यह कहानी निम्न शृंखला का एक भाग है:चुदक्कड बहु की चूत प्यासे ससुर का लौड़ा -16 |
हेल्लो दोस्तों आज मेरी कहानी की चुदक्कड बहु की चूत प्यासे ससुर का लौड़ा -17 वी कड़ी है कहानी का मज़ा तभी आता है जब पूरी कहानी पढ़ी जाए जैसे आप कोई फिल्म देखते है अगर आधे में छोड़ दे तो फिल्म का मजा नहीं आता अगर आपने इस कहानी की पहली कड़ी नहीं पढ़ा है तो आप ऊपर दिए गये पाठ पर क्लिक करे जरुर पढ़े | अब आगे की कहानी का मज़ा ले |
उस दिन शाम को रूपा और राजेश को लेने अजित बस अड्डा गया। रूपा बस से उतरी तो वह उसे देखता ही रह गया । काली साड़ी में उसका गोरा बदन क़हर ढा रहा था। छोटा सा ब्लाउस आधी चूचियाँ दिखा रहा था और उसकी गहरी नाभि उस पारदर्शी साड़ी में बहुत आकर्षक लग रही थी। वह अपना सामान उठाने झुकी तो उसकी सामने की क्लिवेज़ देखते ही बनती थी। दोनों गोलायीयाँ जैसे अलग अलग से मचल रही थीं बाहर आने के लिए।
राजेश भी आकर अजित से गले मिला और रूपा भी उसके पास आकर नमस्ते की। अजित ने उसका हाथ पकड़कर दबाया और बोला: आऽऽऽंह जानू क्या क़ातिल लग रही हो?
रूपा: हा हा आपका चक्कर चालू हो गया। आप भी बहुत स्मार्ट लग रहे हो।
अजित राजेश से बात करता हुआ रूपा के पीछे चलने लगा। उफफफ क्या मस्त चूतर हैं। कैसे मटक रहे हैं। कार में बैठने लगे तो रूपा को आगे बैठने को कहा। राजेश पीछे बैठा। कार चला कर वह रूपा को बोला: आज तो काली साड़ी में तुम्हारा गोरा बदन बहुत चमक रहा है। उसने रूपा की जाँघ दबाकर कहा।
रूपा: आप ही तो बोले थे की सेक्सी साड़ी पहनना , तो मैं ये पहन ली। आपको अच्छी लगी चलिए ठीक है।
वह अजित के हाथ के ऊपर अपना हाथ रखी और दबाने लगी।
अजित : और राजेश भाई क्या हाल है? हमारी जान का ख़याल रखते हैं ना?
राजेश: हाँ जी रखते हैं। पर ये तो आपको बहुत याद करती रहती है।
अजित: सच मेरी जान? ये कहते हुए उसने रूपा की बुर को साड़ी के ऊपर से दबा दिया।
रूपा मज़े से टाँगें फैला दी ताकि वह मज़े से उसको सहला सके। वह बोली: अरे घर जाकर ये सब कर लीजिएगा । अभी कार चलाने पर ध्यान दीजिए।
अजित: क्या करें सबर ही नहीं हो रहा है। देखो कैसे खड़ा है तुम्हारे लिए? अजित ने अपना लौड़ा पैंट के ऊपर से दबाकर कहा। रूपा भी आगे आकर उसके पैंट के ऊपर से लौड़े को दबाकर मस्ती से भर उठी। फिर बोली: आऽऽह सच में बहुत जोश में है ये तो। फिर वह उसे एक बार और दबाकर अपनी जगह पर आके बैठी और बोली: आज तो ये मेरी हालत बुरी करने वाला है। सब हँसने लगे।
घर पहुँच कर रूपा चांदनी से लिपट गयी और प्यार करने लगी। चांदनी भी सब कुछ भूलकर उससे लिपट गयी। फिर चांदनी राजेश से मिली और राजेश ने भी उसे प्यार किया।
अब सब लोग सोफ़े पर बैठे और चांदनी चाय बनाने चली गयी। अजित पहले ही समोसे और जलेबियाँ ले आया था। वह उसे सजाने लगी, तभी रूपा किचन में आयी और चांदनी से बोली: बेटी ख़ुश हो ना यहाँ? आकाश के साथ अच्छा लगता है ना? तुमको ख़ुश तो रखता है?
चांदनी: उफ़्फ़ मम्मी आप भी कितने सवाल पूछ रही हो। मैं बहुत ख़ुश हूँ और आकाश मेरा पूरा ख़याल रखते हैं।
रूपा: चलो ये बड़ी अच्छी बात है। भगवान तुम दोनों को हमेशा ख़ुश रखे।
चांदनी: चलो आप बैठो मैं नाश्ता लेकर आती हूँ।
रूपा भी उसकी मदद करते हुए नाश्ता और चाय लगाई। सब नाश्ता करते हुए चाय पीने लगे।
रूपा: आकाश कब तक आएँगे?
अजित: उसको आज जल्दी आने को कहा है आता ही होगा।
चांदनी: मम्मी आपका सामान महक दीदी वाले कमरे में रख देती हूँ। ताऊ जी आपका सामान पापा जी के कमरे में रख दूँ क्या?
अजित: अरे बहु तुम क्यों परेशान होती हो, मैं भाभी का समान रख देता हूँ , चलो भाभी आप कमरा देख लो। और हाँ बहु तुम आकाश को फ़ोन करो और पूछो कब तक आ रहा है।आओ राजेश जी आप भी देख लो कमरा।
तीनों महक वाले कमरे में सामान के साथ चले गए। चांदनी आकाश को फ़ोन करने का सोची। तभी उसे महसूस हुआ कि ये तीनों कमरा देखने के बहाने उस कमरे में क्यों चले गए। शायद मस्ती की शुरुआत करने वाले हैं। मुझे बहाने से अलग किया जा रहा है। ओह तो ये बात है , वह चुपचाप उस कमरे की खिड़की के पास आइ और हल्का सा परदा हटाई और उसकी आँखें फटी की फटी रह गयीं।
सामने मम्मी पापा जी की बाहों में जकड़ी हुई थी और दोनों के होंठ चिपके हुए थे ।पापा जी के हाथ उसकी बड़ी बड़ी गाँड़ पर घूम रहे थे। ताऊ जी भी उनको देखकर मुस्कुरा रहा था और पास ही खड़ा होकर मम्मी की नंगी कमर सहला रहा था। फिर अजित रूपा से अलग हुआ और उसकी साड़ी का पल्ला गिराकर उसकी ब्लाउस से फुली हुई चूचियों को दबाने लगा और उनके आधे नंगे हिस्से को ऊपर से चूमने लगा।
उधर राजेश उसके पीछे आकर उसकी गाँड़ सहलाए जा रहा था
चांदनी की बुर गरम होने लगी और उसके मुँह से आह निकल गयी। तभी पापा जी ने कहा: अरे क्या मस्त माल हो जान। सच में देखो लौड़ा एकदम से तन गया है।
मम्मी: आज छोड़िए अब मुझे, रात को जी भर के सब कर लीजिएगा। फिर हाथ बढ़ाके वह एक एक हाथ से पापा और ताऊ के लौड़े को पैंट के ऊपर से दबाते हुए बोली: देखो आपकी भी हालत ख़राब हो रही है, और मेरी भी बुर गीली हो रही है।
पापा नीचे बैठ गए घुटनो के बल और बोले: उफफफफ जान, एक बार साड़ी उठाके अपनी बुर के दर्शन तो करा दो। उफफफ मरा जा रहा हूँ उसे देखने के लिए।
चांदनी एकदम से हक्की बक्की रह गयी और सोची कि क्या उसकी बेशर्म मॉ उनकी ये इच्छा भी पूरी करेगी। और ये लो मम्मी ने अपनी साड़ी और पेटिकोट उठा दिया। पापा की आँखों के सामने मम्मी की मस्त गदराई जाँघें थी जिसे वो सहलाने लगे थे। और उनके बीच में उभरी हुई बिना बालों की बुर मस्त फूली हुई कचौरी की तरह गीली सी दिख रही थी। पापा ने बिना समय गँवाये अपना मुँह बुर के ऊपर डाल दिया और उसकी पप्पियां लेने लगे। मम्मी की आँखें मज़े से बंद होने लगी। फिर उन्होंने पापा का सिर पकड़ा और ही वहाँ से हटाते हुए बोली: उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ बस करिए। चांदनी आती होगी।
पापा पीछे हटे और चांदनी की आँखों के सामने मम्मी की गीली बुर थी। तभी पापा ने उनको घुमाया और अब मम्मी के बड़े बड़े चूतर उसके सामने थे। चांदनी भी उनकी सुंदरता की मन ही मन तारीफ़ कर उठी। सच में कितने बड़े और गोल गोल है। पापा ने अब उसके चूतरों को चूमना और काटना शुरू कर दिया। मम्मी की आऽऽहहह निकल गई। फिर पापा ने जो किया उसकी चांदनी ने कभी कल्पना नहीं की थी। पापा ने उसकी चूतरों की दरार में अपना मुँह डाला और उसकी गाँड़ को चाटने लगे।उफफगग ये पापा क्या कर रहे हैं ।मम्मी भी हाऽऽऽय्यय कर रही थी। फिर वह आगे बढ़के उससे अपने आप को अलग की और अपनी साड़ी नीचे की और बोली: बस करिए आप नहीं तो मैं अभी के अभी झड़ जाऊँगी। उफफफफ आप भी पागल कर देते हो।
पापा उठे और अपने लौड़े को दबाते हुए बोले: ओह सच में बड़ी स्वाद है तुम्हारी बुर और गाँड़ । वाह मज़ा आ गया।
मम्मी: आप दोनों ऐसे तंबू तानकर कैसे बाहर जाओगे। चांदनी क्या सोचेगी। आप दोनों यहाँ रुको और थोड़ा शांत होकर बाहर आना । यह कहते हुए मम्मी ने बड़ी बेशर्मी से अपनी बुर को साड़ी के ऊपर से रगड़ी और बाहर आने लगी। चांदनी भी जल्दी से किचन में घुस गयी। उसकी सांसें फूल रही थी और छातियाँ ऊपर नीचे हो रहीं थीं। उसकी बुर गीली हो गयी थी। तभी रूपा अंदर आइ और चांदनी उसे देखकर सोची कि इनको ऐसे देखकर कोई सोच भी नहीं सकता कि ये औरत अभी दो दो मर्दों के सामने अपनी साड़ी उठाए नंगी खड़ी थी और अपनी बुर और गाँड़ चटवा रही थी।
रूपा: बेटी आकाश से बात हुई क्या? कब आ रहा है वो? कितने दिन हो गए इसे देखे हुए?
चांदनी: हाँ मम्मी अभी आते होंगे। दुकान से निकल पड़े हैं।
तभी आकाश आ गया और उसने रूपा के पाँव छुए। तभी अजित और राजेश कमरे से बाहर आए और ना चाहते हुए भी चांदनी की आँख उनके पैंट के ऊपर चली गयी और वहाँ अब तंबू नहीं तना हुआ था। उसे अपने आप पर शर्म आयी कि वह अपने ताऊजी और ससुर के लौड़े को चेक कर रही है कि वो खड़े हैं कि नहीं! छी उसे क्या हो गया है, वह सोची।
फिर सब बातें करने लगे और आकाश के लिए रूपा चाय बना कर लाई। आकाश: मम्मी आप बहुत अच्छी चाय बनाती हो, चांदनी को भी सिखा दो ना।
चांदनी ग़ुस्सा दिखाकर बोली: अच्छा जी , अब आप ख़ुद ही चाय बनाइएगा अपने लिए।
सब हँसने लगे। अजित: आकाश मुझे तो बहु के हाथ की चाय बहुत पसंद है। वैसे सिर्फ़ चाय ही नहीं मुझे उसका सब कुछ पसंद है। पता नहीं तुमको क्यों पसंद नहीं है।
रूपा चौक कर अजित को देखी और सोचने लगी कि अजित ने चांदनी के बारे में ऐसा क्यों कहा?
आकाश: अरे पापा जी, चांदनी को मैं ऐसे ही चिढ़ा रहा था।
फिर सब बातें करने लगे और फिर अजित ने कहा: चलो डिनर पर चलें?
आकाश: जी पापा जी चलिए चलते हैं, मैं थोड़ा सा फ़्रेश हो लेता हूँ।
रूपा: हाँ मैं भी थोड़ा सा फ़्रेश हो आती हूँ।
अजित: चलो राजेश, हम भी तैयार हो जाते हैं।
इस तरह सब तैयार होने के लिए चले गए।
अजित और राजेश सबसे पहले तैयार होकर सोफ़े पर बैठ कर इंतज़ार करने लगे। तभी रूपा आयी ।उसके हाथ में एक पैकेट था। और एक बार फिर से दोनों मर्दों का बुरा हाल हो गया। वह अब टॉप और पजामा पहनी थी। उफफफ उसकी बड़ी चूचियाँ आधी टॉप से बाहर थीं। उसने एक चुनरी सी ओढ़ी हुई थी ताकि चूचियाँ जब चाहे छुपा भी सके। वह मुस्कुराकर अपनी चूचियाँ हिलायी और एक रँडी की तरह मटककर पीछे घूमकर अपनी गाँड़ का भी जलवा सबको दिखाया। सच में टाइट पजामे में कसे उसके चूतर मस्त दिख रहे थे अब वह हँसकर अपनी चुन्नी को अपनी छाती पर रख कर अपनी क्लिवेज को छुपा लिया।
अजित: क्या माल हो जान।वैसे इस पैकेट में क्या है?
रूपा: मेरी बेटी के लिए एक ड्रेस है। उसे देना है।
फिर वह चांदनी को आवाज़ दी: अरे बेटी आओ ना बाहर । अभी तक तुम और आकाश बाहर नहीं आए।
आकाश बाहर आया और बोला: मम्मी जी मैं आ गया। आपकी बेटी अभी भी तैयार हो रही है।
रूपा: मैं जाकर उसकी मदद करती हूँ । यह कहकर वह चांदनी के कमरे में चली गयी। वहाँ चांदनी अभी बाथरूम से बाहर आयी और मम्मी को देखकर बोली: आप तैयार हो गयी ? इस पैकेट में क्या है?
रूपा: तेरे लिए एक ड्रेस है। चाहे तो अभी पहन ले। रूपा ने अब अपनी चुनरी निकाल दी थी।
चांदनी उसके दूध देख कर बोली: मम्मी आपकी ये ड्रेस कितनी बोल्ड है। आपको अजीब नहीं लगता ऐसा ड्रेस पहनने में ?
रूपा: अरे क्या बुड्ढी जैसे बात करती हो ? थोड़ा मॉडर्न बनो बेटी। देखो ये ड्रेस देखो जो मैं लाई हूँ।
चांदनी ने ड्रेस देखी और बोली: उफफफ मम्मी ये ड्रेस मैं कैसे पहनूँगी? पापा और ताऊ जी के सामने? पूरी पीठ नंगी दिखेगी और छातियाँ भी आपकी जैसी आधी दिखेंगी। ओह ये स्कर्ट कितनी छोटी है। पूरी मेरी जाँघें दिखेंगी। मैं इसे नहीं पहनूँगी।
रूपा: चल जैसी तेरी मर्ज़ी। तुझे जो पहनना है पहन ले, पर जल्दी कर सब इंतज़ार कर रहे हैं।
चांदनी ने अपने कपड़े निकाले। उसने अपना ब्लाउस निकाला और दूसरा ब्लाउस पहनना शुरू किया। रूपा उसकी चूचियाँ ब्रा में देखकर बोली: बड़े हो गए हैं तेरे दूध। ३८ की ब्रा होगी ना? लगता दामाद जी ज़्यादा ही चूसते हैं। यह कहकर वह हँसने लगी ।
चांदनी : छी मम्मी क्या बोले जा रही हो। वैसे हाँ ३८ के हो गए हैं। फिर उसने अपनी साड़ी उतारी और एक पैंटी निकाली और पहनने लगी पेटिकोट के अंदर से।
रूपा: अरे तूने पुसंजू पैंटी तो निकाली नहीं? क्या घर में पैंटी नहीं पहनती?
चांदनी शर्म से लाल होकर: मम्मी आप भी पैंटी तक पहुँच गयी हो। कुछ तो बातें मेरी पर्सनल रहने दो।
रूपा: अरे मैंने तो अब जाकर पैंटी पहनना बंद किया है, तूने अभी से बंद कर दिया? वाह बड़ा हॉट है हमारा दामाद जो तुमको पैंटी भी पहनने नहीं देता।
चांदनी: मामी आप बाहर जाओ वरना मुझे और देर जो जाएगी। रूपा बाहर चली गयी। साड़ी पहनते हुए वो सोची कि उसने पैंटी पहनना पापाजी के कहने पर छोड़ा या आकाश के कहने पर? वह मुस्कुरा उठी शायद दोनो के कहने पर।
तैयार होकर वो बाहर आयी। साड़ी ब्लाउस में बहुत शालीन सी लग रही थी। रूपा ने भी अभी चुनरी लपेट रखी थी।
अजित: तो चलें अब डिनर के लिए। सब उठ खड़े हुए और बाहर आए।
आकाश: पापा जी मैं कार चलाऊँ?
अजित: ठीक है । राजेश आप आगे बैठोगे या मैं बैठूँ?
राजेश: मैं बैठ जाता हूँ आगे। आप पीछे बैठो ।
अब अजित ने रूपा को अंदर जाने को बोला। रूपा अंदर जाकर बीच में बैठ गयी। चांदनी दूसरी तरफ़ से आकर बैठी और अजित रूपा के साथ बैठ गया। तीनों पीछे थोड़ा सा फँसकर ही बैठे थे। रूपा का बदन पूरा अजित के बदन से सटा हुआ था। अजित गरमाने लगा। जगह की कमी के कारण उसने अपना हाथ रूपा के कंधे के पीछे सीट की पीठ पर रखा और फिर हाथ को उसके कंधे पर ही रख दिया और उसकी बाँह सहलाने लगा। उसका हाथ साथ बैठी चांदनी की बाँह से भी छू रहा था। चांदनी ने देखा तो वह समझ गयी कि अभी ही खेल शुरू हो जाएगा। रात के ८ बजे थे ,कार में तो अँधेरा ही था। तभी अजित ने रूपा की बाँह सहलाते हुए उसकी चुन्नी में हाथ डाला और उसकी एक चूचि पकड़ ली और हल्के से दबाने लगा। चांदनी हैरान होकर उसकी ये हरकत देखी और उसने रूपा को अजित की जाँघ में चुटकी काटकर आँख से मना करने का इशारा करते भी देखी। पर वो कहाँ मानने वाला था। अब उसने चांदनी की बाँह में हल्की सी चुटकी काटी और फिर से उसे दिखाकर उसकी मम्मी की चूचि दबाने लगा और उसने चांदनी को आँख भी मार दी।
चांदनी परेशान होकर खिड़की से बाहर देखने लगी। अब अजित ने थोड़ी देर बाद रूपा का हाथ लेकर अपने लौड़े पर रखा और रूपा उसे दबाने लगी। फिर वह अपना हाथ रूपा की चूचि से हटा कर चांदनी की बाँह सहलाने लगा। चांदनी चौंक कर पलटी और उसकी आँख रूपा के हाथ पर पड़ी जो कि अजित के पैंट के ज़िपर पर थी। उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ मम्मी भी ना,कितनी गरमी है इनमे अभी भी। तभी अजित का हाथ उसकी चूचि पर आ गया। वह धीरे से उसको घूरी और उसका हाथ हटाते हुए बोली: पापा जी जगह कम पड़ रही है तो मैं टैक्सी में आ जाती हूँ।
रूपा ने झट से अपना हाथ हटा लिया।
आकाश: क्या हुआ? आप लोग आराम से नहीं हो क्या?
अजित: अरे नहीं बेटा, सब ठीक है। मैं ज़रा हाथ फैलाकर बैठा तो बहु को लगा कि मैं आराम से नहीं बैठा हूँ। सब ठीक है तुम गाड़ी चलाओ। वो चांदनी को आँख मारते हुए बोला।
फिर थोड़ी देर बाद उसने रूपा का हाथ अपने लौड़े पर रख दिया जिसे वो दबाने लगी। और वह रूपा की दोनों चूचि बारी बारी से दबाने लगा। चांदनी ने देखा और फिर खिड़की से बाहर देखने लगी। उसने सोचा कि जब वो दोनों इसमें मज़ा ले रहे हैं तो वो भला इसमें क्या कर सकती है।
थोड़ी देर में वो एक शानदार रेस्तराँ में पहुँचे। आकाश और राजेश बाहर आए और चांदनी और रूपा भी बाहर आ गए। अजित अपनी पैंट को अजस्ट किया कि क्योंकि उसकी पैंट का तंबू ज़रा ज़्यादा ही उभरा हुआ दिख रहा था। वो भी वहाँ हाथ रखकर बाहर आया। ख़ैर डिनर टेबल तक पहुँचते हुए उसका लौड़ा थोड़ा शांत हो गया था।
टेबल गोल थी। अजित के बग़ल में रूपा बैठी और उसकी बग़ल में राजेश बैठा। उसकी बग़ल में आकाश और फिर चांदनी बैठी। चांदनी के बग़ल में एक कुर्सी ख़ाली थी।
अजित: राजेश थोड़ा सा ड्रिंक चलेगा?
राजेश: यार परिवार के साथ अटपटा लगता है।
अजित: अरे इसने अटपटा की क्या बात है? सब अपने ही तो हैं। बोलो रूपा, अगर हम पिएँ तो तुमको कोई आपत्ती है क्या?
रूपा: मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। आकाश से पूछ लीजिए।
आकाश: पापा जी लीजिए ना जो लेना है। और उसने वेटर को आवाज़ दी।
अजित ने उसे दो पेग व्हिस्की लाने को कहा। फिर उसके जाने के बाद राजेश बोला: आकाश अभी तक लेनी शुरू नहीं की क्या?
आकाश: ताऊ जी कॉलेज में एक दो बार लिया था। पर आप लोगों के सामने हिचक होती है।
अजित: अरे बेटा अब तुम जवान हो गए हो। इसमें हिचकना कैसा? चलो तुम्हारे लिए भी मँगाते हैं। पर बेटा, इसको कभी भी आदत नहीं बनाना। कभी कभी ऐसे अवसरों पर चलता है।
फिर वह रूपा से बोला: भाभी आप भी वाइन ट्राई करो ना। आजकल बहुत आम बात है लेडीज़ का वाइन पीना।
राजेश: हाँ रूपा ले लो ना वाइन। यह तो सभी औरतें आजकल लेती हैं। बोलो मँगाए क्या?
रूपा हँसकर : मैंने तो आज तक कभी ली नहीं है। मेरे दामाद जी बोलेंगे तो लूँगी नहीं तो नहीं लूँगी।
आकाश हँसकर: मम्मी जी आप भी ट्राई करिए ना।फिर चांदनी से बोला: चांदनी तुम भी लो ना थोड़ी सी वाइन।
चांदनी: ना बाबा , मुझे नहीं लेना है। मम्मी को लेना है तो ले लें।
अजित ने वाइन भी मँगा ली। चांदनी के लिए कोक मँगाया।
अब सबने चियर्स किया और पीने लगे। रूपा: ये तो बहुत स्वाद है। चांदनी तू भी एक सिप ले के देख।
चांदनी ने थोड़ी देर विरोध किया पर जब आकाश भी बोला: अरे क्या हर्ज है एक सिप तो ले लो। तो वो मना नहीं कर पाई और मम्मी की वाइन के ग्लास से एक सिप ली।
रूपा: कैसी लगी?
चांदनी: अच्छी है मम्मी। स्वाद तो ठीक है।
फिर क्या था उसी समय अजित ने चांदनी के लिए भी एक वाइन का ग्लास मँगा लिया। अब सब पीने लगे। क्योंकि रूपा और चांदनी पहली बार पी रहे थे जल्दी ही उनको नशा सा चढ़ने लगा। सभी जोक्स सुनाने लगे और ख़ूब मस्ती करने लगे। जल्दी ही पीने का दूसरा दौर भी चालू हुआ। चांदनी ने मना कर दिया कि और नहीं पियूँगी। पर अजित ने उसके लिए भी मँगा लिया।
दूसरे दौर में तो आकाश को भी चढ़ गयी। अब वो भी बहकने लगा। चांदनी ने अपना दूसरा ग्लास नहीं छुआ। बाक़ी सब पीने लगे। अब अडल्ट्स जोक्स भी चालू हो गए और सब मज़े से थोड़ी अश्लील बातें भी करने लगे। चांदनी हैरान रह गयी जब आकाश ने भी एक अश्लील जोक सुनाया।
रूपा भी अब बहकने लगी थी। अजित उसे बार बार छू रहा था और वह भी उसको छू रही थी। आकाश भी चांदनी को छू रहा था। चांदनी को बड़ा अजीब लग रहा था। वह बार बार उसकी जाँघ दबा देता था।
तभी खाना लग गया। सब खाना खाने लगे। अजित ने रूपा को एक और वाइन पिला दी जो कि चांदनी ने भी पी थी। खाना खाते हुए अचानक अजित अपने फ़ोन पर कुछ करने लगा और फिर चांदनी के फ़ोन में कोई sms आया । वह चेक की तो पापाजी का ही मेसिज था: बहु, चम्मच गिरा दो और उसे उठाने के बहाने टेबल के नीचे देखो ।
चांदनी ने अजित को देखा तो उसने आँख मार कर नीचे झुकने का इशारा किया। चांदनी ने उत्सुकतावश नीचे चम्मच गिराया और उसको उठाने के बहाने से टेबल के नीचे देखी और एकदम से सन्न रह गयी। उसने देखा कि पापा जी की पैंट से उनका लौड़ा बाहर था और मम्मी की मुट्ठी में फ़ंसा हुआ था। राजेश ताऊजी का हाथ मम्मी की जाँघ पर था और वह काफ़ी ऊपर तक क़रीब बुर के पास तक अपने हाथ को ले जाकर मम्मी को मस्त कर रहे थे।
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