गतांग से आगे …..
हिमांशु अब प्रियंका के कपड़े उतारने में लगा था।
“हाय, कविता अब ये मुझे भी नहीं छोड़ने वाला है … अब मैं चुदीऽऽऽऽ … हाय !” प्रियंका के मुँह से वासनाभरी आह निकल गई।
मैंने हिमांशु की गाण्ड सहलाते हुये उसका लण्ड अपने मुंह में भर लिया। वो प्रियंका की चूंचियां मसलने में लगा था। मेरी इच्छा अभी बाकी थी … मेरी गाण्ड उदास हो चली थी कि अब ये प्रियंका को चोदेगा तो वो दो बार झड़ जायेगा, फिर मेरी गाण्ड मारने जैस उसके लौड़े में दम रहेगा या नहीं। कुछ ही देर में हिमांशु का लण्ड चूसने से वो फिर से तन्ना उठा, जैसे हिमांशु मेरे मन की बात जान गया गया था। बोला,”प्रियंका भाभी, कविता जी का काम तो निकल गया अब तो चली जायेगी, मेरा काम तो हुआ ही नहीं !”
“अच्छा, चल तू अपना काम पूरा कर ले … फिर बाद में मुझे चोद देना … बस … !”
“क्या बात है ? कौन सा काम प्रियंका … ?” मैने जैसे अनजान बनते हुये कहा।
“बात ये है कि तेरे चूतड़ इसे बहुत पसन्द हैं … तू जैसे ही मुड़ती है इसका लण्ड खड़ा हो जाता है … !”
“हाय राम … ऐसा मत कहो … ।”
“हां सच … अब ये तेरी गाण्ड मारना चाहता है … प्लीज, चुदवा ले अपनी गाण्ड … ” प्रियंका ने हिमांशु की तरफ़ से कहा। “मैं कैसे मानूं कि सच बोल रही है … हिमांशु ने तो कुछ कहा ही नहीं !” मैने शिकायत की।
“सच, कविता जी … देखना मेरा लण्ड देखना आपकी गाण्ड में घुस कर कैसा खुश हो जायेगा।”
“तो चल खुश हो कर बता … ”
“आप कुतिया की तरह झुक जाईये फिर देखिये मैं कुत्ते की तरह आपकी गाण्ड मारूंगा !”
” हाय राम … अच्छा ये देखो … !” मैं कुत्ते की तरह बिस्तर पर झुक गई। मेरे दोनों चूतड़ कमल की तरह खिल गये। मेरी गोरी गोरी गाण्ड देखते ही उसके लण्ड ने सलामी मारी। दरार के बीच मेरे गाण्ड का कोमल फूल चमक उठा। जो पहले ही लण्ड खाने की लालसा में अन्दर बाहर सिकुड़ रहा था। पास पड़ी तेल की बोतल से हिमांशु ने मेरे दरार के बीच नरम फ़ूल पर तेल की बूंदे टपका दी। उसका लाल सुपाड़ा गाण्ड के फ़ूल पर टिक गया और हल्के से जोर से ही गप से अन्दर घुस पड़ा।
“साली क्या गाण्ड है … ! घुसते ही लण्ड पानी छोड़ने लगता है !” हिमांशु ने एक आह भरी।
“प्रियंका, हाय कितना नरम और प्यारा लण्ड है। तूने मुझे काश पहले बताया होता तो मैं इतना तो ना तरसती … !”
“कविता, मेरी सहेली … अब लण्ड खा ले … देर ही सही, चुदी तो सही … मजा आया ना !” प्रियंका भी चुदासी सी मुझे देख रही थी। उसे भी चुदाने की लग रही थी। अब हिमांशु का सब्र का बांध टूट चुका था, वो मेरी चूतड़ों पर मरता था … उसका डण्डा मेरी गाण्ड को कस कर पीटना चाहता था, सो उसने अपनी कलाबाज़ी दिखानी चालू कर दी।
उसका लम्बा लण्ड गाण्ड की गहराईयों को नापने लगा। मेरी गाण्ड में जबरदस्त झटके मारने लगा। मुझे तरावट आने लग गई। हल्की सी मीठी सी गुदगुदी एक बार फिर मुझे रंगीनियों की ओर ले चली। मेरे बोबे मसले जाने लगे।
प्रियंका चुदाई की प्यास की मारी अपनी चूत को मेरे सामने ले आई और कातर नजरों से विनती की। मैंने उसकी टांगें मेरे मुँह के पास खींच ली और अपना मुँह उसकी चूत से चिपका लिया। मैं उसके बोबे पकड़ कर मसलने लगी। आलम ये था कि तीनो एक दूसरे पर दुश्मन की तरह जुटे हुये वो सब कुछ कर रहे थे कि किसी का माल बाहर निकल जाये।
मेरी गण्ड पर लण्ड ऐसे मार रहा था कि जैसे उसका लण्ड किसी मोरी में सफ़ाई कर रहा हो। लण्ड जोर जोर से घुसेड़ कर वो मेरी गाण्ड चोद रहा था। गाण्ड में सुरसुरी से मीठी मीठी असहनीय सी गुदगुदी चलने लगी थी, अगर मेरी गाण्ड चूत की तरह झड़ जाती तो कितना मजा आता।
“ये हिमांशु का वीर्य है रे … जरा मजा तो लेने दे … “
मै चौंक गई, देखा तो पांच बज रहे थे … ना तो खाना बनाया था और ना ही चाय … नहाया धोया भी नहीं था … सब कुछ छोड़ कर मैं नहाने भागी … सोचा चुद तो कल लेंगे. ये आनन्द तो रोज ले सकते हैं। पर कहीं उनको इसकी भनक भी लग गई तो फिर..