पापा ने की मेरी पहली चुदाई

मेरा नाम अंकिता है. मेरी उम्र लगभग २८ वर्ष की हो चुकी है. मेरी शादी एक अच्छे घर में हुयी है . लेकिन मैं आपको अपनी पहली चुदाई की कहानी सूना रही हूँ. तब मैं मैं अपने मामा के यहाँ रह कर पढ़ाई करती थी. मेरी उम्र १८ वर्ष की थी. मेरा घर गाँव में था. मेरे कॉलेज में छुट्टी हो गयी थी. मैंने अपने पापा को फ़ोन किया और कहा कि वो आ कर घर ले जाएँ. मेरे पापा मुझे लेने आ गए. हम दोनों ने रात नौ बजे ट्रेन पर चढ़ गए. ट्रेन पैसेंजर थी. रात भर सफ़र कर के सुबह के ४ बजे हम लोग अपने गाँव के निकट उतरते थे.  उस ट्रेन में काफी कम पैसेंजर थे. उस पूरी बोगी में सिर्फ २२-२३ यात्री रहे होंगे. उस पैसेंजर ट्रेन में लाईट भी नहीं थी. जब ट्रेन खुली तो स्टेशन की लाईट से पर्याप्त रौशनी हो रही थी. लेकिन ट्रेन के प्लेटफोर्म को छोड़ते ही पुरे ट्रेन में घना अँधेरा छा गया. हम दोनों अकेले ही थे. करीब आधे घंटे के बाद ट्रेन एक सुनसान जगह खड़ी हो गयी. यहाँ पर कुछ दिन पूर्व ट्रेन में डकैती हुयी थी. पूरी ट्रेन में घुप्प अँधेरा था और आसपास भी अँधेरा था. हम दोनों को डर सा लग रहा था. पापा ने मुझसे कहा – बेटी एक काम कर. ऊपर वाले सीट पर सो जा.  मैंने कम्बल निकाला और ऊपर वाले सीट पर लेट गयी. लेकिन ट्रेन लगभग १०-१५ मिनट से उस सुनसान जगह पर खड़ी थी. तभी कुछ हो हंगामा की आवाज आई. मैंने पापा से कहा – पापा मुझे डर लग रहा है. पापा ने कहा – कोई बात नहीं है बेटी, मैं हूँ ना. मैंने कहा – लेकिन आप तो अकेले हैं पापा, यदि कोई बदमाश आ गया और मुझे देख ले तो वो कुछ भी कर सकता है. आप प्लीज ऊपर आ जाईये ना. पापा – ठीक है बेटी. पापा भी ऊपर आ गए और कम्बल ओढ़ कर मेरे साथ सो गए. अब मैं उनके और दीवार के बीच में आराम से छिप कर थी. अब किसी को पता भी नहीं चल पायेगा कि इस कम्बल में कोई लड़की भी है. थोड़ी ही देर में ट्रेन चल पड़ी. हम दोनों ने राहत की सांस ली. मैंने पापा को कस कर पकड़ लिया. आप यह कहानी मस्ताराम.नेट पर पढ़ रहे है |  ट्रेन की सीट कितनी कम चौड़ी होती है आपको पता ही होता है. इसी में हम दोनों एक दुसरे से सट कर लेटे हुए थे. पापा ने भी मुझे अपने से साट लिया और कम्बल को चारो तरफ से अच्छी तरह से लपेट लिया. पापा मेरी पीठ सहला रहे थे. और मुझसे कहा – अब तो डर नहीं लग रहा ना बेटी? मैंने पापा से और अधिक चिपकते हुए कहा – नहीं पापा. अब आप मेरे साथ हैं तो डर किस बात की? पापा – ठीक है बेटी. अब भर रास्ते हम दोनों इसी तरह सटे रहेंगे. ताकि किसी को ये पता नहीं चल सके कि कोई लड़की भी इस बर्थ पर है. ट्रेन अब धीरे धीरे रफ़्तार पकड़ चुकी थी. पापा ने थोड़ी देर के बाद कहा – बेटी तू कष्ट में है. एक काम कर अपना एक पैर मेरे ऊपर से ले ले. ताकि कुछ आराम से सो सके. मैंने ऐसा ही किया. इस से मुझे आराम मिला. लेकिन मेरा बुर पापा के लंड से सटने लगा. ट्रेन के हिलने से पापा का लंड बार बार मेरे बुर से सट जा रहा था. अचानक पापा ने मेरे चूची को दबाना चालू कर दिए. मैंने शर्म के मारे कुछ नहीं बोल पा रही थी. हम दोनों के मुंह बिलकुल सटे हुए थे. पापा ने मुझे चूमना भी चालू कर दिया. मैं शर्म के मारे कुछ नहीं बोल रही थी. पापा ने मेरी सलवार का नाडा पकड़ा और उसे खोल दिया और कहा – बेटा तू सलवार खोल ले. मैंने सलवार खोल दिया. पापा ने भी अपना पायजामा खोल दिया. अब पापा ने मेरी पेंटी में हाथ डाला और मेरी चूत के बाल को खींचने लगे. मैंने भी पापा के अंडरवियर के अन्दर हाथ डाला और पापा के तने हुए 6 इंच के लौड़े को पकड़ कर सहलाने लगी. आह कितना मोटा लौड़ा था… मुठ्ठी में ठीक से पकड़ भी नहीं पा रही थी. पापा ने मेरी पेंटी को खोल कर मुझे नग्न कर दिया. फिर अपना अंडरवियर खोल कर मेरे ऊपर चढ़ गए. मेरे चूत में ऊँगली डाल कर मेरे चूत का मुंह खोला और अपना लंड उसमे धीरे धीरे घुसाने लगे. मैं शर्म से मरी जा रही थी. लेकिन मज़ा भी आ रहा था.  आप यह कहानी मस्ताराम.नेट पर पढ़ रहे है |  पापा ने मेरे चूत में अपना पूरा लौड़ा घुसा दिया. मेरी चूत की झिल्ली फट गयी. दर्द भी हुआ और मैं कराह उठी. लेकिन ट्रेन की छुक छुक में मेरी कराह छिप गयी. पापा मुझे चोदने लगे. थोड़े देर में ही मेरा दर्द ठीक हो गया और मैं भी चुपचाप चुदवाती रही. करीब 10 मिनट की चुदाई में मेरा 2 बार झड गया. 10 मिनट के बाद पापा के लौड़े ने भी माल उगल दिया. पापा निढाल हो कर मेरे बगल में लेट गए. लेकिन मेरा मन अभी भरा नहीं था. मैंने पापा के लंड को सहलाना चालू किया. पापा समझ गए कि उनकी बेटी अभी और चुदाई चाहती है. पापा – बेटी, तू क्या एक बार और चुदाई चाहती है. मैंने – हाँ पापा.. एक बार और कीजिये न..बड़ा मजा आया.. पापा – अरे बेटी, तू एक बार क्या कहे मैं तो तुझे रात भर चोद सकता हूँ. मैंने – ठीक है पापा, आप की जब तक मन ना भरे मुझे चोदिये. मुझे बड़ा ही मज़ा आ रहा है. पापा ने मुझे उस रात 4 बार चोदा. सारा बर्थ पर माल और रस और खून गिरा हुआ था. सुबह से साढ़े तीन बज चुके थे. पांचवी बार चुदाई के बाद हम दोनों नीचे उतर आये. मैंने और पापा ने अपने पहने हुए सारे कपडे को बदल लिया और गंदे हो चुके कपडे और कम्बल को चलती ट्रेन से बाहर फेंक दिया. मैंने बोतल से पानी निकाला और मुंह हाथ साफ़ कर के बालों में कंघी कर के एकदम फ्रेश हो गयी. पापा ने मुझे लड़की से स्त्री बना दिया था. मुझे इस बात की ख़ुशी हो रही थी कि यदि मेरे कौमार्य को कोई पराया मर्द विवाह पूर्व भाग करता और पापा को पता चल जाता तो पापा को कितनी तकलीफ होती. लेकिन जब पापा ने ही मेरे कौमार्य को भंग कर मुझे संतुष्टि प्रदान की है तो मैं पापा की नजर में दोषी होने से भी बच गयी और मज़ा भी ले लिया. यही सब विचार करते करते ठीक पांच बजे हमारा स्टेशन आ गया और हम ट्रेन से उतर कर घर की तरफ प्रस्थान कर गए. घर पहुँचने पर मौका मिलते ही पापा मुझे चोद कर मुझे और खुद को मज़े देते थे | मेरी कहानी पढने के लिए धन्यवाद | आप लोग मुझसे कुछ पूछना चाहते है तो मुझे ईमेल कीजिये या निचे दिए गए कमेंट बॉक्स में अपने विचार लिख दे मै रिप्लाई करुगी |

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