “कहो तो मैं एक रंडी बन जाऊं” वो बोले जा रही थी. “या कोई गंदी ख्वाहिश है तुम्हारी. अपनी माँ, या बहेन, या भाभी को चोदने की ख्वाहिश?” मैने फ़ौरन उसकी बात काटी. “मेरी बीवी” पता नही कहा से मेरे दिमाग़ में ये ख्याल आया.
और इसके आगे मुझे कुछ कहने की ज़रूरत नही पड़ी. “मेरे साथ आपकी पहली रात है पातिदेव. आपकी बीवी पूरी तरह आपकी है. जैसे चाहिए मज़ा लीजिए” कहते हुए उसने मेरी कमीज़ के बटन खोलने शुरू कर दिए. मेरा दिमाग़ अब भी जैसे काम नही कर रहा था. जो कर रही थी, बस वो कर रही थी. लग रहा था जैसे वो मर्द हो और मैं औरत. धीरे धीरे उसने मेरे सारे कपड़े उतार दिए और उस अंधेरे में उसकी बाहों में मैं पूरी तरह से नंगा हो गया. “काफ़ी बड़ा है” उसके हाथ मेरे लंड पर थे. वो उसको सहला रही थी. इस बार जब उसने मुझे अपने ऊपर खींचा तो मैं सीधा उसकी टाँगो के बीच आया. उसने अब भी सलवार पहेन रखी थी पर मेरा पूरी तरह से खड़ा हो चुका लंड सलवार के ऊपर से ही जैसे उसकी चूत के अंदर घुसता जा रहा था.
एक हाथ से वो अब भी कभी मेरे लंड को सहलाती तो कभी मेरे टट्टो को. “ओह” मेरे लंड का दबाव चूत पर पड़ते ही वो कराही “चाहिए?” फिर वही सवाल. “बोलो ना. चाहिए? मुझे तो चाहिए” फिर से एक बार वो उठकर बैठी. अंधेरे में फिर कपड़ो के सरसराने की आवाज़. मैं जानता था के वो सलवार उतार रही है.  “आ जाओ. चोदो मुझे” उस वक़्त उसके मुँह से वो गंदे माने जाने वाले शब्द भी कितने मीठे लग रहे थे. उसने मुझे अपने ऊपर खींच लिया. मैं फिर उसकी टाँगो के बीच था. मेरे अंदाज़ा सही निकला था. उसने अपनी सलवार उतार दी थी और अब नीचे से पूरी नंगी थी. मेरा लंड सीधा उसकी नंगी, भीगी और तपती हुई चूत पर आ पड़ा. मैं ऐसे बर्ताव कर रहा था जैसे ये मेरा पहली बार हो. अपनी कमर हिलाकर मैं उसकी चूत में लंड घुसाने की कोशिश करने लगा. “रूको मेरे सरताज” वो ऐसे बोली जैसे सही में मेरी बीवी हो “पहले अपनी बीवी को अपने पति का लंड चूसने नही दोगे”  किसी बच्चे की तरह मैं उसकी बात मानता हुआ बिस्तर पर सीधा लेट गया. वो घुटनो के बल उठकर बिस्तर पर बैठ गयी. अंधेरे में मुझे वो बिल्कुल नज़र नही आ रही थी. बल्कि नीचे ज़मीन पर पड़े उसके सफेद कपड़ो की सिवाय कुछ भी नही दिख रहा था. मेरे लंड पर मुझे कुछ गीला गीला सा महसूस हुआ और मैं समझ गया के ये उसकी जीभ गयी. वो मेरा लंड चाट रही थी. कभी लंड पर जीभ फिराती तो कभी टट्टो पर. उसके एक हाथ ने जड़ से मेरा लंड पकड़ रखा था और
धीरे धीरे हिला रहा था. और फिर मुझे वो एहसास हस जो कभी किसी लड़की को चोद्ते हुए नही हुआ था. उसने जब मेरा लंड अपने मुँह में लिया तो वो मज़ा दिया जो किसी लड़की की चूत में भी नही आया था.
बड़ी देर तक वो यूँ ही मेरा लंड चूसती रही. कभी चूसती, कभी चाटने लगी तो कभी बस यूँ ही बैठी हुई हाथ से हिलाती.
“बस” मैने बड़ी मुश्किल से कहा “मेरा निकल जाएगा” वो फ़ौरन समझ गयी. अंधेरे में वो हिली, उसका जिस्म मुझे अपने ऊपर आते हुए महसूस हुआ और मेरा लंड एक बेहद गरम, बेहद टाइट और बेहद गीली जगह में समा गया. आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |  “चोदो अपनी बीवी को. जैसे चाहो चोदो. लिटाकर चोदो, झुका कर चोदो, कुतिया बनाकर चोदो”
वो और भी जाने क्या क्या बोले जा रही थी और मेरे ऊपर बैठी अपनी गांद हिलाती लंड चूत में अंदर बाहर कर रही थी. मुझे समझ नही आ रहा था के ये कोई सपना है या हक़ीकत. पर जो कुछ भी था, मेरी ज़िंदगी का सबसे हसीन पल था.
वो यूँ ही मेरे ऊपर बैठी हिल रही थी. मेरी आँखें भारी हो चली थी. मैं सोना नही चाहता था. मैं तो उसके साथ पूरी रात प्यार करना चाहता था पर अपने आप पर जैसे मेरे काबू नही रहा. पलके ऐसे भारी हो गयी थी जैसे मैं कब्से सोया नही था और आज की रात मुझे अपनी ज़िंदगी में पहली बार सुकून हासिल हुआ था. आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |
अपनी गांद ऊपर नीचे हिलाती वो झुक कर मेरे ऊपर लेट गयी. उसकी छातियाँ मेरे सीने से आकर दब गयी. उसके होंठ मेरे कान के पास आए और वो बहुत धीरे से बोली.  फ़ाक़ात एक तेरी याद में सनम, ना सफ़र के रहे, ना वाटन के रहे, बिखरी लाश के इस क़दर टुकड़े हैं, ना क़ाफ़ान के रहे, ना दफ़न के रहे. और उसकी आवाज़ सुनते ही एक अजीब सी ठंडक और बेचैनी जैसे एक साथ मेरे दिल में उतर गयी. पता नही मैं बेहोश हो गया या नींद के आगोश में चला गया पर उसके बाद कुछ याद नही रहा.
अगली सुबह जब मेरी आँख खुली तो वो जा चुकी थी. मैं खामोशी से उठा तो मन अजीब तरह से भारी था |  समझ नही आ रहा था के ये इसलिए था के मैं अपनी बीवी को धोखा देते हुए एक अजनबी लड़की के साथ सोया था जो एक पाप था या इसलिए के वो लड़की अब मेरे साथ नही थी और मैं उसको फिर से देखना चाहता था. फिर वही पाप करना चाहता था | सिर्फ़ ये एहसास के वो अब मेरे पास नही है जैसे मेरी जान निकल रही थी. पहाड़ों में अब भी अजीब सा सन्नाटा था | बाहर सूरज अब भी नही निकला था. चारो तरफ बदल फेले हुए थे. मैने उठकर अपने कपड़े पहने और बाहर आकर फिर अंदाज़े से उस जगह की तरफ चल दिया जहाँ मैने उसको पहली बार देखा था. ना कुछ खाया, ना मुँह धोया, बस दीवानो की तरह उठा और उसकी तलाश में चल पड़ा. वो घर जहाँ की उसने बताया था के वो रहती थी अब भी वहीं था. मेरी जान में जान आई. घर के बाहर पहुँच कर मैने कुण्डा खटखटाया.  एक बुद्धि औरत ने दरवाज़ा खोला. हाथ में एक डंडा जिसके सहारे वो झुक कर चल रही थी. दूसरे हाथ में एक माला जिसका वो जाप कर रही थी. “कहिए” उसने मुझसे पुछा  मैने उसको बताया के मैं एक लड़की को ढूँढ रहा था. हुलिया बताया और तब मुझे एहसास हुआ के मैने कल रात उसका नाम तक नही पुछा था.  “मेरी बेटी आशिया?” बुद्धि औरत ने बोली मैने बताया के मैं नाम नही जानता पर फिर से लड़की का हुलिया बताया. “हां मेरी बेटी आशिया. एक साल पहले आते तो शायद मिल लेते” मैं मतलब नही समझा. “उसको मरे तो एक साल हो गया” मैं फिर भी मतलब नही समझा और हैरानी से उस औरत को देखने लगा. उसने मुझे वहीं एक पेड़ की तरफ इशारा किया और दरवाज़ा मेरे मुँह पर बंद कर दिया. मैं किसी बेवकूफ़ की तरफ चलता उस पेड़ तक पहुँचा. पेड़ के नीचे एक कब्र बनी हुई थी. एक पत्थर पर हिन्दी और उर्दू में लिखा था, “आशिया” और नाम के नीचे लिखी थी वो शायरी जो उसने कल रात मुझे सुनाई थी.
फ़ाक़ात एक तेरी याद में सनम,
ना सफ़र के रहे, ना वाटन के रहे,
बिखरी लाश के इस क़दर टुकड़े हैं,
ना क़ाफ़ान के रहे, ना दफ़न के रहे.
मौत की तारीख आज से ठीक एक साल पहले की लिखी हुई थी. जब मैं वापिस गेस्ट हाउस पहुँचा तो बाहर मुझे केर्टेकर मिला. मैने उसको उस लड़की के बारे में बताया जो कल मेरे साथ आई थी. कौन सी लड़की साहब” वो हैरत से मेरी तरफ देखता बोला “आप तो अकेले आए थे | मैने उसको बताया के वो लड़की जिससे मैं बात कर रहा था. “मैं तो समझा था के आप वो हनुमान जी से बात कर रहे हैं” उसने मेरे कॉटेज के थोड़ा आगे बनी एक हनुमान जी की मूर्ति की तरफ इशारा किया. “आप कल अकेले आए थे साहब” वो फिर बोला हवा में एक अजीब सी खामोशी थी जैसे कहीं कोई मर गया हो और सारे पेड़, सारी वादियाँ, सारे पहाड़ उसका मातम कर रहे हों. मेरी आँखें भर गयी और कलेजा मुँह को आ गया. मैं रोना चाहता था. दहाड़े मार मार कर रोना चाहता था | मैं उसको हासिल करना चाहता था. फिर उसको प्यार करना चाहता था. मैं उसके साथ होना चाहता था. फिर वही पाप करना चाहता था. “उसको तो मरे एक साल हो गया” बुधिया की आवाज़ मेरे कानों में गूँज रही थी. “आप कल अकेले आए थे साहब” केर्टेकर की आवाज़ दिमाग़ में घंटियाँ बजा रही थी. मेरा दिल ऐसे उदास था जैसे मेरा जाने क्या खो गया हो, दिल किया के छाती पीटकर, दहाड़े मारकर रो पडू, अपने कपड़े फाड़ दूँ, इस पहाड़ से कूद कर अपनी जान दे दूं. अपनी जान दे दूं.
और मदहोशी के से आलम में मेरे कदम पहाड़ के कोने की तरफ चल पड़े, खाई की तरफ. दोस्तो इस दुनियाँ मे कुछ घटनाए इस तरह की भी होती है दोस्तो आपको ये कहानी कैसी लगी ज़रूर बताना आपका दोस्त नरेन्द्र सिंह | समाप्त

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क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?” शशिकला ने दरवाज़ा खोला तो मैं फूल आगे बढ़ता हुआ बोला “बाहर मत खड़े रहो अंदर आओ, कोई देख लेगा” उसने मेरी शर्ट पकड़ कर मुझे अंदर खींचा और दरवाज़ा बंद कर लिया. “अरे देखने दो, यहाँ तुम लोगों को जानता ही कौन है” मैं अंदर आता हुआ बोला “जानते फिलहाल नही हैं तो इसका मतलब ये नही के कभी नही जानेंगे. बाद में मोम डॅड से लोग बातें करेंगे तो बताएँगे नही के आपके पिछे आपकी लड़की रात को घर पर लड़के बुलाती है” शशिकला अपने माँ बाप की एकलौती लड़की थी और पिछले हफ्ते ही उन्होने इस नये घर में शिफ्ट किया था. मैं पिछले 5 साल से उसे जानता था, उससे प्यार करता था और सही मौके की तलाश में था के बात को घरवालो की मर्ज़ी से आगे बढ़ाया जाए. उस रात उसके मोम डॅड किसी रिलेटिव के यहाँ रुके हुए थे तो उसने मुझे फोन करके बुला लिया. आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | मैं अपना कोट उतारता हुआ ड्रॉयिंग रूम में दाखिल हुआ. रात के करीब 11.30 बज रहे थे. बाहर मौसम ठंडा था पर घर के अंदर हीटर ऑन होने की वजह से कमरे का टेंपॅरेचर गरम था. ड्रॉयिंग रूम में ही उनके घर में काम करने वाली लड़की ज़मीन पर बैठी टीवी देख रही थी. “आइ थॉट यू सेड यू वर अलोन?” मैने शशिकला की तरफ देखते हुए कहा तो उसने मुझे आँख मारी और पलट कर फ्रिड्ज से कुच्छ खाने को निकालने लगी. मैं सोफे पर आकर बैठ गया और टीवी देखने लगा. उस लड़की ने एक बार मेरी तरफ देखा. मैं जवाब में मुस्कुराया पर वो अजीब नज़रों से मुझे देखती वहाँ से उठी और एक कमरे के अंदर चली गयी. यू वाना ईट हियर ओर यू वाना गो टू दा बेडरूम?” शशिकला ने मुझसे पुछा तो मैने इशारे से कहा के बेडरूम में चलते हैं हाथ में खाने की प्लेट्स उठाए हम उसके बेडरूम तक पहुँचे. “घर तो बहुत मस्त है” मैने खाने की प्लेट्स टेबल पर रखते हुए कहा “और काफ़ी सस्ते में मिला है डॅड कह रहे थे. ही सेड इट वाज़ आ प्रेटी गुड डील” शशिकला झुकी हुई खाना टेबल पर लगा रही थी. उसने उस वक़्त एक स्कर्ट और टॉप पहेन रखा था. स्कर्ट घुटनो तक था और आगे को झुकी होने के कारण टॉप खींच कर उपेर हो गया था. “आइ थिंक प्रेटी गुड डील तो ये है जो मुझे मिली है” मैने आगे बढ़कर उसकी कमर को पकड़ते हुए अपना खड़ा लंड उसकी गांद पर टीका दिया. “औचह” वो फ़ौरन ऐसे खड़ी हुई जैसे बिच्छू ने डॅंक मार दिया हो “क्या करते हो? “तुम्हें प्यार” मैने फ़ौरन उसको अपनी तरफ घुमाया और होंठ उसके होंठों पर रख दिए. “खाना तो खा लो” वो किस के बीच में बोली “पूरी रात पड़ी है | “ठंडा हो जाएगा” “गरम कर लेंगे. खाने के साथ साथ ज़रा हम दोनो भी ठंडे हो लें” आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |  वो अच्छी तरह जानती थी के फिलहाल मुझसे बहस करने का कोई फायडा नही था इसलिए बिना आगे कुच्छ बोले मेरा साथ देने लगी. आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | हम दोनो उसके बेड के पास खड़े हुए थे. वो अपने पंजो पर खड़ी मेरे होंठों को चूस रही थी और मेरे हाथ उसके टॉप के अंदर उसकी नंगी कमर को सहला रहे थे. क्या इरादा है?” अपने पेट पर कपड़ो के उपेर से ही मेरे खड़े लंड को महसूस करते हुए वो बोली “तुम्हें चोदने का” मैं आँख मारते हुए कहा और आगे को झुक कर उसके गले को चूमने लगा. मेरे हाथ अब उसकी कमर से नीचे सरक कर उसकी गांद तक पहुँचे. “ओह लव” उसने मुझसे लिपट-ते हुए एक ठंडी आह भरी. मैने धीरे धीरे उसके स्कर्ट को उपेर की ओर उठाना शुरू कर दिया. “वेट. उतार ही दो” वो बोली हम दोनो एक पल के लिए अलग हुए और वो मुस्कुराती हुई बेड पर चढ़ कर खड़ी हो गयी. “लेट्स स्ट्रीप टुगेदर” उसने कहा तो हम दोनो ने एक दूसरे के देखते हुए एक साथ कपड़े उतारने शुरू कर दिए. उसने टी-शर्ट और स्कर्ट के नीचे कुच्छ भी नही पहना हुआ था. अगले ही पल वो नंगी हो चुकी थी. “नो अंडरगार्मेंट्स?” मैने मुस्कुराते हुए पुच्छा और पूरी तरह नंगा होकर बिस्तर पर चढ़ गया “पता था के तुम आओगे तो वैसे ही उतारने पड़ेंगे तो सोचा के पेहेन्के फायडा ही क्या” वो बिस्तर पर अपनी पीठ पर लेट गयी और दोनो टांगे खोल दी. मैं इशारा समझ गया. पेट पर उल्टा लेट कर मैने उसकी टाँगो को अपने कंधो पर रखा. उसकी चूत किसी फूल की तरह खुल चुकी थी और रस टपका रही थी. “यू आर सोकिंग वेट” मैने कहा और आगे बढ़कर अपने होंठ उसकी जीभ पर टीका दिए. “लिक्क मी” उसने ऊँची आवाज़ में सरगोशी की और टाँग उपेर हवा में उठा दी. जैसे जैसे मेरी जीभ उसकी चूत की गहराइयों में उतरती रही, वैसे वैसे उसकी मेरे बालों पर पकड़ और मज़बूत होती रही. नीचे से वो कभी बिस्तर पर अपनी गांद को कभी रगड़ने लगती तो कभी एडीयन नीचे रख कर अपनी चूत मेरे मुँह पर दबाने लगती. “सक मी … लिक्क इट …. जीभ घुसाओ अंदर …. अंगुली डालो”  जब वो इस तरह से बोलने लगती तो मैं समझ जाता था के वो गरम हो गयी थी. लंड चाहिए?” मैने चूत से मुँह हटा कर पुच्छा | “हां” “चूत में या पहले मुँह में लोगि?” “फक मी फर्स्ट …. आइ विल सक यू लेटर. पूरी रात पड़ी है” वो बेसब्री होते हुए बोली और मुझे अपने उपेर खींचने लगी. “कम ऑन … हरी अप … फक मी फास्ट”

मैं पूरा उसके उपेर आ गया तो उसने खुद ही हाथ हम दोनो के बीच ले जाकर मेरा लंड पकड़ा और अपनी चूत के मुँह पर लगा दिया. घुसाओ अंदर मैने हल्का सा धक्का मारा और लंड उसकी गीली चूत में ऐसे गया जैसे मक्खन में गरम च्छुरी.

कहानी जारी है …… आगे की कहानी पढ़ें के लिए निचे दिए गये पेज नंबर पर क्लिक करे ….|

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